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शनिवार, 6 जून 2009

दोहे ;चन्द्रसेन 'विराट', इंदौर

दोहे ;
चन्द्रसेन 'विराट', इंदौर

जहाँ देखिये आदमी, जहाँ देखिये भीड़।
इसमें हम एकांत का कहाँ बनायें नीड़॥

दैत्य पसारे जा रहा, धीरे-धीरे पाँव।
महानगर के पेट में, समा रहे हैं गाँव॥

महानगर को लग गया, जैसे गति का रोग।
पैदल कुछ, पहियों चढ़े, भाग रहे हैं लोग॥

शहरों में जंगल छिपे, डाकू सभ्य विशुद्ध।
अंगुलिमाल अनेक हैं, एक न गौतम बुद्ध॥

धीरे-धीरे कट गए, हरे पेड़ हर ओर।
बहुमंजिला इमारतें, उग आयीं मुंह जोर॥

चले कुल्हाडी पेड़ पर, कटे मनुज की देह।
रक्त लाल से हो हरा, ऐसा उमडे नेह॥

पेड़ काटने का हुआ, साबित यों आरोप।
वर्षा भी बैरिन बनी, सूरज का भी कोप॥

बस्ती का होता यहाँ, जितना भी विस्तार।
सुरसा के मुंह की तरह, बढ़ जाता बाज़ार॥

महानगर यह गावदी!, कसकर गठरी थाम।
तुझको गठरी के सहित कर देगा नीलाम॥

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गजल : कैलाशनाथ तिवारी, इंदौर

गजल :
कैलाशनाथ तिवारी, इंदौर

सबका अपना नसीब होता है।
कौन किसका हबीब होता है?

आपको गुल नसीब होते हैं
पर हमें तो सलीब होता है।

कैसे इंसानों की ये बस्ती है,
दोस्त ही यां रकीब होता है।

जो मिटा देता मर्तबा अपना
वो ही उसके करीब होता है।

जिसका मशरफ है माँगते रहना
इंसां वो ही गरीब होता है।

सब ही दौलत कमाने आये हैं।
अब न कोई तबीब होता है.

सीख ले अपने पैरों पे चलना
कौन किसका जरीब होता है।

प्यार जिसने कभी नहीं जाना।
इंसां वो बदनसीब होता है.

गीतों-गज़लों से जिसको प्यार नहीं
वो न सच्चा अदीब होता है.
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मालवी गीत ललिता रावल, इंदौर

मालवी गीत
ललिता रावल, इन्दौर


फाग घणों पोमायो हे

कली कचनार कन्हेर चटकी,
फाग घणों पोमायो हे।

मउआ ढाक कांस फुल्या,
बसंत्या अगवानी में।

गाँव गली घर अंगणे
पवन्यो बौरायो हे।

आम्बु-जाम्बु मोर पाक्या
रात सुवाली सजई हे।

भोलू की थकान भागी,
रामी रंग पकावे हे।

गोकुल-बिरज धूम मचई ने,
इना मांडवे आयो हे।

नानो बिरजू गुलाल उडावे
साला साली साते हे।

माय सासू होली गावे
जवई ने बखाने हे।

चार दन की आनी-जानी
आनंद मनव बाटी चूटी

'ललि' असी बोरई गई
भरी जमात में गावे हे।

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निमाड़ी कविता सदाशिव कौतुक, इंदौर

निमाड़ी कविता
सदाशिव कौतुक, इंदौर

लड़ई मत लडो रे! भई
लड़ई ने केको भलो करयो?
लड़ई में अल्यांग को मरयो
चाय वल्यांग को मरयो
हात कटs कटsगा पांय नs माथो
हुई जासे लेखरु उघाडा अडात
जो बचsगा वू बी मरेल सी कम नी हुता
तलवार अनs बंदूक नस
कदी कोई को भलो करयो?
मरन वालो मरी गयो
मारन वालो जीवतs जीव मरयो।
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बाल गीत: तोता और कैरी - कृष्णवल्लभ पौराणिक, इंदौर



तोता कैरी खाता है
कुतर -कुतर रह जाता है।

टें-टें करता रहे सदा

बच्चों के मन भाता है।

नहीं अकेला आता है।

मित्र साथ में लाता है।

टहनी पर बैठा होता जब

ताजी कैरी खाता है।

झूम-झूम लहराता है

खा-खाकर इठलाता है।

छोड़ अधूरी कैरी को

दूजी पर ललचाता है।


कभी न गाना गाता है

आम वृक्ष से नाता है।

काट कभी कैरी डंठल को
वह दाता बन जाता है।

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उर्दू त्रिपदियाँ : अज़ीज़ अंसारी, इंदौर

उर्दू त्रिपदियाँ : अज़ीज़ अंसारी, इंदौर

कलियाँ जब भी उदास होती हैं
उनकी अफ्सुर्दगी मिटाने को
तितलियाँ आस-पास होती हैं।

सब को इक यार की ज़रूरत है
पेट भरता है रोटियों से मगर
रूह को प्यार की ज़रूरत है।

काम आ दूसरों को मुश्किल में
दूर हो जाएँगे अँधेरे सब
नूर भर जायेगा तेरे दिल में।

गुल को माली सम्हालने वाला
दिल की जो देखभाल करता है
वो है दुनिया को पलने वाला।

आप अपनी नज़र होते हैं
वो जो बंदे को रब से मिलवा दें
बस वही सच्चे पीर होते हैं।
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