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सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

लेख: सतत स्थाई विकास और स्वतंत्रता

लेख:
सतत स्थाई विकास और स्वतंत्रता
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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स्थायी-निरंतर विकास : हमारी विरासत

मानव सभ्यता का विकास सतत स्थाई विकास की कहानी है। निस्संदेह इस अंतराल में बहुत सा अस्थायी विकास भी हुआ है किन्तु अंतत: वह सब भी स्थाई विकास की पृष्ठ भूमि या नींव ही सिद्ध हुआ। विकास एक दिन में नहीं होता, एक व्यक्ति द्वारा भी नहीं हो सकता, किसी एक के लिए भी नहीं किया जाता।

'सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामय:।
सर्वे भद्राणु पश्यन्ति, माँ कश्चिद दुःखभाग्भवेद"।।

अर्थात ''सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ्य हों, शुभ देखें सब, दुःख न कहीं हो"

यह वैदिक आदर्श तभी प्राप्त हो सकता है जब विकास, निरंतर विकास, सबकी आवश्यकता पूर्ति हित विकास, स्थाई विकास होता रहे। ऐसा सतत और स्थाई विकास जो मानव की भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं और उनके समक्ष उपस्थित होने वाले संकटों और अभावों का पूर्वानुमान कर किया जाए, ही हमारा लक्ष्य हो सकता है।

सनातन वैदिक चिंतनधारा द्वारा प्रदत्त वसुधैव कुटुम्बकम" तथा 'विश्वैक नीड़म्' के मन्त्र ही वर्तमान में 'ग्लोबलाइज्ड विलेज' की अवधारणा का आधार हैं। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव वर्षारंभ के पूर्व ही वैश्विक पटल पर भारतीय नेतृत्व के प्रभाव में अभूतपूर्व वृद्धि विश्व ग्राम की संकल्पना साकार होने का श्रीगणेश है।

'सस्टेनेबल डेवलपमेंट अर्थ स्थायी या टिकाऊ विकास से हमारा अभिप्राय विकास ऐसे कार्यों की निरन्तरता से है जो मानव ही नहीं, सकल जीव जंतुओं की भावी पीढ़ियों का आकलन कर, उनकी प्राप्ति सुनिश्चित करते हुए, वर्तमान समय की आवश्यकताएँ पूरी करे। दुर्गा सप्तशतीकार कहता है-

'या देवी सर्व भूतेषु प्रकृतिरूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:'।

पौर्वात्य चिन्तन प्रकृति को 'माँ' और सभी प्राणियों को उसकी संतान मानता है। इसका आशय यही है कि जैसे शिशु माँ का स्तन पान इस तरह करता है कि माँ को कोई क्षति नहीं होती, अपितु उसका जीवन पूर्णता पाता है, वैसे ही मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस तरह करे कि प्रकृति अधिक समृद्ध हो।

भारतीय परंपरा में प्रकृति के अनुकूल विकास की मानता है, प्रकृति के प्रतिकूल विकास की नहीं।

'सस्टेनेबल डवलेपमेन्ट कैन ओनली बी इन एकॉर्डेंस विथ नेचर एन्ड नॉट, अगेंस्ट और एक्सप्लोयटिंग द नेचर।'

प्रकृति माता - मनुष्य पुत्र

स्वयं को प्रकृति पुत्र मानने की अवधारणा ही पृथ्वी, नदी, गौ और भाषा को माता मानने की परंपरा बनकर भारत के जान-जन के मन में बसी है। गाँवों में गरीब से गरीब परिवार भी गाय और कुत्ते के लिए रोटी बनाकर उन्हें खिलाते हैं। देहरी से भिक्षुक को खाली हाथ नहीं लौटाते। आँवला, नीम, पीपल, बेल, तुलसी, कमल, दूब, महुआ, धान, जौ, लाई, आदि पूज्यनीय हैं। नर्मदा, गंगा, यमुना, क्षिप्रा आदि नदियाँ पूज्य हैं। नर्मदा कुम्भ, गंगा दशहरा, यमुना जयंती आदि पर्व मनाये जाते हैं। लोक पर्व पोला पर पशुधन का पूजन किया जाता है। आँवला नवमी, तुलसी जयंती आदि लोक पर्व मनाये जाते हैं। नीम व जासौन को देवी, बेल व धतूरा को शिव, कदंब व करील को कृष्ण, कमल व धान को लक्ष्मी, हरसिंगार को विष्णु से जोड़कर पूज्यनीय कहा गया है। यही नहीं पशुओं और पक्षियों को भी देवी-देवताओं से संयुक्त किया गया ताकि उनका शोषण न कर, उनका ध्यान रखा जाए। बैल, सर्प व नीलकंठ को शिव, शेर व बाघ को देवी, राजहंस व मोर को सरस्वती, हाथी को लक्ष्मी, मोर को कृष्ण आदि देवताओं के साथ संबद्ध बताया गया ताकि उनका संरक्षण किया जाता रहे। यही नहीं हनुमान जी को वायु, लक्ष्मी जी को जल, पार्वती जी को पर्वत, सीता जी भूमि की संतान कहा गया ताकि जन सामान्य इन प्राकृतिक तत्वों की शुद्धता और सीमित सदुपयोग के प्रति सचेष्ट हो।

स्वतंत्रता तभी स्थाई हो सकती है जब जनगण स्वस्थ्य, संपन्न व सुखी हो। उनके बीच सद्भाव, सहकार और सहिष्णुता हो।

विश्व रूपांतरण : युग की महती आवश्यकता

हम पृथ्वी को माता मानते है और सतत विकास सदैव हमारे दर्शन और विचारधारा का मूल सिद्धांत रहा है। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेक मोर्चों पर कार्य करते हुए हमें महात्मा गाँधी की याद आती है, जिन्होंने हमें चेतावनी दी थी कि धरती प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकती है, पर प्रत्येक व्यक्ति के लालच को नहीं।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित 'ट्रांस्फॉर्मिंग आवर वर्ल्ड : द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के संकल्प को भारत सहित १९३ देशों ने सितंबर, २०१५ में संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय पूर्ण बैठक में स्वीकार और इसे एक जनवरी, २०१६ से लागू किया। इसे सतत विकास लक्ष्यों के घोषणापत्र के नाम से भी जाना जाता है।

सतत विकास का उद्देश्य सबके लिए समान, न्यायसंगत, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, समृद्ध और रहने योग्य विश्व का निर्माण हेतु विकास में सामाजिक परिवेश, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से समाविष्ट करना है।

२००० से २०१५ तक के लिए निर्धारित नए लक्ष्यों का उद्देश्य विकास के अधूरे कार्य को पूरा करना और ऐसे विश्व की संकल्पना को मूर्त रूप देना है, जिसमें चुनौतियाँ कम और आशाएँ अधिक हों। भारत विश्व कल्याणपरक विकास के मूलभूत सिद्धांतों को अपनी विभिन्न विकास नीतियों में आराम से ही सम्मिलित करता रहा है। वर्तमान विश्वव्यापी अर्थ संकट के संक्रमण काल में भी विकास की अच्छी दर बनाए रखने में भारत सफल है। गाँधी जी ने 'आखिरी आदमी के भले', विनोबा जी ने सर्वोदय और दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय के माध्यम से निर्धनों को को गरीबी रेखा से ऊपर लाने और निर्बल को सबल बनाने की संकल्पना का विकास किया। वर्ष २०३० तक निर्धनता को समाप्त करने का लक्ष्य हमारा नैतिक दायित्व ही नहीं, शांतिपूर्ण, न्यायप्रिय और चिरस्थायी

भारत और विश्व को सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य प्राथमिकता भी है।

सतत विकास कार्यक्रम :

वित्तीय लक्ष्य:

विकसित देश सरकारी विकास सहायता का अपना लक्ष्य प्राप्त कर, अपनी सकल राष्ट्रीय आय का ०.७%, विकासशील देशों को तथा ०.१५% से ०.२०% सबसे कम विकसित राष्ट्रों को दें। विकासशील देश एकाधिक स्रोत से साधन जुटाएँ तथा समन्वित नीतियों द्वारा दीर्घिकालिक ऋण संवहनीयता प्राप्त कर अत्यधिक ऋणग्रस्त निर्धन देशों पर ऋण बोझ कम कर निवेश संवर्धन को करें।

तकनीकी लक्ष्य:

विकसित, विकासशील व अविकसित देशों के मध्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी, तकनालोजी व नवाचार सुलभ कर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना। वैश्विक तकनॉलॉजी तंत्र का विकास करना। परस्पर सहमति पर रियायती और वरीयता देते हुए हितकारी शर्तों पर पर्यावरण अनुकूल तकनोलॉजी का विकास, हस्तांतरण, प्रसार व समन्वय करना। तकनोलॉजी बैंक बनाकर सामर्थ्यवान तकनोलॉजी का प्रयोग बढ़ाना।

क्षमता निर्माण तथा व्यापार :

विकाशील देशों में लक्ष्य क्षमता निर्माण कर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना। राष्ट्रीय योजनाओं को समर्थन दिलाना। विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत सार्वभौम, नियमाधारित, भेदभावहीन, खुली और समान बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को प्रोत्साहित करना। विकासशील देशों के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि कर, सबसे कम देशों की भागीदारी दोगुनी करना। सबसे कम विकसित देशों को शुल्क और कोटा मुक्त बाजार प्रवेश सुविधा देना, पारदर्शी व् सरल व्यापार नियम बनाकर बाजार में प्रवेश सरल बनाना।

नीतिगत-संस्थागत सामंजस्य:

सतत विकास हेतु वैश्विक वृहद आर्थिक स्थिरता वृद्धि हेतु नीतिगत-संस्थागत सामंजस्य बनाना। गरीबी मिटाने हेतु पारस्परिक नीतिगय क्षमता और नेतृत्व का सम्मान करना। सभी देशों के साथ सतत विकास लक्ष्य पाने में सहायक बहुहितकारी भागीदारियाँ कर विशेषज्ञता, तकनोलॉजी, तहा संसाधन जुटाना। प्रभावी सार्वजनिक व् निजी संसाधन जुटाना। सबसे कम विकसित, द्वीपीय व विकासशील देशों के लिए क्षमता निर्माण समर्थन बढ़ाना। २०३० तक सकल घेरलू उत्पाद के पूरक प्रगति के पैमाने विकसित करना।

स्थायी विकास लक्ष्य : केंद्र के प्रयास

सतत् विकास लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए खरबों डॉलर के निजी संसाधनों की काया पलट ताकत जुटाने, पुनःनिर्देशित करने और बंधन मुक्‍त करने हेतु तत्‍काल कार्रवाई करने, विकासशील देशों में संवहनीय ऊर्जा, बुनियादी सुविधाओं, परिवहन - सूचना - संचार प्रौद्योगिकी आदि महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश सहित दीर्घकालिक निवेश जुटाने के साथ सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के लिए एक स्‍पष्‍ट दिशा निर्धारित करनी है। इस हेतु सहायक समीक्षा वझ निगरानी तंत्रों के विनियमन और प्रोत्‍साहक संरचनाओं हेतु नए साधन जुटाकर निवेश आकर्षित कर सतत विकास को पुष्‍ट करना प्राथमिक आवश्यकता है।

सर्वोच्‍च ऑडिट संस्‍थाओं, राष्‍ट्रीय निगरानी तंत्र और विधायिका द्वारा निगरानी के कामकाज को अविलंब पुष्‍ट किया जाना है। हमारे मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढाओ, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री ग्रामीण और शहरी आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, डिजिटल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, स्किल इंडिया और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शामिल हैं। इसके अलावा अधिक बजट आवंटनों से बुनियादी सुविधाओं के विकास और गरीबी समाप्त करने से जुड़े कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

भारत सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने तथा इसके समन्वय की जिम्मेदारी नीति आयोग को, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा प्रस्तावित संकेतकों की वैश्विक सूची से उपयोगी संकेतकों की पहचान कर राष्ट्रीय संकेतक तैयार करने का कार्य सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को सौंपा है।

न्यूयार्क में जुलाई, २०१७ में आयोजित हुए उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (एचएलपीएफ) पर अपनी पहली स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (वीएनआर) प्रस्तुत कर भारत सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के सफल कार्यान्वयन को सर्वोच्च महत्व दिया।

राज्यों की भूमिका :

भारत के संविधान केंद्रों और राज्यों के मध्य राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक शक्ति संतुलन के अनुरूप राज्यों में विभिन्न राज्य स्तरीय विकास योजनायें कार्यान्वित की जा रही हैं। इन योजनाओं का सतत विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल है। केंद्र और राज्य सरकारों को सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन में आनेवाली विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला मिलकर करना है। भारतीय संसद विभिन्न हितधारकों के साथ सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए सक्रिय है।

अध्यक्षीय शोध संस्थान(एसआरआई)

सतत विकास लक्ष्यों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सांसदों और विशेषज्ञों के मध्य विमर्श हेतु है। नीति आयोग सतत विकास लक्ष्यों पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर परामर्श शृंखलाएँ आयोजित कर विशेषज्ञों, विद्वानों, संस्थाओं, सिविल सोसाइटियों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और केंद्रीय मंत्रालयों राज्य सरकारों व हितधारकों के साथ गहन विचार-विमर्श कर रहा है। पर्यावरण संरक्षण व संपूर्ण विकास हेतु जन आकांक्षा पूर्ण करने हेतु राष्ट्रीय, राज्यीय, स्थानीय प्रशासन तथा जन सामान्य द्वारा सतत समन्वयकर कार्य किये जा रहे हैं।

जन सामान्य की भूमिका :

भारत के संदर्भ में दृष्टव्य है कि सतत स्थाई कार्यक्रमों की प्रगति में जान सामान्य की भूमिका नगण्य है। इसका कारण उनका समन्वयहीन धार्मिक-राजनैतिक संगठनों से जुड़ाव, प्रशासन तंत्र में जनमत और जनहित के प्रति उपेक्षा, व्यापारी वर्ग में येन-केन-प्रकारेण अधिकतम लाभार्जन की प्रवृत्ति तथा संपन्न वर्ग में विपन्न वर्ग के शोषण की प्रवृत्ति का होना है।

किसी लोकतंत्र में सब कुछ तंत्र के हाथों में केंद्रित हो तो लोक में निराशा होना स्वाभाविक है। सतत विकास नीतियाँ गाँधी के 'आखिरी आदमी' अर्थात सबसे कमजोर को उसकी योग्यता और सामर्थ्य के अनुरूप आजीविका साधन उपलब्ध करा सकें तभी उनकी सार्थकता है।

सरकारी अनुदान आश्रित जनगण कमजोर और तंत्र द्वारा शोषित होता है। भारत के राजनीतिक नेतृत्व को दलीय हितों पर राष्ट्रीय हितों को वरीयता देकर राष्ट्रोन्नयनपरक सतत विकास कार्यों में परस्पर सहायक होना होगा तभी संविधान की मंशा के अनुरूप लोकहितकारी नीतियों का क्रियान्वय कर मानव ही नहीं, समस्त प्राणियों और प्रकृति की सुरक्षा और विकास का पथ प्रशस्त सकेगा।

आजादी का अमृत महोत्सव हम सबके लिए अवसर भी है और चुनौती भी। दृढ़ संकल्प के साथ एकता कायम रखते हुए बढ़ते रहे तो भविष्य हमारा वंदन करेगा।

कोरोना कालीन त्रासदी का डटकर मुकाबला करते हुए भारत ने कोरोना वैक्सीन वितरण के माध्यम से वैश्विक संकट से जूझने में जो भूमिका निभाई है, वह अविस्मरणीय है।

भारतीय स्वतंत्रता का वैशिष्ट्य

आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हमें संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करना सीखना होगा। भारतीय स्वतंत्रता का वैशिष्ट्य नागरिक समता, पंथ निरपेक्षता, बहुदलीयता, स्त्री-पुरुष समानता, मताधिकार, विधायिका, न्यायपालिका तथा कार्यपालिका की स्वायत्तता और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य की दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ रक्षा करना होगी।
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संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४,
ईमेल : salil.sanjiv@gmail.com

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