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सोमवार, 16 नवंबर 2020

मुकतक

मुकतक सलिला 
*
सूरज आया, नभ पर छाया,
धरती पर सोना बिखराया
जग जाग उठा कह शुभ प्रभात,
खग-दल ने गीत मधुर गाया
*
पत्ता-पत्ता झूम रहा है
पवन झकोरे चूम रहा है
तुहिन-बिंदु नव छंद सुनाते
शुभ प्रभात कह विहँस जगाते
*
चल सपने साकार करें
पग पथ पर चल लक्ष्य वरें
श्वास-श्वास रच छंद नए
पल-पल को मधुमास करें
*

गुरुवार, 11 जून 2020

मुकतक

मुकतक
*
खिलखिलाते रहें, मुस्कुराते रहें
पंछियों की तरह चहचहाते रहें
हाथ में हाथ लेकर रहें साथ में-
ज़िंदगी भर मधुर गीत गाते रहें
khilkhilate rahen, muskurate rahen
panchiyon ki tarah chahchahate rahe
hath men hath lekar rahen sath men
zindgi bhar madhur geet gate rahen

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

मुक्तक

मुक्तक:
*
जो दूर रहते हैं वही तो पास होते हैं.
जो हँस रहे, सचमुच वही उदास होते हैं.
सब कुछ मिला 'सलिल' जिन्हें अतृप्त हैं वहीं-
जो प्यास को लें जीत वे मधुमास होते हैं.

२९-४-२०१०
*

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

मुक्तक

मुक्तक
प्रश्न उत्तर माँगते हैं, घूरती चुप्पी
बनें मुन्ना भाई लें-दें प्यार से झप्पी
और इस पर भी अगर मन हो न पाए शांत
गाल पर शिशु के लगा दें प्यार से पप्पी
१०-४-२०१७
*

सोमवार, 22 जुलाई 2019

मुकतक महिला क्रिकेट

मुकतक महिला क्रिकेट
*
दीप्ति तम हरकर उजाला बाँट दे 
अब न शर्मा शतक से तम छांट दे
दस दिशाओं से सुनो तुम तालियाँ 
फाइनल लो जीत धोबीपाट दे
*
एकता है तो मिलेगी विजय भी
गेंद की गति दिशा होगी मलय सी
खाए चक्कर ब्रिटिश बल्लेबाज सब 
तिरंगा फ़हरा सके, हो जयी भी
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स्मृति का बल्ला चला, गेंद हुई रॉकेट.
पलक झपकते नभ छुए, गेंदबाज अपसेट.
*
दीप्ति कौंधती दामिनी, गिरे उड़ा दे होश.
चमके दमके निरंतर, कभी न रीते कोश.
*
पूनम उतरी तो हुई,  अजब अनोखी बात.
घिरे विपक्षी तिमिर में,  कहें अमावस तात.
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शर संधाना तो हुई, टीम विरोधी ढेर. 
मंधाना के वार से,  नहीं किसी की खैर
२२.७.२०१७ 
***

शनिवार, 13 जुलाई 2019

मुकतक

मुकतक 
था सरोवर, रह गया पोखर महज क्यों आदमी ?
जटिल क्यों?, मिलता नहीं है अब सहज क्यों आदमी?
काश हो तालाब शत-शत कमल शतदल खिल सकें-
आदमी से गले मिलकर 'सलिल' खुश हो आदमी।।

बुधवार, 30 सितंबर 2015

muktak

मुक्तक :
हर रजनी हो शरद पूर्णिमा, चंदा दे उजियाला 
मिले सफलता-सुयश असीमित, जीवन बने शिवाला 
देश-धर्म-मानव के आयें काम सार्थक साँसें-
चित्र गुप्त उज्जवल अंतर्मन का हो दिव्य निराला