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शनिवार, 1 मार्च 2025

फरवरी २८, राम किंकर, बुंदेली सारद वंदना, सॉनेट, मुक्तिका, पूर्णिका, गंगा

 सलिल सृजन फरवरी २८

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गीत हर हर गंगे, हर हर गंगे। ० नभ से शंकरी जटाओं में उतरीं फिर अटक-भटक प्रवहीं। गंगोत्री हिम गिरि से भू पर अठखेली करतीं हुलस बहीं। कुछ हहराई, कुछ घहराईं कुछ इठलाईं, कुछ इतराईं। टुक ठिठकीं उठ दौड़ी-धाईं रुक मंथर गति पा मुसकाईं। कोई नृप मुग्ध हुआ सुधि खो कोई सुत जगा सका बुधि को। कोई कन्या मछलीगंधा कोई मुनि हुआ काम-अंधा। तापस द्वैपायन व्यास बना सुरसरि का यश चहुँ ओर घना। हरि द्वार खड़े होकर चंगे हर हर गंगे! हर हर गंगे!! ० ऋषि केश लहर सम लहराए हिमगिरि निज छवि लख इठलाए। मैदानों में जब उतर बहीं नव मूल्यों की नित कथा कहीं। हा कानपूर में दूषित हो निज निर्मलता दी तुमने खो। आ अनुजा जमुना भुज भेंठी थी दृश्य अदृश्य हुई जेठी। अनगिन पंडे अनगिनत झंडे मुस्टंडे कर थामे डंडे। अंधी श्रद्धा लख हुईं दुखी गंगा लहरी सुन हुईँ सुखी। जन धीर धरे लख कल्प वृक्ष झट शीश उठाए, तान वक्ष। कुछ उदर पलें हो भिखमंगे हर हर गंगे!,,हर हर गंगे!! ० जय जय काशी, जय विश्वनाथ संसार असार न सार नाथ। पट ना खोले पटना बिहार थे शुद्ध बुद्ध अंतस निहार। कौटिल्य-चंद्र आ तीर तरे गंगा सागर की ओर बढ़े। मिल ब्रह्मपुत्र से हर्षाईं सागर वर पाकर सँकुचाईँ। सुंदर मन तन्मय हो पुलका सुंदर वन मृण्मय हँस किलका। सागर भेंटा बाँहे पसार लहराया पहना लहर हार। हो संजीवित पा दर्प चूर्ण नत मस्तक हो सलिलेश पूर्ण। गंगेश-गंग युग-युग संगे हर हर गंगे!, हर हर गंगे!! २८.२.२५ ०००
पूर्णिका गंगा ० लहर लहर लहराती गंगा सबके पाप मिटाती गंगा . महादेव के शीश विराजे भक्त तार तर जाती गंगा . निर्मल सलिल प्रवाहित कल-कल जग की प्यास बुझाती गंगा . सबसे स्नेह समन्वय करिए जीवन-पाठ पढ़ाती गंगा . ऊँच-नीच अरु भेद-भाव को ठेंगा दिखा मिटाती गंगा . उतर शिखर से नगरों में आ गटर बने दुख पाती गंगा . गुरु-गुरुकुल ऋषि-आश्रम गायब श्री खोकर पछताती गंगा . मिटे किनारे उथली होकर पल पल मरती जाती गंगा . शंकर-भागीरथ आ तारें प्रभु से नित्य मनाती गंगा . गहरी स्वच्छ प्रवाहमयी हो नवजीवन पा गाती गंगा . नदी नहीं, गंगा संस्कृति है नव्या पा हर्षाती गंगा २८.२.२०२५ ०००
स्मरण युग तुलसी ३
आरती
आरती करें गुरुवर की करें, हनुमंत संग रघुवर की।
आरती करें गुरुवर की...
जन्म नर्मदा तट पर पाया, हनुमत ने आ पंथ दिखाया।
सिया-राम गुण निशि-दिन गाया, बंधन कोई रोक न पाया।।
सफल साधना पूर्ण कामना मिली कृपा शंकर की।
आरती करो गुरुवर की...
नाम राम किंकर शुभ पाया, तुलसी मानस हृदय बसाया।
शब्द-शब्द का अर्थ बताया, जन-गण पग-रज पाने धाया।
भिन्न राम ना, अलग श्याम ना, ऐक्य दृष्टि सुंदर की।
आरती करो गुरुवर की...
आत्मजयी सुत प्रभु मन भाया, प्रवचन सुनने पास बुलाया।
अवधपुरी प्रभुधाम सुहाया, आत्मदेव परमात्म मिलाया।
पुण्य पावना भक्ति भावना, युगतुलसी मनहर की।
आरती करो गुरुवर की...
२८.२.२०२४
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सुमित्र दिवंगत
जबलपुर २८.२.२०२४। नगर के प्रख्यात साहित्यकार-पत्रकार राजकुमार तिवारी 'सुमित्र' का गत रात्रि निधन हो गया। विश्ववाणी हिंदी संस्थान परिवार अपने शुभ चिंतक के महाप्रयाण से स्तब्ध और शोकाकुल है। सब की ओर से प्रणतांजलि।
***
सॉनेट
माणिक जब बन गया मुसाफिर
मिला जवाहर तरुण अचानक
कृष्ण पथिक कर पकड़े फिर-फिर
दे गोपाल मधुर छवि अनथक
रोटी-कमल द्वार पर सोहे
हेमलता का मधुर हास जब
संगीता होकर मन मोहे
नवनीता अस्मिता आस तब
आस्था के शतदल शत महके
यादों के पलाश हँसते हैं
मिल यात्राओं की तलाश में
ज्वाल गीत गा पग बढ़ते हैं
तमसा के दिन करो नमन
तमसा के दिनकरो नमन
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मुक्तक
जय जयंत की बोलिए जय का कभी न अंत हो
बन बसंत हँस डोलिए रंग कुसुम्बी संत हो
बरस बरस रस कह रहा तरस नहीं डूब जा
बाहर क्यों खोजता है विदेह देह-कन्त हो
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पद
मौली पा मयूर मन नाचे
करे अर्चना मीरा मधु निशि, कांत कल्पना क्षिप्रा बाँचे
सदा शुभागत हो प्रबोध, पंकज पीयूष पान कर छककर
हो सुरेश शशिकांत तथागत, तरुणा अरुणा रुके न थककर
नमन शिवानी विहँस प्रियंका, गरिमा करतल ध्वनि कर साँचे
मौली पा मयूर मन नाचे
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बुंदेली सारद वंदना
सारद माँ! परनाम हमाओ।
नैया पार लगा दे रे।।
मूढ़ मगज कछु सीख नें पाओ।
तन्नक सीख सिखा दे रे।।
माई! बिराजीं जा परबत पै।
मैं कैसउ चढ़ पाऊँ ना।।
माई! बिराजीं स्याम सिला मा।
मैं मूरत गढ़ पाऊँ ना।।
ध्यान धरूँ आ दरसन देओ।
सुन्दर छबि दिखला दे रे।।
सारद माँ! परनाम हमाओ।
नैया पार लगा दे रे।।
मैया आखर मा पधराई।
मैं पोथी पढ़ पाऊँ ना।
मन मंदिर मा माँ पधराओ
तबआगे बढ़ पाऊँ ना।।
थाम अँगुरिया राह दिखाखें ।
मंज़िल तक पहुँचा दे रे।।
सारद माँ! परनाम हमाओ।
नैया पार लगा दे रे।।
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सॉनेट
चूहे को पंजे में दाब शेर मुस्काए।
चीं-चीं कर चूहा चाहे निज जान बचाए।
शांति वार्ता का नाटक जग के मन भाए।।
बंदर झूल शाख पर जय-जयकार गुँजाए।।
'भैंस उसी की जिसकी लाठी' अटल सत्य है।
'माइट इज राइट' निर्बल ही पीटता आया।
महाबली जो करे वही होता सुकृत्य है।।
मानव का इतिहास गया है फिर दुहराया।।
मनमानी को मन की बात बताते नेता।
देश नहीं दल की जय-जय कर चमचे पाले।
जनवाणी जन की बातों पर ध्यान न देता।।
गुटबंदी सीता को दोषी बोल निकाले।।
निज करनी पर कहो बेशरम कब शरमाए।
चूहे को पंजे में दाब शेर मुस्काए।।
२८-२-२०२२
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मुक्तिका
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इसने मारा, उसने मारा
इंसानों को सबने मारा
हैवानों की है पौ बारा
शैतानों का जै-जैकारा
सरकारों नें आँखें मूँदीं
टी वी ने मारा चटखारा
नफरत द्वेष घृणा का फोड़ा
नेताओं ने मिल गुब्बारा
आम आदमी है मुश्किल में
खासों ने खुद को उपकारा
भाषणबाजों लानत तुम पर
भारत माता ने धिक्कारा
हाथ मिलाओ, गले लगाओ
अब न बहाओ आँसू खारा
२८-२-२०२०
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शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

भारतेन्दु हरिश्चंद्र

भारतेन्दु हरिश्चंद्र (९-९-१८५०-६-१-१८८५)
गंगा-वर्णन
नव उज्ज्वल जलधार हार हीरक सी सोहति।
बिच-बिच छहरति बूंद मध्य मुक्ता मनि पोहति॥

लोल लहर लहि पवन एक पै इक इम आवत ।
जिमि नर-गन मन बिबिध मनोरथ करत मिटावत॥

सुभग स्वर्ग-सोपान सरिस सबके मन भावत।
दरसन मज्जन पान त्रिविध भय दूर मिटावत॥

श्रीहरि-पद-नख-चंद्रकांत-मनि-द्रवित सुधारस।
ब्रह्म कमण्डल मण्डन भव खण्डन सुर सरबस॥

शिवसिर-मालति-माल भगीरथ नृपति-पुण्य-फल।
एरावत-गत गिरिपति-हिम-नग-कण्ठहार कल॥

सगर-सुवन सठ सहस परस जल मात्र उधारन।
अगनित धारा रूप धारि सागर संचारन॥
***
यमुना वर्णन
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
झुके कूल सों जल-परसन हित मनहु सुहाये॥
किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सब निज-निज सोभा।
कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा॥
मनु आतप वारन तीर कौं, सिमिटि सबै छाये रहत।
कै हरि सेवा हित नै रहे, निरखि नैन मन सुख लहत॥१॥

तिन पै जेहि छिन चन्द जोति रक निसि आवति ।
जल मै मिलिकै नभ अवनी लौं तानि तनावति॥
होत मुकुरमय सबै तबै उज्जल इक ओभा ।
तन मन नैन जुदात देखि सुन्दर सो सोभा ॥
सो को कबि जो छबि कहि , सकै ता जमुन नीर की ।
मिलि अवनि और अम्बर रहत ,छबि इक - सी नभ तीर की ॥२॥

परत चन्र्द प्रतिबिम्ब कहूँ जल मधि चमकायो ।
लोल लहर लहि नचत कबहुँ सोइ मन भायो॥
मनु हरि दरसन हेत चन्र्द जल बसत सुहायो ।
कै तरंग कर मुकुर लिये सोभित छबि छायो ॥
कै रास रमन मैं हरि मुकुट आभा जल दिखरात है ।
कै जल उर हरि मूरति बसति ता प्रतिबिम्ब लखात है ॥३॥

कबहुँ होत सत चन्द कबहुँ प्रगटत दुरि भाजत ।
पवन गवन बस बिम्ब रूप जल मैं बहु साजत ।।
मनु ससि भरि अनुराग जामुन जल लोटत डोलै ।
कै तरंग की डोर हिंडोरनि करत कलोलैं ।।
कै बालगुड़ी नभ में उड़ी, सोहत इत उत धावती ।
कई अवगाहत डोलात कोऊ ब्रजरमनी जल आवती ।।४।।

मनु जुग पच्छ प्रतच्छ होत मिटी जात जामुन जल ।
कै तारागन ठगन लुकत प्रगटत ससि अबिकल ।।
कै कालिन्दी नीर तरंग जितौ उपजावत ।
तितनो ही धरि रूप मिलन हित तासों धावत ।।
कै बहुत रजत चकई चालत कै फुहार जल उच्छरत ।
कै निसिपति मल्ल अनेक बिधि उठि बैठत कसरत करत ।।५।।

कूजत कहुँ कलहंस कहूँ मज्जत पारावत ।
कहुँ काराणडव उडत कहूँ जल कुक्कुट धावत ।।
चक्रवाक कहुँ बसत कहूँ बक ध्यान लगावत ।
सुक पिक जल कहुँ पियत कहूँ भ्रम्रावलि गावत ।।
तट पर नाचत मोर बहु रोर बिधित पच्छी करत ।
जल पान न्हान करि सुख भरे तट सोभा सब धरत ।।६।।
***

रविवार, 2 फ़रवरी 2020

गंगा पर दोहे

गंगा पर दोहे
*
गंगा को गंदा करें, वे हो जो हैं भक्त
आँखें रहते सूर हैं, ईश्वर करो अशक्त
*
गंगा को दें भुला हम, हों जाएँ यदि दूर
निर्मल होगी आप ही, पायेगी नव नूर
*
नगर न गंगा निकट हों, दोनों तट वट झाड़
चलो लगायें हम सभी, बाढ़ कमे पा बाड़
*
तल गहरा तट उच्च हों, हरियाली भरपूर
पंछीगण कलरव करें, हो अशुद्धि हर दूर
*
गंगा को चंगा करे, गतिमय सलिल प्रवाह
बाँध बना जल उठा कर, छोड़ें विपुल अथाह
*
जोड़ नदी को नदी से, जल का करें प्रबंध
बाढ़ रुके, सूखा मिटे, वनमय हों तटबंध
*
भले न पूजें कीजिए, मिल गंगा को साफ़
नहीं किया तो करेगी, हमें न गंगा माफ़
*
जगह जगह हों फुहारें, मिले ओषजन खूब
जीव जलीय जियें तभी, जब तट पर हो दूब
*
नीम बाँस रुद्राक्ष तरु, गंगा तट पर रोप
जल औषधिमय मिले पी, मिटे रोग का कोप
*
मन मंदिर में पूजिये, तन घर में कर साफ़
नहा न मैली गंग हो, तब होगा इंसाफ
*
गंगा जैसी हर नदी, जीवनदात्री मात
हों सपूत रख स्वच्छ हम, उज्जवल हो हर प्रात
***
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
विश्ववाणी हिंदी संस्थान
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर
९४२५१८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com

रविवार, 30 अगस्त 2009

भजन: बहे राम रस गंगा -स्व. शान्ति देवी वर्मा

बहे राम रस गंगा


बहे राम रस गंगा,
करो रे मन सतसंगा.
मन को होत अनंदा,
करो रे मन सतसंगा...

राम नाम झूले में झूली,
दुनिया के दुःख झंझट भूलो.
हो जावे मन चंगा,
करो रे मन सतसंगा...

राम भजन से दुःख मिट जाते,
झूठे नाते तनिक न भाते.
बहे भाव की गंगा,
करो रे मन सतसंगा...

नयन राम की छवि बसाये,
रसना प्रभुजी के गुण गाये.
तजो व्यर्थ का फंदा,
करो रे मन सतसंगा...

राम नाव, पतवार रामजी,
सांसों के सिंगार रामजी.
'शान्ति' रहे मन रंगा,
करो रे मन सतसंगा...


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बुधवार, 15 अप्रैल 2009

शिव भजन -सतीश चन्द्र वर्मा, भोपाल

नमामि शंकर
नमामि शंकर, नमामि शंकर...

बदन में भस्मी, गले में विषधर.
नमामि शंकर, नमामि शंकर...

जटा से गंगा की धारा निकली.
विराजे मस्तक पे चाँद टिकली.
सदा विचरते बने दिगंबर,
नमामि शंकर, नमामि शंकर...

तुम्हारे मंदिर में नित्य आऊँ.
तुम्हारी महिमा के गीत गाऊँ.
चढ़ाऊँ चंदन तुम्हें मैं घिसकर,
नमामि शंकर,नमामि शंकर...

तुम्हीं हमारे हो एक स्वामी.
कहाँ हो आओ, हे विश्वगामी!
हरो हमारी व्यथा को आकर,
नमामि शंकर,नमामि शंकर...
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