सलिल सृजन अक्टूबर २८
*
पूर्णिका
गुलाब
•
तेरे चेहरे की आब हो जाऊँ
मैं महकता गुलाब हो जाऊँ
आस कलिका है, प्यास भँवरा है
मूँद पलकें तो ख्वाब हो जाऊँ
खुले जब आँख तो पढ़े दिन भर
तेरे हाथों किताब हो जाऊँ
भीख मुझको मिले मेरे मौला
इश्क की तो नवाब हो जाऊँ
तेरी आँखें सवाल जो भी करें
मैं ही उसका जवाब हो जाऊँ
साँस की साहूकार तू गर हो
तो बही का हिसाब हो जाऊँ
रूप अपना निखार ले आकर
आज दरिया चनाब हो जाऊँ
हुस्न तुझको अता खुदा ने किया
क्यों न तेरा शबाब हो जाऊँ
लबे नाज़ुक पिएँ दो घूँट अगर
आबे जमजम शराब हो जाऊँ
लल्लोचप्पो न तू समझ इसको
गीत! लब्बोलुआब हो जाऊँ
•••
एक काव्य पत्र
जो मेरा है सो तेरा है
बस चार दिनों का फेरा
सब यहीं छोड़कर जाना है
प्रभु पग ही अपना डेरा है
शन्नो जी! जो भी मन भाए
मिल काव्य कलश रस पी पाए
इस मधुशाला में सब अपने
भुज भेंटे जब जो मन भाए
शेयर है मगर न मोल यहाँ
पीटें आनंदित ढोल यहाँ
करिए करिए शेयर करिए
कविता-पाठक पेयर करिए
लें धन्यवाद, आभार आप
खुश सुख को सका न कोई माप
जय हिंद आपकी जय जय हो
हिंदी जग बोले निर्भय हो
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एक मिसरा : चंद शे'र
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अँजुरी भरी गुलाब की, कर दी उसके नाम।
अलस्सुबह जिसने दिया, शुभ प्रभात पैगाम।।
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अँजुरी भरी गुलाब की, अर्पित उसके नाम।
लिए बिना लेते रहे, जो लब मेरा नाम।।
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अँजुरी भरी गुलाब की, हाय! न जाए सूख।
प्रिये! इन्हें स्वीकार लो, मिटा प्रणय की भूख।।
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अँजुरी भरे गुलाब की, ले लो मेरे राम।
केवट-गुह के घर चलो, या शबरी के ग्राम।।
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अँजुरी भरी गुलाब की, भेजी है दिल हार।
उसे न भाई चाहती, जो नौलखिया हार।।
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अँजुरी भरी गुलाब की, कुछ बेला के फूल।
देख याद तुम आईं फिर, चुभे हृदय में शूल
•
अँजुरी भरी गुलाब की, खत है उसके नाम।
सूखी कली गुलाब की, जो चूमे हर शाम।।
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अँजुरी भरी गुलाब की, भँवरे की लय-तान।
कली-तितलियों के लिए, सहित स्नेह-सम मान।।
२८.१०.२०२४
•••
चिंतन
सब प्रभु की संतान हैं, कोऊ ऊँच न नीच
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'ब्रह्मम् जानाति सः ब्राह्मण:' जो ब्रह्म जानता है वह ब्राह्मण है। ब्रह्म सृष्टि कर्ता हैं। कण-कण में उसका वास है। इस नाते जो कण-कण में ब्रह्म की प्रतीति कर सकता हो वह ब्राह्मण है। स्पष्ट है कि ब्राह्मण होना कर्म और योग्यता पर निर्भर है, जन्म पर नहीं। 'जन्मना जायते शूद्र:' के अनुसार जन्म से सभी शूद्र हैं। सकल सृष्टि ब्रह्ममय है, इस नाते सबको सहोदर माने, कंकर-कंकर में शंकर, कण-कण में भगवान को देखे, सबसे समानता का व्यवहार करे, वह ब्राह्मण है। जो इन मूल्यों की रक्षा करे, वह क्षत्रिय है, जो सृष्टि-रक्षार्थ आदान-प्रदान करे, वह वैश्य है और जो इस हेतु अपनी सेवा समर्पित कर उसका मोल ले-ले वह शूद्र है। जो प्राणी या जीव ब्रह्मा की सृष्टि निजी स्वार्थ / संचय के लिए नष्ट करे, औरों को अकारण कष्ट दे वह असुर या राक्षस है।
व्यावहारिक अर्थ में बुद्धिजीवी वैज्ञानिक, शिक्षक, अभियंता, चिकित्सक आदि ब्राह्मण, प्रशासक, सैन्य, अर्ध सैन्य बल आदि क्षत्रिय, उद्योगपति, व्यापारी आदि वैश्य तथा इनकी सेवा व सफाई कर रहे जन शूद्र हैं। सृष्टि को मानव शरीर के रूपक समझाते हुए इन्हें क्रमशः सिर, भुजा, उदर व् पैर कहा गया है। इससे इतर भी कुछ कहा गया है। राजा इन चारों में सम्मिलित नहीं है, वह ईश्वरीय प्रतिनिधि या ब्रह्मा है। राज्य-प्रशासन में सहायक वर्ग कार्यस्थ (कायस्थ नहीं) है। कायस्थ वह है जिसकी काया में ब्रम्हांश जो निराकार है, जिसका चित्र गुप्त है, आत्मा रूप स्थित है।
'चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानं सर्व देहिनाम्।', 'कायस्थित: स: कायस्थ:' से यही अभिप्रेत है। पौरोहित्य कर्म एक व्यवसाय है, जिसका ब्राह्मण होने न होने से कोई संबंध नहीं है। ब्रह्म के लिए चारों वर्ण समान हैं, कोई ऊँचा या नीचा नहीं है। जन्मना ब्राह्मण सर्वोच्च या श्रेष्ठ नहीं है। वह अत्याचारी हो तो असुर, राक्षस, दैत्य, दानव कहा गया है और उसका वध खुद विष्णु जी ने किया है। गीता रहस्य में लोकमान्य टिळक जो खुद ब्राह्मण थे, ने लिखा है -
गुरुं वा बाल वृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतं
आततायी नमायान्तं हन्या देवाविचारयं
ब्राह्मण द्वारा खुद को श्रेष्ठ बताना, अन्य वर्णों की कन्या हेतु खुद पात्र बताना और अन्य वर्गों को ब्राह्मण कन्या हेतु अपात्र मानना, हर पाप (अपराध) का दंड ब्राह्मण को दान बताने दुष्परिणाम सामाजिक कटुता और द्वेष के रूप में हुआ।
२८.१०.१०१९
***
हिंदी के नए छंद १८
नीराजना छंद
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लक्षण:
१. प्रति पंक्ति २१ मात्रा।
२. पदादि गुरु।
३. पदांत गुरु गुरु लघु गुरु।
४. यति ११ - १०।
लक्षण छंद:
एक - एक मनुपुत्र, साथ जीतें सदा।
आदि रहें गुरुदेव, न तब हो आपदा।।
हो तगणी गुरु अंत, छंद नीरजना।
मुग्ध हुए रजनीश, चंद्रिका नाचना।।
टीप:
एक - एक = ११, मनु पुत्र = १० (इक्ष्वाकु, नृग, शर्याति, दिष्ट,
धृष्ट, करुषय, नरिष्यन्त, प्रवध्र, नाभाग, कवि भागवत)
उदाहरण:
कामदेव - रति साथ, लिए नीराजना।
संयम हो निर्मूल, न करता याचना।।
हो संतुलन विराग - राग में साध्य है।
तोड़े सीमा मनुज, नहीं आराध्य है।।
२८-१०-२०१७
***
कविता:
सफाई
मैंने देखा सपना एक
उठा तुरत आलस को फेंक
बीजेपी ने कांग्रेस के
दरवाज़े पर करी सफाई
नीतीश ने भगवा कपड़ों का
गट्ठर ले करी धुलाई
माया झाड़ू लिए
मुलायम की राहों से बीनें काँटे
और मुलायम ममतामय हो
लगा रहे फतवों को चाँटे
जयललिता की देख दुर्दशा
करुणा-भर करूणानिधि रोयें
अब्दुल्ला श्रद्धा-सुमनों की
अवध पहुँच कर खेती बोयें
गज़ब! सोनिया ने
मनमोहन को
मन मंदिर में बैठाया
जन्म अष्टमी पर
गिरिधर का सोहर
सबको झूम सुनाया
स्वामी जी को गिरिजाघर में
प्रेयर करते हमने देखा
और शंकराचार्य मिले
मस्जिद में करते सबकी सेवा
मिले सिक्ख भाई कृपाण से
खापों के फैसले मिटाते
बम्बइया निर्देशक देखे
यौवन को कपड़े पहनाते
डॉक्टर और वकील छोड़कर फीस
काम जल्दी निबटाते
न्यायाधीश एक पेशी में
केसों का फैसला सुनाते
थानेदार सड़क पर मंत्री जी का
था चालान कर रहा
बिना जेब के कपड़े पहने
टी. सी. बरतें बाँट हँस रहा
आर. टी. ओ. लाइसेंस दे रहा
बिन दलाल के सच्ची मानो
अगर देखना ऐसा सपना
चद्दर ओढ़ो लम्बी तानो
***
नैरंतरी काव्य
बचपन बोले: उठ मत सो ले
उठ मत सो ले, सपने बो ले
सपने बो ले, अरमां तोले
अरमां तोले, जगकर भोले
जगकर भोले, मत बन शोले
मत बन शोले, बचपन बोले
*
अपनी भाषा मत बिसराओ, अपने स्वर में भी कुछ गाओ
अपने स्वर में भी कुछ गाओ, दिल की बातें तनिक बताओ
दिल की बातें तनिक बताओ, बाँहों में भर गले लगाओ
बाँहों में भर गले लगाओ, आपस की दूरियाँ मिटाओ
आपस की दूरियाँ मिटाओ, अँगुली बँध मुट्ठी हो जाओ
अँगुली बँध मुट्ठी हो जाओ, अपनी भाषा मत बिसराओ
२८-१०-२०१४
***
: कुंडलिया :
प्रथम पेट पूजा करें
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प्रथम पेट पूजा करें, लक्ष्मी-पूजन बाद
मुँह में पानी आ रहा, सोच मिले कब स्वाद
सोच मिले कब स्वाद, भोग पहले खुद खा ले
दास राम का अधिक, राम से यह दिखला दे
कहे 'सलिल' कविराय, न चूकेंगे अवसर हम
बन घोटाला वीर, लगायें भोग खुद प्रथम
२८-१०-२०१३
***
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025
अक्टूबर २८, गुलाब, शे'र, नीराजना छंद, नैरंतरी काव्य, कुंडलिया,भाषा, कविता,
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सोमवार, 28 अक्टूबर 2024
गुलाब, नीरज, सलिल
गीत गुंजन :
जासौन, मोगरा, गेंदा और सदा सुहागिन के बाद इस सप्ताह लिखिए गुलाब पर।
प्रस्तुत है महाकवि नीरज का गुलाब पर एक मधुर गीत-
दो गुलाब के फूल - महाकवि नीरज
*
दो गुलाब के फूल छू गए, जब से होठ अपावन मेरे
ऐसी गंध बसी है मन में, सारा जग मधुबन लगता है
जाने क्या हो गया कि हरदम, बिना दिये के रहे उजाला,
चमके टाट बिछावन जैसे, तारों वाला नील दुशाला
हस्तामलक हुए सुख सारे, दु:ख के ऐसे ढहे कगारे
व्यंग्य-वचन लगता था जो कल, वह अब अभिनंदन लगता है
तुम्हें चूमने का गुनाह कर, ऐसा पुण्य कर गई माटी
जनम-जनम के लिए हरी, हो गई प्राण की बंजर घाटी
पाप-पुण्य की बात न छेड़ो, स्वर्ग-नर्क की करो न चर्चा
याद किसी की मन में हो तो, मगहर वृन्दावन लगता है
तुम्हें देख क्या लिया कि कोई, सूरत दिखती नहीं पराई
तुमने क्या छू दिया, बन गई, महाकाव्य कोई चौपाई
कौन करे अब मठ में पूजा, कौन फिराए हाथ सुमरिनी
जीना हमें भजन लगता है, मरना हमें हवन लगता है
दो गुलाब के फूल छू गए, जब से होठ अपावन मेरे
ऐसी गंध बसी है मन में, सारा जग मधुबन लगता है
***
नवगीत:
.
हमने
बोए थे गुलाब
क्यों नागफनी उग आई?
.
दूध पिलाकर
जिनको पाला
बन विषधर
डँसते हैं,
जिन पर
पैर जमा
बढ़ना था
वे पत्त्थर
धँसते हैं.
माँगी रोटी,
छीन लँगोटी
जनप्रतिनिधि
हँसते हैं.
जिनको
जनसेवा
करना था,
वे मेवा
फँकते हैं.
सपने
बोने थे जनाब
पर नींद कहो कब आई?
.
सूत कातकर
हमने पायी
आज़ादी
दावा है.
जनगण
का हित मिल
साधेंगे
झूठा हर
वादा है.
वीर शहीदों
को भूले
धन-सत्ता नित
भजते हैं.
जिनको
देश नया
गढ़ना था,
वे निज घर
भरते हैं.
जनता
ने पूछा हिसाब
क्यों तुमने आँख चुराई?
.
हैं बलिदानों
के वारिस ये
जमी जमीं
पर नजरें.
गिरवी
रखें छीन
कर धरती
सेठों-सँग
हँस पसरें.
कमल कर रहा
चीर हरण
खेती कुररी
सी बिलखे.
श्रम को
श्रेय जहाँ
मिलना था
कृषक क्षुब्ध
मरते हैं.
गढ़ ही
दे इतिहास नया
अब ‘आप’ न हो रुसवाई.
***
हास्य सलिला:
लाल गुलाब
*
लालू जब घर में घुसे, लेकर लाल गुलाब
लाली जी का हो गया, पल में मूड ख़राब
'झाड़ू बर्तन किये बिन, नाहक लाये फूल
सोचा, पाकर फूल मैं जाऊँगी सच भूल
लेकिन मुझको याद है ए लाली के बाप!
फूल शूल के हाथ में देख हुआ संताप
फूल न चौका सम्हालो, मैं जाऊँ बाज़ार
सैंडल लाकर पोंछ दो जल्दी मैली कार.'
***
एक दोहा
फूलति कली गुलाब की, सखि यहि रूप लखै न।
मनौ बुलावति मधुप कौं, दै चुटकी की सैन॥
एक सखी दूसरी सखी से विकसित होती हुई कली का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि, इस खिलती हुई गुलाब की कली का रूप तो देखो न। यह ऐसी प्रतीत होती है, मानो अपने प्रियतम भौंरे को रस लेने के लिए चुटकी बजाकर इशारा करती हुई अपने पास बुला रही हो।
*
हसरत- ए- दीदार लेकर जाग उठी रात भी
चादर- ए-शबनम में लिपटी एक कली गुलाब की - आलोक सक्सेना
*
मैं गुलाब हूँ
*
मैं गुलाब हूँ। मुझसे मिलना है तो किसी बगीचे में चले जाओ। मैं भारत में सर्वत्र सुलभ हूँ। भारत सरकार ने १२ फरवरी को 'गुलाब दिवस' घोषित कर मुझे सम्मान दिया है। मैं वैश्विक पुष्प हूँ। अमेरिका, इंग्लैंड, ईरान और ईराक का मैं राष्ट्रीय पुष्प हूँ। मुझे प्रेम का प्रतीक मन जाता है। मेरा पौधा झाड़ीदार और कटीला होता है। मेरी १०० से अधिक जातियाँ हैं जिनमें से अधिकांश एशियाई मूल की हैं। कुछ जातियों के मूल प्रदेश यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा उत्तरी पश्चिमी अफ्रीका भी हैं। मेरी सुंदरता तथा कोमलता के कारण मेरी उपमा बच्चों, सुंदरियों तथा प्रेमिकाओं से की जाति है। मेरे वन्य रूप में चार-पाँच छितराई हुई पंखड़ियों की एक हरी पंक्ति होती है। बगीचों में यत्नपूर्वक लगाने पर पंखुड़ियों की संख्या बढ़ती है पर केसरों की संख्या घट जाती है। कलम पैबंद आदि के द्बारा मेरे भिन्न-भिन्न जातियों संकर रूप उत्पन्न किए जाते हैं। कश्मीर और भूटान में मैं पीले जंगली गुलाब के रूप में मिलता हूँ। तुर्की में मेरा कृष्ण वर्ण देखकर सभ मोहित हो जाते हैं। मैं लता या बेल के रूप में भी मिलता हूँ। 'शतपत्री', 'पाटलि' आदि शब्दों को गुलाब का पर्याय हैं।
इतिहास
१४५५ से १४८७ तक अंग्रेजी सिंहासन पर नियंत्रण के लिए हाउस ऑफ़ लैंकेस्टर और हाउस ऑफ़ यॉर्क के समर्थकों के बीच हुए युद्ध वार्स ऑफ द रोसेस (गुलाब के युद्ध) कहे गए। इसका कारण यार्क हाउस का चिह्न सफेद गुलाब, लंकास्टर हाउस का चिह्न लाल गुलाब तथा ट्यूडर हाउस का चिह्न बीच में सफेद, बाहरी परिधि में लाल पंखुड़ियों का गुलाब होना था।
मुसलमान लेखक रशीउद्दीन ने चौदहवीं शताब्दी में गुजरात में मेरे सत्तर उगाए जाने का जिक्र किया है। बाबर ने भी गुलाब लगाने की बात लिखी है। मेरी लालिमा पर फ़िदा नूरजहाँ ने १६१२ ईसवी में अपने विवाह के अवसर पर पहले पहल मेरा इत्र निकाला था। सीरिया की शाहजादी को मेरा पीले फूल पसंद थे। मुगलानी जेबुन्निसा अपनी फारसी शायरी में कहती है ‘मैं इतनी सुन्दर हूँ कि मेरे सौन्दर्य को देखकर गुलाब के रंग फीके पड़ जाते हैं।‘ भारत के राजे और सीरिया के बादशाह मेरे खूबसूरत बागीचों में सैर किया करते थे।
साहित्य
भारतीय साहित्य में मुझे रंगीन पंखुड़ियों के कारण 'पाटल', सदैव तरूण होने के कारण 'तरूणी', शत पत्रों के घिरे होने पर ‘शतपत्री’, कानों की आकृति से ‘कार्णिका’, सुन्दर केशर से युक्त होने ‘चारुकेशर’, लालिमा रंग के कारण ‘लाक्षा’ और गंध पूर्ण होने से गंधाढ्य कहा गया है। फारसी में मेरा नाम 'गुलाब, अंगरेज़ी में रोज, बंगला में गोलाप, तामिल में इराशा और तेलुगु में गुलाबि, अरबी में ‘वर्दे अहमर' है। शिव पुराण में मुझे देव पुष्प कहा गया है। मैं अपनी सुगंध और रंग से विश्व काव्य में माधुर्य और सौन्दर्य का प्रतीक हूँ। रोम के प्राचीन कवि वर्जिल ने अपनी कविता में मेरे सीरियाई बसंती रूप की चर्चा की है। अंगरेज़ी कवि टामस हूड ने मुझे समय का प्रतिमान, कवि मैथ्यू आरनाल्ड ने प्रकृति का अनोखा वरदान, टेनिसन ने नारी का उपमान बताया है। हिन्दी के श्रृंगारी कवियों ने मुझ पर अपनी रसिकता आरोपित की है- ‘फूल्यौ रहे गंवई गाँव में गुलाब’। महाकवि देव ने अपनी कविता में मुझसे बालक बसन्त का स्वागत कराया, महाकवि निराला ने मुझे पूंजीवादी और शोषक के रूप में देखा जबकि रामवृक्ष बेनीपुरी ने संस्कृति का प्रतीक कहा है। जननायक जवाहर लाल नेहरू मुझे हृदय से लगे रखते थे। राजस्थान की राजधानी जयपुर की इमारतें मेरे रंग में रँगी गईं तो इसे 'गुलाबी नगरी' के खिताब से नवाजा गया।
खेती
मेरी खेती और उससे उत्पादन के क्षेत्र में बुलगारिया, टर्की, रुस, फ्रांस, इटली और चीन से भारत काफी पिछड़ा हुआ है। भारत में उत्तर प्रदेश के हाथरस, एटा, बलिया, कन्नौज, फर्रुखाबाद, कानपुर, गाजीपुर, राजस्थान के उदयपुर (हल्दीघाटी), चित्तौड़, जम्मू और कश्मीर में, हिमाचल इत्यादि राज्यों में २ हजार हे० भूमि में दमिश्क प्रजाति के गुलाब की खेती होती है। यह गुलाब चिकनी मिट्टी से लेकर बलुई मिट्टी जिसका पी०एच० मान ७.०-८.५ तक में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। दमिश्क गुलाब शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों ही प्रकार की जलवायु में अच्छी तरह उगाया जा सकता है। समशीतोष्ण मैदानी भागों में जहाँ पर शीत काल के दौरान अभिशीतित तापक्रम (चिल्ड ताप) तापक्रम लगभग १ माह तक हो वहाँ भी सफलतापूर्वक की जा सकती है। खुशबूदार गुलाबों का इस्तेमाल गुलाब का तेल बनाने के लिए किया जाता है।
उत्पाद
भारत में मौसम के अनुसार मेरे दो वर्ग सदागुलाब और चैती (बसरा या दमिश्क जाति के) हैं। गंधहीन सदा गुलाब बारहों महीने फूलता है जबकि सुगंधित चैती गुलाब केवल बसंत में फूलता है। चैती गुलाब से गुलकंद, गुलाब जल, इत्र और दवा बनाई जाती है। गाजीपुर मेरी खेती के लिए मशहूर है। एक बीघा जमीन पर मेरे लगभग १००० पौधे लगे जाते हैं। अलस्सुबह उनके फूल तोड़कर अत्तार उनका जल निकाल लेते हैं। अत्तार पानी के साथ फूलों को देग में रख देते हैं। देग से एक पतली बाँस की नली पानी से भरी नाँद में रखे गए बर्तन 'भभका' में जाती है। डेग में से सुगंधित भाप उठकर भभके के बर्तन में सरदी से द्रव होकर टपकती है। यही गुलाब जल है।मेरा इत्र तैयार करने के लिए गुलाब जल को गीली जमीन में गड़ाए गए एक छिछले बरतन में रखकर रात भर खुले मैदान में पड़ा रहने देते हैं। सुबह सर्दी से गुलाबजल के ऊपर इत्र की बहुत पतली मलाई सी पड़ जाति है जिसे हाथ से काँछ लिया जाता है। मेरे विकास के लिए छः से आठ घंटे धूप मिलना आवश्यक है।
वर्गीकरण
मेरे पौधों की बनावट, ऊँचाई, फूलों के आकार आदि के आधार पर इन्हें पाँच वर्गों में बाँटा गया है।
१. हाइब्रिड टी- पौधे झाङीनुमा, लम्बे और फैलनेवाले, प्रत्येक शाखा पर एक सुंदर बड़ा फूल। इस वर्ग की प्रमुख किस्में एम्बेसडर, अमेरिकन प्राइड, बरगण्डा, डबल, डिलाइट, फ्रेण्डसिप, सुपरस्टार, रक्त गंधा, क्रिमसनग्लोरी, अर्जुन, जवाहर, रजनी, रक्तगंधा, सिद्धार्थ, सुकन्या, फस्टे रेड, रक्तिमा और ग्रांडेमाला आदि हैं।
२. फ्लोरीबण्डा- इसके फूल हाइब्रिड टी किस्मों की तुलना में छोटे और अधिक होते हैं। इस वर्ग की प्रमुख किस्में है- जम्बरा, अरेबियन नाइटस, रम्बा वर्ग, चरिया, आइसबर्ग, फर्स्ट एडीसन, लहर, बंजारन, जंतर-मंतर, सदाबहार, प्रेमा और अरुणिमा आदि।
३. पॉलिएन्था : इनके पौधों और फूलों का आकार हाइब्रिड डी एवं फ्लोरी बंडा वर्ग से छोटा किंतु गुच्छा आकार में फ्लोरीबंडा वर्ग से भी बड़ा होता है। एक गुच्छे में कई फूल होते हैं। इनमें मध्यम आकार के फूल अधिक संख्या में साल में अधिक समय तक आते रहते हैं। यह घरों में शोभा बढ़ाने वाले पौधों के रूप में बहुतायत से प्रयोग में लाया जाता है। इस वर्ग की प्रमुख किस्में स्वाति, इको, अंजनी आदि हैं।
४. मिनीएचर : इन्हें बेबी गुलाब, मिनी गुलाब, बटन गुलाब या लघु गुलाब कहा जाता। ये कम लंबाई के छोटे बौने पौधे होते हैं। इनकी पत्तियों व फूलों का आकार छोटा किंतु संख्या बहुत अधिक होती है। इन्हें ब़ड़े शहरों में बंगलों, फ्लैटों आदि में छोटे गमलों में लगाया जाना उपयुक्त रहता है। इस वर्ग की प्रमुख किस्में ड्वार्फ किंग, बेबी डार्लिंग, क्रीकी, रोज मेरिन, सिल्वर टिप्स आदि हैं।
५. लता गुलाब- इस वर्ग में कुछ हाइब्रिड टी फ्लोरीबण्डा गुलाबोँ की शाखाएँ लताओं की भाँति बढ़ती हैं। इन्हें मेहराब या अन्य किसी सहारे के साथ चढ़ाया जा सकता है। इनमें फूल एक से तीन (क्लाइंबर) व गुच्छों (रेम्बलर) में लगते हैं। लता वर्ग की प्रचलित किस्में गोल्डन शावर, कॉकटेल, रायल गोल्ड और रेम्बलर वर्ग की एलवटाइन, एक्सेलसा, डोराथी पार्किंस आदि हैं। कासिनों, प्रोस्पेरीटी, मार्शलनील, क्लाइबिंग, कोट टेल आदि भी लोकप्रिय हैं।
मेरी नवीनतम किस्में- पूसा गौरव, पूसा बहादुर, पूसा प्रिया, पूसा बारहमासी, पूसा विरांगना, पूसा पिताम्बर, पूसा गरिमा और डा भरत राम आदि हैं।
पुष्प
मेरे पौधे में पुष्पासन जायांग से होता हुआ लम्बाई में वृद्धि करता हुआ पत्तियों को धारण करता है। हरे गुलाब के पुष्प पत्ती की तरह दिखाई देते हैं। पुष्पासन छिछला, चपटा या प्याले का रूप धारण करता है। जायांग पुष्पासन के बीच में तथा अन्य पुष्पयत्र प्यालानुमा रचना की नेमि या किनारों पर स्थित होते हैं। इनमें अंडाशय अर्ध-अधोवर्ती तथा अन्य पुष्पयत्र अधोवर्ती कहलाते है। पांच अखरित या बहुत छोटे नखरवाले दल के दलफलक बाहर की तरफ फैले होते हैं। पंकेशर लंबाई में असमान होते है अर्थात हेप्लोस्टीमोनस. बहुअंडपी अंडाशय, अंडप संयोजन नहीं करते हैं तथा एक-दुसरे से अलग-अलग रहते हैं, इस अंडाशय को वियुक्तांडपी कहते हैं और इसमें एक अंडप एक अंडाशय का निर्माण करता है।
आर्थिक महत्व
फूल के हाट में मेरे लाल-गुलाबी गजरे खूब बिकते हैं।[ गुलाब की पंखुडियों और शक्कर से गुलकन्द बनाया जाता है। गुलाब जल और गुलाब इत्र के कुटीर उद्योग चलते है। उत्तर प्रदेश में कन्नौज, जौनपुर आदि में गुलाब के उत्पाद की उद्योगशाला चलती है।दक्षिण भारत में गुलाब फूलों का खूब व्यापार होता है। मन्दिरों, मण्डपों, समारोहों, पूजा-स्थलों आदि स्थानों में गुलाब फूलों की भारी खपत होती है। यह अर्थिक लाभ का साधन है।
***
फिल्मी गीतों में गुलाब
एक नज़र डालते हैं हिंदी सिनेमा के कुछ ऐसे ही गानों पर जिसमे गुलाब ने अपनी खुशबू की महक छोड़ी है-
तू कली गुलाब की, १९६४- अभिनेत्री रेखा पर फिल्माए गए इस गीत में महबूबा की तुलना गुलाब के फूल से की गई है।
गुलाबी आंखे जो तेरी देखीं, १९७०- बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की मूवी ‘द ट्रेन’ में फिल्माया गया गाना ‘गुलाबी आँखें जो तेरी देखीं...’ में गुलाब शब्द का संजीदगी से किया गया उपयोग काबिले तारीफ़ है। इसे मोहम्मद रफ़ी ने अपनी आवाज़ दी थी।
तेरा चेहरा मुझे गुलाब, १९८१- फिल्म ‘आपस की बात’ में अभिनेता राज बब्बर यह गाना गाते हुए दिख रहें हैं. इस गाने में भी बड़ी खूबसूरती से गुलाब शब्द को उपयोग में लाया गया है.
खिलते हैं गुल यहाँ १९८१- इस गाने में अभिनेता शशि कपूर अपनी महबूबा को रिझाने के लिए गाना गाते हुए दिख रहें हैं.
कच्ची कली गुलाब की, खुदा कसम १९८१- ‘जवान होकर बचपना न करिए हुज़ूर, कच्ची कली गुलाब की ऐसे ना तोड़िए’
गुलाब जिस्म का यूंही नही खिला होगा, अंजुमन १९८६,
फूल गुलाब का- बीवी हो तो ऐसी १०८८
भेजा है एक गुलाब, शिकारी २०००- ये गाना किंग ऑफ रोमांस आवाज़ के लिए मशहूर कुमार सानु ने गाया था.
गुलाबी शुद्ध देसी रोमांस २०१३- इस गाने को सुशांत सिंह राजपूत और वाणी कपूर के ऊपर फिल्माया गया था.
गुलाबो- शानदार २०१५- शाहिद कपूर और आलिया भट्ट की मूवी शानदार में फिल्माया गया गाना ‘गुलाबो’ के इस गाने को लोगों ने जरुर पसंद किया था.
***
अक्टूबर २८, नीराजना छंद, सफाई, नैरंतरी, कुंडलिया, शे'र, गुलाब, पूर्णिका,
सलिल सृजन अक्टूबर २८
*
पूर्णिका
गुलाब
•
तेरे चेहरे की आब हो जाऊँ
मैं महकता गुलाब हो जाऊँ
आस कलिका है, प्यास भँवरा है
मूँद पलकें तो ख्वाब हो जाऊँ
खुले जब आँख तो पढ़े दिन भर
तेरे हाथों किताब हो जाऊँ
भीख मुझको मिले मेरे मौला
इश्क की तो नवाब हो जाऊँ
तेरी आँखें सवाल जो भी करें
मैं ही उसका जवाब हो जाऊँ
साँस की साहूकार तू गर हो
तो बही का हिसाब हो जाऊँ
रूप अपना निखार ले आकर
आज दरिया चनाब हो जाऊँ
हुस्न तुझको अता खुदा ने किया
क्यों न तेरा शबाब हो जाऊँ
लबे नाज़ुक पिएँ दो घूँट अगर
आबे जमजम शराब हो जाऊँ
लल्लोचप्पो न तू समझ इसको
गीत! लब्बोलुआब हो जाऊँ
•••
एक काव्य पत्र
जो मेरा है सो तेरा है
बस चार दिनों का फेरा
सब यहीं छोड़कर जाना है
प्रभु पग ही अपना डेरा है
शन्नो जी! जो भी मन भाए
मिल काव्य कलश रस पी पाए
इस मधुशाला में सब अपने
भुज भेंटे जब जो मन भाए
शेयर है मगर न मोल यहाँ
पीटें आनंदित ढोल यहाँ
करिए करिए शेयर करिए
कविता-पाठक पेयर करिए
लें धन्यवाद, आभार आप
खुश सुख को सका न कोई माप
जय हिंद आपकी जय जय हो
हिंदी जग बोले निर्भय हो
***
एक मिसरा : चंद शे'र
•
अँजुरी भरी गुलाब की, कर दी उसके नाम।
अलस्सुबह जिसने दिया, शुभ प्रभात पैगाम।।
•
अँजुरी भरी गुलाब की, अर्पित उसके नाम।
लिए बिना लेते रहे, जो लब मेरा नाम।।
•
अँजुरी भरी गुलाब की, हाय! न जाए सूख।
प्रिये! इन्हें स्वीकार लो, मिटा प्रणय की भूख।।
•
अँजुरी भरे गुलाब की, ले लो मेरे राम।
केवट-गुह के घर चलो, या शबरी के ग्राम।।
•
अँजुरी भरी गुलाब की, भेजी है दिल हार।
उसे न भाई चाहती, जो नौलखिया हार।।
•
अँजुरी भरी गुलाब की, कुछ बेला के फूल।
देख याद तुम आईं फिर, चुभे हृदय में शूल
•
अँजुरी भरी गुलाब की, खत है उसके नाम।
सूखी कली गुलाब की, जो चूमे हर शाम।।
•
अँजुरी भरी गुलाब की, भँवरे की लय-तान।
कली-तितलियों के लिए, सहित स्नेह-सम मान।।
२८.१०.२०२४
•••
चिंतन
सब प्रभु की संतान हैं, कोऊ ऊँच न नीच
*
'ब्रह्मम् जानाति सः ब्राह्मण:' जो ब्रह्म जानता है वह ब्राह्मण है। ब्रह्म सृष्टि कर्ता हैं। कण-कण में उसका वास है। इस नाते जो कण-कण में ब्रह्म की प्रतीति कर सकता हो वह ब्राह्मण है। स्पष्ट है कि ब्राह्मण होना कर्म और योग्यता पर निर्भर है, जन्म पर नहीं। 'जन्मना जायते शूद्र:' के अनुसार जन्म से सभी शूद्र हैं। सकल सृष्टि ब्रह्ममय है, इस नाते सबको सहोदर माने, कंकर-कंकर में शंकर, कण-कण में भगवान को देखे, सबसे समानता का व्यवहार करे, वह ब्राह्मण है। जो इन मूल्यों की रक्षा करे, वह क्षत्रिय है, जो सृष्टि-रक्षार्थ आदान-प्रदान करे, वह वैश्य है और जो इस हेतु अपनी सेवा समर्पित कर उसका मोल ले-ले वह शूद्र है। जो प्राणी या जीव ब्रह्मा की सृष्टि निजी स्वार्थ / संचय के लिए नष्ट करे, औरों को अकारण कष्ट दे वह असुर या राक्षस है।
व्यावहारिक अर्थ में बुद्धिजीवी वैज्ञानिक, शिक्षक, अभियंता, चिकित्सक आदि ब्राह्मण, प्रशासक, सैन्य, अर्ध सैन्य बल आदि क्षत्रिय, उद्योगपति, व्यापारी आदि वैश्य तथा इनकी सेवा व सफाई कर रहे जन शूद्र हैं। सृष्टि को मानव शरीर के रूपक समझाते हुए इन्हें क्रमशः सिर, भुजा, उदर व् पैर कहा गया है। इससे इतर भी कुछ कहा गया है। राजा इन चारों में सम्मिलित नहीं है, वह ईश्वरीय प्रतिनिधि या ब्रह्मा है। राज्य-प्रशासन में सहायक वर्ग कार्यस्थ (कायस्थ नहीं) है। कायस्थ वह है जिसकी काया में ब्रम्हांश जो निराकार है, जिसका चित्र गुप्त है, आत्मा रूप स्थित है।
'चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानं सर्व देहिनाम्।', 'कायस्थित: स: कायस्थ:' से यही अभिप्रेत है। पौरोहित्य कर्म एक व्यवसाय है, जिसका ब्राह्मण होने न होने से कोई संबंध नहीं है। ब्रह्म के लिए चारों वर्ण समान हैं, कोई ऊँचा या नीचा नहीं है। जन्मना ब्राह्मण सर्वोच्च या श्रेष्ठ नहीं है। वह अत्याचारी हो तो असुर, राक्षस, दैत्य, दानव कहा गया है और उसका वध खुद विष्णु जी ने किया है। गीता रहस्य में लोकमान्य टिळक जो खुद ब्राह्मण थे, ने लिखा है -
गुरुं वा बाल वृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतं
आततायी नमायान्तं हन्या देवाविचारयं
ब्राह्मण द्वारा खुद को श्रेष्ठ बताना, अन्य वर्णों की कन्या हेतु खुद पात्र बताना और अन्य वर्गों को ब्राह्मण कन्या हेतु अपात्र मानना, हर पाप (अपराध) का दंड ब्राह्मण को दान बताने दुष्परिणाम सामाजिक कटुता और द्वेष के रूप में हुआ।
२८.१०.१०१९
***
हिंदी के नए छंद १८
नीराजना छंद
*
लक्षण:
१. प्रति पंक्ति २१ मात्रा।
२. पदादि गुरु।
३. पदांत गुरु गुरु लघु गुरु।
४. यति ११ - १०।
लक्षण छंद:
एक - एक मनुपुत्र, साथ जीतें सदा।
आदि रहें गुरुदेव, न तब हो आपदा।।
हो तगणी गुरु अंत, छंद नीरजना।
मुग्ध हुए रजनीश, चंद्रिका नाचना।।
टीप:
एक - एक = ११, मनु पुत्र = १० (इक्ष्वाकु, नृग, शर्याति, दिष्ट,
धृष्ट, करुषय, नरिष्यन्त, प्रवध्र, नाभाग, कवि भागवत)
उदाहरण:
कामदेव - रति साथ, लिए नीराजना।
संयम हो निर्मूल, न करता याचना।।
हो संतुलन विराग - राग में साध्य है।
तोड़े सीमा मनुज, नहीं आराध्य है।।
२८-१०-२०१७
***
कविता:
सफाई
मैंने देखा सपना एक
उठा तुरत आलस को फेंक
बीजेपी ने कांग्रेस के
दरवाज़े पर करी सफाई
नीतीश ने भगवा कपड़ों का
गट्ठर ले करी धुलाई
माया झाड़ू लिए
मुलायम की राहों से बीनें काँटे
और मुलायम ममतामय हो
लगा रहे फतवों को चाँटे
जयललिता की देख दुर्दशा
करुणा-भर करूणानिधि रोयें
अब्दुल्ला श्रद्धा-सुमनों की
अवध पहुँच कर खेती बोयें
गज़ब! सोनिया ने
मनमोहन को
मन मंदिर में बैठाया
जन्म अष्टमी पर
गिरिधर का सोहर
सबको झूम सुनाया
स्वामी जी को गिरिजाघर में
प्रेयर करते हमने देखा
और शंकराचार्य मिले
मस्जिद में करते सबकी सेवा
मिले सिक्ख भाई कृपाण से
खापों के फैसले मिटाते
बम्बइया निर्देशक देखे
यौवन को कपड़े पहनाते
डॉक्टर और वकील छोड़कर फीस
काम जल्दी निबटाते
न्यायाधीश एक पेशी में
केसों का फैसला सुनाते
थानेदार सड़क पर मंत्री जी का
था चालान कर रहा
बिना जेब के कपड़े पहने
टी. सी. बरतें बाँट हँस रहा
आर. टी. ओ. लाइसेंस दे रहा
बिन दलाल के सच्ची मानो
अगर देखना ऐसा सपना
चद्दर ओढ़ो लम्बी तानो
***
नैरंतरी काव्य
बचपन बोले: उठ मत सो ले
उठ मत सो ले, सपने बो ले
सपने बो ले, अरमां तोले
अरमां तोले, जगकर भोले
जगकर भोले, मत बन शोले
मत बन शोले, बचपन बोले
*
अपनी भाषा मत बिसराओ, अपने स्वर में भी कुछ गाओ
अपने स्वर में भी कुछ गाओ, दिल की बातें तनिक बताओ
दिल की बातें तनिक बताओ, बाँहों में भर गले लगाओ
बाँहों में भर गले लगाओ, आपस की दूरियाँ मिटाओ
आपस की दूरियाँ मिटाओ, अँगुली बँध मुट्ठी हो जाओ
अँगुली बँध मुट्ठी हो जाओ, अपनी भाषा मत बिसराओ
२८-१०-२०१४
***
: कुंडलिया :
प्रथम पेट पूजा करें
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प्रथम पेट पूजा करें, लक्ष्मी-पूजन बाद
मुँह में पानी आ रहा, सोच मिले कब स्वाद
सोच मिले कब स्वाद, भोग पहले खुद खा ले
दास राम का अधिक, राम से यह दिखला दे
कहे 'सलिल' कविराय, न चूकेंगे अवसर हम
बन घोटाला वीर, लगायें भोग खुद प्रथम
२८-१०-२०१३
***
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गुरुवार, 5 अगस्त 2021
नवगीत
नवगीत:
संजीव
.
हमने
बोये थे गुलाब
क्यों
नागफनी उग आयी?
.
दूध पिलाकर
जिनको पाला
बन विषधर
डँसते हैं,
जिन पर
पैर जमा
बढ़ना था
वे पत्त्थर
धँसते हैं.
माँगी रोटी,
छीन लँगोटी
जनप्रतिनिधि
हँसते हैं.
जिनको
जनसेवा
करना था,
वे मेवा
फँकते हैं.
सपने
बोने थे जनाब
पर
नींद कहो कब आयी?
.
सूत कातकर
हमने पायी
आज़ादी
दावा है.
जनगण
का हित मिल
साधेंगे
झूठा हर
वादा है.
वीर शहीदों
को भूले
धन-सत्ता नित
भजते हैं.
जिनको
देश नया
गढ़ना था,
वे निज घर
भरते हैं.
जनता
ने पूछा हिसाब
क्यों
तुमने आँख चुरायी?
.
हैं बलिदानों
के वारिस ये
जमी जमीं
पर नजरें.
गिरवी
रखें छीन
कर धरती
सेठों-सँग
हँस पसरें.
कमल कर रहा
चीर हरण
खेती कुररी
सी बिलखे.
श्रम को
श्रेय जहाँ
मिलना था
कृषक क्षुब्ध
मरते हैं.
गढ़ ही
दे इतिहास नया
अब
‘आप’ न हो रुसवाई.
*
शनिवार, 5 अगस्त 2017
navgeet
नवगीत:
संजीव
.
हमने
बोये थे गुलाब
क्यों
नागफनी उग आयी?
.
दूध पिलाकर
जिनको पाला
बन विषधर
डँसते हैं,
जिन पर
पैर जमा
बढ़ना था
वे पत्त्थर
धँसते हैं.
माँगी रोटी,
छीन लँगोटी
जनप्रतिनिधि
हँसते हैं.
जिनको
जनसेवा
करना था,
वे मेवा
फँकते हैं.
सपने
बोने थे जनाब
पर
नींद कहो कब आयी?
.
सूत कातकर
हमने पायी
आज़ादी
दावा है.
जनगण
का हित मिल
साधेंगे
झूठा हर
वादा है.
वीर शहीदों
को भूले
धन-सत्ता नित
भजते हैं.
जिनको
देश नया
गढ़ना था,
वे निज घर
भरते हैं.
जनता
ने पूछा हिसाब
क्यों
तुमने आँख चुरायी?
.
हैं बलिदानों
के वारिस ये
जमी जमीं
पर नजरें.
गिरवी
रखें छीन
कर धरती
सेठों-सँग
हँस पसरें.
कमल कर रहा
चीर हरण
खेती कुररी
सी बिलखे.
श्रम को
श्रेय जहाँ
मिलना था
कृषक क्षुब्ध
मरते हैं.
गढ़ ही
दे इतिहास नया
अब
‘आप’ न हो रुसवाई.
*
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