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मंगलवार, 17 जून 2025

जून १७, बिल्ली, बाल गीत, नवगीत, बुन्देली दोहे, पिता, शारदा, सार छंद, भारत, शिशु गीत, लक्ष्मीबाई

सलिल सृजन १७ जून
विश्व मगरमच्छ दिवस
*
विरासत :
कहाँ-कैसे हैं रानी लक्ष्मीबाई के वंशज
इतिहास की ताकतवर महिलाओं में शुमार रानी लक्ष्मी बाई के बेटे का जिक्र इतिहास में भी बहुत कम हुआ है। यही वजह है कि यह असलियत लोगों के सामने नहीं आ पाई। रानी के शहीद होने के बाद अंग्रेजों ने उन्हें इंदौर भेज दिया था। उन्होंने बेहद गरीबी में अपना जीवन बिताया। अंग्रेजों की उनपर हर पल नजर रहती थीं। दामोदर के बारे में कहा जाता है कि इंदौर के ब्राह्मण परिवार ने उनका लालन-पालन किया था।
इतिहास में जब भी पहले स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जिक्र सबसे पहले होता है। रानी लक्ष्मीबाई के परिजन आज भी गुमनामी का जीवन जी रहे हैं। १७ जून १८५८ में ग्वालियर में रानी शहीद हो गई थी। रानी के शहीद होते ही वह राजकुमार गुमनामी के अंधेरे में खो गया जिसको पीठ बांधकर उन्होंने अंग्रेजो से युद्ध लड़ा था। इतिहासकार कहते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई का परिवार आज भी गुमनामी की जिंदगी जी रहा है। दामोदर राव का असली नाम आनंद राव था। इसे भी बहुत कम लोग जानते हैं। उनका जन्म झांसी के राजा गंगाधर राव के खानदान में ही हुआ था।
५०० पठान थे अंगरक्षक
दामोदर राव जब भी अपनी मां झांसी की रानी के साथ महालक्ष्मी मंदिर जाते थे, तो ५०० पठान अंगरक्षक उनके साथ होते थे। रानी के शहीद होने के बाद राजकुमार दामोदर को मेजर प्लीक ने इंदौर भेज दिया था। ५ मई १८६० को इंदौर के रेजिडेंट रिचमंड शेक्सपियर ने दामोदर राव का लालन-पालन मीर मुंशी पंडित धर्मनारायण कश्मीरी को सौंप दिया। दामोदर राव को सिर्फ १५० रुपए महीने पेंशन दी जाती थी।
२८ मई १९०६ को इंदौर में हुआ था दामोदर का निधन
लोगों का यह भी कहना है कि दामोदर राव कभी 25 लाख रुपए की सालाना रियासत के मालिक थे, जबकि दामोदर के असली पिता वासुदेव राव नेवालकर के पास खुद चार से पांच लाख रुपए सालाना की जागीर थी। बेहद संघर्षों में जिंदगी जीने वाली दामोदर राव १८४८ में पैदा हुए थे। उनका निधन २८ मई १९०६ को इंदौर में बताया जाता है।
इंदौर में हुआ था दामोदर राव का विवाह
रानी लक्ष्मीबाई के बेटे के निधन के बाद १९ नवंबर १८५३ को पांच वर्षीय दामोदर राव को गोद लिया गया था। दामोदर के पिता वासुदेव थे। वह बाद में जब इंदौर रहने लगे तो वहां पर ही उनका विवाह हो गया दामोदर राव के बेटे का नाम लक्ष्मण राव था। लक्ष्मण राव के बेटे कृष्ण राव और चंद्रकांत राव हुए। कृष्ण राव के दो पुत्र मनोहर राव, अरूण राव तथा चंद्रकांत के तीन पुत्र अक्षय चंद्रकांत राव, अतुल चंद्रकांत राव और शांति प्रमोद चंद्रकांत राव हुए।
लक्ष्मण राव को बाहर जाने की नहीं थी इजाजत
२३ अक्टूबर वर्ष १८७९ में जन्मे दामोदर राव के पुत्र लक्ष्मण राव का चार मई १९५९ को निधन हो गया। लक्ष्मण राव को इंदौर के बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। इंदौर रेजिडेंसी से २०० रुपए मासिक पेंशन आती थी, लेकिन पिता दामोदर के निधन के बाद यह पेंशन १०० रुपए हो गई। वर्ष १९२३ में ५० रुपए हो गई। १९५१ में यूपी सरकार ने रानी के नाती यानी दामोदर राव के पुत्र को ५० रुपए मासिक सहायता आवेदन करने पर दी थी, जो बाद में ७५ रुपए कर दी गई।
जंगल में भटकते रहे दामोदर राव
इतिहासकार ओम शंकर असर के अनुसार, रानी लक्ष्मीबाई दामोदर राव को पीठ से बाँधकर चार अप्रैल १८५८ को झाँसी से कूच कर गई थीं। १७ जून १८५८ को तक यह बालक सोता-जागता रहा। युद्ध के अंतिम दिनों में तेज होती लड़ाई के बीच महारानी ने अपने विश्वास पात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख को दामोदर राव की जिम्मेदारी सौंप दी। दो वर्षों तक वह दामोदर को अपने साथ लिए रहे। वह दामोदर राव को लेकर ललितपुर जिले के जंगलों में भटके।
पहले किया गिरफ्तार फिर भेजा इंदौर
दामोदर राव के दल के सदस्य भेष बदलकर राशन का सामान लाते थे। दामोदर के दल में कुछ उंट और घोड़े थे। इनमें से कुछ घोड़े देने की शर्त पर उन्हें शरण मिलती थी। शिवपुरी के पास जिला पाटन में एक नदी के पास छिपे दामोदर राव को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर उन्हें मई, १८६० में अंग्रेजों ने इंदौर भेज दिया गया था। बताया जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई के परिजन आज भी इंदौर में गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। परिवार के सदस्य प्रदेश के पुलिस विभाग में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
***
शिशु गीत सलिला
भालू
आया भालू।
खाता आलू।।
बंदर कहता-
उसको कालू।।
*
बंदर
बंदर नाच दिखाता है।
सबके मन को भाता है।।
दौड़ झाड़ पर चढ़ जाता-
हाथ नहीं फिर आता है।।
*
बिल्ली
बिल्ली बोले म्याऊँ-म्याऊँ।
चूहा पाकर झट खा जाऊँ।।
नटखट चूहा हाथ न आया।
बचकर ठेंगा दिखा चिढ़ाया।।
*
माँ
मेरी माँ प्यारी-न्यारी।
मुझ पर जाती है वारी।।
मैं भी खूब दुलार करूँ-
गोदी में छिप प्यार करूँ।।
*
बहिन
बहिन पढ़ेगी रोज किताब।
सदा करेगी सही हिसाब।।
बात भाई तब मानेगा।
रार न नाहक ठानेगा।।
*
भाई
भाई करता है ऊधम।
कहता नहीं किसी से कम।
बातें खूब बनाता है -
करे नाक में सबकी दम।।
१७-६-२०२२
***
गीत
*
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
*
जड़ें सनातन ज्ञान आत्मा है मेरी
तन है तना समान सुदृढ़ आश्रयदाता
शाखाएँ हैं प्रथा पुरातन परंपरा
पत्ता पत्ता जीव, गीत मिल गुंजाता
पंछी कलरव करते, आगत स्वागत हूँ
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
*
औषध बन मैं जाने कितने रोग हरूँ
लकड़ी बल्ली मलगा अनगिन रूप धरूँ
कोटर में, शाखों पर जीवन विकसित हो
आँधी तूफां सहता रहता अविचल हो
पूजन व्रत मैं, सदा सुहागन ज्योतित हूँ
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
*
हूँ अनेक में एक, एक में अनगिनती
सूर्य-चंद्रमा, धूप-चाँदनी सहचर हैं
ग्रह-उपग्रह, तारागण पवन मित्र मेरे
अनिल अनल भू सलिल गगन मम पालक हैं
सेतु ज्ञान विज्ञान मध्य, गत-आगत हूँ
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
*
वेद पुराण उपनिषद आगम निगम लिखे
ऋषियों ने मेरी छाया में हवन करे
अहंकार मनमानी का उत्थान-पतन
देखा, लेखा ऋषि पग में झुकता नृप सिंहासन
विधि-ध्वनि, विष्णु-रमा, शिव-शिवा तपी-तप हूँ
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
*
विश्व नीड़ में आत्म दीप बन जलता हूँ
चित्र गुप्त साकार मूर्त हो मिटता हूँ
जगवाणी हिंदी मेरा जयघोष करे
देवनागरी लिपि जन-मन हथियार सखे!
सूना अवध सिया बिन, मैं भी दंडित हूँ
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
१७-६-२०२१
***
शारद वंदना : पद
यौगिक जातीय सार छंद
*
शारद स्वर-ध्वनि कंठ सजावै।
स्वर व्यंजन अक्षर लिपि भाषा, पल-पल माई सिखावै।।
कलकल-कलरव, लोरी भगतें, भजन आरती गावै।
कजरी बंबुलिया चौकडिया, आल्हा-राई सुनावै।।
सोहर बन्ना-बन्नी गारी, अधरों पे धर जावै।
सुख में दुःख में बने सहारा, पल में पीर भुलावै।।
रसानंद दे मैया मोरी, ब्रह्मानंद लुटावै।
भव सागर की भीति भुला खें, नैया पार लगावै।।
१७-६-२०२०
***
शारद वंदन
*
शारद मैया शस्त्र उठाओ,
हंस छोड़ सिंह पर सज आओ...
सीमा पर दुश्मन आया है, ले हथियार रहा ललकार।
वीणा पर हो राग भैरवी, भैरव जाग भरें हुंकार।।
रुद्र बने हर सैनिक अपना, चौंसठ योगिनी खप्पर ले।
पिएँ शत्रु का रक्त तृप्त हो,
गुँजा जयघोषों से जग दें।।
नव दुर्गे! सैनिक बन जाओ
शारद मैया! शस्त्र उठाओ...
एक वार दो को मारे फिर, मरे तीसरा दहशत से।
दुनिया को लड़ मुक्त कराओ, चीनी दनुजों के भय से।।
जाप महामृत्युंजय का कर, हस्त सुमिरनी हाे अविचल।
शंखघोष कर वक्ष चीर दो,
भूलुंठित हों अरि के दल।।
रणचंडी दस दिश थर्राओ,
शारद मैया शस्त्र उठाओ...
कोरोना दाता यह राक्षस,
मानवता का शत्रु बना।
हिमगिरि पर अब शांति-शत्रु संग, शांति-सुतों का समर ठना।।
भरत कनिष्क समुद्रगुप्त दुर्गा राणा लछमीबाई।
चेन्नम्मा ललिता हमीद सेंखों सा शौर्य जगा माई।।
घुस दुश्मन के किले ढहाओ,
शारद मैया! शस्त्र उठाओ...
***
१७-६-२०२०
शिशु गीत सलिला :
*
पापा-
पापा लाड़ लड़ाते खूब,
जाते हम खुशियों में डूब।
उन्हें बना लेता घोड़ा-
हँसती, देख बाग़ की दूब।।
*
पापा चलना सिखलाते,
सारी दुनिया दिखलाते।
रोज बिठाकर कंधे पर-
सैर कराते मुस्काते।।
*
गलती हो जाए तो भी,
मुझे नहीं खोना आपा।
सीख-सुधारो, खुद सुधारो-
सीख सिखाते थे पापा।।
१७-६-२०१८
***
पिता पर दोहे:
*
पिता कभी वट वृक्ष है, कभी छाँव-आकाश.
कंधा, अँगुली हैं पिता, हुए न कभी हताश.
*
पूरा कुनबा पालकर, कभी न की उफ़-हाय.
दो बच्चों को पालकर, हम क्यों हैं निरुपाय?
*
थके, न हारे थे कभी, रहे निभाते फर्ज.
पूत चुका सकते नहीं, कभी पिता का कर्ज.
*
गिरने से रोका नहीं, चुपा; कहा: 'जा घूम'.
कर समर्थ सन्तान को, लिया पिता ने चूम.
*
माँ ममतामय चाँदनी, पिता सूर्य की धूप.
दोनों से मिलकर बना, जीवन का शुभ रूप.
*
पिता न उँगली थामते, होते नहीं सहाय.
तो हम चल पाते नहीं, रह जाते असहाय.
*
माता का सिंदूर थे, बब्बा का अरमान.
रक्षा बंधन बुआ का, पिता हमारी शान.
*
दीवाली पर दिया थे, होली पर थे रंग.
पिता किताबें-फीस थे, रक्षा हित बजरंग.
*
पिता नमन शत-शत करें, संतानें नत माथ.
गये न जाकर भी कहीं, श्वास-श्वास हो साथ.
*
१७.६.२०१८
***
बुन्देली दोहे
महुआ फूरन सों चढ़ो, गौर धना पे रंग।
भाग सराहें पवन के, चूम रहो हर अंग।।
मादल-थापों सॅंग परै, जब गैला में पैर।
धड़कन बाॅंकों की बढ़े, राम राखियो खैर।।
हमें सुमिर तुम हो रईं, गोरी लाल गुलाल।
तुमें देख हम हो रए, कैसें कएँ निहाल।।
मन म्रिदंग सम झूम रौ, सुन पायल झंकार।
रूप छटा नें छेड़ दै, दिल सितार कें तार।।
नेह नरमदा में परे, कंकर घाईं बोल।
चाह पखेरू कूक दौ, बानी-मिसरी घोल।।
सैन धनुस लै बेधते, लच्छ नैन बन बान।
निकरन चाहें पै नईं, निकर पा रए प्रान।।
तड़प रई मन मछरिया, नेह-नरमदा चाह।
तन भरमाना घाट पे, जल जल दे रौ दाह।।
अंग-अंग अलसा रओ, पोर-पोर में पीर।
बैरन ननदी बलम सें, चिपटी छूटत धीर।।
कोयल कूके चैत मा, देख बरे बैसाख।
जेठ जिठानी बिन तपे, सूरज फेंके आग।।
*
***
गीत
*
तुम विरागी,
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
सिर उठाये खड़े हो तुम
हर विपद से लड़े हो तुम
हरितिमा का छत्र धारे
पुहुप शत-शत जड़े हो तुम
तना सीधा तना हर पल
सैनिकों से कड़े हो तुम
फल्लियों के शस्त्र थामे
योद्धवत अड़े हो तुम
एकता की विरासत के
पक्षधर सच बड़े हो तुम
तमस-आगी,
सहे बागी
चमकते दामी कनक से
तुम विरागी,
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
जमीं में हो जड़ जमाये
भय नहीं तुमको सताये
इंद्रधनुषी तितलियों को
संग तुम्हारा रास आये
अमलतासी सुमन सज्जित
छवि मनोहर खूब भाये
बैठ गौरैया तुम्हारी
शाख पर नग्मे सुनाये
दूर रहना मनुज से जो
काटकर तुमको जलाये
उषा जागी
लगन लागी
लोरियाँ गूँजी खनक से
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
[मुक्तिका गीत,मानव छंद]
१७-६-२०१६
***
मुक्तक
*
महाकाल भी काल के, वश में कहें महेश
उदित भोर में, साँझ ढल, सूर्य न दीखता लेश
जो न दिखे अस्तित्व है, उसका उसमें प्राण
दो दिखता निष्प्राण हो कभी, कभी संप्राण
*
नि:सृत सलिल महेश शीश से, पग-प्रक्षालन करे धन्य हो
पिएं हलाहल तनिक न हिचकें, पूजित जग में हे! अनन्य हो
धार कंठ में सर्प अभय हो, करें अहैतुक कृपा रात-दिन
जगजननी को ह्रदय बसाए, जगत्पिता सचमुच प्रणम्य हो
*
१६-६-२०१६
***
एक गीत:
राकेश खंडेलवाल
आदरणीय संजीव सलिल की रचना ( अच्छे दिन आयेंगे सुनकर जी लिये
नोट भी पायेंगे सुनकर जी लिये ) से प्रेरित
*
प्यास सुलगती, घिरा अंधेरा
बस कुछ पल हैं इनका डेरा
सावन यहाँ अभी घिरता है
और दीप जलने वाले हैं
नगर ढिंढोरा पीट, शाम को तानसेन गाने वाले हैं
रे मन धीरज रख ले कुछ पल, अच्छे दिन आने वाले हैं
बँधी महाजन की बहियों में उलझी हुई जन्म कुंडलियाँ
होंगी मुक्त, व्यूह को इनके अभिमन्यु आकर तोड़ेगा
पनघट पर मिट्टी पीतल के कलशों में जो खिंची दरारें
समदर्शी धारा का रेला, आज इन्हें फ़िर से जोड़ेगा
सूनी एकाकी गलियों में
विकच गंधहीना कलियों में
भरने गन्ध, चूमने पग से
होड़ मचेगी अब अलियों में
बीत चुका वनवास, शीघ्र ही राम अवध आने वाले हैं
रे मन धीरज रख ले कुछ पल, अच्छे दिन आने वाले हैं
फिर से होंगी पूज्य नारियाँ,रमें देवता आकर भू पर
लोलुपता के बाँध नहीं फिर तोड़ेगा कोई दुर्योधन
एकलव्य के दायें कर का नहीं अँगूठा पुन: कटेगा
राजा और प्रजा में होगा सबन्धों का मृदु संयोजन
लगा जागने सोया गुरुकुल
दिखते हैं शुभ सारे संकुल
मन के आंगन से बिछुड़ेगा
संतापों का पूरा ही कुल
फूल गुलाबों के जीवन की गलियाँ महकाने वाले हैं
रे मन धीरज रख ले कुछ पल, अच्छे दिन आने वाले हैं
अर्थहीन हो चुके शब्द ये, आश्वासन में ढलते ढलते
बदल गई पीढ़ी इक पूरी, इन सपनों के फ़ीकेपन में
सुखद कोई अनुभूति आज तक द्वारे पर आकर न ठहरी
भटका किया निरंतर जन गण, जयघोषों के सूने पन में
आ कोई परिवर्तन छू रे
बरसों में बदले हैं घूरे
यहाँ फूल की क्यारी में भी
उगते आये सिर्फ़ धतूरे
हमें पता हैं यह सब नारे, मन को बहकाने वाले हैं
राहें बन्द हो चुकी सारी अच्छे दिन आने वाले हैं ?
***
नवगीत
*
चूल्हा, चक्की, आटा, दाल
लाते-दूर करें भूचाल
.
जिसका जितना अधिक रसूख
उसकी उतनी ज्यादा भूख
छाँह नहीं, फल-फूल नहीं
दे जो- जाए भाड़ में रूख
गरजे मेघ, नाचता देख
जग को देता खुशी मयूख
उलझ न झुँझला
न हो निढाल
हल कर जितने उठे सवाल
चूल्हा, चक्की, आटा, दाल
लाते-दूर करें भूचाल
.
पेट मिला है केवल एक
पर न भर सकें यत्न अनेक
लगन, परिश्रम, कोशिश कर
हार न माने कभी विवेक
समय-परीक्षक खरा-कड़ा
टेक न सर, कर पूरी टेक
कूद समुद में
खोज प्रवाल
मानवता को करो निहाल
चूल्हा, चक्की, आटा, दाल
लाते-दूर करें भूचाल
.
मिट-मिटकर जो बनता है
कर्म कहानी जनता है
घूरे को सोना करता
उजड़-उजड़ कर बस्ता है
छलिया औरों को कम पर
खुद को ज्यादा छलता है
चुप रह, करो
न कोई बबाल
हो न तुम्हारा कहीं हवाल
चूल्हा, चक्की, आटा, दाल
लाते-दूर करें भूचाल
*
१३-१-२०१५
४०१ जीत होटल बिलासपुर
***
मुक्तिका:
*
तुम गलत पर हम सही कहते रहे हैं
इसलिए ही दूरियाँ सहते रहे हैं
.
ज़माने ने उजाड़ा हमको हमेशा
मगर फिर-फिर हम यहीं रहते रहे हैं
.
एक भी पूरा हुआ तो कम नहीं है
महल सपनों के अगिन ढहते रहे हैं
.
प्रथाओं को तुम बदलना चाहते हो
पृथाओं से कर्ण हम गहते रहे हैं
.
बिसारी तुमने भले यादें हमारी
सुधि तुम्हारी हम सतत तहते रहे हैं
.
पलाशों की पीर जग ने की अदेखी
व्यथित होकर 'सलिल' चुप दहते रहे हैं
.
हम किनारों पर ठहर कब्जा न चाहें
इसलिए होकर 'सलिल' बहते रहे हैं.
१७-६-२०१५
***
बाल गीत:
पाखी की बिल्ली
*
पाखी ने बिल्ली पाली.
सौंपी घर की रखवाली..
फिर पाखी बाज़ार गयी.
लाये किताबें नयी-नयी
तनिक देर जागी बिल्ली.
हुई तबीयत फिर ढिल्ली..
लगी ऊंघने फिर सोयी.
सुख सपनों में थी खोयी..
मिट्ठू ने अवसर पाया.
गेंद उठाकर ले आया..
गेंद नचाना मन भाया.
निज करतब पर इठलाया..
घर में चूहा आया एक.
नहीं इरादे उसके नेक..
चुरा मिठाई खाऊँगा.
ऊधम खूब मचाऊँगा..
आहट सुन बिल्ली जागी.
चूहे के पीछे भागी..
झट चूहे को जा पकड़ा.
भागा चूहा दे झटका..
बिल्ली खीझी, खिसियाई.
मन ही मन में पछताई..
***

रविवार, 1 सितंबर 2024

३१ अगस्त, सॉनेट, बुन्देली दोहे, एकाक्षरी द्विपदी, माहिया ककुप, हाइकु, नवगीत, फार्माकोग्नोसी

सलिल सृजन ३१ अगस्त
*
प्राकृतिक-औषधि विज्ञान (फार्माकोग्नोसी)
प्राकृतिक औषधि विज्ञान क्या है?
प्रकृति का निर्माण पाँच तत्वों अग्नि, आकाश, हवा, धरती और पानी से हुआ है। ये पाँचों तत्व हर पदार्थ और हर जीव में मौजूद होते हैं। इनका असंतुलन रोगों का कारण होता है। इन्हें संतुलित कर रोग को दूर किया जा सकता है। प्रकृति से प्राप्त अकृत्रिम पदार्थों व जीवों अथवा उनसे प्राप्त पदार्थों का अध्ययन, विश्लेषण व परीक्षण कर उनके प्रभाव को जानने की विधा का नाम प्राकृतिक- औषधि विज्ञान (फार्माकोग्नोसी) है।
प्राकृतिक औषधि विज्ञान में पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, मिट्टी-पत्थरों, खनिजों आदि का परीक्षण कर उनसे बनाई गई औषधियों के प्रभावों का विधिवत अध्ययन किया जाता है। 
प्राकृतिक औषधि विज्ञान : जन्म और विकास
प्राकृतिक उपादानों के उपयोग व उनसे रोग निवारण की समझ मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षियों में भी पाई गई है।
कब्ज़ होने पर शेर, कुत्ते आदि घास खाते देखे गए हैं। पक्षी बेस्वाद, सड़े-गले, हानिप्रद फल नहीं खाते जबकि पके फल खा लेते हैं। प्राकृतिक- औषधि पहचानने और सेवन करने की प्रवृत्ति आदिमानवों, आदिवासियों तथा ग्रामीणों में पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होती रही है। ऋषि-मुनियों के आश्रमों में प्राकृत औषध विज्ञान का विकास हुआ। आयुर्विज्ञान संबंधी ग्रंथों में आयुर्वेद महत्वपूर्ण है। वेद पूर्व, वैदिक तथा वेदोत्तर काल में प्राकृतिक-औषधियों का व्यवस्थित अध्ययन व शोध कार्य हुआ। आधुनिक काल में विज्ञान की उन्नति विदेशों विशेषकर पश्चिम में हुई।
दोहा सलिला
कल था कल आता नहीं, जो करना कर आज।
कल कल करते कल न हो, कलकल सुन कर काज।।
अकल अ कल हो विकल है, नकल न देती साथ।
किलकिल कर गुमसुम शकल, रुके हाथ नत माथ।।
खुद को दुहराता सदा, कहते हैं इतिहास।
कल फिर कल आ आज हो, विरह मिलन दें हास।।
३१.८.२०२४
•  
सॉनेट
*
थोथा चना बाजे घना
जोर-जोर से रेंके गधा
भले रहे खूंटे से बँधा
जो न जानता रहता तना।
पहले पढ़ो-लिखो-सोचो
बिना जरूरत मत बोलो
यदि बोलो पहले तोलो
कहा न कुछ बेमतलब हो
लाखों की है बंद जुबान
पहचानो बातों का मोल
ज़हर-अमिय सकती है घोल
करो नहीं नाहक अभिमान
बिना बात कर वाद-विवाद
खुद को करों नहीं बर्बाद
२९-८-२०२२
***
विमर्श : ट्विन टॉवर ध्वंस
वॉटरफॉल = झरना जिसमें पानी बिना रुके सीधे नीचे गिरता है।
इम्पलोड = फटना, इम्प्लोजन = विस्फोट।
वॉटरफॉल इम्प्लोजन = गगनचुंबी इमारत में इस तरह विस्फोट करना की मलबा बिना बिखरे झरने की धार की तरह सीधे नीचे गिरे।
वाटरफॉल इंप्लोजन तकनीक का मतलब है कि मलबा सचमुच पानी की तरह गिरेगा. इम्प्लोजन ऐसे शहरी विस्फोट के लिए उपयोग की जाने वाली विधि है जिसे नियंत्रित विस्फोटों की आवश्यकता होती है.
नोएडा (Noida) में सुपरटेक ट्विन टावरों (Supertec twin tower) के विस्फोट की उलटी गिनती शुरू होने के साथ ही अंतिम जांच चल रही है. टावरों को सुरक्षित रूप से जमीन पर गिराने की जरूरत है. इसका मतलब है कि आसपास की इमारतों को कम से कम नुकसान सुनिश्चित करना है जिसमें 5,000 लोग रहते हैं, जो मुश्किल से 9 मीटर दूर हैं. इस अत्यंत सटीक कार्य के लिए विस्फोट विशेषज्ञों का जवाब एक तकनीक है जिसे 'वाटरफॉल इम्प्लोजन' (waterfall implosion) के रूप में जाना जाता है. वाटरफॉल तकनीक का मतलब है कि मलबा सचमुच पानी की तरह गिरेगा. इम्प्लोजन ऐसे शहरी विस्फोट के लिए उपयोग की जाने वाली विधि है जिसे नियंत्रित विस्फोटों की आवश्यकता होती है. इसके विपरीत, एक विस्फोट के परिणामस्वरूप मलबा दूर-दूर दिशाओं में बह जाएगा. एक और कहावत यह है कि 'ताश का घर' कैसे गिरता है. नियंत्रित विस्फोट कुछ ही सेकंड में 55,000 टन बड़े पैमाने पर मलबे को नीचे लाएगा. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि टावर को ढहाते समय कोई अन्य क्षति तो नहीं हो रही है.
नोएडा ट्विन टावर गिराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा सटीक दृष्टिकोण
इस तकनीक को भारत में उस समय प्रयोग किया गया था जब उसी कंपनी ने 2020 में कोच्चि में 4 ऊंची इमारतों को ध्वस्त कर दिया था. वही प्रयोग 15 सेकंड से भी कम समय में ट्विन टावरों को ढहा देगी. पूरी टीम 150 प्रतिशत आश्वस्त है कि ढांचा उस दिशा में और सटीक तरीके से नीचे गिरेंगी, जिस तरह से उन्होंने बड़े पैमाने पर विध्वंस की परिकल्पना की है. विस्फोट में एक ढांचा अपने आप में गिर जाती है. तकनीक गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों का उपयोग करती है. यह ढांचों के आधार को इस तरह से हटा देगा कि गुरुत्वाकर्षण का केंद्र मिलीमीटर से शिफ्ट हो जाए, जिससे ढांचा नीचे आ जाए.
दोनों टावरों को ढहाने के लिए 3700 किलो विस्फोटक
विध्वंस टीम के एक इंजीनियर के हवाले से कहा गया, "गुरुत्वाकर्षण कभी नहीं सोता है. यह पूरे दिन और पूरी रात काम करता है. यह विस्फोट का पूरा विचार है. उन्होंने कहा, "विध्वंस की इस पद्धति के लिए कोई संदर्भ पुस्तक नहीं है. इसे करने का कोई विशेष तरीका नहीं है या इसे कैसे करना है, इस पर दुनिया में कहीं भी कोई शब्द नहीं लिखा गया है. यह केवल व्यक्तियों के कौशल और इसे करने के उनके अनुभवों पर निर्भर करता है. सटीक कार्य के हिस्से के रूप में 2.634 मिलीमीटर मापने वाले 9,640 छेद जो कि अंतिम दशमलव अंक के लिए सटीक हैं, को 3,700 किलोग्राम विस्फोटक के लिए टावरों में ड्रिल किया गया है जो इसे विस्फोट कर देगा. कई स्थानों पर उच्च और निम्न गति वाले कैमरों जैसे उपकरण टीम द्वारा घटना के बाद के विश्लेषण के लिए विध्वंस को कैप्चर करेंगे. पैसे से ज्यादा टीम हाथ में बड़े पैमाने पर उपलब्धि के साथ अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाती है.
क्या विध्वंस से आस-पास की इमारतों को कोई नुकसान होगा?
विस्फोटक टीम ने आश्वासन दिया कि कोई संरचनात्मक क्षति नहीं होगी. अधिक से अधिक पेंट और प्लास्टर या टूटी खिड़कियों में कुछ कॉस्मेटिक दरारें होंगी जहां वे पहले से ही कमजोर हो गई हैं या ढीली हो गई हैं. मलबे को हटाने के लिए ठेकेदारों की पहले से ही व्यवस्था कर ली गई है. रविवार को 2:30 बजे पुलिस की मंजूरी के बाद विस्फोट किया जाएगा. सफाई कर्मचारियों की सहायता के लिए यांत्रिक स्वीपिंग मशीन, एंटी-स्मॉग गन और पानी के छिड़काव के साथ धूल साफ करने की व्यवस्था की गई है.
३१-८-२०२२
***
बुन्देली दोहे
महुआ फूरन सों चढ़ो, गौर धना पे रंग।
भाग सराहें पवन के, चूम रहो अॅंग-अंग।।
मादल-थापों सॅंग परंे, जब गैला में पैर।
धड़कन बाॅंकों की बढ़े, राम राखियो खैर।।
हमें सुमिर तुम हो रईं, गोरी लाल गुलाल।
तुमें देख हम हो रए, कैसें कएॅं निहाल।।
मन म्रिदंग सम झूम रौ, सुन पायल झंकार।
रूप छटा नें छेड़ दै, दिल सितार कें तार।।
नेह नरमदा में परे, कंकर घाईं बोल।
चाह पखेरू कूक दौ, बानी-मिसरी घोल।।
सैन धनुस लै बेधते, लच्छ नैन बन बान।
निकरन चाहें पै नईं, निकर पा रए प्रान।।
तड़प रई मन मछरिया, नेह-नरमदा चाह।
तन भरमाना घाट पे, जल जल दे रौ दाह।।
अंग-अंग अलसा रओ, पोर-पोर में पीर।
बैरन ननदी बलम सें, चिपटी छूटत धीर।।
कोयल कूके चैत मा, देख बरे बैसाख।
जेठ जिठानी बिन तपे, सूरज फेंके आग।।
३१-८-२०१९
***
एकाक्षरी द्विपदी
*
भूल भुलाई, भूल न भूली, भूलभुलैयां भूली भूल.
भुला न भूले भूली भूलें, भूल न भूली भाती भूल.
*
***
एकाक्षरी दोहा
*
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु|
नुन्नोअ्नुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत||
अर्थ बताएँ.
महर्षि भारवि, किरातार्जुनीयम में.
***
माहिया
फागों की तानों से
मन से मन मिलते
मधुरिम मुस्कानों से
*
ककुप
मिल पौधे लगाइए
वसुंधरा हरी-भरी बनाइये
विनाश को भगाइए
*
हाइकु
गाओ कबीर
बुरा न माने कोई
लगा अबीर
३१-८-२०१७
***
द्विपदियों में कल्पना
*
कल्पना की विरासत जिसको मिली
उस सरीखा धनी दूजा है नहीं
*
कल्पना की अल्पना गृह-द्वार पर
डाल देखो सुखों का हो सम्मिलन
*
कल्पना की तूलिका, रंग शब्द के
भाव चित्रों में झलकती ज़िन्दगी
*
कल्पना उड़ चली फैला पंख जब
सच कहूँ?, आकाश छोटा पड़ गया
*
कल्पना कंकर को शंकर कर सके
चाह ले तो कर सके विपरीत भी
*
कल्पना से प्यार करना है अगर
आप अवसर को कभी मत चूकिए
*
कल्पना की कल्पना कैसे करे?
प्रश्न का उत्तर न खोजे भी मिला
*
कल्पना सरिता बदलती रूप नित
कभी मन्थर, चपल जल प्लावित कभी
*
कल्पना साकार होकर भी विनत
'सलिल' भट नागर यही है, मान लो
*
कल्पना की शरण जा कवि धन्य है
गीत दोहे ग़ज़ल रचकर गा सका
*
कल्पना मेरी हक़ीक़त हो गयी
नर्मदा अवगाह कर सुख पा लिया
*
कल्पना को बाँह में भर, चूमकर
कोशिशों ने मंज़िलें पायीं विहँस
*
कल्पना नाचीज़ है यह सत्य है
चीज़ तो बेजान होती है 'सलिल'
*
३१-८-२०१६
वीणा की झंकार में, सच है अन्तर्व्याप्त
बहारों के संसार में, व्यर्थ वचन हैं आप्त
***
मुक्तिका:
*
ये शायरी जबां है किसी बेजुबान की.
ज्यों महकती क्यारी हो किसी बागबान की..
आकाश की औकात क्या जो नाप ले कभी.
पाई खुशी परिंदे ने पहली उड़ान की..
हमको न देखा देखकर तुमने तो क्या हुआ?
दिल ले गया निशानी प्यार के निशान की..
जौहर किया या भेज दी राखी अतीत ने.
हर बार रही बात सिर्फ आन-बान की.
उससे छिपा न कुछ भी रहा कह रहे सभी.
किसने कभी करतूत कहो खुद बयान की..
रहमो-करम का आपके सौ बार शुक्रिया.
पीछे पड़े हैं आप, करूँ फ़िक्र जान की..
हम जानते हैं और कोई कुछ न जानता.
यह बात है केवल 'सलिल' वहमो-गुमान की..
३१-८-२०११
***
गीत :
स्वागत है...
*
पीर-दर्द-दुःख-कष्ट हमारे द्वार पधारो स्वागत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
दिव्य विरासत भूल गए हम, दीनबंधु बन जाने की.
रूखी-सूखी जो मिल जाए, साथ बाँटकर खाने की..
मुट्ठी भर तंदुल खाकर, त्रैलोक्य दान कर देते थे.
भार भाई, माँ-बाप हुए, क्यों सोचें गले लगाने की?..
संबंधों के अनुबंधों-प्रतिबंधों तुम पर लानत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
सात जन्म तक साथ निभाते, सप्त-पदी सोपान अमर.
ले तलाक क्यों हार रहे हैं, श्वास-आस निज स्नेह-समर?
मुँह बोले रिश्तों की महिमा 'सलिल' हो रही अनजानी-
मनमानी कलियों सँग करते, माली-काँटे, फूल-भ्रमर.
सत्य-शांति, सौन्दर्य-शील की, आयी सचमुच शामत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
वसुधा सकल कुटुंब हमारा, विश्व नीड़वत माना था.
सबके सुख, कल्याण, सुरक्षा में निज सुख अनुमाना था..
सत-शिव-सुन्दर रूप स्वयं का, आज हो रहा अनजाना-
आत्म-दीप बिन त्याग-तेल, तम निश्चय हम पर छाना था.
चेत न पाया व्हेतन मन, दर पर विनाश ही आगत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
पंचतत्व के देवों को हम दानव बनकर मार रहे.
प्रकृति मातु को भोग्या कहकर, अपनी लाज उघार रहे.
धैर्य टूटता काल-चक्र का, असगुन और अमंगल नित-
पर्यावरण प्रदूषण की हर चेतावनी बिसार रहे.
दोष किसी को दें, विनाश में अपने स्वयं 'सलिल' रत हैं.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
***
गीत
आपकी सद्भावना में
*
आपकी सद्भावना में कमल की परिमल मिली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*
उषा की ले लालिमा रवि-किरण आई है अनूप.
चीर मेघों को गगन पर है प्रतिष्टित दैव भूप..
दुपहरी के प्रयासों का करे वन्दन स्वेद-बूँद-
साँझ की झिलमिल लरजती, रूप धरता जब अरूप..
ज्योत्सना की रश्मियों पर मुग्ध रजनी मनचली.
हृदय-कलिका नवल आशा पा पुलककर फिर खिली.....
*
है अमित विस्तार श्री का, अजित है शुभकामना.
अपरिमित है स्नेह की पुष्पा-परिष्कृत भावना..
परे तन के अरे! मन ने विजन में रचना रची-
है विदेहित देह विस्मित अक्षरी कर साधना.
अर्चना भी, वंदना भी, प्रार्थना सोनल फली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*
मौन मन्वन्तर हुआ है, मुखरता तुहिना हुई.
निखरता है शौर्य-अर्णव, प्रखरता पद्मा कुई..
बिखरता है 'सलिल' पग धो मलिनता को विमल कर-
शिखरता का बन गयी आधार सुषमा अनछुई..
भारती की आरती करनी हुई सार्थक भली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
***
गीत
पुकार
*
आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही माँ, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
जहाँ रहा तू वहाँ सफल था, सुन मैं गर्वित होती थी.
सबसे मिलकर मुस्काती थी, हो एकाकी रोती थी..
आज नहीं तो कल आएगा कैयां तुझे सुलाऊँगी-
मौन-शांत थी मन की दुनिया में सपने बोती थी.
कान्हा सम तू गया किन्तु मेरी यादों में यहाँ रहा.
आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही माँ, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
*
दुनिया कहती बड़ा हुआ तू, नन्हा ही लगता मुझको .
नटखट बाल किशन में मैंने पाया है हरदम तुझको..
दुनिया कहती अचल मुझे तू चंचल-चपल सुहाता है-
आँचल-लुकते, दूर भागते, आते दिखता तू मुझको.
आ भी जा ओ! छैल-छबीले, ना होकर भी यहाँ रहा.
आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही माँ, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
*
भारत मैया-हिन्दी मैया, दोनों रस्ता हेर रहीं.
अब पुकार सुन पाया है तू, कब से तुझको टेर रहीं.
कभी नहीं से देर भली है, बना रहे आना-जाना
सारी धरती तेरी माँ है, ममता-माया घेर रहीं?
मेरे दिल में सदा रहा तू, निकट दूर तू जहाँ रहा.
आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही मैं, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
***
नवगीत
आराम चाहिए.....
*
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
प्रजातंत्र के बादशाह हम,
शाहों में भी शहंशाह हम.
दुष्कर्मों से काले चेहरे
करते खुद पर वाह-वाह हम.
सेवा तज मेवा के पीछे-
दौड़ें, ऊँचा दाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
पुरखे श्रमिक-किसान रहे हैं,
मेहनतकश इन्सान रहे हैं.
हम तिकड़मी,घोर छल-छंदी-
धन-दौलत अरमान रहे हैं.
देश भाड़ में जाये हमें क्या?
सुविधाओं संग काम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
स्वार्थ साधते सदा प्रशासक.
शांति-व्यवस्था के खुद नाशक.
अधिनायक हैं लोकतंत्र के-
हम-वे दुश्मन से भी घातक.
अवसरवादी हैं हम पक्के
लेन-देन बेनाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
सौदे करते बेच देश-हित,
घपले-घोटाले करते नित.
जो चाहो वह काम कराओ-
पट भी अपनी, अपनी ही चित.
गिरगिट जैसे रंग बदलते-
हमको ऐश तमाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
वादे करते, तुरत भुलाते.
हर अवसर को लपक भुनाते.
हो चुनाव तो जनता ईश्वर-
जीत उन्हें ठेंगा दिखलाते.
जन्म-सिद्ध अधिकार लूटना
'सलिल' स्वर्ग सुख-धाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
***
गीत:
है हवन-प्राण का.........
*
है हवन-प्राण का, तज दूरियाँ, वह एक है .
सनातन सम्बन्ध जन्मों का, सुपावन नेक है.....
*
दीप-बाती के मिलन से, जगत में मनती दिवाली.
अंशु-किरणें आ मिटातीं, अमावस की निशा काली..
पूर्णिमा सोनल परी सी, इन्द्रधनुषी रंग बिखेरे.
आस का उद्यान पुष्पा, ॐ अभिमंत्रित सवेरे..
कामना रथ, भावना है अश्व, रास विवेक है.
है हवन-प्राण का..........
*
सुमन की मनहर सुरभि दे, जिन्दगी हो अर्थ प्यारे.
लक्ष्मण-रेखा गृहस्थी, परिश्रम सौरभ सँवारे..
शांति की सुषमा सुपावन, स्वर्ग ले आती धरा पर.
आशुतोष निहारिका से, नित प्रगट करता दिवाकर..
स्नेह तुहिना सा विमल, आशा अमर प्रत्येक है..
है हवन-प्राण का..........
*
नित्य मन्वंतर लिखेगा, समर्पण-अर्पण की भाषा.
साधन-आराधना से, पूर्ण होती सलिल-आशा..
गमकती पूनम शरद की, चकित नेह मयंक है.
प्रयासों की नर्मदा में, लहर-लहर प्रियंक है..
चपल पथ-पाथेय, अंश्चेतना ही टेक है.
है हवन-प्राण का..........
*
बाँसुरी की रागिनी, अभिषेक सरगम का करेगी.
स्वरों की गंगा सुपावन, भाव का वैभव भरेगी..
प्रकृति में अनुकृति है, नियंता की निधि सुपावन.
विधि प्रणय की अशोका है, ऋतु वसंती-शरद-सावन..
प्रतीक्षा प्रिय से मिलन की, पल कठिन प्रत्येक है.
है हवन-प्राण का..........
*
श्वास-सर में प्यास लहरें, तृप्ति है राजीव शतदल.
कृष्णमोहन-राधिका शुभ साधिका निशिता अचंचल..
आन है हनुमान की, प्रतिमान निष्ठा के रचेंगे.
वेदना के, प्रार्थना के, अर्चन के स्वर सजेंगे..
गँवाने-पाने में गुंजित भाव का उन्मेष है.
है हवन-प्राण का..........
३१-८-२०१०
***

सोमवार, 17 जून 2024

जून १७, बाल गीत, मुक्तिका, नवगीत, राकेश खंडेलवाल, बुन्देली दोहे, पिता, शारदा, लक्ष्मीबाई, शिशु गीत

सलिल सृजन जून १७
*
सॉनेट
जुबान
मेरे भी मुँह में जुबान है,
कड़वा थू कर मीठा गटके,
दिन भर आवारा सी मटके,
खुद को खुद कहती महान है।
कभी अडिग हो बने आन है,
पलट न देखे कभी पलट के,
कभी हँसाए अटक-अटक के,
बेपर भी भरती उड़ान है।
नेह नर्मदा कभी बहाए,
कभी महाभारत करवाए,
सात जन्म संबंध, जान है।
कभी भटककर नाक कटाए,
कभी जान दे आन बचाए,
गुण-अवगुण की शान-खान है।
१७-६-२०२४
•••
विरासत :
कहाँ-कैसे हैं रानी लक्ष्मीबाई के वंशज
इतिहास की ताकतवर महिलाओं में शुमार रानी लक्ष्मी बाई के बेटे का जिक्र इतिहास में भी बहुत कम हुआ है। यही वजह है कि यह असलियत लोगों के सामने नहीं आ पाई। रानी के शहीद होने के बाद अंग्रेजों ने उन्हें इंदौर भेज दिया था। उन्होंने बेहद गरीबी में अपना जीवन बिताया। अंग्रेजों की उनपर हर पल नजर रहती थीं। दामोदर के बारे में कहा जाता है कि इंदौर के ब्राह्मण परिवार ने उनका लालन-पालन किया था।
इतिहास में जब भी पहले स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जिक्र सबसे पहले होता है। रानी लक्ष्मीबाई के परिजन आज भी गुमनामी का जीवन जी रहे हैं। १७ जून १८५८ में ग्वालियर में रानी शहीद हो गई थी। रानी के शहीद होते ही वह राजकुमार गुमनामी के अंधेरे में खो गया जिसको पीठ बांधकर उन्होंने अंग्रेजो से युद्ध लड़ा था। इतिहासकार कहते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई का परिवार आज भी गुमनामी की जिंदगी जी रहा है। दामोदर राव का असली नाम आनंद राव था। इसे भी बहुत कम लोग जानते हैं। उनका जन्म झांसी के राजा गंगाधर राव के खानदान में ही हुआ था।
५०० पठान थे अंगरक्षक
दामोदर राव जब भी अपनी मां झांसी की रानी के साथ महालक्ष्मी मंदिर जाते थे, तो ५०० पठान अंगरक्षक उनके साथ होते थे। रानी के शहीद होने के बाद राजकुमार दामोदर को मेजर प्लीक ने इंदौर भेज दिया था। ५ मई १८६० को इंदौर के रेजिडेंट रिचमंड शेक्सपियर ने दामोदर राव का लालन-पालन मीर मुंशी पंडित धर्मनारायण कश्मीरी को सौंप दिया। दामोदर राव को सिर्फ १५० रुपए महीने पेंशन दी जाती थी।
२८ मई १९०६ को इंदौर में हुआ था दामोदर का निधन
लोगों का यह भी कहना है कि दामोदर राव कभी 25 लाख रुपए की सालाना रियासत के मालिक थे, जबकि दामोदर के असली पिता वासुदेव राव नेवालकर के पास खुद चार से पांच लाख रुपए सालाना की जागीर थी। बेहद संघर्षों में जिंदगी जीने वाली दामोदर राव १८४८ में पैदा हुए थे। उनका निधन २८ मई १९०६ को इंदौर में बताया जाता है।
इंदौर में हुआ था दामोदर राव का विवाह
रानी लक्ष्मीबाई के बेटे के निधन के बाद १९ नवंबर १८५३ को पांच वर्षीय दामोदर राव को गोद लिया गया था। दामोदर के पिता वासुदेव थे। वह बाद में जब इंदौर रहने लगे तो वहां पर ही उनका विवाह हो गया दामोदर राव के बेटे का नाम लक्ष्मण राव था। लक्ष्मण राव के बेटे कृष्ण राव और चंद्रकांत राव हुए। कृष्ण राव के दो पुत्र मनोहर राव, अरूण राव तथा चंद्रकांत के तीन पुत्र अक्षय चंद्रकांत राव, अतुल चंद्रकांत राव और शांति प्रमोद चंद्रकांत राव हुए।
लक्ष्मण राव को बाहर जाने की नहीं थी इजाजत
२३ अक्टूबर वर्ष १८७९ में जन्मे दामोदर राव के पुत्र लक्ष्मण राव का चार मई १९५९ को निधन हो गया। लक्ष्मण राव को इंदौर के बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। इंदौर रेजिडेंसी से २०० रुपए मासिक पेंशन आती थी, लेकिन पिता दामोदर के निधन के बाद यह पेंशन १०० रुपए हो गई। वर्ष १९२३ में ५० रुपए हो गई। १९५१ में यूपी सरकार ने रानी के नाती यानी दामोदर राव के पुत्र को ५० रुपए मासिक सहायता आवेदन करने पर दी थी, जो बाद में ७५ रुपए कर दी गई।
जंगल में भटकते रहे दामोदर राव
इतिहासकार ओम शंकर असर के अनुसार, रानी लक्ष्मीबाई दामोदर राव को पीठ से बाँधकर चार अप्रैल १८५८ को झाँसी से कूच कर गई थीं। १७ जून १८५८ को तक यह बालक सोता-जागता रहा। युद्ध के अंतिम दिनों में तेज होती लड़ाई के बीच महारानी ने अपने विश्वास पात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख को दामोदर राव की जिम्मेदारी सौंप दी। दो वर्षों तक वह दामोदर को अपने साथ लिए रहे। वह दामोदर राव को लेकर ललितपुर जिले के जंगलों में भटके।
पहले किया गिरफ्तार फिर भेजा इंदौर
दामोदर राव के दल के सदस्य भेष बदलकर राशन का सामान लाते थे। दामोदर के दल में कुछ उंट और घोड़े थे। इनमें से कुछ घोड़े देने की शर्त पर उन्हें शरण मिलती थी। शिवपुरी के पास जिला पाटन में एक नदी के पास छिपे दामोदर राव को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर उन्हें मई, १८६० में अंग्रेजों ने इंदौर भेज दिया गया था। बताया जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई के परिजन आज भी इंदौर में गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। परिवार के सदस्य प्रदेश के पुलिस विभाग में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
***
शिशु गीत सलिला
भालू
आया भालू।
खाता आलू।।
बंदर कहता-
उसको कालू।।
*
बंदर
बंदर नाच दिखाता है।
सबके मन को भाता है।।
दौड़ झाड़ पर चढ़ जाता-
हाथ नहीं फिर आता है।।
*
बिल्ली
बिल्ली बोले म्याऊँ-म्याऊँ।
चूहा पाकर झट खा जाऊँ।।
नटखट चूहा हाथ न आया।
बचकर ठेंगा दिखा चिढ़ाया।।
*
माँ
मेरी माँ प्यारी-न्यारी।
मुझ पर जाती है वारी।।
मैं भी खूब दुलार करूँ-
गोदी में छिप प्यार करूँ।।
*
बहिन
बहिन पढ़ेगी रोज किताब।
सदा करेगी सही हिसाब।।
बात भाई तब मानेगा।
रार न नाहक ठानेगा।।
*
भाई
भाई करता है ऊधम।
कहता नहीं किसी से कम।
बातें खूब बनाता है -
करे नाक में सबकी दम।।
१७-६-२०२२
***
गीत
*
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
*
जड़ें सनातन ज्ञान आत्मा है मेरी
तन है तना समान सुदृढ़ आश्रयदाता
शाखाएँ हैं प्रथा पुरातन परंपरा
पत्ता पत्ता जीव, गीत मिल गुंजाता
पंछी कलरव करते, आगत स्वागत हूँ
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
*
औषध बन मैं जाने कितने रोग हरूँ
लकड़ी बल्ली मलगा अनगिन रूप धरूँ
कोटर में, शाखों पर जीवन विकसित हो
आँधी तूफां सहता रहता अविचल हो
पूजन व्रत मैं, सदा सुहागन ज्योतित हूँ
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
*
हूँ अनेक में एक, एक में अनगिनती
सूर्य-चंद्रमा, धूप-चाँदनी सहचर हैं
ग्रह-उपग्रह, तारागण पवन मित्र मेरे
अनिल अनल भू सलिल गगन मम पालक हैं
सेतु ज्ञान विज्ञान मध्य, गत-आगत हूँ
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
*
वेद पुराण उपनिषद आगम निगम लिखे
ऋषियों ने मेरी छाया में हवन करे
अहंकार मनमानी का उत्थान-पतन
देखा, लेखा ऋषि पग में झुकता नृप सिंहासन
विधि-ध्वनि, विष्णु-रमा, शिव-शिवा तपी-तप हूँ
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
*
विश्व नीड़ में आत्म दीप बन जलता हूँ
चित्र गुप्त साकार मूर्त हो मिटता हूँ
जगवाणी हिंदी मेरा जयघोष करे
देवनागरी लिपि जन-मन हथियार सखे!
सूना अवध सिया बिन, मैं भी दंडित हूँ
वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ
१७-६-२०२१
***
शारद वंदना : पद
यौगिक जातीय सार छंद
*
शारद स्वर-ध्वनि कंठ सजावै।
स्वर व्यंजन अक्षर लिपि भाषा, पल-पल माई सिखावै।।
कलकल-कलरव, लोरी भगतें, भजन आरती गावै।
कजरी बंबुलिया चौकडिया, आल्हा-राई सुनावै।।
सोहर बन्ना-बन्नी गारी, अधरों पे धर जावै।
सुख में दुःख में बने सहारा, पल में पीर भुलावै।।
रसानंद दे मैया मोरी, ब्रह्मानंद लुटावै।
भव सागर की भीति भुला खें, नैया पार लगावै।।
१७-६-२०२०
***
शारद वंदन
*
शारद मैया शस्त्र उठाओ,
हंस छोड़ सिंह पर सज आओ...
सीमा पर दुश्मन आया है, ले हथियार रहा ललकार।
वीणा पर हो राग भैरवी, भैरव जाग भरें हुंकार।।
रुद्र बने हर सैनिक अपना, चौंसठ योगिनी खप्पर ले।
पिएँ शत्रु का रक्त तृप्त हो,
गुँजा जयघोषों से जग दें।।
नव दुर्गे! सैनिक बन जाओ
शारद मैया! शस्त्र उठाओ...
एक वार दो को मारे फिर, मरे तीसरा दहशत से।
दुनिया को लड़ मुक्त कराओ, चीनी दनुजों के भय से।।
जाप महामृत्युंजय का कर, हस्त सुमिरनी हाे अविचल।
शंखघोष कर वक्ष चीर दो,
भूलुंठित हों अरि के दल।।
रणचंडी दस दिश थर्राओ,
शारद मैया शस्त्र उठाओ...
कोरोना दाता यह राक्षस,
मानवता का शत्रु बना।
हिमगिरि पर अब शांति-शत्रु संग, शांति-सुतों का समर ठना।।
भरत कनिष्क समुद्रगुप्त दुर्गा राणा लछमीबाई।
चेन्नम्मा ललिता हमीद सेंखों सा शौर्य जगा माई।।
घुस दुश्मन के किले ढहाओ,
शारद मैया! शस्त्र उठाओ...
***
१७-६-२०२०
शिशु गीत सलिला :
*
पापा-
पापा लाड़ लड़ाते खूब,
जाते हम खुशियों में डूब।
उन्हें बना लेता घोड़ा-
हँसती, देख बाग़ की दूब।।
*
पापा चलना सिखलाते,
सारी दुनिया दिखलाते।
रोज बिठाकर कंधे पर-
सैर कराते मुस्काते।।
*
गलती हो जाए तो भी,
मुझे नहीं खोना आपा।
सीख-सुधारो, खुद सुधारो-
सीख सिखाते थे पापा।।
१७-६-२०१८
***
पिता पर दोहे:
*
पिता कभी वट वृक्ष है, कभी छाँव-आकाश.
कंधा, अँगुली हैं पिता, हुए न कभी हताश.
*
पूरा कुनबा पालकर, कभी न की उफ़-हाय.
दो बच्चों को पालकर, हम क्यों हैं निरुपाय?
*
थके, न हारे थे कभी, रहे निभाते फर्ज.
पूत चुका सकते नहीं, कभी पिता का कर्ज.
*
गिरने से रोका नहीं, चुपा; कहा: 'जा घूम'.
कर समर्थ सन्तान को, लिया पिता ने चूम.
*
माँ ममतामय चाँदनी, पिता सूर्य की धूप.
दोनों से मिलकर बना, जीवन का शुभ रूप.
*
पिता न उँगली थामते, होते नहीं सहाय.
तो हम चल पाते नहीं, रह जाते असहाय.
*
माता का सिंदूर थे, बब्बा का अरमान.
रक्षा बंधन बुआ का, पिता हमारी शान.
*
दीवाली पर दिया थे, होली पर थे रंग.
पिता किताबें-फीस थे, रक्षा हित बजरंग.
*
पिता नमन शत-शत करें, संतानें नत माथ.
गये न जाकर भी कहीं, श्वास-श्वास हो साथ.
*
१७.६.२०१८
***
बुन्देली दोहे
महुआ फूरन सों चढ़ो, गौर धना पे रंग।
भाग सराहें पवन के, चूम रहो अॅंग-अंग।।
मादल-थापों सॅंग परंे, जब गैला में पैर।
धड़कन बाॅंकों की बढ़े, राम राखियो खैर।।
हमें सुमिर तुम हो रईं, गोरी लाल गुलाल।
तुमें देख हम हो रए, कैसें कएॅं निहाल।।
मन म्रिदंग सम झूम रौ, सुन पायल झंकार।
रूप छटा नें छेड़ दै, दिल सितार कें तार।।
नेह नरमदा में परे, कंकर घाईं बोल।
चाह पखेरू कूक दौ, बानी-मिसरी घोल।।
सैन धनुस लै बेधते, लच्छ नैन बन बान।
निकरन चाहें पै नईं, निकर पा रए प्रान।।
तड़प रई मन मछरिया, नेह-नरमदा चाह।
तन भरमाना घाट पे, जल जल दे रौ दाह।।
अंग-अंग अलसा रओ, पोर-पोर में पीर।
बैरन ननदी बलम सें, चिपटी छूटत धीर।।
कोयल कूके चैत मा, देख बरे बैसाख।
जेठ जिठानी बिन तपे, सूरज फेंके आग।।
*
***
गीत
*
तुम विरागी,
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
सिर उठाये खड़े हो तुम
हर विपद से लड़े हो तुम
हरितिमा का छत्र धारे
पुहुप शत-शत जड़े हो तुम
तना सीधा तना हर पल
सैनिकों से कड़े हो तुम
फल्लियों के शस्त्र थामे
योद्धवत अड़े हो तुम
एकता की विरासत के
पक्षधर सच बड़े हो तुम
तमस-आगी,
सहे बागी
चमकते दामी कनक से
तुम विरागी,
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
जमीं में हो जड़ जमाये
भय नहीं तुमको सताये
इंद्रधनुषी तितलियों को
संग तुम्हारा रास आये
अमलतासी सुमन सज्जित
छवि मनोहर खूब भाये
बैठ गौरैया तुम्हारी
शाख पर नग्मे सुनाये
दूर रहना मनुज से जो
काटकर तुमको जलाये
उषा जागी
लगन लागी
लोरियाँ गूँजी खनक से
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
[मुक्तिका गीत,मानव छंद]
१७-६-२०१६
***
मुक्तक
*
महाकाल भी काल के, वश में कहें महेश
उदित भोर में, साँझ ढल, सूर्य न दीखता लेश
जो न दिखे अस्तित्व है, उसका उसमें प्राण
दो दिखता निष्प्राण हो कभी, कभी संप्राण
*
नि:सृत सलिल महेश शीश से, पग-प्रक्षालन करे धन्य हो
पिएं हलाहल तनिक न हिचकें, पूजित जग में हे! अनन्य हो
धार कंठ में सर्प अभय हो, करें अहैतुक कृपा रात-दिन
जगजननी को ह्रदय बसाए, जगत्पिता सचमुच प्रणम्य हो
*
१६-६-२०१६
***
एक गीत:
राकेश खंडेलवाल
आदरणीय संजीव सलिल की रचना ( अच्छे दिन आयेंगे सुनकर जी लिये
नोट भी पायेंगे सुनकर जी लिये ) से प्रेरित
*
प्यास सुलगती, घिरा अंधेरा
बस कुछ पल हैं इनका डेरा
सावन यहाँ अभी घिरता है
और दीप जलने वाले हैं
नगर ढिंढोरा पीट, शाम को तानसेन गाने वाले हैं
रे मन धीरज रख ले कुछ पल, अच्छे दिन आने वाले हैं
बँधी महाजन की बहियों में उलझी हुई जन्म कुंडलियाँ
होंगी मुक्त, व्यूह को इनके अभिमन्यु आकर तोड़ेगा
पनघट पर मिट्टी पीतल के कलशों में जो खिंची दरारें
समदर्शी धारा का रेला, आज इन्हें फ़िर से जोड़ेगा
सूनी एकाकी गलियों में
विकच गंधहीना कलियों में
भरने गन्ध, चूमने पग से
होड़ मचेगी अब अलियों में
बीत चुका वनवास, शीघ्र ही राम अवध आने वाले हैं
रे मन धीरज रख ले कुछ पल, अच्छे दिन आने वाले हैं
फिर से होंगी पूज्य नारियाँ,रमें देवता आकर भू पर
लोलुपता के बाँध नहीं फिर तोड़ेगा कोई दुर्योधन
एकलव्य के दायें कर का नहीं अँगूठा पुन: कटेगा
राजा और प्रजा में होगा सबन्धों का मृदु संयोजन
लगा जागने सोया गुरुकुल
दिखते हैं शुभ सारे संकुल
मन के आंगन से बिछुड़ेगा
संतापों का पूरा ही कुल
फूल गुलाबों के जीवन की गलियाँ महकाने वाले हैं
रे मन धीरज रख ले कुछ पल, अच्छे दिन आने वाले हैं
अर्थहीन हो चुके शब्द ये, आश्वासन में ढलते ढलते
बदल गई पीढ़ी इक पूरी, इन सपनों के फ़ीकेपन में
सुखद कोई अनुभूति आज तक द्वारे पर आकर न ठहरी
भटका किया निरंतर जन गण, जयघोषों के सूने पन में
आ कोई परिवर्तन छू रे
बरसों में बदले हैं घूरे
यहाँ फूल की क्यारी में भी
उगते आये सिर्फ़ धतूरे
हमें पता हैं यह सब नारे, मन को बहकाने वाले हैं
राहें बन्द हो चुकी सारी अच्छे दिन आने वाले हैं ?
***
नवगीत
*
चूल्हा, चक्की, आटा, दाल
लाते-दूर करें भूचाल
.
जिसका जितना अधिक रसूख
उसकी उतनी ज्यादा भूख
छाँह नहीं, फल-फूल नहीं
दे जो- जाए भाड़ में रूख
गरजे मेघ, नाचता देख
जग को देता खुशी मयूख
उलझ न झुँझला
न हो निढाल
हल कर जितने उठे सवाल
चूल्हा, चक्की, आटा, दाल
लाते-दूर करें भूचाल
.
पेट मिला है केवल एक
पर न भर सकें यत्न अनेक
लगन, परिश्रम, कोशिश कर
हार न माने कभी विवेक
समय-परीक्षक खरा-कड़ा
टेक न सर, कर पूरी टेक
कूद समुद में
खोज प्रवाल
मानवता को करो निहाल
चूल्हा, चक्की, आटा, दाल
लाते-दूर करें भूचाल
.
मिट-मिटकर जो बनता है
कर्म कहानी जनता है
घूरे को सोना करता
उजड़-उजड़ कर बस्ता है
छलिया औरों को कम पर
खुद को ज्यादा छलता है
चुप रह, करो
न कोई बबाल
हो न तुम्हारा कहीं हवाल
चूल्हा, चक्की, आटा, दाल
लाते-दूर करें भूचाल
*
१३-१-२०१५
४०१ जीत होटल बिलासपुर
***
मुक्तिका:
*
तुम गलत पर हम सही कहते रहे हैं
इसलिए ही दूरियाँ सहते रहे हैं
.
ज़माने ने उजाड़ा हमको हमेशा
मगर फिर-फिर हम यहीं रहते रहे हैं
.
एक भी पूरा हुआ तो कम नहीं है
महल सपनों के अगिन ढहते रहे हैं
.
प्रथाओं को तुम बदलना चाहते हो
पृथाओं से कर्ण हम गहते रहे हैं
.
बिसारी तुमने भले यादें हमारी
सुधि तुम्हारी हम सतत तहते रहे हैं
.
पलाशों की पीर जग ने की अदेखी
व्यथित होकर 'सलिल' चुप दहते रहे हैं
.
हम किनारों पर ठहर कब्जा न चाहें
इसलिए होकर 'सलिल' बहते रहे हैं.
१७-६-२०१५
***
बाल गीत:
पाखी की बिल्ली
*
पाखी ने बिल्ली पाली.
सौंपी घर की रखवाली..
फिर पाखी बाज़ार गयी.
लाये किताबें नयी-नयी
तनिक देर जागी बिल्ली.
हुई तबीयत फिर ढिल्ली..
लगी ऊंघने फिर सोयी.
सुख सपनों में थी खोयी..
मिट्ठू ने अवसर पाया.
गेंद उठाकर ले आया..
गेंद नचाना मन भाया.
निज करतब पर इठलाया..
घर में चूहा आया एक.
नहीं इरादे उसके नेक..
चुरा मिठाई खाऊँगा.
ऊधम खूब मचाऊँगा..
आहट सुन बिल्ली जागी.
चूहे के पीछे भागी..
झट चूहे को जा पकड़ा.
भागा चूहा दे झटका..
बिल्ली खीझी, खिसियाई.
मन ही मन में पछताई..
***

शुक्रवार, 14 जुलाई 2023

समीक्षा, बुन्देली दोहे, भगवत दुबे

पुस्तक चर्चा:
'बुंदेली दोहे' सांस्कृतिक शब्द छवियाँ मन मोहे
चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[कृति विवरण: बुंदेली दोहे, दोहा संग्रह , आचार्य भगवत दुबे, प्रथम संस्करण २०१६, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ १५२, मूल्य ५०/-, ISBN ९७८-९३-८३८९९-१८-०, प्रकाशक आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, म. प्र. संस्कृति परिषद्, श्यामला हिल्स, भोपाल ४६२००२, कृतिकार संपर्क- ९३००६१३९७५]
*
विश्ववाणी हिंदी का कालजयी छंद दोहा अपनी मिसाल आप है। संक्षिप्तता, सारगर्भितता, लाक्षणिकता, मर्मबेधकता, कालजयिता, उपयोगिता तथा लोकप्रियता के सप्त सोपानी निकष पर दोहा जन सामान्य से लेकर विद्वज्जनों तक अपनी प्रासंगिकता निरंतर बनाए रख सका है। बुंदेली के लोककवियों ने दोहे का महत्त्व पहचान कर नीतिपरक दोहे कहे. घाघ-भड्डरी, ईसुरी, जगनिक, केशव, जायसी, घनानंद, राय प्रवीण प्रभृति कवियों ने दोहा के माध्यम से बुंदेली साहित्य को समृद्ध किया। आधुनिक काल के बुंदेली दोहकारों में अग्रगण्य रामनारायण दास बौखल ने नारायण अंजलि भाग १ में ४०८३ तथा भाग २ में ३३८५ दोहों के माध्यम से साहित्य और आध्यात्म का अद्भुत समागम करने में सफलता अर्जित की है।
बौखल जी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बहुमुखी प्रतिभा और बहुविधायी स्तरीय कृतियों के प्रणेता आचार्य भगवत दुबे ने विवेच्य कृति में बुंदेली लोक जीवन और लोक संस्कृति के वैविध्य को उद्घाटित किया है। इसके पूर्व दुबे जी 'शब्दों के संवाद' दोहा संकलन में शुद्ध साहित्यिक हिंदी के अभिव्यंजनात्मक दोहे रचकर समकालिक दोहकारों की अग्रपंक्ति में स्थापित हो चुके हैं। यह दोहा संग्रह दुबे जी को बुंदेली का प्रथम सांस्कृतिक दोहाकार के रूप में प्रस्तुत करता है। 'किरपा करियो शारदे' शीर्षक अध्याय में कवि ने ईशवंदना करने के साथ-साथ लोकपूज्य खेडापति, जागेसुर, दुल्हादेव तथा साहित्यिक पुरखों लोककवियों ईसुरी, गंगाधर, जगनिक, केशव, बिहारी, भूषण, राय प्रवीण, आदि का स्मरण कर अभिनव परंपरा का सूत्रपात किया है।
'बुंदेली नौनी लगे' शीर्षक के अंतर्गत 'बुंदेली बोली सरस', 'बुंदेली में लोच है', 'ई में भरी मिठास', 'अपनेपन कौ भान' आदि अभिव्यक्तियों के माध्यम से दोहाकार ने बुंदेली के भाषिक वैशिष्ट्य को उजागर किया है। पाश्चात्य संस्कृति तथा नगरीकरण के दुष्प्रभावों से नवपीढ़ी की रक्षार्थ पारंपरिक जीवन-मूल्यों, पारिवारिक मान-मर्यादाओं, सामाजिक सहकार भाव का संरक्षण किये जाने की महती आवश्यकता है। दुबे जी ने ने यह कार्य दोहों के माध्यम से संपन्न किया है किन्तु बुंदेली को संयुक्त राष्ट्र संघ तक पहुँचाने की कामना अतिरेकी उत्साह भाव प्रतीत होता है। आंचलिक बोलिओं का महत्त्व प्रतिपादित करते समय यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि वे हिंदी के उन्नयन पथ में बाधक न हों। वर्तमान में भोजपुरी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी आदि के समर्थकों द्वारा अपनी क्षेत्रीय बोलि हिंदी पर वरीयता दिए जाने और उस कारण हिंदी बोलनेवालों की संख्या में कमी आने से विश्व में प्रथम स्थान से च्युत होकर तृतीय होने को देखते हुए ऐसी कामना न की जाए तो हिंदी के लिए बेहतर होगा।
इस कृति में 'जेवर हैं बुन्देल के' शीर्षक अध्याय में कवि ने लापता होते जा रहे पारंपरिक आभूषणों को तलाशकर दोहों में नगों की तरह जड़ दिया है। इनमें से अधिकांश जेवर ग्राम्यांचलों में आज भी प्रचलित हैं किन्तु नगरीकरण के प्रभाव ने उन्हें युवाओं के लिए अलभ्य बना दिया है।
नौ गज की धुतिया गसैं, लगै ओई की काँछ।
खींसा बारो पोलका, धरें नोट दस-पाँच।।
*
सोन पुतरिया बीच में, मुतियन की गुनहार।
पहरै मंगलसूत जो, हर अहिबाती नार।।
*
बीच-बीच में कौडियाँ, उर घुमची के बीज।
पहरैं गुरिया पोत के, औ' गंडा-ताबीज़।।
*
इन दोहों में बुंदेली समाज के विविध आर्थिक स्तरों पर जी रहे लोगों की जीवंत झलक के साथ-साथ जीवन-स्तर का अंतर भी शब्दित हुआ है। 'बनी मजूरी करत हैं' अध्याय में श्रमजीवी वर्ग की पीड़ा, चिंता, संघर्ष, अभाव, अवदान तथा वैशिष्ट्य पंक्ति-पंक्ति में अन्तर्निहित है-
कोदों-कुटकी, बाजरा, समा, मका औ' ज्वार।
गुजर इनई में करत हैं, जुरैं न चाउर-दार।।
*
महुआ वन की लकडियाँ, हर्र बहेरा टोर।
और चिरौंजी चार की, बेचें जोर-तंगोर।।
*
खावैं सूखी रोटियाँ, नून मिर्च सँग प्याज।
हट्टे-कट्टे जे रहें,महनत ई को राज।।
*
चंद्र, मंगल और अब सूर्य तक यान भेजनेवाले देश में श्रमिक वर्ग की विपन्नावस्था चिंतनीय है। बैद हकीमों खें रओ' शीर्षक के अंतर्गत पारंपरिक जड़ी-बूटी चिकित्सा, 'बनन लगत पकवान' में उत्सवधर्मी जीवनपद्धति, 'कई नेंग-दस्तूर', 'जब बरात घर सें कढ़े', 'खेलें बाबा-बाइयें', 'बधू खें चढ़े चढ़ाव', 'पाँव पखारे जांय', 'गारी गावै औरतें', 'सासू जी परछन करैं', 'गोद भराई होत है', 'मोंड़ा हों या मोंड़ियाँ', आदि अध्यायों में बुंदेली जन-जीवन की जीवंत पारिवारिक झलकियाँ मन मोह लेती हैं। दोहाकार ने चतुरतापूर्वक रीति-रिवाजों के साथ-साथ दहेज़ निषेध, कन्या संरक्षण, पक्षी संरक्षण, पौधारोपण, प्रदुषण निवारण जैसे समाज सुधारक विचारों को दोहा में पिरोकर 'सहकार में कुनैन लपेटकर खिलाने और मलेरिया को दूर करने का सार्थक और प्रभावी प्रयोग किया है।
'नौनिहाल कीआँख में', 'काजर आंजे नन्द', 'मामा करैं उपासनी', 'बुआ झालिया लेय', बुआ-सरहजें देत हैं', बाजे बजा बधाव' आदि में रिश्तों की मिठास घुली है। 'तुलसी चौरा स्वच्छ हो', 'सजे सातिया द्वार', 'आँखों से शीतल करैं', 'हरी छिछ्लती दूब', 'गौरैया फुदकत रहे', मिट्ठू सीताराम कह', 'पोसें कुत्ता-बिल्लियाँ', गाय-बैल बांधे जहाँ', 'कहूँ होय अखंड रामान', 'बुंदेली कुस्ती कला', 'गिल्ली नदा डाबरी चर्रा खो-खो खेल' आदि में जन जीवन की मोहक और जीवंत झलकियाँ हैं। 'बोनी करैं किसान', 'भटा टमाटर बरबटी', 'चढ़ा मलीदा खेत में', 'करैं पन्हैया चर्र चू', 'फूलें जेठ-असाढ़ में', 'खेतों में पानी भरे', 'पशुओं खें छापा-तिलक' आदि अध्यायों में खेती-किसानी से सम्बद्ध छवियाँ मूर्तिमंत हुई हैं। आचार्य भगवत दुबे जी बुंदेली जन-जीवन, परम्पराओं, जीवन-मूल्यों ही नहीं क्षेत्रीय वैशिष्ट्य आदि के भी मर्मज्ञ हैं। बंजारी मनिया बरम, दतिया की पीताम्बरा, खजराहो जाहर भयो, मैया को दरबार आदि अध्यायों का धार्मिक-अध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं पर्यटन की दृष्टि से भी महत्त्व है। इस संग्रह के हर दोहे में कथ्य, शिल्प, कहन, सारल्य तथा मौलिकता के पंच तत्व इन्हें पठनीय और संग्रहनीय बनाते हैं। ऐसी महत्वपूर्ण कृति के प्रकाशन हेतु आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास परिषद् अकादमी भी बधाई की पात्र है।
***
-संपर्क- 204 विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com — Sanjiv Verma Salil के साथ.

बुधवार, 31 अगस्त 2022

सॉनेट,वॉटरफॉल इम्प्लोजन,बुन्देली दोहे,एकाक्षरी द्विपदी,माहिया, हाइकु,नवगीत,मुक्तिका

सॉनेट
*
थोथा चना बाजे घना
जोर-जोर से रेंके गधा
भले रहे खूंटे से बँधा
जो न जानता रहता तना।

पहले पढ़ो-लिखो-सोचो
बिना जरूरत मत बोलो
यदि बोलो पहले तोलो
कहा न कुछ बेमतलब हो

लाखों की है बंद जुबान
पहचानो बातों का मोल
ज़हर-अमिय सकती है घोल
करो नहीं नाहक अभिमान

बिना बात कर वाद-विवाद
खुद को करों नहीं बर्बाद
२९-८-२०२२
***
विमर्श : ट्विन टॉवर ध्वंस

वॉटरफॉल = झरना जिसमें पानी बिना रुके सीधे नीचे गिरता है।
इम्पलोड = फटना, इम्प्लोजन = विस्फोट।
वॉटरफॉल इम्प्लोजन = गगनचुंबी इमारत में इस तरह विस्फोट करना की मलबा बिना बिखरे झरने की धार की तरह सीधे नीचे गिरे।
वाटरफॉल इंप्लोजन तकनीक का मतलब है कि मलबा सचमुच पानी की तरह गिरेगा. इम्प्लोजन ऐसे शहरी विस्फोट के लिए उपयोग की जाने वाली विधि है जिसे नियंत्रित विस्फोटों की आवश्यकता होती है.
नोएडा (Noida) में सुपरटेक ट्विन टावरों (Supertec twin tower) के विस्फोट की उलटी गिनती शुरू होने के साथ ही अंतिम जांच चल रही है. टावरों को सुरक्षित रूप से जमीन पर गिराने की जरूरत है. इसका मतलब है कि आसपास की इमारतों को कम से कम नुकसान सुनिश्चित करना है जिसमें 5,000 लोग रहते हैं, जो मुश्किल से 9 मीटर दूर हैं. इस अत्यंत सटीक कार्य के लिए विस्फोट विशेषज्ञों का जवाब एक तकनीक है जिसे 'वाटरफॉल इम्प्लोजन' (waterfall implosion) के रूप में जाना जाता है. वाटरफॉल तकनीक का मतलब है कि मलबा सचमुच पानी की तरह गिरेगा. इम्प्लोजन ऐसे शहरी विस्फोट के लिए उपयोग की जाने वाली विधि है जिसे नियंत्रित विस्फोटों की आवश्यकता होती है. इसके विपरीत, एक विस्फोट के परिणामस्वरूप मलबा दूर-दूर दिशाओं में बह जाएगा. एक और कहावत यह है कि 'ताश का घर' कैसे गिरता है. नियंत्रित विस्फोट कुछ ही सेकंड में 55,000 टन बड़े पैमाने पर मलबे को नीचे लाएगा. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि टावर को ढहाते समय कोई अन्य क्षति तो नहीं हो रही है.

नोएडा ट्विन टावर गिराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा सटीक दृष्टिकोण

इस तकनीक को भारत में उस समय प्रयोग किया गया था जब उसी कंपनी ने 2020 में कोच्चि में 4 ऊंची इमारतों को ध्वस्त कर दिया था. वही प्रयोग 15 सेकंड से भी कम समय में ट्विन टावरों को ढहा देगी. पूरी टीम 150 प्रतिशत आश्वस्त है कि ढांचा उस दिशा में और सटीक तरीके से नीचे गिरेंगी, जिस तरह से उन्होंने बड़े पैमाने पर विध्वंस की परिकल्पना की है. विस्फोट में एक ढांचा अपने आप में गिर जाती है. तकनीक गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों का उपयोग करती है. यह ढांचों के आधार को इस तरह से हटा देगा कि गुरुत्वाकर्षण का केंद्र मिलीमीटर से शिफ्ट हो जाए, जिससे ढांचा नीचे आ जाए.

दोनों टावरों को ढहाने के लिए 3700 किलो विस्फोटक

विध्वंस टीम के एक इंजीनियर के हवाले से कहा गया, "गुरुत्वाकर्षण कभी नहीं सोता है. यह पूरे दिन और पूरी रात काम करता है. यह विस्फोट का पूरा विचार है. उन्होंने कहा, "विध्वंस की इस पद्धति के लिए कोई संदर्भ पुस्तक नहीं है. इसे करने का कोई विशेष तरीका नहीं है या इसे कैसे करना है, इस पर दुनिया में कहीं भी कोई शब्द नहीं लिखा गया है. यह केवल व्यक्तियों के कौशल और इसे करने के उनके अनुभवों पर निर्भर करता है. सटीक कार्य के हिस्से के रूप में 2.634 मिलीमीटर मापने वाले 9,640 छेद जो कि अंतिम दशमलव अंक के लिए सटीक हैं, को 3,700 किलोग्राम विस्फोटक के लिए टावरों में ड्रिल किया गया है जो इसे विस्फोट कर देगा. कई स्थानों पर उच्च और निम्न गति वाले कैमरों जैसे उपकरण टीम द्वारा घटना के बाद के विश्लेषण के लिए विध्वंस को कैप्चर करेंगे. पैसे से ज्यादा टीम हाथ में बड़े पैमाने पर उपलब्धि के साथ अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाती है.

क्या विध्वंस से आस-पास की इमारतों को कोई नुकसान होगा?

विस्फोटक टीम ने आश्वासन दिया कि कोई संरचनात्मक क्षति नहीं होगी. अधिक से अधिक पेंट और प्लास्टर या टूटी खिड़कियों में कुछ कॉस्मेटिक दरारें होंगी जहां वे पहले से ही कमजोर हो गई हैं या ढीली हो गई हैं. मलबे को हटाने के लिए ठेकेदारों की पहले से ही व्यवस्था कर ली गई है. रविवार को 2:30 बजे पुलिस की मंजूरी के बाद विस्फोट किया जाएगा. सफाई कर्मचारियों की सहायता के लिए यांत्रिक स्वीपिंग मशीन, एंटी-स्मॉग गन और पानी के छिड़काव के साथ धूल साफ करने की व्यवस्था की गई है.
३१-८-२०२२ 
***
बुन्देली दोहे
महुआ फूरन सों चढ़ो, गौर धना पे रंग।
भाग सराहें पवन के, चूम रहो अॅंग-अंग।।
मादल-थापों सॅंग परंे, जब गैला में पैर।
धड़कन बाॅंकों की बढ़े, राम राखियो खैर।।
हमें सुमिर तुम हो रईं, गोरी लाल गुलाल।
तुमें देख हम हो रए, कैसें कएॅं निहाल।।
मन म्रिदंग सम झूम रौ, सुन पायल झंकार।
रूप छटा नें छेड़ दै, दिल सितार कें तार।।
नेह नरमदा में परे, कंकर घाईं बोल।
चाह पखेरू कूक दौ, बानी-मिसरी घोल।।
सैन धनुस लै बेधते, लच्छ नैन बन बान।
निकरन चाहें पै नईं, निकर पा रए प्रान।।
तड़प रई मन मछरिया, नेह-नरमदा चाह।
तन भरमाना घाट पे, जल जल दे रौ दाह।।
अंग-अंग अलसा रओ, पोर-पोर में पीर।
बैरन ननदी बलम सें, चिपटी छूटत धीर।।
कोयल कूके चैत मा, देख बरे बैसाख।
जेठ जिठानी बिन तपे, सूरज फेंके आग।।
३१-८-२०१९
***
एकाक्षरी द्विपदी
*
भूल भुलाई, भूल न भूली, भूलभुलैयां भूली भूल.
भुला न भूले भूली भूलें, भूल न भूली भाती भूल.
*
***
एकाक्षरी दोहा
*
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु|
नुन्नोअ्नुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत||
अर्थ बताएँ.
महर्षि भारवि, किरातार्जुनीयम में.
***
माहिया
फागों की तानों से
मन से मन मिलते
मधुरिम मुस्कानों से
*
ककुप
मिल पौधे लगाइए
वसुंधरा हरी-भरी बनाइये
विनाश को भगाइए
*
हाइकु
गाओ कबीर
बुरा न माने कोई
लगा अबीर
३१-८-२०१७
***
द्विपदियों में कल्पना
*
कल्पना की विरासत जिसको मिली
उस सरीखा धनी दूजा है नहीं
*
कल्पना की अल्पना गृह-द्वार पर
डाल देखो सुखों का हो सम्मिलन
*
कल्पना की तूलिका, रंग शब्द के
भाव चित्रों में झलकती ज़िन्दगी
*
कल्पना उड़ चली फैला पंख जब
सच कहूँ?, आकाश छोटा पड़ गया
*
कल्पना कंकर को शंकर कर सके
चाह ले तो कर सके विपरीत भी
*
कल्पना से प्यार करना है अगर
आप अवसर को कभी मत चूकिए
*
कल्पना की कल्पना कैसे करे?
प्रश्न का उत्तर न खोजे भी मिला
*
कल्पना सरिता बदलती रूप नित
कभी मन्थर, चपल जल प्लावित कभी
*
कल्पना साकार होकर भी विनत
'सलिल' भट नागर यही है, मान लो
*
कल्पना की शरण जा कवि धन्य है
गीत दोहे ग़ज़ल रचकर गा सका
*
कल्पना मेरी हक़ीक़त हो गयी
नर्मदा अवगाह कर सुख पा लिया
*
कल्पना को बाँह में भर, चूमकर
कोशिशों ने मंज़िलें पायीं विहँस
*
कल्पना नाचीज़ है यह सत्य है
चीज़ तो बेजान होती है 'सलिल'
*
३१-८-२०१६
वीणा की झंकार में, सच है अन्तर्व्याप्त
बहारों के संसार में, व्यर्थ वचन हैं आप्त

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मुक्तिका:
*
ये शायरी जबां है किसी बेजुबान की.
ज्यों महकती क्यारी हो किसी बागबान की..

आकाश की औकात क्या जो नाप ले कभी.
पाई खुशी परिंदे ने पहली उड़ान की..

हमको न देखा देखकर तुमने तो क्या हुआ?
दिल ले गया निशानी प्यार के निशान की..

जौहर किया या भेज दी राखी अतीत ने.
हर बार रही बात सिर्फ आन-बान की.

उससे छिपा न कुछ भी रहा कह रहे सभी.
किसने कभी करतूत कहो खुद बयान की..

रहमो-करम का आपके सौ बार शुक्रिया.
पीछे पड़े हैं आप, करूँ फ़िक्र जान की..

हम जानते हैं और कोई कुछ न जानता.
यह बात है केवल 'सलिल' वहमो-गुमान की..
३१-८-२०११
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गीत :
स्वागत है...
*
पीर-दर्द-दुःख-कष्ट हमारे द्वार पधारो स्वागत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
दिव्य विरासत भूल गए हम, दीनबंधु बन जाने की.
रूखी-सूखी जो मिल जाए, साथ बाँटकर खाने की..
मुट्ठी भर तंदुल खाकर, त्रैलोक्य दान कर देते थे.
भार भाई, माँ-बाप हुए, क्यों सोचें गले लगाने की?..
संबंधों के अनुबंधों-प्रतिबंधों तुम पर लानत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
सात जन्म तक साथ निभाते, सप्त-पदी सोपान अमर.
ले तलाक क्यों हार रहे हैं, श्वास-आस निज स्नेह-समर?
मुँह बोले रिश्तों की महिमा 'सलिल' हो रही अनजानी-
मनमानी कलियों सँग करते, माली-काँटे, फूल-भ्रमर.
सत्य-शांति, सौन्दर्य-शील की, आयी सचमुच शामत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
वसुधा सकल कुटुंब हमारा, विश्व नीड़वत माना था.
सबके सुख, कल्याण, सुरक्षा में निज सुख अनुमाना था..
सत-शिव-सुन्दर रूप स्वयं का, आज हो रहा अनजाना-
आत्म-दीप बिन त्याग-तेल, तम निश्चय हम पर छाना था.
चेत न पाया व्हेतन मन, दर पर विनाश ही आगत है.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
*
पंचतत्व के देवों को हम दानव बनकर मार रहे.
प्रकृति मातु को भोग्या कहकर, अपनी लाज उघार रहे.
धैर्य टूटता काल-चक्र का, असगुन और अमंगल नित-
पर्यावरण प्रदूषण की हर चेतावनी बिसार रहे.
दोष किसी को दें, विनाश में अपने स्वयं 'सलिल' रत हैं.
हम बिगड़े हैं जनम-जनम के, हमें सुधारो स्वागत है......
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गीत
आपकी सद्भावना में
*
आपकी सद्भावना में कमल की परिमल मिली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*
उषा की ले लालिमा रवि-किरण आई है अनूप.
चीर मेघों को गगन पर है प्रतिष्टित दैव भूप..
दुपहरी के प्रयासों का करे वन्दन स्वेद-बूँद-
साँझ की झिलमिल लरजती, रूप धरता जब अरूप..
ज्योत्सना की रश्मियों पर मुग्ध रजनी मनचली.
हृदय-कलिका नवल आशा पा पुलककर फिर खिली.....
*
है अमित विस्तार श्री का, अजित है शुभकामना.
अपरिमित है स्नेह की पुष्पा-परिष्कृत भावना..
परे तन के अरे! मन ने विजन में रचना रची-
है विदेहित देह विस्मित अक्षरी कर साधना.
अर्चना भी, वंदना भी, प्रार्थना सोनल फली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*
मौन मन्वन्तर हुआ है, मुखरता तुहिना हुई.
निखरता है शौर्य-अर्णव, प्रखरता पद्मा कुई..
बिखरता है 'सलिल' पग धो मलिनता को विमल कर-
शिखरता का बन गयी आधार सुषमा अनछुई..
भारती की आरती करनी हुई सार्थक भली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
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गीत
पुकार
*
जा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही माँ, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
जहाँ रहा तू वहाँ सफल था, सुन मैं गर्वित होती थी.
सबसे मिलकर मुस्काती थी, हो एकाकी रोती थी..
आज नहीं तो कल आएगा कैयां तुझे सुलाऊँगी-
मौन-शांत थी मन की दुनिया में सपने बोती थी.
कान्हा सम तू गया किन्तु मेरी यादों में यहाँ रहा.
आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही माँ, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
*
दुनिया कहती बड़ा हुआ तू, नन्हा ही लगता मुझको .
नटखट बाल किशन में मैंने पाया है हरदम तुझको..
दुनिया कहती अचल मुझे तू चंचल-चपल सुहाता है-
आँचल-लुकते, दूर भागते, आते दिखता तू मुझको.
आ भी जा ओ! छैल-छबीले, ना होकर भी यहाँ रहा.
आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही माँ, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
*
भारत मैया-हिन्दी मैया, दोनों रस्ता हेर रहीं.
अब पुकार सुन पाया है तू, कब से तुझको टेर रहीं.
कभी नहीं से देर भली है, बना रहे आना-जाना
सारी धरती तेरी माँ है, ममता-माया घेर रहीं?
मेरे दिल में सदा रहा तू, निकट दूर तू जहाँ रहा.
आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही मैं, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
***
नवगीत
आराम चाहिए.....
*
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
प्रजातंत्र के बादशाह हम,
शाहों में भी शहंशाह हम.
दुष्कर्मों से काले चेहरे
करते खुद पर वाह-वाह हम.
सेवा तज मेवा के पीछे-
दौड़ें, ऊँचा दाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
पुरखे श्रमिक-किसान रहे हैं,
मेहनतकश इन्सान रहे हैं.
हम तिकड़मी,घोर छल-छंदी-
धन-दौलत अरमान रहे हैं.
देश भाड़ में जाये हमें क्या?
सुविधाओं संग काम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
स्वार्थ साधते सदा प्रशासक.
शांति-व्यवस्था के खुद नाशक.
अधिनायक हैं लोकतंत्र के-
हम-वे दुश्मन से भी घातक.
अवसरवादी हैं हम पक्के
लेन-देन बेनाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
सौदे करते बेच देश-हित,
घपले-घोटाले करते नित.
जो चाहो वह काम कराओ-
पट भी अपनी, अपनी ही चित.
गिरगिट जैसे रंग बदलते-
हमको ऐश तमाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
वादे करते, तुरत भुलाते.
हर अवसर को लपक भुनाते.
हो चुनाव तो जनता ईश्वर-
जीत उन्हें ठेंगा दिखलाते.
जन्म-सिद्ध अधिकार लूटना
'सलिल' स्वर्ग सुख-धाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
***
गीत:
है हवन-प्राण का.........
*
है हवन-प्राण का, तज दूरियाँ, वह एक है .
सनातन सम्बन्ध जन्मों का, सुपावन नेक है.....
*
दीप-बाती के मिलन से, जगत में मनती दिवाली.
अंशु-किरणें आ मिटातीं, अमावस की निशा काली..
पूर्णिमा सोनल परी सी, इन्द्रधनुषी रंग बिखेरे.
आस का उद्यान पुष्पा, ॐ अभिमंत्रित सवेरे..
कामना रथ, भावना है अश्व, रास विवेक है.
है हवन-प्राण का..........
*
सुमन की मनहर सुरभि दे, जिन्दगी हो अर्थ प्यारे.
लक्ष्मण-रेखा गृहस्थी, परिश्रम सौरभ सँवारे..
शांति की सुषमा सुपावन, स्वर्ग ले आती धरा पर.
आशुतोष निहारिका से, नित प्रगट करता दिवाकर..
स्नेह तुहिना सा विमल, आशा अमर प्रत्येक है..
है हवन-प्राण का..........
*
नित्य मन्वंतर लिखेगा, समर्पण-अर्पण की भाषा.
साधन-आराधना से, पूर्ण होती सलिल-आशा..
गमकती पूनम शरद की, चकित नेह मयंक है.
प्रयासों की नर्मदा में, लहर-लहर प्रियंक है..
चपल पथ-पाथेय, अंश्चेतना ही टेक है.
है हवन-प्राण का..........
*
बाँसुरी की रागिनी, अभिषेक सरगम का करेगी.
स्वरों की गंगा सुपावन, भाव का वैभव भरेगी..
प्रकृति में अनुकृति है, नियंता की निधि सुपावन.
विधि प्रणय की अशोका है, ऋतु वसंती-शरद-सावन..
प्रतीक्षा प्रिय से मिलन की, पल कठिन प्रत्येक है.
है हवन-प्राण का..........
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श्वास-सर में प्यास लहरें, तृप्ति है राजीव शतदल.
कृष्णमोहन-राधिका शुभ साधिका निशिता अचंचल..
आन है हनुमान की, प्रतिमान निष्ठा के रचेंगे.
वेदना के, प्रार्थना के, अर्चन के स्वर सजेंगे..
गँवाने-पाने में गुंजित भाव का उन्मेष है.
है हवन-प्राण का..........
३१-८-२०१०
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