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रविवार, 25 दिसंबर 2022

मदनललिता, नील, मणिकल्पलता, अचलधृति, प्रवरललिता, चंचला, रतिलेखा

 १६ वर्णिक अथाष्टि जातीय छंद

१. मदनललिता
विधान - म भ न म न ग। यति - ४-६-६।
खेतों में जो; श्रम कर रहे; वे ही लड़ रहे।
बोते हैं जो; फसल अब तो; वे ही डर रहे।।
सारे वादे; बिसर मुकरे; नेता कह रहे-
जो बोले थे; महज जुमले; मैया! छल रहे।।
*
२. नील
विधान - ५ भ + ग।
मैं तुम; हों हम; तो फिर क्या गम; खूब मिले।
मीत बनें हम; प्रीत करें हम; भूल गिले।।
हार वरें जब; जीत मिले तब; हार गले-
दीप जले जब; द्वार सजे तब; प्यार खिले।।
*
३. मणिकल्पलता
विधान - न ज र म भ ग। यति - १०-६।
मिल-जल दीप दीपमाला; हो भू पे पुजते ।
मिल-जुल साथ-साथ सारे; अंधेरा हरते।।
जब तक तेल और बाती; हैं साथी उनके-
तब तक वे प्रकाश देते; मुस्काते मिलते ।।
*
४. अचलधृति
विधान - ५ न + ल।
अमल विमल सलिल लहर प्रवहित।
अगिन सुमन जलज कमल मुकुलित।।
रसिक भ्रमर सरसिज पर मर-मिट-
निरख-निरख शतदल-दल प्रमुदित।।
*
५. प्रवरललिता
विधान - य म न स र ग। यति - ६-१०।
तिरंगा ऊँचा है; हरदम रखें खूब ऊँचा।
न होने देना है; मिलकर इसे यार नीचा।।
यही काशी-काबा; ब्रज-रज यही है अयोध्या -
इन्हें सींचें खूं से; हम सब न सूखे बगीचा।।
*
६. चंचला
विधान -र ज र ज र ल।
है शिकार आज भी किसान जुल्म का हुजूर।
है मजूर भूख का शिकार आज भी हुजूर।।
दूरदर्शनी हुआ सियासती प्रचार आज-
दे रहा फिजूल में चुनौतियाँ इन्हें हुजूर।।
*
७. रतिलेखा
विधान -स न न न स ग। यति ११-५।
अब तो जग कर विजय; हँस वनिताएँ।
जय मंज़िल कर रुक न; बढ़ यश पाएँ।।
नर से बढ़कर सफल; अब यह होंगी-
गिरि-पर्वत कर फतह; ध्वज फहराएँ।।
***

मंगलवार, 3 मार्च 2020

कला त्रयोदशी छंद

छंद सलिला
२९ मात्रिक महायौगिक जातीय, कला त्रयोदशी छंद
*
विधान :
प्रति पद प्रथम / विषम चरण १६ कला (मात्रा)
प्रति पद  द्वितीय / सम चरण १३ कला
नामकरण संकेत: कला १६,   त्रयोदशी तिथि १३
यति  १६ -  १३ पर, पदांत गुरु ।
*
लक्षण छंद:
कला कलाधर से गहता जो, शंकर प्रिय तिथि साथी। 
सोलह-तेरह पर यति सज्जित, फागुन भंग सुहाती।।
उदाहरण :
शिव आभूषण शशि रति-पति हँस, कला सोलहों धारता।
त्रयोदशी पर व्रत कर  चंदा,  बाधा-संकट टारता।।
तारापति रजनीश न भूले, शिव सम देव न अन्य है।
कालकूट का ताप हर रहा, शिव सेवा कर धन्य है।।
२२.४.२०१९
*
मुक्तक
छंद कला त्रयोदशी
संजीव 'सलिल'
सरहद पर संकट का हँसकर, जो करता है सामना।
उसकी कसम तिरंगा कर में, सर कटवाकर थामना।।
बड़ा न कोई छोटा होता, भला-बुरा पहचानना-
वह आदम इंसान नहीं जो, करे किसी का काम ना।। 
**
मुक्तक 
छंद कला त्रयोदशी 
राकेश मिश्र 
*
घाटी - घाटी पर्वत-पर्वत , गीत सुनाता कौन है ।
पड़ी सुसुप्त भावनाओं को, आन जगाता कौन है,
करता कौन सुवासित पवनें, आकर के मधुमास में,
धरती माता के आँचल पर, सुमन सजाता कौन है ।

फूलों के अंगों में खुशबू , रंग घोलता कौन है ।
चिड़ियों के कंठों से मधुरिम, बोल बोलता कौन है ।
सघन निराशा के अंधड़ में, अनजानी सी राह में,
तिमिर हटाकर नव-आशा के, द्वार खोलता कौन है ।

*

बुधवार, 29 जनवरी 2020

छंद सलिला


छंद सलिला

*सात मात्रिक लौकिक जातीय छंद*
प्रकार २१

*१ शुभगति / सुगती छंद*
विधान पदांत ग

सप्त ऋषि हो
शांति-सुख बो
तप करो रे!
दुख हरो रे!
*

*आठ मात्रिक वासव जातीय छंद*
प्रकार ३४

*२ मधुभार / छवि छंद*
विधान पदांत ज
अठ वसु! न हार
निज छवि निहार
हम कर सुधार
भू लें सँवार
*

*नौ मात्रिक आंक जातीय छंद*
प्रकार ५५

*३ गंग छंद*
विधान - पदांत य

जय गंग माता
जय जीव त्राता
सुधि लो हमारी
माँ क्यों बिसारी?
*
*४ निधि छंद*
विधान - पदांत ल
मत जोड़ नौ निधि
श्रम साध्य हर सिधि
लघु ही नहीं लघु
गुरु ही नहीं गुरु
*

*दस मात्रिक दैशिक जातीय छंद*
प्रकार ८९

*५ दीप छंद*
विधान - पदांत नगल

जलाकर दस दीप
हरे तिमिर महीप
सूर्य सम वर तेज
रखे धूप सहेज
*

*ग्यारह मात्रिक रौद्र जातीय छंद*
प्रकार १४४

*६ अहीर छंद*
विधान - पदांत ज

एकादशी अहीर
जगण अंत धर धीर
गौ पालें यदि आप
मिटे शोक दुख शाप
*
*७ शिव / अभीर छंद*
विधान- पदांत सरन

ग्यारह दीपक जला
ज्योतित सब जग बना
रखें शुद्ध भावना
फले मनोकामना
गहें रुद्र की शरण
करें भक्ति का वरण
*
*८ भव छंद*
विधान - पदांत ग, य

ग्यारस का व्रत करें
शिवाशीष नित वरें
भव बंधन न मोहे
गय पदांती सोहे
*

*बारह मात्रिक आदित्य जातीय छंद*
प्रकार - २३३

*९ तोमर छंद*
विधान - पदांत गल

बारह आदित्य श्रेष्ठ
तिमिर हरें सदा ज्येष्ठ
तोमर गुरु लघु पदांत
परहित-पथ वरें कांत
*
*१० ताण्डव छंद*
विधान - पदादि ल, पदांत ल

महादेव ताण्डव कर
अभयदान देते हर
डमरू डिमडिम डमडम
बम भोले शंकर बम
*
*११ लीला छंद*
विधान - पदांत जगण

सलिल ज्योति लिंग नाथ
पद पखार जोड़ हाथ
शक्ति पीठ कीर्ति गान
लीला का कर बखान
*
*१२ नित छंद*
विधान - पदांत रनस

कथ्य लय रस संग हों
भाव ध्वनि सत्संग हों
छंदों में रहो मगन
नये बनें करो जतन
नीति नयी नित न वरो
धैर्य सदा सलिल धरो
*

*तेरह मात्रिक भागवतजातीय छंद*
प्रकार - ३७७

*१३ उल्लाला / चंद्रमणि छंद*
विधान - ग्यारहवीं मात्रा लघु, पदांत नियम नहीं
उल्लाला तेरह कला
ग्यारहवाँ लघु ही भला
मिले चंद्र मणि लें तुरत
गुमे नहीं करिए जुगत
*
*१४ चण्डिका / धरणी छंद*
विधान - पदांत रगण
चण्डिका से दुष्ट डरें
धरणी पर छिपें विचरें

गुरु लघु गुरु रखें पदांत
यत्न मग्न रहें सुशांत
*

*१४ मात्रिक मानव जातीय छंद*
प्रकार ६१०

*१४. कज्जल छंद*
विधान- पदांत गल

हैं भुवन चौदह पति एक
माने सच न बुद्धि विवेक
कभी नहीं सुनी तकरार
राग न द्वेष, जीत न हार
*
१५. सखी / आँसू छंद
विधान - पदांत य, म

सखी न आँसू है माया
कौन साथ तू कह आया?
मनु यम साथ नहीं भाया
क्या खोया है क्या पाया?
*
*१६. विजाति छंद*
विधान - पदादि म, स

विद्या-हीन विजाति वही
मनु गुणवान स्वजाति यही
ज्ञान नीच में यदि देखें
बिना हिचक उससे ले लें
*
*१७.हाकलि छंद*

विधान - चार चौकल + द्विकल, पदांत ग
दिव्या भारत माता है
इसके गुण मनु गाता है
हाकलि चौकल तीन लिए
अंत द्वि कल गुरु भाता है
*
*१८ मानव छंद*
विधान -
जब सब पदों में तीन चौकल न हों

मौसम रंग बदलता है
जाने किसको छलता है
सर्द गर्म बरसाती भी
मन मर्जी से चलता है
*
*१९ मधुमालती छंद*
विधान - यति ७-७, पदांत र

मधुमालती मन मीत है
यति सात-चौदह रीत है
मनु रख रगण पद-अंत में
सुख सजनि सच्चा कंत में
*
*२० सुलक्षण छंद*
विधान - चौकल बाद तथा पदांत गल

रचें सुलक्षण युक्त छंद
भुवन सुकीर्ति सदा अमंद
लोक विलोक विभा अनंत
ध्यान करे प्रभु का सुसंत
*
*२१ मनमोहन छंद*
विधान - यति ७-७, पदांत न

ऋतु वासंती, मदिर मलय
श्वास श्वास में हुई विलय
कर मनमोहन-दर्शन, तर
पावन अवसर मिले न फिर
*
*२२ सरस / मोहन छंद*
विधान - यति ७-७

फेरे-जन्म सरस बंधन
मोहन सदृश नहीं साजन
राधा सजनि लोक भावन
बृज रज गंग सदृश पावन
*
*२३ मनोरम छंद*
विधान - पदादि गुरु, पदांत य, भ
यत्न देते रत्न नाना
आदि गुरु, भय अंत जाना
कर्म कर तू हो न निष्फल
राह पर अविकल चलाचल
*

* पंद्रह मात्रिक तैथिक छंद*
प्रकार - ९८७
*२४ चौबोला छंद*
विधान - पदांत लग

चौबोला तिथि देखे चले
लघु-गुरु अंत न टाले टले
बिना फल चाहे कर्म करे
भव बाधा आकर झट टले
*
*२५. गोपी छंद*
विधान - पदादि त्रिकल, पदांत ग

तिथि हर शुभ गोपी मन कहे
हरि-दर्शन बिन तन-मन दहे
त्रिकल आदि गुरु अंत विराज
आप बनायें बिगड़े काज
*
*२६ चौपई / जयकारी छंद *
विधान - पदांत गल

रखे चौपई गुरु लघु अंत
जयकारी हरि भक्ति अनंत
तिथि अनुकूल जान कर कर्म
तज दे आलस सच्चा धर्म
*
* २७ गुपाल / भुजंगिनी छंद*
विधान - पदांत ज

कला गुपाल निहार सराह
कहे भुजंगिनी वाह वाह
जगण अंत तिथि वार न देख
खींच कर्म से किस्मत रेख
*
*२८ उज्वला मात्रिक छंद*
विधान - पदांत र

रखो रे उज्वला भावना
करो रे निर्मला कामना
रगण अंत रखो, छंद रचो
लय ना भंग हो, सलिल बचो
*
*२९ पुनीत छंद*
विधान - पदादि सम-विषम कल, पदांत त

है पुनीत तिथि पूनम आज
आदि सम-विषम करिए काज
अंत तगण रख रचिए छंद
काव्य नहीं रचिए स्वच्छंद

*