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सोमवार, 12 अप्रैल 2021

राम भजन स्व. शांति देवी वर्मा

राम भजन 
स्व. शांति देवी वर्मा 
अवध में जन्में हैं श्री राम, दरश को आए शंकरजी...
*
कौन गा रहे?, कौन नाचते?, कौन बजाएं करताल?
दरश को आए शंकरजी...
*
ऋषि-मुनि गाते, देव नाचते, भक्त बजाएं करताल.
दरश को आए शंकरजी...
*
अंगना मोतियन चौक है, द्वारे हीरक बन्दनवार.
दरश को आए शंकरजी...
*
मलिन-ग्वालिन सोहर गायें, नाचें डे-डे ताल.
दरश को आए शंकरजी...
*
मैया लाईं थाल भर मोहरें, लो दे दो आशीष.
दरश को आए शंकरजी...
*
नाग त्रिशूल भभूत जाता लाख, डरे न मेरो लाल
दरश को आए शंकरजी...
*
बिन दर्शन हम कहूं न जैहें, बैठे धुनी रमाय.
दरश को आए शंकरजी...
*
अलख जगाये द्वार पर भोला, डमरू रहे बजाय.
दरश को आए शंकरजी...
*
रघुवर गोदी लिए कौशल्या, माथ डिठौना लगाय.
दरश को आए शंकरजी...
जग-जग जिए लाल माँ तेरो, शम्भू करें जयकार.
दरश को आए शंकरजी...
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बाजे अवध बधैया
बाजे अवध बधैया, हाँ हाँ बाजे अवध बधैया...
मोद मगन नर-नारी नाचें, नाचें तीनों मैया.
हाँ-हाँ नाचें तीनों मैया, बाजे अवध बधैया..
मातु कौशल्या जनें रामजी, दानव मार भगैया
हाँ हाँ दानव मार भगैया बाजे अवध बधैया...
मातु कैकेई जाए भरत जी, भारत भार हरैया
हाँ हाँ भारत भार हरैया, बाजे अवध बधैया...
जाए सुमित्रा लखन-शत्रुघन, राम-भारत की छैयां
हाँ हाँ राम-भारत की छैयां, बाजे अवध बधैया...
नृप दशरथ ने गाय दान दी, सोना सींग मढ़ईया
हाँ हाँ सोना सींग मढ़ईया, बाजे अवध बधैया...
रानी कौशल्या मोहर लुटाती, कैकेई हार-मुंदरिया
हाँ हाँ कैकेई हार-मुंदरिया, बाजे अवध बधैया...
रानी सुमित्रा वस्त्र लुटाएं, साडी कोट रजैया
हाँ हाँ साडी कोट रजैया, बाजे अवध बधैया...
विधि-हर हरि-दर्शन को आए, दान मिले कुछ मैया
हाँ हाँ दान मिले कुछ मैया, बाजे अवध बधैया...
'शान्ति'-सखी मिल सोहर गावें, प्रभु की लेनी बलैंयाँ
हाँ हाँ प्रभु की लेनी बलैंयाँ, बाजे अवध बधैया...

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रविवार, 17 मई 2009

भजन सलिला: जनक अंगना में होती ज्योनार -स्व. शान्ति देवी

: भजन सलिला :
इस स्तम्भ के अर्न्तगत भारतीय लोक साहित्य अभिन्न अंग भक्तिपरक गीति रचनाएँ प्रस्तुत की जा रही हैं। इस भजन में राम विवाह के समय जनक जी के आँगन में बारातियों को प्रेमपूर्वक करे जा रहे सुस्वादु भोजन का इतना जीवंत वर्णन है की मुंह में पानी आ जाए। आज-कल वैवाहिक समारोहों में हो रहे गिद्ध -भोज(बफे) में ऐसा आनंद कहाँ? आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है। अपने अंचल में प्रचलित अथवा स्वलिखित लोक गीत भेजें- सं.



जनक अंगना में होती ज्योनार

जनक अंगना में होती ज्योनार,

जीमें बराती ले-ले चटखार...
चांदी की थाली में भोजन परोसा,

गरम-गरम लाये व्यंजन हजार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...
आसन सजाया, पंखा झलत हैं,

गुलाब जल छिडकें चाकर हजार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...
पूडी कचौडी पापड़ बिजौरा,

बूंदी-रायता में जीरा बघार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...
आलू बता गोभी सेम टमाटर,

गरम मसाला, राई की झार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...

पलक मेथी सरसों कटहल,

कुंदरू करोंदा परोसें बार-बार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...

कैथा पोदीना धनिया की चटनी,

आम नीबू मिर्ची सूरन अचार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...
दही-बड़ा, काजू, किशमिश चिरौंजी,

केसर गुलाब जल, मुंह में आए लार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...

लड्डू इमरती पैदा बालूशाही,

बर्फी रसगुल्ला,थल का सिंगार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...

संतरा अंगूर आम लीची लुकात,

जामुन जाम नाशपाती फल हैं अपार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...
श्री खंड खीर स्वादिष्ट खाएं कैसे?

पेट भरा, 'और लें' होती मनुहार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...

भुखमरे आए पेटू बाराती,

ठूंसे पसेरियों, गारी गायें नार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...
'समधी तिहारी भागी लुगाई,

ले गओ भगा के बाको बांको यार।'

जनक अंगना में होती ज्योनार...
कोकिल कंठी गारी गायें,

सुन के बाराती दिल बैठे हार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...
लोंग इलायची सौंफ सुपारी,

पान बनारसी रचे मजेदार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...

'शान्ति' देवगण भेष बदलकर,

जीमें पंगत, करे जुहार।

जनक अंगना में होती ज्योनार...
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