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सोमवार, 24 नवंबर 2025

नवंबर २४, सॉनेट, अधिवक्ता, दोहा, रेलगाड़ी, मुक्तक, लघुकथा, गीत, शिशु गीत, मुक्तिका

 सलिल सृजन नवंबर २४

सॉनेट
संजय
अजय रहे यह चाह नहीं है,
हिंसा पंथ नहीं अपनाता,
कर संतोष सदा सुख पाता,
विजय वरे वह राह नहीं है।
तनिक हृदय में डाह नहीं है,
पाता जो दायित्व निभाता,
कृष्ण-सखा होना मन भाता,
मिलकर मिलती वाह नहीं है।
अपना मस्तक ऊँचा रखता,
निर्मलता उसका आभूषण,
पाता-देता नहीं पराजय।
सत्य कहे अप्रिय बिन कटुता,
आत्म आचरण निरख परखता,
नहीं धनंजय से कम संजय।
२४.११.२०२३
***
सॉनेट
अधिवक्ता
अधिवक्ता वक्ता हो उनका जो सच्चे हैं,
पीड़ित-निर्बल की लाठी बन न्याय दिलाए,
नहीं सबल अन्यायी का चाकर हो जाए,
न ही बचाए उसको जो अन्यायी लुच्चा।
रखे मनोबल सुदृढ़, न हो वह मन का कच्चा,
और न केवल धन अर्जन ही लक्ष्य बनाए,
न्यायालय को विधि-मंदिर का सुयश दिलाए,
डरे दंड से हर अपराधी नंगा टुच्चा।
करो वकालत पर जमीर नीलाम न करना,
मरना बेहतर अपराधी के संरक्षण से,
काला कोट न मातम-वाहक नहीं रुदाली,
नव आशा पर्याय सदा अभिभाषक बनना,
प्रतिभाओं का हनन नहीं हो आरक्षण से,
लिए एडवोकेट धरा पर नित खुशहाली।
२४.११.२०२३
•••
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान - समन्वय प्रकाशन
२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,
चलभाष: ९४२५१ ८३२४४ ​/ ७९९९५ ५९६१८ ​
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​इकाई स्थापना आमंत्रण
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विश्ववाणी हिंदी संस्थान एक स्वैच्छिक अपंजीकृत समूह है जो ​भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रचार-प्रसार तथा विकास हेतु समर्पित है। संस्था पीढ़ियों के अंतर को पाटने और नई पीढ़ी को साहित्यिक-सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने के लिए निस्वार्थ सेवाभावी रचनात्मक प्रवृत्ति संपन्न महानुभावों तथा संसाधनों को एकत्र कर विविध कार्यक्रम न लाभ न हानि के आधार पर संचालित करती है। इकाई स्थापना, पुस्तक प्रकाशन, लेखन कला सीखने, भूमिका-समीक्षा लिखवाने, विमोचन-लोकार्पण-संगोष्ठी-परिचर्चा अथवा स्व पुस्तकालय स्थापित करने हेतु संपर्क करें: salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१ ८३२४४ ​/ ७९९९५ ५९६१८।
काव्य संकलन - चंद्र विजय अभियान
हिंदी के साहित्येतिहास में पहली बार किसी वैज्ञानिक परियोजना को केंद्र में रखकर साझा काव्य संकलन प्रकाशित कर कीर्तिमान बनाया जा रहा है। इसरो के चंद्र विजय अभियान को सफल बनानेवाले वैज्ञानिकों, अभियंताओं व तकनीशियनों की कलमकारों की ओर से मानवंदना करते हुए काव्यांजलि अर्पित करने के लिए तैयार किए जा रहे काव्य संग्रह "चंद्र विजय अभियान" में सहभागिता हेतु आप आमंत्रित हैं। आप अपनी आंचलिक बोली, प्रादेशिक भाषा, राष्ट्र भाषा या विदेशी भाषा में लगभग २० पंक्तियों की रचना भेजें। संकलन में अब तक १४५ सहभागी सम्मिलित हो चुके हैं। संकलन में देश-विदेश की भाषाओं/बोलिओं की रचनाओं का स्वागत है। संकलन में ९४ वर्ष से लेकर २२ वर्ष तक की आयु के ३ पीढ़ियों के रचनाकार सम्मिलित हैं।
अंगिका, अंग्रेजी, असमी, उर्दू, कन्नौजी, कुमायूनी, गढ़वाली, गुजराती, छत्तीसगढ़ी, निमाड़ी, पचेली, पाली, प्राकृत, बघेली, बांग्ला, बुंदेली, ब्रज, भुआणी, भोजपुरी, मराठी, मारवाड़ी, मालवी, मैथिली, राजस्थानी, संबलपुरी, संथाली, संस्कृत, हलबी, हिंदी आदि ३० भाषाओं/बोलिओं की रचनाएँ आ चुकी हैं। आस्ट्रेलिया, अमेरिका तथा इंग्लैंड से रचनाकार जुड़ चुके हैं।
पहली बार विविध भाषाओं/बोलियों में वैज्ञानिकों/अभियंताओं को काव्यांजलि देकर कीर्तिमान बनाया जा रहा है।
पहली बार देश-विदेश की सर्वाधिक २८ भाषाओं/बोलियों के कवियों का संगम कीर्तिमान बना रहा है।
पहली बार शताधिक कवि एक वैज्ञानिक परियोजना पर कविता रच रहे हैं।
पहली बार २२ वर्ष से लेकर ९४ वर्ष तक के तीन पीढ़ी के रचनाकार एक ही संकलन में सहभागिता कर रहे हैं।
हर सहभागी को इन कीर्तिमानों में आपकी सहभागिता संबंधी प्रमाणपत्र संस्थान अध्यक्ष के हस्ताक्षरों से ओन लाइन भेजा जाएगा।
आप सम्मिलित होकर इस पुनीत सारस्वत अनुष्ठान में अपनी साहित्यिक समिधा समर्पित कर इसे अधिक से अधिक विविधता से समृद्ध करें। अपनी रचना, चित्र, परिचय (जन्म तिथि-माह-वर्ष-स्थान, माता-पिता-जीवनसाथी, शिक्षा, संप्रति, प्रकाशित पुस्तकें, डाक पता, ईमेल, चलभाष/वाट्स एप) तथा सहभागिता निधि ३००/- प्रति पृष्ठ वाट्स ऐप क्रमांक ९४२५१८३२४४ पर भेजें। ६००/- मूल्य की पुस्तक की अतिरिक्त प्रति सहभागियों को अग्रिम राशि भेजने पर ४००/- प्रति (पैकिंग व डाक व्यय निशुल्क) की दर से उपलब्ध होगी। प्रकाशन के पश्चात प्रकाशक से निर्धारित मूल्य पर लेनी होगी।
***
सामयिक लघुकथाएँ
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में 'सार्थक लघुकथाएँ' शीर्षक से सहयोगाधार पर इच्छुक लघुकथाकारों की २-२ प्रतिनिधि लघुकथाएँ, चित्र, संक्षिप्त परिचय (जन्मतिथि-स्थान, माता-पिता, जीवन साथी, साहित्यिक गुरु व प्रकाशित पुस्तकों के नाम, शिक्षा, लेखन विधाएँ, अभिरुचि/आजीविका, डाक का पता, ईमेल, चलभाष क्रमांक) आदि २ पृष्ठों पर प्रकाशित होंगी। लघुकथा पर शोधपरक सामग्री भी होगी। पेपरबैक संकलन की २-२ प्रतियाँ पंजीकृत पुस्त-प्रेष्य की जाएँगी। यथोचित संपादन हेतु सहमत सहभागी मात्र ३००/- सहभागिता निधि पे टी एम द्वारा चलभाष क्रमांक ९४२५१८३२४४ में में जमाकर पावती salil.sanjiv@gmail.com पर ईमेल करें। संपादक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' हैं। संपर्क हेतु ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com, roy.kanta@gmail.com, चलभाष ९४२५१८३२४४ । अतिरिक्त प्रतियाँ मुद्रित मूल्य से ४०% रियायत पर पैकिंग-डाक व्यय निशुल्क सहित मिलेंगी।
प्रतिनिधि नवगीत
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में 'प्रतिनिधि नवगीत'' शीर्षक से प्रकाशनाधीन संकलन हेतु इच्छुक नवगीतकारों से एक पृष्ठीय ८ नवगीत, चित्र, संक्षिप्त परिचय (जन्मतिथि-स्थान, माता-पिता, जीवन साथी, साहित्यिक गुरु व प्रकाशित पुस्तकों के नाम, शिक्षा, लेखन विधाएँ, अभिरुचि/आजीविका, डाक का पता, ईमेल, चलभाष क्रमांक) सहभागिता निधि ३०००/- सहित आमंत्रित है। यथोचित सम्पादन हेतु सहमत सहभागी ३०००/- सहभागिता निधि पे टी एम द्वारा चलभाष क्रमांक ९४२५१८३२४४ में जमाकर पावती salil.sanjiv@gmail.com को ईमेल करें। । प्रत्येक सहभागी को १५ प्रतियाँ निशुल्क उपलब्ध कराई जाएँगी जिनका विक्रय या अन्य उपयोग करने हेतु वे स्वतंत्र होंगे। ग्रन्थ में नवगीत विषयक शोधपरक उपयोगी सूचनाएँ और सामग्री संकलित की जाएगी। हिंदीतर भारतीय भाषाओँ के नवगीत हिंदी अनुवाद सहित भेजें।
शांति-राज स्व-पुस्तकालय योजना
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में नई पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति प्रेम तथा भारतीय संस्कारों के प्रति लगाव तभी हो सकता है जब वे बचपन से सत्साहित्य पढ़ें। इस उद्देश्य से पारिवारिक पुस्तकालय योजना आरम्भ की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत ५००/- भेजने पर निम्न में से ७००/- की पुस्तकें तथा शब्द साधना पत्रिका व् दिव्य नर्मदा पत्रिका के उपलब्ध अंक पैकिंग व डाक व्यय निशुल्क की सुविधा सहित उपलब्ध हैं। राशि अग्रिम पे टी एम द्वारा चलभाष क्रमांक ९४२५१८३२४४ में जमाकर पावती salil.sanjiv@gmail.com को ईमेल करें। इस योजना में पुस्तक सम्मिलित करने हेतु salil.sanjiv@gmail.com या ७९९९५५९६१८/९४२५१८३२४४ पर संपर्क करें।
पुस्तक सूची
०१. मीत मेरे कविताएँ -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' १५०/-
०२. काल है संक्रांति का गीत-नवगीत संग्रह -आचार्य संजीव 'सलिल' १५०/-
०३. कुरुक्षेत्र गाथा खंड काव्य -स्व. डी.पी.खरे -आचार्य संजीव 'सलिल' ३००/-
०४. पहला कदम काव्य संग्रह -डॉ. अनूप निगम १००/-
०५. कदाचित काव्य संग्रह -स्व. सुभाष पांडे १२०/-
०६. Off And On -English Gazals -Dr. Anil Jain ८०/-
०७. यदा-कदा -उक्त का हिंदी काव्यानुवाद- डॉ. बाबू जोसफ-स्टीव विंसेंट ८०/-
०८. Contemporary Hindi Poetry - B.P. Mishra 'Niyaz' ३००/-
०९. महामात्य महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' ३५०/-
१०. कालजयी महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' २२५/-
११. सूतपुत्र महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' १२५/-
१२. अंतर संवाद कहानियाँ -रजनी सक्सेना २००/-
१३. दोहा-दोहा नर्मदा दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
१४. दोहा सलिला निर्मला दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
१५. दोहा दिव्य दिनेश दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा ३००/-
१६. सड़क पर गीत-नवगीत संग्रह आचार्य संजीव 'सलिल' ३००/-
१७. The Second Thought - English Poetry - Dr .Anil Jain​ १५०/-
१८. हस्तिनापुर की बिथा कथा (बुंदेली संक्षिप्त महाभारत)- डॉ. एम. एल. खरे २५०/-
१९. शब्द वर्तमान नवगीत संग्रह - जयप्रकाश श्रीवास्तव १२०/-
२०. बुधिया लेता टोह - बसंत कुमार शर्मा - १८०/-
२१. पोखर ठोंके दावा नवगीत संग्रह - अविनाश ब्योहार १८०/-
२२. मौसम अंगार है नवगीत संग्रह - अविनाश ब्योहार १६०/-
२३. कोयल करे मुनादी नवगीत संग्रह - अविनाश ब्योहार २००/-
२४. अंधी पीसे कुत्ते खाँय व्यंग्य काव्य संग्रह - अविनाश ब्योहार १००/-
२५. काव्य मंदाकिनी काव्य संग्रह - ३२५/-
२६. हिंदी सॉनेट सलिला - सं. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - ५००/-
२७. ओ मेरी तुम - गीत-नवगीत - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - ३००/-
२८. आदमी अभी जिंदा है - लघु कथा संग्रह - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - ३७०/-
२९. २१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - १५०/-
३०. २१ श्रेष्ठ लोक कथाएँ मध्य प्रदेश - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - १५०/-
३१ काव्य कालिंदी - डॉ. संतोष शुक्ला - २५०/-
३२. खुशियों की सौगात - डॉ. संतोष शुक्ला - २५०/-
३३. छंद सोरठा खास - डॉ. संतोष शुक्ला 'प्रज्ञा' - ३००/-
३४. जीतने जी जिद, - काव्य संग्रह - सरला वर्मा - १२५/-
३५. व्यक्ति रेखा - डॉ. जयश्री जोशी - संस्मरण - १५०/-
३६. सौरभ: - संस्कृत -हिंदी काव्यानुवाद - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - १५०/-
३७. मता-ए-परवीन - गजल संग्रह - परवीन हक - २००/-
३८. सूर्य मंजरी - काव्य संग्रह - सुनीता सिंह - ३००/-
३९. भूकंप के साथ जीना सीखें - लोकोपयोगी - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - ३५०/-
४०. राम नाम सुखदायी - भजन संग्रह - शांति देवी वर्मा - १५०/-
४१. नीरव का संगीत - काव्य संग्रह - डॉ. अग्निभ मुखर्जी - २५०/-
४२. लोकतंत्र का मकबरा - काव्य संग्रह - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - ३५०/-
४३. कलम के देव - भक्ति गीत संग्रह - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - २००/-
४४. बोध कथा सलिला - बोध कथा संग्रह - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - ३५०/-
४५. सूरज आया द्वार - दोहा संग्रह - इन्द्र बहादुर श्रीवास्तव - १४९/-
४६. क्षण के साथ चलाचल - आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी - ४००/-
४७. मुझे चाँद नहीं चाहिए - बबीता चौबे - लघुकथा संग्रह- २५०/-
४८. चंद्र विजय अभियान - साझा काव्य संग्रह - सं. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - ११००/-
४९. इटैलियन सोनेट सलिला - सं. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - ५००/- (शीघ्र प्रकाश्य)
५०. जंगल में जनतंत्र - लघुकथा संग्रह - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - ३५०/-
५१. फुलबागिया - साझा काव्य संग्रह - सं. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - ११००/-
***
सॉनेट
आज
आज कह रहा जागो भाई!
कल से कल की मिली विरासत
कल बिन कहीं न कल हो आहत
बिना बात मत भागो भाई!
आज चलो सब शीश उठाकर
कोई कुछ न किसी से छीने
कोई न फेंके टुकड़े बीने
बढ़ो साथ कर कदम मिलाकर
आज मान आभार विगत का
कर ले स्वागत हँस आगत का
कर लेना-देना चाहत का
आज बिदा हो दुख मत करना
कल को आज बना श्रम करना
सत्-शिव-सुंदर भजना-वरना
२३-११-२०२२
●●●
मुक्तिका
पदभार : १२१२ x ४
प्रभो! तुम्हें सदा जपूँ, कभी न भूलना मुझे।
रहूँ न काम के बिना, अकाम ही सदा रहूँ।।
न याचना, न कामना, न वासना, न क्रोध हो।
स्वदेश के लिए जिऊँ, स्वदेश के लिए मरूँ।।
ध्वजा कभी झुके नहीं, पताकिनी रुके नहीं।
न शत्रु एक शेष हो, सुमित्र के लिए जिऊँ।।
न आम आदमी कभी दुखी रहे, सुखी रहे।
न खास का गुलाम हो, हताश मैं कभी रहूँ।।
अमीर है वही न जो, गरीब से घृणा करे।
न दर्द दूँ कभी, मिटा सकूँ जरा तभी तरूँ।।
स्वधर्म को तजूँ नहीं, अधर्म मैं वरूँ नहीं।
कुरीत से सदा बचूँ, अनीत मैं नहीं करूँ।।
प्रभो! कृपा बनी रहे, क्षमा करो, दया करो।
न पाप हो; न शाप दो, न भाव भक्ति मैं तजूँ।।
२४-११-२०२२
***
दोहा और रेलगाड़ी
*
बीते दिन फुटपाथ पर, प्लेटफॉर्म पर रात
ट्रेन लेट है प्रीत की, बतला रहा प्रभात
*
बदल गया है वक़्त अब, छुकछुक गाड़ी गोल
इंजिन दिखे न भाप का, रहा नहीं कुछ मोल
*
भोर दुपहरी सांझ या, पूनम-'मावस रात
काम करे निष्काम रह, इंजिन बिन व्याघात
*
'स्टेशन आ रहा है', क्यों कहते इंसान?
आते-जाते आप वे, जगह नहीं गतिमान
*
चलें 'रेल' पर गाड़ियाँ, कहते 'आई रेल'
आती-जाती 'ट्रेन' है, बात न कर बेमेल
*
डब्बे में घुस सके जो, थाम किसी का हाथ
बैठ गए चाहें नहीं, दूजा बैठे साथ
*
तीसमारखाँ बन करें, बिना टिकिट जो सैर
टिकिट निरीक्षक पकड़ता, रहे न उनकी खैर
*
दर्जन भर करते विदा, किसी एक को व्यर्थ
भीड़ बढ़ाते अकारण, करते अर्थ-अनर्थ
*
ट्रेन छूटने तक नहीं चढ़ते, करते गप्प
चढ़ें दौड़ गिरते फिसल, प्लॉटफॉर्म पर धप्प
*
सुविधा का उपयोग कर, रखिए स्वच्छ; न तोड़
बारी आने दीजिए, करें न नाहक होड़
*
कभी नहीं वह खाइए, जो देता अनजान
खिला नशीली वस्तु वह, लूटे धन-सामान
*
चेहरा रखिए ढाँककर, स्वच्छ हमेशा हाथ
दूरी रखिए हमेशा, ऊँचा रखिए माथ
*
२३-११-२०२०
***
मुक्तक
मुख पुस्तक मुख को पढ़ने का ज्ञान दे
क्या कपाल में लिखा दिखा वरदान दे
माँ-शान कब रहे सदा मत दे ईश्वर!
शुभाशीष दे, स्नेह, मान जा दान दे
***
नवगीत
.
बसर ज़िन्दगी हो रही है
सड़क पर.
.
बजी ढोलकी
गूंज सोहर की सुन लो
टपरिया में सपने
महलों के बुन लो
दुत्कार सहता
बचपन बिचारा
सिसक, चुप रहे
खुद कन्हैया सड़क पर
.
लत्ता लपेटे
छिपा तन-बदन को
आसें न बुझती
समर्पित तपन को
फ़ान्से निबल को
सबल अट्टहासी
कुचली तितलिया मरी हैं
सड़क पर
.
मछली-मछेरा
मगर से घिरे हैं
जबां हौसले
चल, रपटकर गिरे हैं
भँवर लहरियों को
गुपचुप फ़न्साए
लव हो रहा है
ज़िहादी सड़क पर
.
कुचल गिट्टियों को
ठठाता है रोलर
दबा मिट्टियों में
विहँसता है रोकर
कालिख मनों में
डामल से ज्यादा
धुआँ उड़ उड़ाता
प्रदूषण सड़क पर
२४-११-२०१७
***
नवगीत महोत्सव लखनऊ के पूर्ण होने पर
एक रचना:
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
*
दूर डाल पर बैठे पंछी
नीड़ छोड़ मिलने आये हैं
कलरव, चें-चें, टें-टें, कुहू
गीत नये फिर गुंजाये हैं
कुछ परंपरा,कुछ नवीनता
कुछ अनगढ़पन,कुछ प्रवीणता
कुछ मीठा,कुछ खट्टा-तीता
शीत-गरम, अब-भावी-बीता
ॐ-व्योम का योग सनातन
खूब सुहाना मीत पर्व यह
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
*
सुख-दुःख, राग-द्वेष बिसराकर
नव आशा-दाने बिखराकर
बोयें-काटें नेह-फसल मिल
ह्रदय-कमल भी जाएँ कुछ खिल
आखर-सबद, अंतरा-मुखड़ा
सुख थोड़ा सा, थोड़ा दुखड़ा
अपनी-अपनी राम कहानी
समय-परिस्थिति में अनुमानी
कलम-सिपाही ह्रदय बसायें
चिर समृद्ध हो रीत, पर्व यह
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
*
मैं-तुम आकर हम बन पायें
मतभेदों को विहँस पचायें
कथ्य शिल्प रस भाव शैलियाँ
चिंतन-मणि से भरी थैलियाँ
नव कोंपल, नव पल्लव सरसे
नव-रस मेघा गरजे-बरसे
आत्म-प्रशंसा-मोह छोड़कर
परनिंदा को पीठ दिखाकर
नये-नये आयाम छू रहे
मना रहे हैं प्रीत-पर्व यह
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
२४-११-२०१५
***
लघुकथा:
बुद्धिजीवी और बहस
संजीव
*
'आप बताते हैं कि बचपन में चौपाल पर रोज जाते थे और वहाँ बहुत कुछ सीखने को मिलता था। क्या वहाँ पर ट्यूटर आते थे?'
'नहीं बेटा! वहाँ कुछ सयाने लोग आते थे जिनकी बातें बाकी सभी लोग सुनते-समझते और उनसे पूछते भी थे।'
'अच्छा, तो वहाँ टी. वी. की तरह बहस और आरोप भी लगते होंगे?'
'नहीं, ऐसा तो कभी नहीं होता था।'
'यह कैसे हो सकता है? लोग हों, वह भी बुद्धिजीवी और बहस न हो... आप गप्प तो नहीं मार रहे?'
दादा समझाते रहे पर पोता संतुष्ट न हो सका।
*
पुस्तक सलिला: हिन्दी महिमा सागर
[पुस्तक विवरण: हिन्दी महिमा सागर, संपादक डॉ. किरण पाल सिंह, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ २०४, प्रकाशक भारतीय राजभाषा विकास संस्थान, १००/२ कृष्ण नगर, देहरादून २४८००१]
हिंदी दिवस पर औपचारिक कार्यक्रमों की भीड़ में लीक से हटकर एक महत्वपूर्ण प्रकाशन हिंदी महिमा सागर का प्रकाशन है. इस सारस्वत अनुष्ठान के लिए संपादक डॉ. किरण पाल सिंह तथा प्रकाशक प्रकाशक भारतीय राजभाषा विकास संस्थान देहरादून साधुवाद के पात्र हैं. शताधिक कवियों की हिंदी पर केंद्रित रचनाओं का यह सारगर्भित संकलन हिंदी प्रेमियों तथा शोध छात्रों के लिए बहुत उपयोगी है. पुस्तक का आवरण तथा मुद्रण नयनाभिराम है. भारतेंदु हरिश्चंद्र जी, मैथिलीशरण जी, सेठ गोविन्ददास जी, गया प्रसाद शुक्ल सनेही, गोपाल सिंह नेपाली, प्रताप नारायण मिश्र, गिरिजा कुमार माथुर, डॉ. गिरिजा शंकर त्रिवेदी डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, आदि के साथ समकालिक वरिष्ठों अटल जी, बालकवि बैरागी, डॉ. दाऊ दयाल गुप्ता, डॉ. गार्गी शरण मिश्र 'मराल' , संजीव वर्मा 'सलिल', आचार्य भगवत दुबे, डॉ. राजेंद्र मिलन, शंकर सक्सेना, डॉ. ब्रम्हजित गौतम, परमानन्द जड़िया, यश मालवीय आदि १०८ कवियों की हिंदी विषयक रचनाओं को पढ़ पाना अपने आपमें एक दुर्लभ अवसर तथा अनुभव है. मुख्यतः गीत, ग़ज़ल, दोहा, कुण्डलिया तथा छंद मुक्त कवितायेँ पाठक को बाँधने में समर्थ हैं.
२४.११.२०१४
***
मुक्तिका
देख जंगल
कहाँ मंगल?
हर तरफ है
सिर्फ दंगल
याद आते
बहुत हंगल
स्नेह पर हो
बाँध नंगल
भू मिटाकर
चलो मंगल
***
नवगीत:
दादी को ही नहीं
गाय को भी भाती हो धूप
तुम बिन नहीं सवेरा होता
गली उनींदी ही रहती है
सूरज फसल नेह की बोता
ठंडी मन ही मन दहती है
ओसारे पर बैठी
अम्मा फटक रहीं है सूप
हित-अनहित के बीच खड़ी
बँटवारे की दीवार
शाख प्यार की हरिया-झाँके
दीवारों के पार
भौजी चलीं मटकती, तसला
लेकर दृश्य अनूप
तेल मला दादी के, बैठी
देखूँ किसकी राह?
कहाँ छबीला जिसने पाली
मन में मेरी चाह
पहना गया मुँदरिया बनकर
प्रेमनगर का भूप
***
नवगीत:
अड़े खड़े हो
न राह रोको
यहाँ न झाँको
वहाँ न ताको
न उसको घूरो
न इसको देखो
परे हटो भी
न व्यर्थ टोको
इसे बुलाओ
उसे बताओ
न राज अपना
कभी बताओ
न फ़िक्र पालो
न भाड़ झोंको
२३-११-२०१४
***
शिशु गीत सलिला : 3
*
21. नाना
मम्मी के पापा नाना,
खूब लुटाते हम पर प्यार।
जब भी वे घर आते हैं-
हम भी करते बहुत दुलार।।
खूब खिलौने लाते हैं,
मेरा मन बहलाते हैं।
नाना बाँहों में लेकर-
झूला मुझे झुलाते हैं।।
*
22. नानी -1
कहतीं रोज कहानी हैं,
माँ की माँ ही नानी हैं।
हर मुश्किल हल कर लेतीं-
सचमुच बहुत सयानी हैं।।
*
23. नानी-2
नानी जी के गोरे बाल,
धीमी-धीमी उनकी चाल।
दाँत ले गए क्या चूहे-
झुर्रीवाली क्यों है खाल?
चश्मा रखतीं नाक पर,
देखें उससे झाँक कर।
कैसे बुन लेतीं स्वेटर?
लम्बा-छोटा आँककर।।
*
24. चाचा
चाचा पापा के भाई,
हमको लगते हैं अच्छे।
रहें बड़ों सँग, लगें बड़े-
बच्चों में लगते बच्चे।।
चाचा बच्चों संग खेलें,
सबके सौ नखरे झेलें।
जो बच्चा थक जाता -
झट से गोदी में ले लें।।
*
25. बुआ
प्यारी लगतीं मुझे बुआ,
मुझे न कुछ हो- करें दुआ।
पराई बहिना पापा की-
पाला घर में हरा सुआ।।
चना-मिर्च उसको देतीं
मुझे खिलातीं मालपुआ।
*
26.मामा
मामा मुझको मन भाते,
माँ से राखी बँधवाते।
सब बच्चों को बैठकर
गप्प मारते-बतियाते।।
हम आपस में झगड़ें तो-
भाईचारा करवाते।
मुझे कार में बिठलाते-
सैर दूर तक करवाते।।
*
27. मौसी
मौसी माँ जैसी लगती,
मुझको गोद उठा हँसती।
ढोलक खूब बजाती है,
केसर-खीर खिलाती है।
*
28. दोस्त
मुझसे मिलने आये दोस्त,
आकर गले लगाये दोस्त।
खेल खेलते हम जी भर-
मेरे मन को भाये दोस्त।।
*
29. सुबह
सुबह हुई अँधियारा भागा,
हुआ उजाला भाई।
'उठो, न सो' गोदी ले माँ ने
निंदिया दूर भगाई।।
गाय रंभाई, चिड़िया चहकी,
हवा बही सुखदाई।
धूप गुनगुनी हँसकर बोली:
मुँह धो आओ भाई।।
*
30. सूरज
आसमान में आया सूरज ।
सबके मन को भाया सूरज।।
लाल-लाल आकाश हो गया।
देख सुबह मुस्काया सूरज।।
डरकर भाग गयी है ठंडी।
आँख दिखा गरमाया सूरज।।
दिन भर करता थानेदारी।
किरणों के मन भाया सूरज।।
रात-अँधेरे से डर लगता।
घर जाकर सुस्ताया सूरज।।
२३.११.२०१२
***
मुक्तिका:
जीवन की जय गाएँ हम..
*
जीवन की जय गाएँ हम..
सुख-दुःख मिल सह जाएँ हम..
*
नेह नर्मदा में प्रति पल-
लहर-लहर लहराएँ हम..
*
बाधा-संकट-अड़चन से
जूझ-जीत मुस्काएँ हम..
*
गिरने से क्यों कहोडरें?,
उठ-बढ़ मंजिल पाएँ हम..
*
जब जो जैसा उचित लगे.
अपने स्वर में गाएँ हम..
*
चुपड़ी चाह न औरों की
अपनी रूखी खाएँ हम..
*
दुःख-पीड़ा को मौन सहें.
सुख बाँटें हर्षाएँ हम..
*
तम को पी, बन दीप जलें.
दीपावली मनाएँ हम..
*
लगन-परिश्रम-कोशिश की
जय-जयकार गुंजाएँ हम..
*
पीड़ित के आँसू पोछें
हिम्मत दे, बहलाएँ हम..
*
अमिय बाँट, विष कंठ धरें.
नीलकंठ बन जाएँ हम..
***
लीक से हटकर एक प्रयोग:
निरंतरी मुक्तिका:
*
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है.
कहा धरती ने यूँ नभ से, न क्यों सूरज उगाता है??
*
न सूरज-चाँद की गलती, निशा-ऊषा न दोषी हैं.
प्रभाकर हो या रजनीचर, सभी को दिल नचाता है..
*
न दिल ये बिल चुकाता है, न ठगता या ठगाता है.
लिया दिल देके दिल, सौदा नगद कर मुस्कुराता है.
*
करा सौदा खरा जिसने, जो जीता वो सिकंदर है.
क्यों कीमत तू अदा करता है?, क्यों तू सिर कटाता है??
*
यहाँ जो सिर कटाता है, कटाये- हम तो नेता हैं.
हमारा शौक- अपने मुल्क को ही बेच-खाता है..
*
करें क्यों मुल्क की चिंता?, सकल दुनिया हमारी है..
है बंटाढार इंसां चाँद औ' मंगल पे जाता है..
*
न मंगल अब कभी जंगल में कर पाओगे ये सच है.
जहाँ भी पग रखे इंसान उसको अंत आता है..
*
न आता अंत तो कहिए कहाँ धरती पे पग रखते,
जलाकर रोम नीरो सिर्फ बंसी ही बजाता है..
*
बजी बंसी तो सारा जग, करेगा रासलीला भी.
कोई दामन फँसाता है, कोई दामन बचाता है..
*
लगे दामन पे कोई दाग, तो चिंता न कुछ करना.
बताता रोज विज्ञापन, इन्हें कैसे छुड़ाता है??
*
छुड़ाना पिंड यारों से, नहीं आसां तनिक यारों.
सभी यह जानते हैं, यार ही चूना लगाता है..
*
लगाता है अगर चूना, तो कत्था भी लगाता है.
लपेटा पान का पत्ता, हमें खाता-खिलाता है..
*
खिलाना और खाना ही हमारी सभ्यता- मानो.
जगत ईमानदारी का, हमें अभिनय दिखाता है..
*
किया अभिनय न गर तो सत्य जानेगा जमाना यह.
कोई कीमत अदा हो हर बशर सच को छिपाता है..
*
छिपाता है, दिखाता है, दिखाता है, छिपाता है.
बचाकर आँख टँगड़ी मार, खुद को खुद गिराता है..
*
गिराता क्या?, उठाता क्या?, फँसाता क्या?, बचाता क्या??
अजब इंसान चूहे खाए सौ, फिर हज को जाता है..
*
न जाता है, न जाएगा, महज धमकाएगा तुमको.
कोई सत्ता बचाता है, कमीशन कोई खाता है..
*
कमीशन बिन न जीवन में, मजा आता है सच मानो.
कोई रिश्ता निभाता है, कोई ठेंगा बताता है..
*
कमाना है, कमाना है, कमाना है, कमाना है.
कमीना कहना है?, कह लो, 'सलिल' फिर भी कमाता है..
२३-११-२०१०
***
सॉनेट
आज
आज कह रहा जागो भाई!
कल से कल की मिली विरासत
कल बिन कहीं न कल हो आहत
बिना बात मत भागो भाई!
आज चलो सब शीश उठाकर
कोई कुछ न किसी से छीने
कोई न फेंके टुकड़े बीने
बढ़ो साथ कर कदम मिलाकर
आज मान आभार विगत का
कर ले स्वागत हँस आगत का
कर लेना-देना चाहत का
आज बिदा हो दुख मत करना
कल को आज बना श्रम करना
सत्य-शिव-सुंदर भजना-वरना
२३-११-२०२२
●●●
मुक्तक
काैन किसका सगा है
लगता प्रेम पगा है
नेह नाता जाे मिला
हमें उसने ठगा है
*
दिल से दिल की बात हो
खुशनुमा हालात हो
गीत गाये झूमकर
गून्जते नग्मात हो
२३-११-२०१४
***

शनिवार, 22 नवंबर 2025

नवंबर २२, गिनती गीत, सॉनेट, गीता छंद, प्रार्थना, सरस्वती, शिशु गीत, बृज, अनुप्रास, बाल दिवस, दोहा, अनुप्रास,

सलिल सृजन नवंबर २२
*
गिनती गीत
एक घर है बहुत प्यारा।
माँ-पिता दो ने सँवारा।।
तीन कमरे, चार द्वार।
पाँच खिड़की, आर-पार।।
पास अपने छह खिलौने।
सात साथी सब सलौने।।
आठ कलियाँ, फूल हैं नौ।
दस तितलियाँ उड़ानें सौ।।
०००
पूर्णिका
पूछ रहा हरसिंगार
खो रही कहाँ बहार
खीर लोकतंत्र की
क्षुद्र सियासत बघार
साथ देह लिव इन में
किंतु साथ है न प्यार
छलते हैं खुद को भी
स्वार्थ साध होशियार
जीव को संजीव कर
सलिल बहा नेह धार
२२.११.२०२४
•••
द्विपदी
नाउमीदी में भी है उम्मीद मत भूलो कभी।
गिर जमीं पर, शीश हरि के चढ़े हरसिंगार चुप।।
०००
प्रश्नोत्तर
उमा! कहो है कहाँ भिखारी,
भस्म लपेटे हर सिंगारी!
रमा! छले वृंदा असुरारी,
शापित भटके हर सिंगारी।।
२१.११.२०२४
०००
एक दोहा
कहते 'her' सिंगार पर, है वह 'his' सिंगार।
हर को मिलता ही नहीं, हरि पाते मनुहार।।
०००
सॉनेट
(लयखण्ड: ११२२१)
भजना राम
मत तू भूल
कर ले काम
बन जा धूल।
प्रभु की रीत
जिसके इष्ट
हरते कष्ट
करते प्रीत।
हरसिंगार
तजता गर्व
वरता सर्व
खुद को हार।
कर विश्वास
प्रभु हैं पास।
•••
हरसिंगार
कहमुकरी
सुबह सवेरे घर दे त्याग
धरती से पाले अनुराग
भगवन के मन को अति भाए
भक्तों को भी खूब लुभाए।
समझ गई मैं तुहिना-हार
अरी! नहीं, है हरसिंगार।।
सोरठा
सुंदर हरसिंगार, रवि-भू का वंदन करे।
तज नश्वर संसार, शाख त्याग संदेश दे।।
दोहा
करते हरि सिंगार ले, मनहर हर सिंगार।
भस्म मलें हर मौन रह, जटा-जूट स्वीकार।।
हर्षित हर हर हर विपद, देव करें मनुहार।
केहरि के हरि हार दिल, हेरें हरसिंगार।।
शोभा हरि सिंगार की, निरखे हरसिंगार।
सलिल सर्प शशि भस्भ से, अद्भुत हर सिंगार।
धरा धरा के अधर पर, अधर लुटाया प्यार।
पीहर तरु तज सासरे, वासी हरसिंगार।।
••
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
अलंकरण सूचना
*
गत वर्ष १,११,०००/- की नगद राशि तथा ७५,०००/- का साहित्य वितरित करने के बाद इस वर्ष दिव्य नर्मदा अलंकरण के अंतर्गत वर्ष २०२४-२६ में हिंदी में लिखित तकनीक, साहित्य, विज्ञान, कला, वाणिज्य आदि की श्रेष्ठ पुस्तकों के रचनाकारों को पुरस्कृत किया जाना है।
अलंकरणों हेतु गत ५ वर्षों में प्रकाशित पुस्तक की २ प्रतियाँ, लेखक का चित्र, संक्षिप्त परिचय (नाम, जन्म तारीख माह वर्ष, माता-पिता- पति/पत्नी के नाम, शिक्षा, संप्रति, प्रकाशित एकल पुस्तकों के नाम, डाक का पता, चलभाष/वाट्स एप, ईमेल) आदि संस्था कार्यालय ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ के पते पर तथा सहभागिता निधि ३००/- (९४२५१८३२४४ पर) आमंत्रित है।
सर्वश्रेष्ठ चयऩित ५ पुस्तकों पर क्रमश: ११,०००/-, ५०००/-, ४०००/-, ३०००/-, २०००/- व १०००/- नगद राशि व अलंकरण पत्र प्रदान किए जाएँगे। प्रविष्टि हेतु यांत्रिकी, तकनीकी, चिकित्सा, वास्तु, कम्प्यूटर, पर्यावरण, कृषि, रत्न विज्ञान आदि सभी विषय मान्य हैं।
अलंकरण स्थापित करने के लिए प्रदाताओं से प्रस्ताव आमंत्रित हैं। इस हेतु अलंकरण दाता तथा जिनके नाम पर अलंकरण है, दोनों का चित्र, संक्षिप्त परिचय तथा वार्षिक सदस्यता ११००/- + अलंकरण राशि भेजें।
***
सॉनेट
प्रार्थना
नर्मदेश्वर! नमन शत शत लो
बह सके रस-धार जीवन में
कर कृपा आशीष अक्षय दो
भज तुम्हें पल पल सुपावन हो
बह सके, जड़ हो न बुद्धि मलिन
कर सके किंचित् सलिल परमार्थ
जो मिला बाँटे, न जोड़े मन-
साध्य जीवन जी सके सर्वार्थ
हूँ तुम्हारा उपकरण मैं मात्र
जिस तरह चाहो, करो उपयोग
दिया तुमने, तुम्हारा है गोत्र
अहम् का देना न देवा रोग
रहूँ ज्यों का त्यों, न बदलूँ तात
दें सदा दिल खोल आशीष मात
२२-११-२०२२
●●●
अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस
दोहा का रंग बाल के संग
*
बाल-बाल जब भी बचें, कहें देव! आभार
बाल न बाँका हो कभी कृपा करें सरकार
*
बाल खड़े हों जब कभी, प्रभु सुमिरें मनमीत
साहस कर उठ हों खड़े, भय पर पाएँ जीत
*
नहीं धूप में किए हैं, हमने बाल सफेद
जी चाहा जी भर लिखा, किया न किंचित खेद
*
सुलझा काढ़ो ऊँछ लो, पटियाँ पारो खूब
गूँथो गजरा-वेणियाँ, प्रिय हेरे रस-डूब
*
बाल न बढ़ते तनिक भी, बाल चिढ़ाते खूब
तू न तरीका बताती, जाऊँ नदी में डूब
*
बाल होलिका-ज्वाल में, बाल भूनते साथ
दीप बाल, कर आरती, नवा रहे हैं माथ
*
बाल मुँड़ाने से अगर, मिटता मोह-विकार
हो जाती हर भेद तब, भवसागर के पार
*
बाल और कपि एक से, बाल-वृद्ध हैं एक
वृद्ध और कपि एक क्यों, माने नहीं विवेक?
*
बाल बनाते जा रहे, काट-गिराकर बाल
सर्प यज्ञ पश्चात ज्यों, पड़े अनगिनत व्याल
*
बाल बढ़ें लट-केश हों, मिल चोटी हों झूम
नागिन सम लहरा रहे, बेला-वेणी चूम
*
अगर बाल हो तो 'सलिल', रहो नाक के बाल
मूँछ-बाल बन तन रखो, हरदम उन्नत भाल
*
भौंह-बाल तन चाप सम, नयन बाण दें मार
पल में बिंध दिल सूरमा, करे हार स्वीकार
*
बाल पूँछ का हो रहा, नित्य दुखी हैरान
धूल हटा, मक्खी भगा, थका-चुका हैरान
*
बाल बराबर भी अगर, नैतिकता हो संग
कर न सकेगा तब सबल, किसी निबल को तंग
*
बाल भीगकर भीगते, कुंकुम कंचन देह
कंगन-पायल मुग्ध लख, बिन मौसम का मेह
*
गिरें खुद-ब-खुद तो नहीं, देते किंचित पीर
नोचें-तोड़ें बाल तो, हों अधीर पा पीर
*
ग्वाल-बाल मिल खा गए, माखन रच इतिहास
बाल सँवारें गोपिका, नोचें सुनकर हास
*
बाल पवन में उड़ गए, हुआ अग्नि में क्षार
भीग सलिल में हँस रहे, मानो मालामाल
*
***
सरस्वती स्तवन
बृज
*
मातु! सुनौ तुम आइहौ आइहौ,
काव्य कला हमकौ समुझाइहौ
फेर कभी मुख दूर न जाइहौ
गीत सिखाइहौ, बीन बजाइहौ
श्वेत वदन है, श्वेत वसन है
श्वेत लै वाहन दरस दिखाइहौ
छंद सिखाइहौ, गीत सुनाइहौ,
ताल बजाइहौ, वाह दिलाइहौ
***
मुक्तिका
रामसेवक राम सेवक हो गए
*
कुछ कहा जाता नहीं है क्या कहूँ?
मित्र! तुमको याद कर पल-पल दहूँ।
चाहता है मन कि बनकर अश्रु अब
नर्मदा में नेह की गुमसुम बहूँ
मोह बंधन तोड़कर तुम चल दिए
याद के पन्ने पलटकर मैं तहूँ
कौन समझेगा कि क्या नाता रहा
मित्र! बिछुड़न की व्यथा कैसे सहूँ?
रामसेवक राम सेवक हो गए
हाथ खाली हो गए यादें गहूँ
२२-११-२-२०१९
***
हिंदी के नए छंद
कुंडलिनी छंद
*
सत्य अनूठी बात, महाराष्ट्र है राष्ट्र में।
भारत में ही तात, युद्ध महाभारत हुआ।।
युद्ध महाभारत हुआ, कृष्ण न पाए रोक।
रक्तपात संहार से, दस दिश फैला शोक।।
स्वार्थ-लोभ कारण बने, वाहक बना असत्य।
काम करें निष्काम हो, सीख मिली चिर सत्य।।
२२-११-२०१८
*
बीते दिन फुटपाथ पर, प्लेटफोर्म पर रात
ट्रेन लेट है प्रीत की, बतला रहा प्रभात
***
दोहा सलिला:
कुछ दोहे अनुप्रास के
अजर अमर अक्षर अमित, अजित असित अवनीश
अपराजित अनुपम अतुल, अभिनन्दन अमरीश
*
अंबर अवनि अनिल अनल, अम्बु अनाहद नाद
अम्बरीश अद्भुत अगम, अविनाशी आबाद
*
अथक अनवरत अपरिमित, अचल अटल अनुराग
अहिवातिन अंतर्मुखी, अन्तर्मन में आग
*
आलिंगन कर अवनि का, अरुण रश्मियाँ आप्त
आत्मिकता अध्याय रच, हैं अंतर में व्याप्त
*
अजब अनूठे अनसुने, अनसोचे अनजान
अनचीन्हें अनदिखे से,अद्भुत रस अनुमान
*
अरे अरे अ र र र अड़े, अड़म बड़म बम बूम
अपनापन अपवाद क्यों अहम्-वहम की धूम?
*
अकसर अवसर आ मिले, बिन आहट-आवाज़
अनबोले-अनजान पर, अलबेला अंदाज़
***
मुक्तिका
.
लोहा हो तो सदा तपाना पड़ता है
हीरा हो तो उसे सजाना पड़ता है
.
गजल मुक्तिका तेवरी या गीतिका कहें
लय को ही औज़ार बनाना पड़ता है
.
कथन-कहन का हो अलहदा तरीका कुछ
अपने सुर में खुद को गाना पड़ता है
.
बस आने से बात नहीं बनती लोगों
वक्त हुआ जब भी चुप जाना पड़ता है
.
चूक जरा भी गए न बख्शे जाते हैं
शीश झुकाकर सुनना ताना पड़ता है
***
कार्यशाला-
विधा - कुण्डलिया छंद
कवि- भाऊ राव महंत
०१
सड़कों पर हो हादसे, जितने वाहन तेज
उन सबको तब शीघ्र ही, मिले मौत की सेज।
मिले मौत की सेज, बुलावा यम का आता
जीवन का तब वेग, हमेशा थम ही जाता।
कह महंत कविराय, आजकल के लड़कों पर
चढ़ा हुआ है भूत, तेज चलते सड़कों पर।।
१. जितने वाहन तेज होते हैं सबके हादसे नहीं होते, यह तथ्य दोष है. 'हो' एक वचन, हादसे बहुवचन, वचन दोष. 'हों' का उपयोग कर वचन दोष दूर किया जा सकता है।
२. तब के साथ जब का प्रयोग उपयुक्त होता है, सड़कों पर हों हादसे, जब हों वाहन तेज।
३. सबको मौत की सेज नहीं मिलती, यह भी तथ्य दोष है। हाथ-पैर टूटें कभी, मिले मौत की सेज
४. मौत की सेज मिलने के बाद यम का बुलावा या यम का बुलावा आने पर मौत की सेज?
५. जीवन का वेग थमता है या जीवन (साँसों) की गति थमती है?
६. आजकल के लड़कों पर अर्थात पहले के लड़कों पर नहीं था,
७. चढ़ा हुआ है भूत... किसका भूत चढ़ा है?
सुझाव
सड़कों पर हों हादसे, जब हों वाहन तेज
हाथ-पैर टूटें कभी, मिले मौत की सेज।
मिले मौत की सेज, बुलावा यम का आता
जीवन का रथचक्र, अचानक थम सा जाता।
कह महंत कविराय, चढ़ा करता लड़कों पर
जब भी गति का भूत, भागते तब सड़कों पर।।
०२
बन जाता है हादसा, थोड़ी-सी भी चूक
जीवन की गाड़ी सदा, हो जाती है मूक।
हो जाती है मूक, मौत आती है उनको
सड़कों पर जो मीत, चलें इतराकर जिनको।
कह महंत कविराय, सुरक्षित रखिए जीवन
चलकर चाल कुचाल, मौत का भागी मत बन।।
१. हादसा होता है, बनता नहीं। चूक पहले होती है, हादसा बाद में क्रम दोष
२. सड़कों पर जो मीत, चलें इतराकर जिनको- अभिव्यक्ति दोष
३. रखिए, मत बन संबोधन में एकरूपता नहीं
हो जाता है हादसा, यदि हो थोड़ी चूक
जीवन की गाड़ी कभी, हो जाती है मूक।
हो जाती है मूक, मौत आती है उनको
सड़कों पर देखा चलते इतराकर जिनको।
कह महंत कवि धीरे चल जीवन रक्षित हो
चलकर चाल कुचाल, मौत का भागी मत हो।
२२-११-२०१७
***
जन्म दिन पर अनंत शुभ कामनाएँ
आदरणीया लावण्य शर्मा शाह को
*
उमर बढ़े बढ़ते रहे ओज, रूप, लावण्य
हर दिन दिनकर दे नए सपने चिर तारुण्य
सपने चिर तारुण्य विरासत चिरजीवी हो
पा नरेंद्र-आशीष अमर मन मसिजीवी हो
नमन 'सलिल' का स्वीकारें पा करती-यश अमर
चिरतरुणी हों आप असर दिखाए ना उमर
***
गीत
अनाम
*
कहाँ छिपे तुम?
कहो अनाम!
*
जग कहता तुम कण-कण में हो
सच यह है तुम क्षण-क्षण में हो
हे अनिवासी!, घट-घटवासी!!
पर्वत में तुम, तृण-तृण में हो
सम्मुख आओ
कभी हमारे
बिगड़े काम
बनाओ अकाम!
*
इसमें, उसमें, तुमको देखा
छिपे कहाँ हो, मिले न लेखा
तनिक बताओ कहाँ बनाई
तुमने कौन लक्ष्मण रेखा?
बिन मजदूरी
श्रम करते क्यों?
किंचित कर लो
कभी विराम.
*
कब तुम माँगा करते वोट?
बदला करते कैसे नोट?
खूब चढ़ोत्री चढ़ा रहे वे
जिनके धंधे-मन में खोट
मुझको निज
एजेंट बना लो
अधिक न लूँगा
तुमसे दाम.
२२-११-२०१६
***
रसानंद दे छंद नर्मदा ​ ​५६ :
​दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​,गीतिका,​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन / सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका, शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रव​​ज्रा, इंद्रव​​ज्रा, सखी​, विधाता / शुद्धगा, वासव​, ​अचल धृति​, अचल​​, अनुगीत, अहीर, अरुण, अवतार, ​​उपमान / दृढ़पद, एकावली, अमृतध्वनि, नित, आर्द्रा, ककुभ/कुकभ, कज्जल, कमंद, कामरूप, कामिनी मोहन (मदनावतार), काव्य, वार्णिक कीर्ति, कुंडल छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए​ गीता छंद ​से
गीता छंद
*
छंद-लक्षण: जाति महाभागवत, प्रति पद - मात्रा २६ मात्रा, यति १४ - १२, पदांत गुरु लघु.
लक्षण छंद:
चौदह भुवन विख्यात है, कुरु क्षेत्र गीता-ज्ञान
आदित्य बारह मास नित, निष्काम करे विहान
अर्जुन सदृश जो करेगा, हरि पर अटल विश्वास
गुरु-लघु न व्यापे अंत हो, हरि-हस्त का आभास
संकेत: आदित्य = बारह
उदाहरण:
१. जीवन भवन की नीव है , विश्वास- श्रम दीवार
दृढ़ छत लगन की डालिये , रख हौसलों का द्वार
ख्वाबों की रखें खिड़कियाँ , नव कोशिशों का फर्श
सहयोग की हो छपाई , चिर उमंगों का अर्श
२. अपने वतन में हो रहा , परदेश का आभास
अपनी विरासत खो रहे , किंचित नहीं अहसास
होटल अधिक क्यों भा रहा? , घर से हुई क्यों ऊब?
सोचिए! बदलाव करिए , सुहाये घर फिर खूब
३. है क्या नियति के गर्भ में , यह कौन सकता बोल?
काल पृष्ठों पर लिखा क्या , कब कौन सकता तौल?
भाग्य में किसके बदा क्या , पढ़ कौन पाया खोल?
कर नियति की अवमानना , चुप झेल अब भूडोल।
४. है क्षितिज के उस ओर भी , सम्भावना-विस्तार
है ह्रदय के इस ओर भी , मृदु प्यार लिये बहार
है मलयजी मलय में भी , बारूद की दुर्गंध
है प्रलय की पदचाप सी , उठ रोक- बाँट सुगंध
२१-११-२०१६
***
जन्म दिन पर अनंत शुभ कामना
अप्रतिम तेवरीकार अभियंता दर्शन कुलश्रेष्ठ 'बेजार' को
*
दर्शन हों बेज़ार के, कब मन है बेजार
दो हजार के नोट पर, छापे यदि सरकार
छापे यदि सरकार, देखिएगा तब तेवर
कवि धारेगे नोट मानकर स्वर्णिम जेवर
सुने तेवरी जो उसको ही नोट मिलेगा
और कहे जो वह कतार से 'सलिल' बचेगा
***
नवगीत:
रस्म की दीवार
करती कैद लेकिन
आस खिड़की
रूह कर आज़ाद देती
सोच का दरिया
भरोसे का किनारा
कोशिशी सूरज
न हिम्मत कभी हारा
उमीदें सूखी नदी में
नाव खेकर
हौसलों को हँस
नयी पतवार देती
हाथ पर मत हाथ
रखकर बैठना रे!
रात गहरी हो तो
सूरज लेखना रे!
कालिमा को लालिमा
करती विदा फिर
आस्मां को
परिंदा उपहार देती
***
नवगीत:
अहर्निश चुप
लहर सा बहता रहे
आदमी क्यों रोकता है धार को?
क्यों न पाता छोड़ वह पतवार को
पला सलिला के किनारे, क्यों रुके?
कूद छप से गव्हर नापे क्यों झुके?
सुबह उगने साँझ को
ढलता रहे
हरीतिमा की जयकथा
कहता रहे
दे सके औरों को कुछ ले कुछ नहीं
सिखाती है यही भू माता मही
कलुष पंकिल से उगाना है कमल
धार तब ही बह सकेगी हो विमल
मलिन वर्षा जल
विकारों सा बहे
शांत हों, मन में न
दावानल दहे
ऊर्जा है हर लहर में कर ग्रहण
लग न लेकिन तू लहर में बन ग्रहण
विहंगम रख दृष्टि, लघुता छोड़ दे
स्वार्थ साधन की न नाहक होड़ ले
कहानी कुदरत की सुन,
अपनी कहे
स्वप्न बनकर नयन में
पलता रहे
***
नवगीत:
जो जी चाहे करूँ
मुझे तो है इसका अधिकार
बीड़ी-गुटखा बहुत जरूरी
साग न खा सकता मजबूरी
पौआ पी सकता हूँ, लेकिन
दूध नहीं स्वीकार
जो जी चाहे करूँ
मुझे तो है इसका अधिकार
कौन पकाए घर में खाना
पिज़्ज़ा-चाट-पकौड़े खाना
चटक-मटक बाजार चलूँ
पढ़ी-लिखी मैं नार
जो जी चाहे करूँ
मुझे तो है इसका अधिकार
रहें झींकते बुड्ढा-बुढ़िया
यही मुसीबत की हैं पुड़िया
कहते सादा खाना खाओ
रोके आ सरकार
जो जी चाहे करूँ
मुझे तो है इसका अधिकार
हुआ कुपोषण दोष न मेरा
खुद कर दूँ चहुँ और अँधेरा
करे उजाला घर में आकर
दखल न दे सरकार
जो जी चाहे करूँ
मुझे तो है इसका अधिकार
२१-११-२०१४
***
शिशु गीत सलिला : १
*
१.श्री गणेश
श्री गणेश की बोलो जय,
पाठ पढ़ो होकर निर्भय।
अगर सफलता पाना है-
काम करो होकर तन्मय।।
*
२. सरस्वती
माँ सरस्वती देतीं ज्ञान,
ललित कलाओं की हैं खान।
जो जमकर अभ्यास करे-
वही सफल हो, पा वरदान।।
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३. भगवान
सुन्दर लगते हैं भगवान,
सब करते उनका गुणगान।
जो करता जी भर मेहनत-
उसको देते हैं वरदान।।
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४. देवी
देवी माँ जैसी लगती,
काम न लेकिन कुछ करती।
भोग लगा हम खा जाते-
कभी नहीं गुस्सा करती।।
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५. धरती माता
धरती सबकी माता है,
सबका इससे नाता है।
जगकर सुबह प्रणाम करो-
फिर उठ बाकी काम करो।।
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६. भारत माता
सजा शीश पर मुकुट हिमालय,
नदियाँ जिसकी करधन।
सागर चरण पखारे निश-दिन-
भारत माता पावन।
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७. हिंदी माता
हिंदी भाषा माता है,
इससे सबका नाता है।
सरल, सहज मन भाती है-
जो पढ़ता मुस्काता है।।
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८. गौ माता
देती दूध हमें गौ माता,
घास-फूस खाती है।
बछड़े बैल बनें हल खीचें
खेती हो पाती है।
गोबर से कीड़े मरते हैं,
मूत्र रोग हरता है,
अंग-अंग उपयोगी
आता काम नहीं फिकता है।
गौ माता को कर प्रणाम
सुख पाता है इंसान।
बन गोपाल चराते थे गौ
धरती पर भगवान।।
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९. माँ -१
माँ ममता की मूरत है,
देवी जैसी सूरत है।
थपकी देती, गाती है,
हँसकर गले लगाती है।
लोरी रोज सुनाती है,
सबसे ज्यादा भाती है।।
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१०. माँ -२
माँ हम सबको प्यार करे,
सब पर जान निसार करे।
माँ बिन घर सूना लगता-
हर पल सबका ध्यान धरे।।
२१-११-२०१२
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गीत:
मत ठुकराओ
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मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
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मेवा-मिष्ठानों ने तुमको
जब देखो तब ललचाया है.
सुख-सुविधाओं का हर सौदा-
मन को हरदम ही भाया है.
ऐश, खुशी, आराम मिले तो
तन नाकारा हो मरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
*
मेहनत-फाके जिसके साथी,
उसके सर पर कफन लाल है.
कोशिश के हर कुरुक्षेत्र में-
श्रम आयुध है, लगन ढाल है.
स्वेद-नर्मदा में अवगाहन
जो करता है वह तरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
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खाद उगाती है हरियाली.
फसलें देती माटी काली.
स्याह निशा से, तप्त दिवस से-
ऊषा-संध्या पातीं लाली.
दिनकर हो या हो रजनीचर
रश्मि-ज्योत्सना बन झरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
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नवगीत
पहले जी भर.....
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पहले जी भर लूटा उसने,
फिर थोड़ा सा दान कर दिया.
जीवन भर अपमान किया पर
मरने पर सम्मान कर दिया.....
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भूखे को संयम गाली है,
नंगे को ज्यों दीवाली है.
रानीजी ने फूँक झोपड़ी-
होली पर भूनी बाली है..
तोंदों ने कब क़र्ज़ चुकाया?
भूखों को नीलाम कर दिया??
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कौन किसी का यहाँ सगा है?
नित नातों ने सदा ठगा है.
वादों की हो रही तिजारत-
हर रिश्ता निज स्वार्थ पगा है..
जिसने यह कटु सच बिसराया
उसका काम तमाम कर दिया...
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जो जब सत्तासीन हुआ तब
'सलिल' स्वार्थ में लीन हुआ है.
धनी अधिक धन जोड़ रहा है-
निर्धन ज्यादा दीन हुआ है..
लोकतंत्र में लोभतंत्र ने
खोटा सिक्का खरा कर दिया...
२२-११-२०१०
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