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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

समीक्षा

पुस्तक सलिला:
सारस्वत सम्पदा का दीवाना ''शामियाना ३''
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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[पुस्तक विवरण: शामियाना ३,सामूहिक काव्य संग्रह, संपादक अशोक खुराना, आकार डिमाई, आवरण सजिल्द बहुरंगी जैकेट सहित, पृष्ठ २४०, मूल्य २००/-, मूल्य २००/-, संपर्क- विजय नगर कॉलोनी, गेटवाली गली क्रमांक २, बदायूँ २४३६०१, चलभाष ९८३७० ३०३६९, दूरभाष ०५८३२ २२४४४९, shamiyanaashokkhurana@gmail.com]
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साहित्य और समाज का संबंध अन्योन्याश्रित है. समाज साहित्य के सृजन का आधार होता है. साहित्य से समाज प्रभावित और परिवर्तित होता है. जिन्हें साहित्य के प्रभाव अथवा साहित्य से लाभ के विषय में शंका हो वे उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के शामियाना व्यवसायी श्री अशोक खुराना से मिलें। अशोक जी मेरठ विश्व विद्यालय से वोग्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर शामियाना व्यवसाय से जुड़े और यही उनकी आजीविक का साधन है. व्यवसाय को आजीविका तो सभी बनाते हैं किंतु कुछ विरले संस्कारी जन व्यवसाय के माध्यम से समाज सेवा और संस्कार संवर्धन का कार्य भी करते हैं. अशोक जी ऐसे ही विरले व्यक्तित्वों में से एक हैं. वर्ष २०११ से प्रति वर्ष वे एक स्तरीय सामूहिक काव्य संकलन अपने व्यय से प्रकाशित और वितरित करते हैं. विवेच्य 'शामियाना ३' इस कड़ी का तीसरा संकलन है. इस संग्रह में लगभग ८० कवियों की पद्य रचनाएँ संकलित हैं.

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह, बाबा फुलसन्दे वाले, बालकवि बैरागी, कुंवर बेचैन, डॉ. किशोर काबरा, आचार्य भगवत दुबे, डॉ. गार्गीशरण मिश्र 'मराल', आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, डॉ. रसूल अहमद 'सागर', भगवान दास जैन, डॉ. दरवेश भारती, डॉ. फरीद अहमद 'फरीद', जावेद गोंडवी, कैलाश निगम, कुंवर कुसुमेश, खुमार देहलवी, मधुकर शैदाई, मनोज अबोध, डॉ. 'माया सिंह माया', डॉ. नलिनी विभा 'नाज़ली', ओमप्रकाश यति, शिव ओम अम्बर, डॉ. उदयभानु तिवारी 'मधुकर' आदि प्रतिष्ठित हस्ताक्षरों की रचनाएँ संग्रह की गरिमा वृद्धि कर रही हैं. संग्रह का वैशिष्ट्य 'शामियाना विषय पर केंद्रित होना है. सभी रचनाएँ शामियाना को लक्ष्य कर रची गयी हैं. ग्रन्थारंभ में गणेश-सरस्वती तथा मातृ वंदना कर पारंपरिक विधान का पालन किया गया है. अशोक खुराना, दीपक दानिश, बाबा हरदेव सिंह, बालकवि बैरागी, डॉ. कुँवर बेचैन के आलेख ग्रन्थ ओ महत्वपूर्ण बनाते हैं. ग्रन्थ के टंकण में पाठ्य शुद्धि पर पूरा ध्यान दिया गया है. कागज़, मुद्रण तथा बंधाई स्तरीय है.

कुछ रचनाओं की बानगी देखें-

जब मेरे सर पर आ गया मट्टी का शामियाना
उस वक़्त य रब मैंने तेरे हुस्न को पहचाना -बाबा फुलसंदेवाले 

खुद की जो नहीं होती इनायत शामियाने को 
तो हरगिज़ ही नहीं मिलती ये इज्जत शामियाने को -अशोक खुराना

धरा की शैया सुखद है
अमित नभ का शामियाना
संग लेकिन मनुज तेरे
कभी भी कुछ भी न जाना -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

मित्रगण क्या मिले राह में
स्वस्तिप्रद शामियाने मिले -शिव ओम अम्बर

काटकर जंगल बसे जब से ठिकाने धूप के
हो गए तब से हरे ये शामियाने धूप के - सुरेश 'सपन' 

शामियाने के तले सबको बिठा 
समस्या का हल निकला आपने - आचार्य भगवत दुबे 

करे प्रतीक्षा / शामियाने में / बैठी दुल्हन - नमिता रस्तोगी 

चिरंतन स्वयं भव्य है शामियाना
कृपा से मिलेगा वरद आशियाना -डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी

उसकी रहमत का शामियाना है
जो मेरा कीमती खज़ाना है - डॉ. नलिनी विभा 'नाज़ली'

अशोक कुरान ने इस सारस्वत अनुष्ठान के माध्यम से अपनी मातृश्री के साथ, सरस्वती मैया और हिंदी मैया को भी खिराजे अक़ीदत पेश की है. उनका यह प्रयास आजीविकादाता शामियाने के पारी उनकी भावना को व्यक्त करने के साथ देश के ९ राज्यों के रचनाकारों को जोड़ने का सेतु भी बन सका है. वे साधुवाद के पात्र हैं. इस अंक में अधिकांश ग़ज़लें तथा कुछ गीत व् हाइकू का समावेश है. अगले अंक को विषय परिवर्तन के साथ विधा विशेष जैसे नवगीत, लघुकथा, व्यंग्य लेख आदि पर केंद्रित रखा जा सके तो इनका साहित्यिक महत्व भी बढ़ेगा।
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-समन्वयम् २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१ / salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४ 
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शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

kruti charcha: shamiyana

कृति चर्चा:

शामियाना: पठनीय सामूहिक काव्य संग्रह

[कृति विवरण: शामियाना सामूहिक काव्य संग्रह, संपादक अशोक खुराना, पृष्ठ २४०, सजिल्द बहुरंगी आवरण, संपर्क: विजय नगर कॉलोनी, गेटवाली गली क्र. २ बदायूँ २४३६०१, चलभाष: ०९८३७०३०३६९, दूरभाष ०५८३२ २२४४४९] 

हिंदी में सामूहिक काव्य संकलनों की सुदीर्घ परंपरा है। इनकी उपादेयता और प्रासंगिकता ने इन्हें चिरजीवी बनाया है। वैयक्तिक संकलन किसी एक रचनाकार के विचारों को विषय या विधा पर केंद्रित-प्रकाशित करते हैं जबकि सामूहिक संकलन अनेक रचनाकारों के चिंतन-मनन के इन्द्रधनुष को रूपायित करते हैं। एकल संकलन में विषय और भाषा रचनाकार की सामर्थ्य के अनुसार सामने आता है जबकि सामूहिक संकलन में अनेक मनीषियों का चिन्तन, भाषा की विविध शैलियाँ, शब्द भंडार, बिम्ब, प्रतीक, रस, शब्द शक्ति, लय आदि काव्यांगों का बहुरूपीय शब्दांकन पाठक को आनंदित करता है। किसी एक व्यंजन से भरी थाली और अनेक व्यंजनों से सजी थाली सामने हो तो ग्रहणकर्ता अनेक व्यंजनों का ही चयन करेगा। 

सामूहिक संकलनों के सारस्वत अनुष्ठानों की निरंतर पुष्ट होती पयस्विनी सृजन सलिला प्रामाणिकता, उत्कृष्टता, उपादेयता, सम्प्रेषणीयता, सुलभता, मितव्ययिता, विविधता, रोचकता व प्रासंगिकता के ९ निकषों पर खुद को खरा सिद्ध कर सकी है।  इसी कारण विविध कक्षाओं में विविध विधाओं तथा भाषा की शिक्षा सामूहिक संकलनों के माध्यम से दी जाती रही है. साहित्यिक रचनाधर्मिता, सामाजिक सजगता, राजनैतिक सक्रियता, वैयक्तिक गुणग्राह्यता तथा राष्ट्रीय-वैश्विक चेतना के पञ्च कलशों के काव्यानन्द से परिपूर्ण करते सामूहिक संकलन नव रचनाकारों को प्रतिष्ठित हस्ताक्षरों के साथ जुड़ने का सृजन सेतु उपलब्ध कराते हैं।

सामूहिक काव्य संकलनों का संयोजन विविध आधारों पर किया जा रहा है जिनमें प्रमुख हैं: १. विशिष्ट रचनाकारों (त्रिधारा', १९३५, सं. ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौहान 'सहभागी माखनलाल चतुर्वेदी १३ रचनाएँ ४४ पृष्ठ, केशवप्रसाद पाठक १३ रचनाएँ ४८ पृष्ठ, सुभद्राकुमारी चौहान ५ रचनाएँ २० पृष्ठ, पेपरबैक, आकार क्राउन, मूल्य १/-), २. क्षेत्र विशेष ('जबलपुर की काव्यधारा', १९९९, सं हरिकृष्ण त्रिपाठी, सहभागी ७५, पृष्ठ ५६५, सजिल्द, डिमाई), ३. समयावधि विशेष ('नयी सदी के प्रतिनिधि दोहाकार' २००४, सं अशोक अंजुम, सहभागी ८१, पृष्ठ १७६, सजिल्द, डिमाई), ४. विचारधारा विशेष ('आठवें दशक के सशक्त जनवादी कवि और प्रतिबद्ध कवितायेँ', १९८२, सं. स्वामीशरण 'स्वामी', सहभागी १५५, पृष्ठ ३०४, पेपरबैक, डिमाई),  ५. वर्ग विशेष (निर्माण के नूपुर', १९८३, सं. संजीव वर्मा 'सलिल', सहभागी १६ अभियंता-कवि,  डिमाई, पेपरबैक) ६. धार्मिक ('क्या कहकर पुकारूँ?', २००३, सं. डॉ. महेश दिवाकर, मोहनराम मोहन, जसपाल सिंह 'संप्राण', सहभागी १९६, डिमाई, सजिल्द, पृष्ठ ६७८), ७. राष्ट्रीय   ('राष्ट्रीय काव्यान्जलि', २०००, सं. डॉ. किशोरीरमण शर्मा   सहभागी ९१, पृष्ठ २७२, सजिल्द, डिमाई), ८. राजनैतिक ('रास्ता इधर है', १९७८, सं. भीष्म साहनी सहभागी ५३, डिमाई, पेपरबैक, पृष्ठ १२६), ९. युद्ध विजय ('माँ तेरे चरणों में', कारगिल विजय पर, २०००, सं. पंकज भारद्वाज, सजिल्द, डिमाई, पृष्ठ १६०), १०. पर्व ('काव्य अबीर, होली पर, २००४, सं. नज़ीर मोहम्मद खान 'नाज़', सहभागी ६०, डिमाई, पेपरबैक, पृष्ठ १४८), ११. परिवार वृद्धि (अनंत, २००४, पौत्र प्राप्ति पर काव्याशीष , सं. डॉ. गजेन्द्र बटोही, सहभागी ३६, डिमाई, पेपरबैक, पृष्ठ ४८), १२. श्रृंगार गीत ('हिंदी के श्रृंगार गीत, १९७०, सं. नीरज, पेपरबैक, पॉकेट बुक), १३. ग़ज़ल ('नव ग़ज़लपुर', २००२, सं. सागर मीरजापुरी, सहभागी ८९, सजिल्द, डिमाई, पृष्ठ, १९२) १४. रुबाई (५०० रुबाइयाँ, सं. नूर नबी अब्बासी, संभागी २१, पेपरबैक, पॉकेटबुक, पृष्ठ ११२), १५ विषय (दामने-ज़िंदगी, २००१, विषय समसामयिक ग़ज़ल में जीवन दर्शन, सं. रसूल अहमद 'सागर बकाई', पेपरबैक, डिमाई, पृष्ठ ९२) १६. प्रणय गीत (बहारों से पूछो, २००, स्व. गोपीचंद चौबे 'अशेष', सहभागी ११४, डिमाई, सजिल्द, पृष्ठ २८०), १७, देश निर्माण ('निर्माण के गीत', १९९६, सं. गोविन्द प्रसाद शर्म्मा, सहभागी २१, क्राउन, सजिल्द, पृष्ठ १०२), १८. शोधपरक (गीतिकायनम्, २००५, सं. सागर मीरजापुरी, डिमाई, सजिल्द, पृष्ठ १६०), १९. हाइकु/क्षणिका (कोंपलें, १९९९, सं. अनिरुद्ध सिंह सेंगर 'आकाश', पेपरबैक, पृष्ठ ८४), २०. अकविता (क्षितिज, १९९८, सं. अनिरुद्ध सिंह सेंगर 'आकाश', पेपरबैक, पृष्ठ ९६), २१. परिचय एवं रचनाएँ (शब्द प्रभात, २००५, सं. सी. एल. सांखला, सहभागी ३६+५५, पृष्ठ १६४), २२. व्यक्तित्व-कृतित्व (समयजयी साहित्यशिल्पी भागवतप्रसाद मिश्रा नियाज़', २००५, सं. संजीव वर्मा 'सलिल', सहभागी १०६, डिमाई, सजिल्द, पृष्ठ ४५५), २३. कहानी: (कहानी मंच की कहानियाँ, २००२, सं. रमाकांत ताम्रकार, सहभागी ९, डिमाई, सजिल्द, पृष्ठ ५४), २४. जनक छंद (गंगा की धारा बहे, २००६, सं. ओमप्रकाश भाटिया 'अराज', सहभागी २४, डिमाई, पेपरबैक, पृष्ठ ५६), २५. सरस्वती वंदना (वाणी वंदना, सहभागी २८, सं. ज्ञानेन्द्र साज़, डिमाई, पेपरबैक, पृष्ठ ३६), २६. रचनाकार परिचय (द्वार खड़े इतिहास के, २००६, सं. डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र, संजीव वर्मा 'सलिल', सहभागी १०१, डिमाई, पेपरबैक, पृष्ठ ८०,) २७. गीतिकाव्य का विकास, २०१२, सं. डॉ. महेश दिवाकर, डॉ. अभय कुमार, डॉ. मीना कौल,  डिमाई, सजिल्द, २८. सामान्य (तिनका-तिनका नीड़, सं. संजीव वर्मा 'सलिल', सहभागी ५४, डिमाई, सजिल्द, पृष्ठ ३३२), २९. बहुभाषिक/बहुदेशिक (विश्व कविता: कल और आज, २००४, सं, भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़', सहभागी ७७, डिमाई, सजिल्द, पृष्ठ २०६) ३०. हिंदी कविता का अंग्रजी काव्यानुवाद (कंटेंपरेरी हिंदी पोएट्री,  २००९, सं. प्रो. भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़', सहभागी २०, डिमाई, सजिल्द, पृष्ठ अ) ३१. आजीविका/व्यवसाय (शामियाना २०१४, सं. अशोक खुराना, सहभागी १८०, डिमाई, सजिल्द, पृष्ठ २४०)।

शामियाना-३ वार्षिक सामूहिक संकलन श्रृंखला की तीसरी कड़ी है. संपादक-प्रकाशक श्री अशोक खुराना इस सारस्वत अनुष्ठान का आयोजन स्ववित्त से करते हैं। शामियाना व्यवसाय से जीविकोपार्जन करने के साथ उसे समाज में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह का साधन बनाकर सनातन सृजन धारा को प्रोत्साहित करना सराहनीय है। इस सुरुचिपूर्ण संकलन में गीत, ग़ज़ल, दोहा, छंद मुक्त कविता, शे'र, हाइकु  आदि विधाओं का प्रतिनिधित्व है। रचनाकारों में श्रेष्ठ-ज्येष्ठ से लेकर नवोदितों तक की उपस्थिति इसे ३ पीढ़ियों से जोड़ती है। अभिव्यक्ति सामर्थ्य, शब्द सम्पदा, आनुभूतिक सघनता, अभिव्यक्तिकरण की भिन्नता, विधागत विधान सम्मत बंधन तथा विषय विशेष रचनाकारों के समक्ष अक्षम और सुष्ठु सृजन की चुनौती बनकर उपस्थित होते हैं। प्रसन्नता है की लगभग सभी रचनाएँ सरसता, सरलता, सार्थकता के निकष पर खरी हैं. 

संपादक अशोक जी साधुवाद के पात्र हैं की वे ईरानी बड़ी संख्या में सृजनधर्मियों को प्रेरित कर उनसे विषय पर रचना करवा सके। संकलन के प्रारम्भ में वरिष्ठ महाकवि आचार्य भगवत दुबे रचित गणेश-सरस्वती वन्दनायें उदात्त परंपरा के निर्वाह के साथ-साथ संकलन की गरिमावृद्धि करती हैं। निरंकारी बाबा हरदेव सिंह के आशीर्वचन, हिंदी-मालवी कविता के समर्थ हस्ताक्षर बालकवि बैरागी, तथा हिंदी गीत-ग़ज़ल के प्रतिनिधि हस्ताक्षर कुंवर बेचैन के आशीर्वचनों से संग्रह और सहभागियों का महत्त्व बढ़ा है।    

आरम्भ में डॉ. श्यामानन्द सरस्वती 'रौशन' का शे'र अपनी मिसाल आप है: 

डरें भी बारिशे-गम से तो क्यों हम? 
दुआओं का है सर पर आशियाना

रामचरित मानस में तुलसी ने समुद्र के ९ समानार्थी शब्दों से युक्त एक दोहा कहा है: 

बांध्यो जलनिधि नीरनिधि जलधि सिंधु वारीश 
सत्य तोयनिधि कंपति, उदधि पयोधि नदीश 

इस विरासत को आगे बढ़ते हुए नासिर अली 'नदीम' ने शामियाना के ९ समानार्थी शब्दों को लेकर अपनी बात कही है. आनंद लें:

अब आज टेंट भी मंडप भी नाम है इसका 
कहा गया इसे पंडाल तंबू ओ खेमा 
चँदोवा छोटे को कहते थे, छोलदारी भी 
घुमन्तुओं ने रखा नाम राउटी डेरा 

अशोक खुराना के लिए शामियाना एकता का वाहक है:

वो हिन्दू हो की मुस्लिम हो, वो सिख हो या कि ईसाई 
हर एक इंसां को मिलती है मुहब्बत शामियाने को 

अनिल रस्तोगी शामियाने की अस्मिता  इमारत से कम नहीं आंकते:

तने हैं हम कनातों से, खड़े हैं शामियानों से 
हमारी काम नहीं अस्मत, हवेली से, मकानों से 

आचार्य भगवत दुबे सवाल उठाते हैं:

शामियाने ने सिखाया भाईचारा आपको 
मज़हबी चिंगारियों को क्यों हवा देने लगे?

भगवान दास जैन ने शामियाने को दर्दमन्दों का ठिकाना कहा है:

हमारे गाँव में जब तक सलामत शामियाना है
दुखी और दर्दमन्दों का यकीनन वह ठिकाना है 

डॉ. फरीद खुशनसीब हैं कि उनके सर पर माँ की दुआओं का शामियाना है:

हुई मुश्किल को हबी मुश्किल जो घर आकर मेरे देखा 
मेरे सर पर मेरी माँ की दुआ का शामियाना है 

डॉ. गार्गीशरण मिश्र 'मराल' को पलकों का शामियाना मन भाता है:

खुशियाँ बिखेरते हैं गाते हैं जब वो गाना 
आँखों के अतिथिगृह में पलकों का शामियाना 

केवल खुराना शामियाने को मुहब्बत बढ़ाने का जरिया मानते हैं:

शर-ओ-नफरत मिटाये शामियाना 
मुहब्बत को बढ़ाये शामियाना 

कुंवर 'कुसुमेश' यादों के दिलफरेब शामियानों में हैं:

तुझे भूल पाना मुमकिन नहीं 
तेरी याद के शामियानों में हूँ 

महाकवि डॉ. किशोर काबरा शामियाना को ज़िन्दगी से जोड़ते हैं:

रात में सबकी बिदाई तय हुई 
शाम तक का शामियाना है यहाँ 

ममता जबलपुरी शमियाने के दर्द में शरीक हैं:

यूं तो दर्द शामियाने का बयान हो रहा था 
मगर किसी ने न देखा शामियाना भी रो रहा था 

डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी शामियाना को ईश्वरी वर का वाहक मानती हैं: 

चिरंतन स्वयं भव्य है शामियाना 
कृपा से मिलेगा वरद आशियाना

नमिता रस्तोगी शामियाने में माँ का दरबार सजाये हैं:

माँ का सजा / भव्य ये दरबार / शामियाने में 

डॉ. नलिनी विभा 'नाजली' दुआ और फन के ताने-बाने से शामियाना बनाती हैं:

बनी जाती हैं गज़लें 'नाज़ली' अहसास-ए-दौरां से 
दुआ, अहसास-ओ-फन का ताना-बाना शामियाना है

इंजी. ओमप्रकाश 'यति' फिज़ूकखर्ची का अंदाज़ा शामियाने से लगाते हैं:

जश्न में बहा पैसा है किस कदर 
लग रहा है शामियाना देखकर 

प्रभा पाण्डे 'पुरनम' का शामियाना आदर्शों और तजुर्बों से सुसज्जित है:

हर घर के बुजुर्ग होते हैं आशियाने की तरह 
आदर्शों, तजुर्बों टँके शामियाने की तरह 

डॉ. रसूल अहमद सागर रहमत के शामियाने में बलाओं से बेफिक्र हैं:

खौफ मुझको नहीं बलाओं का    
सर पे रहमत का शामियाना है

संजीव वर्मा 'सलिल' नील गगन के शामियाने के नीचे धरा की शैया पर सुख पा रहे हैं:

धरा की शैया सुखद है / अमित नभ का शामियाना 
संग लेकिन तेरे तेरे / कभी भी कुछ भी न जाना   

सुषमा भंडारी शामियाने में सुरक्षा कवच देखती हैं:

ये शामियाना / क्या है? 
शामियाना / एक सुरक्षा कवच है 

डॉ. सदिका सहर ने शामियाना को खून-ए-जिगर से सींचा है:

खून-जिगर से सींचा सपनों का शामियाना 
दुनिया बिछाए है अब पलकों का शामियाना 

सुनीता मिश्रा वृक्ष के झुरमुट रुपी शामियाने में पंछी की फ़िक्र है:

ये झुरमुट वृक्ष का लगता है जैसे शामियाना है 
न  टेढ़ी नज़र प्यारे ये पंछी का ठिकाना है   

डॉ. उदयभानु तिवारी 'मधुकर' पंचतत्व के शामियाने में त्रिगुण तलाशते हैं:

पंचतत्व से मिल बने शामियाना / सत-रज-तम त्रिगुण का है ये ठिकाना 

उर्मिला गौतम साजों के रुंधे गले की फ़िक्र से बाबस्ता हैं:

रुंध गए साज़ शादियाने के / बांस उखड़े जो शामियाने के 

शामियाने पर केंद्रित इस काव्य संकलन में कवियों ने शामियाने को जीवन चक्र और कालचक्र के प्रतीक के रूप में देखा है।एक ही विषय पर रचना केंद्रित होने के कारण बिम्ब या प्रतीक का दुहराव स्वाभाविक है।  संभागियों ने ग़ज़ल का काव्य रूप अपनाया है. छंद वैविध्य हो तो एकरसता टूटेगी। इस सारस्वत अनुष्ठान क बहुरंगी बनाने के लिए विविध विधाओं यथा  लघुकथा, कहानी, व्यंग्य लेख  शामियाना केंद्रित संकलन किये जा सकते हैं। रचनाकारों के चित्र तथा ईमेल दिए जा सकें तो संकलन की उपयोगिता बढ़ेगी।

श्री अशोक खुराना का समर्पण और लगन सराहनीय है। माँ शारदा उन पर सदा कृपालु हों।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

geet shamiyana: sanjiv

विमर्श: शामियाना

गीत:

धरा की शैया सुखद है
अमित  नभ का शामियाना
मनुज लेकिन संग तेरे
कभी भी कुछ भी न जाना

जोड़ता तू फिर रहा है
मोह-तम में घिर रहा है
पुत्र है तू ब्रम्ह का पर
वासना में घिर रहा है

पंक में पंकज सदृश रह
सीख पगले मुस्कुराना

उग रहा है सूर्य नित प्रति
सांझ खुद ही ढल रहा है
पालता है जो किसी को
वह किसी से पल रहा है

उसको उतना ही मिलेगा
जितना जिसका आबो-दाना

लाये क्या?, ले जायेंगे क्या??
कौन जाता संग किसके?
संग जग आनंद में हो
पीर आपद देख खिसके

औपचारिक भावनाएं
अधर पर मीठा बहाना

रहे जिसमें ढाई आखर
खुशनुमा है वही बाखर
सुन रहा खन-खन सतत जो
कौन है उससे बड़ा खर?

छोड़ पद-मद धन सियासत
ओढ़ भगवा-पीत बाना

कब भरी है बोल गागर?
रीतता क्या कभी सागर??
पाई जैसी त्याग वैसी
कर्म की हँस 'सलिल' चादर

हंस उड़ चल बस वहीं तू
है जहाँ अंतिम ठिकाना

*****
व्यवसाय बहुत से लोग करते हैं किन्तु श्री अशोक खुराना सबसे अलग हैं. 
कैसे? 
ऐसे कि वे अपने व्यवसाय से रोजी-रोटी कमाने के साथ-साथ व्यवसाय के हर पहलू पर सोचते हैं और औरों को सोचने-कहने के लिए प्रेरित करते हैं.   
कैसे?  
ऐसे की वे हर वर्ष अपने व्यवसाय पर केंद्रित कवितायेँ कवियों से लिखवाते-बुलवाते, उनका संकलन निजी खर्च छपवाते और कवियों को निशुल्क भिजवाते हैं.

'शामियाना ३' इस श्रंखला की तीसरी कड़ी है. २४० पृष्ठ के इस सजिल्द संकलन में १८८ रचनाएँ हैं. निरंकारी अब्बा हरदेव सिंह, बालकवि बैरागी तथा कुंवर बेचैन के आशीर्वचनों से समृद्ध इस संकलन में गीत, ग़ज़ल, कवितायेँ और शेर आदि सम्मिलित हैं. परम्परानुसार शुभारम्भ आचार्य भगवत दुबे रचित गणेश-सरस्वती वंदना से हुआ है. शामियाना (टेंट हाउस) व्यवसाय से आजीविका अर्जित कर अपने पुत्र को आई.पी. एस. अधिकारी बनानेवाले अशोक जी से प्रेरणा लेकर अन्य व्यवसायी भी अपने व्यवसाय के विविध पहलुओं पर चिंतन के साथ सारस्वत रचनाकर्म को प्रोत्साहित कर सकते हैं. 

इस शारदेय अनुष्ठान में मेरी समिधा से आप ऊपर आनंदित हो ही चुके हैं. जो रचनाकार बंधू शामियाना के अगले अंक में रचनात्मक भागीदारी करना चाहें वे अपना नाम, पता, ईमेल आई. डी., चलभाष / दूरभाष कंमांक तथा एक रचना यहाँ लगा दें. रचनाएँ यथा समय श्री अशोक खुराना तक पहुंचा दी जाएंगी.