गीत:
कब होंगे आजाद
इं. संजीव वर्मा 'सलिल'
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कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
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गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
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नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
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खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
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पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
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रीति-नीति, आचार-विचारों भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.
कई
वर्ष पूर्व हमने नियति के साथ परस्पर एक करार किया था और अब वह समय आया है
जब हम अपने उस वचन को साकार करेंगे, न केवल सम्पूर्ण अर्थों में बल्कि
पूरी जीवन्तता से। आज घड़ी की सुइयाँ जब मध्य रात्रि का समय बताएंगी, जब
सारी दुनिया सो रही होगी, भारतवर्ष स्वतंत्रता से परिपूर्ण जीवन की अंगड़ाई
ले रहा होगा। इतिहास में ऐसा क्षण कभी-कभार ही आता है जब हम विगत से नये
युग में प्रवेश करते हैं, जब एक युग का अंत हो रहा होता है तथा एक राष्ट्र
की आत्मा जिसका लम्बे समय तक शोषण किया गया हो, मुखर हो उठती है। इस शुभ
घड़ी में यह सर्वथा उचित होगा कि हम सभी भारतवर्ष और उसकी जनता की सेवा
करने का व्रत लें इससे भी आगे बढ़ कर मानवता से जुड़े महत उद्देश्य के लिए
समर्पित हों। 




