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मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

लघु कथा: शब्द और अर्थ --संजीव वर्मा "सलिल "

लघु कथा: शब्द और अर्थ
संजीव वर्मा "सलिल "

शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त किया...कमर सीधी कर लूँ , सोचते हुए लेटा कि काम की मेज पर कुछ खटपट सुनायी दी... मन मसोसते हुए उठा और देखा कि यथास्थान रखे शब्दों के समूह में से निकल कर कुछ शब्द बाहर आ गए थे। चश्मा लगाकर पढ़ा , वे शब्द 'लोकतंत्र', प्रजातंत्र', 'गणतंत्र' और 'जनतंत्र' थे।

शब्द कोशकार चौका - ' अरे! अभी कुछ देर पहले ही तो मैंने इन्हें यथास्थान रखा रखा था, फ़िर ये बाहर कैसे...?'

'चौंको मत...तुमने हमारे जो अर्थ लिखे हैं वे अब हमें अनर्थ लगते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोक तंत्र लोभ तंत्र में बदल गया है। प्रजा तंत्र में तंत्र के लिए प्रजा की कोई अहमियत ही नहीं है। गण विहीन गण तंत्र का अस्तित्व ही सम्भव नहीं है। जन गण मन गाकर जनतंत्र की दुहाई देने वाला देश सारे संसाधनों को तंत्र के सुख के लिए जुटा रहा है। -शब्दों ने एक के बाद एक मुखर होते हुए कहा


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ख़बरदार कविता: सानिया-शोएब प्रकरण: संजीव 'सलिल'


छोड़ एक को दूसरे का थामा है हाथ.
शीश झुकायें या कहों तनिक झुकायें माथ..
कोई किसी से कम नहीं, ये क्या जानें प्रीत.
धन-प्रचार ही बन गया, इनकी जीवन-रीत..
निज सुविधा-सुख साध्य है, सोच न सकते शेष.
जिसे तजा उसकी व्यथा, अनुभव करें अशेष..
शक शंका संदेह से जहाँ हुई शुरुआत.
वहाँ व्यर्थ है खोजना, किसके क्या ज़ज्बात..
मिला प्रेस को मसाला, रोज उछाला खूब.
रेटिंग चेनल की बढ़ी, महबूबा-महबूब.
बात चटपटी हो रही, नित्य खुल रहे राज़.
जैसे पट्टी चीरकर बाहर झाँके खाज.
'सलिल' आज फिर से हुआ, केर-बेर का संग.
दो दिन का ही मेल है, फिर देखेंगे जंग..

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रविवार, 27 सितंबर 2009

विजया दशमी पर दोहे

विजया दशमी पर दोहे




आचार्य संजीव 'सलिल'



भक्ति शक्ति की कीजिये, मिले सफलता नित्य.

स्नेह-साधना ही 'सलिल', है जीवन का सत्य..



आना-जाना नियति है, धर्म-कर्म पुरुषार्थ.

फल की चिंता छोड़कर, करता चल परमार्थ..



मन का संशय दनुज है, कर दे इसका अंत.

हरकर जन के कष्ट सब, हो जा नर तू संत..



शर निष्ठां का लीजिये, कोशिश बने कमान.

जन-हित का ले लक्ष्य तू, फिर कर शर-संधान..



राम वही आराम हो. जिसको सदा हराम.

जो निज-चिंता भूलकर सबके सधे काम..



दशकन्धर दस वृत्तियाँ, दशरथ इन्द्रिय जान.

दो कर तन-मन साधते, मौन लक्ष्य अनुमान..



सीता है आस्था 'सलिल', अडिग-अटल संकल्प.

पल भर भी मन में नहीं, जिसके कोई विकल्प..



हर अभाव भरता भरत, रहकर रीते हाथ.

विधि-हरि-हर तब राम बन, रखते सर पर हाथ..



कैकेयी के त्याग को, जो लेता है जान.

परम सत्य उससे नहीं, रह पता अनजान..



हनुमत निज मत भूलकर, करते दृढ विश्वास.

इसीलिये संशय नहीं, आता उनके पास..



रावण बाहर है नहीं, मन में रावण मार.

स्वार्थ- बैर, मद-क्रोध को, बन लछमन संहार..



अनिल अनल भू नभ सलिल, देव तत्व है पाँच.

धुँआ धूल ध्वनि अशिक्षा, आलस दानव- साँच..



राज बहादुर जब करे, तब हो शांति अनंत.

सत्य सहाय सदा रहे, आशा हो संत-दिगंत..



दश इन्द्रिय पर विजय ही, विजयादशमी पर्व.

राम नम्रता से मरे, रावण रुपी गर्व.



आस सिया की ले रही, अग्नि परीक्षा श्वास.

द्वेष रजक संत्रास है, रक्षक लखन प्रयास..



रावण मोहासक्ति है, सीता सद्-अनुरक्ति.

राम सत्य जानो 'सलिल', हनुमत निर्मल भक्ति..



मात-पिता दोनों गए, भू तजकर सुरधाम.

शोक न, अक्षर-साधना, 'सलिल' तुम्हारा काम..



शब्द-ब्रम्ह से नित करो, चुप रहकर साक्षात्.

शारद-पूजन में 'सलिल' हो न तनिक व्याघात..



माँ की लोरी काव्य है, पितृ-वचन हैं लेख.

लय में दोनों ही बसे, देख सके तो देख..



सागर तट पर बीनता, सीपी करता गर्व.

'सलिल' मूर्ख अब भी सुधर, मिट जायेगा सर्व..



कितना पाया?, क्या दिया?, जब भी किया हिसाब.

उऋण न ऋण से मैं हुआ, लिया शर्म ने दाब..



सबके हित साहित्य सृज, सतत सृजन की बीन.

बजा रहे जो 'सलिल' रह, उनमें ही तू लीन..



शब्दाराधक इष्ट हैं, करें साधना नित्य.

सेवा कर सबकी 'सलिल', इनमें बसे अनित्य..



सोच समझ रच भेजकर, चरण चला तू चार.

अगणित जन तुझ पर लुटा, नित्य रहे निज प्यार..



जो पाया वह बाँट दे, हो जा खाली हाथ.

कभी उठा मत गर्व से, नीचा रख निज माथ.



जिस पर जितने फल लगे, उतनी नीची डाल.

छाया-फल बिन वृक्ष का, उन्नत रहता भाल..



रावण के सर हैं ताने, राघव का नत माथ.

रिक्त बीस कर त्याग, वर तू दो पंकज-हाथ..



देव-दनुज दोनों रहे, मन-मंदिर में बैठ.

बता रहा तव आचरण, किस तक तेरी पैठ..



निर्बल के बल राम हैं, निर्धन के धन राम.

रावण वह जो किसी के, आया कभी न काम..



राम-नाम जो जप रहे, कर रावण सा काम.

'सलिल' राम ही करेंगे, उनका काम तमाम..



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मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

आंग्ल काव्य सलिला: भारत माता : सलिल

POETRY :

BHARAT MATA

Salil

She is lovely,

She is brave .

She is gentle,

As river wave.

She is the ocean,

She is the sky.

She is the faith,

Never asks why?

Always do right

Never feels fear,

Call him by heart

And find very near।

She is power

the SHAKTI.

She is devotion

the BHAKTI.

She is donor

the DATA.

Not merely the land

But BHARAT MATA.

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