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शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

द्विपदियाँ, शे'र

द्विपदियाँ, शे'र
इस दिल की बेदिली का आलम न पूछिए
तूफ़ान सह गया मगर क़तरे में बह गया
*
दिलदारों की इस बस्ती में दिलवाला बेमौत मारा
दिल के सौदागर बन हँसते मिले दिलजले हमें यहाँ
*
दिल पर रीझा दिल लेकिन बिल देख नशा काफूर हुआ
दिए दिवाली के जैसे ही बुझे रह गया शेष धुँआ
*
दिलकश ने ही दिल दहलाया दिल ले कर दिल नहीं दिया
बैठ है हर दिल अज़ीज़ ले चाक गरेबां नहीं सिया
*
३०-१०-२०१४

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