रचना-प्रति रचना
मेरी एक कविता
फिर आया मदमाता सावन
कुसुम सिन्हा
*
फिर बूंदों की झड़ी लगी
उमड़ घुमड़ कर काले बदल
नीले नभ में घिर आये
नाच नाचकर बूंदों में ढल
फिर धरती पर छितराए
सपने घिर आये फिर मन में
फिर बूंदों की झड़ी लगी
लहर लहरकर चली हवा भी
पेड़ों को झकझोरती
बार बार फिर कडकी बिजली
चमक चमक चपला चमकी
सिहर सिहर कर भींग भींग
धरती लेने अंगड़ाई लगी
वृक्ष नाच कर झूम झूमकर
गीत लगे कोई गाने
हवा बदन छू छू कर जैसे
लगी है जैसे क्या कहने
नाच नाचकर बूंदें जैसे
स्वप्न सजाने मन में लगी
अम्बर से सागर के ताल तक
एक वितान सा बूंदों का
लहरों के संग संग अनोखा
नृत्य हुआ फिर बूंदों का
फिर आया मदमाता सावन
फिर बूंदों की झड़ी लगी
तृप्त हो रहा था तन मन भी
प्यासी धरती झूम उठी
सरिता के तट को छू छू कर
चंचल लहरें नाच उठीं
सोंधी गंध उठी धरती से सावन गीत:
मन भावन सावन घर आया
संजीव 'सलिल'
*
मन भावन सावन घर आया
रोके रुका न छली बली....
*
कोशिश के दादुर टर्राये.
मेहनत मोर झूम नाचे..
कथा सफलता-नारायण की-
बादल पंडित नित बाँचे.
ढोल मँजीरा मादल टिमकी
आल्हा-कजरी गली-गली....
*
सपनाते सावन में मिलते
अकुलाते यायावर गीत.
मिलकर गले सुनाती-सुनतीं
टप-टप बूँदें नव संगीत.
आशा के पौधे में फिर से
कुसुम खिले नव गंध मिली....
*
हलधर हल धर शहर न जाये
सूना हो चौपाल नहीं.
हल कर ले सारे सवाल मिल-
बाकी रहे बबाल नहीं.
उम्मीदों के बादल गरजे
बाधा की चमकी बिजली....
*
भौजी गुझिया-सेव बनाये,
देवर-ननद खिझा-खाएँ.
छेड़-छाड़ सुन नेह भारी
सासू जी मन-मन मुस्कायें.
छाछ-महेरी के सँग खाएँ
गुड़ की मीठी डली लली....
*
नेह निमंत्रण पा वसुधा का
झूम मिले बादल साजन.
पुण्य फल गये शत जन्मों के-
श्वास-श्वास नंदन कानन.
मिलते-मिलते आस गुजरिया
के मिलने की घड़ी टली....
*
नागिन जैसी टेढ़ी-मेढ़ी
पगडंडी पर सम्हल-सम्हल.
चलना रपट न जाना- मिल-जुल
पार करो पथ की फिसलन.
लड़ी झुकी उठ मिल चुप बोली
नज़र नज़र से मिली भली....
*
गले मिल गये पंचतत्व फिर
जीवन ने अंगड़ाई ली.
बाधा ने मिट अरमानों की
संकुच-संकुच पहुनाई की.
साधा अपनों को सपनों ने
बैरिन निन्दिया रूठ जली....
मेरी एक कविता
फिर आया मदमाता सावन
कुसुम सिन्हा
*
फिर बूंदों की झड़ी लगी
उमड़ घुमड़ कर काले बदल
नीले नभ में घिर आये
नाच नाचकर बूंदों में ढल
फिर धरती पर छितराए
सपने घिर आये फिर मन में
फिर बूंदों की झड़ी लगी
लहर लहरकर चली हवा भी
पेड़ों को झकझोरती
बार बार फिर कडकी बिजली
चमक चमक चपला चमकी
सिहर सिहर कर भींग भींग
धरती लेने अंगड़ाई लगी
वृक्ष नाच कर झूम झूमकर
गीत लगे कोई गाने
हवा बदन छू छू कर जैसे
लगी है जैसे क्या कहने
नाच नाचकर बूंदें जैसे
स्वप्न सजाने मन में लगी
अम्बर से सागर के ताल तक
एक वितान सा बूंदों का
लहरों के संग संग अनोखा
नृत्य हुआ फिर बूंदों का
फिर आया मदमाता सावन
फिर बूंदों की झड़ी लगी
तृप्त हो रहा था तन मन भी
प्यासी धरती झूम उठी
सोंधी गंध उठी धरती से
फिर बूंदों की झड़ी लगी
*
मन भावन सावन घर आया
संजीव 'सलिल'
*
मन भावन सावन घर आया
रोके रुका न छली बली....
*
कोशिश के दादुर टर्राये.
मेहनत मोर झूम नाचे..
कथा सफलता-नारायण की-
बादल पंडित नित बाँचे.
ढोल मँजीरा मादल टिमकी
आल्हा-कजरी गली-गली....
*
सपनाते सावन में मिलते
अकुलाते यायावर गीत.
मिलकर गले सुनाती-सुनतीं
टप-टप बूँदें नव संगीत.
आशा के पौधे में फिर से
कुसुम खिले नव गंध मिली....
*
हलधर हल धर शहर न जाये
सूना हो चौपाल नहीं.
हल कर ले सारे सवाल मिल-
बाकी रहे बबाल नहीं.
उम्मीदों के बादल गरजे
बाधा की चमकी बिजली....
*
भौजी गुझिया-सेव बनाये,
देवर-ननद खिझा-खाएँ.
छेड़-छाड़ सुन नेह भारी
सासू जी मन-मन मुस्कायें.
छाछ-महेरी के सँग खाएँ
गुड़ की मीठी डली लली....
*
नेह निमंत्रण पा वसुधा का
झूम मिले बादल साजन.
पुण्य फल गये शत जन्मों के-
श्वास-श्वास नंदन कानन.
मिलते-मिलते आस गुजरिया
के मिलने की घड़ी टली....
*
नागिन जैसी टेढ़ी-मेढ़ी
पगडंडी पर सम्हल-सम्हल.
चलना रपट न जाना- मिल-जुल
पार करो पथ की फिसलन.
लड़ी झुकी उठ मिल चुप बोली
नज़र नज़र से मिली भली....
*
गले मिल गये पंचतत्व फिर
जीवन ने अंगड़ाई ली.
बाधा ने मिट अरमानों की
संकुच-संकुच पहुनाई की.
साधा अपनों को सपनों ने
बैरिन निन्दिया रूठ जली....
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