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रविवार, 25 अप्रैल 2010

माँ को दोहांजलि: संजीव 'सलिल

माँ को दोहांजलि:

संजीव  'सलिल'

माँ गौ भाषा मातृभू, प्रकृति का आभार.
श्वास-श्वास मेरी ऋणी, नमन करूँ शत बार..

भूल मार तज जननि को, मनुज कर रहा पाप.
शाप बना जेवन 'सलिल', दोषी है सुत आप..

दो माओं के पूत से, पाया गीता-ज्ञान.
पाँच जननियाँ कह रहीं, सुत पा-दे वरदान..

रग-रग में जो रक्त है, मैया का उपहार.
है कृतघ्न जो भूलता, अपनी माँ का प्यार..

माँ से, का, के लिए है, 'सलिल' समूचा लोक.
मातृ-चरण बिन पायेगा, कैसे तू आलोक?

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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

गुरुवार, 14 मई 2009

:: पर्यावरण गीत :: -आचार्य संजीव'सलिल'


फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें.

नहीं गैर का, खुद का तो उपकार करें..

हरी-भरी धरती, शीतल जल हमें मिला।


नील गगन नीचे, यह जीवन-सुमन खिला॥


प्राणदायिनी पवन शुद्ध ले बड़े हुए।


गिरे-उठे, रो-हँस, लड़-मिलकर खड़े हुए॥


सबल हुए तो हरियाली को मिटा दिया.

पेड़ कटते हुए न कांपा तनिक हिया॥


मलिन किया निर्मल जल, मैल बहाया है।


धुंआ विषैला चारों तरफ उड़ाया है॥


शांति-चैन निज हर, कोलाहल-शोर भरा।


पग-पग पर फैलाया है कूड़ा-कचरा..

नियति-नटी के नयनों से जलधार बही।


नहीं पैर धरने को निर्मल जगह रही..

रुकें, विचारें और न अत्याचार करें.

फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें....

सम्हले नहीं अगर तो मिट ही जायेंगे।


शाह मिलने के पहले पिट भी जायेंगे॥


रक्षक कवच मिट रहा है ओजोन का.

तेजाबी वर्षा झेले नर कौन सा?

दूषित फिजा हो रही प्राणों की प्यासी।


हुई जिन्दगी स्वयं मौत की ज्यों दासी..

बिन पानी सब सून, खो गया है पानी।


दूषित जल ले आया, बंजर-वीरानी.

नंगे पर्वत भू ऊसर-वीरान है।


कोलाहल सुन हाय! फट रहा कान है.

पशु भी बदतर जीवन जीने विवश हुए।


मिटे जा रहे नदी, पोखरे, ताल, कुए.

लाइलाज हो रोग-पूर्व उपचार करें।


फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें...

क्या?, क्यों?, कैसे? बिगडा हमें न होश है।


शासन, न्याय, प्रशासन भी मदहोश है.

जनगण-मन को मीत जगना ही होगा।


अंधकार से सूर्य उगाना ही होगा.

पौधे लेकर गोद धरा को हरा करें।


हुई अत्यधिक देर किन्तु अब त्वरा करें..

धूम्र-रहित तकनीक सौर-ऊर्जा की है।


कृत्रिम खाद से अनुपजाऊ की माटी है.

कचरे से कम्पोस्ट बना उर्वरता दें।


वाहन-ईंधन कम कर स्वच्छ हवा हम लें.

कांच, प्लास्टिक, कागज़ फिर उपयोग करें।


सदा स्वच्छ जल, भू हो वह उद्योग करें..

श्वास-आस का 'सलिल' सदा सिंगार करें।


फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें...

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