मुक्तिका :
अंधेरों को रौशन ...
संजीव 'सलिल'
*
अंधेरों को रौशन किया, पग बढ़ाया
उदासी छिपाकर फलक मुस्कुराया
बेचैनी दिल की न दिल से बताई
आँसू छिपा लब विहँस गुनगुनाया
निराशा के तूफां में आशा का दीपक
सही पीर, बन पीर मन ने जलाया
पतझड़ ने दुःख-दर्द सहकर तपिश की
बखरी में बदरा को पाहुन बनाया
घटायें घुमड़ मन के आँगन में नाचीं
न्योता बदन ने सदन खिलखिलाया
धनुष इंद्र का सप्त रंगी उठाकर
सावन ने फागुन को दर्पण दिखाया
सीरत ने सूरत के घर में किया घर
दुःख ने लपक सुख को अपना बनाया
'सलिल' स्नेह संसार सागर समूचा
सतत सर्जना स्वर सुना-सुन सिहाया
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अंधेरों को रौशन ...
संजीव 'सलिल'
*
अंधेरों को रौशन किया, पग बढ़ाया
उदासी छिपाकर फलक मुस्कुराया
बेचैनी दिल की न दिल से बताई
आँसू छिपा लब विहँस गुनगुनाया
निराशा के तूफां में आशा का दीपक
सही पीर, बन पीर मन ने जलाया
पतझड़ ने दुःख-दर्द सहकर तपिश की
बखरी में बदरा को पाहुन बनाया
घटायें घुमड़ मन के आँगन में नाचीं
न्योता बदन ने सदन खिलखिलाया
धनुष इंद्र का सप्त रंगी उठाकर
सावन ने फागुन को दर्पण दिखाया
सीरत ने सूरत के घर में किया घर
दुःख ने लपक सुख को अपना बनाया
'सलिल' स्नेह संसार सागर समूचा
सतत सर्जना स्वर सुना-सुन सिहाया
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