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बुधवार, 15 मई 2013

lekh: pashchim kee vaigyanik unnati ke mool men hindu ank ganit dr. madhusudan





     पश्चिम की वैज्ञानिक उन्नति के मूल में है हिन्दू अंक गणित

डॉ. मधुसूदनroman                 
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मधुसूदनजी अभियांत्रिकी में एम.एस. तथा पी.एच.डी. हैं ,  प्रसिद्ध भारतीय-अमेरिकी शोधकर्ता, प्रखर हिन्दी विचारक है। संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती  संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) के  आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था युनिवर्सिटी ऑफ मॅसाच्युसेटस (UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS) में निर्माण अभियांत्रिकी के प्रोफेसर हैं।

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*डॉ. डेवीड ग्रे -(१)”वैज्ञानिक विकास में भारत हाशिये पर की टिप्पणी नहीं है।”
*(२)”वैश्विक सभ्यता में भारत का महान योगदान नकारता इतिहास विकृत है।”
*(३)सर्वाधिक विकसित उपलब्धियों की सूची, भारतीय चमकते तारों की. आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, महावीर, भास्कर, माधव के योगदानों की।”
**(४)”पश्चिम विशेषकर भारत का ऋणी रहा है।
*प्रो. स्टर्लिंग किन्नी –(५) “हिंदू अंकों के बिना, विज्ञान विकास बिलकुल असंभव।
(६) “किसी रोमन संख्या का वर्ग-मूल निकाल कर दिखाएँ।”
*लेखक: (७) *अंको के बिना, संगणक भी, सारा व्यवहार ठप हो जाएगा।

अनुरोध: अनभिज्ञ पाठक,पूर्ण वृत्तांत सहित जानने के लिए, शेष आलेख कुछ धीरे-धीरे आत्मसात करें। कुछ कठिन लग सकता है।

(एक)सारांश:
गत दो-तीन सदियों की पश्चिम की, असाधारण उन्नति का मूल अब प्रकाश में आ रहा है, कि, उस उन्नति के मूल में, हिन्दू अंकों का योगदान ही, कारण है।
इन अंकों का प्रवेश, पश्चिम में, अरबों द्वारा कराया होने के कारण, गलती से, उन्हें अरेबिक न्युमरल्स माना जाता रहा।
पर, वेदों में उल्लेख होने के कारण, और अन्य ऐतिहासिक प्रमाणों से (गत २-३ दशकों में) इस भ्रांति का निराकरण होकर अब स्वीकार किया जाता है, कि तथाकथित ये अरेबिक अंक, वास्तव में हिन्दू-अंक ही थे। साथ में एक-दो विद्वान भी, मान रहें हैं, कि, हमारी गणित की अन्य शाखाएं भी इस उत्थान में मौलिक योगदान दे रही थी।

(दो) हिंदु अंको के आगमन पूर्व:
हिंदु अंको के आगमन पूर्व, रोमन अंकों का उपयोग हुआ करता था। निम्न तालिका में कुछ उदाहरण दिए हैं; जो अंकों को लिखने की पद्धति दर्शाते हैं। आप ने घडी में भी, ऐसे रोमन अंक I, II, III, IV, V, VI, VII, VIII, IX, XI, XII देखे होंगे। ये क्रमवार, १,२,३,४,५,६,७,८,९,१०, ११. १२ के लिए चिह्न होते हैं।
बडी संख्याएँ, निम्न रीति से दर्शायी जाती हैं।
3179 =MMMCLXXIX, 3180=MMMCLXXX
3181 =MMMCLXXXI, 3182=MMMCLXXXII
3183 =MMMCLXXXIII, 3184 =MMMCLXXXIV
3185 =MMMCLXXXV, 3186 =MMMCLXXXVI
3187 =MMMCLXXXVII, 3188 =MMMCLXXXVIII
3189 =MMMCLXXXIX, 3190 =MMMCXC

रोमन अंको की कठिनाई थी; उनका जोड, घटाना, गुणाकार, भागाकार इत्यादि, जैसी सामान्य प्रक्रियाएं कठिन और कुछ तो असंभव ही होती थी। फिर वर्गमूल, घनमूल और अनेक गणनाएँ तो असंभव ही थी।
जिन्हें सन्देह हो, उन्हें, निम्न रोमन संख्याओं का गुणाकार कर के, देखना चाहिए।
(MMMCLXXXVIII) x{ MMMCLXXXVI} =?

वास्तव में ये हैं (३१८८)x(३१८६)= १०१५६९६८
एक मित्र जो तर्क-कुतर्क देने में आगे रहते हैं। उन्हें जब मैंने ऐसा प्रश्न पूछा, तो कुछ समय तो रोमन न्युमरल देखने लगे। पर फिर विषय को छोडकर, नया ही तर्क देना प्रारंभ किया। कहने लगे कि, यदि हम अंक ना देते, तो कोई और दे देता ! उस में कौनसा बडा तीर मार लिया?
सच्चाई को दृढता पूर्वक, अस्वीकार करने वाले, ऐसे ह्ठाग्रहियों को देखकर हँसी भी आती है, पर दुःख अधिक होता है, कि, हमारे ही बंधुओं की ऐसी बहुमति में हम, बदलाव कैसे लाएंगे? भारत का, दैवदुर्विपाक ही मानना पडेगा।

(तीन)इसमें कौन सी बडी बात है? ऐसा सोचनेवालों को अनुरोध करता हूँ। सोच कर बताइए कि, सारे संसार से हिंदु अंक हटा देने से क्या होगा?
अंग्रेज़ी में लिखे जानेवाले, 1.2.3.4 इत्यादि भी; जो, हिंदु अंकों की परम्परा से ही, उधार लिए गए हैं। साथ-साथ इन्हीं अंकों का अनुकरण करने वाली, किसी भी लिपि में लिखे गए, अंकों को हटा दीजिए। आज सारा शिक्षित विश्व हिंदू अंकों का ही अनुकरण करता है। उनकी लिपि केवल अलग होती है।
तो सारे संसार में, सैद्धान्तिक रूप से, एकमेव (दूसरे कोई नहीं) हिन्दू अंक ही रूढ हो चुके हैं। जी, हाँ। आज पूरे संसार में गिनती के लिए केवल हिंदु अंकों का ही अनुकरण होता है। हरेक देश में, दस की संख्या, निर्देशित करने के लिए उनके एक के चिह्न के साथ शून्य का प्रयोग [१०] होता है।
अंकों के चिह्न उनके अपने होते हैं, पर प्रणाली हिंदू अंकों का अनुकरण ही होती है। उन सभी अंकों को हटा दीजिए, तो क्या होगा? सोचिए।

उत्तर: महाराज! सारे कोषागार, धनागार, वाणिज्य व्यापार, विश्व विद्यालय, शालाएँ, जनगणना, उस पर आधारित जनतंत्र, और संगणक (कंप्युटर) भी ………… सारा का सारा जीवन व्यवहार ठप हो जाएगा। नहीं? क्या आप कोई “मैं ना मानूं, नामक-हठ-योगी” संप्रदाय के सदस्य तो नहीं ना?

(चार) ऐसा योगदान है, हिन्दू अंकों का-
ऐसा योगदान है, हिन्दू अंकोंका-और हिन्दु गणित का। जिसका लाभ बिना अपवाद संसार की सारी शिष्ट भाषाएँ और सारे देश ले ही रहे हैं।आपकी खिचडी अंग्रेज़ी भी। और सारे विज्ञान का विशालकाय विकास भी जिन गणनाओं के कारण हुआ है, वे
सारी हिंदु अंकों के गणित पर ही आधार रखती है। यही पद्धति उस विकास का कारण है।
इन्हीं अंकोपर उच्च गणित आधारित है, संगणक की सबसे ऊपर वाली कुंजियाँ भी, आप का, बँक का हिसाब, लंदन के राजमहल की संख्या, वॉशिंग्टन का पीन कोड, झिपकोड, आपका मोबाईल नम्बर, जिन लोगों को भारत तुच्छ देश लगता है, उनकी जन्म तिथि भी केवल एक और एक ही प्रणाली पर निर्भर करती है।
हिमालय के शिखर पर जाकर शिवजी का शंख फूँक कर सारे विश्व को कहने का मन करता है, हाँ, उन उधारी शब्दों पर जीवित अंग्रेज़ी के गुलामों को भी कहूंगा । और चुनौति दूंगा, कि इतनी भारतीयता के प्रति घृणा है, तो कोई और प्रणाली उत्पन्न करें। हिंदू अंकों का, वैदिक अंको का, भारतीय अंकों का प्रयोग ना करें।

(पाँच) कुछ प्रामाणिक पश्चिमी विद्वान भी हैं।
उनमें से एक थे, निर्माण अभियांत्रिकी की उच्च शिक्षा की पाठ्य पुस्तक के विद्वान लेखक, प्रोफेसर स्टर्लिंग किन्नी । जो रेन्सलिएर पॉलीटेक्निक इन्स्टिट्यूट में निर्माण अभियान्त्रिकी के प्रोफेसर थे।
वे कहते हैं, अपनी पाठ्य पुस्तक के ७ वें पन्नेपर। कि,
उद्धरण ==> “एक महत्वपूर्ण शोध प्रकाश में आया, जो, अरबों ने,लाया होने से अरबी अंक के नामसे जाना जाता है। वह है, हमारे अंक(नम्बर) जो, अमजीर, भारत में, (६०० इ. स.)में प्रयोजे जाते थे। ये अंक अरबी गणितज्ञों ने अपनाकर, युरप में फैलाए।, इस लिए, पश्चिम, उन्हें (गलतीसे) एरॅबिक अंक मानता था। इन हिंदू अंको की, उपयुक्तता रोमन अंकों (जो पहले थे) की अपेक्षा अत्यधिक है। और इन अंकों के बिना, आधुनिक विज्ञान का विकास बिलकुल (?)असंभव लगता है।”
“The advantage of these Hindu numbers over both the Greek and Roman system is very great, and it is quite unlikely that modern science could exist without them” आगे कहते हैं, कि,संदेह हो, तो किसी रोमन में लिखी, संख्या का वर्ग-मूल निकाल कर दिखाएँ।”<===उद्धरण अंत

(पाँच) दूसरे विद्वान, डेविड ग्रे
वे, “भारत और वैज्ञानिक क्रांति में”– लिखते हैं :
डॉ. डेवीड ग्रे
उद्धरण===>”पश्चिम में गणित का अध्ययन लम्बे समय से कुछ सीमा तक राष्ट्र केंद्रित, पूर्वाग्रहों से प्रभावित रहा है, एक ऐसा पूर्वाग्रह जो प्रायः बड़बोले जातिवाद के रूप में नहीं पर (पश्चिम-रहित) भारत के और अन्य सभ्यताओं के वास्तविक योगदान को नकारने या मिटाने के प्रयास के रूप में परिलक्षित होता है।
पश्चिम अन्य सभ्यताओं का विशेषकर भारत का ऋणी रहा है। और यह ऋण ’’पश्चिमी’’ वैज्ञानिक परंपरा के प्राचीनतम काल – ग्रीक सम्यता के युग से प्रारंभ होकर आधुनिक काल के प्रारंभ, पुनरुत्थान काल तक अबाधित रहा है – जब यूरोप अपने अंध-युग से जाग रहा था।”
इसके बाद डा. ग्रे भारत में घटित गणित के सर्वाधिक महत्वपूर्ण विकसित उपलब्धियों की सूची बनाते हुए भारतीय गणित के चमकते तारों का, जैसे आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, महावीर, भास्कर और माधव के योगदानों का संक्षेप में वर्णन करते हैं।
यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति के विकास में भारत का योगदान
अंत में वे बल पूर्वक कहते हैं -”यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति के विकास में भारत का योगदान केवल हाशिये पर लिखी जाने वाली टिप्पणी नहीं है जिसे आसानी से और अतार्किक रीति से, यूरोप केंद्रित पूर्वाग्रह के आडम्बर में छिपा दिया गया है। ऐसा करना इतिहास को विकृत करना है और वैश्विक सभ्यता में भारत के महानतम योगदान को नकारना है।”

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

संस्कृत बीज से अंग्रेज़ी शब्द डॉ. मधुसूदन

एक संस्कृत बीज से ७८ अंग्रेज़ी शब्द
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डॉ. मधुसूदन
अभागा(?) भारत

संसार का, कोई भी देश, भाषा की दृष्टि से भारत जैसा भाग्यवान नहीं है; पर साथ-साथ यह भी जान ले कि संसार का कोई भी देश भारत जैसा अभागा भी नहीं है, मानसिक गुलाम नहीं है, मतिभ्रमित नहीं है, हीन ग्रंथि से पीडित नहीं है, और पश्चिमी रंग में रँगा नहीं है। हम केवल आर्थिक दृष्टि से ही भ्रष्ट नहीं है, हमारी बुद्धि भी भ्रष्ट हो चुकी है। हम मूर्ख है, पागल है, इतने पागल कि, उसी पागलपन को बुद्धिमानी मानते हैं; और विवेकानंद जी के शब्दो में, उस पागलपन से छुडवाने के लिए हमें जो दवा पिलाने आता है, उसी को हम थप्पड मारते हैं।

जापान, इज़्राएल, चीन

जिसके पास कठिनातिकठिन चित्रमय भाषा है, वह जापान हमसे आगे है, जहाँ संसार भर के ३६ देशों से, अलग अलग भाषी लोग आकर बसे हैं, वह इसराएल भी, हम से आगे हैं। हिब्रु जानने से ही वहाँ नौकरी मिलती है। अब चीन भी हमसे आगे ही जा रहा है, आजकल ब्रह्मपुत्र पर बांध जो बना रहा है।
क्या भारत दुबारा परतंत्र हो जाएगा?
पर सच में, वैसे, अब भी हम स्वतंत्र कहाँ है?

Hebrew: If you speak it the jobs will come

Central Bureau of Statistics
According to data from the Central Bureau of Statistics, employment figures rise according to one’s level of Hebrew • 27 percent of the population struggle to fill out forms or write official letters in Hebrew • 36 languages spoken in Israel.

अंग्रेज़ी से अभिभूत गुलाम

अंग्रेज़ी से अभिभूत गुलाम भारतीयों की हीनता ग्रंथि पर प्रहार करने की दृष्टि से यह आलेख लिखा गया है। यदि यह विदित हो कि ७० से भी अधिक अंग्रेज़ी के शब्द संकृत की केवल एक ही धातु से निकले हैं, तो शायद अंगरेजी-भक्तों की हीनता की गठान ढीली होना प्रारंभ हो। ऐसी २०१२ धातु है। उनमें से, प्रायः ५०० से ७०० पर्याप्त उपयोगी है।

धातु स्था
कई धातु  हैं, जिनका संचार अंग्रेज़ी भाषा में सहज दिखता है। ऐसा ही अन्य युरोपीय भाषाओं में भी होगा  पर मुझे अन्य भाषाओं का ज्ञान विशेष नहीं है। आज एक ही धातु-बीज स्थालेते हैं, और उसका अंग्रेज़ी पर कितना गहरा प्रभाव है, वो देखने का प्रयास करते हैं।

अर्थ विस्तार की प्रक्रिया:

स्था तिष्ठति —-> का साधारण अर्थ है,खडा रहना–>एक जगह खडा रहने के लिए स्थिरता की आवश्यकता होने से,—> स्थिर रहना भी अर्थ में जुड गया। उसके लिए फिर परिश्रम पूर्वक–> डटे रहना भी अपेक्षित है। इसी प्रकार डटे रहने से आखिर तक—> बचे रहने का भी भाव जुड गया।—>प्रतीक्षा करने के लिए भी खडा रहना पडता है। साथ में—->विलम्ब करना तो साथ ही जुडा। ऐसे ही सोचते सोचते सभी अर्थ निष्पादित हो जाते हैं। उपर्युक्त १६ अर्थ तो संस्कृत के शब्दकोषों में ही दिए गए हैं।

स्था (१ उ. ) तिष्ठति-ते, के १६ अर्थ
१ खडा होना,
२ ठहरना, डटे रहना, बसना, रहना,
३ शेष बचना,
४ विलम्ब करना, प्रतीक्षा करना,
५ रूकना, उपरत होना, निश्चेष्ट होना,
६ एक ओर रह जाना
७ होना, विद्यमान होना, किसी भी स्थिति में होना
८ डटे रहना, आज्ञा मानना, अनुरूप होना
९. प्रतिबद्ध होना
१० निकट होना,
११ जीवित रहना, सांस लेना
१२ साथ देना, सहायता करना,
१३ आश्रित होना, निर्भर होना
१४ करना, अनुष्ठान करना, अपने आपको व्यस्त करना
१५ सहारा लेना, मध्यस्थ मान कर उसके पास जाना, मार्ग दर्शन पाना
१६ (सुरतालिंगन के लिए) प्रस्तुत करना, उपस्थित होना

अंग्रेज़ी शब्दों के उदाहरण
अंग्रेज़ी शब्दों के निम्न उदाहरण देखिए। 'स्थ' का 'st' बन चुका है। रोमन लिपि में 'थ' तो है नहींइस लिए उच्चारण 'स्थ' से 'स्ट' बना होगा, ऐसा तर्क असंगत नहीं है। निम्न प्रत्येक शब्द में ST देखिए, और उनके साथ उपर्युक्त १६ में से जुडा हुआ, कोई न कोई अर्थ देखिए।
(0१) Stable स्थिर
(0२) Stake=खूंटा जो स्थिर रहता है, अपनी जगह छोडता नहीं।
(0३) Stack =थप्पी, ढेर एक जगह पर लगाई जाती है।
(0४) Stage =मंच जो एक जगह पर स्थिर बनाया गया है।
(0५) Stability स्थिरता
(0६) Stackable = एक जगह पर ढेर, थप्पी, राशि.
(0७) Stagnancy= रुकाव, अटकाव, (स्थिरता से जुडा अर्थ)
(0८) Stagnate = एक जगह स्थिर रोक रखना।
(0९) Stageable =स्थित मंच पर मंचन योग्य
(१०)   stager= मंच पर अभिनय करने वाले।
(११)    Stabilize स्थिरीकरण
(१२)   Stand= एक जगह बनाया हुआ मंच,
(१३)   Stadium= एक जगह का, क्रीडांगण ,
(१४)   Stillroom= रसोई के साथ छोटा रसोई की सामग्री संग्रह करने का कक्ष।
(१५)   State= विशेष निश्चित भूमि (राज्य)
(१६)   Street= गली, जो विशेष स्थायी पता रखती है।
(१७)   Stand= स्थिर रूपमें सीधा खडा रहना। स्थापित होना, टिकना, एक स्थान पर खडा होना।
(१८) Standards= स्थापित शाश्वत आदर्श मापदंड
(१९) Staid स्थिर, गम्भीर,
mjhaveri@umassd.edu;

रविवार, 6 जनवरी 2013

जापानी भाषा देवनागरी से सक्षम बनी ?–डॉ. मधुसूदन

जापानी भाषा देवनागरी से सक्षम बनी ?–डॉ. मधुसूदन
clip_image002जापान को देवनागरी की सहायता.
जापानी, हमारी भाषा से कमज़ोर थी.
अनुवाद करो या बरखास्त हो जाओ की नीति अपनायी .
जापानी भाषा कैसे विकसी ?
(१) जापान और दूसरा इज़राएल.
मेरी सीमित जानकारी में, संसार भर में दो देश ऐसे हैं, जिनके आधुनिक इतिहास से हम भारत-प्रेमी अवश्य सीख ले सकते हैं; एक है जापान और दूसरा इज़राएल.
आज जापान का उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ. जापान की जनता सांस्कृतिक दृष्टि से निश्चित कुछ अलग है, वैसे ही इज़राएल की जनता भी. इज़राएल की जनता, वहाँ अनेकों देशों से आकर बसी है, इस लिए बहु भाषी भी है.
मेरी दृष्टि में, दोनों देशों के लिए, हमारी अपेक्षा कई अधिक, कठिनाइयाँ रही होंगी. जापान का, निम्न इतिहास पढने पर, आप मुझ से निश्चित ही, सहमत होंगे; ऐसा मेरा विश्वास है.
(
२) कठिन काम.
जापान के लिए जापानी भाषा को समृद्ध और सक्षम करने का काम हमारी हिंदी की अपेक्षा, बहुत बहुत कठिन मानता हूँ, इस विषय में, मुझे तनिक भी, संदेह नहीं है. क्यों? क्यों कि जापानी भाषा चित्रलिपि वाली चीनी जैसी भाषा है. कहा जा सकता है, (मुझे कुछ आधार मिले हैं उनके बल पर) कि जापान ने परम्परागत चीनी भाषा में सुधार कर उसीका विस्तार किया, और उसीके आधार पर, जपानी का विकास किया.
(
३)जापानी भाषा कैसे विकसी ?
जापान ने, जापानी भाषा कैसे बिकसायी ? जापान की अपनी लिपि चीनी से ली गयी, जो मूलतः चित्रलिपि है. और चित्रलिपि,जिन वस्तुओं का चित्र बनाया जा सकता है, उन वस्तुओं को दर्शाना ठीक ठीक जानती है. पर, जो मानक चित्र बनता है, उसका उच्चारण कहीं भी चित्र में दिखाया नहीं जा सकता. यह उच्चारण उन्हें अभ्यास से ही कण्ठस्थ करना पडता है. इसी लिए उन्हों ने भी, हमारी देवनागरी का उपयोग कर अपनी वर्णमाला को सुव्यवस्थित किया है.
(
४) जापान को देवनागरी की सहायता.
जैसे उपर बताया गया है ही, कि, जपान ने भी देवनागरी का अनुकरण कर अपने उच्चार सुरक्षित किए थे.आजका जापानी ध्वन्यर्थक उच्चारण शायद अविकृत स्थिति में जीवित ना रहता, यदि जापान में संस्कृत अध्ययन की शिक्षा प्रणाली ना होती. जापान के प्राचीन संशोधको ने देवनागरी की ध्वन्यर्थक रचना के आधार पर उनके अपने उच्चारणों की पुनर्रचना पहले १२०४ के शोध पत्र में की थी. जपान ने उसका उपयोग कर, १७ वी शताब्दि में, देवनागरी उच्चारण के आधारपर अपनी मानक लिपि का अनुक्रम सुनिश्चित किया, और उसकी पुनर्रचना की. —(संशोधक) जेम्स बक.
लेखक: देवनागरी के कारण जपानी भाषा के उच्चारण टिक पाए. नहीं तो, जब जापानी भाषा चित्रमय ही है, तो उसका उच्चारण आप कैसे बचा के रख सकोगे ? देखा हमारी देवनागरी का प्रताप? और पढत मूर्ख रोमन लिपि अपनाने की बात करते हैं.
(
५) जापान की कठिनाई.
पर जब आदर, प्रेम, श्रद्धा, निष्ठा, इत्यादि जैसे भाव दर्शक शब्द, आपको चित्र बनाकर दिखाने हो, तो कठिन ही होते होंगे . उसी प्रकार फिर विज्ञान, शास्त्र, या अभियान्त्रिकी की शब्दावलियाँ भी कठिन ही होंगी.
और फिर संकल्पनाओं की व्याख्या करना भी उनके लिए कितना कठिन हो जाता होगा, इसकी कल्पना हमें सपने में भी नहीं हो सकती.
इतनी जानकारी ही मुझे जपानियों के प्रति आदर से नत मस्तक होने पर विवश करती है; साथ, मुझे मेरी दैवीदेव नागरीऔर हिंदीपर गौरव का अनुभव भी होता है.
ऐसी कठिन समस्या को भी जापान ने सुलझाया, चित्रों को जोड जोड कर; पर अंग्रेज़ी को स्वीकार नहीं किया.
(६)संगणक पर, Universal Dictionary.
मैं ने जब संगणक पर, Universal Dictionary पर जाकर कुछ शब्दों को देखा तो, सच कहूंगा, जापान के अपने भाषा प्रेम से, मैं अभिभूत हो गया. कुछ उदाहरण नीचे देखिए. दिशाओं को जापानी कानजी परम्परा में कैसे लिखा जाता है, जानकारी के लिए दिखाया है.
निम्न जालस्थल पर, आप और भी उदाहरण देख सकते हैं. पर उनके उच्चारण तो वहां भी लिखे नहीं है.
http://www.japanese-language.aiyori.org/japanese-words-6.html
up =ऊपर—- down=नीचे —-
left=बाएँ—— right= दाहिने
middle = बीचमें front =सामने
back = पीछे —– inside = अंदर
outside =बाहर east =पूर्व
south = दक्षिण 西 west =पश्चिम
north = उत्तर

(
७) डॉ. राम मनोहर लोहिया जी का आलेख:
डॉ. राम मनोहर लोहिया जी के आलेख से निम्न उद्धृत करता हूँ; जो आपने प्रायः ५० वर्ष पूर्व लिखा था; जो आज भी उतना ही, सामयिक मानता हूँ.
लोहिया जी कहते हैं==>”जापान के सामने यह समस्या आई थी जो इस वक्त हिंदुस्तान के सामने है. ९०-१०० बरस पहले जापान की भाषा हमारी भाषा से भी कमज़ोर थी. १८५०-६० के आसपास गोरे लोगों के साथ संपर्क में आने पर जापान के लोग बड़े घबड़ाए. उन्होंने अपने लड़के-लड़िकयों को यूरोप भेजा कि जाओ, पढ़ कर आओ, देख कर आओ कि कैसे ये इतने शक्तिशाली हो गए हैं? कोई विज्ञान पढ़ने गया, कोई दवाई पढ़ने गया, कोई इंजीनियरी पढ़ने गया और पांच-दस बरस में जब पढ़कर लौटे तो अपने देश में ही अस्पताल, कारखाने, कालेज खोले.
पर, जापानी लड़के जिस भाषा में पढ़कर आए थे उसी भाषा में काम करने लगे. (जैसे हमारे नौकर दिल्ली में करते हैं,–मधुसूदन) जब जापानी सरकार के सामने यह सवाल आ गया. सरकार ने कहा, नहीं तुमको अपनी रिपोर्ट जापानी में लिखनी पड़ेगी.
उन लोगों ने कोशिश की और कहा कि नहीं, यह हमसे नहीं हो पाता क्योंकि जापानी में शब्द नहीं हैं, कैसे लिखें? तब जापानी सरकार ने लंबी बहस के बाद यह फैसला लिया कि तुमको अपनी सब रिपोर्टैं जापानी में ही लिखनी होंगी. अगर कहीं कोई शब्द जापानी भाषा में नहीं मिलता हो तो जिस भी भाषा में सीखकर आए हो उसी में लिख दो. घिसते-घिसते ठीक हो जाएगा. उन लोगों को मजबूरी में जापानी में लिखना पड़ा.
(
८) संकल्प शक्ति चाहिए.
आगे लोहिया जी लिखते हैं,
हिंदी या हिंदुस्तान की किसी भी अन्य भाषा के प्रश्न का संबंध केवल संकल्प से है. सार्वजनिक संकल्प हमेशा राजनैतिक हुआ करते हैं. अंग्रेज़ी हटे अथवा न हटे, हिंदी आए अथवा कब आए, यह प्रश्न विशुद्ध रूप से राजनैतिक संकल्प का है. इसका विश्लेषण या वस्तुनिष्ठ तर्क से कोई संबंध नहीं.
(
९)हिंदी किताबों की कमी?
लोहिया जी आगे कहते हैं; कि,
जब लोग अंग्रेज़ी हटाने के संदर्भ में हिंदी किताबों की कमी की चर्चा करते हैं, तब हंसी और गुस्सा दोनों आते हैं, क्योंकि यह मूर्खता है या बदमाशी? अगर कॉलेज के अध्यापकों के लिए गरमी की छुट्टियों में एक पुस्तक का अनुवाद करना अनिवार्य कर दिया जाए तो मनचाही किताबें तीन महीनों में तैयार हो जाएंगी. हर हालत में कॉलेज के अध्यापकों की इतनी बड़ी फौज़ से, जो करीब एक लाख की होगी, कहा जा सकता है कि अनुवाद करो या बरखास्त हो जाओ.
संदर्भ: डॉ. लोहिया जी का आलेख, Universal Dictionary, डॉ. रघुवीर
हिंदी हितैषि जापान से क्या सीखें ? –डॉ. मधुसूदन
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(१) जापान ने अपनी उन्नति कैसे की?
जापानी विद्वानों ने जब उन्नीसवीँ शती के अंत में, संसार के आगे बढे हुए, देशों का अध्ययन किया; तो देखा, कि पाँच देश, अलग अलग क्षेत्रों में,विशेष रूप से, आगे बढे हुए थे।
(२) वे देश कौन से थे?
वे थे हॉलंड, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, और अमरिका।
(३) कौन से क्षेत्रो में, ये देश आगे बढे हुए थे?
देश और उन के उन्नति के क्षेत्रों की सूची
जर्मनी{ जर्मनी से जपान सर्वाधिक प्रभावित था।}:
भौतिकी, खगोल विज्ञान, भूगर्भ और खनिज विज्ञान, रसायन, प्राणिविज्ञान, वनस्पति शास्त्र, डाक्टरी, औषध विज्ञान, शिक्षा प्रणाली, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र.
Germany: physics, astronomy, geology and mineralogy, chemistry, zoology and botany, medicine, pharmacology, educational system, political science, economics;
फ्रान्स:
प्राणिविज्ञान, वनस्पति शास्त्र, खगोल विज्ञान, गणित, भौतिकी, रसायन, वास्तुविज्ञान (आर्किटेक्चर), विधि नियम, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, जन कल्याण.
France: zoology and botany, astronomy, mathematics, physics, chemistry, architecture, law, international relations, promotion of public welfare;
ब्रिटैन:
मशीनरी, भूगर्भ और खनन(खान-खुदाई) विज्ञान, लोह निर्माण , वास्तुविज्ञान, पोत निर्माण, पशु वर्धन, वाणिज्य, निर्धन कल्याण.
Britain: machinery, geology and mining, steel making, architecture, shipbuilding, cattle farming, commerce, poor-relief;
हॉलंड:
सींचाई, वास्तुविज्ञान, पोत निर्माण, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, निर्धन कल्याण.
Holland: irrigation, architecture, shipbuilding, political science, economics, poor-relief
संयुक्त राज्य अमरिका:
औद्योगिक अधिनियम, कृषि, पशु-संवर्धन, खनन विज्ञान, संप्रेषण विज्ञान, वाणिज्य अधि नियम.
U.S.A.: industrial law, agriculture, cattle farming, mining, communications, commercial law
(Nakayama, 1989, p. 100).
फिर जापान ने इन देशों से उपर्युक्त विषयों का ज्ञान प्राप्त करने का निश्चय किया। अधिक से अधिक जापानियों को ऐसे ज्ञान से अवगत कराना ही उसका उद्देश्य था। जिससे अपेक्षा थी कि सारे जापान की उन्नति हो।
(४) तो फिर क्या, जापान ने सभी जापानियों को ऐसा ज्ञान पाने के लिए अंग्रेज़ी पढायी?
उत्तर: नहीं, यह अंग्रेज़ी पढाने का प्रश्न भी शायद जापान के, सामने नहीं था। क्यों कि जिन ५ देशों से जापान सीखना चाहता था, वे थे हॉलंड, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, और अमरिका।
मात्र अंग्रेज़ी सीखने से इन पाँचो, देशों से, सीखना संभव नहीं था।
दूसरा सभी जापानियों को पाँचो देशों की भाषाएं भी सीखना असंभव ही था।
५) क्या जर्मनी, फ्रांस, और हॉलंड में, अंग्रेज़ी नहीं बोली जाती ? अंग्रेज़ी तो अंतर राष्ट्रीय भाषा है ना?
उत्तर: नहीं। जर्मनी में जर्मन, फ्रांस में फ़्रांसीसी, हॉलण्ड में डच भाषा बोली जाती थी। पर, इंग्लैंड और अमरिका में भी कुछ अलग अंग्रेज़ी का चलन था। उस समय अमरिका भी विशेष आगे बढा हुआ नहीं था, यह अनुमान आप उसके उस समय के, उन्नति के क्षेत्रों को देखकर भी लगा सकते हैं।
६) तो फिर जापान ने क्या किया?
जापान ने बहुत सुलझा हुआ निर्णय लिया। उसके सामने दो पर्याय थे।
७) कौन से दो पर्याय थे?
एक पर्याय था:
सारे जापानियों को परदेशी भाषाओं में पढाकर शिक्षित करें, उसके बाद वे जपानी, परदेशी विषयों को पढकर विशेषज्ञ होकर जपान की उन्नति में योगदान देने के लिए तैय्यार हो जाय।
(८) दूसरा पर्याय क्या था? {जो जापान नें अपनाया }
कि कुछ गिने चुने मेधावी युवाओं को इन पाँचो देशों में पढने भेजे। ये मेधावी छात्र वहाँ की भाषा सीखे, और फिर अलग अलग विषयों के निष्णात होकर वापस आएँ। वापस आ कर उन निष्णातों नें, जो मेधावी तो थे ही, सारे ज्ञान को जापानी में अनुवादित किया, या स्वतंत्र रीति से लिखा। सारी पाठ्य पुस्तकें जापानी में तैय्यार हो गयी।
(९) इसमें जापान का क्या लाभ हुआ?
जापान की सारी जनता को, उन पाँचो देशों की ज्ञान राशि सहजता से जापानी भाषा में उपलब्ध हुयी।
(१०) तो क्या हुआ?
तो प्रत्येक जापानी का किसी विशेष विषय में विशेषज्ञ होने में लगने वाला समय बचा।
करोडों छात्र वर्ष बचे, उतने वर्ष उत्पादन की क्षमता बढी। समृद्धि भी इसी के कारण बढी। छात्र वर्ष बचने के कारण शिक्षा पर शासन का खर्च भी बचा। उतनी ही शीघ्रता से जापान प्रगति कर पाया। जापान का प्रत्येक नागरिक का जीवन मान भी ऊंचा हो पाया। जापानी शीघ्रता से कम वर्ष लगा कर विशेषज्ञ हो गया। अनुमानतः प्रत्येक जापानी के ५-५ वर्ष बचे, तो उतने अधिक वर्ष वह प्रत्यक्ष उत्पादन में लगाता था।
११) एक और विशेष बात हुयी जापान अपनी चित्र लिपि युक्त भाषा भी बचा पाया।
अपनी अस्मिता, राष्ट्र गौरव भी बढा पाया। भाषा राष्ट्र की संस्कृति का कवच कहा जा सकता है। उसके बचने से जापान की अस्मिता भी अखंडित रही होगी।
(१२) मुझे एक प्रश्न सताता है। जब जापान अपनी कठिनातिकठिन चित्रलिपि द्वारा प्रगति कर पाया, तो हम अपनी सर्वोत्तम देव नागरी लिपि के होते हुए भी आज तक कैसे अंग्रेज़ी की बैसाखी पर लडखडा रहे हैं? हमारा सामान्य नागरिक क्यों आगे बढ नहीं पाया है?

मधुसूदनजी तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर हैं।