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शुक्रवार, 26 मई 2017

muktika

मुक्तिका
तेरे लिए
(१९ मात्रिक महापौराणिकजातीय आनंदवर्धक छंद)
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जी रहा हूँ श्वास हर तेरे लिए
पी रहा हूँ प्यास हर तेरे लिए
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हर ख़ुशी-आनंद है तेरे लिए
मीत! मेरा छंद है तेरे लिए
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मधुर अनहद नाद है तेरे लिए
भोग, रसना, स्वाद है तेरे लिए
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वाक् है, संवाद है तेरे लिए
प्रभु सुने फ़रियाद है तेरे लिए
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जिंदगी का भान है तेरे लिए
बन्दगी में गान है तेरे लिए
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सावनी जलधार है तेरे लिए
फागुनी  सिंगार है तेरे लिए
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खिला हरसिंगार है तेरे लिए
सनम ये भुजहार है तेरे लिए
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शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

gazal

एक बहर दो ग़ज़लें 
बहर - २१२२  २१२२  २१२
छन्द- महापौराणिक जातीय, पीयूषवर्ष छंद   
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महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश  

बस दिखावे की तुम्हारी प्रीत है
ये भला कोई वफ़ा की रीत है

साथ बस दो चार पल का है यहाँ
फिर जुदा हो जाए मन का मीत है

ज़िंदगी की असलियत है सिर्फ़ ये
चार दिन में जाए जीवन बीत है

फ़िक्र क्यों हो इश्क़ के अंजाम की
प्यार में क्या हार है क्या जीत है

​​
कब ख़लिश चुक जाए ये किसको पता
ज़िंदगी का आखिरी ये गीत है.
 *
संजीव 

हारिए मत, कोशिशें कुछ और हों 
कोशिशों पर कोशिशों के दौर हों  
*
श्याम का तन श्याम है तो क्या हुआ?
श्याम मन में राधिका तो गौर हों 
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जेठ की गर्मी-तपिश सह आम में 
पत्तियों संग झूमते हँस बौर हों 
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साँझ पर सूरज 'सलिल' है फिर फ़िदा 
साँझ के अधरों न किरणें कौर हों 
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'हाय रे! इंसान की मजबूरियाँ / पास रहकर भी हैं कितनी दूरियाँ' गीत इसी बहर में है।