मुक्तिका:
वेद की ऋचाएँ.
संजीव 'सलिल'
*
बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ.
सारिकाएँ विहँस गुनगुनाएँ..
शुक पंडित श्लोक पढ़ रहे हैं.
मन्त्र कहें मधुर दस दिशाएँ..
बौरा ने बौरा कर देखा-
गौरा से न्यून अप्सराएँ..
महुआ कर रहा द्वार-स्वागत.
किंशुक मिल वेदिका जलाएँ..
कर तल ने करतल हँस थामा
सिहर उठीं देह, मन, शिराएँ..
सप्त वचन लेन-देन पावन.
पग फेरे सप्त मिल लगाएँ.
ध्रुव तारा देख पाँच नयना
मधुर मिलन गीत गुनगुनाएँ.
*****
वेद की ऋचाएँ.
संजीव 'सलिल'
*
बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ.
सारिकाएँ विहँस गुनगुनाएँ..
शुक पंडित श्लोक पढ़ रहे हैं.
मन्त्र कहें मधुर दस दिशाएँ..
बौरा ने बौरा कर देखा-
गौरा से न्यून अप्सराएँ..
महुआ कर रहा द्वार-स्वागत.
किंशुक मिल वेदिका जलाएँ..
कर तल ने करतल हँस थामा
सिहर उठीं देह, मन, शिराएँ..
सप्त वचन लेन-देन पावन.
पग फेरे सप्त मिल लगाएँ.
ध्रुव तारा देख पाँच नयना
मधुर मिलन गीत गुनगुनाएँ.
*****