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मंगलवार, 1 अगस्त 2017

muktak

मुक्तक:
दूर रहकर भी जो मेरे पास है.
उसी में अपनत्व का आभास है..
जो निपट अपना वही तो ईश है-
क्या उसे इस सत्य का अहसास है
*
भ्रम तो भ्रम है, चीटी हाथी, बनते मात्र बहाना.
खुले नयन रह बंद सुनाते, मिथ्या 'सलिल' फ़साना..
नयन मूँदकर जब-बज देखा, सत्य तभी दिख पाया-
तभी समझ पाया माया में कैसे सत्पथ पाना..
*
भीतर-बाहर जाऊँ जहाँ भी, वहीं मिले घनश्याम.
खोलूँ या मूंदूं पलकें, हँसकर कहते 'जय राम'..
सच है तो सौभाग्य, अगर भ्रम है तो भी सौभाग्य-
सीलन, घुटन, तिमिर हर पथ दिखलायें उमर तमाम..
*
l'******
१-८-२०१६
http://divyanarmada.blogspot.in
salil.sanjiv@gmail.com
#divyanarmada.blogspot.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

शुक्रवार, 23 जून 2017

ghanshyam chhand

छंद सलिला:
सोलह अक्षरी वार्णिक घनश्याम छंद
लक्षण: जगण जगण भगण भगण भगण गुरु
मापनी: १२१  १२१  २११  २११  २११  २
लय: ललालल लाल लाल ललालल लाल लला
***
यति: ५-५-६
नहीं रुकना, नहीं झुकना, बदनाम न हो
नहीं जगना, नहीं उठना, यश-नाम न हो
नहीं लड़ना, नहीं भिड़ना, चुक शाम न हो
यहीं मरना, यहीं तरना, प्रभु वाम न हो
*
यति: १०, ६
विशाल वितान देख जरा, मत भाग कभी
ढलाव-चढ़ान लेख जरा, मत हार कभी
प्रयास-विकास रेख बने, मनुहार सदा
मिलाप-विछोह दे न भुला, कर प्यार सदा
*
यति ६, १०
करो न विनाश, हो अब तो कुछ काम नया
रहो न हताश, हो अब तो परिणाम नया
जुटा न कबाड़, सूरज सा नव भोर उगा
बना न बिगाड़, हो तब ही यश-नाम नया
***
टीप: कृपया बताएँ-
१. घनश्याम एक छंद है या छंद समूह (जाति)?
२. एक ही मापनी पर रचित छंदों में गति-यति परिवर्तन स्वीकार्य हो या न हो?
३. क्या गति-यति परिवर्तन से बनी छंद, नए छंद कहे जाएँ?
४. यदि हाँ, तो इस तरह बने असंख्य छंदों के नामकरण कौन, किस आधार पर करेगा?
५. हिंदीतर छंदों (लावणी, माहिया, सोनेट, कपलेट, बैलेड, हाइकु, तांका स्नैर्यु आदि) को हिंदी छन्दशास्त्र का अंग कहा जाए या नहीं?
६. गणों से साम्य रखनेवाले लयखंड (रुक्न) और उनसे निर्मित छंद (बहर) हिंदी की हैं या अन्य भाषा की?
७. लोकगीतों में प्रयुक्त लयखंड हिंदी छंद शास्त्र का हिस्सा हैं या नहीं? यदि हैं तो उनकी मापनी कौन-कैसे-कब निर्धारित करेगा?
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संपर्क: ९४२५१८३२४४, salilsanjiv@gmail.com
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रविवार, 17 अक्टूबर 2010

मुक्तिका : बन-ठन कर संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :

बन-ठन कर

संजीव 'सलिल'
*
बन-ठन कर निकले हो घर से किसका चित्त लुभाना है
अधर-बाँसुरी, मन-मैया, राधा संग रास रचाना है.

प्रिय-दर्शन की आस न छूटे, कागा खाले सारा तन.

तुझको सौं दो नैन न छुइयो, पी की छवि झलकाना है..

नगर ढिंढोरा पीट-पीटकर, साँच कहूँ मैं हार गई.

रे घनश्याम सलोने तुझको पाना, खुद खो जाना है..

कुब्जा, कृष्णा,  कुंती, विदुरानी जैसे मन-बस छलिये!

मुझे न लम्बी पटरानी-सूची में नाम लिखाना है..

खलिश दर्द दुःख पीर, स्वजन बन तेरी याद कराते हैं. 

सिर-आँखों पर विहँस चढ़ाऊँ, तुझको नहीं भुलाना है..

मेरा क्या बदनामी तो तेरी ही होगी सब जग में.

दर्शन दे, ना दे मुझको तुझमें ही ध्यान लगाना है..

शीत, ग्रीष्म, बरसात कोई मौसम हो मुझको क्या लेना?

मन धरती पर प्रीत-बेल बो अश्रु-'सलिल' छलकाना है..