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गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

मुक्तिका, गजल, दोहा, तुलसी, अरुण छंद, नवगीत

मुक्तिका
*
मेहनत अधरों की मुस्कान
मेहनत ही मेरा सम्मान
बहा पसीना, महल बना
पाया आप न एक मकान
वो जुमलेबाजी करते
जिनको कुर्सी बनी मचान
कंगन-करधन मिले नहीं
कमा बनाए सच लो जान
भारत माता की बेटी
यही सही मेरी पहचान
दल झंडे पंडे डंडे
मुझ बिन हैं बेदम-बेजान
उबटन से गणपति गढ़ दूँ
अगर पार्वती मैं लूँ ठान
सृजन 'सलिल' का है सार्थक
मेहनतकश का कर गुणगान
२०-४-२१
***
दोहा सलिला
नियति रखे क्या; क्या पता, बनें नहीं अवरोध
जो दे देने दें उसे, रहिए आप अबोध
*
माँगे तो आते नहीं , होकर बाध्य विचार
मन को रखिए मुक्त तो, आते पा आधार
*
सोशल माध्यम में रहें, नहीं हमेशा व्यस्त
आते नहीं विचार यदि, आप रहें संत्रस्त
*
एक भूमिका ख़त्म कर, साफ़ कीजिए स्लेट
तभी दूसरी लिख सकें,समय न करता वेट
*
रूचि है लोगों में मगर, प्रोत्साहन दें नित्य
आप करें खुद तो नहीं, मिटे कला के कृत्य
*
विश्व संस्कृति के लगें, मेले हो आनंद
जीवन को हम कला से, समझें गाकर छंद
*
भ्रमर करे गुंजार मिल, करें रश्मि में स्नान
मन में खिलते सुमन शत, सलिल प्रवाहित भान
*
हैं विराट हम अनुभूति से, हुए ईश में लीन
अचल रहें सुन सकेंगे, प्रभु की चुप रह बीन
*
तुलसी, मानस और कोविद
भविष्य दर्शन की बात हो तो लोग नॉस्ट्राडेमस या कीरो की दुहाई देते हैं। गो. तुलसीदास की रामभक्ति असंदिग्ध है, वर्तमान कोविद प्रसंग तुलसी के भविष्य वक्ता होने की भी पुष्टि करता है। कैसे? कहते हैं 'प्रत्यक्षं किं प्रमाणं', हाथ कंगन को आरसी क्या? चलिए मानस में ही उत्तर तलाशें। कहाँ? उत्तर उत्तरकांड में न मिलेगा तो कहाँ मिलेगा? तुलसी के अनुसार :
सब कई निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं।
सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुःख पावहिं सब लोग।। १२० / १४
वाइरोलोजी की पुस्तकों व् अनुसंधानों के अनुसार कोविद १९ महामारी चमगादडो से मनुष्यों में फैली है।
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।। १२० / १५
सब रोगों की जड़ 'मोह' है। कोरोना की जड़ अभक्ष्य जीवों (चमगादड़ आदि) का को खाने का 'मोह' और भारत में फैलाव का कारण विदेश यात्राओं का 'मोह' ही है। इन मोहों के कारण बहुत से कष्ट उठाने पड़ते हैं। आयर्वेद के त्रिदोषों वात, कफ और पित्त को तुलसी क्रमश: काम, लोभ और क्रोध जनित बताते हैं। आश्चर्य यह की विदेश जानेवाले अधिकांश जन या तो व्यापार (लोभ) या मौज-मस्ती (काम) के लिए गए थे। यह कफ ही कोरोना का प्रमुख लक्षण देखा गया। जन्नत जाने का लोभ पाले लोग तब्लीगी जमात में कोरोना के वाहक बन गए। कफ तथा फेंफड़ों के संक्रमण का संकेत समझा जा सकता है।
प्रीती करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई।।
विषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब स्कूल नाम को जाना।। १२०/ १६
कफ, पित्त और वात तीनों मिलकर असंतुलित हो जाएँ तो दुखदायी सन्निपात (त्रिदोष = कफ, वात और पित्त तीनों का एक साथ बिगड़ना। यह अलग रोग नहीं ज्वर / व्याधि बिगड़ने पर हुई गंभीर दशा है। साधारण रूप में रोगी का चित भ्रांत हो जाता है, वह अंड- बंड बकने लगता है तथा उछलता-कूदता है। आयुर्वेद के अनुसार १३ प्रकार के सन्निपात - संधिग, अंतक, रुग्दाह, चित्त- भ्रम, शीतांग, तंद्रिक, कंठकुब्ज, कर्णक, भग्ननेत्र, रक्तष्ठीव, प्रलाप, जिह्वक, और अभिन्यास हैं।) मोहादि विषयों से उत्पन्न शूल (रोग) असंख्य हैं। कोरोना वायरस के असंख्य प्रकार वैज्ञानिक भी स्वीकार रहे हैं। कुछ ज्ञात हैं अनेक अज्ञात।
जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका।।१२० १९
इस युग (समय) में मत्सर (अन्य की उन्नति से जलना) तथा अविवेक के कारण अनेक विकार उत्पन्न होंगे। देश में राजनैतिक नेताओं और सांप्रदायिक शक्तियों के अविवेक से अनेक सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक विकार हुए और अब जीवननाशी विकार उत्पन्न हो गया।
एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि।
पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥१२१ क
एक ही व्याधि (रोग कोविद १९) से असंख्य लोग मरेंगे, फिर अनेक व्याधियाँ (कोरोना के साथ मधुमेह, रक्तचाप, कैंसर, हृद्रोग आदि) हों तो मनुष्य चैन से समाधि (मुक्ति / शांति) भी नहीं पा सकता।
नेम धर्म आचार तप, ज्ञान जग्य जप दान।
भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं, रोग जाहिं हरिजान।। १२१ ख
नियम (एकांतवास, क्वारेंटाइन), धर्म (समय पर औषधि लेना), सदाचरण (स्वच्छता, सामाजिक दूरी, सेनिटाइजेशन,गर्म पानी पीना आदि ), तप (व्यायाम आदि से प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाना), ज्ञान (क्या करें या न करें जानना), यज्ञ (मनोबल हेतु ईश्वर का स्मरण), दान (गरीबों को या प्रधान मंत्री कोष में) आदि अनेक उपाय हैं तथापि व्याधि सहजता से नहीं जाती।
एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी।।
मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेहिं पाए।।१२१ / १
इस प्रकार सब जग रोग्रस्त होगा (कोरोना से पूरा विश्व ग्रस्त है) जो शोक, हर्ष, भय, प्यार और विरह से ग्रस्त होगा। हर देश दूसरे देश के प्रति शंका, भय, द्वेष, स्वार्थवश संधि, और संधि भंग आदि से ग्रस्त है। तुलसी ने कुछ मानसिक रोगों का संकेत मात्र किया है, शेष को बहुत थोड़े लोग (नेता, अफसर, विशेषज्ञ) जान सकेंगे।
जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।।
बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे। मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।। १२१ / २
जिनके बारे में पता च जाएगा ऐसे पापी (कोरोनाग्रस्त रोगी, मृत्यु या चिकित्सा के कारण) कम हो जायेंगे , परन्तु विषाणु का पूरी तरह नाश नहीं होगा। विषय या कुपथ्य (अनुकूल परिस्थिति या बदपरहेजी) की स्थिति में मुनि (सज्जन, स्वस्थ्य जन) भी इनके शिकार हो सकते हैं जैसे कुछ चिकित्सक आदि शिकार हुए तथा ठीक हो चुके लोगों में दुबारा भी हो सकता है।
तुलसी यहीं नहीं रुकते, संकेतों में निदान भी बताते हैं।
राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥
सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥ १२१ / ३
ईश्वर की कृपा से संयोग (जिसमें रोगियों की चिकित्सा, पारस्परिक दूरी, स्वच्छता, शासन और जनता का सहयोग) बने, सद्गुरु (सरकार प्रमुख) तथा बैद (डॉक्टर) की सलाह मानें, संयम से रहे, पारस्परिक संपर्क न करें तो रोग का नाश हो सकता है।
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी॥
एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं॥
ईश्वर की भक्ति संजीवनी जड़ी है। श्रद्धा से पूर्ण बुद्धि ही अनुपान (दवा के साथ लिया जाने वाला मधु आदि) है। इस प्रकार का संयोग हो तो वे रोग भले ही नष्ट हो जाएँ, नहीं तो करोड़ों प्रयत्नों से भी नहीं जाते।
२०-४-२०२०
***
मुक्तिका
*
वतन परस्तों से शिकवा किसी को थोड़ी है
गैर मुल्कों की हिमायत ही लत निगोड़ी है
*
भाईचारे के बीच मजहबी दखल क्यों हो?
मनमुटावों का हल, नाहक तलाक थोड़ी है
*
साथ दहशत का न दोगे, अमन बचाओगे
आज तक पाली है, उम्मीद नहीं छोड़ी है
*
गैर मुल्कों की वफादारी निभानेवालों
तुम्हारे बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
*
है दुश्मनों से तुम्हें आज भी जो हमदर्दी
तो ये भी जान लो, तुमने ही आस तोड़ी है
*
खुदा न माफ़ करेगा, मिलेगी दोजख ही
वतनपरस्ती अगर शेष नहीं थोड़ी है
*
जो है गैरों का सगा उसकी वफा बेमानी
हाथ के पत्थरों में आसमान थोड़ी है
*
छंद बहर का मूल है: ७
*
छंद परिचय:
संरचना: SIS SIS IS / SISS ISIS
सूत्र: ररलग।
आठ वार्णिक जातीय छंद।
तेरह मात्रिक जातीय छंद।
बहर: फ़ाइलुं फ़ाइलुं फ़अल / फ़ाइलातुं मुफ़ाइलुं ।
*
देवता है वही सही
जो चढ़ा वो मँगे नहीं
*
बाल सारे सफेद हैं
धूप में ये रँगे नहीं
*
लोग ईसा बनें यहाँ
सूलियों पे टँगे नहीं
*
दर्द नेता न भोगता
सत्य है ये सभी कहीं
*
आम लोगों न हारना
हिम्मतें ही जयी रहीं
*
SISS ISIS
जी न चाहे वहीं चलो
धार ही में बहे चलो
*
दूसरों की न बात हो
हाथ खाली मले चलो
*
छोड़ भी दो तनातनी
ख्वाब हो तो पले चलो
*
दुश्मनों की निगाह में
शूल जैसे चुभे चलो
*
व्यर्थ सीना न तान लो
फूल पाओ झुके चलो
***
२०.४.२०१७
***
मुक्तक
पीर पराई हो सगी, निज सुख भी हो गैर.
जिसको उसकी हमेशा, 'सलिल' रहेगी खैर..
सबसे करले मित्रता, बाँट सभी को स्नेह.
'सलिल' कभी मत किसी के, प्रति हो मन में बैर..
२०-४-२०१७
***
छंद सलिला:
अरुण छंद
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति ५-५-१०
लक्षण छंद:
शिशु अरुण को नमन कर ;सलिल; सर्वदा
मत रगड़ एड़ियाँ मंज़िलें पा सदा
कर्म कर, ज्ञान वर, मन व्रती पारखी
एक दो एक पग अंत में हो सखी
उदाहरण:
१. प्रेयसी! लाल हैं उषा से गाल क्यों
मुझ अरुण को कहो क्यों रही टाल हो?
नत नयन, मृदु बयन हर रहे चित्त को-
बँधो भुज पाश में कहो क्या हाल हो?
२. आप को आप ने आप ही दी सदा
आप ने आप के भाग्य में क्या लिखा"
व्योम में मोम हो सोम ढल क्यों गया?
पाप या शाप चुक, कल उगे हो नया
३. लाल को गोपियाँ टोंकती ही रहीं
'बस करो' माँ उन्हें रोकती ही रहीं
ग्वाल थे छिप खड़े, ताक में थे अड़े
प्रीत नवनीत से भाग भी थे बड़े
घर गयीं गोपियाँ आ गयीं टोलियाँ
जुट गयीं हट गयीं लूटकर मटकियाँ
*********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)
***
छंद सलिला:
छंदशाला
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु (तगण, जगण)
लक्षण छंद:
पढ़ो उठकर शास्त्र समझ-गुन कर याद
रचो सुमधुर छंद याद रख मर्याद
कला बीसी रखें हर चरण पर्यन्त
हर चरण में कन्त रहे गुरु लघु अंत
उदाहरण:
१. शेष जब तक श्वास नहीं तजना आस
लक्ष्य लाये पास लगातार प्रयास
शूल हो या फूल पड़े सब पर धूल
सम न हो समय प्रतिकूल या अनुकूल
२. किया है सच सचाई को ही प्रणाम
हुआ है सच भलाई का ही सुनाम
रहा है समय का ईश्वर भी गुलाम
हुआ बदनाम फिर भी मिला है नाम
३. निर्भय होकर वन्देमातरम बोल
जियो ना पीटो लोकतंत्र का ढोल
कर मतदान, ना करना रे मत-दान
करो पराजित दल- नेता बेइमान
*********************************************
विशेष टिप्पणी :
हिंदी के 'शास्त्र' छंद से उर्दू के छंद 'बहरे-हज़ज़' (मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन) की मुफ़र्रद बह्र 'मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईल' की समानता देखिये.
उदाहरण:
१. हुए जिसके लिए बर्बाद अफ़सोस
वो करता भी नहीं अब याद अफ़सोस
२. फलक हर रोज लाता है नया रूप
बदलता है ये क्या-क्या बहुरूपिया रूप
३. उन्हें खुद अपनी यकताई पे है नाज़
ये हुस्ने-ज़न है सूरत-आफ़रीं से
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)
२०-४-२०१४
***
नव गीत
*
जीवन की जय बोल, धरा का दर्द तनिक सुन...

तपता सूरज आँख दिखाता, जगत जल रहा.
पीर सौ गुनी अधिक हुई है, नेह गल रहा.
हिम्मत तनिक न हार- नए सपने फिर से बुन...

निशा उषा संध्या को छलता सुख का चंदा.
हँसता है पर काम किसी के आये न बन्दा...
सब अपने में लीन, तुझे प्यारी अपनी धुन...

महाकाल के हाथ जिंदगी यंत्र हुई है.
स्वार्थ-कामना ही साँसों का मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर, रहे न हावी कर कुछ सुन-गुन...
२०-४-२०१०

सोमवार, 23 नवंबर 2020

नए छंद मुक्तक

हिंदी के नए छंद 
मुक्तक 
*
विधान: र भ न ल 
दीपिका सी प्रखर किरण 
सीपिका से धवल चरण 
हो रहा है पुलक 'सलिल'-
रागिनी का श्रवण-वरण 
*
विधान: न न भ स  
स्वजन सुजन ही सजन नहीं 
दरस-परस ही मिलन नहीं
सुलग-दहकना असगुन है-
खुद मिल खुद से मगन नहीं
*
 
   

मंगलवार, 29 सितंबर 2020

कुछ नए छंद : सलिल

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा आविष्कृत, नामित लिखित कुछ नए छंद 

१. कृष्णमोहन छन्द
विधान-
१. प्रति पंक्ति ७ मात्रा
२. प्रति पंक्ति मात्रा क्रम गुरु लघु गुरु लघु लघु
गीत
रूप चौदस
.
रूप चौदस
दे सदा जस
.
साफ़ हो तन
साफ़ हो मन
हों सभी खुश
स्वास्थ्य है धन
बो रहा जस
काटता तस
बोलती सच
रूप चौदस.
.
है नहीं धन
तो न निर्धन
हैं नहीं गुण
तो न सज्जन
ईश को भज
आत्म ले कस
मौन तापस
रूप चौदस.
.
बोलना तब
तोलना जब
राज को मत
खोलना अब
पूर्णिमा कह
है न 'मावस
रूप चौदस
.
मैल दे तज
रूप जा सज
सत्य को वर
ईश को भज
हो प्रशंसित
रूप चौदस
.
वासना मर
याचना मर
साथ हो नित
साधना भर
हो न सीमित
हर्ष-पावस
साथ हो नित
रूप चौदस
.......
२ सड़गोड़ासनी (बुंदेली छंद)
विधान: मुखड़ा १५-१६, ४ मात्रा पश्चात् गुरु लघु अनिवार्य,
अंतरा १६-१२, मुखड़ा-अन्तरा सम तुकांत .
*
जन्म हुआ किस पल? यह सोच
मरण हुआ कब जानो?
*
जब-जब सत्य प्रतीति हुई तब
कह-कह नित्य बखानो.
*
जब-जब सच ओझल हो प्यारे!
निज करनी अनुमानो.
*
चलो सत्य की डगर पकड़ तो
मीत न अरि कुछ मानो.
*
देख तिमिर मत मूँदो नयना
अंतर-दीप जलानो.
*
तन-मन-देश न मलिन रहे मिल
स्वच्छ करेंगे ठानो.
*
ज्यों की त्यों चादर तब जब
जग सपना विहँस भुलानो.
***


वार्णिक छंद: अथाष्टि जातीय छंद
मात्रिक छंद: यौगिक जातीय विधाता छंद
1 2 2 2 , 1 2 2 2 , 1 2 2 2 , 1 2 2 2.
मुफ़ाईलुन,मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन,मुफ़ाईलुन।
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम।।
*
दियों में तेल या बाती नहीं हो तो करोगे क्या?
लिखोगे प्रेम में पाती नहीं भी तो मरोगे क्या?
.
बुलाता देश है, आओ! भुला दो दूरियाँ सारी
बिना गंगा बहाए खून की, बोलो तरोगे क्या?
.
पसीना ही न जो बोया, रुकेगी रेत ये कैसे?
न होगा घाट तो बोलो नदी सूखी रखोगे क्या?
.
परों को ही न फैलाया, नपेगा आसमां कैसे?
न हाथों से करोगे काम, ख्वाबों को चरोगे क्या?
.
न ज़िंदा कौम को भाती कभी भी भीख की बोटी
न पौधे रोप पाए तो कहीं फूलो-फलोगे क्या?
-----------
४ मातंगी सवैया
विधान:
१. प्रति पंक्ति ३६ मात्रा
२. sss की ६ आवृत्तियाँ
३. यति १२-२४-३६ पर
४. आदि-अंत sss
*
दौड़ेंगे-भागेंगे, कूदेंगे-फांदेंगे, मेघों सा गाएँगे
वृक्षों सा झूमेंगे, नाचेंगे-गाएँगे, आल्हा गुन्जाएँगे
आतंकी शैतानों, मारेंगे-गाड़ेंगे, वीरों सा जीतेंगे
चंदा सा, तारों सा, आकाशी दीया हो, दीवाली लाएँगे
***
५. सुरेश सवैया
विधान:
वर्णिक - १० - ५ - ८ = २३
मात्रिक - १० - ७ - १० = २७
अधर पर धर अधर, कर आधार, बन आधार प्रिय तू!
नजर पर रख नजर, कर स्वीकार, बन सिंगार प्रिय तू!!
सृजन-पथ कर वरण, गति व्यापार, बन झंकार प्रिय तू!
डगर पर रख चरण, भव हो पार, बन ओंकार प्रिय तू!!
६. रौद्रक जातीय हरि छंद
*
छंद-लक्षण:
प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, चरणारंभ गुरु,
यति ६ - ६ - ११, चरणान्त गुरु लघु गुरु (रगण) ।

लक्षण छंद:
रास रचा / हरि तेइस / सखा-सखी खेलते
राधा की / सखियों के / नखरे हँस झेलते
गुरु से शुरु / यति छह-छह / ग्यारह पर सोहती
अंत रहे / गुरु लघु गुरु / कला 'सलिल' मोहती

उदाहरण:
१. राखो पत / बनवारी / गिरधारी साँवरे
टेर रही / द्रुपदसुता / बिसरा मत बावरे
नंदलाल / जसुदासुत / अब न करो देर रे
चीर बढ़ा / पीर हरो / मेटो अंधेर रे

२. सीता को / जंगल में / भेजा क्यों राम जी?
राधा को / छोड़ा क्यों / बोलो कुछ श्याम जी??
शिव त्यागें / सती कहो / कैसे यह ठीक है?
नारी भी / त्यागे नर / क्यों न उचित लीक है??

३. नेता जी / भाषण में / जो कुछ है बोलते
बात नहीं / अपनी क्यों / पहले वे तोलते?
मुकर रहे / कह-कहकर / माफी भी माँगते
देश की / फ़िज़ां में / क्यों नफरत घोलते?

४. कौन किसे / बिना बात / चाहता-सराहता?
कौन जो न / मुश्किलों से / आप दूर भागता?
लोभ, मोह / क्रोध द्रोह / छोड़ सका कौन है?
ईश्वर से / कौन और / अधिक नहीं माँगता?
७. मन्वन्तर सवैया
मापनी- २१२ २११ १२१ १२१ १२१ १२१ १२१ १२।
२३ वार्णिक, ३२ मात्रिक छंद।
गण सूत्र- रभजजजजजलग।
मात्रिक यति- ८-८-८-८, पदांत ११२।
वार्णिक यति- ५-६-६-६, पदांत सगण।
*
उदाहरण
हो गयी भोर, मतदान करों, मत-दान करो, सुविचार करो।
हो रहा शोर, उठ आप बढ़ो, दल-धर्म भुला, अपवाद बनो।।
है सही कौन, बस सोच यही, चुन काम करे, न प्रचार वरे।
जो नहीं गैर, अपना लगता, झट आप चुनें, नव स्वप्न बुनें।।
*
हो महावीर, सबसे बढ़िया, पर काम नहीं, करता यदि तो।
भूलिए आज, उसको न चुनें, पछता मत दे, मत आज उसे।।
जो रहे साथ, उसको चुनिए, कब क्या करता, यह भी गुनिए।
तोड़ता नित्य, अनुशासन जो, उसको हरवा, मन की सुनिए।।
*
नर्मदा तीर, जनतंत्र उठे, नव राह बने, फिर देश बढ़े।
जागिए मीत, हम हाथ मिला, कर कार्य सभी, निज भाग्य गढ़ें।।
मुश्किलें रोक, सकतीं पथ क्या?, पग साथ रखें, हम हाथ मिला।
माँगिए खैर, सबकी रब से, खुद की खुद हो, करना न गिला।।
***
८. रामरति छंद
विधान :
वर्ण : ५ - ६ - ७ = १८
मात्रा : ८ - ८ - ११ = २७
पदांत : २२१।
मौन पियेगा, ऊग सूर्य जब, आ अँधियारा नित्य।
तभी पुजेगा, शिवशंकर सा, युगों युगों आदित्य।।
चन्द्र न पाये, मान सूर्य सम, ले उजियारा दान-
इसीलिये तारक भी नभ में, करें नहीं सम्मान।।
९. महापौराणिकजातीय आनंदवर्धक छंद
विधान : १९ मात्रा, वर्ण १२  
पदांत : २१२   
*
जी रहा हूँ श्वास हर तेरे लिए
पी रहा हूँ प्यास हर तेरे लिए
हर ख़ुशी-आनंद है तेरे लिए
मीत! स्नेहिल छंद है तेरे लिए
*
सावनी जलधार है तेरे लिए
फागुनी मनुहार है तेरे लिए
खिला हरसिंगार है तेरे लिए
प्रिये ये भुजहार है तेरे लिए
*
१०. अमरकंटक छंद  
विधान-
1. प्रति पंक्ति 7 मात्रा
2. प्रति पंक्ति मात्रा क्रम लघु लघु लघु गुरु लघु लघु
गीत
नरक चौदस
.
मनुज की जय  
नरक चौदस
.
चल मिटा तम
मिल मिटा गम
विमल हो मन
नयन हों नम
पुलकती खिल
विहँस चौदस  
मनुज की जय
नरक चौदस
.
घट सके दुःख
बढ़ सके सुख
सुरभि गंधित 
दमकता मुख
धरणि पर हो 
अमर चौदस 
मनुज की जय  
नरक चौदस
.
विषमता हर
सुसमता वर
दनुजता को
मनुजता कर
तब मने नित 
विजय चौदस  
मनुज की जय  
नरक चौदस
.
मटकना मत
भटकना मत
अगर चोटिल
चटकना मत
नियम-संयम
वरित चौदस
मनुज की जय  
नरक चौदस
.
बहक बादल
मुदित मादल
चरण नर्तित 
बदन छागल
नरमदा मन
'सलिल' चौदस 
मनुज की जय  
नरक चौदस
११. आर्द्रा छंद
*
द्विपदीय, चतुश्चरणी, मात्रिक आर्द्रा छंद के दोनों पदों पदों में समान २२-२२ वर्ण तथा ३५-३५ मात्राएँ होती हैं. प्रथम पद के २ चरण उपेन्द्र वज्रा-इंद्र वज्रा (जगण तगण तगण २ गुरु-तगण तगण जगण २ गुरु = १७ + १८ = ३५ मात्राएँ) तथा द्वितीय पद के २ चरण इंद्र वज्रा-उपेन्द्र वज्रा (तगण तगण जगण २ गुरु-जगण तगण तगण २ गुरु = १८ + १७ = ३५ मात्राएँ) छंदों के सम्मिलन से बनते हैं.
उपेन्द्र वज्रा फिर इंद्र वज्रा, प्रथम पंक्ति में रखें सजाकर
द्वितीय पद में सह इंद्र वज्रा, उपेन्द्र वज्रा कहे हँसाकर
उदाहरण:
१. कहें सदा ही सच ज़िंदगी में, पूजा यही है प्रभु जी! हमारी
रहें हमेशा रत बंदगी में, हे भारती माँ! हम भी तुम्हारी
२. बसंत फूलों कलियों बगीचों, में झूम नाचा महका सवेरा
सुवास फ़ैली वधु ज्यों नवेली, बोले अबोले- बस में चितेरा
३. स्वराज पाया अब भारतीयों, सुराज पाने बलिदान दोगे?
पालो निभाओ नित नेह-नाते, पड़ोसियों से निज भूमि लोगे?
कहो करोगे मिल देश-सेवा, सियासतों से मिल पार होगे?
नेता न चाहें फिर भी दलों में, सुधार लाने फटकार दोगे?
१२. आशाकिरण छंद
विधान : वर्ण ५ 
मात्रा ७ 
पदांत नगण 
सूत्र - त ल ल।
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मैया नमन
चाहूँ अमन...
ऊषा विहँस
आ सूर्य सँग
आकाश रँग
गाए यमन...
पंछी हुलस
बोलें सरस
झूमे धरणि
नाचे गगन...
माँ! हो सदय
संतान पर
दो भक्ति निज
होऊँ मगन...
माते! दरश
दे आज अब
दीदार बिन
माने न मन...
वीणा मधुर
गूँजे सतत
आनंदमय
हो शांत मन...
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१३. त्रयोदशी छंद 
विधान 
वर्ण  १३ 
मात्रा १९ 
पदांत लघु गुरु 
भोग्य यह संसार हो तुझको नहीं
त्याज्य यह संसार हो तुझको नहीं
देह का व्यापार जो नर कर रहा
आत्म का आधार बिसरा मर रहा
१४. यगणादित्य घनाक्षरी
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विधान- बारह यगण 
वर्ण : ३६ 
मात्रा : ६० 
यति : १०-२०-३०-४०-५०-६० 
संकेत-यगण = १२२, आदित्य = १२।
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कन्हैया! कन्हैया! पुकारें हमेशा, तुम्हें राधिका जी! गुहारें हमेशा, सदा गीत गाएँ तुम्हारे हमेशा।
नहीं कर्म भूलें, नहीं मर्म भूलें, लड़ें राक्षसों से नहीं धर्म भूलें, तुम्हीं को मनाएँ-बुलाएँ हमेशा।।
कहा था तुम्हीं ने 'उठो पार्थ प्यारे!, लड़ो कौरवों से नहीं हारना रे!, झुका या डरो ना बुराई से जूझो।
करो कर्म सारे, न सोचो मिले क्या?, मिला क्या?, गुमा क्या?, रहा क्या? हमेशा।।
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१५  नीराजना छंद
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विधान :
१. प्रति पंक्ति २१ मात्रा।
२. पदादि गुरु।
३. पदांत गुरु गुरु लघु गुरु।
४. यति ११ - १०।
लक्षण छंद:
एक - एक मनुपुत्र, साथ जीतें सदा।
आदि रहें गुरुदेव, न तब हो आपदा।।
हो तगणी गुरु अंत, छंद नीराजना।
मुग्ध हुए रजनीश, चंद्रिका नाचना।।
टीप:
एक - एक = ११, मनु पुत्र = १० (इक्ष्वाकु, नृग, शर्याति, दिष्ट,
धृष्ट, करुषय, नरिष्यन्त, प्रवध्र, नाभाग, कवि भागवत)
उदाहरण:
कामदेव - रति साथ, लिए नीराजना।
संयम हो निर्मूल, न करता याचना।।
हो संतुलन विराग - राग में साध्य है।
तोड़े सीमा मनुज, नहीं आराध्य है।।
१६. उषानाथ छंद 
विधान : रूप चौदस छंद 
वर्ण : ७ - ७ = १४  
मात्रा :  ९ - ९ = १८ 
पदांत : गुरु लघुगुरु 
नमन उषानाथ! मुँह मत मोड़ना।  
ईश! कर अनाथ, मन मत तोड़ना।। 
देव तम हर लो, सतत प्रकाश दो- 
कर-उठा लें नभ, ह्रदय हुलास दो।। 
१७. दष्ठौन छंद
विधान :
वर्ण : १० 
मात्रा: १७ 
पदांत : गुरु गुरु गुरु 
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दे भुला वायदा वही नेता
दे भुला कायदा वही जेता

जूझता जो रहा नहीं हारा
है रहा जीतता सदा चेता

नाव पानी बिना नहीं डूबी
घाट नौका कभी नहीं खेता

भाव बाजार ने नहीं बोला
है चुकाता रहा खुदी क्रेता

कौन है जो नहीं रहा यारों?
क्या वही जो रहा सदा देता?

छोड़ता जो नहीं वही पंडा
जो चढ़ावा चढ़ा रहा लेता

कोकिला ने दिए भुला अंडे
काग ही तो रहा उन्हें सेता
१८.  ग्यारस छंद 
विधान:
वर्ण : ११ 
मात्रा : १७ 
पदांत : लघु लघु गुरु 
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हाथ पे हाथ जो बढ़ा रखते
प्यार के फूल भी हसीं खिलते

जो पुकारो जरा कभी दिल से
जान पे खेल के गले मिलते

जो न देखा वही दिखा जलवा
थामते तो न हौसले ढलते

प्यार की आँच में तपे-सुलगे
झूठ जो जानते; नहीं जलते

दावते-हुस्न जो नहीं मिलती
वस्ल के ख्वाब तो नहीं पलते

जीव 'संजीव' हो नहीं सकता
आँख से अश्क जो नहीं बहते

नेह की नर्मदा बही जब भी
मौन पाषाण भी कथा कहते
१९. सत्यमित्रानंद सवैया
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विधान: 
वर्ण : २६ 
मात्रा : ४० 
यति : ७-६-६-७ ।
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गए हो तुम नहीं, हो दिलों में बसे, गई है देह ही, रहोगे तुम सदा।
तुम्हीं से मिल रही, है हमें प्रेरणा, रहेंगे मोह से, हमेशा हम जुदा।
तजेंगे हम नहीं, जो लिया काम है, करेंगे नित्य ही, न चाहें फल कभी।
पुराने वसन को, है दिया त्याग तो, नया ले वस्त्र आ, मिलेंगे फिर यहीं।
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तुम्हारा यश सदा, रौशनी दे हमें, रहेगा सूर्य सा, घटेगी यश नहीं।
दिये सा तुम जले, दी सदा रौशनी, बँधाई आस भी, न रोका पग कभी।
रहे भारत सदा, ही तुम्हारा ऋणी, तुम्हीं ने दी दिशा, तुम्हीं हो सत्व्रती।
कहेगा युग कथा, ये सन्यासी रहे, हमेशा कर्म के, विधाता खुद जयी।
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मिला जो पद तजा, जा नई लीक पे, लिखी निर्माण की, नयी ही पटकथा।
बना मंदिर नया, दे दिया तीर्थ है, नया जिसे कहें, सभी गौरव कथा।
महामानव तुम्हीं, प्रेरणास्रोत हो, हमें उजास दो, गढ़ें किस्मत नयी।
खड़े हैं सुर सभी, देवतालोक में, प्रशस्ति गा रहे, करें स्वागत सभी।
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२०. द्वि इंद्रवज्रा सवैया
 विधान : 
वर्ण : ११ - ११ = २२ वर्ण 
मात्रा : १८ - १८ = ३६ 
पदांत : लघु गुरु गुरु 
माँगो न माँगो भगवान देंगे, चाहो न चाहो भव तार देंगे। 
होगा वही जो तकदीर में है, तदबीर के भी अनुसार देंगे।। 
हारो न भागो नित कोशिशें हो, बाधा मिलें जो कर पार लेंगे।
माँगो सहारा मत भाग्य से रे!, नौका न चाहें मँझधार लेंगे।

नाते निभाना मत भूल जाना, वादा किया है करके निभाना।
या तो न ख़्वाबों तुम रोज आना, या यूँ न जाना करके बहाना। 
तोड़ा भरोसा जुमला बताया, लोगों न कोसो खुद को गिराया।
छोड़ो तुम्हें भी हम आज भूले, यादों न आँसू हमने गिराया।