जवां बेवा सी घड़ी इन्तिज़ार की है 'सलिल'॥
-दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
-संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
इन्तिज़ार
कोशिशें मंजिलों की राह तकें।
मंजिलों ने न इन्तिज़ार किया।
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बूढा बरगद कर रहा है इन्तिज़ार।
गाँव का पनघट न क्यों होता जवां?
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जो मजा इन्तिजार में पाया।
वस्ल में हाय वो मजा न मिला।
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मिलन के पल तो लगे, बाप के घर बेटी से।
जवां बेवा सी घड़ी, इन्तिज़ार सी है 'सलिल'।
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इन्तिज़ार दिल से करोगे अगर पता होता।
छोड़कर शर्म-ओ-हया मैं ही मिल गयी होती।
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