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रविवार, 15 सितंबर 2024

सितंबर १५, अभियंता, अभियांत्रिकी, तकनीक, हिंदी गीत, मुक्तक,

सलिल सृजन सितंबर १५ 

अभियंता दिवस
अभियंता जागो
१. हर नगर, परियोजना मुख्यालय, अभियांत्रिकी संस्थाओं के मुखयालयों तथा अभियांत्रिकी महाविद्यालय/पॉलिटेक्निक में भारतरत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की मूर्ति स्थापित हो।
२. अभियंता कवि सम्मेलनों तथा अभियांत्रिकी विषयों पर हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में गोष्ठियों/परिचर्चाओं का नियमित आयोजन आयोजन किया जाए।
३. हर अभियांत्रिकी महाविद्यालय/पॉलिटेक्निक में सर्वोच्च अंक अर्जित करने वाले छात्र को एम्. वी. पदक प्रदान किया जाए।
४. निर्माण कार्यों में ठेकेदारी के लिए अभियांत्रिकी में डिग्री/डिप्लोमा अनिवार्य हो ताकि कार्यों की गुणवत्ता में सुधार हो।
५. डिग्री/डिप्लोमा अभियंताओं को व्यवसाय आरंभ करने के लिए ब्याजमुक्त कर्ज उपलब्ध कराया जाए तथा निविदा कार्यों में वरीयता दी जाए।
६. साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत अभियंताओं को तकनीकी विभागों की परामर्शदात्री समितियों, जाँच समितियों आदि में वरीयता दी जाए ताकि वे तकनीकी और सामाजिक दोनों दृष्टिकोणों से मददगार हो सकें।
७. राष्ट्रीय सम्मान तथा उपाधि वितरण में अभियंता संवर्ग की उपेक्षा बंद कर अवदान का सम्यक मूल्याङ्कन कर वरीयता दी जाए।
८. हर प्रांत में तकनीकी साहित्य अकादमी बनाकर साहित्य से जुड़े अभियंताओं/चिकित्सकों को अध्यक्ष, सदस्य बनाया जाए ताकि वे श्रेष्ठ तकनीकी साहित्य को भारतीय भाषाओं में अनुवादित कराकर पाठ्यक्रमों के लिए भारतीय भाषाओं में संदर्भ ग्रंथ उपलब्ध करा सकें।
९. अभियांत्रिकी तथा अन्य तकनीकी क्षेत्रों की किताबों में सरल और प्रचलित भाषा-रूप का प्रयोग हो, भाषिक शुद्धता के नाम पर कठिन संस्कृत निष्ठ शब्दावली के स्थान पर व्यावहारिक तकनीकी शब्दों को ज्यों का त्यों देवनागरी वर्णमाला में लिखा जाए।
१०. केन्द्रीय तथा प्रांतीय सरकारें अभियांत्रिकी व्यवसाय के नियम बनाने के लिए 'अभियंता अधिनियम' बनाए।
संजीव वर्मा
सभापति इंजीनियर्स फोरम (भारत)
९४२५१८३२४४
***
अभियंता दिवस (१५ सितंबर) पर विशेष रचना:
हम अभियंता...
*
हम अभियंता!, हम अभियंता!!
मानवता के भाग्य-नियंता...
*
माटी से मूरत गढ़ते हैं,
कंकर को शंकर करते हैं.
वामन से संकल्पित पग धर,
हिमगिरि को बौना करते हैं.
नियति-नटी के शिलालेख पर
अदिख लिखा जो वह पढ़ते हैं.
असफलता का फ्रेम बनाकर,
चित्र सफलता का मढ़ते हैं.
श्रम-कोशिश दो हाथ हमारे-
फिर भविष्य की क्यों हो चिंता...
*
अनिल, अनल, भू, सलिल, गगन हम,
पंचतत्व औजार हमारे.
राष्ट्र, विश्व, मानव-उन्नति हित,
तन, मन, शक्ति, समय, धन वारे.
वर्तमान, गत-आगत नत है,
तकनीकों ने रूप निखारे.
निराकार साकार हो रहे,
अपने सपने सतत सँवारे.
साथ हमारे रहना चाहे,
भू पर उतर स्वयं भगवंता...
*
भवन, सड़क, पुल, यंत्र बनाते,
ऊसर में फसलें उपजाते.
हमीं विश्वकर्मा विधि-वंशज.
मंगल पर पद-चिन्ह बनाते.
प्रकृति-पुत्र हैं, नियति-नटी की,
आँखों से हम आँख मिलाते.
हरि सम हर हर आपद-विपदा,
गरल पचा अमृत बरसाते.
'सलिल' स्नेह नर्मदा निनादित,
ऊर्जा-पुंज अनादि-अनंता...
.***
अभियांत्रिकी:
कण जोड़ती तृण तोड़ती पथ मोड़ती अभियांत्रिकी
बढ़ती चले चढ़ती चले गढ़ती चले अभियांत्रिकी
उगती रहे पलती रहे खिलती रहे अभियांत्रिकी
रचती रहे बसती रहे सजती रहे अभियांत्रिकी।
*
तकनीक:
नवरीत भी, नवगीत भी, संगीत भी तकनीक है
कुछ प्यार है, कुछ हार है, कुछ जीत भी तकनीक है
गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी तकनीक है
श्रम-मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है
*
भारत :
यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है
कर दें सभी मिल देश का, निर्माण नव अभियान है
गुणयुक्त हो अभियांत्रिकी, शर्म-कोशिशों का गान है
परियोजन तृतीमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है
*
(छंद: हरिगीतिका, ११२१२ X ४ = २८)
***
तकनीकी लेख
*इन्स्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स कोलकाता द्वारा पुरस्कृत द्वितीय श्रेष्ठ तकनीकी लेख*
*वैश्विकता के निकष पर भारतीय यांत्रिकी संरचनाएँ*
अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'
*
भारतीय परिवेश में अभियांत्रिकी संरचनाओं को 'वास्तु' कहा गया है। छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी प्रत्येक संरचना को अपने आपमें स्वतंत्र और पूर्ण व्यक्ति के रूप में 'वास्तु पुरुष' कहा गया है। भारतीय परंपरा प्रकृति को मातृवत पूज्य मानकर उपयोग करती है, पाश्चात्य पद्धति प्रकृति को निष्प्राण पदार्थ मानकर उसका उपभोग (दोहन-शोषण) कर और फेंक देती हैं। भारतीय यांत्रिक संरचनाओं के दो वर्ग वैदिक-पौराणिक काल की संरचनाओं और आधुनिक संरचनाओं के रूप में किये जा सकते हैं और तब उनको वैश्विक गुणवत्ता, उपयोगिता और दीर्घता के मानकों पर परखा जा सकता है।
*शिव की कालजयी अभियांत्रिकी:*
पौराणिक साहित्य में सबसे अधिक समर्थ अभियंता शिव हैं। शिव नागरिक यांत्रिकी (सिविल इंजीनियरिग), पर्यावरण यांत्रिकी, शल्य यांत्रिकी, शस्त्र यांत्रिकी, चिकित्सा यांत्रिकी, के साथ परमाण्विक यांत्रिकी में भी निष्णात हैं। वे इतने समर्थ यंत्री है कि पदार्थ और प्रकृति के मूल स्वभाव को भी परिवर्तित कर सके, प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण जनगण की सुनिश्चित मृत्यु को भी टाल सके। उन्हें मृत्युंजय और महाकाल विशेषण प्राप्त हुए।
शिव की अभियांत्रिकी का प्रथम ज्ञात नमूना ६ करोड़ से अधिक वर्ष पूर्व का है जब उन्होंने टैथीज़ महासागर के सूखने से निकली धरा पर मानव सभ्यता के प्रसार हेतु अपरिहार्य मीठे पेय जल प्राप्ति हेतु सर्वोच्च अमरकंटक पर्वत पर दुर्लभ आयुर्वेदिक औषधियों के सघन वन के बीच में अपने निवास स्थान के समीप बांस-कुञ्ज से घिरे सरोवर से प्रबल जलधार निकालकर गुजरात समुद्र तट तक प्रवाहित की जिसे आज सनातन सलिला नर्मदा के नाम से जाना जाता है। यह नर्मदा करोड़ों वर्षों से लेकर अब तक तक मानव सभ्यता केंद्र रही है। नागलोक और गोंडवाना के नाम से यह अंचल पुरातत्व और इतिहास में विख्यात रहा है। नर्मदा को शिवात्मजा, शिवतनया, शिवसुता, शिवप्रिया, शिव स्वेदोद्भवा, शिवंगिनी आदि नाम इसी सन्दर्भ में दिये गये हैं। अमरकंटक में बांस-वन से निर्गमित होने के कारण वंशलोचनी, तीव्र जलप्रवाह से उत्पन्न कलकल ध्वनि के कारण रेवा, शिलाओं को चूर्ण कर रेत बनाने-बहाने के कारण बालुकावाहिनी, सुंदरता तथा आनंद देने के कारण नर्मदा, अकाल से रक्षा करने के कारण वर्मदा, तीव्र गति से बहने के कारण क्षिप्रा, मैदान में मंथर गति के कारण मंदाकिनी, काल से बचने के कारण कालिंदी, स्वास्थ्य प्रदान कर हृष्ट-पुष्ट करने के कारण जगजननी जैसे विशेषण नर्मदा को मिले।
जीवनदायी नर्मदा पर अधिकार के लिए भीषण युद्ध हुए। नाग, ऋक्ष, देव, किन्नर, गन्धर्व, वानर, उलूक दनुज, असुर आदि अनेक सभ्यताएं सदियों तक लड़ती रहीं। अन्य कुशल परमाणुयांत्रिकीविद दैत्यराज त्रिपुर ने परमाण्विक ऊर्जा संपन्न ३ नगर 'त्रिपुरी' बनाकर नर्मदा पर कब्जा किया तो शिव ने परमाण्विक विस्फोट कर उसे नष्ट कर दिया जिससे नि:सृत ऊर्जा ने ज्वालामुखी को जन्म दिया। लावा के जमने से बनी चट्टानें लौह तत्व की अधिकता के कारण जाना हो गयी। यह स्थल लम्हेटाघाट के नाम से ख्यात है। कालांतर में चट्टानों पर धूल-मिट्टी जमने से पर्वत-पहाड़ियाँ और उनके बीच में तालाब बने। जबलपुर से ३२ किलोमीटर दूर ऐसी ही एक पहाड़ी पर ज्वालादेवी मंदिर मूलतः ऐसी ही चट्टान को पूजने से बना। जबलपुर के ५२ तालाब इसी समय बने थे जो अब नष्टप्राय हैं। टेथीज़ महासागर के पूरी तरह सूख्नने और वर्तमान भूगोल के बेबी माउंटेन कहे जानेवाले हिमालय पर्वत के बनने पर शिव ने मानसरोवर को अपना आवास बनाकर भगीरथ के माध्यम से नयी जलधारा प्रवाहित की जिसे गंगा कहा गया।
*महर्षि अगस्त्य के अभियांत्रिकी कार्य:*
महर्षि अगस्त्य अपने समय के कुशल परमाणु शक्ति विशेषज्ञ थे। विंध्याचल पर्वत की ऊँचाई और दुर्गमता उत्तर से दक्षिण जाने के मार्ग में बाधक हुई तो महर्षि ने परमाणु शक्ति का प्रयोग कर पर्वत को ध्वस्त कर मार्ग बनाया। साहित्यिक भाषा में इसे मानवीकरण कर पौराणिक गाथा में लिखा गया कि अपनी ऊंचाई पर गर्व कर विंध्याचल सूर्य का पथ अवरुद्ध करने लगा तो सृष्टि में अंधकार छाने लगा। देवताओं ने महर्षि अगस्त्य से समाधान हेतु प्रार्थना की। महर्षि को देखकर विंध्याचल प्रणाम करने झुका तो महर्षि ने आदेश दिया कि दक्षिण से मेरे लौटने तक ऐसे ही झुके रहना और वह आज तक झुका है।
दस्युओं द्वारा आतंक फैलाकर समुद्र में छिप जाने की घटनाएँ बढ़ने पर अगस्त्य ने परमाणु शक्ति का प्रयोग कर समुद्र का जल सुखाया और राक्षसों का संहार किया। पौराणिक कथा में कहा गया की अगस्त्य ने चुल्लू में समुद्र का जल पी लिया। राक्षसों से आर्य ऋषियों की रक्षा के लिए अगस्त्य ने नर्मदा के दक्षिण में अपना आश्रम (परमाणु अस्त्रागार तथा शोधकेन्द्र) स्थापित किया। किसी समय नर्मदा घाटी के एकछत्र सम्राट रहे डायनासौर राजसौरस नर्मदेंसिस खोज लिए जाने के बाद इस क्षेत्र की प्राचीनता और उक्त कथाएँ अंतर्संबन्धित और प्रामाणिकता होना असंदिग्ध है।
*रामकालीन अभियांत्रिकी:*
रावण द्वारा परमाण्विक शस्त्र विकसित कर देवों तथा मानवों पर अत्याचार किये जाने को सुदृढ़ दुर्ग के रूप में बनाना यांत्रिकी का अद्भुत नमूना था। रावण की सैन्य यांत्रिकी विद्या और कला अद्वितीय थी। स्वयंवर के समय राम ने शिव का एक परमाण्वास्त्र जो जनक के पास था पास था, रावण हस्तगत करना चाहता था नष्ट किया। सीताहरण में प्रयुक्त रथ जो भूमार्ग और नभमार्ग पर चल सकता था वाहन यांत्रिकी की मिसाल था। राम-रावण परमाण्विक युद्ध के समय शस्त्रों से निकले यूरेनियम-थोरियम के कारण सहस्त्रों वर्षों तक लंका दुर्दशा रही जो हिरोशिमा नागासाकी की हुई थी। श्री राम के लिये नल-नील द्वारा लगभग १३ लाख वर्ष पूर्व निर्मित रामेश्वरम सेतु अभियांत्रिकी की अनोखी मिसाल है। सुषेण वैद्य द्वारा बायोमेडिकल इंजीनियरिंग का प्रयोग युद्ध अवधि में प्रतिदिन घायलों का इस तरह उपचार किया गया की वे अगले दिन पुनः युद्ध कर सके।
*कृष्णकालीन अभियांत्रिकी:*
लाक्षाग्रह, इंद्रप्रस्थ तथा द्वारिका कृष्णकाल की अद्वितीय अभियांत्रिकी संरचनाएँ हैं। सुदर्शन चक्र, पाञ्चजन्य शंख, गांडीव धनुष आदि शस्त्र निर्माण कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। महाभारत पश्चात अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भस्थ शिशु पर प्रहार, श्रीकृष्ण द्वारा सुरक्षापूर्वक शिशु जन्म कराना बायो मेडिकल इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण है। गुजरात में समुद्रतट पर कृष्ण द्वारा बसाई गयी द्वारिका नगरी उनकी मृत्यु पश्चात जलमग्न हो गयी। २००५ से भारतीय नौसेना के सहयोग से इसके अन्वेषण का कार्य प्रगति पर है। वैज्ञानिक स्कूबा डाइविंग से इसके रहस्य जानने में लगे हैं।
*श्रेष्ठ अभियांत्रिकी के ऐतिहासिक उदाहरण
श्रेष्ठ भारतीय संरचनाओं में से कुछ इतनी प्रसिद्ध हुईं कि उनका रूपांतरण कर निर्माण का श्रेय सुनियोजित प्रयास शासकों द्वारा किया गया। उनमें से कुछ निम्न निम्न हैं:
*तेजोमहालय (ताजमहल) आगरा:*
हिन्दू राजा परमार देव द्वारा ११९६ में बनवाया गया तेजोमहालय (शिव के पाँचवे रूप अग्रेश्वर महादेव नाग नाथेश्वर का उपासना गृह तथा राजा का आवास) भवन यांत्रिकी कला का अद्भुत उदाहरण है जिसे विश्व के सात आश्चर्यों में गिना जाता है।
*तेजो महालय के रेखांकन*
१०८ कमल पुष्पों तथा १०८ कलशों से सज्जित संगमरमरी जालियों से सज्जित यह भवन ४०० से अधिक कक्ष तथा तहखाने हैं। इसके गुम्बद निर्माण के समय यह व्यवस्था भी की गयी है कि बूँद-बूँद वर्षा टपकने से शिवलिंग का जलाभिषेक अपने आप होता रहे।
*विष्णु स्तम्भ (क़ुतुब मीनार) दिल्ली
युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित, ​दक्षिण दिल्ली के विष्णुपद गिरि में राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक प्रख्यात ज्योतिर्विद आचार्य मिहिर की शोध तथा निवासस्थली मिहिरा अवली (महरौली) में ​दिन-रात के प्रतीक 12 त्रिभुजाका​रों - 12 कमल पत्रों ​और 27
नक्षत्रों​ के प्रतीक 27 पैवेलियनों सहित निर्मित 7 मंज़िली ​विश्व की सबसे ऊँची मीनार ​(72.7 मीटर ​, आधार व्यास 14.3 मीटर, शिखर व्यास 2.75 मीटर ,​379 सीढियाँ, निर्माण काल सन 1193 पूर्व) विष्णु ध्वज/स्तंभ (क़ुतुब मीनार) भारतीय अभियांत्रिकी संरचनाओं के श्रेष्ठता का उदाहरण है। इस पर सनातन धर्म के देवों, मांगलिक प्रतीकों तथा संस्कृत उद्धरणों का अंकन है।
​​इन पर मुग़लकाल में समीपस्थ जैन मंदिर तोड़कर उस सामग्री से पत्थर लगाकर आयतें लिखाकर मुग़ल इमारत का रूप देने का प्रयास कुतुबुद्दीन ऐबक व इलततमिश द्वारा 1199-1368 में किया गया । निकट ही ​चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा विष्णुपद गिरि पर स्थापित और विष्णु भगवान को समर्पित गिरि पर स्थापित और विष्णु भगवान को समर्पित7 मीटर ऊंचा 6 टन वज़न का ध्रुव/गरुड़स्तंभ (लौह स्तंभ) स्तम्भ ​चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने बाल्हिक युद्ध में विजय पश्चात बनवाया। इस पर अंकित लेख में सन 1052 के राजा अंनगपाल द्वितीय का उल्लेख है।तोमर नरेश विग्रह ने इसे खड़ा करवाया जिस पर सैकड़ों वर्षों बाद भी जंग नहीं लगी। फॉस्फोरस मिश्रित लोहे से निर्मित यह स्तंभ भारतीय धात्विक यांत्रिकी की श्रेष्ठता का अनुपम उदाहरण है।आई. आई. टी. कानपूर के प्रो. बालासुब्रमण्यम के अनुसार हाइड्रोजन फॉस्फेट हाइड्रेट (FePO4-H3PO4-4H2O) जंगनिरोधी ​सतह है का निर्माण करता है।
*​जंतर मंतर : Samrat Yantra* सवाई जयसिंह द्वितीयद्वारा 1724 में दिल्ली जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में ​निर्मित जंतर मंतर प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है।यहाँ​ सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से समय और ग्रहों की स्थिति, मिस्र यंत्र वर्ष से सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन, राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र से खगोलीय पिंडों की गति जानी जा सकती ​है। इनके अतिरिक्त दिल्ली, आगरा, ग्वालियर, जयपुर, चित्तौरगढ़, गोलकुंडा आदि के किले अपनी मजबूती, उपयोगिता और श्रेष्ठता की मिसाल हैं।​
*आधुनिक अभियांत्रिकी संरचनाएँ:*
भारतीय अभियांत्रिकी संरचनाओं को शकों-हूणों और मुगलों के आक्रमणों के कारण पडी। मुगलों ने पुराने निर्माणों को बेरहमी से तोडा और किये। अंग्रेजों ने भारत को एक इकाई बनाने के साथ अपनी प्रशासनिक पकड़ बनाने के लिये किये। स्वतंत्रता के पश्चात सर मोक्षगुंडम विश्वेस्वरैया, डॉ. चन्द्रशेखर वेंकट रमण, डॉ. मेघनाद साहा आदि ने विविध परियोजनाओं को मूर्त किया। भाखरानागल, हीराकुड, नागार्जुन सागर, बरगी, सरदार सरोवर, टिहरी आदि जल परियोजनाओं ने कृषि उत्पादन से भारतीय अभियांत्रिकी को गति दी।
जबलपुर, कानपूर, तिरुचिरापल्ली, शाहजहाँपुर, इटारसी आदि में सीमा सुरक्षा बल हेतु अस्त्र-शास्त्र और सैन्य वाहन गुणवत्ता और मितव्ययिता के साथ बनाने में भारतीय संयंत्र किसी विदेशी संस्थान से पीछे नहीं हैं।
परमाणु ऊर्जा संयंत्र निर्माण, परिचालन और दुर्घटना नियंत्रण में भारत के प्रतिष्ठानों ने विदेशी प्रतिष्ठानों की तुलना में बेहतर काम किया है। कम सञ्चालन व्यय, अधिक रोजगार और उत्पादन के साथ कम दुर्घटनाओं ने परमाणु वैज्ञानिकों को प्रतिशत दिलाई है जिसका श्रेय डॉ. होमी जहांगीर भाभा को जाता है।
भारत की अंतरिक्ष परियोजनाएं और उपग्रह तकनालॉजी दुनिया में श्रेष्ठता, मितव्ययिता और सटीकता के लिए ख्यात हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद भारत ने कीर्तिमान स्थापित किये हैं और खुद को प्रमाणित किया है। डॉ. विक्रम साराभाई का योगदान विस्मृत नहीं किया जा सकता।
भारत के अभियंता पूरी दुनिया में अपनी लगन, परिश्रम और योग्यता के लिए जाने जाते हैं । देश में प्रशासनिक सेवाओं की तुलना में वेतन, पदोन्नति, सुविधाएँ और सामाजिक प्रतिष्ठा अत्यल्प होने के बावजूद भारतीय अभियांत्रिकी परियोजनाओं ने कीर्तिमान स्थापित किये हैं।
अग्निपुरुष डॉ. कलाम के नेतृत्व में भारतीय मिसाइल अभियांत्रिकी की विश्व्यापी ख्याति प्राप्त की है।
सारत: भारत की महत्वकांक्षी अभियांत्रिकी संरचनाएँ मेट्रो ट्रैन, दक्षिण रेल, वैष्णव देवी रेल परियोजना हो या बुलेट ट्रैन की भावी योजना,राष्ट्रीय राजमार्ग चतुर्भुज हो या नदियों को जोड़ने की योजना भारतीय अभियंताओं ने हर चुनौती को स्वीकारा है। विश्व के किसी भी देश की तुलना में भारतीय संरचनाएँ और परियोजनाएं श्रेष्ठ सिद्ध हुई हैं।
***
मुक्तक
नित्य प्रात हो जन्म, सूर्य सम कर्म करें निष्काम भाव से।
संध्या पा संतोष रात्रि में, हो विराम नित नए चाव से।।
आस-प्रयास-हास सँग पग-पग, लक्ष्य श्वास सम हो अभिन्न ही -
मोह न व्यापे, अहं न घेरे, साधु हो सकें प्रिय! स्वभाव से।।
***
दोहे
सलिल न बन्धन बाँधता, बहकर देता खोल।
चाहे चुप रह समझिए, चाहे पीटें ढोल।।
*
अंजुरी भर ले अधर से, लगा बुझा ले प्यास।
मन चाहे पैरों कुचल, युग पा ले संत्रास।।
*
उठे, बरस, बह फिर उठे, यही 'सलिल' की रीत।
दंभ-द्वेष से दूर दे, विमल प्रीत को प्रीत।।
*
स्नेह संतुलन साधकर, 'सलिल' धरा को सींच।
बह जाता निज राह पर, सुख से आँखें मींच।।
*
क्या पहले क्या बाद में, घुली कुँए में भंग।
गाँव पिए मदमस्त है, कर अपनों से जंग।।
*
जो अव्यक्त है, उसी से, बनता है साहित्य।
व्यक्त करे सत-शिव तभी, सुंदर का प्रागट्य।।
*
नमन नलिनि को कीजिए, विजय आप हो साथ।
'सलिल' प्रवह सब जगत में, ऊँचा रखकर माथ।।
*
हर रेखा विश्वास की, शक-सेना की हार।
सक्सेना विजयी रहे, बाँट स्नेह-सत्कार।
१५-९-२०१६
*
हिंदी गीत:
*
अपना हर पल है हिन्दीमय एक दिवस क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें नित्य अंग्रेजी जो वे एक दिवस जय गाएँ...
*
निज भाषा को कहते पिछडी. पर भाषा उन्नत बतलाते.
घरवाली से आँख फेरकर देख पडोसन को ललचाते.
ऐसों की जमात में बोलो, हम कैसे शामिल हो जाएँ?...
*
हिंदी है दासों की बोली, अंग्रेजी शासक की भाषा.
जिसकी ऐसी गलत सोच है, उससे क्या पालें हम आशा?
इन जयचंदों की खातिर हिंदीसुत पृथ्वीराज बन जाएँ...
*
ध्वनिविज्ञान- नियम हिंदी के शब्द-शब्द में माने जाते.
कुछ लिख, कुछ का कुछ पढने की रीत न हम हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि, उच्चारण भी शब्द-अर्थ में साम्य बताएँ...
*
अलंकार, रस, छंद बिम्ब, शक्तियाँ शब्द की बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी भाषा में मिलते, दावे करलें चाहे झूठे.
देश-विदेशों में हिन्दीभाषी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएँ...
*
अन्तरिक्ष में संप्रेषण की भाषा हिंदी सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन में हिंदी है सर्वाधिक सक्षम.
हिंदी भावी जग-वाणी है निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ...
***

गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

अप्रैल १८, मनमोहन छंद, नवगीत, मुक्तिका, दोहा, लघुकथा, महाकाव्य, सॉनेट, भाषा, तकनीक

 सलिल सृजन अप्रैल १८ 
सॉनेट विमर्श १
*
१ सॉनेट अंग्रेजी से हिंदी में आयातित छंद है।
२ सॉनेट का वैशिष्ट्य १४ (न कम, न ज्यादा) पंक्तियाँ होना है।
सॉनेट की मुख्य दो शैलियां हैं जिनका प्रयोग क्रमशः शेक्सपियर व मिल्टन ने किया है।
४ शेक्सपियरी सॉनेट में ४ पंक्ति के तीन अंतरे तथा अंत में २ पंक्तियाँ होती हैं।
५ अंतरों में पहली-तीसरी पंक्ति की समान तुक होती है।
६ अंतरों की दूसरी-चौथी पंक्ति में भिन्न समान तुक होती है।
७ अंतिम दो पंक्तियों की तुक समान होती है।
८ साॅनेट की सब पंक्तियाँ समान पदभार की होती हैं।
तीनों अंतरों में समान याभिन्न-भिन्न, दोनों तरह के तुकांत लिए जा सकते हैं।
९ साॅनेट उच्चार पर आधारित वाचिक छंद है।
१० साॅनेट में सामान्यतः १५ उच्चार (१४-१६ मान्य) होते हैं।
११ सुविधा के लिए आरंभ में वर्ण या मात्रा के आधार पर साॅनेट लिखे जिसके हैं।
•••
सॉनेट विमर्श २
- सॉनेट का शाब्दिक अर्थ संक्षिप्त लयात्मक अभिव्यक्ति है। इसे 'कोयल की कूक' कह सकते हैं।
- सॉनेट सम शब्दांत अर्थात ऐसे शब्द जिनके अंतिम उच्चार समान हों।
- उच्चार गणना के लिए शब्द को बोलिए, आप अनुभव करेंगे कि पूरा शब्द हमेशा एक साथ नहीं बोला जाता। शब्द के कुछ उच्चार पहले, शेष बाद में बोले जाते हैं।
वतन, जतन जैसे शब्दों में 'तन' एक साथ 'तन्' की तरह बोला जाता है। उसके पूर्व का शब्द पहले बोल लिया जाता है।
वतन = व तन, उच्चार १ २, वर्ण १११, मात्रा १११।
आचमन = आच मन २१ ११,
आ चमन ×, आचम न ×
पुनरागमन = पुन रा गमन २ २१ २
पुनरा गमन २ २ १२
वर्ण ६, मात्रा ७
अघटनघटनापचीयसी
उच्चार अघ टन घट ना पची यसी
२ २ २ २ १ २ १ २ = १४
वर्ण ११
मात्रा १४
- उच्चार के नियम बोलने से बने हैं। ये व्यावहारिक हैं।
विद्या विद् या २ २ = ४
उक्त उक्त त २ १ = ३
रक्षा रक् शा २ २ = ४
निरक्षर कवि मात्रा, वर्ण न गिनकर भी उच्चार के आधार पर कविता कर लेते हैं।
- नियम यह कि किसी लघु उच्चार के बाद अर्ध उच्चार हो तो वह पूर्ववर्ती लघु उच्चार के साथ संयुक्त होकर उसे गुरु बनाता है।
- आद्य = आद् + य
वाक्य = वाक् + य
शाक्त = शाक् + त
मौर्य, फाख्ता, वांग्मय, दीक्षा
नियम - गुरु उच्चार के साथ अर्ध उच्चार पहले की तरह संयुक्त है किंतु गुरु यथावत है।
- तीक्ष्ण ती क् श् + ण = २ १ = ३
नियम - पूर्ववर्ती गुरु उच्चार में एक से अधिक अर्ध उच्चार जुड़ें तो गिने नहीं जाते।
- स्फूर्त, स्कूल, स्फीत, स्नेह, स्वार्थ, स्वागत, स्वयं, स्वगत, स्वयंभू आदि के उच्चारण में सजगता आवश्यक है। स्कूल का उच्चारण 'इस्कूल' न करें।
विशेष विमर्श
भाषा और तकनीक
*
'भा' अर्थात् प्रकाशित करना। भाना, भामिनी, भाव, भावुक, भाषित, भास्कर आदि में 'भा' की विविध छवियाँ दृष्टव्य हैं।
विज्ञान, तकनीक और यांत्रिकी में लोक और साहित्य में प्रचलित भावार्थ की लीक से हटकर शब्दों को विशिष्ट अर्थ में प्रयोग कर अर्थ विशेष की अभिव्यक्ति अपरिहार्य है।
'आँसू न बहा फरियाद न कर /दिल जलता है तो जलने दे' जैसी अभिव्यक्ति साहित्य में मूल्यवान होते हुए भी तथ्य दोष से युक्त है। विज्ञान जानता है कि दिल (हार्ट) के दुखने का कारण 'विरह' नहीं दिल की बीमारी है।
सामान्य बोलचाल में 'रेल आ रही है' कहा जाता है जबकि 'रेल' का अर्थ 'पटरी' होता है जिस पर रेलगाड़ी (ट्रेन) चलती है।
इसी तरह जबलपुर आ गया कहना भी गलत है। जबलपुर एक स्थान है जो अपनी जगह स्थिर है, आना-जाना वाहन या सवारी का कार्य है।
'तस्वीर तेरी दिल में बसा रखी है' कहकर प्रेमी और सुनकर प्रेमिका भले खुश हो लें, विज्ञान जानता है कि प्राणी बसता-उजड़ता है, निष्प्राण तस्वीर बस-उजड़ नहीं सकती। दिल तस्वीर बसाने का मकान नहीं शरीर को रक्त प्रदाय करने का पंप है।
आशय यह नहीं है कि साहित्यिक अभिव्यक्ति निरर्थक या त्याज्य हैं। कहना यह है कि शिक्षा पाने के साथ शब्दों को सही अर्थ में प्रयोग करना भी आवश्यक है विशेष कर तकनीकी विषयों पर लिखने के लिए भाषा और शब्द-प्रयोग के प्रति सजगता आवश्यक है।
'साइज' और 'शेप' दोनों के लिए आकार या आकृति का प्रयोग करना गलत है। साइज के लिए सही शब्द 'परिमाप' है।
सामान्य बोलचाल में 'गेंद' और 'रोटी' दोनों को 'गोल' कह दिया जाता है जबकि गेंद गोल (स्फेरिकल) तथा रोटी वृत्ताकार (सर्कुलर) है। विज्ञान में वृत्तीय परिपथ को गोल या गोल पिंड को वृत्तीय कदापि नहीं कहा जा सकता।
'कला' के अंतर्गत अर्थशास्त्र या समाज शास्त्र आदि को रखा जाना भी भाषिक चूक है। ये सभी विषय सामाजिक विज्ञान (सोशल साइंस) के यंग हैं।
शब्दकोशीय समानार्थी शब्द विज्ञान में भिन्नार्थों में प्रयुक्त हो सकते हैं। भाप (वाटर वेपर) और वाष्प (स्टीम) सामान्यत: समानार्थी होते हुए भी यांत्रिकी की दृष्टि से भिन्न हैं।
अणु एटम है, परमाणु मॉलिक्यूल पर हम परमाणु बम को एटम बम कह देते हैं।
हम सब यह जानते हैं कि पौधा लगाया जाता है वृक्ष नहीं, फिर भी 'पौधारोपण' की जगह 'वृक्षारोपण' कहते हैं।
बल (फोर्स) और शक्ति (स्ट्रैंग्थ) को सामान्य जन समानार्थी मानकर प्रयोग करता है पर भौतिकी का विद्यार्थी इनका अंतर जानता है।
कोई भाषा रातों-रात नहीं बनती। ध्वनि विज्ञान और भाषा शास्त्र की दृष्टि से हिंदी सर्वाधिक समर्थ है। हमारे सामने यह चुनौती है कि श्रेष्ठ साहित्यिक विरासत संपन्न हिंदी को विज्ञान और तकनीक के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा बनाएँ।
नव रचनाकार उच्च शिक्षित होने के बाद भी भाषा की शुद्धता के प्रति प्रायः सजग नहीं हैं। यह शोचनीय है। कोई भी साहित्य या साहित्यकार शब्दों का गलत प्रयोग कर यश नहीं पा सकता। अत:, रचना प्रकाशित करने के पूर्व एक-एक शब्द की उपयुक्तता परखना आवश्यक है।
***
विमर्श
हिंदी वांग्मय में महाकाव्य विधा
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
संस्कृत वांग्मय में काव्य का वर्गीकरण दृश्य काव्य (नाटक, रूपक, प्रहसन, एकांकी आदि) तथा श्रव्य काव्य (महाकाव्य, खंड काव्य आदि) में किया गया है। आचार्य विश्वनाथ के अनुसार 'जो केवल सुना जा सके अर्थात जिसका अभिनय न हो सके वह 'श्रव्य काव्य' है। श्रव्य काव्य का प्रधान लक्षण रसात्मकता तथा भाव माधुर्य है। माधुर्य के लिए लयात्मकता आवश्यक है। श्रव्य काव्य के दो भेद प्रबंध काव्य तथा मुक्तक काव्य हैं। प्रबंध अर्थात बंधा हुआ, मुक्तक अर्थात निर्बंध। प्रबंध काव्य का एक-एक अंश अपने पूर्व और पश्चात्वर्ती अंश से जुड़ा होता है। उसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता। पाश्चात्य काव्य शास्त्र के अनुसार प्रबंध काव्य विषय प्रधान या करता प्रधान काव्य है। प्रबंध काव्य को महाकाव्य और खंड काव्य में पुनर्वर्गीकृत किया गया है।
महाकाव्य के तत्व -
महाकाव्य के ३ प्रमुख तत्व है १. (कथा) वस्तु , २. नायक तथा ३. रस।
१. कथावस्तु - महाकाव्य की कथा प्राय: लंबी, महत्वपूर्ण, मानव सभ्यता की उन्नायक, होती है। कथा को विविध सर्गों (कम से कम ८) में इस तरह विभाजित किया जाता है कि कथा-क्रम भंग न हो। कोई भी सर्ग नायकविहीन न हो। महाकाव्य वर्णन प्रधान हो। उसमें नगर-वन, पर्वत-सागर, प्रात: काल-संध्या-रात्रि, धूप-चाँदनी, ऋतु वर्णन, संयोग-वियोग, युद्ध-शांति, स्नेह-द्वेष, प्रीत-घृणा, मनरंजन-युद्ध नायक के विकास आदि का सांगोपांग वर्णन आवश्यक है। घटना, वस्तु, पात्र, नियति, समाज, संस्कार आदि चरित्र चित्रण और रस निष्पत्ति दोनों में सहायक होता है। कथा-प्रवाह की निरंतरता के लिए सरगारंभ से सर्गांत तक एक ही छंद रखा जाने की परंपरा रही है किन्तु आजकल प्रसंग परिवर्तन का संकेत छंद-परिवर्तन से भी किया जाता है। सर्गांत में प्रे: भिन्न छंदों का प्रयोग पाठक को भावी परिवर्तनों के प्रति सजग कर देता है। छंद-योजना रस या भाव के अनुरूप होनी चाहिए। अनुपयुक्त छंद रंग में भंग कर देता है। नायक-नायिका के मिलन प्रसंग में आल्हा छंद अनुपतुक्त होगा जबकि युद्ध के प्रसंग में आल्हा सर्वथा उपयुक्त होगा।
२. नायक - महाकव्य का नायक कुलीन धीरोदात्त पुरुष रखने की परंपरा रही है। समय के साथ स्त्री पात्रों (सीता, कैकेयी, मीरा, दुर्गावती, नूरजहां आदि), किसी घटना (सृष्टि की उत्पत्ति आदि), स्थान (विश्व, देश, शहर आदि), वंश (रघुवंश) आदि को नायक बनाया गया है। संभव है भविष्य में युद्ध, ग्रह, शांति स्थापना, योजना, यंत्र आदि को नायक बनाकर महाकव्य रचा जाए। प्राय: एक नायक रखा जाता है किन्तु रघुवंश में दिलीप, रघु और राम ३ नायक है। भारत की स्वतंत्रता को नायक बनाकर महाकव्य लिखा जाए तो गोखले, टिकल। लाजपत राय, रविंद्र नाथ, गाँधी, नेहरू, पटेल, डॉ. राजरंदर प्रसाद आदि अनेक नायक हो सकते हैं। स्वातंत्र्योत्तर देश के विकास को नायक बना कर महाकाव्य रचा जाए तो कई प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति अलग-अलग सर्गों में नायक होंगे। नायक के माध्यम से उस समय की महत्वाकांक्षाओं, जनादर्शों, संघर्षों अभ्युदय आदि का चित्रण महाकव्य को कालजयी बनाता है।
३. रस - रस को काव्य की आत्मा कहा गया है। महाकव्य में उपयुक्त शब्द-योजना, वर्णन-शैली, भाव-व्यंजना, आदि की सहायता से अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं। पाठक-श्रोता के अंत:करण में सुप्त रति, शोक, क्रोध, करुणा आदि को काव्य में वर्णित कारणों-घटनाओं (विभावों) व् परिस्थितियों (अनुभावों) की सहायता से जाग्रत किया जाता है ताकि वह 'स्व' को भूल कर 'पर' के साथ तादात्म्य अनुभव कर सके। यही रसास्वादन करना है। सामान्यत: महाकाव्य में कोई एक रस ही प्रधान होता है। महाकाव्य की शैली अलंकृत, निर्दोष और सरस हुए बिना पाठक-श्रोता कथ्य के साथ अपनत्व नहीं अनुभव कर सकता।
अन्य नियम - महाकाव्य का आरंभ मंगलाचरण या ईश वंदना से करने की परंपरा रही है जिसे सर्वप्रथम प्रसाद जी ने कामायनी में भंग किया था। अब तक कई महाकाव्य बिना मंगलाचरण के लिखे गए हैं। महाकाव्य का नामकरण सामान्यत: नायक तथा अपवाद स्वरुप घटना, स्थान आदि पर रखा जाता है। महाकाव्य के शीर्षक से प्राय: नायक के उदात्त चरित्र का परिचय मिलता है किन्तु पथिक जी ने कारण पर लिखित महाकव्य का शीर्षक 'सूतपुत्र' रखकर इस परंपरा को तोडा है।
महाकाव्य : कल से आज
विश्व वांग्मय में लौकिक छंद का आविर्भाव महर्षि वाल्मीकि से मान्य है। भारत और सम्भवत: दुनिया का प्रथम महाकाव्य महर्षि वाल्मीकि कृत 'रामायण' ही है। महाभारत को भारतीय मानकों के अनुसार इतिहास कहा जाता है जबकि उसमें अन्तर्निहित काव्य शैली के कारण पाश्चात्य काव्य शास्त्र उसे महाकाव्य में परिगणित करता है। संस्कृत साहित्य के श्रेष्ठ महाकवि कालिदास और उनके दो महाकाव्य रघुवंश और कुमार संभव का सानी नहीं है। सकल संस्कृत वाङ्मय के चार महाकाव्य कालिदास कृत रघुवंश, भारवि कृत किरातार्जुनीयं, माघ रचित शिशुपाल वध तथा श्रीहर्ष रचित नैषध चरित अनन्य हैं।
इस विरासत पर हिंदी साहित्य की महाकाव्य परंपरा में प्रथम दो हैं चंद बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो तथा मलिक मुहम्मद जायसी कृत पद्मावत। निस्संदेह जायसी फारसी की मसनवी शैली से प्रभावित हैं किन्तु इस महाकाव्य में भारत की लोक परंपरा, सांस्कृतिक संपन्नता, सामाजिक आचार-विचार, रीति-नीति, रास आदि का सम्यक समावेश है। कालांतर में वाल्मीकि और कालिदास की परंपरा को हिंदी में स्थापित किया महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस में। तुलसी के महानायक राम परब्रह्म और मर्यादा पुरुषोत्तम दोनों ही हैं। तुलसी ने राम में शक्ति, शील और सौंदर्य तीनों का उत्कर्ष दिखाया। केशव की रामचद्रिका में पांडित्य जनक कला पक्ष तो है किन्तु भाव पक्ष न्यून है। रामकथा आधारित महाकाव्यों में मैथिलीशरण गुप्त कृत साकेत और बलदेव प्रसाद मिश्र कृत साकेत संत भी महत्वपूर्ण हैं। कृष्ण को केंद्र में रखकर अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने प्रिय प्रवास और द्वारिका मिश्र ने कृष्णायन की रचना की। कामायनी - जयशंकर प्रसाद, वैदेही वनवास हरिऔध, सिद्धार्थ तथा वर्धमान अनूप शर्मा, दैत्यवंश हरदयाल सिंह, हल्दी घाटी श्याम नारायण पांडेय, कुरुक्षेत्र दिनकर, आर्यावर्त मोहनलाल महतो, नूरजहां गुरभक्त सिंह, गाँधी परायण अम्बिका प्रसाद दिव्य, उत्तर भगवत तथा उत्तर रामायण डॉ. किशोर काबरा, कैकेयी डॉ.इंदु सक्सेना देवयानी वासुदेव प्रसाद खरे, महीजा तथा रत्नजा डॉ. सुशीला कपूर, महाभारती डॉ. चित्रा चतुर्वेदी कार्तिका, दधीचि आचार्य भगवत दुबे, वीरांगना दुर्गावती गोविन्द प्रसाद तिवारी, क्षत्राणी दुर्गावती केशव सिंह दिखित 'विमल', कुंवर सिंह चंद्र शेखर मिश्र, वीरवर तात्या टोपे वीरेंद्र अंशुमाली, सृष्टि डॉ. श्याम गुप्त, विरागी अनुरागी डॉ. रमेश चंद्र खरे, राष्ट्रपुरुष नेताजी सुभाष चंद्र बोस रामेश्वर नाथ मिश्र अनुरोध, सूतपुत्र महामात्य तथा कालजयी दयाराम गुप्त 'पथिक', आहुति बृजेश सिंह आदि ने महाकाव्य विधा को संपन्न और समृद्ध बनाया है।
समयाभाव के इस दौर में भी महाकाव्य न केवल निरंतर लिखे-पढ़े जा रहे हैं अपितु उनके कलेवर और संख्या में वृद्धि भी हो रही है, यह संतोष का विषय है।
१८-४-२०२०
***
बांग्ला लघुकथा
सुअर की कहानी
चंदन चक्रवर्ती
*
प्रकाशक सिर पर खड़ा था। उसकी एक लघुकथा-संकलन निकालने की योजना थी। डेढ़ सौ शब्दों की एक लघुकथा लिखने के लिए मुझसे कहा। मैंने कहा, ‘‘लेखकों को आप दर्जी समझते हैं क्या? माप कर कथा लिखूँ ?’’
--अरे जनाब, समझते क्यों नहीं आप? यह माइक्रोस्कोपिक युग है। इसके अलावा अणु-परमाणु से ही तो मारक बमों को निर्माण होता है।
--इसका मतलब है कि कथा परमाणु बम की तरह फटेगी। भाई मेरे, अणु-परमाणु से थोड़ा हटकर नहीं सोचा जा सकता?
--वह कैसे?
--यानी कि पटाखा-कथा। थोड़ी आकार में बड़ी होगी। पटाखे की तरह फूटेगी।
प्रकाशक चला गया। मेरे मस्तिष्क में लघुकथा नहीं आती है। बीज डालकर सींचना पड़ेगा। अंकुर फूटेंगे, पेड़ बनेंगे। उसके बाद फूल-फल और फिर से बीज। इससे बाहर कैसे जा सकता हूँ? अंततः कुछ सोच-समझकर लिख ही डाला -----
‘‘दो सुअर थे। बच्चे जने दस-बारह। सुअर के बच्चों ने निर्णय लिया कि सारी दुनिया को सुअरों से भर देंगे। पहले उन्होंने निश्चित किया कि सिर्फ भादों में कुत्तों की तरह बच्चे जनेंगे। ....हजार-हजार सुअर। कीड़ों की तरह किलबिला रहे हैं। अब पशुशाला बनाएंगे। वह भी बनाया। पशुशाला के नियम-कानून बने। देश सुअरमय हुआ। उनकी आयु पाँच-दस वर्षों की है, पर ये रबर की तरह हैं। उम्र खिंचती चली जा रही है। बीस-पच्चीस-सत्ताइस-तीस और उससे भी अधिक। मजे से उनका घर-संसार चल रहा है।’’
प्रकाशक ने सुनकर कहा, ‘‘एक इन्सान की कहानी नहीं लिख सके?’’
मैं चौंक उठा, ‘‘तो फिर मैंने यह कहानी किसकी लिखी?’’
अनुवाद : रतन चंद ‘रत्नेश’
*
अरबी लघुकथा
वार्तालाप
समीरा मइने
*
'पूर्व का आदमी एक, दो, तीन या चार औरतों से शादी कर सकता है।'
'तुम एक, दो, तीन या चार मर्दों से शारीरिक संबंध रख सकती हो?'
'मैंने उनसे शादी तो नहीं की न?'
'तुम हेनरी से मुहब्बत करती हो?'
'थोड़ी-थोड़ी....'
और पॉप से?'
'ओह.... उसकी तो बात ही कुछ और है। '
तो फिर तुम दोनों से मुहब्बत करती हो?'
'क्या बात करती हो.... एक तीसरा शख्स भी मेरा दोस्त है, जिसके बारे में मैंने तुमको बताया ही नहीं कि वह 'टॉम' है जो मुझे घूमता है और उसके साथ जाने में मेरा खर्च कुछ भी नहीं होता।'
'ओह! समझी पूर्व का मर्द शारीरिक भूख के पीछे और पश्चिम की औरत धन और सुरक्षा के पीछे कई-कई संबंध बनाती है।
अनुवाद : नासिरा शर्मा
***
मुक्तक सलिला
*
मुक्त विचारों को छंदों में ढालो रे!
नित मुक्तक कहने की आदत पालो रे!!
कोकिलकंठी होना शर्त न कविता की-
छंदों को सीखो निज स्वर में गा लो रे!!
*
मुक्तक-मुक्तक मणि-मुक्ता है माला का।
स्नेह-सिंधु है, बिंदु नहीं यह हाला का।।
प्यार करोगे तो पाओगे प्यार 'सलिल'
घृणा करे जो वह शिकार हो ज्वाला का।।
*
जीवन कहता है: 'मुझको जीकर देखो'।
अमृत-विष कहते: 'मुझको पीकर देखो'।।
आँसू कहते: 'मन को हल्का होने दो-
व्यर्थ न बोलो, अधरों को सीकर देखो"।।
*
अफसर करे न चाकरी, नेता करे न काम।
सेठ करोड़ों लूटकर, करें योग-व्यायाम।।
कृषक-श्रमिक भूखे मरें, हुआ विधाता वाम-
सरहद पर सर कट रहे, कुछ करिए श्री राम।।
*
छप्पन भोग लगाकर नेता मिल करते उपवास।
नैतिकता नीलाम करी, जग करता है उपहास।।
चोर-चोर मौसेरे भाई, रोज करें नौटंकी-
मत लेने आएँ, मत देना, ठेंगा दिखा सहास।।
१८-४-२०१८
***
छंद बहर का मूल है: ६
*
छंद परिचय:
संरचना: SIS ISI SSI SIS IS
सूत्र: रजतरलग।
चौदह वार्णिक शर्करी जातीय छंद।
बाईस मात्रिक महारौद्र जातीय छंद।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं।
*
देश-गीत गाइए, भेद भूल जाइए
सभ्यता महान है, एक्य-भाव लाइए
*
कौन था कहाँ रहा?, कौन है कहाँ बसा?
सम्प्रदाय-लिंग क्या?, भूल साथ आइए
*
प्यार-प्रेम से रहें, स्नेह-भाव ही गहें
भारती समृद्ध हो, नर्मदा नहाइए
*
दीन-हीन कौन है?, कार्य छोड़ मौन जो
देह देश में बनी, देश में मिलाइए
*
वासना न साध्य है, कामना न लक्ष्य है
भोग-रोग-मुक्त हो, त्याग-राग गाइए
*
ज्ञान-कर्म इन्द्रियाँ, पाँच तत्व देह है
गह आत्म-आप का, आप में खपाइए
*
भारतीय-भारती की उतार आरती
भव्य भाव भव्यता, भूमि पे उतरिये
***
रोचक चर्चा:
गुड्डो दादी
ताल मिले नदी के जल से
नदी और सागर का मेल ताल क्यों ?
*
सलिल-वृष्टि हो ताल में, भरे बहे जब आप
नदी ग्रहण कर समुद तक, पहुँचे हो थिर-व्याप
लघु समुद्र तालाब है, महाताल है सिंधु
बिंदु कहें तालाब को, सागर को कह इंदु
१८-४-२०१७
***
आंकिक उपमान पूर्ण करें
(१) एक, भूमि, इंदु, रुप इ०
(२) द्वौ, अश्वि, पक्ष, अक्षि, दो, यम इ०
(३) त्रयः क्रम, ग्राम, राम, पुर, लोक, गुण, अग्नि इ०
(४) चत्वारः, अब्धिः, श्रुति, युग, कृत इ०
(५) पंच, इषु, वायु, भूत, अक्ष, बाण, इंद्रिय इ०
(६) षट्, रस, अंग, ऋतु, तर्क इ०
(७) सप्त, ऋषि, स्वर, तुरंग, पर्वत, मुनि, अश्र्व इ०
(८) अष्ट, वसु, सर्प, मतंगज, नाग इ०
(९) नव, संख्या, नंद, रंध्र, निधि, गो, अंक, नभश्वर, ग्रह, खग इ०
(१०) दश, आशा, दिशा इ० ( ० )शून्य, अभ्र, आकाश, ख, अंबर इ०
(११) एकादश, महेश्र्वर, रुद्र, शिव इ०
(१२) द्वादश, अर्क, आदित्य, सूर्य इ०
(१३) त्रयोदश, विश्र्वे इ०
(१४) चतुर्दश, मनु, इंद्र, भुवन इ०
(१५) पंचद्श, तिथि इ०
(१६) षोडश, कला, अष्टि, राज इ०
(१७) सप्तदश, घन, अत्यष्टि इ०
(१८) अष्टादश, धृति इ०
(१९) अतिधृति, एकोनविंशति इ०
(२०) विंशति, कृति, नख, अंगुलि इ०
(२१) एकविंशति, प्रकृति, मूर्च्छना, स्वः इ०
(२२) द्वाविंशति, जाति, आकृति इ०
(२३) त्रयोविंशति, विकृति, संकृति, अर्हत् इ०
(२४) चतुर्विशति, जिन, सिद्ध इ०
(२५) पंचविशति, तत्व, अतिकृति इ०
(२६) षडिंशति, उत्कृति इ०
(२७) सप्तविशति, भ, नक्षत्र इ०
(३२) द्वात्रिंशत्, दशन, द्विज इ०
(३३) त्रयस्त्रिंशत्, सुर इ०
(४९) ऊनपंचाशत्, तान इ०
***
दोहा सलिला:
.
फाँसी, गोली, फौज से, देश हुआ आजाद
लाठी लूटे श्रेय हम, कहाँ करें फरियाद?
.
देश बाँट कुर्सी गही, खादी ने रह मौन
बेबस लाठी सिसकती, दूर गयी रह मौन
.
सरहद पर है गडबडी, जमकर हो प्रतिकार
लालबहादुर बनें हम, घुसकर आयें मार
.
पाकी ध्वज फहरा रहे, नापाकी खुदगर्ज़
कुर्सी का लालच बना, लाइलाज सा मर्ज
.
दया न कर सर कुचल दो, देशद्रोह है साँप
कफन दफन को तरसता, देख जाय जग काँप
.
पुलक फलक पर जब टिकी, पलक दिखा आकाश
टिकी जमीं पर कस गये, सुधियों के नव पाश
.
देश बाँट कुर्सी गही, खादी ने रह मौन
बेबस लाठी सिसकती, दूर गयी रह मौन
.
सवा लाख से एक लड़, विजयी होता सत्य
मिथ्या होता पराजित, लज्जित सदा असत्य
.
झूठ-अनृत से दूर रह, जो करता सहयोग
उसका देश-समाज में, हो सार्थक उपयोग
.
सबका सबसे ही सधे, सत्साहित्य सुकाम
चिंता करिए काम की, किन्तु रहें निष्काम
.
संख्या की हो फ़िक्र कम, गुणवत्ता हो ध्येय
सबसे सब सीखें सृजन, जान सकें अज्ञेय
***
नवगीत:
.
राजा को गद्दी से काम
.
लोकतंत्र का अनुष्ठान हर
प्रजातंत्र का चिर विधान हर
जय-जय-जय जनतंत्र सुहावन
दल खातिर है प्रावधान हर
दाल दले जन की छाती पर
भोर, दुपहरी या हो शाम
.
मिली पटकनी मगर न चेते
केर-बेर मिल नौका खेते
फहर रहा ध्वज देशद्रोह का
देशभक्त की गर्दन रेते
हाथ मिलाया बाँट सिंहासन
नाम मुफ्त में है बदनाम
.
हों शहीद सैनिक तो क्या गम?
बनी रहे सरकार, आँख नम
गीदड़ भभकी सुना पडोसी
सीमा में घुस, करें नाक-दम
रंग बदलता देखें पल-पल
गिरगिट हो नत करे प्रणाम
.
हर दिन नारा नया गुंजायें
हर अवसर को तुरत भुनायें
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
दल से देश न ऊपर पायें
सकल देश के नेता हैं पर
दल हित साधें नित्य तमाम
.
दल का नहीं, देश का नेता
जो है, क्यों वह ताना देता?
सब हों उसके लिये समान
हँस सम्मान सभी से लेता
हो उदार समभावी सबके
बना न क्यों दे बिगड़े काम?
***
मुक्तिका:
.
बोलना था जब तभी लब कुछ नहीं बोले
बोलना था जब नहीं बेबात भी बोले
.
काग जैसे बोलते हरदम रहे नेता
गम यही कोयल सरीखे क्यों नहीं बोले?
.
परदेश की ध्वजा रहे फहरा अगर नादां
निज देश का झंडा उठा हम मिल नहीं बोले
.
रिश्ते अबोले रिसते रहे बूँद-बूँदकर
प्रवचन सुने चुप सत्य, सुनकत झूठ क्या बोले?
.
बोलते बाहर रहे घर की सभी बातें
घर में रहे अपनों से अलग कुछ नहीं बोले.
.
सरहद पे कटे शीश या छाती हुई छलनी
माँ की बचायी लाज, लाल चुप नहीं बोले.
.
नवगीत:
.
मन की तराजू पर तोलो
.
'जीवन मुश्किल है'
यह सच है
ढो मत,
तनिक मजा लो.
भूलों को भूलो
खुद या औरों को
नहीं सजा दो.
अमराई में हो
बहार या पतझड़
कोयल कूके-
ऐ इंसानों!
बनो न छोटे
बात में कुछ मिसरी घोलो
.
'होता है वह
जो होना है''
लेकिन
कोशिश करना.
सोते सिंह के मुँह में
मृग को
कभी न पड़ता मरना.
'बोया-काटो'
मत पछताओ
गिर-उठ कदम बढ़ाओ.
ऐ मतिमानों!
करो न खोटे
काम, न काँटे बो लो.
.***
मुक्तिका:
.
हवा लगे ठहरी-ठहरी
उथले मन बातें गहरी
.
ऊँचे पद हैं नीचे लोग
सरकारें अंधी-बहरी
.
सुख-दुःख आते-जाते हैं
धूप-छाँव जैसे तह री
.
प्रेयसी बैठी है सर पर
मैया लगती है महरी
.
नहीं सुहाते गाँव तनिक
भरमाती नगरी शहरी
.
सबकी ख़ुशी बना अपनी
द्वेष जलन से मत दह री
१८-४-२०१५
*
मनमोहन छंद
जाति मानव, पदभार १४ मात्रा, यति ८-६, चरणांत नगण
*
अब तक देखे / अगिन सपन
बुझी न लेकिन / लगी अगन
अपलक हेरें / राह नयन
कहें अनकही / मूक वचन
१८-४-२०१४
*

गुरुवार, 15 सितंबर 2022

अभियंता दिवस, गीत, अभियांत्रिकी, तकनीक, दोहा

अभियंता दिवस

अभियंता जागो

१. हर नगर तथ अभियांत्रिकी महाविद्यालय/पॉलिटेक्निक में भारतरत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की मूर्ति स्थापित हो।

२. अभियंता कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाए।

३. हर अभियांत्रिकी महाविद्यालय/पॉलिटेक्निक में सर्वोच्च अंक अर्जित करने वाले छात्र को एम् वी पदक प्रदान किया जाए।

४. निर्माण कार्यों में ठेकेदारी के लिए अभियांत्रिकी में डिग्री/डिप्लोमा अनिवार्य हो ताकि कार्यों की गुणवत्ता में सुधार हो।

५. डिग्री/डिप्लोमा अभियंताओं को व्यवसाय आरंभ करने के लिए ब्याजमुक्त कर्ज उपलब्ध कराया जाए तथा निविदा कार्यों में वरीयता दी जाए।

६. साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत अभियंताओं को तकनीकी विभागों की परामर्शदात्री समितियों, जांच समितियों आदि में वरीयता दी जाए ताकि वे तकनीकी और सामाजिक दोनों दृष्टिकोणों से मददगार हो सकें।

७. राष्ट्रीय सम्मान तथा उपाधि वितरण में अभियंता संवर्ग की उपेक्षा बंद कर अवदान का सम्यक मूल्याङ्कन कर वरीयता दी जाए।

संजीव वर्मा

सभापति इंजीनियर्स फोरम (भारत)

९४२५१८३२४४

अभियंता दिवस (१५ सितंबर) पर विशेष रचना:
हम अभियंता...
संजीव 'सलिल'
*
हम अभियंता!, हम अभियंता!!
मानवता के भाग्य-नियंता...
*
माटी से मूरत गढ़ते हैं,
कंकर को शंकर करते हैं.
वामन से संकल्पित पग धर,
हिमगिरि को बौना करते हैं.
नियति-नटी के शिलालेख पर
अदिख लिखा जो वह पढ़ते हैं.
असफलता का फ्रेम बनाकर,
चित्र सफलता का मढ़ते हैं.
श्रम-कोशिश दो हाथ हमारे-
फिर भविष्य की क्यों हो चिंता...
*
अनिल, अनल, भू, सलिल, गगन हम,
पंचतत्व औजार हमारे.
राष्ट्र, विश्व, मानव-उन्नति हित,
तन, मन, शक्ति, समय, धन वारे.
वर्तमान, गत-आगत नत है,
तकनीकों ने रूप निखारे.
निराकार साकार हो रहे,
अपने सपने सतत सँवारे.
साथ हमारे रहना चाहे,
भू पर उतर स्वयं भगवंता...
*
भवन, सड़क, पुल, यंत्र बनाते,
ऊसर में फसलें उपजाते.
हमीं विश्वकर्मा विधि-वंशज.
मंगल पर पद-चिन्ह बनाते.
प्रकृति-पुत्र हैं, नियति-नटी की,
आँखों से हम आँख मिलाते.
हरि सम हर हर आपद-विपदा,
गरल पचा अमृत बरसाते.
'सलिल' स्नेह नर्मदा निनादित,
ऊर्जा-पुंज अनादि-अनंता...
.***
अभियांत्रिकी:
कण जोड़ती तृण तोड़ती पथ मोड़ती अभियांत्रिकी
बढ़ती चले चढ़ती चले गढ़ती चले अभियांत्रिकी
उगती रहे पलती रहे खिलती रहे अभियांत्रिकी
रचती रहे बसती रहे सजती रहे अभियांत्रिकी।
*
तकनीक:
नवरीत भी, नवगीत भी, संगीत भी तकनीक है
कुछ प्यार है, कुछ हार है, कुछ जीत भी तकनीक है
गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी तकनीक है
श्रम-मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है
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भारत :
यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है
कर दें सभी मिल देश का, निर्माण नव अभियान है
गुणयुक्त हो अभियांत्रिकी, शर्म-कोशिशों का गान है
परियोजन तृतीमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है
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(छंद: हरिगीतिका, ११२१२ X ४ = २८)
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तकनीकी लेख
*इन्स्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स कोलकाता द्वारा पुरस्कृत द्वितीय श्रेष्ठ तकनीकी लेख*
*वैश्विकता के निकष पर भारतीय यांत्रिकी संरचनाएँ*
अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'
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भारतीय परिवेश में अभियांत्रिकी संरचनाओं को 'वास्तु' कहा गया है। छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी प्रत्येक संरचना को अपने आपमें स्वतंत्र और पूर्ण व्यक्ति के रूप में 'वास्तु पुरुष' कहा गया है। भारतीय परंपरा प्रकृति को मातृवत पूज्य मानकर उपयोग करती है, पाश्चात्य पद्धति प्रकृति को निष्प्राण पदार्थ मानकर उसका उपभोग (दोहन-शोषण) कर और फेंक देती हैं। भारतीय यांत्रिक संरचनाओं के दो वर्ग वैदिक-पौराणिक काल की संरचनाओं और आधुनिक संरचनाओं के रूप में किये जा सकते हैं और तब उनको वैश्विक गुणवत्ता, उपयोगिता और दीर्घता के मानकों पर परखा जा सकता है।
*शिव की कालजयी अभियांत्रिकी:*
पौराणिक साहित्य में सबसे अधिक समर्थ अभियंता शिव हैं। शिव नागरिक यांत्रिकी (सिविल इंजीनियरिग), पर्यावरण यांत्रिकी, शल्य यांत्रिकी, शस्त्र यांत्रिकी, चिकित्सा यांत्रिकी, के साथ परमाण्विक यांत्रिकी में भी निष्णात हैं। वे इतने समर्थ यंत्री है कि पदार्थ और प्रकृति के मूल स्वभाव को भी परिवर्तित कर सके, प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण जनगण की सुनिश्चित मृत्यु को भी टाल सके। उन्हें मृत्युंजय और महाकाल विशेषण प्राप्त हुए।
शिव की अभियांत्रिकी का प्रथम ज्ञात नमूना ६ करोड़ से अधिक वर्ष पूर्व का है जब उन्होंने टैथीज़ महासागर के सूखने से निकली धरा पर मानव सभ्यता के प्रसार हेतु अपरिहार्य मीठे पेय जल प्राप्ति हेतु सर्वोच्च अमरकंटक पर्वत पर दुर्लभ आयुर्वेदिक औषधियों के सघन वन के बीच में अपने निवास स्थान के समीप बांस-कुञ्ज से घिरे सरोवर से प्रबल जलधार निकालकर गुजरात समुद्र तट तक प्रवाहित की जिसे आज सनातन सलिला नर्मदा के नाम से जाना जाता है। यह नर्मदा करोड़ों वर्षों से लेकर अब तक तक मानव सभ्यता केंद्र रही है। नागलोक और गोंडवाना के नाम से यह अंचल पुरातत्व और इतिहास में विख्यात रहा है। नर्मदा को शिवात्मजा, शिवतनया, शिवसुता, शिवप्रिया, शिव स्वेदोद्भवा, शिवंगिनी आदि नाम इसी सन्दर्भ में दिये गये हैं। अमरकंटक में बांस-वन से निर्गमित होने के कारण वंशलोचनी, तीव्र जलप्रवाह से उत्पन्न कलकल ध्वनि के कारण रेवा, शिलाओं को चूर्ण कर रेत बनाने-बहाने के कारण बालुकावाहिनी, सुंदरता तथा आनंद देने के कारण नर्मदा, अकाल से रक्षा करने के कारण वर्मदा, तीव्र गति से बहने के कारण क्षिप्रा, मैदान में मंथर गति के कारण मंदाकिनी, काल से बचने के कारण कालिंदी, स्वास्थ्य प्रदान कर हृष्ट-पुष्ट करने के कारण जगजननी जैसे विशेषण नर्मदा को मिले।
जीवनदायी नर्मदा पर अधिकार के लिए भीषण युद्ध हुए। नाग, ऋक्ष, देव, किन्नर, गन्धर्व, वानर, उलूक दनुज, असुर आदि अनेक सभ्यताएं सदियों तक लड़ती रहीं। अन्य कुशल परमाणुयांत्रिकीविद दैत्यराज त्रिपुर ने परमाण्विक ऊर्जा संपन्न ३ नगर 'त्रिपुरी' बनाकर नर्मदा पर कब्जा किया तो शिव ने परमाण्विक विस्फोट कर उसे नष्ट कर दिया जिससे नि:सृत ऊर्जा ने ज्वालामुखी को जन्म दिया। लावा के जमने से बनी चट्टानें लौह तत्व की अधिकता के कारण जाना हो गयी। यह स्थल लम्हेटाघाट के नाम से ख्यात है। कालांतर में चट्टानों पर धूल-मिट्टी जमने से पर्वत-पहाड़ियाँ और उनके बीच में तालाब बने। जबलपुर से ३२ किलोमीटर दूर ऐसी ही एक पहाड़ी पर ज्वालादेवी मंदिर मूलतः ऐसी ही चट्टान को पूजने से बना। जबलपुर के ५२ तालाब इसी समय बने थे जो अब नष्टप्राय हैं। टेथीज़ महासागर के पूरी तरह सूख्नने और वर्तमान भूगोल के बेबी माउंटेन कहे जानेवाले हिमालय पर्वत के बनने पर शिव ने मानसरोवर को अपना आवास बनाकर भगीरथ के माध्यम से नयी जलधारा प्रवाहित की जिसे गंगा कहा गया।
*महर्षि अगस्त्य के अभियांत्रिकी कार्य:*
महर्षि अगस्त्य अपने समय के कुशल परमाणु शक्ति विशेषज्ञ थे। विंध्याचल पर्वत की ऊँचाई और दुर्गमता उत्तर से दक्षिण जाने के मार्ग में बाधक हुई तो महर्षि ने परमाणु शक्ति का प्रयोग कर पर्वत को ध्वस्त कर मार्ग बनाया। साहित्यिक भाषा में इसे मानवीकरण कर पौराणिक गाथा में लिखा गया कि अपनी ऊंचाई पर गर्व कर विंध्याचल सूर्य का पथ अवरुद्ध करने लगा तो सृष्टि में अंधकार छाने लगा। देवताओं ने महर्षि अगस्त्य से समाधान हेतु प्रार्थना की। महर्षि को देखकर विंध्याचल प्रणाम करने झुका तो महर्षि ने आदेश दिया कि दक्षिण से मेरे लौटने तक ऐसे ही झुके रहना और वह आज तक झुका है।
दस्युओं द्वारा आतंक फैलाकर समुद्र में छिप जाने की घटनाएँ बढ़ने पर अगस्त्य ने परमाणु शक्ति का प्रयोग कर समुद्र का जल सुखाया और राक्षसों का संहार किया। पौराणिक कथा में कहा गया की अगस्त्य ने चुल्लू में समुद्र का जल पी लिया। राक्षसों से आर्य ऋषियों की रक्षा के लिए अगस्त्य ने नर्मदा के दक्षिण में अपना आश्रम (परमाणु अस्त्रागार तथा शोधकेन्द्र) स्थापित किया। किसी समय नर्मदा घाटी के एकछत्र सम्राट रहे डायनासौर राजसौरस नर्मदेंसिस खोज लिए जाने के बाद इस क्षेत्र की प्राचीनता और उक्त कथाएँ अंतर्संबन्धित और प्रामाणिकता होना असंदिग्ध है।
*रामकालीन अभियांत्रिकी:*
रावण द्वारा परमाण्विक शस्त्र विकसित कर देवों तथा मानवों पर अत्याचार किये जाने को सुदृढ़ दुर्ग के रूप में बनाना यांत्रिकी का अद्भुत नमूना था। रावण की सैन्य यांत्रिकी विद्या और कला अद्वितीय थी। स्वयंवर के समय राम ने शिव का एक परमाण्वास्त्र जो जनक के पास था पास था, रावण हस्तगत करना चाहता था नष्ट किया। सीताहरण में प्रयुक्त रथ जो भूमार्ग और नभमार्ग पर चल सकता था वाहन यांत्रिकी की मिसाल था। राम-रावण परमाण्विक युद्ध के समय शस्त्रों से निकले यूरेनियम-थोरियम के कारण सहस्त्रों वर्षों तक लंका दुर्दशा रही जो हिरोशिमा नागासाकी की हुई थी। श्री राम के लिये नल-नील द्वारा लगभग १३ लाख वर्ष पूर्व निर्मित रामेश्वरम सेतु अभियांत्रिकी की अनोखी मिसाल है। सुषेण वैद्य द्वारा बायोमेडिकल इंजीनियरिंग का प्रयोग युद्ध अवधि में प्रतिदिन घायलों का इस तरह उपचार किया गया की वे अगले दिन पुनः युद्ध कर सके।
*कृष्णकालीन अभियांत्रिकी:*
लाक्षाग्रह, इंद्रप्रस्थ तथा द्वारिका कृष्णकाल की अद्वितीय अभियांत्रिकी संरचनाएँ हैं। सुदर्शन चक्र, पाञ्चजन्य शंख, गांडीव धनुष आदि शस्त्र निर्माण कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। महाभारत पश्चात अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भस्थ शिशु पर प्रहार, श्रीकृष्ण द्वारा सुरक्षापूर्वक शिशु जन्म कराना बायो मेडिकल इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण है। गुजरात में समुद्रतट पर कृष्ण द्वारा बसाई गयी द्वारिका नगरी उनकी मृत्यु पश्चात जलमग्न हो गयी। २००५ से भारतीय नौसेना के सहयोग से इसके अन्वेषण का कार्य प्रगति पर है। वैज्ञानिक स्कूबा डाइविंग से इसके रहस्य जानने में लगे हैं।
*श्रेष्ठ अभियांत्रिकी के ऐतिहासिक उदाहरण 😘
श्रेष्ठ भारतीय संरचनाओं में से कुछ इतनी प्रसिद्ध हुईं कि उनका रूपांतरण कर निर्माण का श्रेय सुनियोजित प्रयास शासकों द्वारा किया गया। उनमें से कुछ निम्न निम्न हैं:
*तेजोमहालय (ताजमहल) आगरा:*
हिन्दू राजा परमार देव द्वारा ११९६ में बनवाया गया तेजोमहालय (शिव के पाँचवे रूप अग्रेश्वर महादेव नाग नाथेश्वर का उपासना गृह तथा राजा का आवास) भवन यांत्रिकी कला का अद्भुत उदाहरण है जिसे विश्व के सात आश्चर्यों में गिना जाता है।
*तेजो महालय के रेखांकन*
१०८ कमल पुष्पों तथा १०८ कलशों से सज्जित संगमरमरी जालियों से सज्जित यह भवन ४०० से अधिक कक्ष तथा तहखाने हैं। इसके गुम्बद निर्माण के समय यह व्यवस्था भी की गयी है कि बूँद-बूँद वर्षा टपकने से शिवलिंग का जलाभिषेक अपने आप होता रहे।
*विष्णु स्तम्भ (क़ुतुब मीनार) दिल्ली 😘
युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित, ​दक्षिण दिल्ली के विष्णुपद गिरि में राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक प्रख्यात ज्योतिर्विद आचार्य मिहिर की शोध तथा निवासस्थली मिहिरा अवली (महरौली) में ​दिन-रात के प्रतीक 12 त्रिभुजाका​रों - 12 कमल पत्रों ​और 27
नक्षत्रों​ के प्रतीक 27 पैवेलियनों सहित निर्मित 7 मंज़िली ​विश्व की सबसे ऊँची मीनार ​(72.7 मीटर ​, आधार व्यास 14.3 मीटर, शिखर व्यास 2.75 मीटर ,​379 सीढियाँ, निर्माण काल सन 1193 पूर्व) विष्णु ध्वज/स्तंभ (क़ुतुब मीनार) भारतीय अभियांत्रिकी संरचनाओं के श्रेष्ठता का उदाहरण है। इस पर सनातन धर्म के देवों, मांगलिक प्रतीकों तथा संस्कृत उद्धरणों का अंकन है।
​​इन पर मुग़लकाल में समीपस्थ जैन मंदिर तोड़कर उस सामग्री से पत्थर लगाकर आयतें लिखाकर मुग़ल इमारत का रूप देने का प्रयास कुतुबुद्दीन ऐबक व इलततमिश द्वारा 1199-1368 में किया गया । निकट ही ​चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा विष्णुपद गिरि पर स्थापित और विष्णु भगवान को समर्पित गिरि पर स्थापित और विष्णु भगवान को समर्पित7 मीटर ऊंचा 6 टन वज़न का ध्रुव/गरुड़स्तंभ (लौह स्तंभ) स्तम्भ ​चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने बाल्हिक युद्ध में विजय पश्चात बनवाया। इस पर अंकित लेख में सन 1052 के राजा अंनगपाल द्वितीय का उल्लेख है।तोमर नरेश विग्रह ने इसे खड़ा करवाया जिस पर सैकड़ों वर्षों बाद भी जंग नहीं लगी। फॉस्फोरस मिश्रित लोहे से निर्मित यह स्तंभ भारतीय धात्विक यांत्रिकी की श्रेष्ठता का अनुपम उदाहरण है।आई. आई. टी. कानपूर के प्रो. बालासुब्रमण्यम के अनुसार हाइड्रोजन फॉस्फेट हाइड्रेट (FePO4-H3PO4-4H2O) जंगनिरोधी ​सतह है का निर्माण करता है।
*​जंतर मंतर : Samrat Yantra* सवाई जयसिंह द्वितीयद्वारा 1724 में दिल्ली जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में ​निर्मित जंतर मंतर प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है।यहाँ​ सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से समय और ग्रहों की स्थिति, मिस्र यंत्र वर्ष से सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन, राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र से खगोलीय पिंडों की गति जानी जा सकती ​है। इनके अतिरिक्त दिल्ली, आगरा, ग्वालियर, जयपुर, चित्तौरगढ़, गोलकुंडा आदि के किले अपनी मजबूती, उपयोगिता और श्रेष्ठता की मिसाल हैं।​
*आधुनिक अभियांत्रिकी संरचनाएँ:*
भारतीय अभियांत्रिकी संरचनाओं को शकों-हूणों और मुगलों के आक्रमणों के कारण पडी। मुगलों ने पुराने निर्माणों को बेरहमी से तोडा और किये। अंग्रेजों ने भारत को एक इकाई बनाने के साथ अपनी प्रशासनिक पकड़ बनाने के लिये किये। स्वतंत्रता के पश्चात सर मोक्षगुंडम विश्वेस्वरैया, डॉ. चन्द्रशेखर वेंकट रमण, डॉ. मेघनाद साहा आदि ने विविध परियोजनाओं को मूर्त किया। भाखरानागल, हीराकुड, नागार्जुन सागर, बरगी, सरदार सरोवर, टिहरी आदि जल परियोजनाओं ने कृषि उत्पादन से भारतीय अभियांत्रिकी को गति दी।
जबलपुर, कानपूर, तिरुचिरापल्ली, शाहजहाँपुर, इटारसी आदि में सीमा सुरक्षा बल हेतु अस्त्र-शास्त्र और सैन्य वाहन गुणवत्ता और मितव्ययिता के साथ बनाने में भारतीय संयंत्र किसी विदेशी संस्थान से पीछे नहीं हैं।
परमाणु ऊर्जा संयंत्र निर्माण, परिचालन और दुर्घटना नियंत्रण में भारत के प्रतिष्ठानों ने विदेशी प्रतिष्ठानों की तुलना में बेहतर काम किया है। कम सञ्चालन व्यय, अधिक रोजगार और उत्पादन के साथ कम दुर्घटनाओं ने परमाणु वैज्ञानिकों को प्रतिशत दिलाई है जिसका श्रेय डॉ. होमी जहांगीर भाभा को जाता है।
भारत की अंतरिक्ष परियोजनाएं और उपग्रह तकनालॉजी दुनिया में श्रेष्ठता, मितव्ययिता और सटीकता के लिए ख्यात हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद भारत ने कीर्तिमान स्थापित किये हैं और खुद को प्रमाणित किया है। डॉ. विक्रम साराभाई का योगदान विस्मृत नहीं किया जा सकता।
भारत के अभियंता पूरी दुनिया में अपनी लगन, परिश्रम और योग्यता के लिए जाने जाते हैं । देश में प्रशासनिक सेवाओं की तुलना में वेतन, पदोन्नति, सुविधाएँ और सामाजिक प्रतिष्ठा अत्यल्प होने के बावजूद भारतीय अभियांत्रिकी परियोजनाओं ने कीर्तिमान स्थापित किये हैं।
अग्निपुरुष डॉ. कलाम के नेतृत्व में भारतीय मिसाइल अभियांत्रिकी की विश्व्यापी ख्याति प्राप्त की है।
सारत: भारत की महत्वकांक्षी अभियांत्रिकी संरचनाएँ मेट्रो ट्रैन, दक्षिण रेल, वैष्णव देवी रेल परियोजना हो या बुलेट ट्रैन की भावी योजना,राष्ट्रीय राजमार्ग चतुर्भुज हो या नदियों को जोड़ने की योजना भारतीय अभियंताओं ने हर चुनौती को स्वीकारा है। विश्व के किसी भी देश की तुलना में भारतीय संरचनाएँ और परियोजनाएं श्रेष्ठ सिद्ध हुई हैं।
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संपर्क: अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल', विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर, ४८२००१.
ई मेल: salil.sanjiv@gmail.com, चलभाष ९४२५१८३२४४, ७९९९५५९६१८।
मुक्तक
नित्य प्रात हो जन्म, सूर्य सम कर्म करें निष्काम भाव से।
संध्या पा संतोष रात्रि में, हो विराम नित नए चाव से।।
आस-प्रयास-हास सँग पग-पग, लक्ष्य श्वास सम हो अभिन्न ही -
मोह न व्यापे, अहं न घेरे, साधु हो सकें प्रिय! स्वभाव से।।
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दोहे
सलिल न बन्धन बाँधता, बहकर देता खोल।
चाहे चुप रह समझिए, चाहे पीटें ढोल।।
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अंजुरी भर ले अधर से, लगा बुझा ले प्यास।
मन चाहे पैरों कुचल, युग पा ले संत्रास।।
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उठे, बरस, बह फिर उठे, यही 'सलिल' की रीत।
दंभ-द्वेष से दूर दे, विमल प्रीत को प्रीत।।
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स्नेह संतुलन साधकर, 'सलिल' धरा को सींच।
बह जाता निज राह पर, सुख से आँखें मींच।।
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क्या पहले क्या बाद में, घुली कुँए में भंग।
गाँव पिए मदमस्त है, कर अपनों से जंग।।
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जो अव्यक्त है, उसी से, बनता है साहित्य।
व्यक्त करे सत-शिव तभी, सुंदर का प्रागट्य।।
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नमन नलिनि को कीजिए, विजय आप हो साथ।
'सलिल' प्रवह सब जगत में, ऊँचा रखकर माथ।।
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हर रेखा विश्वास की, शक-सेना की हार।
सक्सेना विजयी रहे, बाँट स्नेह-सत्कार।
१५-९-२०१६
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