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रविवार, 27 दिसंबर 2015

navgeet

एक रचना- 
*
सल्ललाहो अलैहि वसल्लम
*
सल्ललाहो अलैहि 
वसल्लम
क्षमा करें सबको 
हम हरदम 
*
सब समान हैं, ऊँच न नीचा 
मिले ह्रदय बाँहों में भींचा 
अनुशासित रह करें इबादत 
ईश्वर सबसे बड़ी नियामत 
भुला अदावत, क्षमा दान कर
द्वेष-दुश्मनी का 
मेटें तम 
सल्ललाहो अलैहि 
वसल्लम
*
तू-मैं एक न दूजा कोई
भेदभाव कर दुनिया रोई 
करुणा, दया, भलाई, पढ़ाई 
कर जकात सुख पा ले भाई 
औरत-मर्द उसी के बंदे 
मिल पायें सुख 
भुला सकें गम
सल्ललाहो अलैहि 
वसल्लम
*
ज्ञान सभ्यता, सत्य-हक़ीक़त
जगत न मिथ्या-झूठ-फजीहत 
ममता, समता, क्षमता पाकर 
राह मिलेगी, राह दिखाकर 
रंग- रूप, कद, दौलत, ताकत 
भुला प्रेम का 
थामें परचम 
सल्ललाहो अलैहि 
वसल्लम
*
कब्ज़ा, सूद, इजारादारी
नस्लभेद घातक बीमारी 
कंकर-कंकर में है शंकर 
हर इंसां में है पैगंबर
स्वार्थ छोड़कर, करें भलाई 
ईशदूत बन 
संग चलें हम 
सल्ललाहो अलैहि 
वसल्लम
*      

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

लघु कथा - वन्देमातरम -- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

वन्देमातरम [लघु कथा] - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'




साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।

आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।

आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।

वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।

-'मुसलमानों को 'वन्दे मातरम' नहीं गाना चाहिए, वज़ह यह है की इस्लाम का बुनियादी अकीदा 'तौहीद' है। मुसलमान खुदा के अलावा और किसी की इबादत नहीं कर सकता।' -मौलाना तकरीर फरमा रहे थे।


'अल्लाह एक है, वही सबको पैदा करता है। यह तो हिंदू भी मानते हैं। 'एकोहम बहुस्याम' कहकर हिंदू भी आपकी ही बात कहते हैं। अल्लाह ने अपनी रज़ा से पहले ज़मीनों-आसमां तथा बाद में इन्सान को बनाया। उसने जिस सरज़मीं पर जिसको पैदा किया, वही उसकी मादरे-वतन है। अल्लाह की मर्जी से मिले वतन के अलावा किसी दीगर मुल्क की वफादारी मुसलमान के लिए कतई जायज़ नहीं हो सकती। अपनी मादरे-वतन का सजदा कर 'वंदे-मातरम' गाना हर मुसलमान का पहला फ़र्ज़ है। हर अहले-इस्लाम के लिए यह फ़र्ज़ अदा करना न सिर्फ़ जरूरी बल्कि सबाब का काम है। आप भी यह फ़र्ज़ अदा कर अपनी वतन-परस्ती और मजहब-परस्ती का सबूत दें।' -एक समझदार तालीमयाफ्ता नौजवान ने दलील दी।

मौलाना कुछ और बोलें इसके पेश्तर मजामीन 'वन्दे-मातरम' गाने लगे तो मौलाना ने चुपचाप खिसकने की कोशिश की मगर लोगों ने देख और रोक लिया तो धीरे-धीरे उनकी आवाज़ भी सबके साथ घुल-मिल गयी।
 
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गुरुवार, 23 सितंबर 2010

सामयिक रचना: मंदिर बनाम मस्जिद संजीव 'सलिल'

सामयिक रचना:

मंदिर बनाम मस्जिद

संजीव 'सलिल'
*
*
नव पीढ़ी सच पूछ रही...
*
ईश्वर-अल्लाह एक अगर
मंदिर-मस्जिद झगड़ा क्यों?
सत्य-तथ्य सब बतलाओ
सदियों का यह लफड़ा क्यों?
*
इसने उसको क्यों मारा?
नातों को क्यों धिक्कारा?
बुतशिकनी क्यों पुण्य हुई?
किये अपहरण, ललकारा?
*
नहीं भूमि की तनिक कमी.
फिर क्यों तोड़े धर्मस्थल?
गलती अगर हुई थी तो-
हटा न क्यों हो परिमार्जन?
*
राम-कृष्ण-शिव हुए प्रथम,
हुए बाद में पैगम्बर.
मंदिर अधिक पुराने हैं-
साक्षी है धरती-अम्बर..
*
आक्रान्ता अत्याचारी,
हुए हिन्दुओं पर भारी.
जन-गण का अपमान किया-
यह फसाद की जड़ सारी..
*
ना अतीत के कागज़ हैं,
और न सनदें ही संभव.
पर इतिहास बताता है-
प्रगटे थे कान्हा-राघव..
*
बदला समय न सच बदला.
किया सियासत ने घपला..
हिन्दू-मुस्लिम गए ठगे-
जनता रही सिर्फ अबला..
*
एक लगाता है ताला.
खोले दूजा मतवाला..
एक तोड़ता है ढाँचा-
दूजे का भी मन काला..
*
दोनों सत्ता के प्यासे.
जन-गण को देते झाँसे..
न्यायालय का काम न यह-
फिर भी नाहक हैं फासें..
*
नहीं चाहता कोई दल.
मसला यह हो पाये हल..
पंडित,मुल्ला, नेता ही-
करते हलचल, हो दलदल..
*
जो-जैसा है यदि छोड़ें.
दिशा धर्म की कुछ मोड़ें..
मानव हो पहले इंसान-
टूट गए जो दिल जोड़ें..
*
पंडित फिर जाएँ कश्मीर.
मिटें दिलों पर पड़ी लकीर..
धर्म न मजहब को बदलें-
काफ़िर कहों न कुफ्र, हकीर..
*
हर इंसां हो एक समान.
अलग नहीं हों नियम-विधान..
कहीं बसें हो रोक नहीं-
खुश हों तब अल्लाह-भगवान..

जिया वही जो बढ़ता है.
सच की सीढ़ी चढ़ता है..
जान अतीत समझता है-
राहें-मंजिल गढ़ता है..
*
मिले हाथ से हाथ रहें.
उठे सभी के माथ रहें..
कोई न स्वामी-सेवक हो-
नाथ न कोई अनाथ रहे..
*
सबका मालिक एक वही.
यह सच भूलें कभी नहीं..
बँटवारे हैं सभी गलत-
जिए योग्यता बढ़े यहीं..
*
हम कंकर हैं शंकर हों.
कभी न हम प्रलयंकर हों.
नाकाबिल-निबलों को हम
नाहक ना अभ्यंकर हों..
*
पंजा-कमल ठगें दोनों.
वे मुस्लिम ये हिन्दू को..
राजनीति की खातिर ही-
लाते मस्जिद-मन्दिर को..
*
जनता अब इन्साफ करे.
नेता को ना  माफ़ करे..
पकड़ सिखाये सबक सही-
राजनीति को राख करे..
*
मुल्ला-पंडित लड़वाते.
गलत रास्ता दिखलाते.
चंगुल से छुट्टी पायें-
नाहक हमको भरमाते..
*
सबको मिलकर रहना है.
सुख-दुख संग-संग सहना है..
मजहब यही बताता है-
यही धर्म का कहना है..
*
एक-दूजे का ध्यान रखें.
स्वाद प्रेम का 'सलिल' चखें.
दूह और पानी जैसे-
दुनिया को हम एक दिखें..
*