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गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

जापानी छंद रेंगा

जापानी छंद रेंगा और कस्तूरी की तलाश

रेंगा ऐसा श्रृंखलाबद्ध छंद है जिसे दो छंदकार मिलकर रचते हैं।  रेंगा दो  दो या दो से अधिक सहयोगी कवि लिखते हिन्उ। इसमें दो या दो से अधिक छंद भी होते हैः। प्रत्येक छंद का स्वरूप एक ‘वाका’ या तांका छंद की तरह होता है। रेंगा एकाधिक कवियों द्वारा रचित वाका कविताओं के ढीले-ढाले समायोजन से बनी एक श्रृंखला-बद्ध कविता है। 

रेंगा कविता की आतंरिक मन:स्थिति और विषयगत भूमिका, कविता का प्रथम छंद (वह तांका जिससे कविता आरम्भ हुई है) तय करता है। हर ताँका के दो खंड होते हैं। पहला खंड ५-७-५ वर्ण-क्रम में लिखा एक ‘होक्कु’ होता है। (यही होक्कु अब स्वतन्त्र होकर ‘हाइकु’ कहलाने लगा है)। होक्कु ही रेंगा की मन:स्थिति और विषयगत भूमिका तैयार करता है। पहला कवि एक होक्कु लिखता है। उस होक्कु को आधार बनाकर कोई दूसरा कवि ताँका पूरा करने के लिए ७-७ वर्ण की उसमें दो पंक्तियाँ जोड़ता है। उन दो पंक्तियों को आधार बनाकर कोई अन्य दो कवि रेंगा का दूसरा छंद (तांका) तैयार करते हैं। कविता के अंत तक यह क्रम चलता रहता है। रेंगा को समाप्त करने के लिए प्राय: अंत में ७-७ वर्ण क्रम की दो अतिरिक्त पंक्तियाँ और जोड़ दी जाती हैं। रेंगा एकाधिक कवियों द्वारा रचित एक से अधिक तांकाओं की समवेत कविता है।

रेंगा कविता का आरंभ एक होक्कु से होता है। ‘कस्तूरी की तलाश’ रेंगा कविताओं का हिन्दी में पहला संकलन है। संकलन में संपादित सभी रेंगा कविताओं के ‘होक्कु’ स्वयं प्रदीप जी के हैं। कविता के शेष चरण अन्यान्य कविगण जोड़ते चले गई हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकतर रेंगा कवितायेँ ६ तांकाओं से जुड़कर बनी हैं। कुछ रेंगा छंदों का आनंद लें -

जीवनरेखा / रेत रेत हो गई / नदी की व्यथा // नारी सम थी कथा / सदियों की अव्यवस्था (रेंगा १)

नाजों में पली / अधखिली कली / खुशी से चली // खिलने से पहले / गुलदान में सजी (रेंगा ११)

बरसा पानी / नाचे मन मयूर / मस्ती में चूर // प्यासी धरा अघाई / छाया नव उल्लास (रेंगा २१)

गृह पालिका / स्नेह मयी जननी / कष्ट विमोचनी // जीवन की सुरभि / शांत व् तेजस्वनी (रेंगा ३०)

रंग बिरंगे / जीवन के सपने / आशा दौडाते // स्वप्न छलते रहे / सदा ही अनकहे (रेन्गा ४०)

हरित धरा / रंगीन पेड़ पौधे / मन मोहते // मानिए उपकार / उपहार संसार (रेंगा ५१)

पानी की बूंद / स्वाति नक्षत्र योग / बनते मोती // सीपी गर्भ में मोती / सिन्धु मन हर्षित (रेंगा ६१)

पीत वसन / वृक्ष हो गए ठूँठ / हवा बैरन // जीवन की तलाश / पुन: होगा विकास (रेन्गा ७१)

देहरी दीप / रोशन कर देता / घर बाहर // दीया लिखे कहानी / कलम रूपी बाती (रेंगा ८१)

गाता सावन / हो रही बरसात / झूलों की याद // महकती मेंहदी / नैन बसा मायका (रेंगा ९०)

पौधे उगते / ऊंचाइयों का अब / स्वप्न देखते // इतिहास रचते / पौधे आकाश छूते (रेंगा ९८)

इनके रेंगाकार  हैं -प्रदीप कुमार डाश, चंचला इंचुलकर, डा. अखिलेश शर्मा, रमा प्रवीर वर्मा, नीतू उमरे, गंगा पाण्डेय, किरण मिश्रा, रामेश्वर बंग, देवेन्द्र नारायण दास, मधु सिन्धी और सुधा राठौर।

प्रदीप कुमार डास ‘दीपक’ ने परिश्रम और सूझ-बूझ के साथ यह संकलन संपादित किया है। एक पूरी कविता संपादित करने के लिए वह जिन सहयोगी कवियों को एक के बाद एक प्रत्येक चरण के लिए प्रेरित कर सके, वह अद्भुत है। कवियों को पता ही नहीं चला कि वे रेंगा कविताओं के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने इस रचनात्मक कार्य के लिए स्वयं को मिलाकर ६५ कवियों को जोड़ा। उनके एक सहयोगी कवि का कथन है कि “एकला चलो” सिद्धांत के साथ गुपचुप अपने लक्ष्य को प्रदीप जी ने जिस खूबसूरती से अंजाम दिया, काबिले तारीफ़ है।

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बुधवार, 26 दिसंबर 2018

हाइकु, ताँका, रेंगा, सदोका, चोका, हाइगा

विशेष लेख:
हाइकु तथा कुछ अन्य जापानी काव्य रूप 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
हाइकु सामान्यतः ३ पंक्तियों की वह लघु काव्य रचना है जिसमें सामान्यतः क्रमश: ५-७-५ ध्वनियों का प्रयोग कर एक अनुभूति या छवि की अभिव्यक्ति की जाती है। हिंदी को त्रिपदिक छंदों की विरासत संस्कृत से मिली है। वर्त्तमान में जापानी का हाइकु हिंदी साहित्य में हिंदी के संस्कार और भारतीयता का कलेवर लेकर लोकप्रिय हो रहा है। एक शताब्दी पूर्व सन् १९०० ई0 के लगभग जापानी साहित्यकार मासाओका शिकि (१८६२-१९०२) ने विशिष्ट जापानी छंद “होक्कु” को एक नया नाम हाइकु (Haiku) दिया जिसने लोकप्रियता के बड़े मानकों को प्राप्त किया। आज जापान में लाखों लोग इस छन्द में रचना करते हैं । भारत की अनेक भाषाओं के साथ -साथ हाइकु विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में लिखा और पढ़ा जा रहा है । भारतीय साहित्य की उर्वरा भूमि को यह कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जापानी तोहफा है। मात्सुओ बाशो के हाइकु गुरुदेव का माध्यम से १९१९ में बांग्ला और अज्ञेय के माध्यम से हिंदी साहित्य में (हाइकु की तरह लघु कविताएँ, अरी ओ करुणा प्रभामय, १९६०) पहुँचे। प्रो. डॉ. सत्यभूषण वर्मा ने हाइकु को हिंदी में फैलाया। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने हाइकु का एक वार्णिक छंद के रूप में प्रयोग कर हाइकु मुक्तक, हाइकु गीत, हाइकु मुक्तिका (हिंदी ग़ज़ल), हाइकु दोहा, हाइकु रोला, हाइकु सोरठा जैसे अनूठे प्रयोग किये हैं। 

हाइकु (Haiku 俳句 high-koo) ऐसी लघु कवितायेँ हैं जो एक अनुभूति या छवि को व्यक्त करने के लिए संवेदी भाषा प्रयोग करती हैं। हाइकु बहुधा प्रकृति के तत्व, सौंदर्य के पल या मार्मिक अनुभव से प्रेरित होते हैं। मूलतः जापानी कवियों द्वारा विकसित हाइकु काव्यविधा अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ द्वारा ग्रहण की गयी।  पाश्चात्य काव्य से भिन्न हाइकु में सामान्यतः तुकसाम्य, छंद बद्धता या काफ़िया नहीं होता। 
हाइकु एक असमाप्त काव्य: चूँकि हर हाइकु में पाठक / श्रोता के मनोभावों के अनुसार पूर्ण किये जाने की अपेक्षा होती है। हाइकु का उद्भव 'रेंगा नहीं हाइकाइ (haikai no renga) सहयोगी काव्य समूह' जिसमें शताधिक छंद होते हैं से हुआ है। 'रेंगा' समूह का प्रारंभिक छंद 'होक्कु' मौसम तथा अंतिम शब्द का संकेत करता है। हाइकु अपने काव्य-शिल्प से परंपरा के नैरन्तर्य बनाये रखता है। 
समकालिक हाइकुकार कम शब्दों से लघु काव्य रचनाएँ करते हैं. ३-५-३ सिलेबल के लघु हाइकु भी रचे जाते हैं।

हाइकु का वैशिष्ट्य
१. ध्वन्यात्मक संरचना:
पारम्परिक जापानी हाइकु १७ ध्वनियों का समुच्चय है जो ५-७-५ ध्वनियों की ३ पदावलियों में विभक्त होते हैं। अंग्रेजी के कवि इन्हें सिलेबल (लघुतम उच्चरित ध्वनि) कहते हैं। समय के साथ विकसित हाइकु काव्य के अधिकांश हाइकुकार अब इस संरचना का अनुसरण नहीं करते। जापानी या अंग्रेजी के आधुनिक हाइकु न्यूनतम एक से लेकर सत्रह से अधिक ध्वनियों तक के होते हैं। अंग्रेजी सिलेबल लम्बाई में बहुत परिवर्तनशील होते हैं जबकि जापानी सिलेबल एकरूपेण लघु होते हैं। इसलिए 'हाइकु चंद ध्वनियों का उपयोग कर एक छवि निखारना है' की पारम्परिक धारणा से हटकर, १७ सिलेबल का अंग्रेजी हाइकु १७ सिलेबल के जापानी हाइकु की तुलना में बहुत लंबा होता है। ५-७-५ सिलेबल का बंधन बच्चों को विद्यालयों में पढ़ाए जाने के बावजूद अंग्रेजी हाइकू लेखन में प्रभावशील नहीं है। हाइकु लेखन में सिलेबल निर्धारण के लिये जापानी अवधारणा "हाइकु एक श्वास में अभिव्यक्त कर सके" उपयुक्त है। अंग्रेजी में सामान्यतः इसका आशय १० से १४ सिलेबल लंबी पद्य रचना से है। अमेरिकन उपन्यासकार जैक कैरोक का एक हाइकू देखें:
Snow in my shoe मेरे जूते में बर्फ 
Abandoned परित्यक्त 
Sparrow's nest गौरैया-नीड़

२. वैचारिक सन्निकटता:
हाइकु में दो विचार सन्निकट हों: जापानी शब्द 'किरु' अर्थात 'काटना' का आशय है कि हाइकु में दो सन्निकट विचार हों जो व्याकरण की दृष्टि से स्वतंत्र तथा कल्पना प्रवणता की दृष्टि से भिन्न हों। सामान्यतः जापानी हाइकु 'किरेजी' (विभाजक शब्द) द्वारा विभक्त दो सन्निकट विचारों को समाहित कर एक सीधी पंक्ति में रचे जाते हैं। किरेजी एक ध्वनि पदावली (वाक्यांश) के अंत में आती है। अंग्रेजी में किरेजी की अभिव्यक्ति डैश '-' से की जाती है. बाशो के निम्न हाइकु में दो भिन्न विचारों की संलिप्तता देखें:
how cool the feeling of a wall against the feet — siesta
कितनी शीतल दीवार की अनुभूति पैर के विरुद्ध
आम तौर पर अंग्रेजी हाइकु ३ पंक्तियों में रचे जाते हैं। २ सन्निकट विचार (जिनके लिये २ पंक्तियाँ ही आवश्यक हैं) पंक्ति-भंग, विराम चिन्ह अथवा रिक्त स्थान द्वारा विभक्त किये जाते हैं। अमेरिकन कवि ली गर्गा का एक हाइकु देखें-
fresh scent- ताज़ा सुगंध 
the lebrador's muzzle लेब्राडोर की थूथन 
deepar into snow गहरे बर्फ में.

सारतः दोनों स्थितियों में, विचार- हाइकू का दो भागों में विषयांतर कर अन्तर्निहित तुलना द्वारा रचना के आशय को ऊँचाई देता है। इस द्विभागी संरचना की प्रभावी निर्मिति से दो भागों के अंतर्संबंध तथा उनके मध्य की दूरी का परिहार हाइकु लेखन का कठिनतम भाग है।
३. विषय चयन और मार्मिकता:
पारम्परिक हाइकु मनुष्य के परिवेश, पर्यावरण और प्रकृति पर केंद्रित होता है। हाइकु को ध्यान की एक विधि के रूप में देखें जो स्वानुभूतिमूलक व्यक्तिनिष्ठ विश्लेषण या निर्णय आरोपित किये बिना वास्तविक वस्तुपरक छवि को सम्प्रेषित करती है। जब आप कुछ ऐसा देखें या अनुभव करे जो आपको अन्यों को बताने के लिए प्रेरित करे तो उसे 'ध्यान से देखें', यह अनुभूति हाइकु हेतु उपयुक्त हो सकती है। जापानी कवि क्षणभंगुर प्राकृतिक छवियाँ यथा मेंढक का तालाब में कूदना, पत्ती पर जल वृष्टि होना, हवा से फूल का झुकना आदि को ग्रहण व सम्प्रेषित करने के लिये हाइकु का उपयोग करते हैं। कई कवि 'गिंकगो वाक' (नयी प्रेरणा की तलाश में टहलना) करते हैं आधुनिक हाइकु प्रकृति से परे हटकर शहरी वातावरण, भावनाओं, अनुभूतियों, संबंधों, उद्वेगों, आक्रोश, विरोध, आकांक्षा, हास्य आदि को हाइकु की विषयवस्तु बना रहे हैं।
४. मौसमी संदर्भ:
जापान में 'किगो' (मौसमी बदलाव, ऋतु परिवर्तन आदि) हाइकु का अनिवार्य तत्व है। मौसमी संदर्भ स्पष्ट या प्रत्यक्ष (सावन, फागुन आदि) अथवा सांकेतिक या परोक्ष (ऋतु विशेष में खिलने वाले फूल, मिलनेवाले फल, मनाये जाने वाले पर्व आदि) हो सकते हैं. फुकुडा चियो नी रचित हाइकु देखें:
morning glory! भोर की दमक 
the well bucket-entangled, कूप - बाल्टी गठबंधन
I ask for water मैंने पानी माँगा

५. विषयांतर:
हाइकु में दो सन्निकट विचारों की अनिवार्यता को देखते हुए चयनित विषय के परिदृश्य को इस प्रकार बदलें कि रचना में २ भाग हो सकें। जैसे लकड़ी के लट्ठे पर रेंगती दीमक पर केंद्रित होते समय उस छवि को पूरे जंगल या दीमकों के निवास के साथ जोड़ें। सन्निकटता तथा संलिप्तता हाइकु को सपाट वर्णन के स्थान पर गहराई तथा लाक्षणिकता प्रदान करती हैं. रिचर्ड राइट का यह हाइकु देखें:
A broken signboard banging टूटा साइनबोर्ड तड़का
In the April wind. अप्रैल की हवाओं में
Whitecaps on the bay. खाड़ी में झागदार लहरें

६. संवेदी भाषा-सूक्ष्म विवरण:
हाइकु गहन निरीक्षणजनित सूक्ष्म विवरणों से निर्मित और संपन्न होता है। हाइकुकार किसी घटना को साक्षीभाव (तटस्थता) से देखता है और अपनी आत्मानुभूति शब्दों में ढालकर अन्यों तक पहुँचाता है। हाइकु का विषय चयन करने के पश्चात उन विवरणों का विचार करें जिन्हें आप हाइकु में देना चाहते हैं। मस्तिष्क को विषयवस्तु पर केंद्रित कर विशिष्टताओं से जुड़े प्रश्नों का अन्वेषण करें। जैसे: अपने विषय के सम्बन्ध क्या देखा? कौन से रंग, संरचना, अंतर्विरोध, गति, दिशा, प्रवाह, मात्रा, परिमाण, गंध आदि तथा अपनी अनुभूति को आप कैसे सही-सही अभिव्यक्त कर सकते हैं?
७. वर्णनात्मक नहीं दृश्यात्मक
हाइकु-लेखन वस्तुनिष्ठ अनुभव के पलों का अभिव्यक्तिकरण है, न कि उन घटनाओं का आत्मपरक या व्यक्तिपरक विश्लेषण या व्याख्या। हाइकू लेखन के माध्यम से पाठक/श्रोता को घटित का वास्तविक साक्षात कराना अभिप्रेत है न कि यह बताना कि घटना से आपके मन में क्या भावनाएं उत्पन्न हुईं। घटना की छवि से पाठक / श्रोता को उसकी अपनी भावनाएँ अनुभव करने दें। अतिसूक्ष्म, न्यूनोक्ति (घटित को कम कर कहना) छवि का प्रयोग करें। यथा: ग्रीष्म पर केंद्रित होने के स्थान पर सूर्य के झुकाव या वायु के भारीपन पर प्रकाश डालें। घिसे-पिटे शब्दों या पंक्तियों जैसे अँधेरी तूफानी रात आदि का उपयोग न कर पाठक / श्रोता को उसकी अपनी पर्यवेक्षण उपयोग करने दें। वर्ण्य छवि के माध्यम से मौलिक, अन्वेषणात्मक भाषा / शंब्दों की तलाश कर अपना आशय सम्प्रेषित करें। इसका आशय यह नहीं है कि शब्दकोष लेकर अप्रचलित शब्द खोजकर प्रयोग करें अपितु अपने जो देखा और जो आप दिखाना चाहते हैं उसे अपनी वास्तविक भाषा में स्वाभाविकता से व्यक्त करें।
८. प्रेरित हों:
महान हाइकुकारों की परंपरा प्रेरणा हेतु भ्रमण करना है। अपने चतुर्दिक पदयात्रा करें और परिवेश से समन्वय स्थापित करें ताकि परिवेश अपनी सीमा से बाहर आकर आपसे बात करता प्रतीत हो । आज करे सो अब: कागज़-कलम अपने साथ हमेशा रखें ताकि पंक्तियाँ जैसे ही उतरें, लिख सकें। आप कभी पूर्वानुमान नहीं कर सकते कि कब जलधारा में पाषाण का कोई दृश्य, सुरंग पथ पर फुदकता चूहा या सुदूर पहाड़ी पर बादलों की टोपी आपको हाइकू लिखने के लिये प्रेरित कर देगी। 
पढ़िए-बढ़िए: अन्य हाइकुकारों के हाइकू पढ़िए। हाइकु के रूप विधान की स्वाभाविकता, सरलता, सहजता तथा सौंदर्य ने विश्व की अनेक भाषाओँ में सहस्त्रोंको लिखने की प्रेरणा दी है।अन्यों के हाइकू पढ़ने से आपके अंदर छिपी प्रतिभा स्फुरित तथा गतिशील हो सकती है।

९. अभ्यास:
किसी भी अन्य कला की तरह ही हाइकू लेखन कला भी आते-आते ही आती है। सर्वकालिक महानतम हाइकुकार बाशो के अनुसार हर हाइकु को हजारों बार जीभ पर दोहराएं, हर हाइकू को कागज लिखें, लिखें, फिर-फिर लिखें जब तक कि उसका निहितार्थ स्पष्ट न हो जाए। स्मरण रहे कि आपको ५-७-५ सिलेबल के बंधन में कैद नहीं होना है। वास्तविक साहित्यिक हाइकु में 'किगो' द्विभागी सन्निकट संरचना और प्राथमिक तौर पर संवादी छवि होती ही है।
१०. संवाद:
हाइकू के गंभीर और सच्चे अध्येता हेतु विश्व की विविध भाषाओँ के हाइकुकारों के विविध मंचों, समूहों, संस्थाओं और पत्रिकाओं से जुड़ना आवश्यक है ताकि वे अधुनातन हाइकु शिल्प और शैली के विषय में अद्यतन जानकारी पा सकें। हाइकु शिल्प का एक महत्त्वपूर्ण अंग है "किरेजि"। "किरेजि" का स्पष्ट अर्थ देना कठिन है, शाब्दिक अर्थ है "काटने (अलग करने) वाला अक्षर"। इसे हिंदी में ''वाचक शब्द'' कहा जा सकता है। "किरेजि" जापानी कविता में शब्द-संयम की आवश्यकता से उत्पन्न रूढ़ि-शब्द है जो अपने आप में किसी विशिष्ट अर्थ का द्योतक न होते हुए भी पद-पूर्ति में सहायक होकर कविता के सम्पूर्णार्थ में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है। सोगि (१४२०-१५०२) के समय में १८ किरेजि निश्चित हो चुके थे। समय के साथ इनकी संख्या बढ़ती रही। महत्त्वपूर्ण किरेजि है- या, केरि, का ना, और जो। "या" कर्ता का अथवा अहा, अरे, अच्छा आदि का बोध कराता है। 
यथा-
आरा उमि या / सादो नि योकोतोओ / आमा नो गावा [ "या" किरेजि] 
अशांत सागर / सादो तक फैली है / नभ गंगा
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सहायक पुस्तक: जापानी हाइकु और आधुनिक हिन्दी कविता, डा० सत्यभूषण वर्मा, पृष्ठ ५५-५६ 
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ताँका (短歌) (शाब्दिक अर्थ लघुगीत अथवा छोटी कविता) 
यह जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य विधा है। इस विधा को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे। हाइकु का उद्भव इसी से हुआ।[1]
इसकी संरचना ५+७+५+७+७=३१ वर्णों की होती है। एक कवि प्रथम ५+७+५=१७ भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग ७+७ की पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था। फिर पूर्ववर्ती ७+७ को आधार बनाकर अगली शृंखला में ५+७+५ यह क्रम चलता; फिर इसके आधार पर अगली शृंखला ७+७ की रचना होती थी। इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था।यह शृंखला १०० तक भी पहुँच जाती थी। ताँका पाँच पंक्तियों और ५+७+५+७+७=३१ वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव है। इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र हाइकु नहीं है। इसका अर्थ पहली से पाँचवीं पंक्ति तक व्याप्त होता है। लयविहीन काव्यगुण से शून्य रचना छन्द का शरीर धारण करने मात्र से ताँका नहीं बन सकती। साहित्य का दायित्व बहुत व्यापक है। अत:  को किसी विषय विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता। चर्चित ताँका संग्रह १. सात छेदवाली मैं -सुधा गुप्ता, २. झरे हरसिंगार -रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ।
सदोका:
५ ७ ७ ५ ७ ७  वर्णक्रम की षट्पदिक काव्यरचना है। 
चोका (लंबी कविता): 
पहली से तेरहवीं सदी तक जापान में चोका (महाकाव्य की वर्णनात्मक कथाकथन शैली) में काव्य की रचना व गायन होता रहा। किसी एक कवि द्वारा रचित चोका का उच्च स्वर में गायन उसी तरह किया जाता था जैसे भारत में अल्हैत आल्हा का गायन करते हैं। चोका में पंक्ति-संख्या का बंधन नहीं होता, किंतु पंक्तियों का योग विषम संख्या में होता है। ५ ७ ५ ७ ५ ७ ५ ७ ५ ७ ५ ७ ५ ७ के क्रम में कथ्य पूर्ण होने पर अंत में ७ मात्रा की एक पंक्ति जोड़कर ताँका से समापन किया जाता है। चर्चित चोका कृतियाँ: ओके भर किरणें -डॉ. सुधा गुप्ता, परिंदे कब लौटे -भावना कुँवर, मिले किनारे -रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु'। 
हाइगा-
जापान की काव्य-चित्र शैली हाइगा का प्रचलन १७ वीं सदी में हुआ। हाइ = हाइकु (लघु काव्य), गा = ब्रश से बनाया गया रंगीन चित्र। 
संपर्क- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, ई मेल salil.sanjiv@gmail.com, चलभाष: ९४२५१८३२४४ ।

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मंगलवार, 11 जुलाई 2017

haiku

विशेष लेख:
हाइकु एक जापानी छंद 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
                          हाइकु सामान्यतः ३ पंक्तियों की वह लघु काव्य रचना है जिसमें सामान्यतः क्रमश: ५-७-५ ध्वनियों का प्रयोग कर एक अनुभूति या छवि की अभिव्यक्ति की जाती है। हिंदी को त्रिपदिक छंदों की विरासत संस्कृत से मिली है। वर्त्तमान में जापानी का हाइकु हिंदी साहित्य में हिंदी के संस्कार और भारतीयता का कलेवर लेकर लोकप्रिय हो रहा है। 

                          हाइकु (Haiku 俳句 high-koo) ऐसी लघु कवितायेँ हैं जो एक अनुभूति या छवि को व्यक्त करने के लिए संवेदी भाषा प्रयोग करती हैं। हाइकु बहुधा प्रकृति के तत्व, सौंदर्य के पल या मार्मिक अनुभव से प्रेरित होते हैं। मूलतः जापानी कवियों द्वारा विकसित हाइकु काव्यविधा अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ द्वारा ग्रहण की गयी। 
                          पाश्चात्य काव्य से भिन्न हाइकु में सामान्यतः तुकसाम्य, छंद बद्धता या काफ़िया नहीं होता। 
हाइकु को असमाप्त काव्य  चूँकि हर हाइकु में पाठक / श्रोता के मनोभावों के अनुसार पूर्ण किये जाने की अपेक्षा होती  है। हाइकु का उद्भव 'रेंगा नहीं हाइकाइ (haikai no renga) सहयोगी काव्य समूह' जिसमें शताधिक छंद होते हैं से हुआ है। 'रेंगा' समूह का प्रारंभिक छंद 'होक्कु'  मौसम तथा अंतिम शब्द का संकेत करता है। हाइकु  अपने काव्य-शिल्प  से परंपरा के नैरन्तर्य बनाये रखता है। 
समकालिक हाइकुकार कम शब्दों से लघु काव्य रचनाएँ करते हैं. ३-५-३ सिलेबल के लघु हाइकु भी रचे जाते हैं। 

हाइकु का वैशिष्ट्य 

१. ध्वन्यात्मक संरचना:

                          पारम्परिक जापानी हाइकु १७ ध्वनियों का समुच्चय है जो ५-७-५ ध्वनियों की ३ पदावलियों में विभक्त होते हैं। अंग्रेजी के कवि इन्हें सिलेबल (लघुतम उच्चरित ध्वनि) कहते हैं। समय के साथ विकसित हाइकु काव्य के अधिकांश हाइकुकार अब इस संरचना का अनुसरण नहीं करते। जापानी या अंग्रेजी के आधुनिक हाइकु न्यूनतम एक से लेकर सत्रह से अधिक ध्वनियों तक के होते हैं। अंग्रेजी सिलेबल लम्बाई में बहुत परिवर्तनशील होते हैं जबकि जापानी सिलेबल एकरूपेण लघु होते हैं। इसलिए 'हाइकु चंद ध्वनियों का उपयोग कर एक छवि निखारना है' की पारम्परिक धारणा से हटकर, १७ सिलेबल का अंग्रेजी हाइकु १७ सिलेबल के जापानी हाइकु की तुलना में बहुत लंबा होता है। ५-७-५ सिलेबल का बंधन बच्चों को विद्यालयों में पढ़ाए जाने के बावजूद अंग्रेजी हाइकू लेखन में प्रभावशील नहीं है। हाइकु लेखन में सिलेबल निर्धारण के लिये जापानी अवधारणा "हाइकु एक श्वास में अभिव्यक्त कर सके" उपयुक्त है। अंग्रेजी में सामान्यतः  इसका आशय १० से १४ सिलेबल लंबी पद्य रचना से है। अमेरिकन उपन्यासकार जैक कैरोक का एक हाइकू देखें:

Snow in my shoe         मेरे जूते में बर्फ 
Abandoned                  परित्यक्त 
Sparrow's nest             गौरैया-नीड़

२. वैचारिक सन्निकटता:

                          हाइकु में दो विचार सन्निकट हों: जापानी शब्द 'किरु' अर्थात 'काटना' का आशय है कि हाइकु में दो सन्निकट विचार हों जो व्याकरण की दृष्टि से स्वतंत्र तथा कल्पना प्रवणता की दृष्टि से भिन्न हों। सामान्यतः जापानी हाइकु 'किरेजी' (विभाजक शब्द) द्वारा विभक्त दो सन्निकट विचारों को समाहित कर एक सीधी पंक्ति में रचे जाते हैं। किरेजी एक ध्वनि पदावली (वाक्यांश) के अंत में आती है। अंग्रेजी में किरेजी की अभिव्यक्ति डैश '-' से की जाती है. बाशो के निम्न हाइकु में दो भिन्न विचारों की संलिप्तता देखें: 

how cool the feeling of a wall against the feet — siesta

कितनी शीतल दीवार की अनुभूति पैर के विरुद्ध 

                          आम तौर पर अंग्रेजी हाइकु ३ पंक्तियों में रचे जाते हैं। २ सन्निकट विचार (जिनके लिये २ पंक्तियाँ ही आवश्यक हैं) पंक्ति-भंग, विराम चिन्ह अथवा रिक्त स्थान द्वारा विभक्त किये जाते हैं। अमेरिकन कवि ली गर्गा का एक हाइकु देखें- 

fresh scent-                     ताज़ा सुगंध 
the lebrador's muzzle      लेब्राडोर की थूथन 
deepar into snow             गहरे बर्फ में.

                          सारतः दोनों स्थितियों  में, विचार- हाइकू का दो भागों में विषयांतर कर अन्तर्निहित तुलना द्वारा रचना के आशय को ऊँचाई देता है। इस द्विभागी संरचना की प्रभावी निर्मिति से दो भागों के अंतर्संबंध तथा उनके मध्य की दूरी का परिहार हाइकु लेखन का कठिनतम भाग है।

३. विषय चयन और मार्मिकता: 

                          पारम्परिक हाइकु मनुष्य के परिवेश, पर्यावरण और प्रकृति पर केंद्रित होता है। हाइकु को ध्यान की एक विधि के रूप में देखें जो स्वानुभूतिमूलक व्यक्तिनिष्ठ विश्लेषण या निर्णय आरोपित किये बिना वास्तविक वस्तुपरक छवि को सम्प्रेषित करती है। जब आप कुछ  ऐसा देखें या अनुभव करे जो आपको अन्यों को बताने के लिए प्रेरित करे तो उसे 'ध्यान से देखें', यह अनुभूति हाइकु हेतु उपयुक्त हो सकती है। जापानी कवि क्षणभंगुर प्राकृतिक छवियाँ यथा मेंढक का तालाब में कूदना, पत्ती पर जल वृष्टि होना, हवा से फूल का झुकना आदि को ग्रहण  व सम्प्रेषित करने के लिये हाइकु का उपयोग करते हैं। कई कवि 'गिंकगो वाक' (नयी प्रेरणा की तलाश में टहलना) करते हैं आधुनिक हाइकु प्रकृति से परे हटकर शहरी वातावरण, भावनाओं, अनुभूतियों, संबंधों, उद्वेगों, आक्रोश, विरोध, आकांक्षा, हास्य आदि को हाइकु की विषयवस्तु बना रहे हैं। 

४. मौसमी संदर्भ: 

                          जापान में  'किगो' (मौसमी बदलाव, ऋतु परिवर्तन आदि) हाइकु का अनिवार्य तत्व है। मौसमी संदर्भ स्पष्ट या प्रत्यक्ष (सावन, फागुन आदि) अथवा सांकेतिक या परोक्ष (ऋतु विशेष में खिलने वाले फूल, मिलनेवाले फल, मनाये जाने वाले पर्व आदि) हो सकते हैं. फुकुडा चियो नी रचित हाइकु देखें:

morning glory!                               भोर की दमक 
the well bucket-entangled,            कूप - बाल्टी गठबंधन
I ask for water                               मैंने पानी माँगा 

५. विषयांतर: 

                          हाइकु में दो सन्निकट विचारों की अनिवार्यता को देखते हुए चयनित विषय के परिदृश्य को इस प्रकार बदलें कि रचना में २ भाग हो सकें। जैसे लकड़ी के लट्ठे पर रेंगती दीमक पर केंद्रित होते समय उस छवि को पूरे जंगल या दीमकों के निवास के साथ जोड़ें। सन्निकटता तथा संलिप्तता हाइकु को सपाट वर्णन के स्थान पर गहराई तथा लाक्षणिकता प्रदान करती हैं. रिचर्ड राइट का यह हाइकु देखें: 

A broken signboard banging       टूटा साइनबोर्ड तड़का
In the April wind.                          अप्रैल की हवाओं में
Whitecaps on the bay.                 खाड़ी में झागदार लहरें 

६. संवेदी भाषा-सूक्ष्म विवरण: 

                          हाइकु गहन निरीक्षणजनित सूक्ष्म विवरणों से निर्मित और संपन्न होता है। हाइकुकार किसी घटना को साक्षीभाव (तटस्थता) से देखता है और अपनी आत्मानुभूति शब्दों में ढालकर अन्यों तक पहुँचाता है। हाइकु का विषय चयन करने के पश्चात उन विवरणों का विचार करें जिन्हें आप हाइकु में देना चाहते हैं। मस्तिष्क को विषयवस्तु पर केंद्रित कर विशिष्टताओं से जुड़े प्रश्नों का अन्वेषण करें। जैसे: अपने विषय के सम्बन्ध क्या देखा? कौन से रंग, संरचना, अंतर्विरोध, गति, दिशा, प्रवाह, मात्रा, परिमाण, गंध आदि तथा अपनी अनुभूति को आप कैसे सही-सही अभिव्यक्त कर सकते हैं?

७. वर्णनात्मक नहीं दृश्यात्मक  

                          हाइकु-लेखन वस्तुनिष्ठ अनुभव के पलों का अभिव्यक्तिकरण है, न कि उन घटनाओं का आत्मपरक या व्यक्तिपरक विश्लेषण या व्याख्या।  हाइकू लेखन के माध्यम से पाठक/श्रोता को घटित का वास्तविक साक्षात कराना अभिप्रेत है न कि यह बताना कि घटना से आपके मन में  क्या भावनाएं उत्पन्न हुईं। घटना की छवि से पाठक / श्रोता को उसकी अपनी भावनाएँ अनुभव करने दें। अतिसूक्ष्म, न्यूनोक्ति (घटित को कम कर कहना) छवि का प्रयोग करें। यथा: ग्रीष्म पर केंद्रित होने के स्थान पर सूर्य के झुकाव या वायु के भारीपन पर प्रकाश डालें। घिसे-पिटे शब्दों या पंक्तियों जैसे अँधेरी तूफानी रात आदि का उपयोग न कर पाठक / श्रोता को उसकी अपनी पर्यवेक्षण  उपयोग करने दें। वर्ण्य छवि के माध्यम से मौलिक, अन्वेषणात्मक भाषा / शंब्दों की तलाश कर अपना आशय सम्प्रेषित करें। इसका  आशय यह नहीं है कि शब्दकोष लेकर अप्रचलित शब्द खोजकर प्रयोग करें अपितु अपने जो देखा और जो आप दिखाना चाहते हैं उसे अपनी वास्तविक भाषा में स्वाभाविकता से व्यक्त करें।

८. प्रेरित हों: 

                          महान हाइकुकारों की परंपरा प्रेरणा हेतु भ्रमण करना है। अपने चतुर्दिक पदयात्रा करें और परिवेश से समन्वय स्थापित करें ताकि परिवेश अपनी सीमा से बाहर आकर आपसे बात करता प्रतीत हो । आज करे सो अब: कागज़-कलम अपने साथ हमेशा रखें ताकि पंक्तियाँ जैसे ही उतरें, लिख सकें। आप कभी पूर्वानुमान नहीं कर सकते कि कब जलधारा में पाषाण का कोई दृश्य, सुरंग पथ पर फुदकता चूहा या सुदूर पहाड़ी पर बादलों की टोपी आपको हाइकू लिखने के लिये प्रेरित कर देगी।               
पढ़िए-बढ़िए: अन्य हाइकुकारों के हाइकू पढ़िए। हाइकु के रूप विधान  की स्वाभाविकता, सरलता, सहजता तथा सौंदर्य ने  विश्व की अनेक भाषाओँ में सहस्त्रोंको लिखने की प्रेरणा दी है।अन्यों के हाइकू पढ़ने से आपके अंदर छिपी प्रतिभा स्फुरित तथा गतिशील हो सकती है।

९. अभ्यास: 

                          किसी भी अन्य कला की तरह ही हाइकू लेखन कला भी आते-आते ही  आती है। सर्वकालिक महानतम हाइकुकार बाशो के अनुसार हर हाइकु को हजारों बार जीभ पर दोहराएं, हर हाइकू को कागज लिखें, लिखें, फिर-फिर लिखें जब तक कि उसका निहितार्थ स्पष्ट न हो जाए। स्मरण रहे कि आपको ५-७-५ सिलेबल के बंधन में कैद नहीं होना है। वास्तविक साहित्यिक हाइकु में 'किगो'  द्विभागी सन्निकट संरचना और प्राथमिक तौर पर संवादी छवि होती ही है।  

१०. संवाद: 

                          हाइकू के गंभीर और सच्चे अध्येता हेतु  विश्व की विविध भाषाओँ के हाइकुकारों के विविध मंचों, समूहों, संस्थाओं और पत्रिकाओं से जुड़ना आवश्यक है ताकि वे अधुनातन हाइकु शिल्प और शैली के विषय में अद्यतन जानकारी पा सकें। हाइकु शिल्प का एक महत्त्वपूर्ण अंग है "किरेजि"। "किरेजि" का स्पष्ट अर्थ देना कठिन है, शाब्दिक अर्थ है "काटने (अलग करने) वाला अक्षर"। इसे हिंदी में ''वाचक शब्द'' कहा जा सकता है। "किरेजि" जापानी कविता में शब्द-संयम की आवश्यकता से उत्पन्न रूढ़ि-शब्द है जो अपने आप में किसी विशिष्ट अर्थ का द्योतक न होते हुए भी पद-पूर्ति में सहायक होकर कविता के सम्पूर्णार्थ में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है। सोगि (१४२०-१५०२) के समय में १८ किरेजि निश्चित हो चुके थे। समय के साथ इनकी संख्या बढ़ती रही। महत्त्वपूर्ण किरेजि है- या, केरि, का ना, और जो। "या" कर्ता का अथवा अहा, अरे, अच्छा आदि का बोध कराता है। 
यथा-
आरा उमि या / सादो नि योकोतोओ / आमा नो गावा [ "या" किरेजि] 
अशांत सागर / सादो तक फैली है / नभ गंगा
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सहायक पुस्तक: जापानी हाइकु और आधुनिक हिन्दी कविता, डा० सत्यभूषण वर्मा, पृष्ठ ५५-५६ 
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संपर्क- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, ई मेल salil.sanjiv@gmail.com, चलभाष: ९४२५१८३२४४ ।
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