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शुक्रवार, 25 मार्च 2016

aanuwanshik vivah

स्वास्थ्य और समाज-
मुस्लिम बहुल देश ताजिकिस्तान में आनुवंशिक विवाह प्रतिबंधित  

मुस्लिम समाज में आनुवंशिक विवाह (चचेरे, फुफेरे, ममेरे, मौसेरे भाई-बहनों में विवाह) की परंपरा चिर काल से है सनातन धर्मियों में एक परिवार, एक खानदान, एक वंश, एक कुल, एक गोत्र, एक गाँव, एक गुरुकुल के युवाओं में तथा अपने से उच्च वर्ण की कन्या से  विवाह विविध समय में वर्जित रहे हैं पिताक्षर प्रणाली के अनुसार पिता की ७ पीढ़ियों तथा मिताक्षर प्रणाली के अनुसार मत की ५ पीढ़ियों में विवाह वर्जित बताया गया है आदिवासी समाज में भी समगोत्रीय विवाह वर्जित रहे हैं। ईसाई भी आनुवांशिक विवाह उचित नहीं मानते। 


भारत में विविध कारणों से विवाह सम्बन्धी नियम भंग करने के अनेक अपवाद हैं किन्तु उनके परिणाम अधिकतर दुखद रहे हैं विवाह नियमों को लेकर समाजशास्त्र, विधिशास्त्र, नीतिशास्त्र तथा धर्मशास्त्र में चर्चा स्वाभाविक है विवाह में मन का मिलन हो न हो,  तन का मिलन तो होता ही है और उसका परिणाम संतान उत्पत्ति के रूप में सामने आता है। इसलिए आनुवंशिकी (जिनेटिक्स साइंस) के अंतर्गत विविध विवाह प्रणालियों एवं उनके परिणामों का अध्ययन किया जाता है 



   

ताज़िकिस्तान चीन, अफगानिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान से घिरा हुआ, मध्य एशिया का सबसे गरीब देश है आनुवंशिकी विवाह पर रोक लगाने के ताज़िकिस्तान के फैसले ने दुनिया को चौंकाया और मुस्लिम बहुल देशों व इस्लाम धर्मावलम्बियों के बीच बहस को तेज किया है१३जनवरी २०१६ को ताज़िकिस्तानी संसद ने देश में कॉन्सेंग्युनियस विवाह (आनुवंशिक या रक्त संबंधियों से विवाह) पर प्रतिबंध लगाकर दुनिया को चकित कर दिया। दुनिया के मुस्लिम बहुल देशों में कॉन्सेंग्युनियस विवाह मजहब तथा समाज से सामान्यत: स्वीकृत प्रथा हैताज़िकिस्तानी स्वास्थ्य विभाग ने माना है कि कॉन्सेंग्युनियस विवाह से पैदा होने वाले बच्चों में आनुवंशिक रोग होने की संभावनाएँ अधिक होती हैं एक अध्ययन के अनुसार २५ हजार से अधिक विकलांग बच्चों का पंजीकरण और उनका अध्ययन करने के बाद इनमें से ३५% आनुवंशिक विवाह से उत्पन्न पाये गये हैं

एशिया, उत्तरी अफ्रीका, स्विट्ज़रलैंड, मध्यपूर्व, और चीन, जापान और भारत के कई क्षेत्रों में कॉन्सेंग्युनियस सामान्यत: प्रचलित हैं कई देशों में आनुवंशिक विवाह आंशिक रूप से प्रतिबंधित है कुछ अमरीकी राज्यों में संतान उत्पत्ति में असमर्थ अथवा ६५ वर्ष से अधिक उम्र के पश्चात अनुवांशिक विवाह की अनुमति है ब्रिटेन में पाकिस्तानी मूल के ३% बच्चे जन्म लेते हैं किन्तु १३% आनुवंशिक रोग से पीड़ित हैं। अध्ययनों के अनुसार आनुवंशिक संतानों में आनुवंशिक रोगों की संभावनाएँ कई गुना अधिक होती हैं ब्रिटेन के ब्रैडफोर्ड में किये गये अध्ययन के अनुसार कुल जनसंख्या में से १७% पाकिस्तानी मुस्लिमों में से ७५% प्रतिशत अपने समुदाय में चचेरे, ममेरे, फुफेरे, मौसेरे भाई/बहनों से विवाह करते हैंइनके बच्चों में से कई आनुवंशिक रोगों से ग्रस्त हैं
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दक्षिण भारत में आनुवंशिक विवाह प्रथा के कारण बच्चों में कई तरह के रोग हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत इस विषय पर शोधरत  आंध्र प्रदेश निवासी बिंदु शॉ के अनुसार भारत में ऐसे शोध नगण्य हैं। बिंदु ने आनुवंशिक विवाह करनेवाले २०० परिवारों का अध्ययन किया जिनमें से ९७ परिवारों के बच्चे आनुवंशिक रोग से पीड़ित थे चचेरे, ममेरे, फुफेरे, मौसेरे भाई/बहनों से विवाह की तुलना में मामा से शादी होने पर बच्चों में इस तरह के विकार अधिक संभावित हैं।इस शोध के अनुसार अपने रक्तसंबंधियों से विवाह करने पर पति-पत्नी दोनों के कई जीन एक समान होते हैं माता-पिता के जीन में कोई विकार हो तो उनके बच्चे में पहुँची विकृत जीन की दो प्रतियाँ आनुवंशिक रोग का कारण बनती हैं समुदाय से बाहर शादी होने पर जीन की भिन्नता के कारण बच्चों में विकृत जीन पहुँचने की संभावना नगण्य होती है। बिंदु के निकट संबंधी ऐसे विवाहों के कारण आनुवंशिक रोगों का शिकार हुए जिससे उन्हें इस विषय पर शोध की प्रेरणा मिली। 

आनुवंशिक विवाह के कई दुष्परिणामों जानने के बाद भी इनके प्रचलन का कारण धार्मिक मान्यताओं से ज्यादा सामाजिक पहलू हैं संबंधियों से शादी होने पर संपत्ति का विभाजन न होना, लड़कियों की सुरक्षा तथा समान रीति-रिवाज़, खान-पान, जीवन शैली व त्यौहार आदि से ताल-मेल में सहजता भी इसके कारण हैं बच्चे बहुत छोटी उम्र से ही अपने चचेरे, ममेरे, फुफेरे, मौसेरे भाई-बहनों के साथ मिलते-जुलते, खेलते-कूदते और साथ-साथ बड़े होते हैं उनकी आपसी समझ अच्छी होती है। आनुवंशिक विवाह वर्जित माननेवाले समुदायों में बच्चों में अनुराग भाव विकसित नहीं होता, राखी और भाई दूज जैसे पर्व सनातनधर्मियों में वंश से बाहर के युवाओं में विवाह संबंध अमान्य कर देते हैं। आनुवंशिक विवाह माननेवाले परिवारों के बच्चों में अन्य चचेरे, ममेरे, फुफेरे, मौसेरे भाई-बहनों के प्रति लगाव पनपना स्वाभाविक है  
   
ताजिकिस्तान में लिए गए निर्णय के विरोधी आनुवंशिक विवाह के पक्षधर अनुवांशिक विवाहों से आनुवांशिक रोगों संबंधी तथ्य को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया मानते हुए और अधिक आंकड़े चाहते हैं।इनके अनुसार आनुवंशिक विवाह से होने वाले बच्चों के बीमार होने की उतनी ही संभावना ४० वर्ष से अधिक उम्र की महिला के माँ बनने पर उसके बच्चे के बीमार होने के समान होती हैं।इनकी आपत्ति है कि जब किसी ४० वर्ष से अधिक उम्र की महिला के माँ बनने पर रोक नहीं है तो फिर आनुवंशिक विवाह पर रोक क्यों हो? चिकित्सा विज्ञान के जानकार ताजिकिस्तान के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

sharmnaak

शर्म हमको मगर नहीं आती

Photo: Prince Kumawat हिन्दू हो, कुछ प्रतिकार करो, तुम भारत माँ के क्रंदन का !
यह समय नहीं है, शांति पाठ और गाँधी के अभिनन्दन का !!
यह समय है शस्त्र उठाने का, गद्दारों को समझाने का !
शत्रु पक्ष की धरती पर, फिर शिव तांडव दिखलाने का !!
यह समय है हर एक हिन्दू के, राणा प्रताप बन जाने का !
इस हिन्दुस्थान की धरती पर, फिर भगवा ध्वज फहराने का !!
जब शस्त्रों से परहेज तुम्हे, तोराम-राम क्यों जपते हो !
क्या जंग लगी तलवारों में, जो इतने दुर्दिन सहते हो !!
साभार :- प्रिन्स कुमावत

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

कहो गर्व से हिन्दू हैं-- सचिन श्रीवास्तव

कहो गर्व से हिन्दू हैं--
सचिन श्रीवास्तव 

अक्सर हम हिन्दू लोगों को बरगलाने के लिए..... हमें यह सिखाया जाता है कि.... "हिन्दू" शब्द..... हमें.... मुस्लिमों या फिर कहा जाए तो.... अरब वासियों  ने दिया  है...!

दरअसल... ऐसी बातें करने के पीछे कुछ स्वार्थी तत्वों का मकसद यह रहा होगा कि..... हिन्दू ..... अपने लिए "हिन्दू" शब्द  सुनकर..... खुद में ही अपमानित  महसूस करें..... और, हिन्दुओं में आत्मविश्वास नहीं आ पाए..... फिर.... हिन्दुओं को खुद पर गर्व करने या ..... दुश्मनों के विरोध की क्षमता जाती रहेगी ...!

और, बहुत दुखद है कि..... समुचित ज्ञान के अभाव में.... बहुत सारे हिन्दू भी... उसकी ऐसी ... बिना सर-पैर कि बातों को सच मान बैठे हैं..... और, खुद को हिन्दू कहलाना पसंद नहीं करते हैं..... जबकि, सच्चाई इसके बिल्कुल ही उलट है...!

हिन्दू शब्द.... हमारे लिए... अपमान का नहीं बल्कि ... गौरव की बात है...... और, हमारे प्राचीन ग्रंथों एक बार नहीं.... बल्कि, बार-बार "हिन्दू शब्द" गौरव के साथ  प्रयोग हुआ हुआ है....!

वेदों और पुराणों में हिन्दू शब्द का सीधे -सीधे उल्लेख इसीलिए नहीं पाया जाता है कि.... वे बेहद प्राचीन ग्रन्थ हैं.... और, उस समय हिन्दू सनातन धर्म के अलावा और कोई भी धर्म नहीं था...... जिस कारण.... उन ग्रंथों में .. सीधे -सीधे ... हिन्दू शब्द का उपयोग बेमानी था..!

साथ ही.... वेद .. पुराण जैसे ग्रन्थ.... मानव कल्याण के लिए हैं.... हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई ... जैसे क्षुद्र सोच उस समय नहीं थे.... इसीलिए ... उन ग्रंथों में .... हिन्दू शब्द पर ज्यादा दवाब  नहीं दिया है... लेकिन प्रसंगवश .. हिन्दू और हिन्दुस्थान शब्द का उल्लेख वेदों में भी है..!

@@@@  ऋग्वेद  में एक ऋषि का नाम "सैन्धव" था जो बाद में "हैन्दाव/ हिन्दव" नाम से प्रचलित हुए... जो बाद में अपभ्रंश   होकर ""हिन्दू"" बन गया..!

@@@@  साथ ही.... ऋग्वेद के ही ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द इस प्रकार आया है...
हिमालयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।
( अर्थात....हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिन्दुस्थान कहते हैं )

@@@@  सिर्फ वेद ही नहीं ... बल्कि..  मेरु तंत्र ( शैव ग्रन्थ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है....
'हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये'
( अर्थात... जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)

@@@@  इतना ही नहीं.... लगभग यही मंत्र यही मन्त्र शब्द कल्पद्रुम में भी दोहराई गयी है.....
'हीनं दूषयति इति हिन्दू '
( अर्थात... जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)

@@@@  पारिजात हरण में"हिन्दू" को कुछ इस प्रकार कहा गया है |
हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टम
हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिंदुरभिधियते ।।

@@@@  माधव दिग्विजय में हिन्दू शब्द इस प्रकार उल्लेखित है ....
ओंकारमंत्रमूलाढ ्य पुनर्जन्म दृढाशयः ।
गोभक्तो भारतगुरूर्हिन्द ुर्हिंसनदूषकः ॥
( अर्थात ... वो जो ओमकार को ईश्वरीय ध्वनि  माने... कर्मो पर विश्वास  करे, गौ पालक रहे... तथा .... बुराइयों को दूर रखे.... वो हिन्दू है )

@@@ और तो और.... हमारे ऋग्वेद (८:२:४१) में 'विवहिंदु' नाम के
राजा का वर्णन है.... जिसने 46000 गाएँ  दान में दी थी..... विवहिंदु बहुत पराक्रमी और दानी राजा था..... और,  ऋग वेद मंडल 8  में भी उसका वर्णन है|

#### सिर्फ इतना ही नहीं.... हमारे धार्मिक ग्रंथों के अलावा भी अनेक जगह पर हिन्दू शब्द उल्लेखित है....

*** (656 -661  ) इस्लाम के चतुर्थ खलीफ़ा अली बिन अबी तालिब लिखते हैं कि ....... वह भूमि जहां पुस्तकें सर्वप्रथम लिखी गईं, और जहां से विवेक तथा ज्ञान की‌ नदियां प्रवाहित हुईं, वह भूमि हिन्दुस्तान है। (स्रोत : 'हिन्दू मुस्लिम कल्चरल अवार्ड ' - सैयद मोहमुद. बाम्बे 1949.)

***  नौवीं सदी  के मुस्लिम इतिहासकार अल जहीज़ लिखते हैं..... "हिन्दू ज्योतिष शास्त्र में, गणित, औषधि विज्ञान, तथा विभिन्न विज्ञानों में श्रेष्ठ हैं।
मूर्ति कला, चित्रकला और वास्तुकला का उऩ्होंने पूर्णता तक विकास किया है।
उनके पास कविताओं, दर्शन, साहित्य और नीति विज्ञान के संग्रह हैं।

भारत से हमने कलीलाह वा दिम्नाह नामक पुस्तक प्राप्त की है।

इन लोगों में निर्णायक शक्ति है, ये बहादुर हैं। उनमें शुचिता, एवं शुद्धता के सद्गुण हैं।

मनन वहीं से शुरु हुआ है।

@@@@ इस तरह हम देखते हैं कि.... इस्लाम के जन्म से हजारों-लाखों साल पूर्व से हिन्दू शब्द प्रचलन में था.... और, हिन्दू तथा हिन्दुस्थान शब्द ... पूरी दुनिया में आदर सूचक एवं सम्मानीय शब्द था...!

साथ ही इन प्रमाणों से बिल्कुल ही  स्पष्ट है कि.... हिन्दू शब्द ना सिर्फ हमारे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित है ... बल्कि... हिन्दू  धर्म और संस्कृति  हर क्षेत्र में उन्नत था.... साथ ही , हमारे पूर्वज काफी बहादुर थे और उनमे निर्णायक शक्ति थी... जिस कारण विधर्मियों की..... हिन्दू और हमारे हिंदुस्तान के नाम से ही फट जाती थी..... जिस कारण उन्होंने ये अरब वाली कहानी फैला रखी है...!

इसीलिए मित्रों..... सेकुलरों और धर्मभ्रष्ट अवं पथभ्रष्ट लोगों कि नौटंकियों पर ना जाएँ..... और " गर्व से कहो, हम हिन्दू हैं " ।

जय महाकाल...!!!

(स्रोत : हिन्दू ग्रन्थ एवं द विज़न आफ़ इंडिया - पेज 226  )

हम हिन्दू लोगों को बरगलाने के लिए सिखाया जाता है कि "हिन्दू" शब्द हमें मुस्लिमों या अरबवासियों ने दिया है. इसके पीछे कुछ स्वार्थी तत्वों का मकसद यह रहा होगा कि हिन्दू अपने लिए "हिन्दू" शब्द सुनकर खुद में ही अपमानित महसूस करें और हिन्दुओं में आत्मविश्वास नहीं आ पाए  फिर  हिन्दुओं को खुद पर गर्व करने या दुश्मनों के विरोध की क्षमता जाती रहेगी. बहुत दुखद है कि समुचित ज्ञान के अभाव में बहुत सारे हिन्दू ऐसी बिना सर-पैर कि बातों को सच मान बैठे हैं  और खुद को हिन्दू कहलाना पसंद नहीं करते जबकि, सच्चाई इसके बिल्कुल ही उलट है.

हिन्दू शब्द हमारे लिए अपमान का नहीं बल्कि गौरव की बात है और हमारे प्राचीन ग्रंथों एक बार नहीं  बल्कि, बार-बार "हिन्दू शब्द" गौरव के साथ प्रयोग हुआ हुआ है. वेदों-पुराणों में हिन्दू शब्द का सीधे-सीधे उल्लेख इसीलिए नहीं पाया जाता है कि वे बेहद प्राचीन ग्रन्थ हैं, उस समय हिन्दू सनातन धर्म के अलावा और कोई भी धर्म नहीं था जिस कारण उन ग्रंथों में हिन्दू शब्द का उपयोग बेमानी था. वेद-पुराण जैसे ग्रन्थ मानव कल्याण के लिए हैं, हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई जैसी क्षुद्र सोच उस समय नहीं थी इसलिए उन ग्रंथों में हिन्दू शब्द पर ज्यादा दवाब नहीं दिया है लेकिन प्रसंगवश हिन्दू और हिन्दुस्थान शब्द का उल्लेख वेदों में भी है!

-- ऋग्वेद में एक ऋषि का नाम "सैन्धव" था जो बाद में "हैन्दाव/ हिन्दव" नाम से प्रचलित हुए जो बाद में अपभ्रंश होकर ""हिन्दू"" बन गया..!

--ऋग्वेद के ही ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द इस प्रकार आया है...
हिमालयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।
( अर्थात हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिन्दुस्थान कहते हैं )

-- मेरु तंत्र ( शैव ग्रन्थ) के अनुसार 'हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये'- जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं.

-- शब्द कल्पद्रुम में 'हीनं दूषयति इति हिन्दू ' जो अज्ञानता-हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहा गया है.

-- पारिजात हरण में"हिन्दू" को कुछ इस प्रकार कहा गया है-
हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टम
हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिंदुरभिधियते ।।

-- माधव दिग्विजय में हिन्दू शब्द इस प्रकार उल्लेखित है ....
ओंकारमंत्रमूलाढ ्य पुनर्जन्म दृढाशयः ।
गोभक्तो भारतगुरूर्हिन्द ुर्हिंसनदूषकः ॥
अर्थात जो ओमकार को ईश्वरीय ध्वनि माने, कर्मो पर विश्वास करे, गौ पालक हो, बुराइयाँ दूर रखे, हिन्दू है.

-- ऋग्वेद (८:२:४१) में 'विवहिंदु' नाम के राजा का वर्णन है जिसने 46000 गाएँ दान में दी थी विवहिंदु बहुत पराक्रमी और दानी राजा था और, ऋगवेद मंडल 8 में भी उसका वर्णन है|

-- धार्मिक ग्रंथों के अलावा भी अनेक जगह पर हिन्दू शब्द उल्लेखित है....

*** (656 -661 ) इस्लाम के चतुर्थ खलीफ़ा अली बिन अबी तालिब लिखते हैं वह भूमि जहां पुस्तकें सर्वप्रथम लिखी गईं, और जहां से विवेक तथा ज्ञान की‌ नदियां प्रवाहित हुईं, वह भूमि हिन्दुस्तान है। (स्रोत : 'हिन्दू मुस्लिम कल्चरल अवार्ड ' - सैयद मोहमुद. बाम्बे 1949.)

*** नौवीं सदी के मुस्लिम इतिहासकार अल जहीज़ लिखते हैं..... "हिन्दू ज्योतिष शास्त्र  गणित, औषधि विज्ञान, तथा विभिन्न विज्ञानों में श्रेष्ठ हैं।मूर्ति कला, चित्रकला और वास्तुकला का उऩ्होंने पूर्णता तक विकास किया है। उनके पास कविताओं, दर्शन, साहित्य और नीति विज्ञान के संग्रह हैं। भारत से हमने कलीलाह वा दिम्नाह नामक पुस्तक प्राप्त की है। इन लोगों में निर्णायक शक्ति है, ये बहादुर हैं। उनमें शुचिता, एवं शुद्धता के सद्गुण हैं। मनन वहीं से शुरु हुआ है।

-- इस्लाम के जन्म से हजारों-लाखों साल पूर्व से हिन्दू शब्द प्रचलन में था और हिन्दू तथा हिन्दुस्थान शब्द पूरी दुनिया में आदर सूचक एवं सम्मानीय शब्द थे.

(स्रोत : हिन्दू ग्रन्थ एवं द विज़न आफ़ इंडिया - पेज 226 )