कुल पेज दृश्य

adhar लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
adhar लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 28 जुलाई 2018

doha

एक दोहा
एक दोहा
गँवा नहीं सकते कभी, जब तक लें कुछ पा न।
अधर अधर से मिल रचे, जब खाया हो पान।।
*

शनिवार, 19 अगस्त 2017

muktak

मुक्तक:
*
जागे बहुत चलो अब सोएँ
किसका कितना रोना रोएँ?
पाए जोड़े की क्या चिंता?
खुद को पाएँ, पाया खोएँ
*
अभी न जाता,अभी न रोएँ
नाहक नैना नहीं भिगोएँ
अधरों पर मुस्कान सजाकर
स्वप्न देखी जब भी सोएँ
*
जिसने सपने में देखा, उसने ही पाया
जिसने पाया, स्वप्न मानकर तुरत भुलाया
भुला रहा जो, याद उसी को फिर-फिर आया
आया बाँहों-चाहों में जो वह मन भाया
*
पल-पल नया जन्म होता है, क्षण-क्षण करे मृत्यु आलिंगन
सीधी रेखा में पग रखकर, बढ़े सदा यह सलिल अकिंचन
दें आशीष 'फेस' जब भी यम, 'बुक' में दर्ज करें हो उज्जवल
'सलिल' सींच कुछ पौधे कर दे, तनिक सुवासित कविता उपवन
****
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

बुधवार, 29 जून 2011

दोहा सलिला: अधर हुए रस लीन --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:                                                                                                 
अधर हुए रस लीन
संजीव 'सलिल'
*
अधर अधर पर जब धरे, अधर रह गये मूक.
चूक हुई कब?, क्यों?, कहाँ?, उठी न उर में हूक..
*
अधर अबोले बोलते, जब भी जी की बात.
अधर सुधारस घोलते, प्रमुदित होता गात..
*
अधर लरजते देखकर, अधर फड़ककर मौन.
किसने-किससे क्या कहा?, 'सलिल' बताये कौन??
*
अधर रीझकर अधर पर, सुना रहा नवगीत.
अधर खीझकर अधर से, कहे- मौन हो मीत..
*
तोता-मैना अधर के, किस्से हैं विख्यात.
कहने-सुनने में 'सलिल', बीत न जाये रात..
*
रसनिधि पाकर अधर में, अधर हुए रसलीन.
विस्मित-प्रमुदित हैं अधर, देख अधर को दीन..
*
अधर मिले जब अधर से, पल में बिसरा द्वैत.
माया-मायाधीश ने, पल में वरा अद्वैत..
*
अधरों का स्पर्श पा, वेणु-शंख संप्राण.
दस दिश में गुंजित हुए, संजीवित निष्प्राण..
*
तन-मन में लेने लगीं, अनगिन लहर लिहोर.
कहा अधर ने अधर से, 'अब न छुओ' कर जोर..
*
यह कान्हा वह राधिका, दोनों खासमखास.
श्वास वेणु बज-बज उठे, अधर करें जब रास..
*
ओष्ठ, लिप्स, लब, होंठ दें, जो जी चाहे नाम.
निरासक्त योगी अधर, रखें काम से काम..
*
अधर लगाते आग औ', अधर बुझाते आग.
अधर गरल हैं अमिय भी, अधर राग औ' फाग..
*
अधर अधर को चूमकर, जब करते रसपान.
'सलिल' समर्पण ग्रन्थ पढ़, बन जाते रस-खान..
*
अधराराधन के पढ़े, अधर न जब तक पाठ.
तब तक नीरस जानिए, उनको जैसे काठ..
*
अधर यशोदा कान्ह को, चूम हो गये धन्य.
यह नटखट झटपट कहे, 'मैया तुम्हीं अनन्य'..
*
दरस-परस कर मत तरस, निभा सरस संबंध.
बिना किसी प्रतिबन्ध के, अधर करे अनुबंध..
*
दिया अधर ने अधर को, पल भर में पैगाम.
सारा जीवन कर दिया, 'सलिल'-नाम बेदाम..
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

रविवार, 20 मार्च 2011

मुक्तिका: हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                              

हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की

संजीव 'सलिल'
*
भाल पर सूरज चमकता, नयन आशा से भरे हैं.
मौन अधरों का कहे, हम प्रणयधर्मी पर खरे हैं..

श्वास ने की रास, अनकहनी कहे नथ कुछ कहे बिन.
लालिमा गालों की दहती, फागुनी किंशुक झरे हैं..

चिबुक पर तिल, दिल किसी दिलजले का कुर्बां हुआ है.
भौंह-धनु के नयन-बाणों से न हम आशिक डरे हैं?.

बाजुओं के बंधनों में कसो, जीवन दान दे दो.
केश वल्लरियों में गूथें कुसुम, भँवरे बावरे हैं..

सुर्ख लाल गाल, कुंतल श्याम, चितवन है गुलाबी.
नयन में डोरे नशीले, नयन-बाँके साँवरे हैं..

हुआ इंगित कुछ कहीं से, वर्जना तुमने करी है.
वह न माने लाज-बादल सिंदूरी फिर-फिर घिरे हैं..

पीत होती देह कम्पित, द्वैत पर अद्वैत की जय.
काम था निष्काम, रति की सुरती के पल माहुरे हैं..

हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की.
विदेहित हो देह ने, रंग-बिरंगे सपने करे हैं..

समर्पण की साधना दुष्कर, 'सलिल' होती सहज भी-
अबीरी-अँजुरी करे अर्पण बिना, हम कब टरे हैं..

**************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

मुक्तिका: सबब क्या ? संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                      

सबब क्या ?

संजीव 'सलिल'
*
सबब क्या दर्द का है?, क्यों बताओ?
छिपा सीने में कुछ नगमे सुनाओ..

न बाँटा जा सकेगा दर्द किंचित.
लुटाओ हर्ष, सब जग को बुलाओ..

हसीं अधरों पे जब तुम हँसी देखो.
बिना पल गँवाये, खुद को लुटाओ..

न दामन थामना, ना दिल थमाना.
किसी आँचल में क्यों खुद को छिपाओ?

न जाओ, जा के फिर आना अगर हो.
इस तरह जाओ कि वापिस न आओ..

खलिश का खज़ाना कोई न देखे.
'सलिल' को भी 'सलिल' ठेंगा दिखाओ..

************************