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सोमवार, 25 जुलाई 2011

बाल कविता: चूजे भाई! -- संजीव 'सलिल'

बाल कविता:                                                               
चूजे भाई! 
संजीव 'सलिल'
*

कितने अच्छे लगते हो तुम |
बिना जगाये जगते हो तुम ||

नहीं किसी को ठगते हो तुम |

सदा प्रेम में पगते हो तुम || 

दाना-चुग्गा मंगते हो तुम |
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ चुगते हो तुम ||

आलस कैसे तजते हो तुम?

क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?
चिड़िया माँ पा नचते हो तुम |
बिल्ली से डर बचते हो तुम ||

क्या माला भी जपते हो तुम?

शीत लगे तो कँपते हो तुम?

सुना न मैंने, हँसते  हो तुम?

चूजे भाई! रुचते हो तुम | 

********************* 
टिप्पणी: यह रचना चौपाई छंद में है. हर पंक्ति में १६ मात्राएँ हैं.  पहली २ तथा बाद में हर दूसरी पंक्ति का अंत 'ते हो तुम' से हुआ है, ऐसी कविता को मुक्तिका या ग़ज़ल कहते हैं. साधारणतः चौपाई में चार चरण, दो पंक्तियाँ होती हैं और वह किसी विषय पर केन्द्रित नहीं होती, यहाँ 'चूजे' को केंद्र में रखकर लिखी गयी चौपाइयाँ हैं. पढ़ो और आनंद लो. किसी जानकर से पूछना कि पदांत-तुकांत (काफिया-रदीफ़) क्या है.