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मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

critic: aamacho bastar novel -sanjiv verma 'salil'

कृति चर्चा:
अबूझे को बूझता स्वर : ''आमचो बस्तर''
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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(कृति विवरण: आमचो बस्तर, उपन्यास, राजीव रंजन प्रसाद, डिमाई आकार, बहुरंगा पेपरबैक  आवरण, पृष्ठ ४१४, २९५ रु., यश पब्लिकेशन्स, दिल्ली)
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Rajeev Ranjan Prasad's profile photo                  

                  आमचो बस्तर देश के उस भाग के गतागत पर केन्द्रित औपन्यासिक कृति है जिसे  बस्तर कहा जाता है, जिसका एक भाग अबूझमाड़ आज भी सहजगम्य नहीं है और जो नक्सलवाद की विभीषिका से सतत जूझ रहा है। रूढ़ अर्थों में इसे उपन्यास कहने से परहेज किया जा सकता है क्योंकि यह उपन्यास के कलेवर में अतीत का आकलन, वर्त्तमान का निर्माण तथा भावी के नियोजन की त्रिमुखी यात्रा एक साथ कराता है। इस कृति में उपन्यास, कहानियां, लघुकथाएं, वार्ता प्रसंग, रिपोर्ताज, यात्रा वृत्त, लोकजीवन, जन संस्कृति  तथा चिंतन के ९ पक्ष इस तरह सम्मिलित हैं कि पाठक पूरी तरह कथा का पात्र हो जाता है। हमारे पुराण साहित्य की तरह यह ग्रन्थ भी वास्तविकताओं का व्यक्तिपरक या घटनापरक वर्णन करते समय मानव मूल्यों, आदर्शों, भूलों आदि का तटस्थ भाव से आकलन ही नहीं करता है अपितु अँधेरे की सघनता से भयभीत हुए बिना प्रकाश की प्राप्ति के प्रति आश्वस्ति का भाव भी जगाता है।

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पश्चात् बस्तर तथा छत्तीसगढ़ के अन्य अंचलों के बारे में लिखने की होड़ सी लग गयी है। अधिकांश कृतियों में अपुष्ट अतिरेकी भावनात्मक लिजलिजाहट से बोझिल अपचनीय कथ्य, अप्रामाणिक तथ्य, विधा की न्यून समझ तथा भाषा की त्रुटियों से उन्हें पढ़ना किसी सजा की तरह लगता रहा है। आमचो बस्तर का वाचन पूर्वानुभवों के सर्वथा विपरीत प्रामाणिकता, रोचकता, मौलिकता, उद्देश्यपरकता तथा नव दृष्टि से परिपूर्ण होने के कारण सुखद ही नहीं अपनत्व से भरा भी लगा।

लगभग ४० वर्ष पूर्व इस अंचल को देखने-घूमने की सुखद स्मृतियों के श्यामल-उज्जवल पक्ष कुछ पूर्व विदित होने पर भी यथेष्ठ नयी जानकारियाँ मिलीं। देखे जा चुके स्थलों को उपन्यासकार की नवोन्मेषी दृष्टि से देखने पर पुनः देखने की इच्छा जागृत होना कृति की सफलता है। अतीत के गौरव-गान के साथ-साथ त्रासदियों के कारकों का विश्लेषण, आम आदमी के नज़रिए से घटनाओं को समझने और चक्रव्यूहों को बूझने का लेखकीय कौशल राजीव रंजन का वैशिष्ट्य है।




राजतन्त्र से प्रजातंत्र तक की यात्रा में लोकमानस के साथ सत्ताधीशों के खिलवाड़, पद-मोह के कारण देश के हितों की अदेखी, मूल निवासियों का सतत शोषण, कुंठित और आक्रोशित जन-मन के विद्रोह को बगावत कह कर कुचलने के कुप्रयास, भूलों से कुछ न सीखने की जिद, अपनों की तुलना में परायों पर भरोसा, अपनों द्वारा विश्वासघात और सबसे ऊपर आमजनों की लोक हितैषी कालजयी जिजीविषा - राजीव जी की नवोन्मेषी दृष्टि इन तानों-बानों से ऐसा कथा सूत्र बुनते हैं जो पाठक को सिर्फ बाँधे नहीं रखता अपितु प्रत्यक्षदर्शी की तरह घटनाओं का सहभागी होने की प्रतीति कराते हैं।

बस्तर में नक्सलवाद का नासूर पैदा करनेवाले राजनेताओं और प्रशासकों को यह कृति परोक्षतः ही सही कटघरे में खड़ा करती है। पद-मद में लोकनायक प्रवीरचंद्र भंजदेव को गोलियों से भून्जकर जन-आस्था का क़त्ल करनेवाले काल की अदालत में दोषी हैं- इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि देश की आजादी के समय हैदराबाद और कुछ अन्य रियासतें अपना भारत में सम्मिलन के विरोध में थीं। प्रवीरचंद्र जी को बस्तर को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्ज मांगने के लिए मनाने का प्रयास किया गया। उनहोंने न केवल प्रस्ताव ठुकराया अपितु अपने मित्र प्रसिद्ध  साहित्यकार  स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलाहरीवी' के माध्यम से द्वारिका प्रसाद मिश्र को सन्देश भिजवाया ताकि नेहरु-पटेल आदि को अवगत कराया जा सके। फलतः राजाओं का कुचक्र विफल हुआ। यही मिश्र मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हुए तो भंजदेव को अकारण राजनैतिक स्वार्थ वश गोलियों का शिकार बनवा दिया। केर-बेर का संग यह की कलेक्टर के रूप में भंजदेव की लोकमान्यता को अपने अहंकार पर चोट माननेवाले नरोन्हा ने कमिश्नर के रूप में सरकार को भ्रामक और गलत जानकारियां देकर गुमराह किया। जनश्रुति यह भी है कि इस षड्यंत्र में सहभागी निम्नताम से उच्चतम पदों पर आसीन हर एक को कुछ समय के भीतर नियति ने दण्डित किया, कोई भी सुखी नहीं रह सका।

प्रशंसनीय है कि लेखक व्यक्तिगत सोच को परे रखकर निष्पक्ष-तटस्थ भाव से कथा कहा सका है। बस्तर निवासी होने पर भी वे पूर्वाग्रह या दुराग्रह से मुक्त होकर पूरी सहजता से कथ्य को सामने ला सके हैं। वस्तुतः युवा उपन्यासकार अपनी प्रौढ़ दृष्टि और संतुलित विवेचन के लिए साधुवाद का पात्र है।

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२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष: ९४२५१ ८३२४४  

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

समीक्षा : कविता को लगा कैंसर -- डॉ. दीप्ति गुप्ता

समीक्षा :                                                           
               
कविता को लगा कैंसर
                                       -- डॉ. दीप्ति गुप्ता 
      

शिक्षा: आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए.(हिन्दी) एम.ए. (संस्कृत), पी.एच-डी (हिन्दी),रुहेलखंड विश्वविद्यालय,बरेली, हिन्दी विभाग  में अध्यापन(१९७८–१९९६),हिन्दी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली में अध्यापन (१९९६ -१९९८) हिन्दी विभाग, पुणे विश्वविद्यालय में अध्यापन (१९९९ – २००१) विश्वविद्यालयी नौकरी के दौरान, भारत सरकार द्वारा, १९८९ में  मानव संसाधन विकास मंत्रालय’, नई दिल्ली में शिक्षा सलाहकार पद पर तीन वर्ष के  डेप्युटेशन पर नियुक्ति (१९८९- १९९२) गगनांचल, वागर्थ,साक्षात्कार, नया ज्ञानोदय, लमही, संबोधन, उदभावना, अनुवाद, कुतुबनुमा, उदंती, उत्तरा, संचेतना, नई धारा, प्रेरणा, अहिल्या आदि पत्रिकाओं,हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, अमर उजाला, पंजाब केसरी, विश्वमानव, सन्मार्ग, मिलाप, जनसत्ता, जनवाणी,  संडेवाणी (मारीशस), Indian Express,  Maharashtra Herald,  Pune Times, Women’s Era,  Alive, Delhi  Press आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं, कहानियों, आलेख एवं  समीक्षाओं का प्रकाशन. नैट   की काव्यालय, कथा-व्यथा,  अनुभूति-अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, अर्गला, सृजनगाथा. ArticleBase.com, Fanstory.com, Muse.com आदि हिन्दी एवं अंग्रेजी की इ-पत्रिकाओं में नियमित रूप से विविध रचनाओं का प्रकाशन एवं ई-कवितायाहूग्रुप, ई-चिंतन याहू ग्रुप, हिन्दी-भारतयाहूग्रुप -साहित्यिक व वैचारिक मंचों  पर सक्रिय भागीदारी.
Fanstory.com – American   Literary  site   पर English Poems  ‘’All Time Best’  से  सम्मानित.

‘शेष प्रसंग’  कहानी संग्रह (2007)  की  हरिया काका  तथा  पातकनाशनम्  कहानियाँ पुणे विश्वविद्यालय के क्रमश: 2008 और 2009 से हिन्दी स्नातक पाठ्य क्रम में शामिल।
अन्तर्यात्रा  काव्य संग्रह  (2005)  की निश्छल भाव   काला चाँद   कविताएं दुबई, शारजा, आबू धबी, आदि विभिन्न स्थानों में स्थापित मॉडर्न स्कूल की सभी शाखाओँ के पाठ्यक्रम में (2008) शामिल।

   प्रकाशित कृतियाँ :
1) महाकाल से मानस का हंससामाजिक मूल्यों और आदर्शों की एक यात्रा, (शोधपरक - 2000)
2) महाकाल से मानस का हंसतत्कालीन इतिहास और परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में, (शोधपरक -2001)
       3) महाकाल से मानस का हंसजीवन दर्शन, (शोधपरक 200)
       4) अन्तर्यात्रा ( काव्य संग्रह 2005),
5) Ocean In The Eyes ( Collection of Poems 2005)
6) शेष प्रसंग (कहानी संग्रह -2007),
      7)समाज और सँस्कृति के चितेरे अमृतलाल नागर, (शोधपरक - 2007) 
      8)  सरहद से घर तक   (कहानी संग्रह,   2011),
      9)  लेखक के आईने में लेखक संस्मरण संग्रह शीघ्र प्रकाश्य
 
राजभाषा विभाग, हिन्दी संस्थान, शिक्षा निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली, McGrow Hill Publications, New Delhi,  ICSSR, New Delhi,  अनुवाद संस्थान, नई दिल्ली, CASP  Pune, MIT  Pune,    Multiversity  Software  Company   Pune,    Knowledge   Corporation  Pune,   Unicef,  Airlines,  Schlumberger   (Oil based) Company, Pune   के लिए अंग्रज़ी-हिन्दी अनुवाद  कार्य !

अगस्त, २०११ में  साकेत, दिल्ली से १४ भाषाओं में प्रकाशित ‘द संडे इंडियन’ पाक्षिक पत्रिका द्वारा  भारत और विदेश में बसी हिन्दी साहित्य के उत्थान और विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली सर्वश्रेष्ठ लेखिकाओं में चयनित !

सम्प्रति: पूर्णतया रचनात्मक लेखन को समर्पित  और पूना में स्थायी निवास!मोबाइल:098906 33582