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मंगलवार, 26 मई 2009

काव्य-किरण

क्षणिकाएँ

सरला खरे, भोपाल

जब देश पर विपत्ति आएगी

तब काम आएगा

विदेशी बैंकों में

संचित किया धन॥

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देश जूझ रहा है,

मंदी की मार है.

सकल देश में

चुनाव की बहार है॥

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क्या पियेंगे पानी?

कैसे कटेंगी रातें?

बिन पानी सब सून।

बिन बिजली सब अँधेरा॥

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पहले भी थे मंत्री,

सरकार भी थी जोरदार।

आगे भी आयेंगे,

ऐसे ही कर्णधार?

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वादा है- छवि सुधारेंगे।

जिनसे वोट खरीदे है,

उन्हीं को तो तारेंगे॥

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गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

लो हम वोट दे आये !

लो हम वोट दे आये !
विवेक रंजन श्रीवास्तव

लो हम वोट दे ही आये ! लाइन में लगकर .. ! दो दो लाइनों मे लगकर .. पोलिंग बूथ क्रमांक १०३ और १०३ क का ऐसा चक्कर हुआ कि पहले तो २० मिनट बूथ क्रमांक १०३ पर लाइन में लगे खड़े रहे , जब अंदर जाने का नम्बर आया तो द्वार पर खड़े कोटवार ने , जो आज सुरक्षा अधिकारी का बिल्ला लगाये हुये था दरवाजे से ही वापस कर दिया , यह कहकर कि आपकी सुविधा को ध्यान में रखकर ही कि जिससे एक केंद्र पर ज्यादा भीड़ न हो इस मतदान केंद्र को २ केंद्रो में बांट दिया गया है .. १०३ और १०३ क .... हमने उससे पूछा कि अब हमें कहां जाना है तो उसने कहा ढ़ूंढ़ लो .. स्कूल में हर कमरे में अलग अलग मतदान केंद्र थे.. हमने मन ही मन उसकी असंवेदन शीलता को कोसा ... पूंछ पांछ कर पता लगाया और नई लाइन में फिर कोई २५ मिनट खड़े रहकर अपने मताधिकार का सक्षम प्रयोग कर ही आये ...
महीने भर से शहर में गहमा गहमी थी , हमें मनाने के लिये हैलीकाप्टर पर , तक नेता गण दौड़े भागे आ जा रहे थे , रोड शो कर रहे थे , एस एमएस कर रहे थे ...टीवी चैनल , ब्लाग्स आदि हमसे लगातार जागरूख होने की अपील कर रहरे थे .. हम मान गये .. लो हम वोट दे आये ! अब शाम को सरकारी तंत्र हमारा मतदान प्रतिशत बतायेगा .. १६ मई तक हमारे मत की रखवाली करेगा .. फिर दो एक से घटिया चेहरों में से कोई ना कोई चुन ही लिया जायेगा ... हम तो फुरसत हुये लो हम वोट दे आये !