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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

दिसंबर १३, मुक्तिका, सॉनेट, कामना, व्यंग्य लेख, माया, खाट, हाइकु, कपास, गीत, दोहा, भवानी प्रसाद तिवारी

सलिल सृजन दिसंबर १३
*
पूज्य पापाजी (भवानी प्रसाद तिवारी जी)के जन्म दिवस पर उन्हीं की काव्य पंक्तियों पर आधृत रचना उन्हें सादर समर्पित- तेरा तुझकोअर्पित क्या लागे मेरा?
तेरा तुझको अर्पण
एक लघु कण

'एक लघु कण है
कि जो साधो उसे
सधता नहीं है।'
विनायक का पूत
रहता मुक्त ही
बँधता नहीं है।
सियासत-साहित्य की
गंगो-जमुन से
लोकहित की सुरसती का
किया संगम।
'प्राण धारा' ने
हमेशा 'प्राण पूजा'
'कथा-वार्ता' से किया
'उत्सर्ग' चंदन।
लोकसेवा, लोकहित
पल-पल समर्पित
लोक-नेता विरुद
जन ने किया वंदन।
निनादित जल
नर्मदा का, बहा तो
रुकता नहीं है।
'एक लघु कण है
कि जो साधो उसे
सधता नहीं है।'
०००
'तमसा का पूर
अगम और अकूल
कोलाहल आर-पार।'
प्राण-मन में था
नर्मदा निनाद निर्मल
गूँजता अपार।
छायावादी शिल्प
यथार्थवादी गल्प
आत्मबोध नव विहान।
दार्शनिकता साध्य
सत्य-शिव आराध्य
मनोभाव निदान।
सहज-सरल स्वभाव
आम जन से निभाव
अडिग ज्यों चट्टान।
शिक्षा का सूर्य
तरुणाई का तूर्य
देश भक्ति धुआँधार।
'तमसा का पूर
अगम और अकूल
कोलाहल आर-पार।'

'हृदय को समझा न कोई
हृदय के क्षण-क्षण उमड़ते
प्रलय को समझा न कोई।'
परिस्थिति विपरीत में भी
सत्य निष्ठा और आस्था
कभी भी किंचित न खोई।
जागतिक संवेदनाएँ
काव्य-रचना में सुबिंबित
कथ्य-शैली है अनूठी।
उभरता सौंदर्य गति का
भावनाएँ करुण मिश्रित
नहीं उपमा चुनी जूठी।
प्रिय रहे सिद्धांत अपने
फिक्र सत्ता की नहीं की
सोच ठी मौलिक अनूठी।
समर्पण की फसल बोई
भाग ले सत्याग्रहों में
जेल की सलाख गोई।
'हृदय को समझा न कोई
हृदय के क्षण-क्षण उमड़ते
प्रलय को समझा न कोई।'
०००
'नयन का पानी न रीता
ज्वाल सा जलता हुआ सखि!
एक आतप और बीता।'
देश-हित सह कष्ट हँसकर
नित किए संघर्ष डटकर
धैर्य का घट नहीं रीता।
सात बरसों महापौरी
सहजता से-सरलता से
निभाई, पद-मद न व्यापा।
बने सांसद, मिली डी.लिट.,
पद्मश्री से हो अलंकृत
कभी खोया नहीं आपा।
दीन को थे बंधु जैसे
साथियों के पथ-प्रदर्शक
सर्वप्रिय थे जगत-पापा।
हार-जीतों में रहे सम
जन समर्थन मिला अनुपम
रही साथी हृदय गीता।
'नयन का पानी न रीता
ज्वाल सा जलता हुआ सखि!
एक आतप और बीता।'

'चला बाँध धुन, एक धुन सुन पड़ी
पिकी फिर अमर गीत दुहरा गई।'
कथा कीर्ति की छा क्षितिज तक गई
पताका दिगंतित फहरा गई।
चमत्कार लक्षित हुआ उक्ति का नव
कथन में, कहन में रहा आम जन-रव।
नहीं रोक पाया कहीं पग कभी भव
निखरता रहा घोर विपदा में वैभव।
सनातन पुरातन रहा प्रिय हमेशा
नहीं रूढ़, चिंतन प्रगत और अभिनव।
निबंधित-प्रबंधित रुकी थक घड़ी
नियति मौन दुलरा, बुला ले गई।
'चला बाँध धुन, एक धुन सुन पड़ी
पिकी फिर अमर गीत दुहरा गई।'
१३.१२.२०२४
०००
हाइकु कपास पर
कहे कपास
सह लो धूप-छाँव
न हो उदास।
खेत में उगी
पवन संग झूमी
माटी ने पाला।
जड़ें जमाईं
स्नेह सलिल पिया
सिर उठाया।
नीलाभ नभ
ओढ़ लिया आँचल
खिलखिलाई।
अठखेलियाँ
रवि रश्मियों संग
रोके न रुके।
चंद्र किरण
भरकर बाँहों में
नृत्य करती।
करे विद्रोह
न गंध, न भ्रमर
सिर उठाए।
सीखे सबक
विनत हुआ शीश
करे न सोग।
जैसी की तैसी
रखी श्वेत चादर
माँगे बिदाई।
धूप में नहीं
बाल हुए सफेद
करी तपस्या।
अकथनीय
अपनी व्यथा कथा
किससे कहे?
माली ने लूटी
जिंदगी की कमाई
बोली लगाई।
जिसने लिया
जी भरके धुना
छीने बिनौले।
ताना औ' बाना
बना बुने आदम
ढाँके बदन।
रंग दे कान्हा
अपने ही रंग में
बंधन छूटे।
हाय विधाता!
द्रोपदी पुकारती
चीर न घटे।
१३.१२.२४
०००
मुक्तिका
कर नियंत्रित कामनाएँ
हों निमंत्रित भावनाएँ
रब रखे महफूज सबको
मिटाकर सब यातनाएँ
कोशिशें अच्छी न हारें
खूब जूझें जीत जाएँ
स्नेह सुख सम्मान सम पा
खिलखिलाएँ सुत-सुताएँ
रहे निर्झर सा सलिल-मन
नेह नर्मद नित नहाएंँ
भोर अँगना में चिरैया
उतर फुदकें चहचहाएँ
साँस आखिर तक रहे दम
पसीना जमकर बहाएँ
१३.१२.२०२३
•••
सॉनेट
कामना
*
कामना हो साथ हर दम
काम ना छोड़े अधूरा
हाथ जो ले करे पूरा
कामनाएँ हों न कम
का मनाया?; का मिला है?
अनमना है; उन्मना है
क्यों इतै नाहक मुरझना?
का मना! तू कब खिला है?
काम ना- ना काम मोहे
काम ना हो तो परेशां
काम ना या काम चाहे?
भला कामी या अकामी?
बनो नामी या अनामी?
बूझता जो वही सामी
१३-१२-२२
जबलपुर, ७•०४
●●●
***
द्विपदियाँ
फ़िक्र वतन की नहीं तनिक, जुमलेबाजी का शौक
नेता को सत्ता प्यारी, जनहित से उन्हें न काम
*
कुर्सी पाकर रंग बदल, दें गिरगिट को भी मात
काम तमाम तमाम काम का, करते सुबहो-शाम
१३-१२-२०२०
***
मुक्तक
*
कुंज में पाखी कलरव करते हैं
गीत-गगन में नित उड़ान नव भरते हैं
स्नेह सलिल में अवगाहन कर हाथ मिला-
भाव-नर्मदा नहा तारते तरते हैं
*
मनोरमा है हिंदी भावी जगवाणी
सुशोभिता मम उर में शारद कल्याणी
लिपि-उच्चार अभिन्न, अनहद अक्षर है
शब्द ब्रह्म है, रस-गंगा संप्राणी है
*
जैन वही जो अमन-चैन जी-जीने दे
पिए आप संतोष सलिल नित, पीने दे
परिग्रह से हो मुक्त निरंतर बाँट सके-
तपकर सुमन सु-मन जग को रसभीने दे
*
उजाले देख नयना मूँदकर परमात्म दिख जाए नमन कर
तिमिर से प्रगट हो रवि-छवि निरख मन झूमकर गाए नमन कर
मुदित ऊषा, पुलक धरती, हुलस नभ हो रहा हर्षित चमन लख
'सलिल' छवि ले बसा उर में करे भव पार मिट जाए अमन कर
१२-१२-२०२०, ६.४५
***
व्यंग्य लेख::
माया महाठगिनी हम जानी
*
तथाकथित लोकतंत्र का राजनैतिक महापर्व संपन्न हुआ। सत्य नारायण कथा में जिस तरह सत्यनारायण को छोड़कर सब कुछ मिलता है, उसी तरह लोकतंत्र में लोक को छोड़कर सब कुछ प्राप्य है। यहाँ पल-पल 'लोक' का मान-मर्दन करने में निष्णात 'तंत्र की तूती बोलती है। कहा जाता है कि यह 'लोक का, लोक के द्वारा, लोक के लिए' है लेकिन लोक का प्रतिनिधि 'लोक' नहीं 'दल' का बंधुआ मजदूर होता है। लोकतंत्र के मूल 'लोक मत' को गरीब की लुगाई, गाँव की भौजाई मुहावरे की तरह जब-तब अपहृत और रेपित करना हर दल अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानता है। ये दल राजनैतिक ही नहीं धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक भी हो सकते हैं। जो दल जितना अधिक दलदल मचने में माहिर होता है, उसे खबरिया जगत में उतनी ही अधिक जगह मिलती है।
हाँ, तो खबरिया जगत के अनुसार 'लोक' ने 'सेवक' चुन लिए हैं। 'लोक' ने न तो 'रिक्त स्थान की विज्ञप्ति प्रसारित की, न चीन्ह-चीन्ह कर विज्ञापन दिए, न करोड़ों रूपए आवेदन पत्रों के साथ बटोरे, न परीक्षा के प्रश्न-पत्र लीक कर वारे-न्यारे किए, न साक्षात्कार में चयन के नाम पर कोमलांगियों के साथ शयन कक्ष को गुलजार किया, न किसी का चयन किया, न किसी को ख़ारिज किया और 'सेवक' चुन लिए। अब ये तथाकथित लोकसेवक-देशसेवक 'लोक' और 'देश' की छाती पर दाल दलते हुए, ऐश-आराम, सत्तारोहण, कमीशन, घपलों, घोटालों की पंचवर्षीय पटकथाएँ लिखेंगे। उनको राह दिखाएँगे खरबूजे को देखकर खरबूजे की तरह रंग बदलने में माहिर प्रशासनिक सेवा के धुरंधर, उनकी रक्षा करेंगा देश का 'सर्वाधिक सुसंगठित खाकी वर्दीधारी गुंडातंत्र (बकौल सर्वोच्च न्यायालय), उनका गुणगान करेगा तवायफ की तरह चंद टकों और सुविधाओं के बदले अस्मत का सौदा करनेवाला खबरॉय संसार और इस सबके बाद भी कोई जेपी या अन्ना सामने आ गया तो उसके आंदोलन को गैर कानूनी बताने में न चूकनेवाला काले कोटधारी बाहुबलियों का समूह।
'लोकतंत्र' को 'लोभतंत्र' में परिवर्तित करने की चिरकालिक प्रक्रिया में चारों स्तंभों में घनघोर स्पर्धा होती रहती है। इस स्पर्धा के प्रति समर्पण और निष्ठां इतनी है की यदि इसे ओलंपिक में सम्मिलित कर लिया जाए तो स्वर्णपदक तो क्या तीनों पदकों में एक भी हमारे सिवा किसी अन्य को मिल ही नहीं सकता। दुनिया के बड़े से बड़े देश के बजट से कहीं अधिक राशि तो हमारे देश में इस अघोषित व्यवसाय में लगी हुई है। लोकतंत्र के चार खंबे ही नहीं हमारे देश के सर्वस्व तीजी साधु-संत भी इस व्यवसाय को भगवदपूजन से अह्दिक महत्व देते हैं। तभी तो घंटो से पंक्तिबद्ध खड़े भक्त खड़े ही रह जाते हैं और पुजारी की अंटी गरम करनेवाले चाट मंगनी और पैट ब्याह से भाई अधिक तेजी से दर्शन कर बाहर पहुँच जाते हैं।
लोकतंत्र में असीम संभावनाएं होती है। इसे 'कोकतंत्र' में भी सहजता से बदला जाता रहा है। टिकिट लेने, काम करने, परीक्षा उत्तीर्ण करने, शोधोपाधि पाने, नियुक्ति पाने, चुनावी टिकिट लेने, मंत्री पद पाने, न्याय पाने या कर्ज लेने में कैसी भी अनियमितता या बाधा हो, बिस्तर गरम करते ही दूर हो जाती है। और तो और नवग्रहों की बाधा, देवताओं का कोप और किस्मत की मार भी पंडित, मुल्ला या पादरी के शयनागार को आबाद कर दूर की जा सकती है। जिस तरह आप के बदले कोई और जाप कर दे तो आपके संकट दूर हो जाते हैं, वैसे ही आप किसी और को भी इस गंगा में डुबकी लगाने भेज सकते हैं। देव लोक में तो एक ही इंद्र है पर इस नर लोक में जितने भी 'काम' करनेवाले हैं वे सब 'काम' करने के बदले 'काम' होने के पहले 'काम की आराधना कर भवसागर पार उतरने का कोी मौका नहीं गँवाते।धर्म हो या दर्शन दोनों में कामिनी के बिना काम नहीं बनता।
हमारी विरासत है कि पहले 'काम' को भस्म कर दो फिर विवाह कर 'काम' के उपासक बन जाओ या 'पहले काम' को साध लो फिर संत कहलाओं। कोई-कोई पुरुषोत्तम आश्रम और मजारों की छाया में माया से ममता करने का पुरुषार्थ करते हुए भी 'रमता जोगी, बहता पानी' की तरह संग रहते हुए भी निस्संग और दागित होते हुए भी बेदाग़ रहा आता है। एक कलिकाल समानता का युग है। यहाँ नर से नारी किसी भी प्रकार पीछे रहना नहीं चाहती। सर्वोच्च न्यायालय और कुछ करे न करे, ७० साल में राम मंदिर पर निर्णय न दे सके किन्तु 'लिव इन' और 'विवाहेतर संबंधों' पर फ़ौरन से पेश्तर फैसलाकुन होने में अतिदक्ष है।
'लोक' भी 'तंत्र' बिना रह नहीं सकता। 'काम' को कामख्या से जोड़े या काम सूत्र से, 'तंत्र' को व्यवस्था से जोड़े या 'मंत्र' से, कमल उठाए या पंजा दिखाए, कही एक को रोकने के लिए, कही दूसरे को साधने के लिए 'माया' की शरण लेना ही होती है, लाख निर्मोही बनने का दवा करो, सत्ता की चौखट पर 'ममता' के दामन की आवश्यकता पड़ ही जाती है। 'लोभ' के रास्ते 'लोक' को 'तंत्र' के राह पर धकेलना हो या 'तंत्र' के द्वारा 'लोक' को रौंदना हो ममता और माया न तो साथ छोड़ती हैं, न कोई उनसे पीछा छुड़ाना चाहता है। अति संभ्रांत, संपन्न और भद्र लोक जानता है कि उसका बस अपनों को अपने तक रोकने पर न चले तो वह औरों के अपनों को अपने तक पहुँचने की राह बनाने से क्यों चूके? हवन करते हाथ जले तो खुद को दोषी न मानकर सूर हो या कबीर कहते रहे हैं 'माया महाठगिनी हम जानी।'
१३-१२-२०१८
***
द्विपदी
भय की नाम-पट्टिका पर, लिख दें साहस का नाम.
कोशिश कभी न हारेगी, बाधा को दें पैगाम.
१३-१२-२०१७
***
मुक्तिका
*
मैं समय हूँ, सत्य बोलूँगा.
जो छिपा है राज खोलूँगा.
*
अनतुले अब तक रहे हैं जो
बिना हिचके उन्हें तोलूँगा.
*
कालिया है नाग काला धन
नाच फन पर नहीं डोलूँगा.
*
रूपए नकली हैं गरल उसको
मिटा, अमृत आज घोलूँगा
*
कमीशनखोरी न बच पाए
मिटाकर मैं हाथ धो लूँगा
*
क्यों अकेली रहे सच्चाई?
सत्य के मैं साथ हो लूँगा
*
ध्वजा भारत की उठाये मैं
हिन्द की जय 'सलिल' बोलूँगा
***
गीत
खाट खड़ी है
*
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा
है बिन पेंदी के लोटों का.
*
नकली नोट छपे थे जितने
पल भर में बेकार हो गए.
आम आदमी को डँसने से
पहले विषधर क्षार हो गए.
ऐसी हवा चली है यारो!
उतर गया है मुँह खोटों का
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
*
नाग कालिया काले धन का
बिन मारे बेमौत मर गया.
जला, बहा, फेंका घबराकर
जन-धन खाता कहीं भर गया.
करचोरो! हर दिन होना है
वार धर-पकड़ के सोटों का
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
*
बिना परिश्रम जोड़ लिया धन
रिश्वत और कमीशन खाकर
सेठों के हित साधे मिलकर
निज चुनाव हित चंदे पाकर
अब हर राज उजागर होगा
नेता-अफसर की ओटों का
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
*
१३-१२-२०१६
***
नवगीत:
*
लेटा हूँ
मखमल गादी पर
लेकिन
नींद नहीं आती है
.
इस करवट में पड़े दिखाई
कमसिन बर्तनवाली बाई
देह सांवरी नयन कटीले
अभी न हो पाई कुड़माई
मलते-मलते बर्तन
खनके चूड़ी
जाने क्या गाती है
मुझ जैसे
लक्ष्मी पुत्र को
बना भिखारी वह जाती है
.
उस करवट ने साफ़-सफाई
करनेवाली छवि दिखलाई
आहा! उलझी लट नागिन सी
नर्तित कटि ने नींद उड़ाई
कर ने झाड़ू जरा उठाई
धक-धक धड़कन
बढ़ जाती है
मुझ अफसर को
भुला अफसरी
अपना दास बना जाती है
.
चित सोया क्यों नींद उड़ाई?
ओ पाकीज़ा! तू क्यों आई?
राधे-राधे रास रचाने
प्रवचन में लीला करवाई
करदे अर्पित
सब कुछ
गुरु को
जो
वह शिष्या
मन भाती है
.
हुआ परेशां नींद गँवाई
जहँ बैठूँ तहँ थी मुस्काई
मलिन भिखारिन, युवा, किशोरी
कवयित्री, नेत्री तरुणाई
संसद में
चलभाष देखकर
आत्मा तृप्त न हो पाती है
मुझ नेता को
भुला सियासत
गले लगाना सिखलाती है
१३-१२-२०१४
***
गीत
क्षितिज-फलक पर...
*
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
*
रजनी की कालिमा परखकर,
ऊषा की लालिमा निरख कर,
तारों शशि रवि से बातें कर-
कहदो हासिल तुम्हें हुआ क्या?
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
*
राजहंस, वक, सारस, तोते
क्या कह जाते?, कब चुप होते?
नहीं जोड़ते, विहँस छोड़ते-
लड़ने खोजें कभी खुआ क्या?
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
*
मेघ जल-कलश खाली करता,
भरे किस तरह फ़िक्र न करता.
धरती कब धरती कुछ बोलो-
माँ खाती खुद मालपुआ क्या?
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
*
रमता जोगी, बहता पानी.
पवन विचरता कर मनमानी.
लगन अगन बन बाधाओं का
दहन करे अनछुआ-छुआ क्या?
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
*
चित्र गुप्त ढाई आखर का,
आदि-अंत बिन अजरामर का.
तन पिंजरे से मुक्ति चाहता
रुके 'सलिल' मन-प्राण सुआ क्या?
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
१३-१२-२०१२
***

मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

भवानी प्रसाद तिवारी

संस्कारधानी के जननायक भवानी प्रसाद तिवारी

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
        स्वतन्त्रता संग्राम सत्याग्रही भवानी प्रसाद तिवारी (१३ फरवरी, १९१२ सागर - १३ दिसंबर १९७७ जबलपुर) प्रभावशाली वक्ता, विख्यात साहित्यकार, सजग शिक्षाविद एवं जनप्रिय राजनेता थे। आपके पिता श्री विनायक राव साहित्यभूषण जी थे। आपका जन्म भले ही सागर में हुआ परन्तु आपकी कर्मभूमि जबलपुर नगर रहा। मात्र १८ वर्ष की उम्र में वर्ष १९३० से आप राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय होकर पहली बार जेल गए। नमक सत्याग्रह १९३०, सविनय अवज्ञा आंदोलन १९३२, व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन १९४० तथा भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में सक्रिय भागीदारी कार आपने अपने जीवन के साढ़े तीन वर्ष जेल में ही व्यतीत किए। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान भवानीप्रसाद तिवारी जी ने जबलपुर नगर में होने वाले जुलूसों, सभाओं का नेतृत्व करने के साथ तिलक भूमि तलैया में सिग्नल कोर के विरुद्ध विद्रोह की अगुवाई की। त्रिपुरी अधिवेशन १९३९ में सक्रियतापूर्वक भाग लेने के लिए आपने हितकारिणी स्कूल से शिक्षक पद की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।आप तिलक भूमि तलैया में हुए तीन दिवसीय अनशन में भी शामिल रहे।

        सम्मोहक व्यक्तित्व के धनी तिवारी जी १९३६ से १९४७ तक जबलपुर नगर कांग्रेस के लगातार ११ वर्षो तक अध्यक्ष रहे। तिवारी जी ने स्वतन्त्रता सेनानी होते हुए भी साहित्यकार, पत्रकार, सम्पादक तथा शिक्षाविद के रूप में कीर्तिमान स्थापित किए। तिवारी जी जबलपुर एवं सागर विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी के सदस्य रहे। संस्कारधानी जबलपुर नगर के प्रथम महापौर निर्वाचित होने के साथ आपने ७ बार (१९५२ से १९५३ तथा १९५५ से १९५८ तथा १९६१) महापौर होने का अद्भुत कीर्तिमान स्थापित किया जो अब तक अभंग है। आप १९६४ से लगातार २ बार राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुए। ये उपलब्धियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि इसी दौर में जबलपुर में कॉंग्रेस दल में माखन लाल चतुर्वेदी, ब्योहार राजेन्द्र सिंह, सुभद्रा कुमारी चौहान, सेठ गोविंद दास, द्वारिका प्रसाद मिश्र, कुंजी लाल दुबे जैसे  प्रखर और लोकप्रिय नेता सक्रिय थे और आपने सशक्त और साधन संपन्न कॉंग्रेस द्वारा आदर्शों की पूर्ति न होते देखकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (प्रसोपा) जैसे साधनहीन दल में रहकर ये सफलताएँ पाईं। 

        सांसद के रूप में भवानी प्रसाद तिवारी जी ने अपने क्षेत्र की समस्याओं को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उठाया, सुझाव दिए, रेलवे बोर्ड तथा रेल मंत्री के मध्य सम्यक सामंजस्य की आवश्यकता प्रतिपादित की तथा नीतिगत त्रुटियों और अकारण विलंब को इंगित किया। उनके द्वारा की गई एक चर्चा रेलवे बजट १ जून १९७१ के पृष्ठ १६१ से १६८ पर पढ़ी जा सकती है। इसमें तिवारी जी ने जबलपुर-गोंदिया नैरो गेज को ब्रॉड गेज में बदलने की आवश्यकता तथा उसके लाभ पर प्रकाश डालते हुए इसे तत्काल कियान्वित करने पर बल दिया था। सरकारों की अदूरदृष्टि के कारण अब ब्रॉड गेज हो जाने पर भी इस पर यातायात अत्यल्प है।  

        भवानी प्रसाद तिवारी जी को यशस्वी  पत्रकार के रूप में प्रहरी समाचार पत्र के प्रकाशन तथा साहित्यकार के रूप में गीतांजलि के अनुगायन ने देशव्यापी प्रसिद्धि दिलाई। छायावादी काव्यशिल्प और भाव-भंगिमा पर सामाजिक संवेदना और राष्ट्रीय प्रवृत्ति को आपने वरीयता दी। प्रहरी पत्रिका ने हिंदी भाषा और साहित्य की महती सेवा की। मत-मतांतरों की चिंता किए बिना तिवारी जी ने केशव पाठक, रामानुज लाल श्रीवास्तव, सुभद्रा कुमारी चौहान, लक्ष्मण सिंह चौहान, नर्मदा प्रसाद खरे, हरिशंकर परसाई, रामेश्वर प्रसाद गुरु आदि की रचनाओं को प्रहरी में प्रमुखता से प्रकाशित करने में कभी कोताही नहीं की।    

            १९३८ में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होने पर भी उसे छोड़कर स्वतंत्रता सत्याग्रह में कूद पड़नेवाले कारावास में सुविख्यात समाजवादी  नेता (बाद में १९५२ व १९६२ में प्रसोपा तथा १९७७ में होशंगाबाद से जनता दल के सांसद) हरि विष्णु कामथ (१३ जुलाई १९०७ - १९८२) की प्रेरणा से आपने गीतांजलि का श्रेष्ठ अनुगायन किया। गीतांजलि के अंग्रेजी काव्यानुवाद से प्रेरित तिवारी जी द्वारा किये गए अनुगायन में मूल गीतांजलि के अनुरूप अनुक्रम भावगत समानता को देखते हुए स्वयं गुरुदेव ने इसे गीतांजलि का अनुवाद मात्र न मानकर सर्वथा मौलिक कृति निरूपित करते हुए तिवारी जी को आशीषित किया। कुछ पंक्तियों का आनंद लीजिए- 

‘दिखते हैं प्रभु कहीं,
यहाँ नहीं यहाँ नहीं,
फिर कहाँ? अरे वहाँ,
जहाँ कि वह किसान दीन,
वसनहीन तन मलीन,
जोतता कड़ी जमीन,
प्रभु वहीं कि जहाँ पर
वह मजूर करता है
चोटों से पत्थर को चूर’

        काव्य संग्रहों- 'प्राण पूजा' और ‘प्राण धारा’,  शोक गीत संग्रह 'तुम कहाँ चले गए’, संस्मरणात्मक निबंध संग्रह ‘जब यादें उभर आतीं हैं’,  जीवनी ‘गांधी जी की कहानी’, कथात्मक एवं समीक्षा संग्रह 'कथा वार्ता' तथा  ‘प्रहरी’ पत्रिका में प्रकाशित स्तंभों के संग्रहों ‘हाथों के मुख से’, ‘संजय के पत्र’ और ‘हमारी तुमसे और तुम्हारी हमसे’आदि के माध्यम से तिवारी जी अपनी असाधारण कारयित्री प्रतिभा के हस्ताक्षर समय-ग्रंथ पर किए। सागर विश्वविद्यालय द्वारा आपको डी. लिट. (मानद) उपाधि से विभूषित कर धन्य हुआ। महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा आपको १९७२ में 'पद्म श्री' अलंकरण से अलंकृत किया गया। 

        स्त्री-शिक्षा के समर्थक तिवारी जी ने अपनी पुत्रियों को उच्च शिक्षा प्राप्ति का हर अवसर उपलब्ध कराया। समाजवादी सिद्धांतों का पालन करते हुए आपने अपने पुत्र सतीश का अन्तर्जातीय विवाह सुप्रसिद्ध साहित्यकार-समीक्षक-संपादक रामानुजलाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी की प्रतिभाशाली छोटी बेटी अनामिका से कराया। आपने महाकौशल शिक्षा प्रसार समिति का गठनकर  बिदाम बाई कन्या शाला तथा चंचल बाई महिला माहा विद्यालय की स्थापना की। वे सच्चे जननायक थे। वे महापौर रहे या सांसद, वे आम जन के लिए हमेशा उपलब्ध रह सकें इसलिए उन्होंने अपने आवास के चारों ओर दीवाल न बनवाकर पौधों तथा लताओं की बागड़ लगवाई थी। महापौर के नाते मिली कार का उपयोग वे केवल सरकारी कार्य के लिए करते तथा निजी कार्य हेतु साइकिल से जाते थे। जनता से संवाद स्थापित करने में वे निष्णात थे। १९५७ में दलबंदी के कारण वे महापौर का चुनाव हार गए। इससे आमजन इतना रुष्ट हुए कि विजयी प्रत्याशी के जुलूस को ही रोक लिया। किसी तरह बात न बनी तो पुलिस अधिकारी ने आपको समस्या से अवगत कराया। आपने व्यक्तिगत जय-पराजय की चिंता किए बिना तत्काल विवाद स्थल पर पहुँचकर भीड़ को शांत करा दिया। 

        राजनीति में बढ़ते परिवारवाद जनित समस्या का पूर्वानुमान करते हुए आपने अपनी सुशिक्षित तथा योग्य संतानों (पुत्र सतीश तथा ५ पुत्रियों गीता, चित्रा दुबे, आभा दुबे, प्रतिभा शर्मा, मंगला शर्मा) में से किसी को राजनीति में प्रवेश नहीं करने दिया। कालक्रम में चित्रा चिकित्सक, आभा शिक्षिका तथा पुत्रवधू डॉ. अनामिका तिवारी (मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के प्रथम तथा भारत की प्रख्यात पादप विज्ञानी, पूर्व प्राध्यापक ज. ला. नेहरू कृषि विश्व विद्यालय जबलपुर) ने आपकी गौरवपूर्ण विरासत को सम्हाला तथा प्रकाशित करने का भागीरथ प्रयास किया है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे अनामिका जी द्वारा भवानीप्रसाद तिवारी जी की स्मृति में स्थापित प्रथम साहित्य श्री सम्मान प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत है तिवारी जी की एक रचना आभा जी के सौजन्य से -

आम पर मंजरी
भवानी प्रसाद तिवारी
*




घने आम पर मंजरी आ गई .....
शिशिर का ठिठुरता हुआ कारवां
गया लाद कर शीत पाला कहाँ
गगन पर उगा एक सूरज नया
धरा पर उठा फूल सारा जहां
अभागिन वसनहीनता खुश कि लो
नई धूप आ गात सहला गई ........
नए पात आए पुरातन झड़े
लता बेल द्रुम में नए रस भरे
चहक का महक का समा बँध गया
नए रंग ....धानी गुलाबी हरे
प्रकृति के खिलौने कि जो रंग गई
मनुज के कि दुख दर्द बहला गई ........
पवन चूम कलियाँ चटकने लगीं
किशोरी अलिनियाँ हटकने लगीं
रसानंद ,मकरंद ,मधुगंध में
रंगीली तितलियाँ भटकने लगीं
मलय-वात का एक झोंका चला
सुनहली फसल और लहरा गई ........

'सादा जीवन उच्च विचार' को पल पल जीनेवाले भवानी प्रसाद तिवारी जी अपनी मिसाल आप थे। जबलपुर नगर निगम प्रांगण में आपकी मानवकार प्रतिमा स्थापित की जाए तथा डाक-तार विभाग द्वारा डाक टिकिट निकाला जाए तो राजनेताओं को जनोन्मुखी राजनीति करने तथा आम लोगों को आदर्शपरक जीवन जीने की तथा स्त्री अधिकारों के पक्षधरों को ठोस कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। 
***

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

भवानी प्रसाद तिवारी

पुण्य स्मरण 
भवानी प्रसाद तिवारी 
(१२-२-१९१२, सागर - १३-१२-१९७७ जबलपुर) 
*
जबलपुर के जननायक भवानी प्रसाद तिवारी  वर्ष १९३० में  राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़कर मात्र १८  वर्ष की उम्र में पहली बार और इसके बाद कई बार राष्ट्रीय आंदोलन के लिए संघर्ष करते हुए ब्रिटिश प्रशासन द्वारा कैद किए गए। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के अंतर्गत शहर की तिलक भूमि तलैया में हुए सिग्नल कोर के विद्रोह की अगुवाई करने के साथ ही शहर में होने वाले हर आंदोलन की अगुवाई की। त्रिपुरी अधिवेशन में सहभागिता के लिए उन्होंने हितकारिणी स्कूल में शिक्षक की नौकरी छोड़  दी। और तिलक भूमि तलैया में हुए तीन दिवसीय अनशन में शामिल रहे। वर्ष १९४७ में तिवारी जी ने 'प्रहरी' समाचार पत्र का संपादन दक्षतापूर्वक किया । 
वे वर्ष १९३६ से लेकर १९४७ तक लगातार नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तथा १९६४ से दो बार राज्यसभा सांसद रहे। जबलपुर नगर पालिका (अब नगर निगम) में अधिकतम सात बार महापौर होने का गौरव भवानी प्रसाद तिवारीजी के ही नाम है। वे १९५२, १९५३, १९५५, १९५६, १९५७, १९५८ और १९६१ में महापौर चुने गए।राजनीतिक सक्रियता के समांतर श्रेष्ठ साहित्यकार के रूप में भी पंडित आपकी ख्याति अक्षुण्ण है। 
छायावादी काव्यशिल्प और भाव-भंगिमा पर सामाजिक संवेदना और राष्ट्रीय प्रवृत्ति को आपने वरीयता दी। वर्ष १९४२ में विख्यात नेता हरिविष्णु कामथ  की प्रेरणा से किए गए रवींद्रनाथ टैगोर की अमर कृति गीतांजलि के सारगर्भित मधुर काव्यानुवाद ने उन्हें विशेष ख्याति दिलाई। गीतांजलि के अंग्रेजी काव्यानुवाद से प्रेरित तिवारी जी द्वारा किये गए अनुगायन में मूल गीतांजलि के अनुरूप अनुक्रम भावगत समानता है। इसे गुरुदेव ने इसे गीतांजलि का अनुवाद मात्र न मानकर सर्वथा मौलिक कृति निरूपित करते हुए तिवारी जी को आशीषित किया।
असाधारण सामाजिक-साहित्यिक अवदान हेतु वर्ष १९७२ में भारत सरकार ने आपको 'पद्मश्री' से अलंकृत किया। १३ दिसंबर १९७७ को आपका महाप्रस्थान हुआ, जबलपुर ही नहीं देश ने भी एक महान और समर्पित नेता खो दिया।
आपके पुत्र सतीश तिवारी (अब स्वर्गीय), सुपुत्री डॉ. आभा दुबे तथा पुत्रवधु डॉ. अनामिका तिवारी ने भी अपनी असाधारण योग्यता से साहित्यिक सांस्कृतिक क्षेत्र में अपने पहचान बनाई है। अनामिका जी देश की अग्रगण्य पादप विज्ञानी भी हैं। मेरा सौभाग्य है कि मुझे अनामिका जी द्वारा भवानीप्रसाद तिवारी जी की स्मृति में स्थापित प्रथम साहित्य श्री सम्मान प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत है तिवारी जी की एक रचना आभा जी के सौजन्य से -  

आम पर मंजरी













भवानी प्रसाद तिवारी
*
घने आम पर मंजरी आ गई .....
शिशिर का ठिठुरता हुआ कारवां
गया लाद कर शीत पाला कहाँ
गगन पर उगा एक सूरज नया
धरा पर उठा फूल सारा जहां
अभागिन वसनहीनता खुश कि लो
नई धूप आ गात सहला गई ........
नए पात आए पुरातन झड़े
लता बेल द्रुम में नए रस भरे
चहक का महक का समाँ बन्ध गया
नए रंग ....धानी गुलाबी हरे
प्रकृति के खिलौने कि जो रंग गई
मनुज के कि दुख दर्द बहला गई ........
पवन चूम कलियाँ चटकने लगीं
किशोरी अलिनियां हटकने लगीं
रसानंद ,मकरंद ,मधुगन्ध में
रंगीली तितलियाँ भटकने लगीं
मलय -वात का एक झोंका चला
सुनहली फसल और लहरा गई ........