कुल पेज दृश्य

holi geet लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
holi geet लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 3 मार्च 2018

holi geet

आइए छंद खोजें:
होली गीत-- "ब्रज की होली" सुनीता सिंह
* फाग राग में डूब के मनवा राधे-राधे बोल रहा है। ३३
बाँसुरिया की तान पे मौसम शरबत मीठा घोल रहा है।। ३३ ब्रज की गली में घूम रही ग्वाल-बाल की टोलियाँ। २८ रंग-बिरंगे जल से भरी लहराती पिचकारियाँ।। टेसू के फूलों के रंग से मन के पट भी खोल रहा है। ३३
बाँसुरिया की तान पे मौसम शरबत मीठा घोल रहा है।। चुपके-चुपके चारों ओर ढूँढ रहे नंदलाला। २८ छुप कर बैठी कहाँ राधिका पूछे मुरली वाला।। बरसाने के कुंज-कुंज में कान्हा जा कर डोल रहा है। ३२ बांसुरिया की तान पे मौसम शरबत मीठा घोल रहा है।। हवा ने छेड़ दिया आखिर फागुन का संगीत जब। २८
गोपियों संग निकली राधे प्रीत की ही रीत सब।। वृंदावन संग ब्रज पूरा भांग बिना ही कलोल रहा है। ३४
बाँसुरिया की तान पे मौसम शरबत मीठा घोल रहा है।। फाग राग में डूब के मनवा राधे-राधे बोल रहा है।
बाँसुरिया की तान पे मौसम शरबत मीठा घोल रहा है।।
***
इस होली गीत में मुखड़ा ३३ मात्राओं तथा अन्तरा २८ मात्राओं का है।
मुखड़े में पदांत यगण १२२ है जबकि अंतरे में पदांत क्रमश: रगण २१२,
१२२-२२२ तथा नगण १११ है अर्थात किसी नियम का पालन नहीं है।
मुखड़े में २०-२२ वर्णों की पंक्तियाँ है, जबकि अंतरों में क्रमश: १८-१९,
१८-१८, १९-१८ वर्ण हैं. तदनुसार -
मात्रिक छंद: मुखड़ा देवता जातीय छंद है जबकि अंतरा यौगिक जातीय छंद है.
वर्णिक छंद: वर्ण संख्या भिन्नता के कारण कोई एक छंद नहीं, छंदों का मिश्रण है।

रविवार, 6 मार्च 2011

होली गीत: स्व. शांति देवी वर्मा

होली गीत: 

स्व. शांति देवी वर्मा 

होली खेलें सिया की सखियाँ                                                                                                     

होली खेलें सिया की सखियाँ,
                       जनकपुर में छायो उल्लास....
रजत कलश में रंग घुले हैं, मलें अबीर सहास.
           होली खेलें सिया की सखियाँ...
रंगें चीर रघुनाथ लला का, करें हास-परिहास.
            होली खेलें सिया की सखियाँ...
एक कहे: 'पकडो, मुंह रंग दो, निकरे जी की हुलास.'
           होली खेलें सिया की सखियाँ...
दूजी कहे: 'कोऊ रंग चढ़े ना, श्याम रंग है खास.'
          होली खेलें सिया की सखियाँ...
सिया कहें: ' रंग अटल प्रीत का, कोऊ न अइयो पास.'
                  होली खेलें सिया की सखियाँ...
 गौर सियाजी, श्यामल हैं प्रभु, कमल-भ्रमर आभास.
                   होली खेलें सिया की सखियाँ...
'शान्ति' निरख छवि, बलि-बलि जाए, अमिट दरस की प्यास.
                      होली खेलें सिया की सखियाँ...
***********
होली खेलें चारों भाई                                                                                  
होली खेलें चारों भाई, अवधपुरी के महलों में...
अंगना में कई हौज बनवाये, भांति-भांति के रंग घुलाये.                                                
पिचकारी भर धूम मचाएं, अवधपुरी के महलों में...
राम-लखन पिचकारी चलायें, भरत-शत्रुघ्न अबीर लगायें.
लख दशरथ होएं निहाल, अवधपुरी के महलों में...
सिया-श्रुतकीर्ति रंग में नहाई, उर्मिला-मांडवी चीन्ही न जाई.
हुए लाल-गुलाबी बाल, अवधपुरी के महलों में...
कौशल्या कैकेई सुमित्रा, तीनों माता लेंय बलेंयाँ.
पुरजन गायें मंगल फाग, अवधपुरी के महलों में...
मंत्री सुमंत्र भेंटते होली, नृप दशरथ से करें ठिठोली.
बूढे भी लगते जवान, अवधपुरी के महलों में...
दास लाये गुझिया-ठंडाई, हिल-मिल सबने मौज मनाई.
ढोल बजे फागें भी गाईं,अवधपुरी के महलों में...
दस दिश में सुख-आनंद छाया, हर मन फागुन में बौराया.
'शान्ति' संग त्यौहार मनाया, अवधपुरी के महलों में...
***********

सोमवार, 1 मार्च 2010

होली पर दोहे: --संजीव 'सलिल'

होली का हर रंग दे, खुशियाँ कीर्ति समृद्धि.
मनोकामना पूर्ण हों, सद्भावों की वृद्धि..


स्वजनों-परिजन को मिले, हम सब का शुभ-स्नेह.
ज्यों की त्यों चादर रखें, हम हो सकें विदेह..


प्रकृति का मिलकर करें, हम मानव श्रृंगार.
दस दिश नवल बहार हो, कहीं न हो अंगार..


स्नेह-सौख्य-सद्भाव के, खूब लगायें रंग.
'सलिल' नहीं नफरत करे, जीवन को बदरंग..


जला होलिका को करें, पूजें हम इस रात.
रंग-गुलाल से खेलते, खुश हो देख प्रभात..


भाषा बोलें स्नेह की, जोड़ें मन के तार.
यही विरासत सनातन, सबको बाटें प्यार..

शब्दों का क्या? भाव ही, होते 'सलिल' प्रधान.
जो होली पर प्यार दे, सचमुच बहुत महान..

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

रविवार, 28 फ़रवरी 2010

होली गीत: स्व. शांति देवी वर्मा

होली गीत:

स्व. शांति देवी वर्मा

होली खेलें सिया की सखियाँ
होली खेलें सिया की सखियाँ,
                       जनकपुर में छायो उल्लास....
रजत कलश में रंग घुले हैं, मलें अबीर सहास.
           होली खेलें सिया की सखियाँ...
रंगें चीर रघुनाथ लला का, करें हास-परिहास.
            होली खेलें सिया की सखियाँ...
एक कहे: 'पकडो, मुंह रंग दो, निकरे जी की हुलास.'
           होली खेलें सिया की सखियाँ...
दूजी कहे: 'कोऊ रंग चढ़े ना, श्याम रंग है खास.'
          होली खेलें सिया की सखियाँ...
सिया कहें: ' रंग अटल प्रीत का, कोऊ न अइयो पास.'
                  होली खेलें सिया की सखियाँ...
 सियाजी, श्यामल हैं प्रभु, कमल-भ्रमर आभास.
                   होली खेलें सिया की सखियाँ...
'शान्ति' निरख छवि, बलि-बलि जाए, अमिट दरस की प्यास.
                      होली खेलें सिया की सखियाँ...
***********
होली खेलें चारों भाई
होली खेलें चारों भाई, अवधपुरी के महलों में...
अंगना में कई हौज बनवाये, भांति-भांति के रंग घुलाये.
पिचकारी भर धूम मचाएं, अवधपुरी के महलों में...
राम-लखन पिचकारी चलायें, भारत-शत्रुघ्न अबीर लगायें.
लखें दशरथ होएं निहाल, अवधपुरी के महलों में...
सिया-श्रुतकीर्ति रंग में नहाई, उर्मिला-मांडवी चीन्ही न जाई.
हुए लाल-गुलाबी बाल, अवधपुरी के महलों में...
कौशल्या कैकेई सुमित्रा, तीनों माता लेंय बलेंयाँ.
पुरजन गायें मंगल फाग, अवधपुरी के महलों में...
मंत्री सुमंत्र भेंटते होली, नृप दशरथ से करें ठिठोली.
बूढे भी लगते जवान, अवधपुरी के महलों में...
दास लाये गुझिया-ठंडाई, हिल-मिल सबने मौज मनाई.
ढोल बजे फागें भी गाईं,अवधपुरी के महलों में...
दस दिश में सुख-आनंद छाया, हर मन फागुन में बौराया.
'शान्ति' संग त्यौहार मनाया, अवधपुरी के महलों में...
***********
साभार : संजीव 'सलिल', दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम