दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
pakistan. atankvad लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
pakistan. atankvad लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मंगलवार, 6 अप्रैल 2010
ख़बरदार कविता: सानिया-शोएब प्रकरण: संजीव 'सलिल'
छोड़ एक को दूसरे का थामा है हाथ.
शीश झुकायें या कहों तनिक झुकायें माथ..
कोई किसी से कम नहीं, ये क्या जानें प्रीत.
धन-प्रचार ही बन गया, इनकी जीवन-रीत..
निज सुविधा-सुख साध्य है, सोच न सकते शेष.
जिसे तजा उसकी व्यथा, अनुभव करें अशेष..
शक शंका संदेह से जहाँ हुई शुरुआत.
वहाँ व्यर्थ है खोजना, किसके क्या ज़ज्बात..
मिला प्रेस को मसाला, रोज उछाला खूब.
रेटिंग चेनल की बढ़ी, महबूबा-महबूब.
बात चटपटी हो रही, नित्य खुल रहे राज़.
जैसे पट्टी चीरकर बाहर झाँके खाज.
'सलिल' आज फिर से हुआ, केर-बेर का संग.
दो दिन का ही मेल है, फिर देखेंगे जंग..
******************************
चिप्पियाँ Labels:
-acharya sanjiv 'salil',
/samyik hindi kavya,
cricket,
great indian bustard,
lawn tennis,
pakistan. atankvad,
POETRY :BHARAT bharat mata - sanjiv 'salil',
saniya mirza,
shoeb akhtar
सोमवार, 5 अप्रैल 2010
खबरदार कविता: हमारी सरहद पर इंच-इंच कर कब्ज़ा किया जा रहा है --सलिल
खबरदार कविता:
खबर: हमारी सरहद पर इंच-इंच कर कब्ज़ा किया जा रहा है.
दोहा गजल:
संजीव 'सलिल'
कदम-कदम घुस रहा है, कर सरहद को पार.
हर हद को छिप-तोड़कर, करे पीठ पर वार..
*
करे प्यार से घात वह, हमें घात से प्यार.
बजा रहे हैं गाल हम, वह साधे हथियार..
*
बेहयाई से हम कहें, अब रुक भी जा यार.
घुस-घुस घर में मरता, वह हमको हर बार..
*
संसद में मतभेद क्यों?, हों यदि एक विचार.
कड़े कदम ले सके तब, भारत की सरकार.
*
असरकार सरकार क्यों?, हुई न अब तक यार.
करता है कमजोर जो, 'सलिल' वही गद्दार..
*
अफसरशाही राह का, रोड़ा- क्यों दरकार?
क्यों सेना में सियासत, रोके है हथियार..
*
दें जवाब हम ईंट का, पत्थर से हर बार.
तभी देश बच पायेगा, चेते अब सरकार..
*
मानवता के नाम पर, रंग जाते अखबार.
आतंकी मजबूत हों, थाम जाते हथियार..
*
खबर: हमारी सरहद पर इंच-इंच कर कब्ज़ा किया जा रहा है.
दोहा गजल:
संजीव 'सलिल'
कदम-कदम घुस रहा है, कर सरहद को पार.
हर हद को छिप-तोड़कर, करे पीठ पर वार..
*
करे प्यार से घात वह, हमें घात से प्यार.
बजा रहे हैं गाल हम, वह साधे हथियार..
*
बेहयाई से हम कहें, अब रुक भी जा यार.
घुस-घुस घर में मरता, वह हमको हर बार..
*
संसद में मतभेद क्यों?, हों यदि एक विचार.
कड़े कदम ले सके तब, भारत की सरकार.
*
असरकार सरकार क्यों?, हुई न अब तक यार.
करता है कमजोर जो, 'सलिल' वही गद्दार..
*
अफसरशाही राह का, रोड़ा- क्यों दरकार?
क्यों सेना में सियासत, रोके है हथियार..
*
दें जवाब हम ईंट का, पत्थर से हर बार.
तभी देश बच पायेगा, चेते अब सरकार..
*
मानवता के नाम पर, रंग जाते अखबार.
आतंकी मजबूत हों, थाम जाते हथियार..
*
चिप्पियाँ Labels:
गजल,
दोहा,
भारत,
संजीव 'सलिल',
acharya sanjiv verma 'salil',
bharat,
border,
china,
navgeet,
pakistan. atankvad,
samyik hindi kavita,
sanjiv 'salil',
sarhad,
terrorism
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)


