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शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

मुक्तक

मुक्तक:
जन्म दिन 
​समय ग्रन्थ के एक पृष्ठ को संजीवित कर आप रहे 
बिंदु सिंधु में, सिंधु बिंदु में होकर नित प्रति व्याप रहे 
हर दिन जन्म नया होना है, रात्रि मूँदना आँख सखे!
पैर धरा पर जमा, गगन छू आप सफलता नाप रहे 
*
मन सागर, मन सलिला भी है, नमन अंजुमन विहँस कहें
प्रश्न करे यह उत्तर भी दे, मन की मन में रखेँ-कहें?
शमन दमन का कर महकाएँ चमन, गमन हो शंका का-
बेमन से कुछ काम न करिए, अमन में चमन 'सलिल' रहे
*
तेरी निंदिया सुख की निंदिया, मेरी निंदिया करवट-करवट
मेरा टीका चौखट-चौखट, तेरी बिंदिया पनघट-पनघट
तेरी आसें-मेरी श्वासें, साथ मिलें रच बृज की रासें-
तेरी चितवन मेरी धड़कन, हैं हम दोनों सलवट-सलवट
*
बोरे में पैसे ले जाएँ, सब्जी लायें मुट्ठी में
मोबाइल से वक़्त कहाँ है, जो रुचि ले युग चिट्ठी में
कुट्टी करते घूम रहे हैं सभी सियासत के मारे-
चले गये वे दिन जब गले मिले हैं संगा मिट्ठी में
*
नहीं जेब में बचीं छदाम, खास दिखें पर हम हैँ आम
कोई तो कविता सुनकर, तनिक दाद दे करे सलाम
खोज रहीं तन्मय नज़रें, कहाँ वक़्त का मारा है?
जिसकी गर्दन पकड़ें हम फ़िर चुकवा दें बिल बेदाम
***

मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

षट्पदी / मुक्तक

*
षट्पदी
श्वास-आस में ग्रह-उपग्रह सा पल-पल पलता नाता हो.
समय, समय से पूर्व, समय पर सच कहकर चेताता हो.
कर्म भाग्य का भाग्य बताये, भाग्य कर्म के साथ रहे-
संगीता के संग आज, कल-कल की बात बताता हो.
जन्मदिवस पर केक न काटें, कभी बुझायें ज्योति नहीं
दीप जला दीवाली कर लें, तिमिर भाग छिप जाता हो.
मुक्तक
कृष्ण कांत हैं सारे जग के, कण-कण यहाँ सुदामा है
परमात्मा है सबका स्वामी, हर एक आत्मा वामा है
सच से मिलना जन्म हर सुबह, आँख बंद तो मौत हुई-
कल्प-कल्प तक आना-जाना कहो दिवस या यामा है
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