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मंगलवार, 2 अप्रैल 2024

अप्रैल २, युगतुलसी, व्यंग्य, सॉनेट, पवन, चित्रगुप्त, दुर्गा, हनुमान, दोहा, मात्रा, कत्अ

सलिल सृजन २ अप्रैल
*
स्मरण युगतुलसी
युगतुलसी में तुलसी युग था
राम नाम हर श्वास गुँजाया
हुलसी हुलसी तुलसी पाकर पुत्र रामबोला दे खोई
बोला राम राम आजीवन मानस रच नव आशा बोई
मर्यादा पुरुषोत्तम सर्वोत्तम जन जन हृदय के बसाया
युगतुलसी में तुलसी युग था राम नाम हर श्वास गुँजाया
नेह नर्मदा तट साक्षी तुलसी- युगतुलसी राम-लीन थे
सिया-राम-हनुमान नाम पल पल गुंजित कर रही बीन थे
राम भक्ति में लीन हुए वै, रिम नाम पर्याय बनाया
युगतुलसी में तुलसी युग था राम नाम हर श्वास गुँजाया
गए नर्मदा तट से गंगा सरयू तट पर राम रमाया
राम चरित मानस जन गण के मानस में रोपा विकसाया
राम-भक्ति सलिला प्रवहित कर भव को भव से पार कराया
युगतुलसी में तुलसी युग था राम नाम हर श्वास गुँजाया
२.४.२०२४
•••
व्यंग्य रचना 
छंद जाए भाड़ में
*
हो रही नीलाम कविता छंदमय बाज़ार में।  
जेब में नगदी नहीं तो लो खरीद उधार में।।

टके के हैं तीन छंदाचार्य इंटरनेट पर।
सिखाते आधा-अधूरा ज्ञान वे व्यवहार में।।

मूलत: है छंद वाचिक जो नहीं यह जानते
है नहीं लौकिक या वैदिक छंद छंदागार में।।

वर्ण-मात्रा से अधिक कुछ भी न जानें जो वही
ग्रंथ पिंगल के लिखें नित; शून्य जो उच्चार में।।

वास्ता लय; नाद या आलाप से किंचित नहीं
तानसेनी विरासत कहते मिली किरदार में।।

चेलियाँ भाती बहुत करते अलंकृत नित उन्हें।
छोड़ पति बच्चे गृहस्थी जो भ्रमित छनकार में।।

राशियाँ ले; दे रहे सम्मान अनगिन रोज ही।
विश्व सम्मेलन हुआ धंधा नया आचार में।।

कर रहे प्रतिबद्ध लेखन नहीं सच से वास्ता।
पथ दिखाते दृष्टि खो; रह अकादमी सरकार में।।
२.४.२०२४
***
सॉनेट
पवन
झोंका बन पुलके झकझोर
अंतर्मन में उठा हिलोर
रवि-ऊषा बिन उज्जवल भोर
बन आलिंगन दे चितचोर
गाए मिलन-विरह के गीत
लूटे लुटा हमेशा प्रीत
हँसे हार ज्यों पाई जीत
तोड़-बनाए पल-पल रीत
कोई सकता कभी न रोक
कोई सके न किंचित टोक
होता विकल न करता शोक
पैना बहुत न लेकिन नोक
संगी भू नभ सलिल अगन
चिरजीवी हो पवन मगन
२-४-२०२२
•••
भजन
तुमखों सुमिरूँ चित्रगुप्त प्रभु, भव सागर सें पार करो।
डगमग डगमग नैया डोले, झटपट आ उद्धार करो।।
*
तुमईं बिरंचि सृष्टि रच दी, हरि हो खें पालन करते हो।
हर हो हर को चरन सरन दे, सबकी झोली भरते हो।।
ध्यान धरम कछू आउत नइयां, तुमई हमाओ ध्यान धरो।
तुमखों सुमिरूँ चित्रगुप्त प्रभु, भव सागर सें पार करो।।
*
जैंसी करनी तैंसी भरनी, न्याओ तुमाओ है सच्चो।
कैसें महिमा जानौं तुमरी, ज्ञान हमाओ है कच्चो।।
मैया नंदिनी-इरावती सें, बिनती सिर पर हाथ धरो।
तुमखों सुमिरूँ चित्रगुप्त प्रभु, भव सागर सें पार करो।।
*
सादर मैया किरपा करके, मोरी मत निरमल कर दें।
काम क्रोध मद मोह लोभ हर, भगति भाव जी भर, भर दें।
कान खैंच लो भले पर पिता, बाँहों में भर प्यार करो।
तुमखों सुमिरूँ चित्रगुप्त प्रभु, भव सागर सें पार करो।।
२-४-२०२१
***
कार्यशाला : कुण्डलिया
जाने कितनी हो रही अपने मन में हूक।
क्यों होती ही जारही अजब चूक पर चूक। - रामदेव लाल 'विभोर'
अजब चूक पर चूक, विधाता की क्या मर्जी?
फाड़ रहा है वस्त्र, भूलकर सिलना दर्जी
हठधर्मी या जिद्द, पड़ेगी मँहगी कितनी?
ले जाएगी जान, न जाने जानें कितनी - संजीव
चिंतन
दुर्गा पूजा
*
एक प्रश्न
बचपन में सुना था ईश्वर दीनबंधु है, माँ पतित पावनी हैं।
आजकल मंदिरों के राजप्रासादों की तरह वैभवशाली बनाने और सोने से मढ़ देने की होड़ है।
माँ दुर्गा को स्वर्ण समाधि देने का समाचार विचलित कर गया।
इतिहास साक्षी है देवस्थान अपनी अकूत संपत्ति के कारण ही लूट को शिकार हुए।
मंदिरों की जमीन-जायदाद पुजारियों ने ही खुर्द-बुर्द कर दी।
सनातन धर्म कंकर कंकर में शंकर देखता है।
वैष्णो देवी, विंध्यवासिनी, कामाख्या देवी अादि प्राचीन मंदिरों में पिंड या पिंडियाँ ही विराजमान हैं।
परम शक्ति अमूर्त ऊर्जा है किसी प्रसूतिका गृह में उसका जन्म नहीं होता, किसी श्मशान घाट में उसका दाह भी नहीं किया जा सकता।
थर्मोडायनामिक्स के अनुसार इनर्जी कैन नीदर बी क्रिएटेड नॉर बी डिस्ट्रायड, कैन ओनली बी ट्रांसफार्म्ड।
अर्थात ऊर्जा का निर्माण या विनाश नहीं केवल रूपांतरण संभव है।
ईश्वर तो परम ऊर्जा है, उसकी जयंती मनाएँ तो पुण्यतिथि भी मनानी होगी।
निराकार के साकार रूप की कल्पना अबोध बालकों को अनुभूति कराने हेतु उचित है किंतु मात्र वहीं तक सीमित रह जाना कितना उचित है?
माँ के करोड़ों बच्चे महामीरी में रोजगार गँवा चुके हैं, अर्थ व्यवस्था के असंतुलन से उत्पादन का संकट है, सरकारें जनता से सहायता हेतु अपीलें कर रही हैं और उन्हें चुननेवाली जनता का अरबों-खरबों रुपया प्रदर्शन के नाम पर स्वाहा किया जा रहा है।
एक समय प्रधान मंत्री को अनुरोध पर सोमवार अपराह्न भोजन छोड़कर जनता जनार्दन ने सहयोग किया था। आज अनावश्यक साज-सज्जा छोड़ने के लिए भी तैयार न होना कितना उचित है?
क्या सादगीपूर्ण सात्विक पूजन कर अपार राशि से असंख्य वंचितों को सहारा दिया जाना बेहतर न होगा?
संतानों का घर-गृहस्थी नष्ट होते देखकर माँ स्वर्णमंडित होकर प्रसन्न होंगी या रुष्ट?
दुर्गा सप्तशती में महामारी को भी भगवती कहा गया है। रक्तबीज की तरह कोरोना भी अपने अंश से ही बढ़ता है। रक्तबीज तभी मारा जा सका जब रक्त बिंदु का संपर्क समाप्त हो गया। रक्त बिंदु और भूमि (सतह) के बीच सोशल कॉन्टैक्ट तोड़ा था मैया ने। आज बेटों की बारी है। कोरोना वायरस और हवा, मानवांग या स्थान के बीच सोशल कॉन्टैक्ट तोड़कर कोरोना को मार दें। यह न कर कोरोना के प्रसार में सहायक जन देशद्रोही ही नहीं मानव द्रोही भी हैं। उनके साथ कानून वही करे जो माँ ने शुंभ-निशुंभ के साथ किया। कोरोना को मानव बम बनाने की सोच को जड़-मूल से ही मिटाना होगा।
२-४-२०२०
*
जप ले मम हनुमान: गौतम बुद्ध नगर निवासी हनुमद्भक्त रीता सिवानी द्वारा रचित ४० भक्ति प्रधान दोहों का नित्य पाठ करने योग्य संग्रह। आरंभ में शुभ कामना ९ दोहों के रूप में
जय गणेश विघ्नेश्वर, ऋद्धि-सिद्धि के नाथ।
कर्मदेव श्री चित्रगुप्त, रखिए सिर पर हाथ।।
सिया राम सह पवनसुत, वंदन कर स्वीकार।
करें कृपा संजीव हो, मम मन तव आगार।।
रीता मन-घट भर प्रभु, कृपा सलिल से नित्य।
विधि-हरि-हर हर विधि करें, हम पर कृपा अनित्य।।
प्रिय रीता दोहा रचे, प्रभु का कर गुणगान।
पवन-अंजनी सुत सहित, करें अभय मतिमान।।
सरस-सहज दोहे सभी, भक्ति-भाव भरपूर।
पढ़-सुन हर दिन गाइए, प्रभु हों सदय जरूर।।
हनुमतवत नि:स्वार्थ हों, काम करें निष्काम।
टेरें जब 'आ राम' हम, बैठें मन आ राम।।
प्रभु रीता-मनकामना, करिए पूर्ण तुरंत।
कीर्ति आपकी व्यापती, पल-पल दिशा-दिगंत।।
सफल साधना कर रहे, मन्वन्तर तक नाम।
तुहिना सम जीवन जिएँ, निर्मल अरु अभिराम।।
शब्द-शब्द 'जय हनु' कहे, दोहा-दोहा राम।
सीता सी लय साथ हो, जय प्रभु पूरनकाम।।
***
रीता उवाच:
निश्छल मन से जो जपे, जय जय जय हनुमान।
कृपा करें उन पर सदा, हनुमत कृपानिधान।।
लंकापति का तोड़कर, लंका में अभिमान।
सीता माता का पता, ले आए हनुमान।।
तोड़े रावण-भीम से, बलियों के अभिमान।
हनुमत जैसा कौन है, इस जग में बलवान।।
ग्यारहवें अवतार हैं, शंकर के हनुमान।
मद में रावण कह गया, उनको कपि नादान।।
कहे सुने हनुमत-कथा, मम से- जो इंसान।
उस पर करते हैं कृपा, जग के कृपानिधान।।
***
मुक्तक
*
सिर्फ पानी नहीं आँसू, हर्ष भी हैं दर्द भी।
बहाती नारी न केवल, हैं बनाते मर्द भी।।
गर प्रवाहित हों नहीं तो हृदय ही फट जाएगा-
हों गुलाबी-लाल तो होते कभी ये जर्द भी।।
***
मुक्तिका
*
अभावों का सूर्य, मौसम लापता बरसात का।
प्रभातों पर लगा पहरा अंधकारी रात का।।
वास्तव में श्री लिए जो वे न रह पाए सुबोध
समय जाने कब कहेगा दर्द इस संत्रास का।।
जिक्र नोटा का हुआ तो नोटवाले डर गए
संकुचित मजबूत सीने विषय है परिहास का।।
लोकतंत्री निजामत का राजसी देखो मिजाज
हार से डर कर बदलता हाय डेरा खास का।।
सांत्वना है 'सलिल' इतनी लोग सच सुन सनझते
मुखौटा हर एक नेता है चुनावी मास का।।
२-४-२०१९
***
दोहा लेखन विधान
१. दोहा द्विपदिक छंद है। दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं। हर पद में दो चरण होते हैं।
२. दोहा मुक्तक छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूर्ण हो जाना चाहिए।
३. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
४. तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है।
६. सम चरणों के अंत में गुरु लघु मात्राएँ आवश्यक हैं।
५. विषम चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु हो तो लय भंग होने की संभावना कम (समाप्त नहीं) हो जाती है।
८. हिंदी दोहाकार हिंदी व्याकरण नियमों का पालन करें। दोहा में वर्णिक छंद की तरह लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट नहीं होती।
७. हिंदी में खाय, मुस्काय, आत, भात, आब, जाब, डारि, मुस्कानि, हओ, भओ जैसे देशज शब्द-रूपों का उपयोग न करें। बोलियों में दोहा रचना करते समय उस बोली का शुद्ध रूप व्यवहार में लाएँ।
९. श्रेष्ठ दोहे में लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता (मर्मबेधकता), आलंकारिकता, स्पष्टता, पूर्णता तथा सरसता होना चाहिए।
१०. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग यथा संभव न करें। औ' वर्जित 'अरु' स्वीकार्य। 'न' सही, 'ना' गलत। 'इक' गलत।
११. दोहे में कोई भी शब्द अनावश्यक न हो। शब्द-चयन ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा अधूरा सा लगे।
१३. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें।
१२. दोहे में कारक (ने, को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि) का प्रयोग कम से कम हो।
१४. दोहा सम तुकान्ती छंद है। सम चरण के अंत में समान तुक आवश्यक है।
२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं।
१५. दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता।
*
मात्रा गणना नियम
१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।
४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि।
३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।
५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, प्रिया = १२ =३ आदि।
६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि।
९. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५आदि।
१०. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि।
११. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है। इस सारस्वत अनुष्ठान में आपका स्वागत है। कोई शंका होने पर संपर्क करें।
विमर्श,
'कत्अ'
*
'कत्अ' उर्दू काव्य का एक हिस्सा है। 'कत्अ' का शब्दकोशीय अर्थ 'टुकड़ा या भूखंड' है। 'उर्दू नज़्म की एक किस्म जिसमें गज़ल की तरह काफ़िए की पाबन्दी होती है और जिसमें कोई एक बात कही जाती है'१ कत्अ है। 'कत्अ' को सामान्यत: 'कता' कह या लिख लिया जाता है।
'प्राय: गज़लों में २-३ या इससे अधिक अशार ऐसे होते थे जो भाव की दृष्टि से एक सुगठित इकाई होते थे, इन्हीं को (गजल का) कता कहते थे।'... 'अब गजल से स्वतंत्र रूप से भी कते कहे जाते हैं। आजकल के कते चार मिसरों के होते हैं (वैसे यह अनिवार्य नहीं है) जिसमें दूसरे और चौथे मिसरे हमकाफिया - हमरदीफ़ होते हैं।२
'कत्अ' के अर्थ 'काटा हुआ' है। यह रूप की दृष्टि से गजल और कसीदे से मिलता-जुलता है। यह गजल या कसीदे से काटा हुआ प्रतीत होता है। इसमें काफिये (तुक) का क्रम वही होता है जो गजल का होता है। कम से कम दो शे'र होते हैं, ज्यादा पर कोइ प्रतिबन्ध नहीं है। इसमें प्रत्येक शे'र का दूसरा मिस्रा हम काफिया (समान तुक) होता है। विषय की दृष्टि से सभी शे'रों का एक दूसरे से संबंध होना जरूरी होता है। इसमें हर प्रकार के विषय प्रस्तुत किये जा सकते हैं।३
ग़ालिब की मशहूर गजल 'दिले नादां तुझे हुआ क्या है' के निम्न चार शे'र 'कता' का उदाहरण है-
जबकि तुम बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ खुदा क्या है।
ये परि चेहरा लोग कैसे हैं
गम्ज़-ओ-इश्व-ओ-अदा क्या है।
शिकने-जुल्फ़े-अंबरी क्यों है
निग्हे-चश्मे-सुरमा सा क्या है।
सब्ज़-ओ-गुल कहाँ से आये है
अब्र क्या चीज़ है, हवा क्या है।
फैज़ का एक कता देखें-
हम खस्तातनों से मुहत्सिबो, क्या माल-मनाल की पूछते हो।
इक उम्र में जो कुछ भर पाया, सब सामने लाये देते हैं
दमन में है मुश्ते-खाके-जिगर, सागर एन है कहने-हसरते-मै
लो हमने दामन झाड़ दिया, लो जाम उलटाए देते हैं
यह बिलकुल स्पष्ट है कि कता और मुक्तक समानार्थी नहीं हैं।
***
सन्दर्भ- १. उर्दू हिंदी शब्दकोष, सं. मु. मुस्तफा खां 'मद्दाह', पृष्ठ ९५, २. उर्दू कविता और छन्दशास्त्र, नरेश नदीम पृष्ठ १६, ३.उर्दू काव्य शास्त्र में काव्य का स्वरुप, डॉ. रामदास 'नादार', पृष्ठ ८५-८६, ४.
***
मुक्तिका
*
कद छोटा परछाईं बड़ी है.
कैसी मुश्किल आई घड़ी है.
*
चोर कर रहे पहरेदारी
सच में सच रुसवाई बड़ी है..
*
बैठी कोष सम्हाले साली
खाली हाथों माई खड़ी है..
*
खुद पर खर्च रहे हैं लाखों
भिक्षुक हेतु न पाई पड़ी है..
*
'सलिल' सांस-सरहद पर चुप्पी
मौत शीश पर आई-अड़ी है..
२-४-२०१७
***
हाइकु के रंग भोजपुरी के संग '
*
आपन त्रुटि
दोसरा माथे मढ़
जीव ना छूटी..
*
बिना बात के
माथा गरमाइल
केतना फीका?.
*
फनफनात
मेहरारू, मरद
हिनहिनात..
*
बांझो स्त्री के
दिल में ममता के
अमृत-धार..
*
धूप-छाँव बा
नजर के असर
छाँव-धूप बा..
*
तन एहर
प्यार-तकरार में
मन ओहर..
*
झूठ न होला
कवनो अनुभव
बोल अबोला..
*
सबुर दाढे
मेवा फरेला पर
कउनो हद?.
*
घर फूँक के
तमाशा देखल
समझदार?.
२-४-२०१०

***




रविवार, 25 फ़रवरी 2024

राम किंकर, मंदाकिनी, राम, सीता, हनुमान,

स्मरण युग तुलसी राम किंकर उपाध्याय
*
३.३.२०२४ 
संचालक- सरला वर्मा, भोपाल,  सरस्वती वंदना/राम भजन- विभा तिवारी। 
वक्ता - कृष्ण कान्त चतुर्वेदी, डॉ. योगेंद्र तिवारी, इंदिरा गुप्ता- संस्मरण। 
संत अनगिनत हुए पर, किंकर सबसे भिन्न। 
सिया-राम हनुमान प्रिय, शिव से रहे अभिन्न।।
*
मंगलप्रद शारद शिवा, शिव गणपति हनुमान। 
निर्गुण हरि होता सगुण, राम-श्याम गुणवान॥ 
*  
भक्ति करें भगवान की, मंगलप्रद अनुकूल। 
बिन माँगे सब कुछ मिले, माँगें माँग न शूल।। 
*
श्री मुख में हनुमत बसे, किंकर  जी हैं यंत्र। 
राम भक्ति निष्काम कर, यही साधना मंत्र।। 
*
किंकर जी का चित्र रख, करिए पूजन नित्य।
सियाराम-हनुमत प्रभु, प्रगटें यह है सत्य।। 
*
राम कथा अनुपम कही, दृष्टि नवीन  

***
२५.२.२०२४ 
संचालक- सरला वर्मा, भोपाल, शुभाशीष- पूज्य मंदाकिनी दीदी अयोध्या    
वक्ता - डॉ. शिप्रा सेन, डॉ. दीपमाला, डॉ. मोनिका वर्मा, पवन सेठी.   
*
मिलते हैं जगदीश यदि, मन में हो विश्वास
सिया-राम-जय गुंजाती, जीवन की हर श्वास
*
जहाँ विनय विवेक रहे, रहें सदय हनुमान
राम-राम किंकर तहाँ, वर दें; कर गुणगान
*
आस लखन शत्रुघ्न फल, भरत विनम्र प्रयास
पूर्ण समर्पण पवनसुत, दशकंधर संत्रास
*
प्रगटे तुलसी दास ही, करने भक्ति प्रसार 
कहे राम किंकर जगत, राम नाम ही सार 
राम भक्ति मंदाकिनी, जो करता जल-पान 
भव सागर से पार हो, महामूढ़ मतिवान 
*
शिप्रा भक्ति प्रवाह में, जो सकता अवगाह 
भव बाधा से मुक्त हो, मिलता पुण्य अथाह 
*
सिया-राम जप नित्य प्रति, दें दर्शन हनुमान
पाप विमोचन हो तुरत, राम नाम विज्ञान 
भक्ति दीप माला करे, मोह तिमिर का अंत 
भजे राम-हनुमान नित, माँ हो जा रे संत 
*
मौन मोनिका ध्यान में, प्रभु छवि देखे मग्न 
सिया-राम गुणगान में, मन रह सदा निमग्न 
*
अग्नि राम का नाम है, लखन गगन -विस्तार  
भरत धरा शत्रुघ्न नभ, हनुमत सलिल अपार 
*
'शिव नायक' श्रद्धा अडिग, 'धनेसरा' विश्वास 
भक्ति 'राम किंकर' हरें, मानव मन का त्रास  
*
मिले अखंडानंद भज, सत्-चित्-आनंद नित्य 
पा-दे परमानंद हँस, सिया-राम ही सत्य
***

शनिवार, 26 मार्च 2022

रामाधीन पाताल

यहां पर है रामायणकालीन 'पाताल लोक'
 प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथों की पौराणिक कथाओं में एक पाताल लोक का जिक्र बार-बार मिलता है, लेकिन सवाल उठता था कि क्या पाताल लोक पूरी तरह से काल्पनिक है या इसका को अस्तित्व भी है? रामायण की कथा के मुताबिक पवनपुत्र हनुमान पाताल लोक तक पहुंचे थे। भगवान राम के सबसे बड़े भक्त हनुमान ने अपने ईष्ट देव को अहिरावण के चंगुल से बचाने के लिए एक सुरंग से पाताल लोक पहुंचे थे।
 इस कथा के मुताबिक पाताल लोक ठीक धरती के नीचे है। वहां तक पहुंचने के लिए 70 हजार योजन की गहराई पर जाना पड़ता है। अगर आज के वक्त में हम अपने देश में कहीं सुरंग खोदना चाहें तो ये सुरंग अमेरिका महाद्वीप के मैक्सिको, ब्राजील और होंडुरास जैसे देशों तक पहुंचेगी। हाल ही में वैज्ञानिकों ने मध्य अमेरिका महाद्वीप के होंडुरास में सियूदाद ब्लांका नाम के एक गुम प्राचीन शहर की खोज की है। वैज्ञानिकों ने इस शहर को आधुनिक लाइडार (LIDER) तकनीक से खोज निकाला है।
 इस शहर को बहुत से जानकार वह पाताल लोक मान रहे हैं जहां राम भक्त हनुमान पहुंचे थे। दरअसल इस विश्वास की एक पुख्ता वजहें हैं। पहली, अगर भारत या श्रीलंका से कोई सुरंग खोदी जाएगी तो वह सीधे यहीं निकलेगी। दूसरी वजह यह है कि वक्त की हजारों साल पुरानी परतों में दफन सियुदाद ब्लांका में ठीक राम भक्त हनुमान के जैसे वानर देवता की मूर्तियां मिली हैं।
 इतिहासकारों का कहना है कि प्राचीन शहर सियुदाद ब्लांका के लोग एक विशालकाय वानर देवता की मूर्ति की पूजा करते थे। लिहाजा यह संभावना तलाशी जा रही है कि कहीं हजारों साल प्राचीन सियूदाद ब्लांका का ही तो रामायण में जिक्र पाताल पुरी के तौर पर नहीं है। पूर्वोत्तर होंडुरास के घने वर्षा जंगलों के बीच मस्कीटिया नाम के इलाके में हजारों साल पहले एक गुप्त शहर सियूदाद ब्लांका था। यह भी कहा जाता है कि हजारों साल पहले इस प्राचीन शहर में एक फलती-फूलती सभ्यता सांस लेती थी, जो अचानक ही वक्त की गहराइयों में गुम हो गई।
 अब तक की खुदाई में इस शहर के ऐसे कई अवशेष मिले हैं जो इशारा करते हैं कि सियूदाद के निवासी वानर देवता की पूजा करते थे। यहां सियूदाद के वानर देवता की घुटनों के बल बैठे मूर्ति को देखते ही राम भक्त हनुमान की याद आ जाती है।
 घुटनों पर बैठे बजरंग बली की मूर्ति वाले मंदिर आपको हिंदुस्तान में जगह-जगह मिल जाएंगे। हनुमान जी के एक हाथ में उनका जाना-पहचाना हथियार गदा भी रहता है। दिलचस्प बात ये है कि प्राचीन शहर से मिली वानर-देवता की मूर्ति के हाथ में भी गदा जैसा हथियार नजर आता है।
मध्य अमेरिका के एक मुल्क में प्राचीन शहर की खोज के साथ सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि रामायण की कथा में ऐसे सूत्र बिखरे पड़े हैं जो कहते हैं कि भारत या श्रीलंका की जमीन के ठीक नीचे वह लोग रहते हैं जिसे पाताल पुरी कहा जाता था। पाताल पुरी का जिक्र रामायण के उस अध्याय में आता है, जब मायावी अहिरावण राम और लक्ष्मण का हरण कर उन्हें अपने माया लोक पाताल पुरी ले जाता है।
 रामायण की कथा के अनुसार हनुमान जी को अहिरावण तक पहुंचने के लिए पातालपुरी के रक्षक मकरध्वज को परास्त करना पड़ा था जो ब्रह्मचारी हनुमान का ही पुत्र था। दरअसल, मकरध्वज एक मत्स्यकन्या से उत्पन्न हुए थे, जो लंकादहन के बाद समुद्र में आग बुझाते हनुमान जी के पसीना गिर जाने से गर्भवती हुई थी। रामकथा के मुताबिक अहिरावण वध के बाद भगवान राम ने वानर रूप वाले मकरध्वज को ही पातालपुरी का राजा बना दिया था, जिसे पाताल पुरी के लोग पूजने लगे थे।
यहां पर है रामायणकालीन 'पाताल लोक'
होंडुरास के गुप्त प्राचीन शहर के बारे में सबसे पहले ध्यान दिलाने वाले अमेरिकी खोजी थियोडोर मोर्डे ने दावा किया था कि स्थानीय लोगों ने उन्हें बताया था कि वहां के प्राचीन लोग वानर देवता की ही पूजा करते थे। उस वानर देवता की कहानी काफी हद तक मकरध्वज की कथा से मिलती-जुलती है। हालांकि अभी तक प्राचीन शहर सियूदाद ब्लांका और रामकथा में कोई सीधा रिश्ता नहीं मिला है।
लेकिन सुदूर घने वर्षा वनों में जमीन में दफन एक प्राचीन शहर अपने इतिहास के साथ सांस ले रहा है ये शायद दुनिया कभी नहीं जा पाती अगर अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम ने उसे तलाशने के लिए क्रांतिकारी तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया होता। LIDAR के नाम से जानी जाने वाली तकनीक ने जमीन के नीचे की 3-D मैपिंग से कैसे प्राचीन शहर को खोज निकाला। मध्य अमेरिकी देश होंडुरास में वानर देवता वाले प्राचीन शहर की खोज बरसों पुरानी है। होंडूरास में उस प्राचीन शहर की किवदंती सदियों से सुनाई जाती हैं जहां बजरंग बली जैसे वानर देवता की पूजा की जाती थी। ये कहानियां होंडूरास पर राज करने वाले पश्चिमी लोगों तक भी पहुंची।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद एक अमेरिकी पायलट ने होंडुरास के जंगलों में कुछ अवशेष देखने की बात की, लेकिन इसके बारे में पहली पुख्ता जानकारी अमेरिकी खोजकर्ता थियोडोर मोर्डे ने 1940 में दी। एक अमेरिकी मैगजीन में उसने लिखा कि उस प्राचीन शहर में वानर देवता की पूजा होती थी, लेकिन उसने शहर की जगह का खुलासा नहीं किया। बाद में रहस्यमय हालात में थियोडोर की मौत हो जाने से प्राचीन शहर की खोज अधूरी रह गई।
इसके करीब 70 साल बाद अब होंडुरास के घने जंगलों के बीच मस्कीटिया नाम के इलाके में प्राचीन शहर के निशान मिलने शुरू हुए हैं जो लाइडार तकनीक से संभव हुआ। अमेरिका के ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी और नेशनल सेंटर फॉर एयरबोर्न लेजर मैपिंग ने होंडुरास के जंगलों के ऊपर आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से प्राचीन शहर के निशान को खोज निकाला है।
लाइडार तकनीक की मदद से ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने होंडुरास के जंगलों के ऊपर से उड़ते हुए अरबों लेजर तरंगें जमीन पर फेंकीं। इससे जंगल के नीचे की जमीन का 3-डी डिजिटल नक्शा तैयार हो गया। थ्री-डी नक्शे से जो आंकड़े मिले उससे जमीन के नीचे प्राचीन शहर की मौजूदगी का पता चल गया। वैज्ञानिकों ने पाया की जंगलों की जमीन की गहराइयों में मानव निर्मित कई चीजें मौजूद हैं।
हालांकि लाइडार तकनीक से जंगल के नीचे प्राचीन शहर होने के निशान मिल गए हैं, लेकिन ये निशान किवदंतियों में जिक्र होने वाला सियूदाद ब्लांका के ही हैं, ये शायद कभी पता ना चले।
दरअसल, पर्यावरण के प्रति सजग होंडुरास जंगलों के बीच खुदाई की इजाजत नहीं देता है, ऐसे में सिर्फ ये अनुमान ही लगाया जा सकता है कि जंगलों में एक प्राचीन शहर दफन है, इस इलाके में बजरंगबली जैसी वानर देवता की कुछ मूर्तियां जरूर मिली हैं, जिससे ये कयास लगाए जाने लगे हैं कि कहीं किवदंतियों का ये शहर रामायण में जिक्र पाताल लोक ही तो नहीं है।
वर्ष 1940 में हुई इस जानकारी की पुष्टि एसएमएस (स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज), लखनऊ के निदेशक व वैदिक विज्ञान केन्द्र के प्रभारी प्रो. डॉ. भरत राज सिंह ने की है। उन्होंने बताया कि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद एक अमेरिकी पायलट ने होंडुरास के जंगलों में कुछ अवशेष देखे थे। उसकी पहली जानकारी अमेरिकी खोजकर्ता थियोडोर मोर्ड ने 1940 में दी थी। 
3-डी नक्शे में जमीन के नीचे गहराइयों में मानव निर्मित कई वस्तुएं दिखाई दीं। इसमें हाथ में गदा जैसा हथियार लिए घुटनों के बल बैठी हुई है वानर मूर्ति भी दिखी है। हालांकि होंडुरास के जंगल की खुदाई पर प्रतिबंध के कारण इस स्थान की वास्तविक स्थिति का पता लग पाना मुश्किल है।
अमेरिकी इतिहासकार भी मानते हैं कि पूर्वोत्तर होंडुरास के घने जंगलों के बीच मस्कीटिया नाम के इलाके में हजारों साल पहले एक गुप्त शहर सियूदाद ब्लांका का अस्तित्व था। वहां के लोग एक विशालकाय वानर मूर्ति की पूजा करते थे। प्रो. भरत ने बताया कि बंगाली रामायण में पाताल लोक की दूरी 1000 योजन बताई गई है, जो लगभग 12,800 किलोमीटर है।
यह दूरी सुरंग के माध्यम से भारत व श्रीलंका की दूरी के बराबर है। रामायण में वर्णन है कि अहिरावण के चंगुल से भगवान राम व लक्ष्मण को छुड़ाने के लिए बजरंगबली को पातालपुरी के रक्षक मकरध्वज को परास्त करना पड़ा था। मकरध्वज बजरंगबली के ही पुत्र थे, लिहाजा उनका स्वरूप बजरगंबली जैसा ही था। अहिरावण के वध के बाद भगवान राम ने मकरध्वज को ही पातालपुरी का राजा बना दिया था।

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

हनुमान

पुरोवाक 
जप ले मन हनुमान: 

















गौतम बुद्ध नगर निवासी हनुमद्भक्त रीता सिवानी द्वारा रचित ४० भक्ति प्रधान दोहों का नित्य पाठ करने योग्य संग्रह। आरंभ में शुभ कामना ९ दोहों के रूप में
जय गणेश विघ्नेश्वर, ऋद्धि-सिद्धि के नाथ।
कर्मदेव श्री चित्रगुप्त, रखिए सिर पर हाथ।।
सिया राम सह पवनसुत, वंदन कर स्वीकार।
करें कृपा संजीव हो, मम मन तव आगार।।
रीता मन-घट भर प्रभु, कृपा सलिल से नित्य।
विधि-हरि-हर हर विधि करें, हम पर कृपा अनित्य।।
प्रिय रीता दोहा रचे, प्रभु का कर गुणगान।
पवन-अंजनी सुत सहित, करें अभय मतिमान।।
सरस-सहज दोहे सभी, भक्ति-भाव भरपूर।
पढ़-सुन हर दिन गाइए, प्रभु हों सदय जरूर।।
हनुमतवत नि:स्वार्थ हों, काम करें निष्काम।
टेरें जब 'आ राम' हम, बैठें मन आ राम।।
प्रभु रीता-मनकामना, करिए पूर्ण तुरंत।
कीर्ति आपकी व्यापती, पल-पल दिशा-दिगंत।।
सफल साधना कर रहे, मन्वन्तर तक नाम।
तुहिना सम जीवन जिएँ, निर्मल अरु अभिराम।।
शब्द-शब्द 'जय हनु' कहे, दोहा-दोहा राम।
सीता सी लय साथ हो, जय प्रभु पूरनकाम।।
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रीता उवाच:
निश्छल मन से जो जपे, जय जय जय हनुमान।
कृपा करें उन पर सदा, हनुमत कृपानिधान।।
लंकापति का तोड़कर, लंका में अभिमान।
सीता माता का पता, ले आए हनुमान।।
तोड़े रावण-भीम से, बलियों के अभिमान।
हनुमत जैसा कौन है, इस जग में बलवान।।
ग्यारहवें अवतार हैं, शंकर के हनुमान।
मद में रावण कह गया, उनको कपि नादान।।
कहे सुने हनुमत-कथा, मम से- जो इंसान।
उस पर करते हैं कृपा, जग के कृपानिधान।।
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