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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

navgeet

नवगीत:
तुमने 
*
तुमने 
सपने सत्य बनाये। 
*
कभी धूप बन,
कभी छाँव बन।
सावन-फागुन की 
सुन-गुन बन।
चूँ-चूँ, कलकल 
स्वर गुंजाये।
*
अंकुर ऊगे,
पल्लव विकसे।
कलिका महकी 
फल-तरु विहँसे।
मादक परिमल 
दस दिश छाये।
*
लिखी इबारत, 
हुई इबादत।
सचमुच रब की 
बहुत इनायत।
खनखन कंगन 
कुछ कह जाए।
*
बिना बताये 
दिया सहारा।
तम हर घर-
आँगन  उजियारा।
आधे थे 
पूरे हो पाये।
*
कोई न दूजा
इतना अपना।
खुली आँख का 
जो हो सपना।
श्वास-प्यास 
जय-जय गुंजाये।
***
१६-२-२०१६