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सोमवार, 29 जून 2020

लेखनी के धनी आचार्य संजीव सलिल - डॉ. नीलम खरे

संजीव भैया के प्रति
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सदा लेखनी के धनी,श्रीमान संजीव
करते सिरजन नित्य ही,हैं सारस्वत जीव
हैं सारस्वत जीव,करें साहित्य-वंदना
हैं ज्ञानी,उत्कृष्ट,जानते लक्ष्य-साधना
कहती 'नीलम' आज,कभी ना कहें अलविदा
चोखे श्री संजीव,रहें गतिमान वे सदा।
--डॉ नीलम खरे
आज़ाद वार्ड
मंडला(मप्र)-481661
(9425484382)

सरलता के पर्याय आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' डॉ. विनीता राहुरिकर

सरलता के पर्याय आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
डॉ. विनीता राहुरिकर 
भोपाल के विश्व संवाद केंद्र में जब भारतीय साहित्य परिषद की मासिक गोष्ठी चल रही थी तब अचानक ही एक धीर-गम्भीर प्रभावशाली व्यक्ति ने हॉल में प्रवेश किया। कौतूहल से मैं देखने लगी। फिर उनका परिचय प्राप्त हुआ कि वे "आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी" हैं।
हम सब उन्हें अपने बीच पाकर हर्षित और गौरवान्वित हुए। विश्वास नहीं हो रहा था कि वे सच में हमारे बीच हैं। गोष्ठी के बाद आचार्य जी से सबका अनौपचारिक वार्तालाप प्रारम्भ हुआ। कुछ सदस्य अपनी पुस्तकें भी लाये थे। उन्होंने अपनी पुस्तक भेंट की।

उस दिन भाग्य से मेरे पास भी मेरे कहानी संग्रह की एक प्रति थी। बहुत मन हो रहा था कि मैं भी अपनी पुस्तक आचार्य जी को भेंट करूँ किन्तु संकोच हो रहा था कि इतने वरिष्ठ साहित्यकार भला क्या पढ़ेंगे मेरी पुस्तक। और स्वीकार भी क्या करेंगे क्योंकि पूर्व में कुछ साहित्यकारों के साथ यह अनुभव भी हुआ था कि उन्होंने पुस्तक लेने में ही आनाकानी की थी।
तो बहुत मन होने के बाद भी संकोच में घिरी रही। तब एक साथी लेखिका से कहा तो उन्होंने संजीव जी को बताया।
आचार्य जी ने बड़ी आत्मीयता से तुरंत मुझे बुलाया। बड़े स्नेह से मेरा संग्रह लेकर उस पर बात भी की। मेरे बारे में भी पूछा। लेखन पर भी बात की। कुछ ही क्षणों बाद तो लगा ही नहीं कि उनसे पहली बार मिल रही हूँ। लगा वर्षों का आत्मीय परिचय हो मानों उनसे। इतने वरिष्ठ लेकिन उतने ही सरल, सहज। मैं तो नतमस्तक हो गई उनकी सहृदयता के आगे।
फिर भी लगता रहा कि जबलपुर जाकर व्यस्त हो जाएंगे तो कहाँ याद रहेगा मेरा संग्रह उनको। लेकिन अभिभूत रह गई जब उनकी गहन, विस्तृत समीक्षा प्राप्त हुई। जिसे आचार्य जी ने न केवल फेसबुक के सभी साहित्यिक समूहों में लगाया वरन अपने ब्लॉग पर भी पोस्ट किया। व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर किसी नवोदित की पुस्तक पढ़ना अपने आपमें नवोदित के लिए सौभाग्य की बात है और उस पर इतनी विस्तृत, आत्मीय समीक्षा पाना, वो पल एक गौरवमयी अविस्मरणीय पल के रूप में मेरे साहित्यिक जीवन पर अंकित हो गया।
इसके बाद भी आचार्य जी ने बहुत बार साहित्य की हर विधा में मुझे अपना स्नेहपूर्ण मार्गदर्शन दिया है। उनके जैसी सरलता और सहजता अन्यत्र दुर्लभ है। उनका स्नेहाशीष सदैव बना रहे।

डॉ विनीता राहुरिकर

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ - मानवीय संवेदनाओं के कवि

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ - मानवीय संवेदनाओं के कवि
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी का नाम अंतर्जाल पर हिंदी साहित्य जगत में विशेष रूप से सनातन एवं नवीन छंदों पर किये गए उनके कार्य को लेकर अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है, गूगल पर उनका नाम लिखते ही सैकड़ों के संख्या में अनेकानेक पेज खुल जाते हैं जिनमें छंद पिंगलशास्त्र के बारे में अद्भुत ज्ञान वर्धक आलेख तथ्यों के साथ उपलब्ध हैं और हम सभी का मार्गदर्शन कर रहे हैं. फेसबुक एवं अन्य सोशल मिडिया के माध्यम से नवसिखियों को छंद सिखाने का कार्य वे निरनतर कर रहे हैं. पेशे से इंजीनियर होने के बाबजूद उनका हिंदी भाषा, व्याकरण का ज्ञान अद्भुत है, उन्होंने वकालत की डिग्री भी हासिल की है जो दर्शाता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती. वे विगत लगभग 20 वर्षों से हिंदी की सेवा माँ के समान निष्काम भाव से कर रहे हैं, उनका यह समर्पण वंदनीय है, साथ साथ हम जैसे नवोदितों के लिए अनुकरणीय है। गीतों में छंद वद्धता और गेयता के वे पक्षधर हैं।
आचार्य जी से मेरी प्रथम मुलाकात आदरणीय अरुण अर्णव खरे जी के साथ उनके निज आवास पर अक्टूबर २०१६ में हुई, उसे कार्यालय या एक पुस्तकालय कहूँ तो उचित होगा, उनके पास दो फ्लैट हैं, एक में उनका परिवार रहता है दूसरा साहित्यिक गतिविधियों को समर्पित है, लगभग दो घंटे हिंदी साहित्य के विकास में हम मिलकर क्या कर सकते हैं, इस पर चर्चा हुई. उनके सहज सरल व्यक्तित्व और हिंदी भाषा के लिए पूर्ण समर्पण के भाव ने मुझे बहुत प्रभावित किया. यह निर्णय लिया गया कि विश्ववाणी हिंदी संस्थान के अंतर्गत अभियान के माध्यम से जबलपुर में हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे लघुकथा, कहानी, दोहा छंद आदि विधाओं पर सीखने सिखाने हेतु कार्यशालाएं/गोष्ठी आयोजित की जाएँ, तब से लेकर आज तक २५ गोष्ठियों का आयोजन किया चुका है और यह क्रम अनवरत जारी है, व्हाट्सएप समूह के माध्यम से भी यह कार्य प्रगति की चल रहा है. इसी अवधि में तीन दोहा संकलन उन्होंने सम्पादित किये हैं, सम्पादन उत्कृष्ट एवं शिक्षाप्रद है.
वे एक कुशल वक्ता हैं, आशुकवि हैं, समयानुशासन का पालन उनकी आदत में शुमार है, चाहे वह किसी आयोजन में उपस्थिति का हो या फिर वक्तव्य, काव्यपाठ की अवधि का, निर्धारित अवधि में अपनी पूरी बात कह देने की कला में वे निपुण हैं. अनुशासन हीनता उन्हें बहुत विचलित करती है, कभी-कभी वे इसे सबके सामने प्रकट भी कर देते हैं.
उन्होंने कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, काल है संक्रांति का, सड़क पर, कुरुक्षेत्र गाथा आदि कृतियों के माध्यम से साहित्य में सबका हित समाहित करने का अनुपम कार्य किया है. यदि सामाजिक विसंगतियों पर करारा प्रहार करना आचार्य सलिल के काव्य की विशेषता है तो समाज में मंगल, प्रकृति की सुंदरता का वर्णन भी समान रूप से उनके काव्य का अंश है, माँ नर्मदा पर उनके उनके छंद हैं, दिव्य नर्मदा के नाम से वे ब्लॉग निरंतर लिख रहे हैं.
उनके साथ मुझे कई साहित्यिक यात्राएँ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, अपने पैसे एवं समय खर्च कर साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेने का उनका उत्साह सराहनीय है, अनुकरणीय है.
ट्रू मीडिया ने उनके कृतित्व पर एक विशेषांक निकालने का निर्णय लिया है, स्वागत योग्य है, इससे संस्कारधानी जबलपुर गौरवान्वित हुई है. मैं उनके उनके उज्जवल भविष्य और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूँ. माँ शारदा की अनुकम्पा सदैव उन पर बनी रहे.
बसंत कुमार शर्मा
IRTS
संप्रति - वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक
जबलपुर मंडल, पश्चिम मध्य रेल
निवास - 354, रेल्वे डुप्लेक्स,
फेथ वैली स्कूल के सामने
पचपेढ़ी, साउथ सिविल लाइन्स,
जबलपुर (म.प्र.)
मोमोबाइल : 9479356702
ईमेल : basant5366@gmail.com

छंदों का सम्पूर्ण विद्यालय हैं आचार्य संजीव वर्मा "'सलिल'

छंदों का सम्पूर्ण विद्यालय हैं आचार्य संजीव वर्मा "'सलिल'
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' से मेरा परिचय पिछले चार वर्षों से है। लगभग चार वर्ष पहले की बात है, मैं एक छंद के विषय मे जानकारी चाहती थी पर यह जानकारी कहाँ से मिल सकती है यह मुझे पता नहीं था, सो जो हम आमतौर पर करते हैं मैंने भी वही किया... मैंने गूगल की मदद ली और गूगल पर छंद का नाम लिखा तो सबसे पहले मुझे "दिव्य नर्मदा" वेब पत्रिका से छंद की जानकारी प्राप्त हुई। मैंने दिव्य नर्मदा पर बहुत सारी रचनाएँ पढ़ीं।
चूँकि मैं भी जबलपुर की हूँ और जबलपुर मेरा नियमित आनाजाना होता है तो मेरे मन में आचार्य जी से मिलने की तीव्र इच्छा जागृत हुई। दिव्य नर्मदा पर मुझे आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी का पता और फोन नम्बर भी मिला। मैं स्वयं को रोक नहीं पाई और मैंने आचार्य सलिल जी को व्हाट्सएप पर सन्देश लिखा कि मैं भी जबलपुर से हूँ... और जबलपुर आने पर आपसे भेंट करना चाहती हूँ। उन्होंने कहा कि मैं जब भी आऊँ तो उनके निवास स्थान पर उनसे मिल सकती हूँ।
उसके बाद जब में जबलपुर गई तो मैं सलिल जी से मिलने उनके के घर गई। आप बहुत ही सरल हृदय हैं बहुत ही सहजता से मिले और हमने बहुत देर तक साहित्यिक चर्चा की। हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए आप बहुत चिंतित एवं प्रयासरत लगे। चर्चा के दौरान हमने हिन्दी छंद, गीत-नवगीत, माहिया एवं हाइकु आदि पर विस्तार से बात की। लेखन की लगभग सभी विधाओं पर आपका ज्ञान अद्भुत है।
ततपश्चात मैं जब भी जबलपुर जाती हूँ तो आचार्य सलिल जी से अवश्य मिलती हूँ। उनके अथाह साहित्य ज्ञान के सागर से हर बार कुछ मोती चुनने का प्रयास करती हूँ।
ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान उन्होंने सनातन छंदो पर अपने शोध पर विस्तार से बताया। सनातन छंदों पर किया गया यह शोध नवोदित रचनाकारों के लिए गीता साबित होगा।
आचार्य सलिल जी के विषय में चर्चा हो और उनके द्वारा संपादित "दोहा शतक मंजूषा" की चर्चा हो यह सम्भव नहीं। विश्व वाणी साहित्य संस्थान नामक संस्था के माध्यम से आप साहित्य सेवारत हैं। इसी प्रकाशन से प्रकाशित ये दोहा संग्रह पठनीय होने के साथ साथ संकलित करके रखने के योग्य हैं इनमें केवल दोहे संकलित नहीं हैं बल्कि दोहों के विषय मे विस्तार से समझाया गया है जिससे पाठक दोहों के शिल्प को समझ सके और दोहे रचने में सक्षम हो सके।
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी के लिए कुछ कहते हुए शब्द कम पड़ जाते हैं किंतु साहित्य के लिए आपके योगदान की गाथा पूर्ण नहीं होती। आपकी साहित्य सेवा सराहनीय है।
मैं अपने हृदयतल से आपको शुभकामनाएं देती हूँ कि आप आपकी साहित्य सेवा की चर्चा दूर दूर तक पहुंचे। आप सफलता के नए नए कीर्तिमान स्थापित करें अवने विश्व वाणी संस्थान के माध्यम से हिंदी का प्रचार प्रसार करते रहें।
मंजूषा मन
कार्यकारी अधिकारी
अम्बुजा सीमेंट फाउंडेशन
ग्राम - रवान
जिला - बलौदा बाजार
पिन - 493331
छत्तीसगढ़

पत्र - शांत

"आदरणीया मंजूषा मन,
आप आचार्य संजीव 'सलिल' से चार वर्ष पूर्व मिलीं और इतना कुछ लिख डाला, हम दादा को विगत २५ वर्षों से
जानते हैं।
'लोकतंत्र का मकबरा' काव्य-संग्रह का लोकार्पण उन्होंने कृपाकर हमारे लखनऊ आवास पर आकर श्री गिरीश नारायण पाण्डेय, वरि०साहि० एवं तत्कालीन आयकर आयुक्त के कर-कमलों द्वारा लखनऊ नगर के साहित्य -कारों के बीच इं०अमरनाथ और इं० गोविन्दप्रसाद तथा इं०संतोष प्रकाश माथुर ,संयुक्त प्र०नि०सेतु निगम एवं अध्यक्ष 'अभियान' की उपस्थिति में कराया था।
बाद में वे इन्स्टीट्यूटशन्स आफ़ इन्जीनियर्स आफ़ इण्डिया आदि की पत्रिका से सम्बद्ध होकर हिन्दी की सेवा में अभूतपूर्व कार्य करते रहे।
नर्मदा विषयक उनके कार्य का सानी नहीं तो महादेवी वर्मा से प्राप्त आशीष जगत् विख्यात है।
हमने आचार्य संजीव 'सलिल' को सदैव की भाँति सरल, गम्भीर, स्मित हास्य-युक्त उनका व्यक्तित्व मोहित करता है।
आपने उनके विषय में जो भी कहा अक्षरश: सत्य है।"
-देवकी नन्दन'शान्त',साहित्यभूषण, 'शान्तम्',१०/३०/२,इन्दिरानगर, लखनऊ-२२६०१६(उ०प्र०), मो० 9935217841;8840549296

सलिल को काव्यांजलि - मनोज

श्री संजीव वर्मा सलिल के प्रति काव्यांजलि
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अंतर्मन से कलकल बहती रसधार सलिल की कविता है
जीवन का सत्य समाहित है उपहार सलिल की कविता है
युग बोध कराती जन-जन के आक्रांत क्लांत मानव मन को
अंतस के छिपे पहलुओं का आधार सलिल की कविता है
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समय फिसलता चला जा रहा शायद सिर्फ प्रयासों में
जैसे बीती उमर हमारी खुद की तो वनवासो में
लेकिन शायद अश्व समय का थकता रुकता नहीं कभी
नाम सलिल का हुआ है अच्छी कविता के इतिहासों में
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मनोज श्रीवास्तव
सेवा निवृत्त वरिष्ठप्रबंधक( ट्रेनिंग) एच ए एल लखनऊ मंडल
2 / 78 विश्वास खंड गोमती नगर
लखनऊ उ प्र भारत 226010
mo -09452063024
E MAIL -hasyavyangkavi @yahoo . co .

संजीव वर्मा 'सलिल

*शब्द ब्रम्ह के पुजारी गुरुवार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'*
छाया सक्सेना 
श्रुति-स्मृति की सनातन परंपरा के देश भारत में शब्द को ब्रम्ह और शब्द साधना को ब्रह्मानंद माना गया है। पाश्चात्य जीवन मूल्यों और अंग्रेजी भाषा के प्रति अंधमोह के काल में, अभियंता होते हुए भी कोई हिंदी भाषा, व्याकरण और साहित्य के प्रति समर्पित हो सकता है, यह आचार्य सलिल जी से मिलकर ही जाना।
भावपरक अलंकृत रचनाओं को कैसे लिखें यह ज्ञान आचार्य संजीव 'सलिल' जी अपने सम्पर्क में आनेवाले इच्छुक रचनाकारों को स्वतः दे देते हैं। लेखन कैसे सुधरे, कैसे आकर्षक हो, कैसे प्रभावी हो ऐसे बहुत से तथ्य आचार्य जी बताते हैं। वे केवल मौखिक जानकारी ही नहीं देते वरन पढ़ने के लिए साहित्य भी उपलब्ध करवाते हैं । उनकी विशाल लाइब्रेरी में हर विषयों पर आधारित पुस्तकें सुसज्जित हैं । विश्ववाणी संस्थान अभियान के कार्यालय में कोई भी साहित्य प्रेमी आचार्य जी से फोन पर सम्पर्क कर मिलने हेतु समय ले सकता है । एक ही मुलाकात में आप अवश्य ही अपने लेखन में आश्चर्य जनक बदलाव पायेंगे ।
साहित्य की किसी भी विधा में आप से मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है । चाहें वो पुरातन छंद हो , नव छंद हो, गीत हो, नवगीत हो या गद्य में आलेख, संस्मरण, उपन्यास, कहानी या लघुकथा इन सभी में आप सिद्धस्थ हैं।
आचार्य सलिल जी संपादन कला में भी माहिर हैं। उन्होंने सामाजिक पत्रिका चित्राशीष, अभियंताओं की पत्रिकाओं इंजीनियर्स टाइम्स, अभियंता बंधु, साहित्यिक पत्रिका नर्मदा, अनेक स्मारिकाओं व पुस्तकों का संपादन किया है। अभियंता कवियों के संकलन निर्माण के नूपुर व नींव के पत्थर तथा समयजयी साहित्यकार भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' के लिए आपको
नाथद्वारा में 'संपादक रत्न' अलंकरण से अलंकृत किया गया है।
आचार्य सलिल जी ने संस्कृत से ५ नर्मदाष्टक, महालक्ष्यमष्टक स्त्रोत, शिव तांडव स्त्रोत, शिव महिम्न स्त्रोत, रामरक्षा स्त्रोत आदि का हिंदी काव्यानुवाद किया है। इस हेतु हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग को रजत जयंती वर्ष में आपको 'वाग्विदांबर' सम्मान प्राप्त हुआ। आचार्य जी ने हिंदी के अतिरिक्त बुंदेली, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, राजस्थानी, अवधी, हरयाणवी, सरायकी आदि में भी सृजन किया है।
बहुआयामी सृजनधर्मिता के धनी सलिल जी अभियांत्रिकी और तकनीकी विषयों को हिंदी में लिखने के प्रति प्रतिबद्ध हैं। आपको 'वैश्विकता के निकष पर भारतीय अभियांत्रिकी संरचनाएँ' पर अभियंताओं की सर्वोच्च संस्था इंस्टीटयूशन अॉफ इंजीनियर्स कोलकाता का अखिल भारतीय स्तर पर द्वितीय श्रेष्ठ पुरस्कार महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा प्रदान किया गया।
जबलपुर (म.प्र.)में १७ फरवरी को आयोजित सृजन पर्व के दौरान एक साथ कई पुस्तकों का विमोचन, समीक्षा व सम्मान समारोह को आचार्य जी ने बहुत ही कलात्मक तरीके से सम्पन्न किया । दोहा संकलन के तीन भाग सफलता पूर्वक न केवल सम्पादित किया वरन दोहाकारों को आपने दोहा सतसई लिखने हेतु प्रेरित भी किया । आपके निर्देशन में समन्वय प्रकाशन भी सफलता पूर्वक पुस्तकों का प्रकाशन कर नए कीर्तिमान गढ़ रहा है ।
छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर ( म. प्र. )

साहित्य पुरोधा - 'संजीव वर्मा सलिल'


बहुमुखी व्यक्तित्व के साहित्य पुरोधा - 'संजीव वर्मा सलिल'
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श्री संजीव वर्मा 'सलिल" बहुमुखी प्रतिभा के धनी है । अभियांत्रिकी, विधि, दर्शा शास्त्र और अर्थशास्त्र विषयों में शिक्षा प्राप्त श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जी देश के लब्ध-प्रतिष्ठित साहित्यकार है जिनकी कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीट मेरे, काल है संक्रांति का, सड़क पर और कुरुक्षेत्र गाथा सहित अनेक पुस्तके चर्चित रही है ।
दोहा, कुण्डलिया, रोला, छप्पय और कई छन्द और छंदाधारित गीत रचनाओ के सशक्त हस्ताक्षर सही सलिल जी का पुस्तक प्रेम अनूठा है। इसका प्रमाण इनकी 10 हजार से अधिक श्रेष्ठ पुस्तको का संग्रह से शोभायमान जबलपुर में इनके घर पर इनका पुस्तकालय है ।
इनकी लेखक, कवि, कथाकार, कहानीकार और समालोचक के रूप में अद्वित्तीय पहचान है । मेरे प्रथम काव्य संग्रह 'करते शब्द प्रहार' पर इनका शुभांशा मेरे लिए अविस्मरणीय हो गई । इन्होंने ने कई नव प्रयोग भी किये है । दोहो और कुंडलियों पर इनकी शिल्प विधा पर इनके आलेख को कई विद्वजन उल्लेख करते है ।
जहाँ तक मुझे जानकारी है ये महादेवी वर्मा के नजदीकी रिश्तेदार है । इनकी कई वेसाइट है । ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ आस्था के कारण इन्होंने के भजन सृजित किये है और कई संस्कृत की पुस्तकों का हिंदी काव्य रूप में अनुवाद किया है ।
सलिल जी से जब भी कोई जिज्ञासा वश पूछता है तो सहभाव से प्रत्युत्तर दे समाधान करते है । ये इनकी सदाशयता की पहचान है । एक बार इनके अलंकारित दोहो के प्रत्युत्तर में मैंने दोहा क्या लिखा, दोहो में ही आधे घण्टे तक एक दूसरे को जवाब देते रहे, जिन्हें कई कवियों ने सराहा । ऐसे साहित्य पुरोधा श्री 'सलिल' जी साहित्य मर्मज्ञ के साथ ही ऐसे नेक दिल इंसान है जिन्होंने सैकड़ों नवयुवकों को का हौंसला बढ़ाया है । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं है ।
मेरी भावभव्यक्ति -
प्रतिभा के धनी : संजीव वर्मा सलिल
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प्रतिभा के लगते धनी, जन्म जात कवि वृन्द ।
हुए पुरोधा कवि 'सलिल',प्यारे जिनको छन्द ।।
प्यारे जिनको छंद, पुस्तके जिनकी चर्चित ।
छन्दों में रच काव्य, करी अति ख्याति अर्जित ।।
कह लक्ष्मण कविराय, साहित्य में लाय विभा*।
साहित्यिक मर्मज्ञ, मानते वर्मा में प्रतिभा ।।
*क्रांति

पद- दोहा

पद
छंद: दोहा.
*
मन मंदिर में बैठे श्याम।।
नटखट-चंचल सुकोमल, भावन छवि अभिराम।
देख लाज से गड़ रहे, नभ सज्जित घनश्याम।।
मेघ मृदंग बजा रहे, पवन जप रहा नाम।
मंजु राधिका मुग्ध मन, छेड़ रहीं अविराम।।
छीन बंसरी अधर धर, कहें न करती काम।
कहें श्याम दो फूँक तब, जब मन हो निष्काम।।
चाह न तजना है मुझे, रहें विधाता वाम।
ये लो अपनी बंसरी, दे दो अपना नाम।।
तुम हो जाओ राधिका, मुझे बना दो श्याम।
श्याम थाम कर हँस रहे, मैं गुलाम बेदाम।।
***
२९.६.२०१२, ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४

सड़गोड़ासनी: बुंदेली छंद

सड़गोड़ासनी:
बुंदेली छंद, विधान: मुखड़ा १५-१६, ४ मात्रा पश्चात् गुरु लघु अनिवार्य,
अंतरा १६-१२, मुखड़ा-अन्तरा सम तुकांत .
*
जन्म हुआ किस पल? यह सोच
मरण हुआ कब जानो?
*
जब-जब सत्य प्रतीति हुई तब
कह-कह नित्य बखानो.
*
जब-जब सच ओझल हो प्यारे!
निज करनी अनुमानो.
*
चलो सत्य की डगर पकड़ तो
मीत न अरि कुछ मानो.
*
देख तिमिर मत मूँदो नयना
अंतर-दीप जलानो.
*
तन-मन-देश न मलिन रहे मिल
स्वच्छ करेंगे ठानो.
*
ज्यों की त्यों चादर तब जब
जग सपना विहँस भुलानो.
***
२९.६.२०१८, ७९९९५५९६१८
salil.sanjiv@gmail.com

समस्यापूर्ति : ग़ज़ल

समस्यापूर्ति
प्रदत्त पंक्ति- मैं जग को दिल के दाग दिखा दूँ कैसे - बलबीर सिंह।
*
मुक्तिका:
(२२ मात्रिक महारौद्र जातीय राधिका छंद)
मैं जग को दिल के दाग, दिखा दूँ कैसे?
अपने ही घर में आग, लगा दूँ कैसे?
*
औरों को हँसकर सजा सुना सकता हूँ
अपनों को खुद दे सजा, सजा दूँ कैसे?
*
सेना को गाली बकूँ, सियासत कहकर
निज सुत सेना में कहो, भिजा दूँ कैसे?
*
तेरी खिड़की में ताक-झाँक कर खुश हूँ
अपनी खिड़की मैं तुझे दिखा दूँ कैसे?
*
'लाइक' कर दूँ सब लिखा, जहाँ जो जिसने
क्या-कैसे लिखना, कहाँ सिखा दूँ कैसे?
*

२९-६-२०१७ 

आयुर्वेद : तुलसी

आयुर्वेद : तुलसी
तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है। विशेषकर सर्दी, खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है। इसीलिए भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है।
- तुलसी हिचकी, खांसी,जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु खत्म होती है। यह दूर्गंध भी दूर करती है।
- तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है।
- तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, कृमि, दुर्गंध, हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है। तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है, ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो तो उसे खत्म कर दे। शरीर में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है। सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है।
तुलसी की मुख्य जातियां- तुलसी की मुख्यत: दो प्रजातियां अधिकांश घरों में लगाई जाती हैं। इन्हें रामा और श्यामा कहा जाता है।
- रामा के पत्तों का रंग हल्का होता है। इसलिए इसे गौरी कहा जाता है।
- श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है। इसमें कफनाशक गुण होते हैं। यही कारण है कि इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है।
- तुलसी की एक जाति वन तुलसी भी होती है। इसमें जबरदस्त जहरनाशक प्रभाव पाया जाता है, लेकिन इसे घरों में बहुत कम लगाया जाता है। आंखों के रोग, कोढ़ और प्रसव में परेशानी जैसी समस्याओं में यह रामबाण दवा है।
- एक अन्य जाति मरूवक है, जो कम ही पाई जाती है। राजमार्तण्ड ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह का घाव हो जाने पर इसका रस बेहतरीन दवा की तरह काम करता है।
मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी - मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी, जैसे मलेरिया में तुलसी एक कारगर औषधि है। तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता है। जुकाम के कारण आने वाले बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए। इससे बुखार में आराम मिलता है। शरीर टूट रहा हो या जब लग रहा हो कि बुखार आने वाला है तो पुदीने का रस और तुलसी का रस बराबर मात्रा में मिलाकर थोड़ा गुड़ डालकर सेवन करें, आराम मिलेगा।
- साधारण खांसी में तुलसी के पत्तों और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।
- तुलसी व अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से खांसी में बहुत जल्दी आराम मिलता है।
- तुलसी के रस में मुलहटी व थोड़ा-सा शहद मिलाकर लेने से खांसी की परेशानी दूर हो जाती है।
- चार-पांच लौंग भूनकर तुलसी के पत्तों के रस में मिलाकर लेने से खांसी में तुरंत लाभ होता है।
- शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाया जाए तो जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।
- फ्लू रोग में तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है।

- तुलसी थकान मिटाने वाली एक औषधि है। बहुत थकान होने पर तुलसी की पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है।
- प्रतिदिन 4- 5 बार तुलसी की 6-8 पत्तियों को चबाने से कुछ ही दिनों में माइग्रेन की समस्या में आराम मिलने लगता है।
- तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है। इससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है।
- तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है।
- तुलसी के पत्तों को तांबे के पानी से भरे बर्तन में डालें। कम से कम एक-सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा रहने दें। यह पानी पीने से कई बीमारियां पास नहीं आतीं।
- दिल की बीमारी में यह अमृत है। यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है। दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों को तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए।

२९-६-२०१७ 

रचना-प्रतिरचना राकेश खण्डेलवाल-संजीव

रचना-प्रतिरचना
राकेश खण्डेलवाल-संजीव
*
अचल रहे संकल्प, विकल्पों पर विचार का समय नहीं है
हुई व्यवस्था ही प्रधान, जो करे व्यवस्था अभय नहीं है
अभय दान जो मांगा करते उन हाथों में शक्ति नहीं है
पाना है अधिकार अगर तो कमर बांध कर लड़ना होगा
कौन व्यवस्था का अनुयायी? केवल हम हैं या फिर तुम हो
अपना हर संकल्प हमीं को अपने आप बदलना होगा
मूक समर्थन कृत्य हुआ है केवल चारण का भाटों का
विद्रोहों के ज्वालमुखी को फिर से हमें जगाना होगा
रहे लुटाते सिद्धांतों पर और मानयताओं पर् अपना
सहज समर्पण कर दे ऐसा पास हमारे ह्रदय नहीं है
अपराधी है कौन दशा का ? जितने वे हैं उतने हम है
हमने ही तो दुत्कारा है मधुमासों को कहकर नीरस
यदि लौट रही स्वर की लहरें कंगूरों से टकरा टकरा
हम क्यों हो मौन ताकते हैं उनको फिर खाली हाथ विवश
अपनी सीमितता नजरों की अटकी है चौथ चन्द्रमा में
रह गयी प्रतीक्षा करती ही द्वारे पर खड़ी हुई चौदस
दुर्गमता से पथ की डरकर जो है नीड़ में छुपा हुआ
र्ग गंध चूमें आ उसको, ऐसी कोई वज़ह नहीं है
द्रोण अगर ठुकरा भी दे तो एकलव्य तुम खुद बन जाओ
तरकस भरा हुआ है मत का, चलो तीर अपने संधानो
बिना तुम्हारी स्वीकृति के अस्तित्व नहीं सुर का असुरों का
रही कसौटी पास तुम्हारे , अन्तर तुम खुद ही पहचानो
पर्वत, नदिया, वन उपवन सब गति के सन्मुख झुक जाते हैं
कोई बाधा नहीं अगर तुम निश्चय अपने मन में ठानो
सत्ताधारी हों निशुम्भ से या कि शुम्भ से या रावण से
बतलाता इतिहास राज कोई भी रहता अजय नहीं है.
***
अचल रहे संकल्प, विकल्पों पर विचार का समय नहीं है
बिना विचारे कदम उठाना, क्या खुद लाना प्रलय नहीं है?
*
सुर-असुरों ने एक साथ मिल, नर-वानर को तंग किया है
इनकी ही खातिर मर-मिटकर नर ने जब-तब जंग किया है
महादेव सुर और असुर पर हुए सदय, नर रहा उपेक्षित
अमिय मिला नर को भूले सब, सुर-असुरों ने द्वन्द किया है
मतभेदों को मनभेदों में बदल, रहा कमजोर सदा नर
चंचल वृत्ति, न सदा टिक सका एक जगह पर किंचित वानर
ऋक्ष-उलूक-नाग भी हारे, येन-केन छल कर हरि जीते
नारी का सतीत्व हरने से कब चूके, पर बने पूज्यवर
महाकाल या काल सत्य पर रहा अधिकतर सदय नहीं है
अचल रहे संकल्प, विकल्पों पर विचार का समय नहीं है
*
अपराधी ही न्याय करे तो निरपराध को मरना होगा
ताकतवर के अपराधों का दण्ड निबल को भरना होगा
पूँजीपतियों के इंगित पर सत्ता नाच नाचती युग से
निरपराध सीता को वन जा वनजा बनकर छिपना होगा
घंटों खलनायक की जय-जय, युद्ध अंत में नायक जीते
लव-कुश कीर्ति राम की गायें, हाथ सिया के हरदम रीते
नर नरेंद्र हो तो भी माया-ममता बैरन हो जाती हैं
आप शाप बन अनुभव पाता-देता पल-पल कड़वे-तीते
बहा पसीना फसल उगाए जो वह भूखा ही जाता है मर
लोभतंत्र से लोकतंत्र की मृत्यु यही क्या प्रलय नहीं है
अचल रहे संकल्प, विकल्पों पर विचार का समय नहीं है
*
कितना भी विपरीत समय हो, जिजीविषा की ही होगी जय
जो बाकी रह जायें वे मिल, काम करें निष्काम बिना भय
भीष्म कर्ण कृप द्रोण शकुनि के दिन बीते अलविदा उन्हें कह
धृतराष्ट्री हर परंपरा को नष्ट करे नव दृष्टि-धनञ्जय
मंज़िल जय करना है यदि तो कदम-कदम मिल बढ़ना होगा
मतभेदों को दबा नींव में, महल ऐक्य का गढ़ना होगा
दल का दलदल रोक रहां पथ राष्ट्रीय सरकार बनाकर
विश्व शक्तियों के गढ़ पर भी वक़्त पड़े तो चढ़ना होगा
दल-सीमा से मुक्त प्रमुख हो, सकल देश-जनगण का वक्ता
प्रत्यारोपों-आरोपों के समाचार क्या अनय नहीं है?
अचल रहे संकल्प, विकल्पों पर विचार का समय नहीं है
*
२९-६-२०१६

गीत : चाँदनी

एक गीत 
*
चाँदनी में नहा
चाँदनी महमहा
रात-रानी हुई
कुछ दीवानी हुई
*
रातरानी खिली
मोगरे से मिली
हरसिंगारी ग़ज़ल
सुन गया मन मचल
देख टेसू दहा
चाँदनी में नहा
*
रंग पलाशी चढ़ा
कुछ नशा सा बढ़ा
बालमा चंपई
तक जुही मत मुई
छिप फ़साना कहा
चाँदनी में नहा
*
२९-६-२०१६

विमर्श : नीति

विमर्श : नीति
एक दोहा नीति का अपने विचार लिखें.
ज्ञानवती दीक्षित:
एक अच्छा सा श्लोक पढा।आपको भी पढवाती हूँ ।
व्याघ्रानां महत् निद्रा, सर्पानां च महद् भयम् ।
ब्राह्मणानाम् अनेकत्वं, तस्मात् जीवन्ति जन्तवः ।।
.
शेरों को नींद बहुत आती है, सांपों को डर बहुत लगता है, और ब्राह्मणों में एकता नही है, इसीलिए सभी जीव जी रहे है ।
.
नाहर को निंदिया बहुत, नागराज भयभीत।
फूट विप्र में हुई तो, गयी जिंदगी जीत।। -सलिल

२९-६-२०१७ 

बुन्देली मुक्तिका: बखत बदल गओ


बुन्देली मुक्तिका:
बखत बदल गओ
संजीव
*
बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।
सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।
*
लतियाउत तें कल लों जिनखों
बे नेतन सें हात जुरा रए।।
*
पाँव कबर मां लटकाए हैं
कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।
*
पान तमाखू गुटका खा खें
भरी जवानी गाल झुरा रए।।
*
झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें
सांच कई तेन अश्रु ढुरा रए।।
*
२९.६.२०१४

गीत: आँख का पानी...

गीत: 
आँख का पानी... 
--संजीव 'सलिल'
*
कहे कहानी, आँख का पानी.
की सो की, मत कर नादानी...
बरखा आई, रिमझिम लाई.
नदी नवोढ़ा सी इठलाई..
ताल भरे दादुर टर्राये.
शतदल कमल खिले मन भाये..
वसुधा ओढ़े हरी चुनरिया.
बीरबहूटी बनी गुजरिया..
मेघ-दामिनी आँख मिचोली.
खेलें देखे ऊषा भोली..
संध्या-रजनी सखी सुहानी.
कहे कहानी, आँख का पानी...
पाला-कोहरा साथी-संगी.
आये साथ, करें हुडदंगी..
दूल्हा जाड़ा सजा अनूठा.
ठिठुरे रवि सहबाला रूठा..
कुसुम-कली पर झूमे भँवरा.
टेर चिरैया चिड़वा सँवरा..
चूड़ी पायल कंगन खनके.
सुन-गुन पनघट के पग बहके.
जो जी चाहे करे जवानी.
कहे कहानी, आँख का पानी....
अमन-चैन सब हुई उड़न छू.
सन-सन, सांय-सांय चलती लू..
लंगड़ा चौसा आम दशहरी
खाएँ ख़ास न करते देरी..
कूलर, ए.सी., परदे खस के.
दिल में बसी याद चुप कसके..
बन्ना-बन्नी, चैती-सोहर.
सोंठ-हरीरा, खा-पी जीभर..
कागा सुन कोयल की बानी.
कहे कहानी, आँख का पानी..
२९-६-२०१० 

विमर्श : विद्यावान और विद्वान

रावण विद्वान था जबकि *हनुमान जी, विद्यावान थे एक रोचक कथा-
विद्वान और विद्यावान में अन्तर:-
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
रावण के दस सिर हैं। चार वेद और छह: शास्त्र दोनों मिलाकर दस हैं। इन्हीं को दस सिर कहा गया है। जिसके सिर में ये दसों भरे हों, वही दस शीश हैं। रावण वास्तव में विद्वान है लेकिन विडम्बना क्या है ?
रावण सीता जी का हरण करके ले आया। बहुधा विद्वान लोग अपनी विद्वता के कारण दूसरों को शान्ति से नहीं रहने देते। उनका अभिमान दूसरों की सीता रूपी शान्ति का हरण कर लेता है और हनुमान जी उन्हीं खोई हुई सीता रुपी शान्ति को वापिस भगवान से मिला देते हैं। हनुमान जी ने कहा -
विनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥
हनुमान जी ने हाथ जोड़कर कहा कि मैं विनती करता हूँ, तो क्या हनुमान जी में बल नहीं है ?
नहीं, ऐसी बात नहीं है। विनती दोनों करते हैं। जो भय से भरा हो या भाव से भरा हो। रावण ने कहा कि तुम क्या, यहाँ देखो कितने लोग हाथ जोड़कर मेरे सामने खड़े हैं।
कर जोरे सुर दिसिप विनीता। भृकुटी विलोकत सकल सभीता॥
यही विद्वान और विद्यावान में अन्तर है। हनुमान जी गये थे, रावण को समझाने। यही विद्वान और विद्यावान का मिलन है। रावण के दरबार में देवता और दिग्पाल भय से हाथ जोड़े खड़े हैं और भृकुटी की ओर देख रहे हैं। परन्तु हनुमान जी भय से हाथ जोड़कर नहीं खड़े हैं। रावण ने कहा भी -
कीधौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही॥
रावण ने कहा - “तुमने मेरे बारे में सुना नहीं है ? तू बहुत निडर दिखता है !”
हनुमान जी बोले – “क्या यह जरूरी है कि तुम्हारे सामने जो आये, वह डरता हुआ आये ?”
देखि प्रताप न कपि मन संका 
रावण बोला – “देख लो, यहाँ जितने देवता और अन्य खड़े हैं, वे सब डरकर ही खड़े हैं।”
हनुमान जी बोले - “उनके डर का कारण है, वे तुम्हारी भृकुटी की ओर देख रहे हैं।”
भृकुटी विलोकत सकल सभीता।
परन्तु मैं भगवान राम की भृकुटी की ओर देखता हूँ। उनकी भृकुटी कैसी है ? बोले -
भृकुटी विलास सृष्टि लय होई। सपनेहु संकट परै कि सोई॥
जिनकी भृकुटी टेढ़ी हो जाये तो प्रलय हो जाए और उनकी ओर देखने वाले पर स्वप्न में भी संकट नहीं आए।
मैं उन श्रीराम जी की भृकुटी की ओर देखता हूँ। रावण बोला - “यह विचित्र बात है। जब राम जी की भृकुटी की ओर देखते हो तो हाथ हमारे आगे क्यों जोड़ रहे हो ?
विनती करउँ जोरि कर रावन।
हनुमान जी बोले – “यह तुम्हारा भ्रम है। हाथ तो मैं उन्हीं को जोड़ रहा हूँ।”
रावण बोला - “वह यहाँ कहाँ हैं ?” हनुमान जी ने कहा - यही समझाने आया हूँ। मेरे प्रभु राम जी ने कहा था -
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमन्त।
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामी भगवन्त॥
भगवान ने कहा है कि सबमें मुझको देखना। इसीलिए मैं तुम्हें नहीं, तुझमें भी भगवान को ही देख रहा हूँ ।” इसलिए हनुमान जी कहते हैं -
खायउँ फल प्रभु लागी भूखा और सबके देह परम प्रिय स्वामी॥
हनुमान जी रावण को प्रभु और स्वामी कहते हैं और रावण -
मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही॥
रावण खल और अधम कहकर हनुमान जी को सम्बोधित करता है। यही विद्यावान का लक्षण है कि अपने को गाली देने वाले में भी जिसे भगवान दिखाई दे, वही विद्यावान है।
*विद्यावान का लक्षण है* -
विद्या ददाति विनयं। विनयाति याति पात्रताम्॥
पढ़ लिखकर जो विनम्र हो जाये, वह विद्यावान और जो पढ़ लिखकर अकड़ जाये, वह विद्वान। तुलसी दास जी कहते हैं -
बरसहिं जलद भूमि नियराये। जथा नवहिं बुध विद्या पाये॥
जैसे बादल जल से भरने पर नीचे आ जाते हैं, वैसे विचारवान व्यक्ति विद्या पाकर विनम्र हो जाते हैं।
इसी प्रकार हनुमान जी हैं - विनम्र-विद्यावान और रावण है - बुद्धिमान विद्वान।
यहाँ प्रश्न उठता है कि विद्वान कौन है ?
इसके उत्तर में कहा गया है कि जिसकी दिमागी क्षमता तो बढ़ गयी, परन्तु दिल खराब हो, हृदय में अभिमान हो, वही विद्वान है और
विद्यावान कौन है ?
उत्तर में कहा गया है कि जिसके हृदय में भगवान हो और जो दूसरों के हृदय में भी भगवान को बिठाने की बात करे, वही विद्यावान है। हनुमान जी ने कहा – “रावण ! और तो ठीक है, पर तुम्हारा दिल ठीक नहीं है। कैसे ठीक होगा ? कहा -
राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम करहू॥
अपने हृदय में राम जी को बिठा लो और फिर मजे से लंका में राज करो।
यहाँ हनुमान जी रावण के हृदय में भगवान को बिठाने की बात करते हैं, इसलिए वे विद्यावान हैं।
सीख :- विद्वान ही नहीं बल्कि “विद्यावान” बनने का प्रयत्न करना अभीष्ट है। 

विमर्श : अंग स्पर्श

विमर्श : अंग स्पर्श 
प्रश्न: स्त्री के किस अंग को छूना शुभ माना गया है?
उत्तर
यह पारस्परिकसंबंध पर निर्भर करता है।
१. छोटों का सिर छूना (आशीर्वाद हेतु) शुभकारी है। खुश रहो, विजयी हो आदि कह दें तो सोने पे सुहागा। बहुत छोटे बच्चों के कपोल पर चुम्बन भी लिया जा सकता है। 
२. बड़ों का चरण स्पर्श करना अथवा सर झुकाकर-हाथ जोड़कर प्रणाम करना शुभ होता है।  
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति रोज बड़े-बुजुर्गों के सम्मान में प्रणाम और चरण स्पर्श करता है। उसकी उम्र, विद्या, यश और शक्ति बढ़ती जाती है। 
३. प्रेमी-प्रेमिका प्रेमिका के हाथ थामना सहयोग-सद्भाव का द्योतक है। गले मिलाना नैकट्य और विश्वास दर्शाता है। चुम्बन, प्रगाढ़ आलिंगन आदि अभिन्नता की स्थिति में उचित हैं। 
४. गुरु अथवा अति सम्माननीय देवतुल्य व्यक्ति को दंडवत प्रणाम किया जाता है। 

रविवार, 28 जून 2020

शारद वंदना

माँ शारद
एक प्रयास बृज भाषा में
*
मन कौ मैल बचै नईं नैकउ, ऐंसी मति दै माँ शारद।
बिसरै गैल न; छंद-छंद में, लय  दै गति दै माँ शारद।।
कर वंदन अभिनंदन पूजन, मैया! गुन गा तर जैंहौं-
बुद्धिदायनी हंसवाहिनी, सद्गति दै दै माँ शारद।।
*
संजीव
६-२-२०२०

शारदा वंदन

शारदा वंदन

माँ शारदे! स्वर-सार दे
लय-भाव-रस उपहार दे

सुत को यही वरदान दे
रच छंद तुझ पर वार दे

भटका न लेकिन पा सका
माँ! कर दया; अब सार दे

मोती न हीरे चाहिए
आशीष का गलहार दे

कुछ और चाहे हो नहीं
रचनाओं में भर प्यार दे
१३-३-२०२० 

शारद वंदना

शारद वंदना
छंद - हरिगीतिका
मापनी - लघु लघु गुरु लघु गुरु
*
कर शारदे! इतनी कृपा, नित छंद का, नव ग्यान दे
रस-भाव का, लय-ताल का, सुर-तान का, अनुमान दे
सपने पले, शुभ मति मिले, गति-यति सधे, मुसकान दे
विपदा मिटे, कलियाँ खिलें, खुशियाँ मिलें, नव गान दे
*
संजीव
६-६-२०२०

शारद वंदना

शारद वंदना
*
कृपा करो माँ हंसवाहिनी!,
करो कृपा
भवसागर में नाव फँसी है,
भक्त धँसा

रही घेर माया फंदे में, मातु! बचा
रखो मोह से मुक्त, सृजन की डोर थमा

नहीं हाथ को हाथ सूझता, राह दिखा
उगा सूर्य नव आस जगा, भव त्रास मिटा

रहे शून्य से शू्न्य, सु मन से सुमन मिला
रहा अनकहा सत्य कह सके, काव्य-कथा

दिखा चित्र जो गुप्त, न मन में रहे व्यथा
'सलिल' सत्य नारायण की सच सिरज कथा
*
संजीव
७-६-२०२०

शारद वंदना


शारद वंदना
मतिमान माँ ममतामयी!
द्युतिमान माँ करुणामयी

विधि-विष्णु-हर पर की कृपा
हर जीव ने तुमको जपा
जिह्वा विराजो तारिणी!
अजपा पुनीता फलप्रदा
बन बुद्धि-बल, बल बन बसीं
सब में सदा समतामयी

महनीय माँ, कमनीय माँ
रमणीय माँ, नमनीय माँ
कलकल निनादित कलरवी
सत सुर बसीं श्रवणीय माँ
मननीय माँ कैसे कहूँ
यश अपरिमित रचनामयी

अक्षर तुम्हीं ध्वनि नाद हो
निस्तब्ध शब्द-प्रकाश हो
तुम पीर, तुम संवेदना
तुम प्रीत, हर्ष-हुलास हो
कर जीव हर संजीव दो
रस-तारिका क्षमतामयी
*
संजीव
७-६-२०२०

शारदा वंदना

शारदा वंदना
दोहा-
बंदौं सारद मात खौं, हंस बिराजीं मौन
साँसों में ऐंसी बसीं, ज्यों भोजन में नौन
*
टेक-
ओ बीनावाली सारदा!, बीना दो झनकार

हंसबिराजीं मोरी माता, मंद-मंद मुसकांय
हांत जोर ठाँड़े बिधि-हरि-हर, रमा-उमा सँग आँय
ओ बीनावाली सारदा! डालो दृष्टि उदार

कमल आसनी मोर म'तारी, ध्वनि-अच्छर मा बास
मो पे किरपा करियो मैया!, मम उर करो निवास
ओ बीनावाली सारदा!, बिनती हाँत पसार

तुमनें असुरों की मति फेरी, मोरी बिपदा टारो
भौत घना तम छाओ मैया!, बनकें जोत उबारो
ओ बीनावाली सारदा!, दया-दृष्टि दो डार
*
६-९-२०२०
संजीव

शारद वंदना

शारद वंदना
*
शारद मैया! कैंया लेओ

पल पल करता मन कुछ खटपट
चाहे सुख मिल जाए झटपट
भोला चंचल भाव अँजोरूँ
हूँ संतान तुम्हारी नटखट
आपन किरपा दैया! देओ
शारद मैया! कैंया लेओ

मो खों अच्छर ग्यान करा दे
परमशक्ति सें माँ मिलवा दे
इकनी एक, अनादि अजर 'अ'
दिक् अंबर मैया! पहना दे
किरपा पर कें नीचें सेओ
शारद मैया! कैंया लेओ

अँगुली थामो, राह दिखाओ
कंठ बिराजो, हृदै समाओ
सुर-सरगम-स्वर दे प्रसाद माँ
मत मोखों जादा अजमाओ
नाव 'सलिल' की भव में खेओ
शारद मैया! कैंया लेओ
*

शारद वंदना


शारद वंदना
श्वास शारदा माँ बसीं, हैं प्रयास में शक्ति
आस लक्ष्मी माँ मिलीं, कर मन नवधा भक्ति

त्रिगुणा प्रकृति नमन स्वीकारो,
तीन देव की जय बोलो
तीन काल का आत्म मुसाफिर,
कर्म-धर्म मति से तोलो

नमन करो स्वीकार शारदे! नमन करो स्वीकार
सब कुछ तुम पर वार शारदे आया तेरे द्वार

तुम आद्या हो, तुम अनंत हो
तुम्हीं अंत मेरी माता
ध्यान तुम्हारे में खोता जो, वही आप को पा पाता

पाती मन की कोरी इस पर, ॐ लिखूँ झट सिखला दो
सलिल बिंदु हो नेह नर्मदा, झलक पुनीता विख्याता

ग्यान तारिका! कला साधिका!
मन मुकुलित पुष्पा दो माँ!
'मावस को कर शरत् पूर्णिमा,
मैया! वरदा प्रख्याता

शुभदा सुखदा मातु वर्मदा,
देवि धर्मदा जगजननी
वीणा झंकृत कर दो मन की,
जीवन अर्पित हे प्राता

जड़ है जीव करो संजीवित, चेतन हो सत् जान सके
शिव-सुंदर का चित्र गुप्त लख
रहे सदा तुमको ध्याता
*
संजीव
१०-६-२०२०

शारद वंदन

शारद वंदन
*
बीना लेकर प्रगट हों, बीनावादिनी साथ
कृपा कोर कर हो सदय, रखो सीस पै हाथ

मोरी मति चकरानी है, ऐ मैया! मोए बचा लइयो
मो खों गैल भुलानी है, ऐ मैया! पार लगा दइयो

जनम-जनम की मैली चादर
रीती सत करमन की गागर
सदय नईं नटराज हो रए
दया नईँ कर रए नटनागर
प्रभु की कृपा करानी है, रमा-उमा लै आ जइयो

तनक न जानौं पूजन-वंदन
नईँ जुट रए अच्छत्-चंदन
प्रगट नें होते चित्रगुप्त जू
सदय नें होते गिरिजानंदन
दरसन की जिद ठानी है, ऐ मैया! दरस दिला दइयो

सारद! हंसबाहिनी माता
सकल भुवन तुमरे जस गाता
नीर-छीर मति दो ममतामई!
कलम लए कर रऔ जगराता
अलंकार रस छंद न जानूँ,  भगतें सुझा लिखा लइयो
*
संजीव
११-६-२०२०

शारद वंदना


शारद वंदना
श्वास शारदा माँ बसीं, हैं प्रयास में शक्ति
आस लक्ष्मी माँ मिलीं, कर मन नवधा भक्ति

त्रिगुणा प्रकृति नमन स्वीकारो,
तीन देव की जय बोलो
तीन काल का आत्म मुसाफिर,
कर्म-धर्म मति से तोलो

नमन करो स्वीकार शारदे! नमन करो स्वीकार
सब कुछ तुम पर वार शारदे आया तेरे द्वार

तुम आद्या हो, तुम अनंत हो
तुम्हीं अंत मेरी माता
ध्यान तुम्हारे में खोता जो, वही आप को पा पाता

पाती मन की कोरी इस पर, ॐ लिखूँ झट सिखला दो
सलिल बिंदु हो नेह नर्मदा, झलक पुनीता विख्याता

ग्यान तारिका! कला साधिका!
मन मुकुलित पुष्पा दो माँ!
'मावस को कर शरत् पूर्णिमा,
मैया! वरदा प्रख्याता

शुभदा सुखदा मातु वर्मदा,
देवि धर्मदा जगजननी
वीणा झंकृत कर दो मन की,
जीवन अर्पित हे प्राता

जड़ है जीव करो संजीवित, चेतन हो सत् जान सके
शिव-सुंदर का चित्र गुप्त लख
रहे सदा तुमको ध्याता
*
संजीव
१०-६-२०२०

शारद वंदना,सरस्वती

सरस्वती वंदना
शारद मैया! शत शत वंदन
अक्षर अक्षर सुमन समर्पित,
शब्द शब्द है अक्षत चंदन।
शारद मैया! शत शत वंदन।।

श्वास श्वास तुम, अास तुम्हीं हो
अंकुर-पल्लव हास तुम्हीं हो।
तुम्हीं तिमिर हो, तुम उजास भी-
आशा सुषमा लास तुम्हीं हो।
तुम ही शब्द शक्ति अभिनंदन
शारद मैया! शत शत वंदन।।

ऊषा प्राची सूरज हो तुम
भू नभ दस दिश कण रज हो तुम।
नीरज नीरद नीर तुम्हीं हो
शौर्य पताका, श्रम-ध्वज हो तुम।
हमें हर्ष दो, हर हर क्रंदन
शारद मैया! शत शत वंदन।।

रचना रचनाकार अमर तुम
मिथ्याहारी सत्य समर तुम।
साध्य साधना हो साधक भी-
युग पाखी हो, पल का पर तुम।
मरुथल समुद तुम्हीं वन नंदन
शारद मैया! शत शत वंदन
*
१५-६-२०२०

शारद वंदना

शारद वंदना
पद
(यौगिक जातीय सार छंद)
*
शारद सुर-ध्वनि कंठ सजावै।
स्वर व्यंजन अक्षर लिपि भाषा,  पल-पल माई सिखावै।।
कलकल कलरव लोरी भगतें, भजन आरती गावै।
कजरी बम्बुलिया चौकड़िया, आल्हा राई सुनावै।।
सोहर बन्ना बन्नी गारी, रास बधावा भावै।
सुख में दुख में संबल बन कें, अँगुरी पकरि चलावै।।
रसानंद दै मैया मोरी, ब्रह्मानंद लुटावै।
भवसागर की भीति मिटा खें, नैया पार लगावै।।
*
१४-६-२०२०

शारद वंदना

शारद वंदना
पौराणिक जातीय शारदा छंद
विधान : न न म ज ग
यति : ८ - १०
*
नित पुलक करें दीदार शारदा!
हँस अभय करो दो प्यार शारदा!
*
विधि हरि हर को जन्मा सुपूज्य हो
कर जन जन का उद्धार शारदा!
*
कण-कण प्रगटाया भाव-सृष्टि की
लय गति यति गूँजा नाद शारदा!
*
सुर-सरगम है आवास देवि का
मम मन बस जा आ मातु शारदा!
*
भव समुद फँसी है नाव मातु! आ
झटपट कर बेड़ा पार शारदा!
*
तुम हर रचना में आप आ बसो
हर धड़कन हो झंकार शारदा!
*
नव रस रसना में मातु! दो बसा
जस-भजन करूँ मैं नित्य शारदा!
*
सर पर कर हो तो हार ना सकूँ
तव शरण करी स्वीकार शारदा!
*
नित सलिल तुम्हारे पैर धो रहा
कर कलम लिए गा गान शारदा!
*
१४/१५ जून २०२०

शारद वंदना

शारद वंदना
*
शारद मैया शस्त्र उठाओ,
हंस छोड़ सिंह पर सज आओ...

सीमा पर दुश्मन आया है, ले हथियार रहा ललकार।
वीणा पर हो राग भैरवी, भैरव जाग भरें हुंकार।।

रुद्र बने हर सैनिक अपना, चौंसठ योगिनी खप्पर ले।
पिएँ शत्रु का रक्त तृप्त हो,
गुँजा जयघोषों से जग दें।।

नव दुर्गे! सैनिक बन जाओ
शारद मैया! शस्त्र उठाओ...

एक वार दो को मारे फिर, मरे तीसरा दहशत से।
दुनिया को लड़ मुक्त कराओ, चीनी दनुजों के भय से।।

जाप महामृत्युंजय का कर, हस्त सुमिरनी हाे अविचल।
शंखघोष कर वक्ष चीर दो,
भूलुंठित हों अरि के दल।।

रणचंडी दस दिश थर्राओ,
शारद मैया शस्त्र उठाओ...

कोरोना दाता यह राक्षस,
मानवता का शत्रु बना।
हिमगिरि पर अब शांति-शत्रु संग, शांति-सुतों का समर ठना।।

भरत कनिष्क समुद्रगुप्त दुर्गा राणा लछमीबाई।
चेन्नम्मा ललिता हमीद सेंखों सा शौर्य जगा माई।।

घुस दुश्मन के किले ढहाओ,
शारद मैया! शस्त्र उठाओ...
*
१७-६-२०२०

शारदा वंदन

शारदा वंदन
गीत
आलोक दो माँ शारदे!
*
तम-तोम से दुनिया घिरी है
भीड़ एकाकी निरी है
अजब माया, आप छाया
अकेलेपन से डरी है
लेने न चिंता चैन देती
आमोद दो माँ शारदे!
*
सननसन बह पवन बनकर
छूम छनननन बज सके मन
कलल कलकल सलिल निर्मल
करे कलरव नाचकर तन
सुन सकूँ पल पल अनाहद
नाद नित माँ शारदे!
*
बरस टप टप तृषा हर लूँ
अंकुरित हो आँख खोलूँ
पल्लवित कर हरी धरती
पुलक पुष्पित धन्य हो लूँ
झुकूँ चरणों में फलित हो
पग-लोक दो माँ शारदे!
*
१९-६-२०२०

शारद वंदना पद्मावती/कमलावती छंद

शारद वंदना
लाक्षणिक जातीय पद्मावती/कमलावती छंद
*
शारद छवि प्यारी, सबसे न्यारी, वेद-पुराण सुयश गाएँ।
कर लिए सुमिरनी, नाद जननि जी, जप ऋषि सुर नर तर जाएँ।।

माँ मोरवाहिनी!, राग-रागिनी नाद अनाहद गुंजाएँ।
सुर सरगमदात्री, छंद विधात्री, चरण - शरण दे मुसकाएँ।।

हे अक्षरमाता! शब्द प्रदाता! पटल लेखनी लिपि वासी।अंजन जल स्याही, वाक् प्रवाही, रस-धुन-लय चारण दासी।।

हो ॐ व्योम माँ, श्वास-सोम माँ, जिह्वा पर पर आसीन रहें।
नित नेह नर्मदा, कहे शुभ सदा, सलिल लहर सम सदा बहें।।

कवि काव्य कामिनी, संग सुनाए, भजन-कीर्तन यश गाए।
कर दया निहारो, माँ उपकारो, कवि कुल सारा तर जाए।।
*
२०-६-२०२०

शारद वंदना

शारद वंदना
छंद : चौपाई
*
अमल विमल निर्मल मनभावन। शुभ्र श्वेत वसना माँ पावन।
कल की कल को भेंट अनुपमा। आप सृज रहीं मातु उत्तमा।।
पल-पल करतीं कर्म निरंतर। धर्म-मर्म शोभित अभ्यंंतर।।
सत्-शिव-सुंदर सब हितकारी। सत्-चित्-आनँद कुंज विहारी।।
व्याप्त नर्मदा की कलकल में। सिंधु-गंग-कावेरी जल में।।
पवन प्रवह तव कीर्ति सुनाता। अर्णव लहर-लहर जय गाता।
गर्जन करते मेघ हुलसकर, कलकल सलिल सुशांति प्रदाता।
कलरव कर खग तुम्हें मनाते।
वीणा-तार निनाद गुँजाते।।
भ्रमरवृंद नित करें वंदना। रस-भावित अर्चना प्रार्थना।। भोर भक्ति भावित हो जगती। दोपहरी श्रम कर भव तरती।।
संध्या नमित प्रार्थना गाती। रजनी मौन मंत्र दुहराती।।
छनन छनन छन नूपुर बजते। सरगम स्वर कंठों में सजते।।
कवि कर कागज कलम उठाते। शब्द ब्रह्म की जय गुंजाते।।
पग-कर, मुखमुद्रा मिल जाते। चित्र गुप्त साकार बनाते।
आराधक कर थाम सुमिरिनी।
सुमिर तुम्हें तरते वैतरणी।।
यंत्र-मंत्र तुम, तंत्र तुम्हीं हो। गुण गुणेश गुणवान गुणी हो।।
तुम्हीं शौर्य ममता करुणा हो। माया मोहमयी ममता हो।।
लास रास रस हास तुम्हीं हो। प्रापक प्राप्ति प्रयास तुम्हीं हो।।
इड़ा-पिंगला ऋद्धि-सिद्धि हे!, रमा-उमा हो शुद्धि-बुद्धि हे!!
सलिल करे अभिषेक धन्य हो। प्राण ऊर्जा तुम अनन्य हो।
विधि प्रेरक, हरि बल, शिव पूजा। तुम सम कहीं न कोई दूजा।।
शून्य अनंता दिशा-दिगंता। ऋषि-मुनि ध्याते माते! कंता।।
संजीवित मम आत्म करो माँ। सहज सुलभ परमात्म करो माँ।।
*
२३-६-२०२०

शतदल कमल छंद


शारद वंदना
सतमात्रिक नवान्वेषित शतदल कमल छंद
सूत्र : ननल।
*
सुर सति नमन
नित कर अमन
*
मुख छवि प्रखर
स्वर-ध्वनि मधुर
अविचल अजर
अविकल अमर
कर नव सृजन
सुरसति नमन
*
पद दल असुर
रच पद स-सुर
कर जननि घर
मम हृदयपुर
कर गह सु मन
सुरसति नमन
*
रस बन बरस
नित धरणि पर
शुभ कर मुखर
सुख रच प्रचुर
शुभ मृदु वचन
सुरसति नमन
*

शारद वंदन

शारद वंदन
🕉️
अमले! अर्पित नम्र प्रणाम

मन मंदिर में रहो प्रतिष्ठित
स्वीकारो माँ अक्षर-अक्षत
शब्द-सुमन शत सुरभि समर्पित
छंद अगरु ले आया तव सुत
विमले! मम हृद करो अकाम

ब्रह्माशीष गगन बरसाए
स्नेह सलिल से हरि नहलाए
कंकर में शंकर छवि भाए
रमा-उमा रस-राग सुहाए
धवले! सृजन करा अविराम

दस दिश तेरा यश गुंजाऊँ
हर ध्वनि में तुझको ही पाऊँ
पल पर भी तेरे मन भाऊँ
माँ! तव पग रज पा तर जाऊँ
सुमने! तव चाकर बेदाम
*
२४-६-२०२०

शारद वंदन

शारद वंदन
संजीव
🕉️
अक्षरस्वामिनी आप इष्ट, ईश्वरी उजालावाही,
ऊपर एकल ऐश्वर्यी ओ!, औसरदाई अंबे।
अ: कर कृपा कविता करवा, छंद सिखा जगदंबे!!
*
सलिल करे अभिषेक धन्य हो, मैया! चरण पखार।
हृदयानंदित बसा मातु छवि, आप पधारें द्वार।।

हंसवाहिनी! स्वर-सरगम दे, कीर्ति-कथा कह पाऊँ।
तार बनूँ वीणा का शारद!, तुम छेड़ो तर जाऊँ।।

निर्मलवसने! मीनाक्षी हे! पद्माननी दयाकर।
ममतामयी! मृदुल अनुकंपा कर सुत को अपनाकर।।

ढाई आखर पोथी पढ़कर भाव साधना साधूँ।
रास-लास आवास हृदय को करें, तुम्हें आराधूँ।।

ध्यान धरूँ नित नयन मूँदकर, रूप अरूप निहारूँ।
सुध-बुध खोकर विश्वमोहिनी अपलक खुद को वारूँ।।

विधि-हरि-हर की कृपा मिले, हर चित्र गुप्त चुप देखूँ।
जो न अन्य को दिखे, वही लख, अक्षर-अक्षर लेखूँ।।

भवसागर तर आ पाए सुत, अहं भूल तव द्वार।
अविचल मति दे मैया मोरी शब्द ब्रह्म-सरकार।।

नमन स्वीकार ले, कृपा कर तार दे।
बिसर अपराध मम, जननि अँकवार ले।।

शारद वंदन आशाकिरण छंद

शारद वंदन
(मात्रिक लौकिक जातीय
वर्णिक सुप्रतिष्ठा जातीय
नवाविष्कृत आशाकिरण छंद)
सूत्र - त ल ल।
*
मैया नमन
चाहूँ अमन...
   ऊषा विहँस
   आ सूर्य सँग
   आकाश रँग
   गाए यमन...
पंछी हुलस
बोलें सरस
झूमे धरणि
नाचे गगन...
   माँ! हो सदय
   संतान पर
   दो भक्ति निज
   होऊँ मगन...
माते! दरश
दे आज अब
दीदार बिन
माने न मन...
   वीणा मधुर
   गूँजे सतत
   आनंदमय
   हो शांत मन...
*
२५-६-२०२०

शारद वंदना

शारद वंदना
मात्रिक लौकिक जातीय
वर्णिक प्रतिष्ठा जातीय
महामाया छंद
सूत्र - य ला।
*
सुनो मैया
पड़ूँ पैंया

बजा वीणा
हरो पीड़ा
महामाया
करो छैंया

तुम्हीं दाता
जगत्त्राता
उबारो माँ
थमा बैंया

मनाऊँ मैं
कहो कैसे
नहीं जानूँ
उठा कैंया

तुम्हारा था
तुम्हारा हूँ
न डूबे माँ
बचा नैया

भुलाओ ना
बुलाओ माँ
तुम्हें ही मैं
भजूँ मैया
*
२७-६-२०२० 

शारद वंदना

शारद वंदना
🕉️
मात्रिक लौकिक जातीय
वर्णिक प्रतिष्ठा जातीय
महामाया छंद
सूत्र - य ला।
*
सुनो मैया
पड़ूँ पैंया

बजा वीणा
हरो पीड़ा
महामाया
करो छैंया

तुम्हीं दाता
जगत्त्राता
उबारो माँ
थमा बैंया

मनाऊँ मैं
कहो कैसे
नहीं जानूँ
उठा कैंया

तुम्हारा था
तुम्हारा हूँ
न डूबे माँ
बचा नैया

भुलाओ ना
बुलाओ माँ
तुम्हें ही मैं
भजूँ मैया
*
२७-६-२०२०

शारद वंदना

शारद वंदना
मात्रिक लौकिक जातीय छंद
वर्णिक सुप्रतिष्ठा जातीय छंद
महाभारत छंद
सूत्र - यलल।
ध्वनिखंड - ल ला ला ल ल।
*
हमें माँ! हँस
दुलारा कर...
   तुम्हारे सुत
   अजाने त्रुटि
   रहे जो कर
   सुधारा कर...
भले दण्डित
करो जी भर
न रोएँ, झट
चुपाया कर...
   कभी लिखना
   कभी पढ़ना
   कभी गायन
   सिखाया कर...
सुना गायन
दिखा नर्तन
करें चिंतन
बताया कर...
    बना मूरत
    गढ़ें सूरत
    करें चित्रण
    निहारा कर...
कभी हर्षित
कभी गर्वित
गले से हँस
लगाया कर...
*
संजीव

दोहा मुक्तिका

दोहा मुक्तिका:
काम न आता प्यार
काम न आता प्यार यदि, क्यों करता करतार।।
जो दिल बस; ले दिल बसा, वह सच्चा दिलदार।।
*
जां की बाजी लगे तो, काम न आता प्यार।
सरहद पर अरि शीश ले, पहले 'सलिल' उतार।।
*
तूफानों में थाम लो, दृढ़ता से पतवार।
काम न आता प्यार गर, घिरे हुए मझधार।।
*
गैरों को अपना बना, दूर करें तकरार।
कभी न घर में रह कहें, काम न आता प्यार।।
*
बिना बोले ही बोलना, अगर हुआ स्वीकार।
'सलिल' नहीं कह सकोगे, काम न आता प्यार।।
*
मिले नहीं बाज़ार में, दो कौड़ी भी दाम।
काम न आता प्यार जब, रहे विधाता वाम।।
*
राजनीति में कभी भी, काम न आता प्यार।
दाँव-पेंच; छल-कपट से, जीवन हो निस्सार।।
*
काम न आता प्यार कह, करें नहीं तकरार।
कहीं काम मनुहार दे, कहीं काम इसरार।।
*
२८.६.२०१८, ७९९९५५९६१८

दोहा संवाद

दोहा संवाद:
बिना कहे कहना 'सलिल', सिखला देता वक्त।
सुन औरों की बात पर, कर मन की कमबख्त।।
*
आवन जावन जगत में,सब कुछ स्वप्न समान।
मैं गिरधर के रंग रंगी, मान सके तो मान।। - लता यादव
*
लता न गिरि को धर सके, गिरि पर लता अनेक।
दोहा पढ़कर हँस रहे, गिरिधर गिरि वर एक।। -संजीव
*
मैं मोहन की राधिका, नित उठ करूँ गुहार।
चरण शरण रख लो मुझे, सुनकर नाथ पुकार।। - लता यादव
*
मोहन मोह न अब मुझे, कर माया से मुक्त।
कहे राधिका साधिका, कर मत मुझे वियुक्त।। -संजीव
*
ना मैं जानूँ साधना, ना जानूँ कुछ रीत।
मन ही मन मनका फिरे,कैसी है ये प्रीत।। - लता यादव
*
करे साधना साधना, मिट जाती हर व्याध।
करे काम ना कामना, स्वार्थ रही आराध।। -संजीव
*
सोच सोच हारी सखी, सूझे तनिक न युक्ति ।
जन्म-मरण के फेर से, दिलवा दे जो मुक्ति।। -लता यादव
*
नित्य भोर हो जन फिर, नित्य रात हो मौत।
तन सो-जगता मन मगर, मौन हो रहा फौत।। -संजीव
*
वाणी पर संयम रखूँ, मुझको दो आशीष।
दोहे उत्तम रच सकूँ, कृपा करो जगदीश।। -लता यादव
*
हरि न मौन होते कभी, शब्द-शब्द में व्याप्त।
गीता-वचन उचारते, विश्व सुने चुप आप्त।। -संजीव
*
२८-६-२०१८, ७९९९५५९६१८