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मुक्तिका:
शुभ किया आगाज़
संजीव 'सलिल'
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शुभ किया आगाज़ शुभ अंजाम है.
काम उत्तम वही जो निष्काम है..
आँक अपना मोल जग कुछ भी कहे
सत्य-शिव-सुन्दर सदा बेदाम है..
काम में डूबा न खुद को भूलकर.
जो बशर उसका जतन बेकाम है..
रूह सच की जिबह कर तन कह रहा
अब यहाँ आराम ही आराम है..
तोड़ गुल गुलशन को वीरां का रहा.
जो उसी का नाम क्यों गुलफाम है?
नहीं दाना मयस्सर नेता कहे
कर लिया आयात अब बादाम है..
चाहता है हर बशर सीता मिले.
बना खुद रावण, न बनता राम है..
भूख की सिसकी न कोई सुन रहा
प्यार की हिचकी 'सलिल' नाकाम है..
'सलिल' ऐसी भोर देखी ही नहीं.
जिसकी किस्मत नहीं बनना शाम है..
मस्त मैं खुद में कहे कुछ भी 'सलिल'
ऐ खुदाया! तू ही मेरा नाम है..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013
मुक्तिका: शुभ किया आगाज़ संजीव 'सलिल'
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