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बुधवार, 8 नवंबर 2017

hindi salila 1

हिंदी सलिला : १. 
पाठ १
भाषा, ध्वनि, व्याकरण,वर्ण, अक्षर, स्वर, व्यंजन  
***
औचित्य :

भारत-भाषा हिन्दी भविष्य में विश्व-वाणी बनने के पथ पर अग्रसर है।  हिन्दी की शब्द सामर्थ्य पर प्रायः अकारण तथा जानकारी के अभाव में प्रश्न चिन्ह लगाये जाते हैं।  भाषा सदानीरा सलिला की तरह सतत प्रवाहिनी होती है।  उसमें से कुछ शब्द काल-बाह्य होकर बाहर हो जाते हैं तो अनेक शब्द उसमें प्रविष्ट भी होते हैं।

'हिन्दी सलिला' वर्त्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर हिन्दी का शुद्ध रूप जानने की दिशा में एक कदम है। यहाँ न कोई सिखानेवाला है, न कोई सीखनेवाला, हम सब जितना जानते हैं उससे कुछ अधिक जान सकें मात्र यह उद्देश्य है। व्यवस्थित विधि से आगे बढ़ने की दृष्टि से संचालक कुछ सामग्री प्रस्तुत करेंगे। उसमें कुछ कमी या त्रुटि हो तो आप टिप्पणी कर न केवल अवगत कराएँ अपितु शेष और सही सामग्री उपलब्ध हो तो भेजें।  मतान्तर होने पर संचालक का प्रयास होगा कि मानकों पर खरी, शुद्ध भाषा सामंजस्य, समन्वय तथा सहमति पा सके। 

हिंदी के अनेक रूप देश में आंचलिक/स्थानीय भाषाओँ और बोलिओं के रूप में प्रचलित हैं।  इस कारण भाषिक नियमों, क्रिया-कारक के रूपों, कहीं-कहीं शब्दों के अर्थों में अंतर स्वाभाविक है किंतु हिंदी को विश्व भाषा बनने के लिये इस अंतर को पाटकर क्रमशः मानक रूप लेना ही होगा।अनेक क्षेत्रों में हिन्दी की मानक शब्दावली है। जहाँ नहीं है, वहाँ क्रमशः आकार ले रही है। हम भाषिक तत्वों के साथ साहित्यिक विधाओं तथा शब्द क्षमता विस्तार की दृष्टि से भी सामग्री चयन करेंगे। आपकी रूचि होगी तो प्रश्न-उत्तर या टिप्पणी के माध्यम से भी आपकी सहभागिता हो सकती है।

जन सामान्य भाषा के जिस देशज रूप का प्रयोग करता है वह कही गयी बात का आशय संप्रेषित करता है किंतु वह पूरी तरह शुद्ध नहीं होता। ज्ञान-विज्ञान में भाषा का उपयोग तभी संभव है जब शब्द से एक सुनिश्चित अर्थ की प्रतीति हो। इस दिशा में हिंदी का प्रयोग न होने को दो कारण इच्छाशक्ति की कमी तथा भाषिक एवं शाब्दिक नियमों और उनके अर्थ की स्पष्टता न होना है।

श्री गणेश करते हुए हमारा प्रयास है कि हम एक साथ मिलकर सबसे पहले कुछ मूल बातों को जानें। भाषा, वर्ण या अक्षर, शब्द, ध्वनि, व्याकरण, स्वर, व्यंजन जैसी मूल अवधारणाओं को समझने का प्रयास करें।

भाषा :

अनुभूतियों से उत्पन्न भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भंगिमाओं या ध्वनियों की आवश्यकता होती है। भंगिमाओं से नृत्य, नाट्य, चित्र आदि कलाओं का विकास हुआ। ध्वनि से भाषा, लेखन, वादन एवं गायन कलाओं का जन्म हुआ।

चित्र गुप्त ज्यों चित्त का, बसा आप में आप
भाषा-सलिला निरंतर, करे अनाहद जाप 


भाषा वह साधन है जिससे हम अपने भाव एवं विचार अन्य लोगों तक पहुँचा पाते हैं अथवा अन्यों के भाव और विचार ग्रहण कर पाते हैं। यह आदान-प्रदान वाणी के माध्यम से (मौखिक), तूलिका के माध्यम से अंकित, लेखनी के द्वारा लिखित, टंकण यंत्र या संगणक द्वारा टंकित तथा मुद्रण यंत्रों द्वारा मुद्रित रूप में होता है।

निर्विकार अक्षर रहे मौन, शांत निः शब्द
भाषा वाहक भाव की, माध्यम हैं लिपि-शब्द.


व्याकरण ( ग्रामर ) -

व्याकरण ( वि + आ + करण ) का अर्थ भली-भाँति समझना है. व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं परिष्कृत रूप सम्बन्धी नियमोपनियमों का संग्रह है. भाषा के समुचित ज्ञान हेतु वर्ण विचार (ओर्थोग्राफी) अर्थात वर्णों (अक्षरों) के आकार, उच्चारण, भेद, संधि आदि , शब्द विचार (एटीमोलोजी) याने शब्दों के भेद, उनकी व्युत्पत्ति एवं रूप परिवर्तन आदि तथा वाक्य विचार (सिंटेक्स) अर्थात वाक्यों के भेद, रचना और वाक्य विश्लेषण को जानना आवश्यक है.


वर्ण शब्द संग वाक्य का, कविगण करें विचार.
तभी पा सकें वे 'सलिल',  
भाषा पर अधिकार.
वर्ण / अक्षर :

हिंदी में वर्ण के दो प्रकार स्वर (वोवेल्स) तथा व्यंजन (कोंसोनेंट्स) हैं.

अजर अमर अक्षर अजित, ध्वनि कहलाती वर्ण
स्वर-व्यंजन दो रूप बिन, हो अभिव्यक्ति विवर्ण

अक्षर अर्थात वह जिसका क्षरण (ह्रास, घटाव, पतन) न हो, इस अर्थ में ईश्वर का एक विशेषण उसका अक्षर होना है। ध्वनि और भाषा विज्ञान में मूल ध्वनि जिसे उच्चारित / या लिखा जाता है, को अक्षर कहते हैं।शब्दांश या ध्वनियों की इकाई ही अक्षर है। किसी भी शब्द को अंशों में तोड़कर बोला जा सकता है।  शब्दांश शब्द के वह अंश होते हैं जिन्हें और अधिक छोटा नहीं किया जा सकता।  अक्षर को अंग्रेजी में 'सिलेबल' कहते हैं। इसमें स्वर तथा व्यंजन (अनुस्वार रहित/सहित) ध्वनियाँ सम्मिलित हैं। क आघात या बल में बोली जाने वाली ध्वनि या ध्वनि समुदाय की इकाई अक्षर है। इकाई की पृथकता का आधार स्वर या स्वररत्‌ (वोक्वॉयड) व्यंजन होता है। व्यंजन ध्वनि किसी उच्चारण में स्वर का पूर्व (पहले) या पर (बाद में) अंग बनकर ही आती है।अक्षर में स्वर ही मेरुदंड है। अक्षर से स्वर को पृथक्‌ नहीं किया जा सकता, न बिना स्वर या स्वररत्‌ व्यंजन के अक्षर का अस्तित्व संभव है। उच्चारण में व्यंजन मोती है तो स्वर धागा। कुछ भाषाओं में व्यंजन ध्वनियाँ भी अक्षर निर्माण में सहायक होती हैं। अंग्रेजी भाषा में न, र, ल्‌ जैसी व्यंजन ध्वनियाँ स्वररत्‌ भी उच्चरित होती हैं एवं स्वरध्वनि के समान अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। डॉ॰ रामविलास शर्मा ने सिलेबल के लिए 'स्वरिक' शब्द का प्रयोग किया है। (भाषा और समाज, पृ. ५९)। 'अक्षर' शब्द का भाषा और व्याकरण 'में एकाधिक अर्थच्छाया के लिए प्रयोग किया जाता है, अत: 'सिलेबल' के अर्थ में इसके प्रयोग से भ्रम संभव है।
शब्द के उच्चारण में जिस ध्वनि पर जोर (उच्चता) हो वही अक्षर या सिलेबल होता है।  जैसे हाथ में आ ध्वनि पर जोर है। हाथ शब्द में एक अक्षर है। 'अकल्पित' शब्द में तीन अक्षर हैं - अ, कल्‌, पित्‌ ; आजादी में तीन - आ जा दी; अर्थात्‌ शब्द में जहाँ-जहाँ स्वर के उच्चारण की पृथकता हो वहाँ-वहाँ अक्षर की पृथकता होती है।
ध्वनि उत्पादन की दृष्टि से फुफ्फुस संचलन की इकाई अक्षर या स्वरिक (सिलेबल) है, जिसमें एक शीर्षध्वनि होती है। शरीर रचना की दृष्टि से अक्षर या स्वरिक को फुफ्फुस स्पंदन कह सकते हैं, जिसका उच्चारण ध्वनि तंत्र में अवरोधन होता है। जब ध्वनि खंड या अल्पतम ध्वनि समूह के उच्चारण के समय अवयव संचलन अक्षर में उच्चतम हो तो वह ध्वनि अक्षरवत्‌ होती है। स्वर ध्वनियाँ बहुधा अक्षरवत्‌ बोली जाती हैं जबकि व्यंजन ध्वनियाँ क्वचित्‌। शब्दगत उच्चारण की पूरी तरह पृथक्‌ इकाई अक्षर है।   
१. एक अक्षर के शब्द : आ, 
२. दो अक्षर के शब्द : भारतीय, 
३. तीन अक्षर के शब्द : बोलिए, जमानत, 
४. चार अक्षर के शब्द : अधुनातन, कठिनाई, 
५. पाँच अक्षर के शब्द : अव्यावहारिकता, अमानुषिकता
शब्द में अक्षर-संख्या ध्वनियों की गिनती नहीं, शब्द-उच्चारण में लगी आघात संख्या (ध्वनि इकाइयाँ)  होती हैं। अक्षर में प्रयुक्त शीर्ष ध्वनि के अतिरिक्त शेष ध्वनियों को 'अक्षरांग' या 'गह्वर ध्वनि' कहा जाता है। उदाहरण के लिए 'तीन' में एक अक्षर (सिलेबल) है जिसमें 'ई' शीर्ष ध्वनि तथा 'त' एवं 'न'  गह्वर ध्वनियाँ हैं।
शब्दांश में एक 'शब्दांश केंद्र' स्वर वर्ण  होता है जिसके इर्द-गिर्द अन्य वर्ण ( स्वर-व्यंजन दोनों) मिलते हैं।  'मीत' शब्द का शब्दांश केंद्र 'ई' का स्वर है जिससे पहले 'म' और बाद में 'त' वर्ण आते हैं। 
स्वर ( वोवेल्स ) :

स्वर वह मूल ध्वनि है जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता. वह अक्षर है जिसका अधिक क्षरण, विभाजन या ह्रास नहीं हो सकता. स्वर के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता की आवश्यकता नहीं होती. यथा - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:, ऋ,

स्वर के दो प्रकार:

१. हृस्व : लघु या छोटा ( अ, इ, उ, ऋ, ऌ ) तथा
२. दीर्घ : गुरु या बड़ा ( आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: ) हैं.

अ, इ, उ, ऋ हृस्व स्वर, शेष दीर्घ पहचान
मिलें हृस्व से हृस्व स्वर, उन्हें दीर्घ ले मान.


व्यंजन (कांसोनेंट्स) :

व्यंजन वे वर्ण हैं जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते. व्यंजनों के चार प्रकार हैं.

१. स्पर्श व्यंजन (क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ्), (च वर्ग - च, छ, ज, झ, ञ्.), (ट वर्ग - ट, ठ, ड, ढ, ण्), (त वर्ग त, थ, द, ढ, न), (प वर्ग - प,फ, ब, भ, म).
२. अन्तस्थ व्यंजन (य वर्ग - य, र, ल, व्, श).
३. ऊष्म व्यंजन ( श, ष, स ह) तथा
४. संयुक्त व्यंजन ( क्ष, त्र, ज्ञ) हैं. अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (अ:) भी व्यंजन हैं.

भाषा में रस घोलते, व्यंजन भरते भाव.
कर अपूर्ण को पूर्ण वे मेटें सकल अभाव.
सारत: अक्षर वर्णमाला की एक इकाई है। देवनागरी में ११ स्वर तथा ३३ व्यंजन मिलकर ४४ अक्षर हैं। हिंदी में ह्रस्व (मूल,उच्चारण समय अल्प, १ मात्रा) स्वर ४ अ, इ, उ, ऋ, दीर्घ (उच्चारण समय ह्रस्व से अधिक,२ मात्रा) स्वर ७ आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ तथा प्लुत (उच्चारण समय  अधिक, ३ मात्रा) स्वर ३ ॐ आदि हैं। स्वरों का वर्गीकरण उनके उच्चारण में लगनेवाले समय के आधार पर किया गया है। प्लुत स्वर का प्रयोग पुकारने हेतु किया जाता है। 'अ' स्वर (हलन्त सहित) की कोई मात्रा नहीं होती, वह किसी व्यंजन के साथ मिलकर उसे १ मात्रिक बनाता है। 'अ' व्यंजन (हलन्त रहित) की १ मात्रा होती है। व्यंजनों का अपना स्वरूप क् च् छ् ज् झ् त् थ् ध् आदि है। अ लगने पर व्यंजनों के नीचे का (हल) चिह्न हट जाता है, तब ये इस प्रकार लिखे जाते हैं: क च छ ज झ त थ ध आदि।। स्वरों की मात्राएँ तथा स्वर-व्यंजन मिलने से शब्द निम्न अनुसार बनते हैं:
स्वर:       अ        आ        इ         ई         उ         ऊ          ए          ऐ         ओ         औ        ऋ   
मात्रा:       -          ा        ि        ी        ु        ू          े          ै        ो          ौ          ृ 
शब्द:      कम      काम     किस    कीस      कुल      कूक     केसर     कैथा    कोयल     कौआ     कृश 
जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं। बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। ये संख्या में ३३ हैं। इसके तीन भेद १. स्पर्श, २. अंतःस्थ, ३. ऊष्म हैं।स्पर्श: स्पर्श व्यंजन पाँच वर्गों में विभक्त हैं।  हर वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं। हर वर्ग का नाम पहले वर्ण पर है। क वर्ग- क् ख् ग् घ् ड़्। च वर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्। ट वर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् ।त वर्ग- त् थ् द् ध् न्। प वर्ग- प् फ् ब् भ् म्।अंतःस्थ: अन्तस्थ व्यंजन ४  हैं: य् र् ल् व्।                                                                    ऊष्म ऊष्म व्यंजन ४ चार हैं- श् ष् स् ह्।                                                                                          संयुक्त व्यंजनदो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिलकर संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं।  देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन होने के कारण क्ष (क्+ष) क्षरण, ज्ञ (ज्+ञ) ज्ञान, तथा त्र (त्+र) त्रिशूल को कुछ विद्वान् हिंदी वर्णमाला में गिनते हैं कुछ नहीं गिनते।                                                                        अनुस्वार: इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका चिन्ह (ं) है। जैसे: सम्भव=संभव, सञ्जीव  = संजीव, सड़्गम=संगम।                                                                                                    विसर्ग: इसका उच्चारण ह् के समान तथा चिह्न (ः) है। जैसे: अतः, प्रातः।                                  अनुनासिक/चंद्रबिंदु: जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगाते है। यह अनुनासिक कहलाता है। जैसे: हँसना, आँख। हिंदी वर्णमाला में ११ स्वर तथा ३३ व्यंजन हैं। इनमें गृहित वर्ण (चार) ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़ने पर हिन्दी के वर्णों की कुल संख्या ४८ हो जाती है।हलन्त: जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित किया जाता है तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है। हलयुक्त व्यंजन हलंत वर्ण कहलाता है। जैसे-विद्यां = विद्याम्
वर्ण तथा उच्चारण स्थल:
क्रमवर्णउच्चारण स्थल श्रेणी
१.अ आ क् ख् ग् घ् ड़् ह्विसर्ग कंठ और जीभ का निचला भागकंठस्थ
२.इ ई च् छ् ज् झ् ञ् य् शतालु और जीभतालव्य
३.ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण् ड़् ढ़् र् ष्मूर्धा और जीभमूर्धन्य
४.त् थ् द् ध् न् ल् स्दाँत और जीभदंत्य
५.उ ऊ प् फ् ब् भ् म्दोनों होंठओष्ठ्य
६.ए ऐकंठ तालु और जीभकंठतालव्य
७.ओ औकंठ जीभ और होंठकंठोष्ठ्य
८.व्दाँत जीभ और होंठदंतोष्ठ्य

टीप: अक्षर = अ+क्षर जिसका क्षरण न हो, अविनाशी, अनश्वर, स्थिर, दृढ़, -विक्रमोर्वशीयम्, भगवद्गीता १५/१६,  अक्षराणांकारsस्मि -भगवद्गीता 10/33 त्र्यक्षर, एकाक्षरंपरंब्रह्म मनुस्मृति २/८३, प्रतिषेधाक्षरविक्लवाभिरामम् -शकुंतला नाटक ३/२५। 

अक्षर:

भाषाअसमियाउड़ियाउर्दूकन्नड़कश्मीरीकोंकणीगुजराती
शब्दबर्ण, आखर, अक्षरबर्ण (अख्यर)हर्फ़अक्षरअछुर, हरूफअक्षर, वर्ण
भाषाडोगरीतमिलतेलुगुनेपालीपंजाबीबांग्लाबोडो
शब्दएलुत्तुअक्षरमुअक्खरवर्ण (र्न), अक्षर (क्ख)
भाषामणिपुरीमराठीमलयालममैथिलीसंथालीसिंधीअंग्रेज़ी
वर्ड 
शब्दस्वर, वर्ण, शब्दअक्षरंअखर 

अंग्रेजी वर्णमाला में २१ स्वर और ५ व्यंजन मिलकर २६ वर्ण हैं। 

वर्ण, अक्षर और ध्वनि
"वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं जिसके खंड न हो सकें।" जैसे - अ इ क् ख् । वर्ण या अक्षर रचना की दृष्टि से भाषा की लघुतम इकाई है।
वर्ण, अक्षर तथा ध्वनि इन तीनों में भी अंतर हैं।
मुँह से उच्चरित अ, आ, क्, ख् आदि ध्वनियाँ हैं ।
ध्वनियों के लिखित रूप को वर्ण कहते हैं।
किसी एक ध्वनि या ध्वनि समूह की उच्चरित इकाई को अक्षर कहते हैं अथवा छोटी से छोटी इकाई अक्षर है जिसका उच्चारण वायु के एक झटके से होता है।
जैसे - आ ,जी ,क्या आदि।
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रविवार, 22 अक्टूबर 2017

navgeet

नव गीत :
कम लिखता हूँ
अधिक समझना
अक्षर मिलकर
अर्थ गह
शब्द बनें कह बात
शब्द भाव-रस
लय गहें
गीत बनें तब तात
गीत रीत
गह प्रीत की
हर लेते आघात
झूठ बिक रहा
ठिठक निरखना
एक बात
बहु मुखों जा
गहती रूप अनेक
एक प्रश्न के
हल कई
देते बुद्धि-विवेक
कथ्य एक
बहु छंद गह
ले नव छवियाँ छेंक
शिल्प
विविध लख
नहीं अटकना
एक हुलास
उजास एक ही
विविधकारिक दीप
मुक्तामणि बहु
समुद एक ही
अगणित लेकिन सीप
विषम-विसंगत
कर-कर इंगित
चौक डाल दे लीप
भोग
लगाकर
आप गटकना
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मंगलवार, 1 अगस्त 2017

navekhan karyashala 1


नवलेखन कार्यशाला:
पाठ १.  
भाषा और बोली 

मुख से उच्चारित होनेवाले सार्थक शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिसके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है, भाषा कहलाता है। अपने मन की अनुभूतियाँ व्यक्त करने के लिए जिन ध्वनियों का प्रयोग किया जाता है उन्हें स्वन कहते हैं । इन ध्वनियों को व्यवस्थित रूप से प्रयोग करना ही भाषा का प्रयोग करना है। ध्वनियों की अभिव्यक्ति बोलकर की जाती है, इसलिए यह बोली है। बोली को वाणी तथा जुबान भी कहा जाता है। 
भाषा और बोली में अंतर: 
शब्दों को निरंतर बोलने पर उनकी अर्थवत्ता को बढ़ाने तथा विविध मनुष्यों की अभिव्यक्ति में एकरूपता लाने के लिए कुछ बनाये गए नियमों के अनुसार व्यवस्थित रूप से की गयी अभिव्यक्ति को भाषा कहते हैं। भाषा अपने बोलनेवालों की अभिव्यक्ति को एक सा रूप देती है। बोलनेवालों की शिक्षा, क्षेत्र, व्यवसाय, धर्म, पंथ, लिंग या विचार भिन्न होने के बाद भी भाषा में एकरूपता होती है।   
बोली सहज रूप से बोला जानेवाला वाचिक रूप है जबकि भाषा नियमानुसार बोला जानेवाला रूप। सामान्यत: ग्राम्य जन दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले शब्दों को छोटे से छोटा तथा सरल कर बोलते हैं, यह बोली है। बोली के वाक्य छोटे और सरल होते हैं। बड़े तथा कठिन शब्दों को सरल कर लिया जाता है जैसे- मास्टर साहब को मास्साब, हॉस्पिटल को अस्पताल आदि। बोली पर बोलनेवाले के परिवेश, शिक्षा, व्यवसाय आदि की छाप होती है। विश्व विद्यालय के प्राध्यापक और किसान एक ही बात कहें तो उनके द्वारा चुने गये शब्दों में अंतर होना स्वाभाविक है। यही भाषा और बोली का अन्तर है। 
अक्षर / वर्ण  

शाब्दिक अर्थ में अक्षर का अर्थ है जिसका 'क्षरण' (घटाव या विनाश) न हो। दर्शन शास्त्र के अनुसार यह परमात्मा का लक्षण है। भाषा के सन्दर्भ में 'अक्षर' छोटे से छोटी या मूल ध्वनि है, जिसे बोला जाता है तथा व्यक्त करने के लिए विशेष संकेत या आकृति का उपयोग किया जाता है। वर्णों के समुदाय को ही वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में ४४ वर्ण हैं। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद स्वर और व्यंजन हैं।  
स्वर- स्वतंत्र रूप से बोले जानेवाले और जो व्यंजनों को बोलने में में सहायक ध्वनियाँ 'स्वर' कहलाती हैं। ये संख्या में ग्यारह हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गएहैं:
१. ह्रस्व स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।
२. दीर्घ स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
विशेष- दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहाँ दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है।
३. प्लुत स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है। 
मात्रा- स्वरों के समयाधारित स्वरूप को मात्रा कहते हैं स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं:
स्वर       अ     आ       इ      ई      उ      ऊ     ए      ऐ    ओ     औ   ऋ
मात्राएँ     -       ा     ि      ी     ु     ू       े     ै      ो     ौ     ृ 
मात्रा भार १      २       १        २     १       २       २     २      २      २      १   
शब्द      हम   नाम   किन   खीर  गुम   घूम    बेर   तैर    शोर    नौ     कृष  
अ वर्ण (स्वर) की कोई मात्रा नहीं होती। 
व्यंजन- जिन ध्वनियों / वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं।  व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। ये संख्या में ३३ हैं। इसके निम्नलिखित तीन भेद हैं:
१. स्पर्श- इन्हें पाँच वर्गों में रखा गया है और हर वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं। हर वर्ग का नाम पहले वर्ग के अनुसार रखा गया है जैसे: कवर्ग- क् ख् ग् घ् ड़्, चवर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्, टवर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ्), तवर्ग- त् थ् द् ध् न् तथा पवर्ग- प् फ् ब् भ् म्।  
२. अंतःस्थ-  य् र् ल् व्। 
३. ऊष्म- श् ष् स् ह्। 
संयुक्त व्यंजन- जहाँ  दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं। जैसे-क्ष=क्+ष अक्षर, ज्ञ=ज्+ञ ज्ञान, त्र=त्+र नक्षत्र कुछ लोग क्ष् त्र् और ज्ञ् को भी हिन्दी वर्णमाला में गिनते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं। अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।
व्यंजनों का अपना स्वरूप निम्नलिखित हैं:
क् च् छ् ज् झ् त् थ् ध् आदि।
अ लगने पर व्यंजनों के नीचे का (हल) चिह्न हट जाता है। तब ये इस प्रकार लिखे जाते हैं:
क च छ ज झ त थ ध आदि।
अनुस्वार- इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका चिन्ह अक्षर के ऊपर बिंदी (ं) है। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।
विसर्ग- इसका उच्चारण ह् के समान होता है। इसका चिह्न अक्षर के बगल में एक के ऊपर एक दो बिंदी (ः) है। जैसे-अतः, प्रातः।
अनुनासिक- जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा दिया जाता है। यह अनुनासिक कहलाता है। जैसे-हँसना, आँख। हिन्दी वर्णमाला में ११ स्वर तथा ३३ व्यंजन गिनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़ने पर हिन्दी के वर्णों की कुल संख्या ४८ हो जाती है।
हलंत- जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित किया जाता है तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है। हलयुक्त व्यंजन हलंत वर्ण कहलाता है। जैसे-विद्यां।
वर्ण का उच्चारण स्थल- मुख के जिस भाग से जिस वर्ण का उच्चारण होता है उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं।
क्रमवर्णउच्चारणश्रेणी
१.अ आ क् ख् ग् घ् ड़् ह्विसर्ग कंठ और जीभ का निचला भागकंठस्थ
२.इ ई च् छ् ज् झ् ञ् य् शतालु और जीभतालव्य
३.ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण् ड़् ढ़् र् ष्मूर्धा और जीभमूर्धन्य
४.त् थ् द् ध् न् ल् स्दाँत और जीभदंत्य
५.उ ऊ प् फ् ब् भ् मदोनों होंठओष्ठ्य
६.ए ऐकंठ तालु और जीभकंठतालव्य
७.ओ औकंठ जीभ और होंठकंठोष्ठ्य
८.व्दाँत जीभ और होंठदंतोष्ठ्य 
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सोमवार, 3 जुलाई 2017

geet

एक रचना
हर कविता में कुछ अक्षर
रस बरसा जाते आकर
*
कुछ किलकारी भरते हैं 
खूब शरारत करते हैं
नन्हे-मुन्ने होकर भी
नहीं किसी से डरते हैं
पल-पल गिर-उठ, रो-हँसकर
बढ़ कर फुर से उड़ते हैं
गीत-ग़ज़ल जैसे सस्वर
हर कविता में कुछ अक्षर
*
कुछ पहुना से संकोची
सिमटे-सिमटे रहते हैं
करते मन की बातें कम
औरों की सुन-सहते हैं
किससे नयन लड़े, किस्से
कहें न मन में दहते हैं
खोजें मिलने के अवसर
हर कविता में कुछ अक्षर
*
कुछ अवगुंठन में छिपकर
थाप लगा दरवाजे पर
हौले-हौले कदम उठा
कब्जा लेते सारा घर
गज़ब कि उन पर शैदा ही
होता घरवाला अक्सर
धूप-चाँदनी सम भास्वर
हर कविता में कुछ अक्षर
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कुछ हारे-थककर सोये
अपने में रहते खोये
खाली हाथों में देखें
कहाँ गये सपने बोये?
होंठ हँसें तो भी लगता
मन ही मन में हैं रोये
चाहें उठें न अब सोकर
हर कविता में कुछ अक्षर
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कुछ अक्षर खो जाते हैं
बनकर याद रुलाते हैं
ज्ञात न वापिस आएँगे
निकट उन्हें हम पाते हैं
सुधियों से संबल देते
सिर नत, कर जुड़ जाते हैं
हो जाते ज्यों परमेश्वर
हर कविता में कुछ अक्षर
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३-७-२०१६
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