अभिनव प्रयोग:
शब्द-शब्द दोहा यमक :
संजीव
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भिन्न अर्थ में शब्द का, जब होता दोहराव।
अलंकार हो तब यमक, हो न अर्थ खनकाव।।
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दाम न दामन का लगा, होता पाक पवित्र।
सुर नर असुर सभी पले, इसमें सत्य विचित्र।।
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लड़के लड़ के माँगते हक, न करें कर्त्तव्य।
माता-पिता मना रहे, उज्जवल हो भवितव्य।।
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तीर नजर के चीरकर, चीर न पाए चीर।
दिल सागर के तीर पर, गिरे न खोना धीर।।
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चाट रहे हैं उंगलियाँ, जी भर खाकर चाट।
खाट खड़ी हो गयी पा, खटमलवाली खाट।।
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मन मथुरा तन द्वारका, नहीं द्वार का काम।
क्या जाने कब प्रगट हों, जीवन धन घनश्याम।।
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खैर जान की मांगतीं, मातु जानकी मौन।
वनादेश दे अवधपति, मरे जिलाए कौन?
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