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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

मुक्तिका: वेद की ऋचाएँ. संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
वेद की ऋचाएँ.
संजीव 'सलिल'
*
बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ.
सारिकाएँ विहँस गुनगुनाएँ..

शुक पंडित श्लोक पढ़ रहे हैं.
मन्त्र कहें मधुर दस दिशाएँ..

बौरा ने बौरा कर देखा-
गौरा से न्यून अप्सराएँ..

महुआ कर रहा द्वार-स्वागत.
किंशुक मिल वेदिका जलाएँ..

कर तल ने करतल हँस थामा
सिहर उठीं देह, मन, शिराएँ..

सप्त वचन लेन-देन पावन.
पग फेरे सप्त मिल लगाएँ.

ध्रुव तारा देख पाँच नयना
मधुर मिलन गीत गुनगुनाएँ.

*****