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बुधवार, 14 जनवरी 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 13

चंद माहिये
-आनन्द पाठक
जयपुर
:१:

इक अक्स उतर आया
दिल के शीशे में
फिर कौन नज़र आया

:२:

ता उम्र रहा चलता
तेरी ही जानिब
ऎ काश कि तू मिलता

:३:

तुम से न कभी सुलझें
अच्छा लगता है
बिखरी बिखरी जुलफ़ें

:४:

गो दुनिया फ़ानी है
लेकिन जैसी हो
लगती तो सुहानी है

:५:

वो ख़ालिक में उलझे
मजहब के आलिम
इन्सां को नहीं समझे

-आनन्द.पाठक
09413395592

मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

Gazal: anand pathak

ग़ज़ल :

चौक पे कन्दील जब ....
 
आनन्द पाठक,जयपुर
*
चौक पे कन्दील जब जलने लगी
तब सियासत मन ही मन डरने लगी
 
आदिलों की कुर्सियाँ ख़ामोश हैं
भीड़ ही अब फ़ैसला करने लगी
 
क़ातिलों की बात तो आई गई
कत्ल पे ही ’पुलिस’ शक करने लगी
 
ख़ून के रिश्ते फ़क़त पानी हुए
’मां’ भी बँटवारे में है बँटने लगी
 
जानता हूं ये चुनावी दौर है
फिर से सत्ता दम मिरा भरने लगी
 
तुम बुझाने तो गये थे आग ,पर
क्या किया जो आग फिर बढ़ने लगी
 
इस शहर का हाल क्या ’आनन’ कहूँ
क्या वहाँ भी धुन्ध सी घिरने लगी ?
 
चौक = India gate
आदिल = न्यायाधीश
 
 

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

gazal: anand pathak

ग़ज़ल :  
क्या करेंगे....
आनन्द पाठक,जयपुर

 
क्या करेंगे आप से हम याचनाएं
मर चुकी जिनकी सभी संवेदनाएं
 
जो मिले अनुदान रिश्वत में बँटे है फ़ाइलों में चल रही परियोजनाएं
 
रोशनी के नाम दरवाजे खुले हैं हादसों की बढ़ गई संभावनाएं
 
पत्थरों के शहर में कुछ आइनें हैं डर सताता है कहीं वो बिक न जाएं
 
आप की हर आहटें पहचानते हैं जब कभी जितना दबे भी पाँव आएं
 
चाहता है जब कहे वो बात कोई बेझिझक हम हाँमें उसकी हाँमिलाएं
 
वो इशारों से नहीं समझेगा आननजब तलक आवाज न अपनी बढ़ाएं
-
 

रविवार, 17 मार्च 2013

एक ग़ज़ल : कोई नदी जो उनके......... आनन्द पाठक






एक ग़ज़ल : 
कोई नदी जो उनके.........
आनन्द पाठक
*
कोई नदी जो उनके घर से गुज़र गई है
चढ़ती हुई जवानी पल में उतर गई है
 
बँगले की क्यारियों में पानी तमाम पानी
प्यासों की बस्तियों में सूखी नहर गई है
 
परियोजना तो वैसे हिमखण्ड की तरह थी
पिघली तो भाप बन कर जाने किधर गई है
 
हर बूँद बूँद तरसी मेरी तिश्नगी लबों की
आई लहर तो उनके आँगन ठहर गई है
 
"छमिया’ से पूछना था ,थाने बुला लिए थे
’साहब" से पूछना है ,सरकार घर गई है
 
वो आम आदमी है हर रोज़ लुट रहा है
क्या पास में है उसके सरकार डर गई है !
 
ख़ामोश हो खड़े यूँ क्या सोचते हो "आनन’?
क्योंकर नहीं गये तुम दुनिया जिधर गई है ?
 anand pathak akpathak317@yahoo.co.in

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

भोजपुरी होली गीत -आनन्द पाठक,

एगो भोजपुरी होली गीत
आनन्द पाठक,जयपुर
 
काहे नS रंगवा लगउलु हो गोरिया ...काहे नS रंगवा लगउलु ?
 
अपने नS अईलु न हमके बोलऊलु ,’कजरीके हाथे नS चिठिया पठऊलु  
 होली में मनवा जोहत रहS गईलस. केकरा से जा के तू रंगवा लगऊलु
 
रंगवा लगऊलु......तू रंगवा लगऊलु... काहे केS मुँहवा फुलऊलु संवरिया
 काहे केS मुँहवा बनऊलु ?
 
रामS के संग होली सीता जी खेललीं ,’राधा जी खेललीं तS कृश्ना से खेललीं
होली के मस्ती में डूबलैं सब मनई नS अईलु तS तोरे फ़ोटुए से खेललीं
 
फोटुए से खेललीं... हो फ़ोटुए से खेललीं.... अरे ! केकराS से चुनरी रंगऊलु ?, 
 सँवरिया ! केकरा से चुनरी रंगऊलु ?
 
रमनथवाखेललस रमरतियाके संगे, ’मनतोरनी खेललस संघतिया के संगे
दुनिया नS कहलस कछु होली के दिनवा ,खेललस जमुनवा’ ’सुरसतियाके संगे
 
सुरसतिया के संगे.....सुर सतिया के संगे.... केकरा केS डर से तू बाहर नS अईलु  ,
 S अंगवा से अंगवा लगउलु
 
काहें गोड़धरिया करऊलु संवरिया..... काहें गोड़धरिया करऊलु.?..............काहें न रंगवा लगऊलु ?  
 

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