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रविवार, 25 जुलाई 2010

चित्रगुप्त महिमा - आचार्य संजीव 'सलिल'

चित्रगुप्त महिमा - आचार्य संजीव 'सलिल'



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चित्र-चित्र में गुप्त जो, उसको विनत प्रणाम।
वह कण-कण में रम रहा, तृण-तृण उसका धाम ।


विधि-हरि-हर उसने रचे, देकर शक्ति अनंत।
वह अनादि-ओंकार है, ध्याते उसको संत।


कल-कल,छन-छन में वही, बसता अनहद नाद।
कोई न उसके पूर्व है, कोई न उसके बाद।


वही रमा गुंजार में, वही थाप, वह नाद।
निराकार साकार वह, नेह नर्मदा नाद।


'सलिल' साधना का वही, सिर्फ़ सहारा एक।
उस पर ही करता कृपा, काम करे जो नेक।


जो काया को मानते, परमब्रम्ह का अंश।
'सलिल' वही कायस्थ हैं, ब्रम्ह-अंश-अवतंश।


निराकार परब्रम्ह का, कोई नहीं है चित्र।
चित्र गुप्त पर मूर्ति हम, गढ़ते रीति विचित्र।


निराकार ने ही सृजे, हैं सारे आकार।
सभी मूर्तियाँ उसी की, भेद करे संसार।


'कायथ' सच को जानता, सब को पूजे नित्य।
भली-भाँति उसको विदित, है असत्य भी सत्य।


अक्षर को नित पूजता, रखे कलम भी साथ।
लड़ता है अज्ञान से, झुका ज्ञान को माथ।


जाति वर्ण भाषा जगह, धंधा लिंग विचार।
भेद-भाव तज सभी हैं, कायथ को स्वीकार।


भोजन में जल के सदृश, 'कायथ' रहता लुप्त।
सुप्त न होता किन्तु वह, चित्र रखे निज गुप्त।


चित्र गुप्त रखना 'सलिल', मन्त्र न जाना भूल।
नित अक्षर-आराधना, है कायथ का मूल।


मोह-द्वेष से दूर रह, काम करे निष्काम।
चित्र गुप्त को समर्पित, काम स्वयं बेनाम।


सकल सृष्टि कायस्थ है, सत्य न जाना भूल।
परमब्रम्ह ही हैं 'सलिल', सकल सृष्टि के मूल।


अंतर में अंतर न हो, सबसे हो एकात्म।
जो जीवन को जी सके, वह 'कायथ' विश्वात्म।
************************************

सोमवार, 19 जुलाई 2010

भजन : एकदन्त गजवदन विनायक ..... संजीव 'सलिल'

भजन :


एकदन्त गजवदन विनायक .....

संजीव 'सलिल'
 *











*
एकदन्त गजवदन विनायक, वन्दन बारम्बार.
तिमिर हरो प्रभु!, दो उजास शुभ, विनय करो स्वीकार..
*
प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!
रिद्धि-सिद्धि का पूजनकर, जीवन सफल बनाओ रे!...
*
प्रभु गणपति हैं विघ्न-विनाशक,
बुद्धिप्रदाता शुभ फल दायक.
कंकर को शंकर कर देते-
वर देते जो जिसके लायक.
भक्ति-शक्ति वर, मुक्ति-युक्ति-पथ-पर पग धर तर जाओ रे!...
प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!...
*
अशुभ-अमंगल तिमिर प्रहारक,
अजर, अमर, अक्षर-उद्धारक.
अचल, अटल, यश अमल-विमल दो-
हे कण-कण के सर्जक-तारक.
भक्ति-भाव से प्रभु-दर्शन कर, जीवन सफल बनाओ रे!
प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!...
*
संयम-शांति-धैर्य के सागर,
गणनायक शुभ-सद्गुण आगर.
दिव्या-दृष्टि, मुद मग्न, गजवदन-
पूज रहे सुर, नर, मुनि, नागर.
सलिल-साधना सफल-सुफल दे, प्रभु से यही मनाओ रे.
प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!...
******************

शुक्रवार, 18 जून 2010

मुक्तिका मिट्टी मेरी... संजीव 'सलिल'

 मुक्तिका
मिट्टी मेरी...
संजीव 'सलिल'
*

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*
मोम बनकर थी पिघलती रही मिट्टी मेरी.
मौन रहकर भी सुलगती रही मिट्टी मेरी..


बाग़ के फूल से पूछो तो कहेगा वह भी -
कूकती, नाच-चहकती रही मिट्टी मेरी..

पैर से रौंदी गयी, सानी गयी, कूटी गयी-
चाक-चढ़कर भी, निखरती रही मिट्टी मेरी..

ढाई आखर न पढ़े, पोथियाँ रट लीं, लिख दीं.
रही अनपढ़ ही, सिसकती रही मिट्टी मेरी..

कभी चंदा, कभी तारों से लड़ायी आखें.
कभी सूरज सी दमकती रही मिट्टी मेरी..

खता लम्हों की, सजा पाती रही सदियों से.
पाक-नापाक चटकती रही मिट्टी मेरी..

खेत-खलिहान में, पनघट में, रसोई में भी.
मैंने देखा है, खनकती रही मिट्टी मेरी..

गोद में खेल, खिलाया है सबको गोदी में.
फिर भी बाज़ार में बिकती रही मिट्टी मेरी..

राह चुप देखती है और समय आने पर-
सूरमाओं को पटकती
रही मिट्टी मेरी..

कभी थमती नहीं, रुकती नहीं, न झुकती है.
नर्मदा नेह की, बहती रही
मिट्टी मेरी..

******************

Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com

गुरुवार, 17 जून 2010

गीत : प्रतिगीत --- अम्बरीश श्रीवास्तव, सलिल















अब तक बजती बांसुरी, गीतों में है नाम.
आये पूनम रात संग, उसकी याद तमाम..

सरगमी प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ
तुम को दिल में आहिस्ता से सजा लूँ तो चलूँ ……

भीनी यादों को यूँ संजोया है
बीज जन्नत का मैंने बोया है
मन मेरा बस रहा इन गीतों में
ख़ुद को आईना, मैं दिखा लूँ तो चलूँ
सरगमी प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ ……

दिल की आवाज़ यूं सहेजी है
मस्त मौसम में अश्रु छलके हैं
गम की बूँदों को रखा सीपी में
शब्द मुक्तक मैं उठा लूँ तो चलूँ

सरगमी प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ
तुम को दिल में आहिस्ता से सजा लूँ तो चलूँ ……

*

प्रतिगीत:

जिसकी यादों में 'सलिल', खोया सुबहो-शाम.
कण-कण में वह दीखता, मुझको आठों याम..

दूरियाँ उससे जो मेरी हैं, मिटा लूँ तो चलूँ
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……

मैं तो साया हूँ, मेरा ज़िक्र भी कोई क्यों करे.
जब भी ले नाम मेरा, उसका ही जग नाम वरे..
बाग़ में फूल नया कोई खिला लूँ तो चलूँ
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……

ईश अम्बर का वो, वसुधा का सलिल हूँ मैं तो
वास्तव में वही श्री है, कुछ नहीं हूँ मैं तो..
बनूँ गुमनाम, मिला नाम भुला लूँ तो चलूँ.
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……

वही वो शेष रहे, नाम न मेरा हो कहीं.
यही अंतिम हो 'सलिल', अब तो न फेरा हो कहीं..
नेह का गह तजे देह, विदा दो तो चलूँ.
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……

****************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम/ सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

सोमवार, 14 जून 2010

चंद मुक्तक -संजीव 'सलिल'

चंद मुक्तक
संजीव 'सलिल'
*















*
कलम तलवार से ज्यादा, कहा सच वार करती है.
जुबां नारी की लेकिन सबसे ज्यादा धार धरती है.
महाभारत कराया द्रौपदी के व्यंग बाणों ने-
नयन के तीर छेदें तो न दिल की हार खलती है..
*
कलम नीलाम होती रोज ही अखबार में देखो.
खबर बेची-खरीदी जा रही बाज़ार में लेखो.
न माखनलाल जी ही हैं, नहीं विद्यार्थी जी हैं-
रखे अख़बार सब गिरवी स्वयं सरकार ने देखो.
*
बहाते हैं वो आँसू छद्म, छलते जो रहे अब तक.
हजारों मर गए पर शर्म इनको आयी ना अब तक.
करो जूतों से पूजा देश के नेताओं की मिलकर-
करें गद्दारियाँ जो 'सलिल' पायें एक भी ना मत..
*
वसन हैं श्वेत-भगवा किन्तु मन काले लिये नेता.
सभी को सत्य मालुम, पर अधर अब तक सिये नेता.
सभी दोषी हैं इनको दंड दो, मत माफ़ तुम करना-
'सलिल' पी स्वार्थ की मदिरा सतत, अब तक जिए नेता..
*
जो सत्ता पा गए हैं बस चला तो देश बेचेंगे.
ये अपनी माँ के फाड़ें वस्त्र, तन का चीर खीचेंगे.
यही तो हैं असुर जो देश से गद्दारियाँ करते-
कहो कब हम जागेंगे और इनको दूर फेंकेंगे?
*
तराजू न्याय की थामे हुए हो जब कोई अंधा.
तो काले कोट क्यों करने से चूकें  सत्य का धंधा.
खरीदी और बेची जा रही है न्याय की मूरत-
'सलिल' कोई न सूरत है न हो वातावरण गन्दा.
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

रविवार, 13 जून 2010

सामयिक त्रिपदियाँ : --- संजीव 'सलिल'

सामयिक त्रिपदियाँ :
संजीव 'सलिल'
*

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*
खोज कहाँ उनकी कमर,
कमरा ही आता नज़र,
लेकिन हैं वे बिफिकर..
*
विस्मय होता देखकर.
अमृत घट समझा जिसे
विषमय है वह सियासत..
*
दुर्घटना में कै मरे?
गैस रिसी भोपाल में-
बतलाते हैं कैमरे..
*
एंडरसन को छोड़कर
की गद्दारी देश से
नेताओं ने स्वार्थ वश..
*
भाग गया भोपाल से
दूर कैरवां जा छिपा
अर्जुन दोषी देश का..
*
ब्यूटी पार्लर में गयी
वृद्धा बाहर निकलकर
युवा रूपसी लग रही..
*
नश्वर है यह देह रे!
बता रहे जो भक्त को
रीझे भक्तिन-देह पे..
*
संत न करते परिश्रम
भोग लगाते रात-दिन
सर्वाधिक वे ही अधम..
*
गिद्ध भोज बारात में
टूटो भूखें की तरह
अब न मान-मनुहार है..
*
पितृ-देहरी छीन गयी
विदा होटलों से हुईं
हाय! हमारी बेटियाँ..
*
करते कन्या-दान जो
पाते हैं वर-दान वे
दे दहेज़ वर-पिता को..
*
Acharya Sanjiv Salil

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शनिवार, 5 जून 2010

मुक्तिका: अक्षर उपासक हैं.............. --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
अक्षर उपासक हैं....
संजीव 'सलिल'
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
*
अक्षर उपासक हैं हम गर्व हमको, शब्दों के सँग- सँग सँवर जायेंगे हम.
गीतों में, मुक्तक में, ग़ज़लों में, लेखों में, मरकर भी जिंदा रहे आयेंगे हम..
*
बुजुर्गों से पाया खज़ाना अदब का, न इसको घटायें, बढ़ा जायेंगे हम.
चादर अगर ज्यों की त्यों रह सकी तो, आखर भी ढाई सुमिर गायेंगे हम..
*
लिखना तो हक है, लिखेंगे हमेशा, न आलोचनाओं से डर जायेंगे हम.
कमियाँ रहेंगी ये हम जानते हैं, दाना बतायें सुधर पायेंगे हम..
*
गम हो, खुशी हो, मुहब्बत-शहादत, न हो इसमें नफ़रत, न गुस्सा-अदावत.
महाकाल के हम उपासक हैं सच्चे, समय की चुनौती को शरमायेंगे हम..
*
'खलिश' हो तो रचना में आती है खूबी, नादां 'सलिल' में खूबी ही डूबी.
फिर भी है वादा, न हम मौन होंगे, कल-कल में धुन औ' बहर गायेंगे हम..
****
Acharya Sanjiv Salil

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शुक्रवार, 14 मई 2010

अंतिम गीत: लिए हाथ में हाथ चलेंगे.... ---संजीव 'सलिल'

अंतिम गीत

संजीव 'सलिल'

*
ओ मेरी सर्वान्गिनी! मुझको याद वचन वह 'साथ रहेंगे'.
तुम जातीं क्यों आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
दो अपूर्ण मिल पूर्ण हुए हम सुमन-सुरभि, दीपक-बाती बन.
अपने अंतर्मन को खोकर क्यों रह जाऊँ मैं केवल तन?
शिवा रहित शिव, शव बन जीना, मुझको अंगीकार नहीं है--
प्राणवर्तिका रहित दीप बन जीवन यह स्वीकार नहीं है.
तुमको खो सुधियों की समिधा संग मेरे मेरे भी प्राण जलेंगे.
तुम क्यों जाओ आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
नियति नटी की कठपुतली हम, उसने हमको सदा नचाया.
सच कहता हूँ साथ तुम्हारा पाने मैंने शीश झुकाया.
तुम्हीं नहीं होगी तो बोलो जीवन क्यों मैं स्वीकारूँगा?-
मौन रहो कुछ मत बोलो मैं पल में खुद को भी वारूँगा.
महाकाल के दो नयनों में तुम-मैं बनकर अश्रु पलेंगे.
तुम क्यों जाओ आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
हमने जीवन की बगिया में मिलकर मुकुलित कुसुम खिलाये.
खाया, फेंका, कुछ उधार दे, कुछ कर्जे भी विहँस चुकाये.
अब न पावना-देना बाकी, मात्र ध्येय है साथ तुम्हारा-
सिया रहित श्री राम न, श्री बिन श्रीपति को मैंने स्वीकारा.
साथ चलें हम, आगे-पीछे होकर हाथ न 'सलिल' मलेंगे.
तुम क्यों जाओ आज अकेली?, लिए हाथ में हाथ चलेंगे....
*
Acharya Sanjiv Salil

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मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

नवगीत: परिवर्तन तज, चेंज चाहते ... --संजीव 'सलिल'

*
परिवर्तन तज, चेंज चाहते 
युवा नहीं हैं यंग अनेक.....
*
मठा-महेरी बिसर गए हैं,
गुझिया-घेवर से हो दूर..
नूडल-डूडल के दीवाने-
पाले कब्ज़ हुए बेनूर..
लस्सी अमरस शरबत पन्हा,
जलजीरा की चाह नहीं.
ड्रिंक सोफ्ट या कोल्ड हाथ में,
घातक है परवाह नहीं.
रोती छोडो, ब्रैड बुलाओ,
बनो आधुनिक खाओ केक.
परिवर्तन तज, चेंज चाहते
युवा नहीं हैं यंग अनेक.....
*
नृत्य-गीत हैं बीती बातें,
डांसिंग-सिंगिंग की है चाह.
तज अमराई पार्क जा रहे,
रोड बनायें, छोड़ें राह..
ताज़ा जल तज मिनरल वाटर
पियें पहन बरमूडा रोज.
कच्छा-चड्डी क्यों पिछड़ापन
कौन करेगा इस पर खोज?
धोती-कुरता नहीं चाहिये
पैंटी बिकनी है फैशन,
नोलेज के पीछे दीवाने,
नहीं चाहिए बुद्धि-विवेक.
परिवर्तन तज, चेंज चाहते
युवा नहीं हैं यंग अनेक.....
*
दिया फेंक कैंडल ले आये,
पंखा नहीं फैन के फैन.
रंग लगें बदरंग कलर ने
दिया टेंशन, छीना चैन.
खतो-किताबत है ज़हालियत
प्रोग्रेस्सिव चलभाष हुए,
पोड कास्टिंग चैट ब्लॉग के
ह्यूमन खुद ही दास हुए.
पोखर डबरा ताल तलैयाँ
पूर, बनायें नकली लेक.
परिवर्तन तज, चेंज चाहते
युवा नहीं हैं यंग अनेक.....
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

भोजपुरी दोहे: संजीव 'सलिल'

भोजपुरी दोहे:

संजीव 'सलिल'

रूप धधा के मोर जस, नचली सहरी नार.
गोड़ देख ली छा गइल, घिरना- भागा यार..

*
बाग़-बगीचा जाई के, खाइल पाकल आम.
साझे के सेनुरिहवा, मीठ लगल बिन दाम..
*
अजबे चम्मक आँखि में, जे पानी हिलकोर.
कनवा राजकुमार के, कथा कहsसु जे लोर..
*
कहतानी नीमन कsथा, जाई बइठि मचान.
ऊभ-चूभ कउआ हंकन, हीरामन कहतान..
*
कंकहि फेरी कज्जर लगा, शीशा देखल बेर.
आपन आँचर सँवारत, पल-पल लगल अबेर..
*

दोहा का रचना विधान:

दोहा में दो पद (पंक्तियाँ) तथा हर पंक्ति में २ चरण होते हैं. विषम (प्रथम व तृतीय) चरण में १३-१३ मात्राएँ तथा सम (२रे व ४ थे) चरण में ११-११
मात्राएँ, इस तरह हर पद में २४-२४ कुल ४८ मात्राएँ होती हैं. दोनों पदों या
सम चरणों के अंत में गुरु-लघु मात्र होना अनिवार्य है. विषम चरण के आरम्भ
में एक ही शब्द जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित है. विषम चरण के अंत में सगण,
रगण या नगण तथा सम चरणों के अंत में जगण या तगण हो तो दोहे में लय दोष
स्वतः मिट जाता है. अ, इ, , ऋ लघु (१) तथा शेष सभी गुरु (२) मात्राएँ
गिनी जाती हैं.

**********************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

रविवार, 28 मार्च 2010

आज की कविता: संस्था ---आचार्य श्यामलाल उपाध्याय

समूह की इकाई

पंजीकृत, अपंजीकृत

राजनैतिक, सामाजिक,

धार्मिक, सांस्कृतिक,

साहित्यिक, मानवतावादी

नीतिगत, समाजगत,

धर्म-संस्कृतिगत,

नैतिक वा मूल्यगत.


बन क्या सकेगी

आदर्श जन-जीवन की

संस्था वह जिसके

सुचिन्तक बने हैं आप

मंत्री-अध्यक्ष बन

चलते अपनी नाव

बजाते अपनी डफली

अलापते अपना राग

गाते अपने गीत

मात्र अपनी संस्था के.


कैसे करेगी वह

श्रृंगार मानव का

जो रहा सदस्यता

और उसकी छायासे

अति दूर वंचित

देवी तो भूरि-भूरि

आशिष को प्रस्तुत

पर मात्र उसके प्रति

जो रहा निष्ठावान?


इसके क्रिया-कलाप

भले ही हों मर्यादित

अंशतः मानवतावादी

करते दुराग्रह और

हनन मर्यादा का

सार्वभौम सत्ता का

सार्वजनीनता का

बहुजन हिताय और

बहुजन सुखाय का.


जब तक कि उसके भाव

वर्ग सत्ता मोह छोड़

समाज की परिधि लाँघ चले नहीं

तब तक व्यक्ति या समाज

अथवा कोई भी संस्था अन्य

करती रहेगी अपकार

जन-जीवन का

इसका वरदान मात्र

अभिशाप-अनुक्षण

करता रहेगा मनुहार

अपनी संस्था का..



********************

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

शिव भजन: स्व. शांति देवि वर्मा

शिव भजन



स्व. शांति देवि वर्मा
*
 
शिवजी की आयी बरात





शिवजी की आयी बरात,


चलो सखी देखन चलिए...




भूत प्रेत बेताल जोगिनी'


खप्पर लिए हैं हाथ.


चलो सखी देखन चलिए


शिवजी की आयी बरात....




कानों में बिच्छू के कुंडल सोहें,


कंठ में सर्पों की माला.


चलो सखी देखन चलिए


शिवजी की आयी बरात....




अंग भभूत, कमर बाघम्बर'


नैना हैं लाल विशाल.


चलो सखी देखन चलिए


शिवजी की आयी बरात....




कर में डमरू-त्रिशूल सोहे,


नंदी गण हैं साथ.


शिवजी की आयी बरात,


चलो सखी देखन चलिए...




कर सिंगार भोला दूलह बन के,


नंदी पे भए असवार.


शिवजी की आयी बरात,


चलो सखी देखन चलिए...




दर्शन कर सुख-'शान्ति' मिलेगी,


करो रे जय-जयकार.


शिवजी की आयी बरात,


चलो सखी देखन चलिए...




***********




गिरिजा कर सोलह सिंगार




गिरिजा कर सोलह सिंगार


चलीं शिव शंकर हृदय लुभांय...




मांग में सेंदुर, भाल पे बिंदी,


नैनन कजरा लगाय.


वेणी गूंथी मोतियन के संग,


चंपा-चमेली महकाय.


गिरिजा कर सोलह सिंगार...




बांह बाजूबंद, हाथ में कंगन,


नौलखा हार सुहाय.


कानन झुमका, नाक नथनिया,


बेसर हीरा भाय.


गिरिजा कर सोलह सिंगार...




कमर करधनी, पाँव पैजनिया,


घुँघरू रतन जडाय.


बिछिया में मणि, मुंदरी मुक्ता,


चलीं ठुमुक बल खांय.


गिरिजा कर सोलह सिंगार...




लंहगा लाल, चुनरिया पीली,


गोटी-जरी लगाय.


ओढे चदरिया पञ्च रंग की ,


शोभा बरनि न जाय.


गिरिजा कर सोलह सिंगार...




गज गामिनी हौले पग धरती,


मन ही मन मुसकाय.


नत नैनों मधुरिम बैनों से


अनकहनी कह जांय.


गिरिजा कर सोलह सिंगार...




**********




मोहक छटा पार्वती-शिव की




मोहक छटा पार्वती-शिव की


देखन आओ चलें कैलाश....




ऊँचो बर्फीलो कैलाश पर्वत,


बीच बहे गैंग-धार.


मोहक छटा पार्वती-शिव की...




शीश पे गिरिजा के मुकुट सुहावे


भोले के जटा-रुद्राक्ष.


मोहक छटा पार्वती-शिव की...




माथे पे गौरी के सिन्दूर-बिंदिया


शंकर के नेत्र विशाल.


मोहक छटा पार्वती-शिव की......




उमा के कानों में हीरक कुंडल,


त्रिपुरारी के बिच्छू कान


मोहक छटा पार्वती-शिव की.....




कंठ शिवा के मोहक हरवा,


नीलकंठ के नाग.


मोहक छटा पार्वती-शिव की......




हाथ अपर्णा के मुक्ता कंगन,


बैरागी के डमरू हाथ.


मोहक छटा पार्वती-शिव की...




सती वदन केसर-कस्तूरी,


शशिधर भस्मी राख़.


मोहक छटा पार्वती-शिव की.....




महादेवी पहने नौ रंग चूनर,


महादेव सिंह-खाल.


मोहक छटा पार्वती-शिव की......




महामाया चर-अचर रच रहीं,


महारुद्र विकराल.


मोहक छटा पार्वती-शिव की......




दुर्गा भवानी विश्व-मोहिनी,


औढरदानी उमानाथ.


मोहक छटा पार्वती-शिव की...




'शान्ति' शम्भू लख जनम सार्थक,


'सलिल' अजब सिंगार.


मोहक छटा पार्वती-शिव की...


********************

 
भोले घर बाजे बधाई




मंगल बेला आयी, भोले घर बाजे बधाई ...




गौर मैया ने लालन जनमे,


गणपति नाम धराई.


भोले घर बाजे बधाई ...




द्वारे बन्दनवार सजे हैं,


कदली खम्ब लगाई.


भोले घर बाजे बधाई ...




हरे-हरे गोबर इन्द्राणी अंगना लीपें,


मोतियन चौक पुराई.


भोले घर बाजे बधाई ...




स्वर्ण कलश ब्रम्हाणी लिए हैं,


चौमुख दिया जलाई.


भोले घर बाजे बधाई ...


लक्ष्मी जी पालना झुलावें,


झूलें गणेश सुखदायी.

*******************