कुल पेज दृश्य

वंदना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
वंदना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 5 जनवरी 2025

जनवरी ५, नीरज, सोरठा, वंदना, सॉनेट, हाइकु गीत, लघुकथा, नवगीत, हंसी छंद, हास्य

सलिल सृजन जनवरी ५
पूर्णिका
पौधे छोटे फूल बड़े हैं।
हिलमिल रहते, नहीं लड़े हैं।।
झुकते हैं, फिर उठ जाते हैं।
नहीं ठूँठ की तरह अड़े हैं।।
जब बेदम हों, गिर जाते हैं।
जिनमें दम सिर उठा खड़े हैं।।
माया-मोह नहीं रत्ती भर।
नहीं स्वार्थ के हेतु भिड़े हैं।।
वर्तमान में जीते हैं हँस
खोद अतीत नहीं झगड़े हैं।।
भेद-भाव से दूर सलिल सम
अगड़े या कि नहीं पिछड़े हैं।।
५.१.२०२५
०००
आधुनिक मंत्र
कराग्रे वसते चलभाषम्,
करमध्ये वाट्स एपम्।
कर मूले तु एन्ड्राइडम्,
प्रभाते तु फेसबुकम्।।
*
दोहे
किया कलेवा जा रहा, अनुज खोजने काम।
नैनों से आशीषती, बहिन न हो कुछ वाम।
*
नचा रहा है मदारी, नचे जमूरा देख।
चमक नयन में आ गई, अधर हँसी की रेख।।
*
ऐ सखि! छिप-छिप मिल रही, भैया जी से आज।
जा अम्मा को बताऊँ, तभी बनेगा काज।
*
भाई जी का मित्र है, सुंदर शिष्ट जवान।
मन करता है छिड़क दूँ, उस पर अपनी जान।।
*
करें प्रतीक्षा द्वार पर, नयन अधर मन प्राण।
झट से आ जा साँवरे!, हो-कर दे संप्राण।।
*
नयन नयन दो घाट हैं, स्नेह-सलिल रस धार।
डूब रही मँझधार में, कौन उतारे पार।।
*
लाज किवड़िया खोलकर, झाँके लज्जा मौन।
बिन बोले क्या बोलती, किससे समझे कौन।।
*
भाव विह्वल मीरा हुई, देख श्याम छवि मूक।
समझ नहीं पाता जगत, ह्रदय उठे जो हूक।।
५.१.२०२४
सोरठा सलिला
भुज भर लिया समेट, तन ने मन की बात कर।
स्वर्ण हिरन आखेट, बनने-करने आ गया।।
लिखा किसी के नाम, संधि-पत्र रूमाल ने।
फल था युद्ध-विराम, घर में घर घर कर गया।।
हिलता हाथ-रुमाल, दिखते-दिखते खो गया।
सुधियों की शत शाम, मन-उपवन में बो गया।।
पाकर लाल गुलाब, मन ही मन में मन हँसा।
आए याद जनाब, साक्षी हृदय-किताब है।।
समय-सफे पर प्रीत, आस कलम से मिल लिखी।
प्यास बन गई गीत, हास-रास सुधियाँ मुई।।
छुईमुई का दर्श, बन सुधियों का मोगरा।
छुईमुई सा स्पर्श, सिहरन याद दिला गया।।
स्मृति के वनफूल, मादक महुआ सम महक।
मनस पटल पर झूल, मन को मधुवन कर रहे।।
●●●
सोरठा सलिला
***
प्रात वंदना
अंगुलियों पर रमा, करतल पर शारद रहें।
हस्त-मूल में उमा, दें दर्शन सुरगण सभी।।
सिंधु वसन नग वक्ष, छत्र नभ पवन श्वास है।
पावक पावन चक्षु, नमन धर-गौ-भारती।।
प्राची दिनकर उषा, दिशा दस अभय कीजिए।
दुपहर संध्या निशा, दिखा कर्म पथ दीजिए।।
काम सभी निष्काम, चित्रगुप्त प्रभु! कर सकूँ।
विधि-हरि-हर हों संग, मातु नंदिनी-दक्षिणा।।
नेह नर्मदा नहा, यथायोग्य सबको नमन।
श्वास-आस सुख-त्रास, ईश-प्रसादी समर्पित।।
५-१-२०२३
***
सॉनेट
दिल हारे दिल जीत
*
मेघ उमड़ते-घुमड़ते लेते रवि भी ढाँक।
चीर कालिमा रश्मियाँ फैलतीं आलोक।
कूद नदी में नहातीं, कोइ सके न रोक।।
कौन चितेरा मनोरम छवि छिप लेता आँक?
रूप देखकर सिहरते तीर खड़े तरु मौन।
शाखाओं चढ़ निहारें पक्षी करते वाह।
करतल ध्वनि पत्ते करें, भरें बेहया आह।।
गगन-क्षितिज भी मुग्ध हैं, संयं साढ़े कौन?
लहर-लहर के हो रहे गाल गुलाबी-पीत।
गव्हर-गव्हर छिप कर करे मत्स्य निरंतर प्रीत।
भ्रमर कुमुदिनी रच रहे लिव इन की नव रीत।
तप्त उसाँसे भर रही ठिठुरनवाली शीत।।
दादुर ढोलक-थाप दे, झींगुर गाता गीत।।
दिल जीते दिल हारकर, दिल हारे दिल जीत।।
५-१-२०२२
***
हाइकु गीत
*
बोल रे हिंदी
कान में अमरित
घोल रे हिंदी
*
नहीं है भाषा
है सभ्यता पावन
डोल रे हिंदी
*
कौन हो पाए
उऋण तुझसे, दे
मोल रे हिंदी?
*
आंग्ल प्रेमी जो
तुरत देना खोल
पोल रे हिंदी
*
झूठा है नेता
कहाँ सच कितना?
तोल रे हिंदी
*
बहुत हुआ
अब न काम में हो
झोल रे हिंदी
*
सुने न अब
सब जग में पीटें
ढोल रे हिंदी
***
लघुकथा :
खिलौने
*
दिन भर कार्यालय में व्यस्त रहने के बाद घर पहुँचते ही पत्नी ने किराना न लाने का उलाहना दिया तो वह उलटे पैर बाज़ार भागा। किराना लेकर आया तो बिटिया रानी ने शिकायत की 'माँ पिकनिक नहीं जाने दे रही।' पिकनिक के नाम से ही भड़क रही श्रीमती जी को जैसे-तैसे समझाकर अनुमति दिलवाई तो मुँह लटकाए हुए बेटा दिखा। उसे बुलाकर पूछ तो पता चला कि खेल का सामान चाहिए। 'ठीक है' पहली तारीख के बाद ले लेना' कहते हुए उसने चैन की साँस ली ही थी कि पिताजी के खाँसने और माँ के कराहने की आवाज़ सुन उनके पास पहुँच गया। माँ के पैताने बैठ हाल-चाल पूछा तो पाता चला कि न तो शाम की चाय मिली है, न दवाई है। बिटिया को आवाज़ देकर चाय लाने और बेटे को दवाई लाने भेजा और जूते उतारने लगा कि जीवन बीमा एजेंट का फोन आ गया 'क़िस्त चुकाने की आखिरी तारीख निकल रही है, समय पर क़िस्त न दी तो पालिसी लेप्स हो जाएगी। अगले दिन चेक ले जाने के लिए बुलाकर वह हाथ-मुँह धोने चला गया।
आते समय एक अलमारी के कोने में पड़े हुए उस खिलौने पर दृष्टि पड़ी जिससे वह कभी खेलता था। अनायास ही उसने हाथ से उस छोटे से बल्ले को उठा लिया। ऐसा लगा गेंद-बल्ला कह रहे हैं 'तुझे ही तो बहुत जल्दी पड़ी थी बड़ा होने की। रोज ऊँचाई नापता था न? तब हम तुम्हारे खिलौने थे, तुम जैसा चाहते वैसा ही उपयोग करते थे। अब हम रह गए हैं दर्शक और तुम हो गए हो सबके हाथ के खिलोने।
***
दोहा सलिला
*
सकल सृष्टि कायस्थ है, सबसे करिए प्रेम
कंकर में शंकर बसे, करते सबकी क्षेम
*
चित्र गुप्त है शौर्य का, चित्रगुप्त-वरदान
काया स्थित अंश ही, होता जीव सुजान
*
महिमा की महिमा अमित, श्री वास्तव में खूब
वर्मा संरक्षण करे, रहे वीरता डूब
*
मित्र मनोहर हो अगर, अभय ज़िंदगी जान
अभय संग पा मनोहर, जीवन हो रस-खान
*
उग्र न होते प्रभु कभी, रहते सदा प्रशांत
सुमति न जिनमें हो तनिक, वे ही मिलें अशांत
***
कार्यशाला:
एक कुण्डलिया : कवि
तन को सहलाने लगी, मदमाती सी धूप
सरदी हंटर मारती, हवा फटकती सूप -शशि पुरवार
हवा फटकती सूप, टपकती नाक सर्द हो
हँसती ऊषा कहे, मर्द को नहीं दर्द हो
छोड़ रजाई बँधा, रहा है हिम्मत मन को
लगे चंद्र सा, सूर्य निहारे जब निज तन को - संजीव
५.१.२०१८
***
मुक्तिका
*
नेह नर्मदा बहने दे
मन को मन की कहने दे
*
बिखरे गए रिश्ते-नाते
फ़िक्र न कर चुप तहने दे
*
अधिक जोड़ना क्यों नाहक
पीर पुरानी सहने दे
*
देह सजाते उम्र कटी
'सलिल' रूह को गहने दे
*
काला धन जिसने जोड़ा
उसको थोड़ा दहने दे
*
मुक्तक-
बिखर जाओ फिजाओं में चमन को आज महकाओ
​बजा वीणा निगम-आगम ​कहें जो सत्य वह गाओ
​अनिल चेतन​ हुआ कैलाश पर ​श्री वास्तव में पा
बनो​ हीरो, तजो कटुता, मधुर मन मंजु ​हो जाओ
***
लघुकथा-
कतार
*
दूरदर्शनी बहस में नोटबन्दी के कारण लग रही लंबी कतारों में खड़े आम आदमियों के दुःख-दर्द का रोना रो रहे नेताओं के घड़ियाली आँसुओं से ऊबे एक आम आदमी ने पूछा-
'गरीबी रेखा के नीचे जी रहे आम मतदातों के अमीर जनप्रतिनिधियों जब आप कुर्सी पर होते हैं तब आम आदमी को सड़कों पर रोककर काफिले में जाते समय, मन्दिरों में विशेष द्वार से भगवान के दर्शन करते समय, रेल और विमान यात्रा के समय विशेष द्वार से प्रवेश पाते समय क्या आपको कभी आम आदमी की कतार नहीं दिखी? यदि दिखी तो अपने क्या किया? क्या आपको अपने जीवन में रुपयों की जरूरत नहीं होती? होती है तो आप में से कोई भी बैंक की कतार में क्यों नहीं दिखता?
आप ऐसा दोहरा आचरण कर आम आदमी का मजाक बनाकर आम आदमी की बात कैसे कर सकते हैं? कालाबाजारियों, तस्करियों और काला धन जुटाते व्यापारियों से बटोर चंदा उपयोग न कर पाने के कारण आप जन गण द्वारा चुनी सरकार से सहयोग न कर जनमत का अपमान करते हैं तो जनता आप के साथ क्यों जुड़े?
सकपकाए नेता को कुछ उत्तर न सूझा तो जन समूह से आवाज आई 'वहां मत बैठे रहो, हमारे दुःख से दुखी हो तो हमारा साथ दो। तुम सबको बुला रही है कतार।
५.१.२०१७
***
सलिल दोहावली -
*
जूझ रहे रण क्षेत्र में, जो उन पर आरोप
लगा रहे हम घरों से, ईश्वर करे न कोप
*
जायज है दुश्मन अगर, पैदा करता विघ्न
कैसे जायज़ मन गढ़ी, कहते हम निर्विघ्न?
*
जान दे रहे देश की, खातिर सैनिक रोज
हम सेना को दोष दे, करते घर में भोज
*
सेंध लगाना हमेशा, होता है आसान
कठिन खोजना-रोकना, सत्य लीजिये मान
*
पिटती पाकी फ़ौज के, साथ रहें वे लोग
विजयी की निंदा? लगा, हमको घातक रोग
*
सदा काम करना कठिन, सरल दिखाना दोष
संयम आवश्यक 'सलिल', व्यर्थ न करिए रोष
५.१.२०१६
***
नवगीत:
.
आओ भी सूरज!
छट गये हैं फूट के बादल
पतंगें एकता की मिल उड़ाओ
गाओ भी सूरज!
.
करधन दिप-दिप दमक रही है
पायल छन-छन छनक रही है
नच रहे हैं झूमकर मादल
बुराई हर अलावों में जलाओ
आओ भी सूरज!
.
खिचड़ी तिल-गुड़वाले लडुआ
पिज्जा तजकर खाओ बबुआ
छोड़ बोतल उठा लो छागल
पड़ोसी को खुशी में साथ पाओ
आओ भी सूरज!
५.१.२०१५
.
छंद सलिला:
हंसी छंद
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, प्रेमा, वाणी, शक्तिपूजा, सार, माला, शाला)
हंसी छंद में २ पद, ४ चरण, ४४ वर्ण तथा ७० मात्राएँ होती हैं. प्रथम-तृतीय चरण उपेन्द्रवज्रा जगण तगण जगण २ गुरु तथा द्वितीय-चतुर्थ चरण में इन्द्रवज्रा तगण तगण जगण २ गुरु मात्राएँ होती हैं.
हंसी-चरण इन्द्रवज्रा में, दूजा-चौथा हों लें मान
हो उपेन्द्रवज्रा में पहला-तीजा याद रखें श्री मान
उदाहरण:
१. न हंस-हंसी बदलें ठिकाना, जानें नहीं वे करना बहाना
न मांसभक्षी तजते डराना, मानें नहीं ठीक दया दिखाना
२. सियासती लोग न जान पाते, वादे किये जो- जनता न भूले
दिखा सके जो धरती अजाने, कोई न जाने उसको बचाना
३. हँसें न रोयें चुपचाप देखें, होता तमाशा हर रोज़ कोई
मिटा न पायें हम आपदाएँ, जीतें हमेशा हँस मुश्किलों को
---
हास्य रचना :
एक पहेली
*
लालू से लाली हँस बोली: 'बूझो एक पहेली'
लालू थे मस्ती में बोले: 'पूछो शीघ्र सहेली'
लाली बोली: 'किस पक्षी के सिर पर पैर बताओ?
अकल लगाओ, मुँह बिसूर खोपड़िया मत खुजलाओ,
बूझ सकोगे अगर मिलेगा हग-किस तुमको आज
वर्ना झाड़ू-बर्तन करना, पैर दबा पतिराज'
कोशिश कर हारे लालूजी बोले 'हल बतलाओ
शर्त करूँगा पूरी मन में तुम संदेह न लाओ'
लाली बोली: 'तुम्हें रहा है सदा अकल से बैर'
'तब ही तुमको ब्याहा' मेरी अब न रहेगी खैर'
'बकबकाओ मत, उत्तर सुनकर चलो दबाओ पैर
हर पक्षी का होता ही है देखो सिर, पर, पैर
माथा ठोंका लालू जी ने झुँझलाये, खिसियाये
पैर दबाकर लाली जी के अपने प्राण बचाये।
५.१.२०१४
***
कालजयी गीतकार नीरज के ८९ वें जन्म दिन पर काव्यांजलि:
*
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*
नवम दशक में कर प्रवेश मन-प्राण तरुण .
जग आलोकित करता शब्दित भाव अरुण..
कथ्य कलम के भूषण, बिम्ब सखा प्यारे.
गुप्त चित्त में अलंकार अनुपम न्यारे..
चित्र गुप्त देखे लेखे रचनाओं में-
अक्षर-अक्षर में मानवता का वंदन
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*
ऊर्जस्वित रचनाएँ सुन मन मगन हुआ.
ज्यों अमराई में कूकें सुन हरा सुआ..
'सलिल'-लहरियों की कलकल ध्वनि सी वाणी.
अन्तर्निहित शारदा मैया कल्याणी..
कभी न मुरझे गीतों का मादक मधुवन.
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*
गीति-काव्य की पल-पल जय-जयकार करी.
विरह-मिलन से गीतों में गुंजार भरी..
समय शिला पर हस्ताक्षर इतिहास हुए.
छन्दहीनता मरू गीतित मधुमास हुए..
महका हिंदी जगवाणी का नन्दन वन.
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*

बुधवार, 6 दिसंबर 2023

लघु कथा, गीत, मुक्तिका, ब्याहुल, सॉनेट, वंदना, नवगीत

गीत

नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।।
रश्मि रश्मि शाकुंतल सुषमा लिए सूर्य दुष्यंत सम।
नयन नयन से कहें-सुनें क्या; पूछो मौन दिगंत सम।।
पंछी गुंजाते शहनाई; लहरें गातीं मंगल गान-
वट पल्लव कर मंत्र-पाठ; आहुतियाँ देते संत सम।।
फुलबगिया में सँकुचाई सिय; अकथ कह गई राम से।
शाम मिली फिर मुग्धा राधा, हुलस पुलक घनश्याम से।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
ब्रह्मपुत्र नद किसको ध्याए, कल कल कल कर टेरता।
लहर लहर उत्कंठित पल पल, किसका पथ छिप हेरता।।
मेघदूत से यक्ष पठाता; व्यथा-कथा निज पाती में।
बैरागी मन को रागी चित; दसों दिशा से घेरता।।
उस अनाम को ही संबोधित; करते शत-शत नाम से।
वह आकुल मिलता है; खुद ही आकर निष्काम से।।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
किसे सुमिरता है युग युग से, लिए सुमिरनी गति-यति की।
व्यथा उमा-नंदा की कह-सुन; समय साक्ष्य दे जन-मति की।।
कहे गुवाहाटी शिव तनया गंगा से जा मिलो गले।
ब्रह्मपुत्र मंदाकिनी भेटें, लीला सरस समयपति की।।
नखत नवाशा जगा दमकते, खास बन गए आम से।
करतल ध्वनि कर मुदित शांत जन; लगते पूर्ण विराम से।।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
६-१२-२०२२,७-५४
रॉयल डे कासा, गुवाहाटी
●●●
झूलना
*
नर्मदा वर्मदा शर्मदा धर्मदा मातु दो नीर हर लो पिपासा।
प्राण-मन तृप्त हो, भू न अभिशप्त हो, दो उजाला न तम हो जरा सा।।
भारती तारती आरती हम करें हो सदय कर जगत यह हरा सा।
वायु निर्मल रहे कर सुवासित बहे भाव नव संचरे रस नया सा।।
***
सॉनेट
वंदना
*
वंदन देव गजानन शत-शत।
करूँ प्रणाम शारदा माता।
कर्मविधाता चित्र गुप्त प्रभु।।
नमन जगत्जननी-जगत्राता।।
अंतरिक्ष नवगृह हिंदी माँ।
दसों दिशाएँ सदा सदय हों।
छंदों से आनंदित आत्मा।।
शब्द शक्ति पा भाव अजय हों।।
श्वास-श्वास रस बरसाओ प्रभु!
अलंकार हो आस हास में।
सत-शिव-सुंदर कह पाऊँ विभु।।
रखूँ भरोसा सत्प्रयास में।।
नाद ताल लिपि अक्षर वाणी।
निर्मल मति दे माँ कल्याणी।।
६-१२-२०२१
***
नवगीत
*
जुगनू हुए इकट्ठे
सूरज को कहते हैं बौना।
*
शिल्प-माफिया छाती ठोंके,
मुखपोथी कुरुक्षेत्र।
अँधरे पुजते दिव्य चक्षु बन,
गड़े शरम से नेत्र।
खाल शेर की ओढ़ दहाड़े
'चेंपो' गर्दभ-छौना।
जुगनू हुए इकट्ठे
सूरज को कहते हैं बौना।
*
भाव अभावों के ऊँचे हैं,
हुई नंगई फैशन।
पाचक चूर्ण-गोलियाँ गटकें,
कहें न पाया राशन।
'लिव इन' बरसों जिया,
मौज कर कहें 'छला बिन गौना।
*
स्यापा नकली, ताल ठोंकते
मठाधीश षडयंत्री।
शब्द-साधना मान रुदाली
रस भूसे खल तंत्री।
मुँह काला कर गर्वित,
खुद ही कहते लगा डिठौना।
५-१२-२०१८
***
मुक्तक
.
नेह से कोई नआला
मन तरा यदि नेह पाला
नेह दीपक दिवाली का
नेह है पावन शिवाला
.
सुनीता पुनीता रहे जिंदगी
सुगीता कहे कर्म ही बंदगी
कर ईश-अर्पण न परिणाम सोच
महकती हों श्वासें सदा संदली
.
बंद कौन है काया की कारा में?
बंदा है वह बँधा कर्म-धारा में
काया बसी आत्मा ही कायस्थ
करे बंदगी, सार यही सारा में
.
गौ भाषा को दुह करे,
अर्थ-दुग्ध का पान.
श्रावण या रमजान हो,
दोहा रस की खान.
६.१२.२०१७
.

दोहा दुनिया
*
जो चाहें वह बेच दें, जब चाहे अमिताभ
अच्छा है जो बच गए, हे बच्चन अजिताभ
*
हे माँ! वर दे टेर सुन, हुआ करिश्मा आज
हेमा से हेमा कहे, डगमग तेरा ताज
*
हैं तो वे धर्मेन्द्र पर, बदल लिया निज धर्म
है पत्थर तन में छिपा, मक्खन जैसा मर्म
*
नूतन है हर तनूजा, रखे करीना याद
जहाँ जन्म ले बिपाशा, हो न वहाँ आबाद
*
नयनों में काजोल भर, हुई शबाना मौन
शबनम की बूँदें झरीं, कहो पी गया कौन?
*
जय ललिता की बोलिए, शंकर रहें प्रसन्न
कहें जय किशन अगर तो, हो संगीत प्रसन्न
**
अमिताभ = बहुत आभायुक्त, अजिताभ = जिसकी आभा अजेय हो, करिश्मा =चमत्कार, हेमा = धरती, सोना, धर्मेन्द्र = परम धार्मिक, नूतन = नयी, तनूजा = पुत्री, करीना = तरीका,बिपाशा = नदी, काजोल = काजल, शबाना = रात, शबनम = ओस, जय ललिता = पार्वती की जय,जय किशन = कृष्ण की जय
६.१२.२०१६
***
लघुकथा-
ओवर टाइम
*
अभी तो फैक्ट्री में काम का समय है, फिर मैं पत्ते खेलने कैसे आ सकता हूँ? ५ बजे के बाद खेल लेंगे।
तुम भी यार! रहे लल्लू के लल्लू। शाम को देर से घर जाकर कौन अपनी खाट खड़ी करवाएगा? चल अभी खेलते हैं काम बाकी रहेगा तभी तो प्रबंधन समय पर कराने के लिये देगा ओवर टाइम।
*
लघु कथा -
सहिष्णुता
*
कहा-सुनी के बाद वह चली गयी रसोई में और वह घर के बाहर, चलते-चलते थक गया तो एक पेड़ के नीचे बैठ गया. कब झपकी लगी पता ही न चला, आँख खुली तो थकान दूर हो गयी थी, कानों में कोयल के कूकने की मधुर ध्वनि पड़ी तो मन प्रसन्न हुआ. तभी ध्यान आया उसका जिसे छोड़ आया था घर में, पछतावा हुआ कि क्यों नाहक उलझ पड़ा?
कुछ सोच तेजी से चल पड़ा घर की ओर, वह डबडबाई आँखों से उसी को चिंता में परेशान थी, जैसे ही उसे अपने सामने देखा, राहत की साँस ली. चार आँखें मिलीं तो आँखें चार होने में देर न लगी.
दोनों ने एक-दुसरे का हाथ थामा और पहुँच गये वहीं जहाँ अनेकता में एकता का सन्देश दे नहीं, जी रहे थे वे सब जिन्हें अल्पबुद्धि जीव कहते हैं वे सब जो पारस्परिक विविधता के प्रति नहीं रख पा रहे अपने मन में सहिष्णुता।
६.१२.२०१५
***
गीत :...
सच है
*
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.
फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...
*
ढाई आखर की पोथी से हमने संग-संग पाठ पढ़े हैं.
शंकाओं के चक्रव्यूह भेदे, विश्वासी किले गढ़े है..
मिलन-क्षणों में मन-मंदिर में एक-दूसरे को पाया है.
मुक्त भाव से निजता तजकर, प्रेम-पन्थ को अपनाया है..
ज्यों की त्यों हो कर्म चदरिया मर्म धर्म का इतना जाना-
दूर किया अंतर से अंतर, भुला पावना-देना सच है..
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.
फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...
*
तन पाकर तन प्यासा रहता, तन खोकर तन वरे विकलता.
मन पाकर मन हुआ पूर्ण, खो मन को मन में रही अचलता.
जन्म-जन्म का संग न बंधन, अवगुंठन होता आत्मा का.
प्राण-वर्तिकाओं का मिलना ही दर्शन है उस परमात्मा का..
अर्पण और समर्पण का पल द्वैत मिटा अद्वैत वर कहे-
काया-माया छाया लगती मृग-मरीचिका लेकिन सच है
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.
फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...
*
तुमसे मिलकर जान सका यह एक-एक का योग एक है.
सृजन एक ने किया एक का बाकी फिर भी रहा एक है..
खुद को खोकर खुद को पाया, बिसरा अपना और पराया.
प्रिय! कैसे तुमको बतलाऊँ, मर-मिटकर नव जीवन पाया..
तुमने कितना चाहा मुझको या मैं कितना तुम्हें चाहता?
नाप माप गिन तौल निरुत्तर है विवेक, मन-अर्पण सच है.
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.
फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...
६.१२.२०१३
***
मुक्तिका:
है यही वाजिब...
*
है यही वाज़िब ज़माने में बशर ऐसे जिए।
जिस तरह जीते दिवाली रात में नन्हे दिए।।
रुख्सती में हाथ रीते ही रहेंगे जानते
फिर भी सब घपले-घुटाले कर रहे हैं किसलिए?
घर में भी बेघर रहोगे, चैन पाओगे नहीं,
आज यह, कल और कोई बाँह में गर चाहिए।।
चाक हो दिल या गरेबां, मौन ही रहना 'सलिल'
मेहरबां से हो गुजारिश- 'और कुछ फरमाइए'।।
आबे-जमजम की सभी ने चाह की लेकिन 'सलिल'
कोई तो हो जो ज़हर के घूँट कुछ हँसकर पिए।।
***
लोकभाषा-काव्य में श्री गणेश :
*
पारंपरिक ब्याहुलों (विवाह गीत) से दोहा : संकलित
पूरब की पारबती, पच्छिम के जय गनेस.
दक्खिन के षडानन, उत्तर के जय महेस..
*
बुन्देली पारंपरिक तर्ज:
मँड़वा भीतर लगी अथाई के बोल मेरे भाई.
रिद्धि-सिद्धि ने मेंदी रचाई के बोल मेरे भाई.बैठे गनेश जी सूरत सुहाई के बोल मेरे भाई.
ब्याव लाओ बहुएँ कहें मताई के बोल मेरे भाई.
दुलहन दुलहां खों देख सरमाई के बोल मेरे भाई.
'सलिल' झूमकर गम्मत गाई के बोल मेरे भाई.
नेह नर्मदा झूम नहाई के बोल मेरे भाई.
*अवधी मुक्तक:
गणपति कै जनम भवा जबहीं, अमरावति सूनि परी तबहीं.
सुर-सिद्ध कैलास सुवास करें, अनुराग-उछाह भरे सबहीं..
गौर की गोद मा लाल लगैं, जनु मोती 'सलिल' उर मा बसही.
जग-छेम नरमदा-'सलिल' बहा, कछु सेस असेस न जात कही..
६.१२.२०१२
***

मंगलवार, 8 जून 2021

वंदना

वंदना
*
भोर भई पट खोल सुरसती
दरसन दे महतारी।
हात जोड़ ठाँड़े हैं सुर-नर
अकल देओ माँ! माँग रए वर
मौन न रह कुछ बोल सुरसती
काहे सुधी बिसारी?
ध्वनि-धुन, स्वर-सुर, वाक् देओ माँ!
मति गति-यति, लय-ताल, छंद गा
विधि-हरि-हर ने रमा-उमा सँग
तोरे भए पुजारी
नेह नरमदा की कलकल तू
पंछी गुंजाते कलरव तू
लोरी, बम्बुलिया, आल्हा तू
मैया! महिमा न्यारी
***
संजीव
८-६-२०२०

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

आदि शक्ति वंदना

आदि शक्ति वंदना
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..
*
परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..
*
जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..
*
दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.
*
प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..
*
मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.
*
ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
**************

बुधवार, 30 सितंबर 2020

सरस्वती वंदना रीमा मिश्रा

सरस्वती वंदना 
रीमा मिश्रा 
आसनसोल, बंगाल 
जय ,जय,जय हे माँ सरस्वती
आज तोमाए दिके ताकाछी
आमी हाँथ छड़िये दिछि।
आमी अजानतेई घूरे बेडाछि
आमाके नतून पथ देखान
आपनी आमार शुखनो मोने आछेन,
आसुन एवम प्रज्ञा एवम वृष्टि देखान
आमाके शक्ति दाऊ माँ
आमी प्रति सेकेण्ड हराछि
एखन मातृभूमि सेवा कोरछेन
माँ हावुया उचित जीवनेर भीति
कर्म अमादेर उपासना होबे,
माँ देयाल हए हायेछेंन, 
स्वार्थपर नय।
हे शारद आमाके आशीर्वाद करुण
आमी अपनाके ओनेक दिन 
धोरे डाकचिलम।
विणा पद्मनेर प्रश्नशित,
स्तयोर गान वर्णना करछी
तोमार माँ, सादा केशिक
नम्र आचरण प्रदर्शन करा।
अंधकार अंधाकारेर ज्ञान दिन,
सराखन आमाके घिरे आछे।
जय, जय ,जय हे माँ सरस्वती, 
आज तोमाए दिके ताकची।
हिंदी अर्थ-
जय, जय, जय हे माँ सरस्वती,
तुमको आज निहार रही हूँ ।
अपने हाथ पसार रही हूँ ।।
ज्ञान-शून्य हो भटक रही हूँ,
मुझको नव-पथ तू दर्शा दे ।
सूखे मानस में तू मेरे,
ज्ञान-सुधा आकर बरसा दे ।
मुझको शक्ति दे दे माता,
पल-पल में मैं हार रही हूँ ।।
मातृभूमि की सेवा ही अब,
जीवन का आधार बने माँ ।
कर्म हमारी पूजा होगी,
स्वार्थ नहीं दीवार बने माँ ।
दे आशीष मुझे ओ शारद,
कबसे तुम्हें पुकार रही हूँ ।।
कर कमलों में वीणा शोभित,
सत्कर्मों के गीत सुनाते ।
श्वेत-वसन पावन माँ तेरे,
विमल आचरण को दर्शाते ।
ज्ञान किरण दे, घोर तिमिर में,
घिरता मैं हर बार रही हूँ ।
जय, जय, जय हे माँ सरस्वती,
तुमको आज निहार रही हूँ ।
*

रविवार, 20 सितंबर 2020

सरस्वती वंदना : देवकीनंदन शांत

 माँ शारदे वंदना

देवकीनंदन शांत लखनऊ
*
माँ! माँ!!
माँ! मुझे गुनगुनाने का वर दे
मेरी साँसों में संगीत भर दे
छंद को भाव रसखान का दे
प्रीत को साथ इंसान का दे
मेरी गज़लें मुहब्बत भरी हों
दे मुझे ध्यान भगवान का दे
मुझे इतनी कृपा और कर दे
मेरी साँसों में संगीत भर दे
सत्य बोलूँ-लिखूँ शब्द-स्वर दे
झूठ बोलें न एेसे अधर दे
झूठ कैसा भी हो झूठ ही है
झूठ के पंख सच से कतर दे
हौसले से भरी हो डगर दे
मेरी साँसों में संगीत भर दे
राष्ट्र-हित से जुड़ी भावना दे
विश्व कल्याण की कामना दे
धर्म-मजहब समा जाएँ जिसमें
योग जप-तप पगी साधना दे
जग को सुख शांति आठों पहर दे
मेरी साँसों में संगीत भर दे
'शांत' शब्दों को चिंगारियाँ दे
जग की पीड़ा को अमराइयाँ दे
कल्पना दे गरुड़ पंख जैसी
मेरे अनुभव को गहराइयाँ दे
मुझ पे इतनी कृपा और कर दे
मेरी साँसों में संगीत भर दे
***

सोमवार, 27 जुलाई 2020

क्षणिका

क्षणिकाएँ...
*
१. वंदना
*
कर पाता दिल
अगर वंदना
तो न टूटता
यह तय है.
*
२. समाधान
*
निंदा करना
बहुत सरल है.
समाधान ही
मुश्किल है.
*
३. सियासत -१
*
असंतोष-कुंठा
कब उपजे?
बूझे कारण कौन?
'सलिल' सियासत
स्वार्थ साधती
जनगण रहता मौन.
*
४. सियासत -२
तुम्हारा हर झूठ
सच है
हमारा हर सच
झूठ है
यही है आज की
सियासत
दोस्त ही
करता अदावत.
*
५.. शब्द सिपाही
*
मैं हूँ अदना
शब्द-सिपाही.
अर्थ सहित दें
शब्द गवाही..
*
अंतिम दो देवी नागरानी जी ने सिंधी में अनुवादित कर आमने-सामने काव्य संग्रह में मूल सहित प्रकाशित कीं.
सियासत
तुंहिजो हर हिकु झूठ
सचु आहे
मुंहिंजो हर हिकु सचु
झूठ आहे
इहाई आहे
अजु जी सियासत
दोस्त ई
कन दुश्मनी
*
लफ्ज़न जो सिपाही
*
मां आहियाँ अदनो
लफ्जन जो सिपाही.
अर्थ साणु डियन
लफ्ज़ गवाही.
*
२७-७-२०१७
salil.sanjiv@gmail.com

शुक्रवार, 19 जून 2020

शारद वंदना

आलोक दो माँ शारदे! 
*
तम-तोम से दुनिया घिरी है
भीड़ एकाकी निरी है
अजब माया, आप छाया
अकेलेपन से डरी है
लेने न चिंता चैन देती
आमोद दो माँ शारदे!
*
सननसन बह पवन बनकर
छूम छनननन बज सके मन
कलल कलकल सलिल निर्मल
करे कलरव नाचकर तन
सुन सकूँ पल पल अनाहद
नाद नित माँ शारदे!
*
बरस टप टप तृषा हर लूँ
अंकुरित हो आँख खोलूँ
पल्लवित कर हरी धरती
पुलक पुष्पित धन्य हो लूँ
झुकूँ चरणों में फलित हो
पग-लोक दो माँ शारदे!

मंगलवार, 27 जून 2017

muktak

मुक्तक
*
प्राण, पूजा कर रहा निष्प्राण की
इबादत कर कामना है त्राण की
वंदना की, प्रार्थना की उम्र भर-
अर्चना लेकिन न की संप्राण की
.
साधना की साध्य लेकिन दूर था
भावना बिन रूप ज्यों बेनूर था
कामना की यह मिले तो वह करूँ
जाप सुनता प्रभु न लेकिन सूर था
.
नाम ले सौदा किया बेनाम से
पाठ-पूजन भी कराया दाम से
याद जब भी किया उसको तो 'सलिल'
हो सुबह या शाम केवल काम से
.
इबादत में तू शिकायत कर रहा
इनायत में वह किफायत कर रहा
छिपाता तू सच, न उससे कुछ छिपा-
तू खुदी से खुद अदावत कर रहा
.
तुझे शिकवा वह न तेरी सुन रहा
है शिकायत उसे तू कुछ गुन रहा
है छिपाता ख्वाब जो तू बुन रहा-
हाय! माटी में लगा तू घुन रहा
.
तोड़ मंदिर, मन में ले मन्दिर बना
चीख मत, चुप रह अजानें सुन-सुना
छोड़ दे मठ, भूल गुरु-घंटाल भी
ध्यान उसका कर, न तू मौके भुना
.
बन्दा परवर वह, न तू बन्दा मगर
लग गरीबों के गले, कस ले कमर
कर्मफल देता सभी को वह सदा-
काम कर ऐसा दुआ में हो असर
***

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

नर्मदा स्तवन

नमन नर्मदा

- संजीव 'सलिल'

नित्य निनादित नर्मदा, नवल निरंतर नृत्य।

सत-शिव-सुन्दर 'सलिल' सम, सत-चित-आनंद सत्य।

अमला, विमला, निर्मला, प्रबला, धवला धार।

कला, कलाधर, चंचला, नवला, फला निहार।

अमरकांटकी मेकला, मंदाकिनी ललाम।

कृष्णा, यमुना, मेखला, चपला, पला सकाम।

जटाशांकरी, शाम्भवी, स्वेदा, शिवा, शिवोम्।

नत मस्तक सौंदर्य लख, विधि-हरि-हर, दिक्-व्योम।

चिरकन्या-जगजननि हे!, सुखदा, वरदा रूप।

'सलिल'साधना सफलकर, हे शिवप्रिया अनूप।

***************************************