कविता:
विरसा
संजीव 'सलिल'
*
तुमने
विरसे में छोड़ी है
अकथ-कथा
संघर्ष-त्याग की.
हमने
जीवन-यात्रा देखी
जीवट-श्रम,
बलिदान-आग की.
आये थे अनजान बटोही
बहुतों के
श्रृद्धा भाजन हो.
शिक्षा, ज्ञान, कर्म को अर्पित
तुम सारस्वत नीराजन हो.
हम करते संकल्प
कर्म की यह मशाल
बुझ ना पायेगी.
मिली प्रेरणा
तुमसे जिसको
वह पीढ़ी जय-जय गायेगी.
प्राण-दीप जल दे उजियारा
जग ज्योतित कर
तिमिर हरेगा.
सत्य सहाय जिसे हो
वह भी-
तरह तुम्हारी लक्ष्य वरेगा.
*****
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 13 दिसंबर 2010
कविता: विरसा संजीव 'सलिल'
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aratee. samyik hindi kavita,
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contemporry hindi poetry,
damoh,
jabalpur,
sanjiv 'salil',
satya sahay shrevastav
प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव के प्रति भावांजलि: तुममें जीवित था... संजीव 'सलिल'
प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव के प्रति भावांजलि:
तुममें जीवित था...
संजीव 'सलिल'
*
तुममें जीवित था इतिहास,
किन्तु न था युग को आभास...
*
पराधीनता के दिन देखे.
सत्याग्रह आन्दोलन लेखे..
प्रतिभा-पूरित सुत 'रनेह' के,
शत प्रसंग रोचक अनलेखे..
तुम दमोह के दीपक अनुपम
देते दिव्य उजास...
*
गंगा-विश्वनाथ मन भाये,
'छोटे' में विराट लख पाये..
अरपा नदी बिलासा माई-
छतीसगढ़ में रम harhsaaye..
कॉलेज-अर्थशास्त्र ने पाया-
नव उत्थान-विकास...
*
साक्ष्य खरसिया-जांजगीर है.
स्वस्थ रखी तुमने नजीर है..
व्याख्याता-प्राचार्य बहुगुणी
कीर्ति-विद्वता खुद नजीर है..
छात्र-कल्याण अधिष्ठाता रह-
हुए लोकप्रिय खास...
*
कार्यस्थों को राह दिखायी.
लायन-रोटरी ज्योति जलायी.
हिंद और हिन्दी के वाहक
अमिय लुटाया हो विषपायी..
अक्षय-निधि आशा-संबल था-
सार्थक किये प्रयास...
*
श्रम-विद्या की सतत साधना.
विमल वन्दना, पुण्य प्रार्थना,
तुम अशोक थे, तुम अनूप थे-
महावीर कर विपद सामना,
नेह-नर्मदा-सलिल पानकर-
हरी पीर-संत्रास...
*
कीर्ति-कथा मोहिनी अगेह की.
अर्थशास्त्र-शिक्षा विदेह सी.
सत-शिव-सुंदर की उपासना-
शब्दाक्षर आदित्य-गेह की..
किया निशा में भी उजियारा.
हर अज्ञान-तिमिर का त्रास...
*
संस्मरण बहुरंगी अनगिन,
क्या खोया?, क्या पाया? बिन-गिन..
गुप्त चित्त में चित्र चित्रगुप्त प्रभु!
कर्म-कथाएँ लिखें पल-छीन.
हरी उपेक्षित मन की पीड़ा
दिया विपुल अधरों को हास...
*
शिष्य बने जो मंत्री-शासन,
करें नीति से जन का पालन..
सत्ता जन-हित में प्रवृत्त हो-
दस दिश सुख दे सके सु-शासन..
विद्यानगर बसा सामाजिक
नायक लिये हुलास...
*
प्रखर कहानी कर्मयोग की,
आपद, श्रम साफल्य-योग की.
थी जिजीविषा तुममें अनुपम-
त्याग समर्पण कश्र-भोग की..
बुन्देली भू के सपूत हे!
फ़ैली सुरभि-सुवास...
******
तुममें जीवित था...
संजीव 'सलिल'
*
तुममें जीवित था इतिहास,
किन्तु न था युग को आभास...
*
पराधीनता के दिन देखे.
सत्याग्रह आन्दोलन लेखे..
प्रतिभा-पूरित सुत 'रनेह' के,
शत प्रसंग रोचक अनलेखे..
तुम दमोह के दीपक अनुपम
देते दिव्य उजास...
*
गंगा-विश्वनाथ मन भाये,
'छोटे' में विराट लख पाये..
अरपा नदी बिलासा माई-
छतीसगढ़ में रम harhsaaye..
कॉलेज-अर्थशास्त्र ने पाया-
नव उत्थान-विकास...
*
साक्ष्य खरसिया-जांजगीर है.
स्वस्थ रखी तुमने नजीर है..
व्याख्याता-प्राचार्य बहुगुणी
कीर्ति-विद्वता खुद नजीर है..
छात्र-कल्याण अधिष्ठाता रह-
हुए लोकप्रिय खास...
*
कार्यस्थों को राह दिखायी.
लायन-रोटरी ज्योति जलायी.
हिंद और हिन्दी के वाहक
अमिय लुटाया हो विषपायी..
अक्षय-निधि आशा-संबल था-
सार्थक किये प्रयास...
*
श्रम-विद्या की सतत साधना.
विमल वन्दना, पुण्य प्रार्थना,
तुम अशोक थे, तुम अनूप थे-
महावीर कर विपद सामना,
नेह-नर्मदा-सलिल पानकर-
हरी पीर-संत्रास...
*
कीर्ति-कथा मोहिनी अगेह की.
अर्थशास्त्र-शिक्षा विदेह सी.
सत-शिव-सुंदर की उपासना-
शब्दाक्षर आदित्य-गेह की..
किया निशा में भी उजियारा.
हर अज्ञान-तिमिर का त्रास...
*
संस्मरण बहुरंगी अनगिन,
क्या खोया?, क्या पाया? बिन-गिन..
गुप्त चित्त में चित्र चित्रगुप्त प्रभु!
कर्म-कथाएँ लिखें पल-छीन.
हरी उपेक्षित मन की पीड़ा
दिया विपुल अधरों को हास...
*
शिष्य बने जो मंत्री-शासन,
करें नीति से जन का पालन..
सत्ता जन-हित में प्रवृत्त हो-
दस दिश सुख दे सके सु-शासन..
विद्यानगर बसा सामाजिक
नायक लिये हुलास...
*
प्रखर कहानी कर्मयोग की,
आपद, श्रम साफल्य-योग की.
थी जिजीविषा तुममें अनुपम-
त्याग समर्पण कश्र-भोग की..
बुन्देली भू के सपूत हे!
फ़ैली सुरभि-सुवास...
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