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बुधवार, 17 जुलाई 2019

जनक छन्द

जनक छन्द सलिला
*
श्याम नाम जपिए 'सलिल'
काम करें निष्काम ही
मत कहिये किस्मत बदा 
*
आराधा प्रति पल सतत
जब राधा ने श्याम को
बही भक्ति धारा प्रबल
*
श्याम-शरण पाता वही
जो भजता श्री राम भी
दोनों हरि-अवतार हैं
*
श्याम न भजते पहनते
नित्य श्याम परिधान ही
उनके मन भी श्याम हैं
*
काला कोट बदल करें
श्वेत, श्याम परिधान को
न्याय तभी जन को मिले
*
शपथ उठाते पर नहीं
रखते गीता याद वे
मिथ्या साक्षी जो बने
*
आँख बाँध तौले वज़न
तब देता है न्याय जो
न्यायालय कैसे कहें?
******
१६-७-२०१६
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

मंगलवार, 16 जुलाई 2019

जनक छन्द

जनक छन्द सलिला 
*
श्याम नाम जपिए 'सलिल'
काम करें निष्काम ही 
मत कहिये किस्मत बदा 
*
आराधा प्रति पल सतत
जब राधा ने श्याम को
बही भक्ति धारा प्रबल
*
श्याम-शरण पाता वही
जो भजता श्री राम भी
दोनों हरि-अवतार हैं
*
श्याम न भजते पहनते
नित्य श्याम परिधान ही
उनके मन भी श्याम हैं
*
काला कोट बदल करें
श्वेत, श्याम परिधान को
न्याय तभी जन को मिले
*
शपथ उठाते पर नहीं
रखते गीता याद वे
मिथ्या साक्षी जो बने
*
आँख बाँध तौले वज़न
तब देता है न्याय जो
न्यायालय कैसे कहें?

१६-७-२०१६
******

रविवार, 24 दिसंबर 2017

janak chhand

जनक छंदी सलिला: २                                                                         

संजीव 'सलिल'
*
शुभ क्रिसमस शुभ साल हो,
   मानव इंसां बन सके.
      सकल धरा खुश हाल हो..
*
दसों दिशा में हर्ष हो,
   प्रभु से इतनी प्रार्थना-
       सबका नव उत्कर्ष हो..
*
द्वार ह्रदय के खोल दें,
   बोल क्षमा के बोल दें.
      मधुर प्रेम-रस घोल दें..
*
तन से पहले मन मिले,
   भुला सभी शिकवे-गिले.
      जीवन में मधुवन खिले..
*
कौन किसी का हैं यहाँ?
   सब मतलब के मीत हैं.
      नाम इसी का है जहाँ..
*
लोकतंत्र नीलाम कर,
   देश बेचकर खा गये.
      थू नेता के नाम पर..
*
सबका सबसे हो भला,
   सभी सदा निर्भय रहें.
      हर मन हो शतदल खिला..
*
सत-शिव सुन्दर है जगत,
   सत-चित -आनंद ईश्वर.
      हर आत्मा में है प्रगट..
*
सबको सबसे प्यार हो,
  अहित किसी का मत करें.
     स्नेह भरा संसार हो..
*
वही सिंधु है, बिंदु भी,
   वह असीम-निस्सीम भी.
      वही सूर्य है, इंदु भी..
*
जन प्रतिनिधि का आचरण,
   जन की चिंता का विषय.
      लोकतंत्र का है मरण..
*
शासन दुश्शासन हुआ,
   जनमत अनदेखा करे.
      कब सुधरेगा यह मुआ?
*
सांसद रिश्वत ले रहे,
   क़ैद कैमरे में हुए.
      ईमां बेचे दे रहे..
*
सबल निबल को काटता,
   कुर्बानी कहता उसे.
      शीश न निज क्यों काटता?
*
जीना भी मुश्किल किया,
   गगन चूमते भाव ने.
      काँप रहा है हर जिया..
* 

janak chhand

जनक छंदी सलिला : १.
संजीव 'सलिल'
*
आत्म दीप जलता रहे,
तमस सभी हरता रहे.
स्वप्न मधुर पलता रहे..
*
उगते सूरज को नमन,
चतुर सदा करते रहे.
दुनिया का यह ही चलन..
हित-साधन में हैं मगन,
राष्ट्र-हितों को बेचकर.
अद्भुत नेता की लगन..
*
सांसद लेते घूस हैं,
लोकतन्त्र के खेत की.
फसल खा रहे मूस हैं..
*
मतदाता सूची बदल,
अपराधी है कलेक्टर.
छोडो मत दण्डित करो..
*
बाँधी पट्टी आँख में,
न्यायालय अंधा हुआ.
न्याय न कर, ले बद्दुआ..
*
पहने काला कोट जो,
करा रहे अन्याय नित.
बेच-खरीदें न्याय को..
*
हरी घास पर बैठकर,
थकन हो गयी दूर सब.
रूप धूप का देखकर..
*
गाल गुलाबी लाल लख़,
रवि ऊषा को छेड़ता.
भू-माँ-गृह वह जा छिपी..
*
ऊषा-संध्या-निशा को
चन्द्र परेशां कर रहा.
सूर्य न रोके डर रहा..
*
चाँद-चाँदनी की लगन,
देख मुदित हैं माँ धरा.
तारे बाराती बने..
*
वर से वधु रूठी बहुत,
चाँद मुझे क्यों कह दिया?
गाल लाल हैं क्रोध से..
*
लहरा बल खा नाचती,
नागिन सी चोटी तेरी.
सँभल, न डस ले यह तुझे..
* मन मीरा, तन राधिका,
प्राण स्वयं श्री कृष्ण हैं.
भवसागर है वाटिका..
***

बुधवार, 8 नवंबर 2017

samasya purti karya shala

समस्या पूर्ति कार्यशाला- ७-११-१७ 
आज का विषय- पथ का चुनाव 
अपनी प्रस्तुति टिप्पणी में दें।
किसी भी विधा में रचना प्रस्तुत कर सकते हैं। 
रचना की विधा तथा रचना नियमों का उल्लेख करें। 
समुचित प्रतिक्रिया शालीनता तथा सन्दर्भ सहित दें।
रचना पर प्राप्त सम्मतियों को सहिष्णुता तथा समादर सहित लें।
किसी अन्य की रचना हो तो रचनाकार का नाम, तथा अन्य संदर्भ दें।
*
हाइकु
सहज नहीं
है 'पथ का चुनाव'
​विकल्प कई.
(जापानी त्रिपदिक वार्णिक छंद, ध्वनि ५-७-५)
*
जनक छंद
*
झेल हर संकट-अभाव
करें कोशिश से निभाव
कीजिए पथ का चुनाव
*
मुक्तक
पथ का चुनाव आप करें देख-भालकर
सारे अभाव मौन सहें, लोभ टालकर
​पालें लगाव तो न तजें, शूल देखकर
भुलाइये 'सलिल' को न संबंध पालकर ​
​(२२ मात्रिक चतुष्पदिक मुक्तक छंद, पंक्त्यांत रगण नगण)
*
प्रेरणा गुप्ता, कानपुर

दिव्य दृष्टि से
ही पथ का चुनाव
करना राही।

सदा सहज
है पथ का चुनाव
मन चेते तो।

सही दिशा में
पथ का चुनाव तू
करते जाना।

याद रखना
पथ का चुनाव हो
सत्य की यात्रा।

पीड़ा में डूबों
को पथ का चुनाव
करना सिखा।

रखना ध्यान
पथ का चुनाव हो
सत्य अहिंसा।

सच्चे राही ही
तो पथ का चुनाव
करते सही।
*
कल्पना भट्ट, भोपाल
पथ का चुनाव आप करें देख भालकर
क्यों चलें इधर उधर सब कुछ जानकार
रखें कदम हर पथ पर सम्भल सम्भलकर
मिल ही जायेगी मन्ज़िल किसी पथ पर ।
*
साधना वैद,
धूप छाँह शूल फूल सब हमें क़ुबूल हैं
पंथ की कठिनाइयों को सोचना भी भूल है
लक्ष्य हो अभीष्ट और सही हो पथ का चुनाव
फिर किसी आपद विपद की धारणा निर्मूल है !
***

salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५९६१८
www.divyanarmada.in,#हिंदी_ब्लॉगर

मंगलवार, 10 अक्टूबर 2017

haiku, kashanika, janak chhand, soratha, sher, doha, muktak

हाइकु:
ईंट रेत का 
मंदिर मनहर 
देव लापता
क्षणिका :
*
पुज परनारी संग
श्री गणेश गोबर हुए.
रूप - रूपए का खेल,
पुजें परपुरुष साथ
पर
लांछित हुईं न लक्ष्मी
***
जनक छंद :
नोबल आया हाथ जब 
उठा गर्व से माथ तब 
आँख खोलना शेष अब
सोरठा :
घटे रमा की चाह, चाह शारदा की बढ़े 
गगन न देता छाँह, भले शीश पर जा चढ़े
***
शे'र : 
लिए हाथों में अपना सर चले पर 
नहीं मंज़िल को सर कर सके अब तक
दोहा :
तुलसी जब तुल सी गयी, नागफनी के साथ
वह अंदर यह हो गयी, बाहर विवश उदास.
मुकतक :
मेरा गीत शहीद हो गया, दिल-दरवाज़ा नहीं खुला
दुनियादारी हुई तराज़ू, प्यार न इसमें कभी तुला
राह देख पथराती अखियाँ, आस निराश-उदास हुई
किस्मत गुपचुप रही देखती, कभी न पाई विहँस बुला
***

सोमवार, 17 जुलाई 2017

janak chhand

जनक छन्द सलिला
*
श्याम नाम जपिए 'सलिल'
काम करें निष्काम ही
मत कहिये किस्मत बदा 
*
आराधा प्रति पल सतत
जब राधा ने श्याम को
बही भक्ति धारा प्रबल
*
श्याम-शरण पाता वही
जो भजता श्री राम भी
दोनों हरि-अवतार हैं
*
श्याम न भजते पहनते
नित्य श्याम परिधान ही
उनके मन भी श्याम हैं
*
काला कोट बदल करें
श्वेत, श्याम परिधान को
न्याय तभी जन को मिले
*
शपथ उठाते पर नहीं
रखते गीता याद वे
मिथ्या साक्षी जो बने
*
आँख बाँध तौले वज़न
तब देता है न्याय जो
न्यायालय कैसे कहें?
******
१६-७-२०१६  
salil.sanjiv@gmail.com   
#दिव्यनर्मदा 
#हिंदी_ब्लॉगर

रविवार, 17 जुलाई 2016

janak chhand

जनक छन्द सलिला 
*
श्याम नाम जपिए 'सलिल'
काम करें निष्काम ही 
मत कहिये किस्मत बदा 
*
आराधा प्रति पल सतत
जब राधा ने श्याम को
बही भक्ति धारा प्रबल
*
श्याम-शरण पाता वही
जो भजता श्री राम भी
दोनों हरि-अवतार हैं
*
श्याम न भजते पहनते
नित्य श्याम परिधान ही
उनके मन भी श्याम हैं
*
काला कोट बदल करें
श्वेत, श्याम परिधान को
न्याय तभी जन को मिले
*
शपथ उठाते पर नहीं
रखते गीता याद वे
मिथ्या साक्षी जो बने
*
आँख बाँध तौले वज़न
तब देता है न्याय जो
न्यायालय कैसे कहें?
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(तेरह मात्रिक भागवत जातीय जनक छंद, पदांत बंधन नहीं)

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

navgeet

एक रचना:
(तरह मात्रिक जनक छंद )
*
आँसू हैं 
हर आँख में 
आसमान फट पड़ा 
आँसू हैं
हर आँख में
*
अंकुर सूखे वृष्टि बिन
धरती की छाती फटी
कृषक आत्महत्या करें
पत्ते रहे
न शाख में
फूट रहा धीरज-घड़ा
आसमान फट पड़ा
आँसू हैं
हर आँख में
*
अतिरेकी बम फोड़ते
निरपराध मारे गये
बेबस आँसू पोंछते
हाथ न
सूझे हाथ को
शीश चढ़ा, संकट बड़ा
आसमान फट पड़ा
आँसू हैं
हर आँख में
*
जल-प्लावन ने लील लीं
जाने कितनी जिंदगीं
रो - रो सूखी आँख भी
पानी - पानी
हो रही
वज्र सरीखा मन कड़ा
आँसू हैं
हर आँख में
*

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

janak muktak

जनक मुक्तक 

मिल त्यौहार मनाइ 
गीत ख़ुशी के गाइ 
साफ़-सफाई सब जगह 
पहले आप कराइए 
*
प्रिया रात के माथ पर,
बेंदा जैसा चाँद धर.  
कालदेवता झूमता-
थाम बाँह में चूमता। 
*
गये मुकदमा लगाने
ऋद्धि-सिद्धि हरि कोर्ट में  
माँगी फीस वकील ने  
अकल आ गयी ठिकाने 
*
नयन न नम कर नतमुखे!
देख न मुझको गिलाकर 
जो मन चाहे, दिलाऊं-
समझा कटनी जेब है.
*
हुआ सम्मिलन दियों का 
पर न हो सका दिलों का 
तेल न निकला तिलों का
धुंआ धुंआ दिलजलों का 

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

tripadik janak chhand

त्रिपदिक जनक छंद: 

चेतनता ही काव्य है 
अक्षर-अक्षर ब्रम्ह है 
परिवर्तन सम्भाव्य है 

आदि-अंत 'सत' का नहीं 
'शिव' न मिले बाहर 'सलिल'
'सुंदर' सब कुछ है यहीं 

शब्दाक्षर में गुप्त जो 
भाव-बिम्ब-रस चित्र है 
चित्रगुप्त है सत्य वो 

कंकर में शंकर दिखे 
देख सके तो देख तू 
बिन देखे नाटक लिखे 

देव कलम के! पूजते 
शब्द सिपाही सब तुम्हें 
तभी सृजन-पथ सूझते 

श्वास समझिए भाव को 
रचना यदि बोझिल लगे 
सहन न भावाभाव को 

सृजन कर्म ही धर्म है 
दिल को दिल से जोड़ता 
यही धर्म का मर्म है 

शब्द-सेतु की सर्जना
मानवता की वेदना 
परम पिता की अर्चना 

शब्द दूत है समय का 
गुम हो गर संवेदना 
समझ समय है प्रलय का 

पंछी जब कलरव करें 
अलस सुबह ऐसा लगे 
मंत्र-ऋचा ऋषिवर पढ़ें 

_________________

गुरुवार, 2 मई 2013

hindi triplets (tripadi/janak chhand) -acharya sanjiv verma 'salil'



त्रिपदिक (जनक छंदी ) नवगीत : 
                                  नेह नर्मदा तीर पर
                                                - संजीव 'सलिल'

                     * 
[ इस रचना में जनक छंद का प्रयोग हुआ है. संस्कृत के प्राचीन त्रिपदिक छंदों (गायत्री, ककुप आदि) की तरह जनक छंद में भी ३ पद (पंक्तियाँ) होती हैं. दोहा के विषम (प्रथम, तृतीय) पद की तीन आवृत्तियों से जनक छंद बनता है. प्रत्येक पद में १३ मात्राएँ तथा पदांत में लघु गुरु लघु या लघु लघु लघु लघु होना आवश्यक है. पदांत में सम तुकांतता से इसकी सरसता तथा गेयता में वृद्धि होती है. प्रत्येक पद दोहा या शे'र की तरह आपने आप में स्वतंत्र होता है किन्तु मैंने जनक छंद में गीत और अनुगीत (ग़ज़ल की तरह तुकांत, पदांत सहित) कहने के प्रयोग किये हैं. ]

नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन कर धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
कौन उदासी-विरागी,
विकल किनारे पर खड़ा?
किसका पथ चुप जोहता?

          निष्क्रिय, मौन, हताश है. 
          या दिलजला निराश है?
          जलती आग पलाश है.

जब पीड़ा बनती भँवर,
       खींचे तुझको केंद्र पर,
           रुक मत घेरा पार कर...
                   *
नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन का धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
सुन पंछी का मशविरा,
मेघदूत जाता फिरा-
'सलिल'-धार बनकर गिरा.

          शांति दग्ध उर को मिली. 
          मुरझाई कलिका खिली.
          शिला दूरियों की हिली.

मन्दिर में गूँजा गजर,
       निष्ठां के सम्मिलित स्वर,
           'हे माँ! सब पर दया कर...
                   *
नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन का धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
पग आये पौधे लिये,
ज्यों नव आशा के दिये.
नर्तित थे हुलसित हिये.

          सिकता कण लख नाचते. 
          कलकल ध्वनि सुन झूमते.
          पर्ण कथा नव बाँचते.

बम्बुलिया के स्वर मधुर,
       पग मादल की थाप पर,
           लिखें कथा नव थिरक कर...
                   *
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in