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मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

सलिल सृजन १९ दिसंबर, भाषा, कैथी, सॉनेट, सरस्वती, अभियान, दोहे, चुटकी, चित्रगुप्त, नवगीत

सलिल सृजन १९ दिसंबर
*
भाषा
जो जनगण-मन की आशा है
जो भावों की परिभाषा है
जिसमें रस-सलिला बहती है
शब्द सिंधु अपनी भाषा है।
*
हर अनुभूति ग्रहण करती है
ज्यों की त्यों झट-पट कहती है
कहा हुआ शब्दों में लिखती
सुन-पढ़ मति समझा करती है।
*
भाषा माँ जैसे भाती है
धीरे-धीरे ही आती है
कभी बोलती मीठी बोली
कभी दर्द में भी गाती है।
१९.१२.२०२३
*
विरासत 
कायस्थों की लिपि 'कैथी'
*
कैथी एक ऐतिहासिक लिपि है जिसे मध्यकालीन भारत में प्रमुख रूप से उत्तर-पूर्व और उत्तर भारत में काफी बृहत रूप से प्रयोग किया जाता था। खासकर आज के उत्तर प्रदेश एवं बिहार के क्षेत्रों में इस लिपि में वैधानिक एवं प्रशासनिक कार्य किये जाने के भी प्रमाण पाये जाते हैं।
कैथी एक पुरानी लिपि है जिसका प्रयोग कम से कम 16 वी सदी मे धड़ल्ले से होता था। मुगल सल्तनत के दौरान इसका प्रयोग काफी व्यापक था। 1880 के दशक में ब्रिटिश राज के दौरान इसे प्राचीन बिहार के न्यायलयों में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था। इसे खगड़िया जिले के न्यायालय में वैधानिक लिपि का दर्ज़ा दिया गया था।

गुप्त वंश के उत्थान के दौरान अस्तित्व में आयी कैथी भाषा वर्ष १८८० तक जनमानस की भाषा बन चुकी थी । न्यायालयों में, बही खाते में तथा यत्र तत्र इनके प्रयोग की पराकाष्ठा थी । परन्तु एक किताब ("कल्चर एंड पावर ऑफ़ बनारस ") के अध्ययन के दौरान मुझे ज्ञात हुआ कि किस तरह से इस भाषा के साथ अन्याय हुआ. इस किताब के पृष्ठ संख्या १९० पर ब्रज भाषा के अवसान की व्याख्या के दौरान इस भाषा के अवसान का भी जिक्र है... हुआ कुछ यूँ था की ब्रज भाषा और हिंदी देवनागरी की भाषा को लेकर एक विवाद हुआ था.. हिंदी भाषा के एक बहुत बड़े विद्वान या यूँ कहें कि चैंपियन श्री श्रीधर पाठक और एक सज्जन थे श्री राधा चरण गोस्वामी जी .. ये दोनो हिंदी भाषा को कवियों कि भाषा बनाये जाने पर जोर दे रहे थे, और १९१० के पहले हिंदी साहित्य सम्मलेन में ब्रज भाषा को कोई स्थान नहीं दिया गया जबकि ब्रज भाषा उस वक्त के लेखकों या यूँ कहें कि कवियों की आधिकारिक भाषा बन गयी थी... सोने पे सुहागा तो तब हुआ जब एक साल के बाद हिंदी साहित्य के दूसरे सम्मेलन में श्री बद्री नाथ भट्ट जी ने ब्रज भाषा के लिए अपशब्द का प्रयोग किया.. सिलसिला यही से शुरू होता है... १९१४ में पांचवें हिंदी साहित्य सम्मेलन के दौरान प्रख्यात कवि, जो श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के आश्रित थे , उन्होंने ब्रज भाषा का साथ देने वालों को राष्ट्र भाषा हिंदी का दुश्मन करार दे दिया और यहीं से ब्रज भाषा के साथ साथ अन्य लिपियों का भी समापन होने लगा..
बात शुरू हुई थी कैथी पर, तो वापस आते हैं कि कैथी कैसे समाप्त हुई .. एक बंगाली शिक्षाविद थे , और उस दौरान भी लाल सलाम जोरों पर था । उन्होंने देखा कि बिहार में जो किताबें आती हैं वो बनारस से छप कर आती हैं... और यही एक बात थी जो बिहार के कायस्थों को उत्तर प्रदेश के कायस्थों से जोड़ती थी.. (शिक्षा आयोग की रिपोर्ट १८८४ पैराग्राफ ३३४). उन्होंने शिक्षा आयोग को पत्र लिखकर ये बात बताई कि कैथी बिहारी हिन्दुओं की धार्मिक पहचान बनती जा रही है, जो कि हिंदी भाषा के लिए खतरनाक हो सकती है , इसलिए आनन् फानन में हिंदी साहित्य सम्मेलन की नौवीं बैठक बुलाई गयी और काफी विवेचना के बाद ये प्रस्ताव पारित किया ...
"सभा के अनुसार नागरी से अति उत्कृष्ट कोई भाषा नहीं है, और नागरी शब्द ही भारत के लिए उपयुक्त है . इसी कारण से सभा कैथी भाषा के उन्नयन के लिए कोई उत्साह और सहयोग ना करने का निर्णय लेती है ।"
इसे यन. पी. यस. की वार्षिक रिपोर्ट १९२३ के पैराग्राफ १३ और १४ से देखा जा सकता है ..और इस प्रकार कैथी को दरकिनार कर उर्दू को कोर्ट की भाषा बना दी गयी , क्यूंकि उस वक्त की रिपोर्ट के अनुसार अंग्रेजो ने एक सर्वे में पाया कि धनी वर्ग के ज्यादातर लोग हिंदी या उर्दू का इस्तेमाल करते है तो उन्होंने इसे ही आधिकारिक भाषा बना दी .. और लार्ड मैकाले ने अंग्रेजी को बाद में अनिवार्य कर दिया...इस प्रकार कायस्थों की प्रचलित भाषा कैथी का अंत हो गया।
***
जानकारी
दुर्घटना-मुआवजा 
*
अगर किसी व्यक्ति की accidental death होती है और वह व्यक्ति पिछले तीन साल से लगातार इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल कर रहा था तो उसकी पिछले तीन साल की एवरेज सालाना इनकम की दस गुना राशि उस व्यक्ति के परिवार को देने के लिए सरकार बाध्य है ।
आपको आश्चर्य हो रहा होगा यह सुनकर लेकिन यही सरकारी नियम है। उदहारण के तौर पर अगर किसी की सालाना आय क्रमशः पहले दूसरे और तीसरे साल चार लाख पांच लाख और छः लाख है तो उसकी औसत आय पांच लाख का दस गुना मतलब पचास लाख रूपए उस व्यक्ति के परिवार को सरकार से मिलने का हक़ है।
ज़्यादातर जानकारी के अभाव में लोग यह क्लेम सरकार से नहीं लेते हैं ।
जानेवाले की कमी तो कोई पूरी नहीं कर सकता है किंतु पैसा पास में हो तो भविष्य सुचारु रूप से चल सकता है ।
लगातार तीन साल तक रिटर्न दाखिल नहीं किया है तो ऐसे केस में सरकार एक डेढ़ लाख देकर किनारा कर लेती है। लगातार तीन साल तक लगातार रिटर्न फ़ाइल किया गया है तो केस ज़्यादा मजबूत होता है और यह माना जाता है कि मरनेवाला व्यक्ति अपने परिवार का रेगुलर अर्नर था और अगर वह जिन्दा रहता तो अपने परिवार के लिए अगले दस सालो में वर्तमान आय का दस गुना तो कमाता ही जिससे वह अपने परिवार का अच्छी तरह से पालन-पोषण कर पाता ।
सर्विस वाले रेगुलर अर्नर रिटर्न फ़ाइल नहीं करते जिसकी वजह से न तो कंपनी द्वारा काटा हुआ पैसा सरकार से वापस लेते हैं और न ही इस प्रकार से मिलने वाले लाभ का हिस्सा बन पाते हैं। आप अपने वकील से पूरी जानकारी लें और रिटर्न जरूर फ़ाइल करें ।
***
पुरुष विमर्श -
तपस्यारत ऋषि को अल्पसंख्यक वस्त्रों, सौन्दर्य, भाव-भंगिमा से मुग्ध कर तप-च्युत करनेवाली अप्सरा नहीं, ऋषि लांछित होता है। क्यों?
इसी विरासत को ग्रहण कर नग्न प्राय आधुनिकाएँ पुरुष को यौन अपराधों का दोषी ठहराकर अश्लील साहित्य परोसना और अमर्यादित आचरण करना स्त्री विमर्श मान रही हैं.
आप का मत?

सॉनेट
सरस्वती
सरस वती माँ स रसवती
रहें हमेशा ही रस-लीन।
रस-निधि दें, मैं याचक हीन।।
सदय रहें माँ सरस्वती।।
मैया! गाऊँ निश-दिन गान।
कह न सकूँ महिमा तेरी।
करो कृपा अब बिन देरी।।
हो मेरा जीवन रसखान।।
स्वीकारो दंडौत प्रणाम
बन जाएँ सब बिगड़े काम
हो जाए मम नाम अनाम।।
भव-बंधन काटो मैया!
'सलिल' गहे कर की छैंया
शरण मिले पकड़ूँ पैंया।।
१९-१२-२०२२
जबलपुर, १०•३२
९४२५१८३२४४
●●●
सॉनेट
शारदा
*
शारदा माता नमन शत, चित्र गुप्त दिखाइए।
सात स्वर सोपान पर पग सात हमको दे चला।
नाद अनहद सुनाकर, भव सिंधु पार कराइए।।
बिंदु-रेखा-रंग से खेलें हमें लगता भला।।
अजर अक्षर कलम-मसि दे, पटल पर लिखवाइए।
शब्द-सलिला में सकें अवगाह, हों मतिमान हम।
भाव-रस-लय में विलय हों, सत्सृजन करवाइए।।
प्रकृति के अनुकूल जीवन जी सकें, हर सकें तम।।
अस्मिता हो आस मैया, सुष्मिता हो श्वास हर।
हों सकें हम विश्व मानव, राह वह दिखलाइए।
जीव हर संजीव, दे सुख, हों सुखी कम कष्ट कर।।
क्रोध-माया-मोह से माँ! मुक्त कर मुस्काइए।।
साधना हो सफल, आशा पूर्ण, हो संतोष दे।
शांति पाकर शांत हों, आशीष अक्षय कोष दे।।
१९-१२-२०२१
***
सॉनेट
अभियान
*
सृजन सुख पा-दे सकें, सार्थक तभी अभियान है।
मैं व तुम हम हो सके, सार्थक तभी अभियान है।
हाथ खाली थे-रहेंगे, व्यर्थ ही अभिमान है।।
ज्यों की त्यों चादर रखें, सत्कर्म कर अभियान है।।
अरुण सम उजियार कर, हम तम हरें अभियान है।
सत्य-शिव-सुंदर रचें, मन-प्राण से अभियान है।
रहें हम जिज्ञासु हरदम, जग कहे मतिमान है।।
सत्-चित्-आनंद पाएँ, कर सृजन अभियान है।।
प्रीत सागर गीत गागर, तृप्ति दे अभियान है।
छंद नित नव रच सके, मन तृप्त हो अभियान है।
जगत्जननी-जगत्पितु की कृपा ही वरदान है।।
भारती की आरती ही, 'सलिल' गौरव गान है।।
रहे सरला बुद्धि, तरला मति सुखद अभियान है।
संत हो बसंत सा मन, नव सृजन अभियान है।।
१९-१२-२०२१
***
सामयिक दोहे
तीर अगिन तूणीर में, चुना मरो अब झेल।
जो न साथ होगी तुरत, जेल न पाए बेल।।
तंत्र नाथ है लोक का, मालिक सत्ताधीश।
हुआ न होगा फिर कभी, कोई जुमलाधीश।।
छप्पन इंची वक्ष का, झेले वार तमाम।
जन पदच्युत कर दे बता, करना आता काम।।
रोजी छीनी भाव भी, बढ़ा रही है खूब।
देशभक्ति खेती मिटा, सेठ भक्ति में डूब।।
मूरत होगी राम की, सिया न होंगी साथ।
रेप करेंगे विधायक, भगवा थाने हाथ।।
अहंकार की होड़ है, तोड़ सके तो तोड़।
आग लगाता देश में, सत्ता का गठजोड़।।
'सलिल' सियासत है नहीं, तुझको किंचित साध्य।
जन-मन का दुख-दर्द कह, भारत माँ आराध्य।।
१९-१२-२०१९
***
चुटकी गीत
*
इच्छा है यदि शांति की
कर ले इच्छा शांत।
*
बरस इस बरस मेघ आ!
नमन करे संसार।
न मन अगर तो नम न हो,
तज मिथ्या आचार।।
एक राह पर चलाचल
कदम न होना भ्रांत।
इच्छा है यदि शांति की
कर ले इच्छा शांत।
*
कह - मत कह आ रात तू ,
खुद आ जाती रात।
बिना निकाले निकलती
सपनों की बारात।।
क्रांति-क्रांति चिल्ला रहे,
खुद भय से आक्रांत।
इच्छा है यदि शांति की
कर ले इच्छा शांत।
छंद: दोहा
१९-१२-२०१८
***
चित्रगुप्त-रहस्य
*
चित्रगुप्त पर ब्रम्ह हैं, ॐ अनाहद नाद
योगी पल-पल ध्यानकर, कर पाते संवाद
निराकार पर ब्रम्ह का, बिन आकार न चित्र
चित्र गुप्त कहते इन्हें, सकल जीव के मित्र
नाद तरंगें संघनित, मिलें आप से आप
सूक्ष्म कणों का रूप ले, सकें शून्य में व्याप
कण जब गहते भार तो, नाम मिले बोसॉन
प्रभु! पदार्थ निर्माण कर, डालें उसमें जान
काया रच निज अंश से, करते प्रभु संप्राण
कहलाते कायस्थ- कर, अंध तिमिर से त्राण
परम आत्म ही आत्म है, कण-कण में जो व्याप्त
परम सत्य सब जानते, वेद वचन यह आप्त
कंकर कंकर में बसे, शंकर कहता लोक
चित्रगुप्त फल कर्म के, दें बिन हर्ष, न शोक
मन मंदिर में रहें प्रभु!, सत्य देव! वे एक
सृष्टि रचें पालें मिटा, सकें अनेकानेक
अगणित हैं ब्रम्हांड, है हर का ब्रम्हा भिन्न
विष्णु पाल शिव नाश कर, होते सदा अभिन्न
चित्रगुप्त के रूप हैं, तीनों- करें न भेद
भिन्न उन्हें जो देखता, तिमिर न सकता भेद
पुत्र पिता का पिता है, सत्य लोक की बात
इसी अर्थ में देव का, रूप हुआ विख्यात
मुख से उपजे विप्र का, आशय उपजा ज्ञान
कहकर देते अन्य को, सदा मनुज विद्वान
भुजा बचाये देह को, जो क्षत्रिय का काम
क्षत्रिय उपजे भुजा से, कहते ग्रन्थ तमाम
उदर पालने के लिये, करे लोक व्यापार
वैश्य उदर से जन्मते, का यह सच्चा सार
पैर वहाँ करते रहे, सकल देह का भार
सेवक उपजे पैर से, कहे सहज संसार
दीन-हीन होता नहीं, तन का कोई भाग
हर हिस्से से कीजिये, 'सलिल' नेह-अनुराग
सकल सृष्टि कायस्थ है, परम सत्य लें जान
चित्रगुप्त का अंश तज, तत्क्षण हो बेजान
आत्म मिले परमात्म से, तभी मिल सके मुक्ति
भोग कर्म-फल मुक्त हों, कैसे खोजें युक्ति?
सत्कर्मों की संहिता, धर्म- अधर्म अकर्म
सदाचार में मुक्ति है, यही धर्म का मर्म
नारायण ही सत्य हैं, माया सृष्टि असत्य
तज असत्य भज सत्य को, धर्म कहे कर कृत्य
किसी रूप में भी भजे, हैं अरूप भगवान्
चित्र गुप्त है सभी का, भ्रमित न हों मतिमान
*
षट्पदी
श्वास-आस में ग्रह-उपग्रह सा पल-पल पलता नाता हो.
समय, समय से पूर्व, समय पर सच कहकर चेताता हो.
कर्म भाग्य का भाग्य बताये, भाग्य कर्म के साथ रहे-
संगीता के संग आज, कल-कल की बात बताता हो.
जन्मदिवस पर केक न काटें, कभी बुझायें ज्योति नहीं
दीप जला दीवाली कर लें, तिमिर भाग छिप जाता हो
१९-१२-२०१७
***
नव गीत
मालिक को
रक्षक लूट रहे
*
देश एक है हम अनेक
खोया है जाग्रत विवेक
परदेशी के संग लडे
हाथ हमारे रहे जुड़े
कानून कई थे तोड़े
हौसले रहे कब थोड़े?
पाकर माने आज़ादी
भारत माँ थी मुस्कादी
चाह था
शेष न फूट रहे
मालिक को
रक्षक लूट रहे
*
जब अपना शासन आया
अनुशासन हमें न भाया
जनप्रतिनिधि चाहें सुविधा
जनहित-निजहित में दुविधा
शोषक बन बैठे अफसर
धनपति शोषक हैं अकसर
जन करता है नादानी
कानून तोड़ मनमानी
तुम मानो
हमको छूट रहे
मालिक को
रक्षक लूट रहे
*
धनतंत्र हुआ है हावी
दलतंत्र करे बरबादी
दमतोड़ रहा जनतंत्र
फल-फूल रहा मनतंत्र
सर्वार्थ रहे क्यों टाल
निज स्वार्थ रहे हैं पाल
टकराकर
खुद से टूट रहे
मालिक को
रक्षक लूट रहे
*
घात लगाये पडोसी हैं
हम खुद को कहते दोषी हैं
ठप करते संसद खुद हम
खुद को खुद ही देते गम
भूखे मजदूर-किसान
भूले हैं भजन-अजान
निज माथा
खुद ही कूट रहे
मालिक को
रक्षक लूट रहे
*
कुदरत सचमुच नाराज
ला रही प्रलय गिर गाज
तूफ़ान बवंडर नाश
बिछ रहीं सहस्त्रों लाश
कह रहा समय सम्हलो भी
मिल संग सुपंथ चलो भी
सच्चे हों
शेष न झूठ रहे
१९-१२-२०१५
***
नव गीत:
नए साल को
आना है तो आएगा ही
.
करो नमस्ते
या मुँह फेरो
सुख में भूलो
दुःख में टेरो
अपने सुर में गाएगा ही
नए साल को
आना है तो आएगा ही
.
एक दूसरे
को मारो या
गले लगाओ
हँस मुस्काओ
दर्पण छवि दिखलाएगा ही
नए साल को
आना है तो आएगा ही
.
चाह न मिटना
तो खुद सुधरो
या कोसो जिस-
तिस को ससुरों
अपना राग सुनाएगा ही
नए साल को
आना है तो आएगा ही
१९-१२-२०१४
***

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

हरिगीतिका सलिला अभियांत्रिकी, तकनीक, भारत, अभियान

हरिगीतिका सलिला
अभियांत्रिकी, तकनीक, भारत, अभियान
संजीव
*
(छंद विधान: १ १ २ १ २ x ४, पदांत लघु गुरु, चौकल पर जगण निषिद्ध, तुक दो-दो चरणों पर, यति १६-१२ या १४-१४ या ७-७-७-७ पर)
*
कण जोड़ती, तृण तोड़ती, पथ मोड़ती, अभियांत्रिकी
बढ़ती चले, चढ़ती चले, गढ़ती चले, अभियांत्रिकी
उगती रहे, पलती रहे, खिलती रहे, अभियांत्रिकी
रचती रहे, बसती रहे, सजती रहे, अभियांत्रिकी
*
नव रीत भी, नव गीत भी, संगीत भी, तकनीक है
कुछ हार है, कुछ प्यार है, कुछ जीत भी, तकनीक है
गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी, तकनीक है
श्रम मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है
*
यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है
कर दें सभी मिल देश का, निर्माण यह अभियान है
गुणयुक्त हों अभियांत्रिकी, श्रम-कोशिशों का गान है
परियोजना त्रुटिमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com

शनिवार, 25 जनवरी 2020

अभियान

अभियान एवं प्रसंग के संयुक्त तत्वावधान में
‘‘बुधिया लेता टोह’’  गीत-नवगीत संग्रह गीतकार बसंत कुमार शर्मा
कृति लोकार्पण समारोह एवं काव्य संगोष्ठी
दिनांक : २६-१-२०२०     

प्रथम सत्र - लोकार्पण समारोह  
संचालन - विनोद नयन            

३.००  - अतिथिगणों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं सरस्वती पूजन    
३.०५ - सरस्वती वंदना -  अर्चना गोस्वामी/श्रीमती मिथलेश बड़गैंया/डॉ0 रानू रूही/विनीता श्रीवास्तव  

३.१०  - अतिथि स्वागत/सम्मान/परिचय - श्री विनोद नयन 
प्रो. कपिलदेव मिश्र कुलपति जी   - श्रीमती मंजरी शर्मा / जनाब मकबूल अली 
आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी - श्रीमती छाया सक्सेना / डॉ अनिल कोरी 
आचार्य भगवत दुबे जी - श्रीमती मिथलेश बड़गैंया / श्री आलोक पाठक
डॉ. सुरेश कुमार वर्मा जी - श्रीमती विनीता विधि जी / श्री अविनाश ब्यौहार
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी - श्रीमती विनीता श्रीवास्तव / श्री राजेंद्र मिश्रा  
डॉ. रामगरीब पांडे ‘विकल’ जी - श्रीमती कृष्णा राजपूत / श्री इंद्र बहादुर श्रीवास्तव
          श्री बसंत कुमार शर्मा जी           - श्रीमती मधु जैन / प्रो. शोभित वर्मा    

संस्था परिचय अभियान - श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव / श्री अखिलेश खरे 
संस्था परिचय प्रसंग - डॉ रानू राहू / श्री डॉ अनिल कोरी

३.२०  - पुस्तक लोकार्पण 
३.२५  - पुस्तक परिचय/कृति चर्चा - बसंत कुमार शर्मा 
३.३०  - समालोचना -
३.३०  - डॉ. राम गरीब पांडेय  ‘विकल’
३.४० - आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’  
३.५० - आचार्य भगवत दुबे

विशिष्ट वक्ता - डॉ. सुरेश कुमार वर्मा  
- मुख्य अतिथि का उद्बोधन प्रो. कपिल देव मिश्र    
- अध्यक्षीय उदबोधन डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी 
आभार - श्री अखिलेश खरे   

स्वल्पाहार  ४. ३५ से ५.००  बजे तक 

द्वितीय सत्र - काव्य संगोष्ठी 
५ बजे से - ७ बजे तक

अध्यक्षता - श्री मोहन शशि - स्वागत श्री विनोद नयन / श्री संजीव वर्मा ‘सलिल’
विशिष्ट अतिथि - श्री नवीन चतुर्वेदी - स्वागत डॉ. रानू रूही / श्री हरिसहाय पांडेय
आभार -  प्रो. शोभित वर्मा
==========
अतिथि परिचय

आचार्य कृष्णकान्त चतुर्वेदी 

संस्कारधनी जबलपुर में १९ दिसंबर १९३७ को जन्मे, भारतीय मनीषा के श्रेष्ठ प्रतिनिधि, विद्वता के पर्याय, सरलता के सागर, वाग्विदग्धता के शिखर आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी के व्यक्तित्व पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की निम्न पंक्तियाँ सटीक बैठती हैं- 

जितने कष्ट-कंटकों में है जिसका जीवन सुमन खिला  
गौरव गंध उसे उतना ही यत्र-तत्र-सर्वत्र मिला।।

कालिदास अकादमी उज्जैन के निदेशक, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में संस्कृत, पाली, प्रकृत विभाग के अध्यक्ष व् आचार्य पदों की गौरव वृद्धि कर चुके, भारत सरकार द्वारा शास्त्र-चूड़ामणि मनोनीत किये जा चुके, अखिल भारतीय प्राच्य विद्या परिषद् के सर्वाध्यक्ष निर्वाचित किये जा चुके, महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा प्राच्य विद्या के विशिष्ट विद्वान के रूप में सम्मानित, राजशेखर अकादमी के निदेशक आदि पदों की शोभा वृद्धि कर चुके आचार्य जी के मार्गदर्शन में ४० छात्रों को पीएच. डी. तथा २ छात्रों ने डी.लिट्. करने का सौभाग्य मिला है। राधा भाव सूत्र, आगत का स्वागत, अनुवाक, अथातो ब्रम्ह जिज्ञासा, वेदांत तत्व समीक्षा, बृज गंधा, पिबत भागवतम आदि अबहुमूल्य कृतियों की रचनाकर आचार्य जी ने भारती के वांग्मय कोष की वृद्धि की है। जगद्गुरु रामानंदाचार्य सम्मान, पद्मश्री श्रीधर वाकणकर सम्मान, अखिल भारतीय कला सम्मान, ज्योतिष रत्न सम्मान, विद्वत मार्तण्ड, विद्वत रत्न, सम्मान, स्वामी अखंडानंद सम्मान, युगतुलसी रामकिंकर सम्मान, ललित कला सम्मान अदि से सम्मानित किये जा चुके आचार्य श्री संस्कारधानी ही नहीं देश के गौरव पुत्र हैं। आप अफ्रीका, केन्या, आदि देशों में भारतीय वांग्मय व् संस्कृति की पताका फहरा चुके हैं। आपकी उपस्थिति व आशीष हमारा सौभाग्य है। =

प्रो. कपिलदेव मिश्र - कुलपति रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय 

प्रो. मिश्र सहज सरल सौम्य व्यक्तित्व के धनी एवं प्रखर वक्ता होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक के रूप में जाने जाते है। आपको हिंदी की विशिष्ट सेवा के लिए विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय भागलपुर ने उन्हें डी.लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। शिक्षा रत्न, बेस्ट सिटीजंस आफ इंडिया, इंदिरा गांधी शिरोमणि, भारत शिक्षा रत्न व राष्ट्रीय विद्या गौरव गोल्ड एवार्ड से प्रो. मिश्र सम्मानित किये गए हैं। आप विश्वविद्यालयों में अन्य प्रशासनिक दायित्वों को भी निभा चुके हैं। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय को कुलपति रूप में अपनी कर्मठता, दूरदृष्टि तथा नवाचार से आपने नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है।  

कपिलदेव जी मिश्र हैं, शिक्षा गुरु निष्णात
श्रेष्ठ प्रशासन दक्षता, दूर दूर विख्यात 
करें समस्याएँ सभी दूर, जगा नव आस
नव उन्नति हर दिन मिले, निश-दिन करें प्रयास  
  


प्रो. मिश्र की गौरवमय उपस्थिति से यह नगर, मंच और हम सब धन्यता अनुभव कर रहे हैं। 

डॉ. सुरेश कुमार वर्मा 

श्रद्धेय डॉ. सुरेश कुमार वर्मा नर्मदांचल की साधनास्थली संस्कारधानी जबलपुर के गौरव हैं। "सादा जीवन उच्च विचार" के सूत्र को जीवन में मूर्त करनेवाले डॉ. वर्मा अपनी विद्वता के सूर्य को सरलता व् विनम्रता के श्वेत-श्याम मेघों से आवृत्त किये रहते हैं। २० दिसंबर १९३८ को जन्मे डॉ. वर्मा ने प्राध्यापक हिंदी, विभागाध्यक्ष हिंदी, प्राचार्य तथा अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा के पदों की शोभा वृद्धि कर शुचिता और समर्पण का इतिहास रचकर ऋषि परंपरा को जीवंत रखा है। 

सरल सहज शब्दर्षि, ज्ञान के सागर, समय-धरोहर हैं 
अनुपम है पांडित्य आपका, रचनाएँ युग का स्वर हैं    

आपने समालोचना कृति ‘डॉ. राम कुमार वर्मा की नाट्यकला’ तथा भाषा विज्ञान का अनुपम ग्रंथ ‘हिंदी अर्थान्तर न्यास’ रचकर ख्याति अर्जित की। नाट्य कृति ‘निम्न मार्गी’ व ‘दिशाहीन’ तथा उपन्यास  ‘मुमताज महल’, ‘रेशमां’, ‘सबका मालिक एक’ तथा ‘महाराज छत्रसाल’ कहानी संग्रह ‘जंग के दरवाजे पर’ तथा ‘मंदिर एवं अन्य कहानियाँ’ निबंध संग्रह ‘करमन की गति न्यारी’, ‘मैं तुम्हारे हाथ का लीला कमल हूँ’ आपके अनमोल ग्रन्थ है। इन ग्रंथों से आपने बहुआयामी रचनाधर्मिता व् सृजन सामर्थ्य की पताका फहराई है। आपकी उपस्थिति हमारा सौभाग्य है।  

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’  
सनातन सलिला नर्मदा तीर पर मंडला नगर में २० अगस्त १९५२ को जन्मे आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी का नाम अंतर्जाल पर हिंदी साहित्य जगत में पारंपरिक एवं नवीन छंदोंके सृजन व शोध-समालोचना, पत्रिकाओं व् समरिकाओं के संपादन हेतु अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। गूगल पर उनके लिखे दो लाख से अधिक पृष्ठ उपलब्ध हैं। अपनी बुआ महीयसी महादेवी वर्मा तथा माँ स्व. शांति देवी से विरासत में प्राप्त संस्कारों तथा सृजन प्रतिभा संपन्न सलिल जी अंतर्जाल पर ३०० से अधिक रचनाकारों को हिंदी भाषा व्याकरण तथा पिंगल का शिक्षण दे चुके हैं। आपने ५०० से अधिक नए छंदों का अन्वेषण कर हिंदी को समृद्ध किया है। आपकी अंतरजाल पत्रिका दिव्य नर्मदा की पाठक संख्या २४ लाख से अधिक है।  'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह, 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविता संग्रह, काल है संक्रांति का व सड़क पर नवगीत संग्रह तथा भूकंप के साथ जीना सीखें लोकोपयोगी तकनीकी पुस्तक आपकी बहु चर्चित कृतियाँ हैं। ‘’काल है संक्रांति का’’ को हरिशंकर सम्मान तथा ‘’सड़क पर’’ को अभिव्यक्ति विश्वम सम्मान से सम्मानित किया गया है। आपके तकनीकी लेख “वैश्विकता के निकष पर भारतीय यांत्रिकी संरचनाएँ” को इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स द्वारा अखिल भारतीय द्वितीय श्रेष्ठता पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है। प्रो. शरद नारायण खरे के शब्दों में- 
जिसने रौशन कर दिया, पूरा मध्य प्रदेश  
वह वर्मा संजीव हैं, जाने सारा देश 
करते अक्षर साधना, विनत भाव से नित्य 
इसीलिए साहित्य के, सलिल हुए आदित्य  
     

आचार्य भगवत दुबे 

संस्कारधानी जबलपुर में १८ अगस्त १९४३ को जन्मे आचार्य भगवत दुबे गद्य-पद्य की विभिन्न विधाओं में दक्ष हैं। वे आम आदमी की संवेदना को कागज पर उतारने में माहिर हैं।  आपने महाकाव्य दधीचि,दोहा संग्रह शब्दों के संवाद, बुंदेली दोहे व साँसों के संतूर, कहानी संग्रह दूल्हादेव, गीत संग्रह स्मृति गंधा, अक्षर मंत्र, हरीतिमा, रक्षाकवच, संकल्परथी, बजे नगाड़े काल के, वनपाँखी, जियो और जीने दो, विष कन्या, शंखनाद, प्रणय ऋचाएं, कांटे हुए किरीट, करुणा यज्ञ, शब्द विहग, हिंदी तुझे प्रणाम, हिरन सुगंधों के, हम जंगल के अमलतास, अक्कास-बक्कड़, अटकन चटकन, छुपन छुपाई, नन्हें नटखट, चुभन, शिकन, घुटन, साईं की लीला अपार, माँ ममता की मूर्ति, गीत स्वाभिमान के, फागों में लोक रंग, जनक छंद की छवि छटा, हाइकु रत्न, पारसमणि, ताँका बांका छंद है, गौरव पुत्र, चिंतन के चौपाल, कर्म वीर, हिंदी के अप्रतिम सर्जक, लोकमंजरी आदि ४४ पुस्तकों का सृजन किया है । आपने अनेक पत्रिकाओं, स्मारिकाओं व् संकलनों के संपादन किया है। । आपके साहित्य पर छात्र छात्रायें एम.फिल और पी-एच.डी. कर रहे हैं।

भगवत कृपा प्रसाद हैं, भगवत दुबे मनीष 
शोभा हिंदी जगत की, सचमुच शब्द-महीश  

डा. रामगरीब पाण्डेय ‘विकल’

२ दिसम्बर १९६० को , चुरहट (जिला सीधी) मध्यप्रदेश में जन्में डॉ. रामगरीब पण्डे ‘विकल’ दूरसंचार विभाग में लेखाधिकारी होते हुए भी हिंदी साहित्य को समृद्ध करने की दिशा में निरंतर सक्रिय व् सफल हैं। हिंदी साहित्य में शोधोपाधि प्राप्त विकल जी ने हिन्दी कविता, गीत, ग़ज़ल के अलावा विविध विषयों पर निबन्ध लेखन किया है।   रीवांचल की लोकभाषा ‘बघेली’ में विकल जी का साहित्य सृजन उल्लेखनीय है। ‘बदलते मौसम के इन्तजार में’ तथा ‘सूरज की मुक्ति के लिए’ आपके काव्य संग्रह हैं। आपको ‘बदलते मौसम के इन्तजार में’ के लिए मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी से प्रादेशिक ‘श्रीकृष्ण सरल’ कृति पुरस्कार २०१० प्राप्त हुआ है। नवोदितों को साहित्य साधना के प्रति प्रेरित करने व मार्गदर्शन करने में प्रवृत्त विकल जी  इसी माह ३१ जनवरी सेवानिवृत हो रहे हैं। 

अविकल धीरज के धनी, रामगरीब अमीर 
सतत सर्जन कर हर रहे, हिंदी माँ की पीर 


श्री बसंत शर्मा 

वीर भूमि राजस्थान के जोधपुर जिले में स्मृति शेष श्रीमती कमलादेवी शर्मा तथा स्मृतिशेष दौलतराम शर्मा के आत्मज श्री बसंत शर्मा भारतीय रेल यातायात सेवा में ......  पर पर सेवारत हैं। गुरु गंभीर शासकीय दायित्व निर्वहन के साथ निरंतर हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि करने हेतु समर्पित शर्मा जी के दोहे विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर द्वारा शांति-राज पुस्तक माला के अंतर्गत प्रकाशित दोहा शतक मंजूषा के प्रथम भाग दोहा-दोहा नर्मदा में संकलित किये जाकर प्रशंसित हुए हुए हैं। बुधिया बैठा टोह में आपका प्रथम नवगीत संग्रह है। अभियान संस्था के अध्यक्ष श्री बसंत शर्मा हिंदी के विविध छंदों, मुक्तिका, हाइकु आदि का लेखन कर प्रशंसित हो रहे हैं। हिंदी में अधिकतम संभव विभागीय कार्य व् गतिविधियां संचालित कर रहे शर्मा जी से हिंदी साहित्य जगत को बहुत आशा है। 

हिंदी के प्रति समर्पित, वीरभूमि के पूत 
आम्र मंजरी सम खिले, लेकर महक अकूत 
छवि बसंत की बिखेरें, रच दोहे नवगीत 
सलिल पान सम तृप्ति दें, भर ग़ज़लों में प्रीत  


श्री मोहन शशि 

संस्कारधानी जबलपुर के पत्रकार जगत में अपनी कर्मठता, समर्पण तथा दक्षता के लिए जाने जाते मोहन शशि जी का जन्म १ अप्रैल १९३७ को हुआ। १९५६ से २०१८ तक प्रदेश के श्रेष्ठ समाचार पत्रों नवभारत तथा दैनिक भास्कर को शीर्ष पर पहुँचाने में शशि जी का योगदान असाधारण है। शशिजी १९६२ में वर्ल्ड यूथ कैम्प युगोस्लाविया में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के  सचिव के रूप में सहभागिता तथा हिंदी काव्य पथ हेतु 'उदारनिक पदक' से सम्मानित किये जा चुके हैं।  सरोज, तलाश एक दाहिने हाथ की, राखी नाहने आई, हत्यारी रात, शक्ति साधना, दुर्गा महिमा, अमिय, बेटे से बेटी भली तथा जाग बुंदेला जाग बुंदेली आपकी बहुचर्चित साहित्यिक कृतियाँ हैं।

पत्रकारिता क्षेत्र के, प्रतिभाशाली रत्न 
मोहन शशि हैं शिखर पर, किये अहर्निश यत्न
हर बाधा संकट गया, हार- न मानी हार
कीर्तिमान रच ‘मिलन’ से, देकर पाया प्यार         

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