दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 7 जुलाई 2016
जीवनोद्देश्य
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'संजीव सलिल',
sanjiv aim
गुरुवार, 9 मई 2013
doha gatha 4 shabd bramh uchchar acharya sanjiv verma 'salil'
दोहा गाथा ४-
शब्द ब्रह्म उच्चार
संजीव
*अजर अमर अक्षर अजित, निराकार साकार
अगम अनाहद नाद है, शब्द ब्रह्म उच्चार
*
सकल सुरासुर सामिनी, सुणि माता सरसत्ति
विनय करीन इ वीनवुँ, मुझ तउ अविरल मत्ति
सुरासुरों की स्वामिनी, सुनिए माँ सरस्वति
विनय करूँ सर नवाकर, निर्मल दीजिए मति
संवत्
१६७७ में रचित ढोला मारू दा दूहा से उद्धृत माँ सरस्वती की वंदना के उक्त
दोहे से इस पाठ का श्रीगणेश करते हुए विसर्ग का उच्चारण करने संबंधी नियमों
की चर्चा करने के पूर्व यह जान लें कि विसर्ग स्वतंत्र व्यंजन नहीं है, वह
स्वराश्रित है। विसर्ग का उच्चार विशिष्ट होने के कारण वह पूर्णतः शुद्ध
नहीं लिखा जा सकता। विसर्ग उच्चार संबंधी नियम निम्नानुसार हैं-
१. विसर्ग के पहले का स्वर व्यंजन ह्रस्व हो तो उच्चार त्वरित "ह" जैसा तथा दीर्घ हो तो त्वरित "हा" जैसा करें।
२. विसर्ग के पूर्व "अ", "आ", "इ", "उ", "ए" "ऐ", या "ओ" हो तो उच्चार क्रमशः "ह", "हा", "हि", "हु", "हि", "हि" या "हो" करें।
यथा केशवः =केशवह, बालाः = बालाह, मतिः = मतिहि, चक्षुः = चक्षुहु, भूमेः = भूमेहि, देवैः = देवैहि, भोः = भोहो आदि।
३. पंक्ति के मध्य में विसर्ग हो तो उच्चार आघात देकर "ह" जैसा करें।
यथा- गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः.
४. विसर्ग के बाद कठोर या अघोष व्यंजन हो तो उच्चार आघात देकर "ह" जैसा करें।
यथा- प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः.
५. विसर्ग पश्चात् श, ष, स हो तो विसर्ग का उच्चार क्रमशः श्, ष्, स् करें।
यथा- श्वेतः शंखः = श्वेतश्शंखः, गंधर्वाःषट् = गंधर्वाष्षट् तथा
यज्ञशिष्टाशिनः संतो = यज्ञशिष्टाशिनस्संतो आदि।
६. "सः" के बाद "अ" आने पर दोनों मिलकर "सोऽ" हो जाते हैं।
यथा- सः अस्ति = सोऽस्ति, सः अवदत् = सोऽवदत्.
७. "सः" के बाद "अ" के अलावा अन्य वर्ण हो तो "सः" का विसर्ग लुप्त हो जाता है।
८. विसर्ग के पूर्व अकार तथा बाद में स्वर या मृदु व्यंजन हो तो अकार व विसर्ग मिलकर "ओ" बनता है।
यथा- पुत्रः गतः = पुत्रोगतः.
९. विसर्ग के पूर्व आकार तथा बाद में स्वर या मृदु व्यंजन हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है।
यथा- असुराःनष्टा = असुरानष्टा .
१०. विसर्ग के पूर्व "अ" या "आ" के अलावा अन्य स्वर तथा ुसके बाद स्वर या मृदु व्यंजन हो तो विसर्ग के स्थान पर "र" होगा।
यथा- भानुःउदेति = भानुरुदेति, दैवैःदत्तम् = दैवैर्दतम्.
११. विसर्ग के पूर्व "अ" या "आ" को छोड़कर अन्य स्वर और उसके बाद "र" हो तो विसर्ग के पूर्व आनेवाला स्वर दीर्घ हो जाता है।
यथा- ॠषिभिःरचितम् = ॠषिभी रचितम्, भानुःराधते = भानूराधते, शस्त्रैःरक्षितम् = शस्त्रै रक्षितम्।उच्चार चर्चा को यहाँ विराम देते हुए यह संकेत करना उचित होगा कि उच्चार नियमों के आधार पर ही स्वर, व्यंजन, अक्षर व शब्द का मेल या संधि होकर नये शब्द बनते हैं। दोहाकार को उच्चार नियमों की जितनी जानकारी होगी वह उतनी निपुणता से निर्धारित पदभार में शब्दों का प्रयोग कर अभिनव अर्थ की प्रतीति करा सकेगा। उच्चार की आधारशिला पर हम दोहा का भवन खड़ा करेंगे।
दोहा का आधार है, ध्वनियों का उच्चार
बढ़ा शब्द भंडार दे, भाषा शिल्प सँवार
शब्दाक्षर के मेल से, प्रगटें अभिनव अर्थ
जिन्हें न ज्ञात रहस्य यह, वे कर रहे अनर्थ
गद्य, पद्य, पिंगल, व्याकरण और छंद
गद्य पद्य अभिव्यक्ति की, दो शैलियाँ सुरम्य
बिंब भाव रस नर्मदा, सलिला सलिल अदम्य
जो कवि पिंगल व्याकरण, पढ़े समझ हो दक्ष
बिरले ही कवि पा सकें, यश उसके समकक्ष
कविता रच रसखान सी, दे सबको आनंद
रसनिधि बन रसलीन कर, हुलस सरस गा छंद
भाषा द्वारा भावों और विचारों की अभिव्यक्ति की दो शैलियाँ गद्य तथा पद्य हैं। गद्य में वाक्यों का प्रयोग किया जाता है जिन पर नियंत्रण व्याकरण करता है। पद्य में पद या छंद का प्रयोग किया जाता है जिस पर नियंत्रण पिंगल करता है।
कविता या पद्य को गद्य से अलग तथा व्यवस्थित करने के लिये कुछ नियम बनाये गये हैं जिनका समुच्चय "पिंगल" कहलाता है। गद्य पर व्याकरण का नियंत्रण होता है किंतु पद्य पर व्याकरण के साथ पिंगल का भी नियंत्रण होता है।
छंद वह सांचा है जिसके अनुसार कविता ढलती है। छंद वह पैमाना है जिस पर कविता नापी जाती है। छंद वह कसौटी है जिस पर कसकर कविता को खरा या खोटा कहा जाता है। पिंगल द्वारा तय किये गये नियमों के अनुसार लिखी गयी कविता "छंद" कहलाती है। वर्णों की संख्या एवं क्रम, मात्रा, गति, यति आदि के आधार पर की गयी रचना को छंद कहते हैं। छंद के तीन प्रकार मात्रिक, वर्णिक तथा मुक्त हैं। मात्रिक व वर्णिक छंदों के उपविभाग सममात्रिक, अर्ध सममात्रिक तथा विषम मात्रिक हैं।
दोहा अर्ध सम मात्रिक छंद है। मुक्त छंद में रची गयी कविता भी छंदमुक्त या छंदहीन नहीं होती।
छंद के अंग
छंद की रचना में वर्ण, मात्रा, पाद, चरण, गति, यति, तुक तथा गण का विशेष योगदान होता है।
वर्ण- किसी मूलध्वनि को व्यक्त करने हेतु प्रयुक्त चिन्हों को वर्ण या अक्षर कहते हैं, इन्हें और विभाजित नहीं किया जा सकता।
मात्रा- वर्ण के उच्चारण में लगे कम या अधिक समय के आधार पर उन्हें ह्रस्व, लघु या छोटा तथा दीर्घ या बड़ा ऽ कहा जाता है।
इनकी मात्राएँ क्रमशः एक व दो गिनी जाती हैं।
उदाहरण- गगन = ।+। +। = ३, भाषा = ऽ + ऽ = ४.
पाद- पद, पाद तथा चरण इन शब्दों का प्रयोग कभी समान तथा कभी असमान अर्थ में होता है। दोहा के संदर्भ में पद का अर्थ पंक्ति से है। दो पंक्तियों के कारण दोहा को दो पदी, द्विपदी, दोहयं, दोहड़ा, दूहड़ा, दोग्धक आदि कहा गया। दोहा के हर पद में दो, इस तरह कुल चार चरण होते हैं। प्रथम व तृतीय चरण विषम तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण सम कहलाते हैं।
गति- छंद पठन के समय शब्द ध्वनियों के आरोह व अवरोह से उत्पन्न लय या प्रवाह को गति कहते हैं। गति का अर्थ काव्य के प्रवाह से है। जल तरंगों के उठाव-गिराव की तरह शब्द की संरचना तथा भाव के अनुरूप ध्वनि के उतार चढ़ाव को गति या लय कहते हैं। हर छंद की लय अलग अलग होती है। एक छंद की लय से अन्य छंद का पाठ नहीं किया जा सकता।
यति- छंद पाठ के समय पूर्व निर्धारित नियमित स्थलों पर ठहरने या रुकने के स्थान को यति कहा जाता है। दोहा के दोनों चरणों में १३ व ११ मात्राओं पर अनिवार्यतः यति होती है। नियमित यति के अलावा भाव या शब्दों की आवश्यकता अनुसार चजण के बीच में भी यति हो सकती है। अल्प या अर्ध विराम यति की सूचना देते है।
तुक- दो या अनेक चरणों की समानता को तुक कहा जाता है। तुक से काव्य सौंदर्य व मधुरता में वृद्धि होती है। दोहा में सम चरण अर्थात् दूसरा व चौथा चरण सम तुकांती होते हैं।
गण- तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। गण आठ प्रकार के हैं। गणों की मात्रा गणना के लिये निम्न सूत्र में से गण के पहले अक्षर तथा उसके आगे के दो अक्षरों की मात्राएँ गिनी जाती हैं। गणसूत्र- यमाताराजभानसलगा।
क्रम गण का नाम अक्षर मात्राएँ
१. यगण यमाता ऽऽ = ५
२. मगण मातारा ऽऽऽ = ६
३. तगण ताराज ऽऽ = ५
४. रगण राजभा ऽ ऽ = ५
५. जगण जभान ऽ = ४
६. भगण भानस ऽ = ४
७. नगण नसल = ३
८. सगण सलगा ऽ = ४
उदित उदय गिरि मंच पर , रघुवर बाल पतंग । - प्रथम पद
प्रथम विषम चरण यति द्वितीय सम चरण यति
विकसे संत सरोज सब , हरषे लोचन भ्रंग । - द्वितीय पद
तृतीय विषम चरण यति चतुर्थ सम चरण यति
आगामी पाठ में बिम्ब, प्रतीक, भाव, शैली, संधि, अलंकार आदि काव्य तत्वों के साथ दोहा के लक्षण व वैशिष्ट्य की चर्चा होगी.
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आभार: हिन्दयुग्म २५।१।२००९
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रविवार, 13 मई 2012
बात-बेबात : बात निकलेगी तो फिर ... 'संजीव सलिल'
बात-बेबात :
बात निकलेगी तो फिर ...
'संजीव सलिल'
*
मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ जिन मूल भावनाओं का विकास हुआ उनमें हास्य-व्यंग्य का स्थान प्रमुख है। संभवतः मानव को छोड़कर अन्य प्राणी इससे अपरिचित हैं।
लोक मानस में राई गीत, कबीरा, होरी गीत, वैवाहिक कार्यक्रमों में गारियाँ आदि में हास्य-व्यंग्य की मनोहारी छटा सर्वत्र दृष्टव्य है। यहाँ तक कि भगवानों को भी अछूता नहीं छोड़ा गया। शिव को भूतनाथ, बैरागी, विष्णु को कामिनी और हरि (वानर), कृष्ण को माखनचोर, रणछोड़, चितचोर आदि संबोधन इसी भावना से उद्भूत हैं। देवियाँ भी इससे बच नहीं पायीं। गौरवर्णा दुर्गा को काली, लक्ष्मी को हरजाई तथा चंचला, सरस्वती को ब्रम्हा को पतित करनेवाली कहा गया।
चित्रकार / व्यंग्य चित्रकार जन भावनाओं को रेखांकित कर जनाक्रोश की शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति करते हैं साथ ही जननेताओं को जनमत से अवगत कराते हैं। हाल में ममता बैनर्जी और भीमराव अम्बेडकर पर बनाये गये व्यंग्य चित्रों पर राजनैतिक हलकों में जो असंतोष देखा गया वह लोकतंत्र में भावाभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को देखते हुए उचित नहीं है। यह होहल्ला समझदारी और सहिष्णुता का अभाव दर्शाता है जो किसी भी पल टकराव को जन्म दे सकता है।
चित्रकार / व्यंग्य चित्रकार जन भावनाओं को रेखांकित कर जनाक्रोश की शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति करते हैं साथ ही जननेताओं को जनमत से अवगत कराते हैं। हाल में ममता बैनर्जी और भीमराव अम्बेडकर पर बनाये गये व्यंग्य चित्रों पर राजनैतिक हलकों में जो असंतोष देखा गया वह लोकतंत्र में भावाभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को देखते हुए उचित नहीं है। यह होहल्ला समझदारी और सहिष्णुता का अभाव दर्शाता है जो किसी भी पल टकराव को जन्म दे सकता है।
यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ व्यंग्य चित्र :
डॉ. अंबेडकर पर विवादस्पद व्यंग्य चित्र
स्वातंत्र्य सत्याग्रहियों पर लाठी-प्रहार
म. गाँधी पर एक और व्यंग्य चित्र
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