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शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

geet: kab honge azad -sanjiv

गीत:
कब होंगे आजाद 
इं. संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे 
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों 
अपना घर 
करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा. 
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो 
समाज में 
ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत. 
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच 
गाँव में 
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों भाषा का हो ज्ञान. 
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो 
हो पायेगा
धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद? 
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

Tryst with destiny - J.L. Nehru

भारत की स्वतंत्रता-संध्या पर, स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वप्नद्रष्टा पंडित जवाहर लाल नेहरु का संसद में भारतीय संविधान सभा में दिया गया विश्व को सन्देश "नियति के साथ करार (Tryst with destiny)"(हिंदी रूपांतरण: पुष्पराज चसवाल)

anhad imageकई वर्ष पूर्व हमने नियति के साथ परस्पर एक करार किया था और अब वह समय आया है जब हम अपने उस वचन को साकार करेंगे, न केवल सम्पूर्ण अर्थों में बल्कि पूरी जीवन्तता से। आज घड़ी की सुइयाँ जब मध्य रात्रि का समय बताएंगी, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारतवर्ष स्वतंत्रता से परिपूर्ण जीवन की अंगड़ाई ले रहा होगा। इतिहास में ऐसा क्षण कभी-कभार ही आता है जब हम विगत से नये युग में प्रवेश करते हैं, जब एक युग का अंत हो रहा होता है तथा एक राष्ट्र की आत्मा जिसका लम्बे समय तक शोषण किया गया हो, मुखर हो उठती है। इस शुभ घड़ी में यह सर्वथा उचित होगा कि हम सभी भारतवर्ष और उसकी जनता की सेवा करने का व्रत लें इससे भी आगे बढ़ कर मानवता से जुड़े महत उद्देश्य के लिए समर्पित हों।

इतिहास के पहले उजाले के साथ ही भारत ने अपनी अनंत खोज प्रारंभ की तथा इस प्रयास में उसकी कई सदियाँ गरिमापूर्ण सफलताओं एवं असफलताओं से भरी रही हैं। सौभाग्य तथा दुर्भाग्य समान रूप से मानते हुए भारत ने कभी भी उस खोज को दृष्टि-विगत नहीं होने दिया और न ही उसने उन आदर्शों को कभी भुलाया जिनसे उसने ऊर्जा ग्रहण की। आज हमारे दुर्भाग्य का युग समाप्त हो रहा है तथा भारत फिर से स्वयं को खोजने में सफल हुआ है। जिस उपलब्धि का उत्सव आज हम मना रहे हैं, यह उस अवसर की शुरूआत है जिसमें बड़ी-बड़ी सफलताएँ एवं उपलब्धियाँ हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। क्या हम इतने सक्षम एवं बुद्धिमान हैं कि हम इस अवसर पर अपनी पकड़ बना सकें और भविष्य में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार कर सकें। स्वतंत्रता तथा शक्ति दोनों ही उत्तरदायित्व से बंधे हुए हैं। उत्तरदायित्व है इस संविधान सभा का जो कि भारत के संप्रभु लोगों की सर्वप्रभुतासंपन्न संस्था है। स्वतंत्रता से पूर्व हमने बहुत कष्ट उठाए हैं और हमारा हृदय आज उन दर्दभरी स्मृतियों से भरा हुआ है। उनमें से कुछेक कष्ट अभी भी मौजूद हैं। फिर भी वह दुखभरा अनुभव अब अतीत हो चुका है और भविष्य हमें आशातीत नज़रों से आवाज़ दे रहा है। भविष्य सुविधाजनक अथवा विश्राम करने के लिए नहीं है बल्कि हमें निरंतर प्रयास करना है, जिससे वे वचन जो हम प्राय: दोहराते रहे हैं और जो प्रतिज्ञा हम आज भी लेंगे पूरी कर सकें। भारत की सेवा करने का मतलब है उन लाखों-करोड़ों देशवासियों की सेवा जो कष्टों से पीड़ित रहे हैं। इसका अर्थ हुआ निर्धनता, अज्ञानता, बीमारी एवं अवसरों की उपलब्धता में असमानता का अंत करना। हमारी पीढ़ी के महानतम व्यक्ति का सपना रहा है 'प्रत्येक आँख से आंसू पोंछना'। हो सकता है यह कार्य हमारी सामर्थ्य से बाहर हो, तो भी जब तक एक भी आँख में आँसू है और कष्ट है, उस क्षण तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा।

अत: हमें अपने सपनों को साकार करने के लिए सख्त मेहनत करनी है। ये स्वप्न हैं भारत के लिए, पर वे सारे संसार के लिए भी हैं। अब सारे राष्ट्र परस्पर निकटता से जुड़ गये हैं, इनमें से कोई भी राष्ट्र अकेला नहीं रह सकता, शांति को विभाजित नहीं किया जा सकता, इसी प्रकार स्वतन्त्रता, खुशहाली तथा आपदाएँ एकता में बंधी इस दुनिया में अविभाज्य बन गये हैं, इन्हें अब अकेले अलग-अलग टुकड़ों में नहीं बाँटा जा सकता।

भारत के लोगो के जन-प्रतिनिधि होने के नाते हम उनसे आग्रह करते हैं कि वे पूरे विश्वास एवं आस्था के साथ इस महान कार्य में हमारे साथ शामिल हों। ये समय सस्ती, नकारात्मक, स्तरहीन आलोचना का नहीं है, न ही ये समय परस्पर द्वेष अथवा दूसरों पर दोषारोपण करने का है। हमें स्वतंत्र भारत की ऐसी इमारत का शानदार निर्माण करना है जिसमें उसके सभी बच्चे इकट्ठे रह सकें।

वह सुनिश्चित दिन अब आ पहुंचा है, वह दिन जिसका निश्चय नियति ने किया है, भारत दीर्घ निद्रा व लंबे संघर्ष के उपरांत फिर से खड़ा है, जाग रहा है, समर्थ एवं स्वतंत्र भारत। कुछ हद तक अतीत अभी भी हमसे जुड़ा हुआ है और जो वचन प्राय: हमने भारत की जनता को दिए हैं, उन्हें निभाने के लिए हमें बहुत-कुछ करना होगा। अन्तत: समय ने निर्णायक करवट ले ली है और हमारे लिए इतिहास का नया अध्याय शुरू हो रहा है, जिसे हम बनाएंगे, परिश्रम करेंगे तथा भावी पीढ़ी के लोग जिसके विषय में लिखेंगे।

भारत के लिए, सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप के लिए तथा समूचे संसार के लिए यह एक भाग्यशाली समय है। एक नये सितारे का जन्म हो रहा है, पूरब दिशा में स्वतन्त्रता का प्रतीक एक सितारा, एक नई आशा जन्म ले रही है, बहुत अरसे से संजोया एक स्वप्न साकार हो रहा है। ये सितारा कभी अस्त न हो, यह आशा कभी धूमिल न हो। इस दिन हमें सबसे पहले ध्यान आता है हमारी इस स्वतन्त्रता के निर्माता का, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जिन्होंने भारत की प्राचीन आत्मा को संजोये हुए स्वतन्त्रता की मशाल को ऊँचा उठाए रखा एवं हमारे चारों ओर छाए अंधेरे को दूर करके प्रकाश का विस्तार किया। हम कई बार उनके अयोग्य अनुयायी सिद्ध हुए हैं, उनके द्वारा दिए गए संदेश से भटक गए हैं। केवल हम ही नहीं बल्कि भावी पीढियाँ भी उनके संदेश को याद रखेंगी और भारत के इस महान सपूत की छवि अपने हृदय में संजोयेगी जो अपनी आस्था में, ऊर्जा में, साहस में एवं विनम्रता में बेमिसाल रहे हैं। हम स्वतन्त्रता की उस मशाल को कभी भी बुझने न देंगे, कोई तूफ़ान या ज़लज़ला कितना भी बड़ा भले ही क्यों न आये।

इसके बाद हमारा ध्यान अवश्य ही उन अनगिनत गुमनाम आज़ादी के सिपाहियों की ओर जाना स्वभाविक है जिन्होंने भारतमाता की सेवा के मार्ग में बिना किसी पारितोषिक या सराहना की अपेक्षा किये अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। आज हमें अपने उन भाई-बहनों का भी ध्यान आता है जो राजनैतिक सीमाएं खिंच जाने के कारण हमसे अलग हो गये हैं और जो इस समय स्वतन्त्रता की इस खुशी में शामिल नहीं हो पा रहे हैं। वे हमारा ही हिस्सा हैं और आगे भी रहेंगे। चाहे कुछ भी हो, हम सुख-दुःख में उनके बराबर के साथी रहेंगे।

भविष्य हमें बुला रहा है। यहाँ से हम किस दिशा में जाएँगे और हमारा प्रयास क्या होगा? हमें प्रत्येक साधारण जन के लिए, भारत के किसानों, कर्मचारियों के लिए स्वतन्त्रता एवं अवसर सुनिश्चित करने हैं; हमें ग़रीबी, अज्ञानता तथा बीमारी से जूझना है; एक खुशहाल, जनतान्त्रिक एवं समुन्नत राष्ट्र का निर्माण करना है; ऐसी सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक संस्थायों का निर्माण करना है जिनसे प्रत्येक महिला व पुरुष के लिए न्याय और जीवन की सम्पूर्णता सुनिश्चित की जा सके।

हमें भविष्य में बहुत परिश्रम करना है। जब तक हम अपने संकल्प पूरी तरह साकार नहीं कर लेते, जब तक हम भारत की जनता का जीवन ऐसा सुनिश्चित नहीं कर लेते जैसा नियति ने उनके लिए चुना था, तब तक हम में से किसी एक के लिए भी क्षण भर का विश्राम सम्भव नहीं है। हम सभी एक साहसपूर्ण प्रगति के मुहाने पर खड़े हुए महान देश के नागरिक हैं, हमें ऊँचे मानकों को सुनिश्चित करना है। हम सभी चाहे जिस भी धर्म से सम्बन्धित हों, भारत के समान नागरिक हैं तथा हमारे अधिकार, कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व भी समान हैं। हम साम्प्रदायिकता व संकीर्णता को बढ़ावा नहीं दे सकते क्योंकि कोई भी राष्ट्र जिसके नागरिकों की सोच और कर्म में संकीर्णता होगी, महान नहीं बन सकता।

विश्व के राष्ट्रों एवं लोगों को हम शुभकामनाएं देते हैं तथा शांति, स्वतन्त्रता एवं प्रजातन्त्र को मज़बूत करने में उनके साथ सहयोग करने का वचन देते हैं। और भारत, हमारी मातृभूमि जिसे हम बेइंतिहा मुहब्बत करते हैं, जो प्राचीन है, शाश्वत है, सदा नवीन है, उस प्यारे भारत को सम्मानपूर्वक श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए एकजुटता से इसकी सेवा करने का व्रत लेते हैं।

- जयहिंद।

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

GEET: SHYAMAL SUMAN

लोकतंत्र सचमुच बीमार

राष्ट्र-गान आये ना जिनको, वो संसद के पहरेदार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।

कहने को जनता का शासन, लेकिन जनता दूर बहुत।
रोटी - पानी खातिर तन को, बेच रहे मजबूर बहुत।
फिर कैसे उस गोत्र - मूल के, लोग ही संसद जाते हैं,
हर चुनाव में नम्र भाव, फिर दिखते हैं मगरूर बहुत।।
प्रजातंत्र मूर्खों का शासन, कथन हुआ बिल्कुल साकार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।

बहुत शान से यहाँ लुटेरे, "बड़े लोग" कहलाते हैं।
मिहनतकश को नीति-वचन और वादों से सहलाते हैं।
वो अभाव में अक्सर जीते, जिनके हैं ईमान बचे,
इधर घोषणा बस कागज में, बेबस को बहलाते हैं।।
परिवर्तन लाजिम है लेकिन, शेष क्रांति का बस आधार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।

वीर-शहीदों की आशाएँ, कहो आज क्या बच पाई?
बहुत कठिन है जीवन-पथ पर, धारण करना सच्चाई।
मन - दर्पण में अपना चेहरा, रोज आचरण भी देखो,
निश्चित धीरे-धीरे विकसित, होगी खुद की अच्छाई।।
तब दृढ़ता से हो पायेगा, सभी बुराई का प्रतिकार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।

कर्तव्यों का बोध नहीं है, बस माँगे अपना अधिकार।
सुमन सभी संकल्प करो कि, नहीं सहेंगे अत्याचार।।
तब ही सम्भव हो पायेगा, भारत का फिर से उद्धार।
अपने संग भावी पीढ़ी पर, हो सकता है इक उपकार।।

 
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।

www.manoramsuman.blogspot.com

बुधवार, 14 अगस्त 2013

muktak : sanjiv

स्वाधीनता दिवस पर :
मुक्तक
संजीव
*
शहादतों को भूलकर सियासतों को जी रहे 
पड़ोसियों से पिट रहे हैं और होंठ सी रहे
कुर्सियों से प्यार है, न खुद पे ऐतबार है-
नशा निषेध इस तरह कि मैकदे में पी रहे
*
जो सच कहा तो घेर-घेर कर रहे हैं वार वो
हद है ढोंग नफरतों को कह रहे हैं प्यार वो
सरहदों पे सर कटे हैं, संसदों में बैठकर-
एक-दूसरे को कोस, हो रहे निसार वो
*
मुफ़्त भीख लीजिए, न रोजगार माँगिए
कामचोरी सीख, ख्वाब अलगनी पे टाँगिए
फर्ज़ भूल, सिर्फ हक की बात याद कीजिए-
आ रहे चुनाव देख, नींद में भी जागिए
*
और का सही गलत है, अपना झूठ सत्य है
दंभ-द्वेष-दर्प साध, कह रहे सुकृत्य है
शब्द है निशब्द देख भेद कथ्य-कर्म का-
वार वीर पर अनेक कायरों का कृत्य है
*
प्रमाणपत्र गैर दे: योग्य या अयोग्य हम?
गर्व इसलिए कि गैर भोगता, सुभोग्य हम
जो न हाँ में हाँ कहे, लांछनों से लाद दें -
शिष्ट तज, अशिष्ट चाह, लाइलाज रोग्य हम
*
गंद घोल गंग में तन के मुस्कुराइए
अनीति करें स्वयं दोष प्रकृति पर लगाइए
जंगलों के, पर्वतों के नाश को विकास मान-
सन्निकट विनाश आप जान-बूझ लाइए
*
स्वतंत्रता है, आँख मूँद संयमों को छोड़ दें
नियम बनायें और खुद नियम झिंझोड़-तोड़ दें
लोक-मत ही लोकतंत्र में अमान्य हो गया-
सियासतों से बूँद-बूँद सत्य की निचोड़ दें
*
हर जिला प्रदेश हो, राग यह अलापिए
भाई-भाई से भिड़े, पद पे जा विराजिए
जो स्वदेशी नष्ट हो, जो विदेशी फल सके-
आम राय तज, अमेरिका का मुँह निहारिए
*
धर्महीनता की राह, अल्पसंख्यकों की चाह
अयोग्य को वरीयता, योग्य करे आत्म-दाह
आँख मूँद, तुला थाम, न्याय तौल बाँटिए-
बहुमतों को मिल सके नहीं कहीं तनिक पनाह
*
नाम लोकतंत्र, काम लोभतंत्र कर रहा
तंत्र गला घोंट लोक का विहँस-मचल रहा
प्रजातंत्र की प्रजा है पीठ, तंत्र है छुरा-
राम हो हराम, तज विराम दाल दल रहा
*
तंत्र थाम गन न गण की बात तनिक मानता
स्वर विरोध का उठे तो लाठियां है भांजता
राजनीति दलदली जमीन कीचड़ी मलिन-
लोक जन प्रजा नहीं दलों का हित ही साधता
*
धरें न चादरों को ज्यों का त्यों करेंगे साफ़ अब
बहुत करी विसंगति करें न और माफ़ अब
दल नहीं, सुपात्र ही चुनाव लड़ सकें अगर-
पाक-साफ़ हो सके सियासती हिसाब तब
*
लाभ कोई ना मिले तो स्वार्थ भाग जाएगा
देश-प्रेम भाव लुप्त-सुप्त जाग जाएगा
देस-भेस एक आम आदमी सा तंत्र का-
हो तो नागरिक न सिर्फ तालियाँ बजाएगा
*
धर्महीनता न साध्य, धर्म हर समान हो
समान अवसरों के संग, योग्यता का मान हो
तोडिये न वाद्य को, बेसुरा न गाइए-
नाद ताल रागिनी सुछंद ललित गान हो
*
शहीद जो हुए उन्हें सलाम, देश हो प्रथम
तंत्र इस तरह चले की नयन कोई हो न नम
सर्वदली-राष्ट्रीय हो अगर सरकार अब
सुनहरा हो भोर, तब ही मिट सके तमाम तम
=============================

शनिवार, 13 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष गीत: सारा का सारा हिंदी है -----संजीव 'सलिल'

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष गीत:

सारा का सारा हिंदी है

संजीव 'सलिल'
*

जो कुछ भी इस देश में है, सारा का सारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....*
मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, कुचपुडी, गरबा अपना है.
लेजिम, भंगड़ा, राई, डांडिया हर नूपुर का सपना है.
गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, चनाब, सोन, चम्बल,
ब्रम्हपुत्र, झेलम, रावी अठखेली करती हैं प्रति पल.
लहर-लहर जयगान गुंजाये, हिंद में है और हिंदी है.                                  
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....
*
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा सबमें प्रभु एक समान.
प्यार लुटाओ जितना, उतना पाओ औरों से सम्मान.
स्नेह-सलिल में नित्य नहाकर, निर्माणों के दीप जलाकर.
बाधा, संकट, संघर्षों को गले लगाओ नित मुस्काकर.
पवन, वन्हि, जल, थल, नभ पावन, कण-कण तीरथ, हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....
*
जै-जैवन्ती, भीमपलासी, मालकौंस, ठुमरी, गांधार.
गजल, गीत, कविता, छंदों से छलक रहा है प्यार अपार.
अरावली, सतपुडा, हिमालय, मैकल, विन्ध्य, उत्तुंग शिखर.
ठहरे-ठहरे गाँव हमारे, आपाधापी लिए शहर.
कुटी, महल, अँगना, चौबारा, हर घर-द्वारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....*
सरसों, मका, बाजरा, चाँवल, गेहूँ, अरहर, मूँग, चना.
झुका किसी का मस्तक नीचे, 'सलिल' किसी का शीश तना.                   
कीर्तन, प्रेयर, सबद, प्रार्थना, बाईबिल, गीता, ग्रंथ, कुरान.
गौतम, गाँधी, नानक, अकबर, महावीर, शिव, राम महान.
रास कृष्ण का, तांडव शिव का, लास्य-हास्य सब हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....
*
ट्राम्बे, भाखरा, भेल, भिलाई, हरिकोटा, पोकरण रतन.
आर्यभट्ट, एपल, रोहिणी के पीछे अगणित छिपे जतन.
शिवा, प्रताप, सुभाष, भगत, रैदास कबीरा, मीरा, सूर.
तुलसी. चिश्ती, नामदेव, रामानुज लाये खुदाई नूर.
रमण, रवींद्र, विनोबा, नेहरु, जयप्रकाश भी हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com