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गुरुवार, 13 नवंबर 2025

मीना भट्ट, जीवन-धारा, पुरोवाक्

पुरोवाक् 
लोकोपयोगी गीतों की मंजूषा ''जीवन धारा''   
- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
                    सनातन सलिला नर्मदा की घाटी आदि काल से साधना भूमि के रूप में प्रसिद्ध है। साधना की यह विरासत अतीत से वर्तमान तक गतिमान है। सर्व हित की साधना केवल आध्यात्मिक व्यक्तित्व ही नहीं करते, सांसारिक व्यक्ति भी सर्व कल्याण की साधना करता है। साहित्य की साधना इसी प्रकार की साधना है। साहित्य वह जिसमें सबका हित समाहित हो। नर्मदा तटीय संस्कारधानी जबलपुर की पुण्य भूमि पर साहित्य सृजन की दिव्य परंपरा चिरकालिक है। संस्कारधानी के समसामयिक साहित्य-साधकों में 'मीना भट्ट' एक ऐसा नाम है जो सत्य-शिव-सुंदर और सत-शिव-सुंदर को साहित्य सृजन का लक्ष्य मानकर, निरंतर सृजन में रत है। सामान्यत: नया साहित्यकार अपने लिखे को ही श्रेष्ठ समझता और आत्म मुग्ध रहता है। अंतर्जाल के विविध समूहों पर अधकचरा साहित्य निरंतर परोसा जा रहा है। मीना जी इस कुप्रवृत्ति का विरोध बोलकर नहीं, निरंतर लिखकर करती हैं। वे लिखने के साथ-साथ निरंतर पढ़ती और समझती हैं। गीत-गजल आदि विधाओं में मीना का रचनाकार कलम उठाने के पहले उसका अध्ययन करता है, निरंतर अभ्यास कर सृजन करता है, जानकारों से विमर्श करता है और अपने लेखन को तराशने के बाद प्रकाशित करता है। संभवत:, इस मनोवृत्ति का कारण मीना जी का विधि और न्याय विभाग से जुड़ा रहना है। मीना जी का एक और वैशिष्ट्य आत्म प्रचार से विमुख रहना और अपने पूर्व पद का अहं न रखना भी है। यह निरासक्त भाव लेखन के विषय और शिल्प के प्रति तटस्थ रहकर उससे संबंधित मौलिक चिंतन करने और उसे रचनाओं में अभिव्यक्त करने में सहायक होता है। ''जीवन धारा'' मीना जी की नवीन काव्य कृति है, जिसमें मीना जी की सुदीर्घ काव्य-सृजन साधना का संस्कार पंक्ति-पंक्ति में प्रतिबिंबित है।

                    जीवन धारा का श्रीगणेश वाग्देवी वंदना से करने की सनातन परंपरा को जीवंत रखते हुए मीना जी उन्हें 'महाबला', 'शत्रुनाशिनी', 'सुलोचना', 'सुमंगला', 'मुक्तिवाहिनी', 'प्रेमदायिनी', 'सुहासिनी', 'श्रीप्रदा', 'प्रशासनी' आदि अपारंपरिक विशेषणों से अभिषिक्त कर, मौलिक चिंतन दृष्टि का परिचय देती हैं। श्रीराम पर केंद्रित रचना में 'गंगा धारे' लिखा जाना मौलिक तो है किंतु लोक में 'गंगा धारे' शिव जी हेतु प्रयुक्त होता है। इसे 'गंग किनारे' लिखना अधिक समीचीन होता। वंदना क्रम में श्री कृष्ण, भारत देश के पश्चात लोक का स्मरण 'प्रेम' भाव को अपनाने के आह्वान से किया जाना द्वेषाधिक्य से ग्रसित इस समय में सर्वथा श्लाघ्य है। जीवन धारा के गीतों में जन सामान्य को जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने, पारस्परिक सद्भाव वृद्धि, सत्कर्म करने की प्रेरणा, राष्ट्र भक्ति, नैतिक मूल्यों की स्थापना तथा पर्यावरण और प्रकृति के प्रति दायित्व बोध के साथ नर-नारी के मध्य स्वस्थ्य पारस्परिक सहयोग भाव की आवश्यकता प्रतिपादित कर मीना जी ने अपने गीतों को केवल वाग्विलास होने से बचाकर, लोकोपयोगी और अनुकरणीय बनाने में सफलता अर्जित की है। गत ७ दशकों में प्रगतिवाद और यथार्थ की दुहाई देकर हिंदी साहित्य में जिस नकारात्मक और द्वेषवर्धक प्रवृत्ति की बढ़ आई है, उसका रचनात्मक प्रतिरोध करते हुए मीना जी ने अपने हर गीत में सकारात्मक और निर्माणात्मक सुरुचि का बीजारोपण किया है। 

                    मानव जीवन में ऋतु परिवर्तन की महती भूमिका है। मीना जी ने मौसमों के अतिरेकी विनाशक परिदृश्य पर मोहक स्वरूप को वरीयता ठीक ही दी है। सावन वर्णन में घोंसले भीगने पर भी पंछी का दाना चुनने आना उसकी जिजीविषा दर्शाता है किंतु चुगने को दाना न मिलना मनुष्यों के कदाचरण का संकेत करता है- 

छोड़ घोंसले भीगे-भीगे, 
पंछी आए आँगन में।
नहीं मिला दान चुगने को,
अब के देखो सावन में।। 

                    हमने बचपन में देखा है कि गरीब से गरीब घर में भी गाय और कुत्ते के लिए रोटी निकली जाती थी, अब संपन्नतम घरों से भी किसी को कुछ नहीं मिलता। मीना जी की खूबी यही है कि वे स्थूल वर्णन न कर परोक्ष संकेत करती हैं, समझनेवाले के लिए इशारा ही काफी होता है। 

                    वर्षा न होने संबंधी गीत में ''रिक्त नेह के घट सारे हैं, / कुटिल मलिनता भरी हुई है। / पत्थर हृदय जमाना सारा, / मानवता भी मरी हुई है।। /  चटक मन नित प्यास तरसे, / सूख हुआ तन भी पंजर है। / तरस रहे वर्षा को हम सब, / मौन मगर बैठ अंबर है।।'' लिखकर गीतकार ने अवर्षा के लिए प्रकृति को दोष न देते हुए मानव में स्नेह के अभाव और मलिनता के आधिक्य को इंगित कर 'वर्षा' को केवल मौसमी बरसात नहीं मानव जीवन में स्नेह की वर्षा के अभाव के रूप में शब्दित किया है, यह श्लेष प्रयोग गीत को चिंतन और चिंता दोनों धरातलों पर प्रतिष्ठित करता है। 

                    लोकतंत्र का आधार हर नागरिक को अपनी  सरकार आप चुनने का संविधान सम्मत मताधिकार है। 'जागो मतदाता, जागो अब' गीत में नागरिकों को उनके गुरुतर दायित्व का बोध कराया गया है। अपने गीतों में मीना जी सरल, सहज, प्रवाहमयी भाषा का उपयोग करते हुए अन्य भाषाओं के शब्दों से परहेज नहीं करतीं। इस गीत में अंग्रेजी भाषा के पोलिंग बूथ, वोटिंग कार्ड शब्दों का प्रयोग उनकी भाषिक उदार दृष्टि का परिचायक है। तद्भव / देशज शब्दों (मनवा, करतार, हिय, टोटा, अँखियाँ, जिया, नैना, डगर, छोरी, भौंरा, करधनिया, इत-उत आदि), उर्दू में व्यवहृत अरबी-फारसी शब्दों (मस्त, तूफान, खुशियाँ, रोशनी आदि), शब्द युग्मों (निशि-वासर, निशि-दिन, दिन-रात, राग-द्वेष, पाप-पुण्य, दीन-दुखी, शीलवंत-गुणवंत, मंदिर-मस्जिद, चंदल-रोली,धूल-धूसरित, राग-रागिनी आदि), तत्सम शब्दों (नवल, हलाहल, मयंक, अनुपम, अंबुज आदि) के साथ अन्य भाषा के शब्दों के देशज रूपों (अंग्रेजी सैंडल - संदल, संस्कृत हट्ट - हाट आदि), शब्द-आवृत्ति (गली-गली, खंड-खंड, निरख-निरख, अंग-अंग आदि)  के साथ बटोही (भोजपुरी), सैंदुर (बुंदेली) आदि शब्दों का सम्यक-सार्थक प्रयोग मीना जी के शब्द-सामर्थ्य का परिचायक है। 

                    इस गीतों में शृंगार (आध्यात्मिक-सांसारिक, मिलन-विरह) , शांत, करुण, भक्ति तथा वीर रस अपनी सरसता के साथ यथास्थान सहभागी होकर संकलन को समृद्ध कर रहे हैं। संकलन का आलंकारिक वैभव रुचिवान पाठक को अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, रुपक, अतिशयोक्ति, पुनरावृत्ति आदि अलंकारों की छटा दिखाकर मुग्ध करता है। 

                    मीना जी व्यवसाय से न्यायाधीश रही हैं। स्वाभाविक है कि उन्हें कर्तव्य पालन और अनुशासन प्रिय हों। इस संकलन के माध्यम से केवम मनोरंजन न कार, उन्होंने पाठक के माध्यम से समग्र समाज को जाग्रत कार उसमें कर्तव्य बोध और अनुशासन पालन का पथ शक्कर में लपेटी कुनैन की गोली खिलाने की तरह किया है- 

देता गौरव है अनुशासन, 
देखो अलख जगाएगा। 
अनुशासन के पालन से ही 
युग परिवर्तन आएगा।  

                    इन गीतों की भाषा प्रांजल, प्रवाहमयी, सरस और सुबोध है। मुझे आशा हे नहीं भरोसा भी है कि ये गीत हर आयु वर्ग, क्षेत्र, पंथ और वादाग्रहियों द्वारा सराहे और समझें जाएँगे। लंबे समय बाद साहित्यिक गुणवत्ता युक्त लोकोपयोगी गीत संग्रह की पांडुलिपि का वाचन कर रसानंद में मगन होने का अवसर मिला है। मीना जी साधुवाद की पात्र हैं।  
          
***
संपर्क- विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४                     

विचार हेतु 
लक्ष्मी दुर्गावती में काल-क्रम दोष (दुर्गावती पहले हुईं, लक्ष्मीबाई बाद में) 
पाना तुमको लक्ष्य अगर तो / निशि-वासर चलते रहिए  - तुम के साथ रहो, आप से साथ रहिए?

शनिवार, 30 अप्रैल 2022

रासलीला, गीत, मुक्तिका, सॉनेट, मीना भट्ट, समय, हास्य, कोरोना,छंद उड़ियाना

एक रचना 
सभी मुस्कुराएँ
*
आदम का दुश्मन है, आदम ही भाई 
धरती की सचमुच अब, शामत है आई 

टैंक बम मिसाइल हैं, प्रलय का संकेत 
अमन-चैन का करते, हम ही आखेट 

पुतिन भीत नाटो से, निर्बल को मारे 
है विनाश आया अब, यूक्रेsन के द्वारे 

चैन चीन ने छीनी, कोरोना फैला 
मौत ने हजारों को, बेबस कर लीला 

भारत ही दिखा सके, राह आज भाई 
हिल-मिल हम साथ रहें, तभी है भलाई 

स्नेह सलिल अँजुरी भर, पान कर पिलाएँ 
दीपिका ले तिमिर हर, सभी मुस्कुराएँ 
छंद - उड़ियाना 
३०-४-२०२२ 
***
सॉनेट
आदिमानव
आदिमानव भूमिसुत था
नदी माता, नभ पिता कह
पवन पावक पूजता था
सलिल प्रता श्रद्धा विनत वह

उषा संध्या निशा रवि शशि
वृक्ष प्रति आभार माना
हो गईं अंबर दसों दिशि
भूख मिटने तलक खाना

छीनने या जोड़ने की
लत न उसने सीख पाली
बम बनाने फोड़ने की
उठाई थी कब भुजाली?

पुष्ट था खुश आदिमानव
तुष्ट था हँस आदिमानव
३०-४-२०२२
•••
सॉनेट
परीक्षा
पल पल नित्य परीक्षा होती
उठे बढ़े चल फिसल सम्हल कर
कदम कदम धर, विहँस पुलककर
इच्छा विजयी धैर्य न खोती।

अकरणीय क्या, क्या करना है?
खुद ही सोचो सही-गलत क्या?
आगत-अब क्या, रहा विगत क्या?
क्या तजना है, क्या वरना है?

भाग्य भोगना या लिखना है
कब किसके जैसे दिखना है
अब झुकना है, कब अड़ना है?

कोशिश फसल काटती-बोती
भाग्य भरोसे रहे न रोती
पल-पल नित्य परीक्षा होती।
ज्ञानगंगा
३०-४-२०२२
•••
मीना भट्ट जी के प्रति
जन्म दिवस पर सस्नेह
*
मीना की मीनाकारी बढ़ती जाए
नित्य मनोरम रचनाएँ गढ़ती जाए
सलिल करे अभिषेक; सफलता पग चूमे
भू पर पग रख; नभ तक हँस चढ़ती जाए
स्वागत करे बसंत; मंजरी भुज भेंटे
स्वागत गीत मुकुल लिखकर पढ़ती जाए
गीतों का रूमाल; छंद की नई छटा
पुरुषोत्तम बिंबों में ढल कढ़ती जाए
*
छाया ले आलोक विनोद करे जी भर
हो तन्मय अखिलेश विजय का तिलक करे
जय प्रकाश श्री वास्तव में दे भेंट विहँस
राजलक्ष्मी सारस्वत भंडार भरे
***
कार्यशाला
स्तंभ : रस, छंद, अलंकार
*
काहे को रोना?
कोरो ना हाथ मिला
सत्कार सखे!
कोरोना झट
भेंट शत्रु को कर
उद्धार सखे!
*
को विद? पूछे
कोविद हँसकर
विद जी भागे
हाथ समेटे
गले भी न मिलते
करें नमस्ते!
*
गीत-अगीत
प्रगीत लिख रहे
गद्य गीत भी
गीतकार जी
गीत करे नीलाम
नवगीत जी
*
टाटा करते
हाय हाय रुचता
बाय बाय भी
बाटा पड़ते
हाय हाय करते
बाय फ्रैंड जी
*
केक लाओ जी!
फरमाइश सुन
पति जी हैरां
मी? ना बाबा
मीना! बाहर खड़ा
सिपाही मोटा
*
रस - हास्य, छंद वार्णिक षट्पदी, यति ५-७-५-५-७-५, अलंकार - अनुप्रास, यमक, पुनरुक्ति, शक्ति - व्यंजना।
***
मुक्तिका muktika
*
निर्जीव को संजीव बनाने की बात कर
हारे हुओं को जंग जिताने की बात कर
nirjeev ko sanjeev banane ki baat kar
hare huon ko jang jitane ki baat kar
'भू माफिये'! भूचाल कहे: 'मत जमीं दबा
जो जोड़ ली है उसको लुटाने की बात कर'
'bhoo mafiye' bhoochal kahe: mat jameen daba
jo jod li hai usko lutane kee baat kar
'आँखें मिलायें' मौत से कहती है ज़िंदगी
आ मारने के बाद जिलाने की बात कर
aankhen milayen maut se kahtee hai zindagi
'aa, marne ke baad jilaane ki baat kar'
तूने गिराये हैं मकां बाकी हैं हौसले
काँटों के बीच फूल खिलाने की बात कर
toone giraye hain makan, baki hain hausale
kaanon ke beech fool khilane kee baat kar
हे नाथ पशुपति! रूठ मत तू नीलकंठ है
हमसे ज़हर को अमिय बनाने की बात कर
he nath pashupati! rooth mat too neelkanth hai
hmse zar ko amiy banane kee baat kar
पत्थर से कलेजे में रहे स्नेह 'सलिल' भी
आ वेदना से गंग बहाने की बात कर
patthar se kaleje men rahe sneh salil bhee
aa vedana se gng bahane kee baat kar
नेपाल पालता रहा विश्वास हमेशा
चल इस धरा पे स्वर्ग बसाने की बात कर
nepaal palta raha vishwas hamesha
chal is dhara pe swarg basane kee baat kar
३०-४-२०१५
***
गीत:
समय की करवटों के साथ
*
गले सच को लगा लूँ मैँ समय की करवटों के साथ
झुकाया, ना झुकाऊँगा असत के सामने मैं माथ...
*
करूँ मतदान तज मत-दान बदलूँगा समय-धारा
व्यवस्था से असहमत है, न जनगण किंतु है हारा
न मत दूँगा किसी को यदि नहीं है योग्य कोई भी-
न दलदल दलोँ की है साध्य, हमकों देश है प्यारा
गिरहकट, चोर, डाकू, मवाली दल बनाकर आये
मिया मिट्ठू न जनगण को तनिक भी क़भी भी भाये
चुनें सज्जन चरित्री व्यक्ति जो घपला प्रथा छोड़ें
प्रशासन को कसे, उद्यम-दिशा को जमीं से जोड़े
विदेशी ताकतों से ले न कर्जे, पसारे मत हाथ.…
*
लगा चौपाल में संसद, बनाओ नीति जनहित क़ी
तजो सुविधाएँ-भत्ते, सादगी से रहो, चाहत की
धनी का धन घटे, निर्धन न भूखा कोई सोयेगा-
पुलिस सेवक बने जन की, न अफसर अनय बोयेगा
सुनें जज पंच बन फ़रियाद, दें निर्णय न देरी हो
वकीली फ़ीस में घर बेच ना दुनिया अँधेरी हो
मिले श्रम को प्रतिष्ठा, योग्यता ही पा सके अवसर
न मँहगाई गगनचुंबी, न जनता मात्र चेरी हो
न अबसे तंत्र होगा लोक का स्वामी, न जन का नाथ…
३०-४-२०१४
***
खबर: ३०-४-२०१०
शराब की दूकानों का ठेका लेने महिलाओं के हजारों आवेदन. आपकी राय ?
*
मधुशाला को मधुबाला ने निशा निमंत्रण भेजा है.
पीनेवालों समाचार क्या तुमने देख सहेजा है?
दूना नशा मिलेगा तुमको आँखों से औ' प्याले से.
कैसे सम्हल सकेगा बोलो इतना नशा सम्हाले से?
*
खबर २०१७
शराब की दुकानों के विरोध में महिलाओं द्वारा हमला
*
शासक बदला, शासन बदला, जनता बदली जागी है
साकी ने हाथों में थमाई है मशाल, खुद आगी है
मधुशाला के मादक भागे, मंदिर में जा गहो शरण
'तीन तलाकी' सम्हलो, 'खुला' ही तुम लुच्चों की चावी है
***
रासलीला :
*
आँख में सपने सुनहरे झूलते हैं.
रूप लख भँवरे स्वयं को भूलते हैं.

झूमती लट नर्तकी सी डोलती है.
फिजा में रस फागुनी चुप घोलती है.

कपोलों की लालिमा प्राची हुई है.
कुन्तलों की कालिमा नागिन मुई है.

अधर शतदल पाँखुरी से रसभरे हैं.
नासिका अभिसारिका पर नग जड़े हैं.

नील आँचल पर टके तारे चमकते.
शांत सागर मध्य दो वर्तुल उमगते.

खनकते कंगन हुलसते गीत गाते.
राधिका है साधिका जग को बताते.

कटि लचकती साँवरे का डोलता मन.
तोड़कर चुप्पी बजी पाजेब बैरन.

सिर्फ तेरा ही नहीं मेरा सुमन मन 
खनखना कह बज उठी कनकाभ करधन.

चपल दामिनी सी भुजाएँ लपलपातीं.
करतलों पर लाल मेंहदी मुस्कुराती.

अँगुलियों पर मुन्दरियाँ नग जड़ी सोहें.
कज्जली किनार सज्जित नयन मोहें.

भौंह बाँकी, मदिर झाँकी नटखटी है.
मोरपंखी छवि सुहानी अटपटी है.

कौन किससे अधिक, किससे कौन कम है.
कौन कब दुर्गम-सुगम है?, कब अगम है?

पग युगल द्वय कब धरा पर?, कब अधर में?
कौन बूझे?, कौन-कब?, किसकी नजर में?

कौन डूबा?, डुबाता कब-कौन?, किसको?
कौन भूला?, भुलाता कब-कौन?, किसको?

क्या-कहाँ घटता?, अघट कब-क्या-कहाँ है?
क्या-कहाँ मिटता?, अमिट कुछ-क्या यहाँ है?

कब नहीं था?, अब नहीं जो देख पाये.
सब यहीं था, सब नहीं थे लेख पाये.

जब यहाँ होकर नहीं था जग यहाँ पर.
कब कहाँ सोता-न-जगता जग कहाँ पर?

ताल में बेताल का कब विलय होता?
नाद में निनाद मिल कब मलय होता?

थाप में आलाप कब देता सुनायी?
हर किसी में आप वह देता दिखायी?

अजर-अक्षर-अमर कब नश्वर हुआ है?
कब अनश्वर वेणु गुंजित स्वर हुआ है?

कब भँवर में लहर?, लहरों में भँवर कब?
कब अलक में पलक?, पलकों में अलक कब?

कब करों संग कर, पगों संग पग थिरकते?
कब नयन में बस नयन नयना निरखते?

कौन विधि-हरि-हर? न कोई पूछता कब?
नट बना नटवर, नटी संग झूमता जब.

भिन्न कब खो भिन्नता? हो लीन सब में.
कब विभिन्न अभिन्न हो? हो लीन रब में?

द्वैत कब अद्वैत वर फिर विलग जाता?
कब निगुण हो सगुण आता-दूर जाता?

कब बुलाता?, कब भुलाता?, कब झुलाता?
कब खिझाता?, कब रिझाता?, कब सुहाता?

अदिख दिखता, अचल चलता, अनम नमता.
अडिग डिगता, अमिट मिटता, अटल टलता.

नियति है स्तब्ध, प्रकृति पुलकती है.
गगन को मुँह चिढ़ा, वसुधा किलकती है.

आदि में अनादि बिम्बित हुआ कण में.
साsदि में फिर सांsत चुम्बित हुआ क्षण में.

अंत में अनंत कैसे आ समाया?
दिक् में दिगंत जैसे था समाया.

कंकरों में शंकरों का वास देखा.
और रज में आज बृज ने हास देखा.

मरुस्थल में महकता मधुमास देखा.
नटी नट में, नट नटी में रास देखा.

रास जिसमें श्वास भी था, हास भी था.
रास जिसमें आस, त्रास-हुलास भी था.

रास जिसमें आम भी था, खास भी था.
रास जिसमें लीन खासमखास भी था.

रास जिसमें सम्मिलित खग्रास भी था.
रास जिसमें रुदन-मुख पर हास भी था.

रास जिसको रचाता था आत्म पुलकित.
रास जिसको रचाता परमात्म मुकुलित.

रास जिसको रचाता था कोटि जन गण.
रास जिसको रचाता था सृष्टि-कण-कण.

रास जिसको रचाता था समय क्षण-क्षण.
रास जिसको रचाता था धूलि तृण-तृण..

रासलीला विहारी खुद नाचते थे.
रासलीला सहचरी को बाँचते थे.

राधिका सुधि-बुधि बिसारे नाचतीं थीं.
कान्ह को आपादमस्तक आँकती थीं 

'सलिल' ने निज बिंदु में वह छवि निहारी.
जग जिसे कहता है श्रीबांकेबिहारी.
३०-४-२०१०
***

मंगलवार, 18 अगस्त 2020

मुकरी / कहमुकरी मीना भट्ट

मुकरी / कहमुकरी
मीना भट्ट
*
पहली पंक्ति-16 मात्राएँ
दूसरी पंक्ति-16 मात्राएँ
तीसरी पंक्ति- 15/16/17मात्राएँ
चौथी पंक्ति-ए सखि साजन? न सखि -वो नाम जो पति या प्रेमी के सापेक्ष लिया गया है|
*
सुंदर जैसा चाँद मोहता
रहना मेरे संग शोभता
गले लगाकर करलूँ प्यार
ऐ सखि साजन!न सखि हार।
*
नित मेरे मन को बहलाये
सदा मधुर ही तान सुनाये,
होय मुग्ध सारा संसार,
क्या सखि साजन? नहीं सितार।
*
प्रेम का रखता सबसे नाता,
मीत सभी को मेरा भाता,
मिलने की बढ़ती है तृष्णा,
ऐ सखि साजन!न सखी कृष्णा
*
कभी हँसाता  कभी रु लाता,
नई  उमंग हृदय  में  लाता,
नहीं मानता कभी वो  हार ,
ऐ सखि साजन? नहिं सखि प्यार।
*

मंगलवार, 26 नवंबर 2019

सरस्वती वंदना - मीना भट्ट


मीना भट्ट



जन्म - ३० अप्रैल १९५३ नौगांव, जिला छतरपुर म. प्र.।
आत्मजा - स्व. सुमित्रा पाठक - स्व. हरिमोहन पाठक।
जीवनसाथी - श्री पुरुषोत्तम भट्ट।
शिक्षा - एम.ए., एलएल. बी.।
संप्रति - सेवा निवृत जिला जज, अध्यक्ष लोकायुक्त संगठन
संभागीय सतर्कता समिति।
प्रकाशन - पंचतंत्र में नारी, साझा संकलन।
उपलब्धि - अनेक साहित्यिक सम्मान।
संपर्क - १३०८ कृष्णा हाइट्स, ग्वारी घाट रोड, जबलपुर।
चलभाष - ९४२४६६९७२२, ई मेल - meena bhatt18547@gmail.com ।
*
वंदना
शारदे माँ बार बार
करूँ विनती विचार,
भर ज्ञान का भंडार,
विद्या दान दो अपार।

ज्ञान जीवन का सार,
उन्नति का है आधार,
सफलता का है द्वार,
शरण आयी तिहार।

दूर करिए विकार,
प्रतिभा को दें निखार ,
स्वप्न करिए साकार,
हार अर्पित, न हार।

चित रखिए उदार
वृत्ति दीजिए सुधार,
करूँ शारदे पुकार,
करदे माता उद्धार।
*
[रूपहरण धनाक्षरी, ८,८,८,८ वर्ण प्रति चरण, चार चरण समतुकांत,
चरणांत गुरु लघु]
***