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शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

navgeet

नवगीत
दूर कर दे भ्रांति
*
दूर कर दे भ्रांति
आ संक्राति!
हम आव्हान करते।
तले दीपक के
अँधेरा हो भले
हम किरण वरते।
*
रात में तम
हो नहीं तो
किस तरह आये सवेरा?
आस पंछी ने
उषा का
थाम कर कर नित्य टेरा।
प्रयासों की
हुलासों से
कर रहां कुड़माई मौसम-
नाचता दिनकर
दुपहरी संग
थककर छिपा कोहरा।
संक्रमण से जूझ
लायें शांति
जन अनुमान करते।
*
घाट-तट पर
नाव हो या नहीं
लेकिन धार तो हो।
शीश पर हो छाँव
कंधों पर
टिका कुछ भार तो हो।
इशारों से
पुकारों से
टेर सँकुचे ऋतु विकल हो-
उमंगों की
पतंगें उड़
कर सकें आनंद दोहरा।
लोहड़ी, पोंगल, बिहू
जन-क्रांति का
जय-गान करते।
*
ओट से ही वोट
मारें चोट    
बाहर खोट कर दें।
देश का खाता
न रीते
तिजोरी में नोट भर दें।
पसीने के
नगीने से
हिंद-हिंदी जगजयी हो-
विधाता भी
जन्म ले
खुशियाँ लगाती रहें फेरा।
आम जन के
काम आकर
सेठ-नेता काश तरते।
१२-१-२०१७
***
बाल नवगीत:
संजीव
*
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
*
धरती माँ की मीठी लोरी
सुनकर मस्ती खूब करी
बहिन उषा को गिरा दिया
तो पिता गगन से डाँट पड़ी
धूप बुआ ने लपक चुपाया
पछुआ लाई
बस्ता-फूल
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
*
जय गणेश कह पाटी पूजन
पकड़ कलम लिख ओम
पैर पटक रो मत, मुस्काकर
देख रहे भू-व्योम
कन्नागोटी, पिट्टू, कैरम
मैडम पूर्णिमा के सँग-सँग
हँसकर
झूला झूल
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
*
चिड़िया साथ फुदकती जाती
कोयल से शिशु गीत सुनो
'इकनी एक' सिखाता तोता
'अ' अनार का याद रखो
संध्या पतंग उड़ा, तिल-लड़ुआ
खा पर सबक
न भूल
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
***
मंगलवार, 6 जनवरी 2015
नवगीत:
*. 
काल है संक्रांति का
तुम मत थको सूरज!
.
दक्षिणायन की हवाएँ
कँपाती हैं हाड़
जड़ गँवा, जड़ युवा पीढ़ी
काटती है झाड़
प्रथा की चूनर न भाती
फेंकती है फाड़
स्वभाषा को भूल, इंग्लिश
से लड़ाती लाड़
टाल दो दिग्भ्रान्ति को
तुम मत रुको सूरज!
*
उत्तरायण की फिज़ाएँ
बनें शुभ की बाड़
दिन-ब-दिन बढ़ता रहे सुख
सत्य की हो आड़
जनविरोधी सियासत को
कब्र में दो गाड़
झाँक दो आतंक-दहशत
तुम जलाकर भाड़
ढाल हो चिर शांति का
तुम मत झुको सूरज!
*** 
नवगीत:
आओ भी सूरज
*
आओ भी सूरज!
छट गये हैं फूट के बादल
पतंगें एकता की मिल उड़ाओ
गाओ भी सूरज!
*
करधन दिप-दिप दमक रही है
पायल छन-छन छनक रही है
नच रहे हैं झूमकर मादल
बुराई हर अलावों में जलाओ
आओ भी सूरज!
*
खिचड़ी तिल-गुड़वाले लडुआ
पिज्जा तजकर खाओ बबुआ
छोड़ बोतल उठा लो छागल
पड़ोसी को खुशी में साथ पाओ 
आओ भी सूरज!
*
रविवार, 4 जनवरी 2015
****
नवगीत:
उगना नित
*
उगना नित
हँस सूरज

धरती पर रखना पग
जलना नित, बुझना मत
तजना मत, अपना मग
छिपना मत, छलना मत
चलना नित
उठ सूरज

लिखना मत खत सूरज
दिखना मत बुत सूरज
हरना सब तम सूरज
करना कम गम सूरज
मलना मत
कर सूरज

कलियों पर तुहिना सम
कुसुमों पर गहना बन
सजना तुम सजना सम
फिरना तुम भँवरा बन
खिलना फिर
ढल सूरज

***
(छंदविधान: मात्रिक करुणाकर छंद, वर्णिक सुप्रतिष्ठा जातीय नायक छंद)
२.१.२०१५
नवगीत:
संक्रांति काल है
.
संक्रांति काल है
जगो, उठो
.
प्रतिनिधि होकर जन से दूर
आँखें रहते भी हो सूर
संसद हो चौपालों पर
राजनीति तज दे तंदूर
संभ्रांति टाल दो
जगो, उठो
.
खरपतवार न शेष रहे
कचरा कहीं न लेश रहे
तज सिद्धांत, बना सरकार
कुर्सी पा लो, ऐश रहे
झुका भाल हो
जगो, उठो
.
दोनों हाथ लिये लड्डू
रेवड़ी छिपा रहे नेता
मुँह में लैया-गज़क भरे
जन-गण को ठेंगा देता
डूबा ताल दो
जगो, उठो
.
सूरज को ढाँके बादल
सीमा पर सैनिक घायल
नाग-सांप फिर साथ हुए
गुँजा रहे बंसी-मादल
छिपा माल दो
जगो, उठो
.
नवता भरकर गीतों में
जन-आक्रोश पलीतों में
हाथ सेंक ले कवि तू भी
जाए आज अतीतों में
खींच खाल दो
जगो, उठो
*****

गुरुवार, 15 जनवरी 2015

lohadi par: manjul bhatnagar, sanjiv

अभिनव प्रयोग:
मंजुल भटनागर, संजीव, गीत, लोक, साहित्य, पद्य, लोहड़ी,
नमस्कार मित्रों
राय अब्दुल्ला खान भट्टी राजपूत की यह पंक्तियाँ जो हम सब बरसों से मकर संक्रांति के अवसर पर सुनते आयें हैं। ----
सुन्दर मुंदरिये - होय !

तेरा कौन विचारा - होय !
दुल्ला भट्टी वाला - होय !

दुल्ले धी व्याई - होय !
सेर शक्कर पाई - होय !

कुड़ी दा लाल पटाका - होय !
कुड़ी दा सल्लू पाटा - होय !

सल्लू कौन समेटे - होय !

चाचे चूरी कुट्टी - होय !
ओ जिमीदारां लुट्टी - होय !

जिमीदार सुधाए - होय !
गिन गिन पौले आए - होय !

इक पौला रै गया - होय !
सिपाई फड़ के लै गया - होय !

सिपाई ने मारी इट्ट - होय !
भांवे रो ते भांवे पिट्ट - होय !
(पौला=झूठा)
*
मंजुल जी! द्वारा पंक्तियों को पढ़कर उतरी पंक्तियाँ इस लोहड़ी पर उन्हें और आप सबको उपहारस्वरूप भेंट:
सुन्दरिये मुंदरिये, होय!
सब मिल कविता करिए, होय

कौन किसी का प्यारा, होय
स्वार्थ सभी का न्यारा, होय

जनता का रखवाला, होय
नेता तभी दुलारा, होय

झूठी लड़ें लड़ाई, होय
भीतर करें मिताई, होय

पाकी हैं नापाकी, होय
सेना अपनी बाँकी, होय

मत कर ताका-ताकी, होय
कर ले रोका-राकी, होय

झाड़ू माँगे माफ़ी, होय
पंजा है नाकाफी, होय

कमल करे चालाकी, होय
जनता सबकी काकी, होय

हिंदी मैया निरभै, होय
भारत माता की जै, होय
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