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रविवार, 24 अप्रैल 2011

मुक्तिका: आँख का पानी संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
आँख का पानी
संजीव 'सलिल'
*
खो गया खोजो कहाँ-कब आँख का पानी?
बो गया निर्माण की फसलें ये वरदानी..

काटकर जंगल, पहाड़ों को मिटाते लोग.
नासमझ है मनुज या है दनुज अभिमानी?

मिटी कल-कल, हुई किल-किल, घटा जब से नीर.
सुन न जन की पीर, करता तंत्र मनमानी..

लिये चुल्लू में तनिक जल, जल रहा जग आज.
'यही जल जीवन' नहीं यह बात अनजानी..

'सत्य-शिव-सुन्दर' न पानी बिन सकोगे साध.
जल-रहित यह सृष्टि होगी 'सलिल' शमशानी..
*******

सोमवार, 6 सितंबर 2010

नव गीत: क्या?, कैसा है?... संजीव 'सलिल'

नव गीत:

क्या?, कैसा है?...

संजीव 'सलिल'
*
*क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*
पोखर सूखे,
पानी प्यासा.
देती पुलिस
चोर को झाँसा.
सड़ता-फिंकता
अन्न देखकर
खेत, कृषक,
खलिहान रुआँसा.
है गरीब की
किस्मत, बेबस
भूखा मरना.
क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*
चूहा खोजे
मिले न दाना.
सूखी चमड़ी
तन पर बाना.
कहता: 'भूख
नहीं बीमारी'.
अफसर-मंत्री
सेठ मुटाना.
न्यायालय भी
छलिया लगता.
माला जपना.
क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*
काटे जंगल,
भू की बंजर.
पर्वत खोदे,
पूरे सरवर.
नदियों में भी
शेष न पानी.
न्यौता मरुथल
हाथ रहे मल.
जो जैसा है
जब लिखता हूँ
देख-समझना.
क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*****************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.कॉम